कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- मुकेश तिवारी

माना कि शराब की लत बुरी होती है, लेकिन उस से भी बुरा होता है वासना का नशा. अगर पति और पत्नी दोनों इन आदतों के शिकार हो जाएं तब तो उन की जिंदगी की गाड़ी को पटरी से उतरने से कोई नहीं रोक सकता.

ऐसा ही हुआ मालती और उस के पति फेरन के साथ. पति को नशे की लत थी और पत्नी अनैतिकता की मस्ती में ऐसी डूबी कि उस ने पतिपत्नी के रिश्ते को वासना की आग में झोंक दिया था.

एक दिन बाजार से घर के कुछ जरूरी सामान की खरीदारी कर मालती तेज कदमों से अपने घर लौट रही थी. पीछे से साइकिल चला कर आते रामऔतार ने उसे रोका, ‘‘पैदल क्यों चल रही हो, पीछे कैरियर पर बैठ जाओ.’’ रामऔतार उस के गांव का ही रहने वाला युवक था.

‘‘अरे, नहींनहीं, तुम जाओ. गांव वाले देखेंगे तो गलत समझेंगे.’’ मालती ने उस से कहा.

‘‘गलत समझेंगे तो क्या हुआ. हम कौन भला सच्चे हैं.’’ रामऔतार बोला.

‘‘सब की नजरों में तो अच्छे हैं. पति घर आ चुका होगा. 2 हफ्ते बाद काम पर गया है.’’ मालती बोली.

‘‘अच्छा कोई बात नहीं. अपना थैला मुझे दे दो. और हां, अपने पति फेरन को बोलना कि मैं शाम आऊंगा. मैं ने उस के लिए एक बोतल खरीदी है.’’ कहते हुए रामऔतार ने मालती के हाथ से सब्जी और सामान का थैला ले लिया. उसे कैरियर पर एक हाथ से बांधने लगा, क्योंकि एक हाथ से वह विकलांग था.

‘‘तुम एक हाथ से कैसे सब काम कर लेते हो, मुझे देख कर हैरत होती है,’’ देख कर मालती बोली.

‘‘इस में हैरानी की क्या बात है, यह तो तुम्हारा प्यार है, जो तुम्हें देख कर हिम्मत आ जाती है.’’ रामऔतार उस के गाल को छूते हुए बोला.

मालती शरमा गई. वह बोली, ‘‘बसबस, मैं चलती हूं तुम कितना खयाल रखते हो मेरा.’’

‘‘मैं तुम्हारा सामान तुम्हारे घर में दरवाजे की बगल में रख कर टोकरी से ढंक कर रख दूंगा,’’ कह कर रामऔतार वहां से चला गया.

मालती खाली हाथ सड़क किनारे चलती हुई पैडल मारते रामऔतार को देखती रही. निश्चित तौर पर वह रामऔतार के बारे में ही सोचने लगी थी.

मालती उसे पिछले 7 सालों से जानती थी. वह उस के पति फेरन का जिगरी दोस्त था. उस के घर से कुछ मकान छोड़ कर वह दूसरे टोले में रहता था. एक हाथ से विकलांग होने के बावजूद वह खेतीकिसानी से ले कर घर का सारा कामकाज खुद करता था. उस की शादी नहीं हुई थी. परिवार में वह अकेला था.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: पैसे का गुमान

उस की दूसरे रिश्तेदारों से जरा भी नहीं पटती थी. यही कारण था कि उस का अपने दोस्त फेरन के घर निर्बाध रूप से आनाजाना था. मालती भी उस के घर बेरोकटोक आतीजाती थी. उस के यहां वह झाड़ू और साफसफाई जैसे घरेलू काम को अपने घर का कामकाज समझ निपटा दिया करती थी.

फेरन को इस का जरा भी बुरा नहीं लगता था. रामऔतार की एक ही लत थी शराब पीने की. कहते हैं कि यह लत फेरन ने ही उसे लगाई थी. हालांकि सालों से शराब का इंतजाम करने का काम रामऔतार ही करता आ रहा था. उस रोज भी वह अपने दोस्त के लिए एक बोतल शराब खरीद लाया था.

मालती अंधेरा होने से पहले अपने घर पहुंच गई थी, उस का पति भी काम से लौट आया था.

‘‘कितने दिनों का काम मिला है?’’ मालती ने सामान का थैला उठाते हुए पति ने पूछा.

‘‘2 हफ्ते का है, लेकिन ठेकेदार पैसे कम दे रहा है. कहता है लौकडाउन में काम कम हो गया है.’’ फेरन ने बताया.

‘‘कोई बात नहीं, घर में कुछ तो आएगा, खाली बैठे रहने से तो अच्छा है.’’ मालती लंबी सांस लेते हुई बोली.

‘‘आज कुछ अच्छा मसालेदार खाना पकाओ.’’ फेरन ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं! तुम्हारा दोस्त भी आने वाला होगा, काम मिलने की खुशी में उस के साथ जश्न मनाना.’’ मालती ने चुटकी ली.

इसी बीच रामऔतार ने दरवाजे पर आवाज दी.

‘‘लो, आ गया तुम्हार यार!’’ मालती कह कर हंसने लगी.

रामऔतार के आने के बाद कुछ देर में ही घर के आंगन में फेरन और रामऔतार की दारू की महफिल सज गई थी. खाने को 3 तरह के नमकीन थे. बड़ी बोतल के साथ रखे 2 गिलासों में शराब खाली होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

जैसे ही फेरन का गिलास खाली होता, रामऔतार उस में और शराब डाल देता था. मक्के की मोटी रोटी के एक टुकड़े के साथ चटखारेदार सब्जी का आनंद लेते हुए सहज बोल पड़ता कि मीट होती तो और भी मजा आ जाता.

मालती भी पति रामऔतार के गिलास से ही फेरन की नजर बचा कर एकदो घूंट पी लेती थी. धीरेधीरे दोनों दोस्त नशे में झूमने लगे थे, लेकिन फेरन पर नशा अधिक चढ़ गया था.

ये भी पढ़ें- Crime: मर्द से औरत बनने का अधूरा ख्वाब

वह एक ओर मुंह नीचे कर बड़बड़ाने लगा, ‘‘रामऔतार तू मेरा बहुत अच्छा यार है, इस कड़की में भी तूने मुझे अच्छी दारू पिलाई. मजा आ गया.’’

‘‘तू पैसे और काम की चिंता मत कर, जब तक तेरा दोस्त है तब तक दारू पिलाएगा. और अच्छीअच्छी विदेशी दारू भी पिलाएगा.’’ रामऔतार ने कहते हुए बगल में खड़ी मालती का हाथ खींच कर बिठा लिया.

मालती के बैठने के धम्म की आवाज सुन कर फेरन बोला, ‘‘कौन, मालती है? जरा मुझे पकड़ कर उठाना, पैर भर गया है. पेशाब करने जाना है.’’

मालती ने बैठेबैठे फेरन को हाथ का सहारा दिया. वह उठ कर कुछ पल खड़ा रह कर बोला, ‘‘अब ठीक है, मैं अभी आया.’’

यह कहता हुआ पेशाब करने के लिए घर से बाहर नाले के पास चला गया. उस के जाते ही रामऔतार ने मालती के कमर में हाथ डाल दिया. इस अंदेशे से बेखबर मालती बोल उठी, ‘‘अरे, क्या करते हो?’’

‘‘कुछ नहीं, थोड़ा प्यार करने का मन हो आया है. ये लो एक घूंट और पी लो.’’ रामऔतार ने कमर से हाथ निकाल कर अपने शराब का गिलास उस की होंठ से लगा दिया.

मालती भी बिना किसी झिझक के घूंट पीने लगी. रामऔतार ने तुरंत उस के गाल को चूम लिया. मालती थोड़ी असहज हो गई.

‘‘इतना बेचैन क्यों हो रहे हो. 2 दिन पहले ही तो तुम ने…’’ मालती की बात पूरी करने से पहले ही फेरन ने आवाज दी. उस ने कहा कि वह सोने जा रहा है, अब और दारू नहीं पिएगा.

उस के बाद फेरन अपने कमरे की ओर चला गया. मालती उठी और बाहर का दरवाजा बंद कर लिया. रामऔतार ने अपने गिलास में कुछ और शराब डाली. मालती भी वहीं आ कर खाने के लिए रोटियां तोड़ने लगी.

अगले भाग में पढ़ें- यह मामला पुलिस के लिए किसी अबूझ पहेली से कम नहीं था

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...