अप्रैल, 2017 के पहले सप्ताह में पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर ने मुंबई के उपनगरीय पुलिस थानों का दौरा किया तो उपनगर कांदिवली पश्चिम के थाना चारकोप में दर्ज भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त मैनेजर प्रकाश गंगाराम वानखेड़े की गुमशुदगी की फाइल पर उन का ध्यान चला गया. उन्होंने उस फाइल का अध्ययन किया तो उन्हें लगा कि इस मामले की जांच ठीक से नहीं की गई है. उन्होंने वह फाइल जौइंट सीपी देवेन भारती को सौंपते हुए उस की जांच ठीक से कराने को कहा.

देवेन भारती को भी इस मामले की जांच में जांच अधिकारियों की लापरवाही दिखाई दी. वह कई सालों तक मुंबई क्राइम ब्रांच सीआईडी के प्रमुख रह चुके थे. उन्हें आपराधिक मामलों के खुलासे का अच्छाखासा अनुभव था. यह मामला एक साल पुराना था और बिना किसी नतीजे पर पहुंचे इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. फाइल का अध्ययन करने पर देवेन भारती को यह मामला संदिग्ध और रहस्यमय लगा तो उन्होंने सहायक अधिकारियों को बुला कर एक मीटिंग की और इस मामले की जांच उन्होंने अपने सब से विश्वस्त अधिकारी एसीपी श्रीरंग नादगौड़ा को सौंप दी.

श्रीरंग नादगौड़ा ने खुद के निर्देशन में थाना मालवणी के थानाप्रभारी दीपक फटांगरे के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर बेले, एएसआई धार्गे, कान्हेरकर, एसआई जगताप, सिपाही उगले आदि को शामिल किया. थानाप्रभारी दीपक फटांगरे भी क्राइम ब्रांच की सीआईडी यूनिट में कई सालों तक काम कर चुके थे. शायद इसीलिए पुलिस अधिकारियों को उन पर पूरा भरोसा था. उन्होंने भी इस मामले को पूरी गंभीरता से लिया. इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर पहले तो उन्होंने फाइल का गहराई से अध्ययन किया, उस के बाद इस मामले की जांच महाराष्ट्र के जिला अहमदनगर की शिवाजी कालोनी की रहने वाली वंदना थोरवे के यहां से शुरू की.

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