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सौजन्य- सत्यकथा

Writer- मुकेश तिवारी

रामऔतार ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. बगैर विरोध किए मालती उस की ओर खिसक आई.

दूसरे हाथ से उस ने पास जल रही लालटेन की लौ धीमी कर दी. अगले पल मालती का सिर रामऔतार की गोद में था और रामऔतार के हाथ उस के नाजुक शरीर पर रेंगने लगे थे. जल्द ही दोनों बेकाबू हो गए. वासना की आग में जल उठे.

कुछ समय में वे एकदूसरे की कामाग्नि शांत कर निढाल हो चुके थे. मालती को होश तब आया जब फेरन ने उसे लात मारी. हड़बड़ा कर उठी. कपड़े समेटने लगी. कुछ कपड़ों पर रामऔतार बेसुध लेटा हुआ था, ब्लाउज और ब्रा उस ने खींच कर निकाला.

फेरन यह सब देख कर गुस्से में तमतमा रहा था, उस के उठते ही फेरन ने पत्नी मालती के बाल पकड़ लिए. गुस्से में बदजात, बेहया, बदलचन बोलता हुआ भद्दीभद्दी गालियां देने लगा.

आधी रात का समय था. फेरन को गुस्से में देख कर रामऔतार मामला समझ गया. कुछ कहेसुने बगैर वह चुपके से निकल गया. उस के जाते ही फेरन ने लातघूंसों से मालती की जम कर पिटाई कर दी. उसे तब तक पीटता रहा जब तक वह थक नहीं गया.

अगले दिन सुबह मालती चुपचाप आंगन में पड़ी रात की गंदगी को साफ करने लगी. थोड़ी देर में रामऔतार भी आ गया. वह आते ही चुपचाप दातून करते फेरन के पैरों पर गिर पड़ा.

फेरन ने उसे झटक दिया. गुस्से में बोला, ‘‘तूने मेरी पीठ में खंजर घोंपा. बहुत बुरा किया. अब देखना मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूं.’’

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