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सौजन्य- सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

21अक्तूबर, 2021 की रात के करीब साढ़े 11 बजे फरीदाबाद के गोठड़ा मोहब्ताबाद का रहने वाला गगन (26 वर्ष) अपने परिवार के साथ खाटू श्याम के दर्शन कर के घर लौटा था. गगन हर साल इसी समय के आसपास अपने पूरे परिवार के साथ खाटू श्याम मंदिर में दर्शन के लिए जाया करता था. उस मंदिर के प्रति उस की आस्था बहुत थी.

वह इस साल अपनी माता सुमन (50 वर्ष), बहन आयशा (30 वर्ष), छोटे भांजे सक्षम (12 वर्ष) और दोस्त राजन शर्मा के साथ मंदिर में दर्शन कर के लौटा था.

गगन राजन के साथ ही फरीदाबाद सेक्टर 55-56 में प्रौपर्टी डीलिंग और पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता था. इस से पहले गगन अपने परिवार के साथ फरीदाबाद सेक्टर 55 में किराए पर ही रहता था. लेकिन इसी साल सितंबर में उस ने गोठड़ा मोहब्ताबाद में किराए के एक मकान में, जो कि एक पूर्व सरपंच का मकान है, वहां रहने लगा था. उस के पुराने घर से इस नए मकान के बीच करीब 30 मिनट पैदल की दूरी थी.

21 अक्तूबर को मंदिर से दर्शन कर देर रात घर लौटने की वजह से गगन ने राजन को अपने घर पर ही रुकने का आग्रह किया था, क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी और वह अपने इलाके में देर रात होने वाली घटनाओं और वारदातों के बारे में अच्छे से जानता था.

राजन ने भी गगन की बात मान ली और वह रात में उसी के घर रुक गया. देर रात को लंबा सफर कर के लौटे सभी लोग पहले फ्रैश हुए और हलकाफुलका खाना खा कर वे सब सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए.

आयशा व उस की मां सुमन मकान में नीचे के कमरे में सोने चली गईं और गगन, राजन व सक्षम पहली मंजिल पर सोने चले गए. सब थकेहारे थे तो हर किसी को जल्दी नींद भी आ गई थी और सभी गहरी नींद में सो भी गए थे. बस सक्षम ही रात को जागा हुआ था.

नींद तो सक्षम को भी तेज आ रही थी, लेकिन वह किसी का बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहा था. वह रात को जगे हुए अपने मम्मी के फोन में गेम खेल रहा था. रात के करीब ढाई बजे के आसपास उस का फोन बजा. इस से पहले कि फोन की घंटी हर किसी को नींद से जगा देती कि उस से पहले ही सक्षम ने तुरंत फोन उठा लिया.

यह उस के पिता नीरज चावला (35 वर्ष) का फोन था. सक्षम ने फोन उठा कर फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘हैलो पापा.’’

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नीरज अपने बेटे को पुचकारते हुए बोला, ‘‘अरे मेरा बेटा कैसा है? खाटू श्याम घूम कर आ गए सब? कैसा लगा वहां घूम कर? मजा आया?’’

सक्षम ने फिर से फुसफुसाते हुए अपने पिता के सवालों का जवाब दिया, ‘‘जी पापा. वहां तो खूब मजा आया पापा. काश! आप भी साथ होते और मजा आता. हमें तो काफी रात हो गई थी वहां से वापस आते हुए.’’

ये सुन कर नीरज ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटे. सुनो, जो हमारी बीच बात हुई थी तुम्हें याद है न?’’

सक्षम ने उत्सुकता के साथ कहा, ‘‘जी पापा, मुझे याद है. आप क्या लाए हो मेरे लिए?’’

नीरज ने जवाब दिया, ‘‘वो तो सरप्राइज है मेरे बच्चे. मैं अभी तुम्हारे घर के बाहर ही तो खड़ा हूं. नीचे आ कर दरवाजा खोलो और अपना गिफ्ट ले जाओ. और हां, किसी को इस बारे में बताने की जरूरत नहीं है. ये गिफ्ट स्पैशल तुम्हारे लिए मंगवाया है बाहर से. अब जल्दी से नीचे आ कर अपना गिफ्ट ले लो. इसी बहाने मैं अपने बेटे से भी मिलूंगा.’’

अपने पिता के द्वारा लाए हुए गिफ्ट की बात सुन कर सक्षम के मन में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. वह तुरंत अपने बिस्तर से इस तरह से उठा कि किसी और को उस के उठने की भनक तक नहीं लगी और वह जल्द ही नीचे दरवाजे की ओर भागा.

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आहिस्ता से सक्षम ने अंदर से लगी दरवाजे की कुंडी खोली और धीरे से दरवाजा खोला. उस ने देखा उस के पिता दरवाजे के ठीक सामने अपने हाथों में एक थैली लिए खड़े थे.

सक्षम के दरवाजा खोलने पर नीरज ने झुक कर उसे पहले अपने गले लगा लिया और फुसफुसाते हुए उस से पूछा, ‘‘कोई जागा तो नहीं बेटा?’’

सक्षम ने भी उसी तरह से नीरज को जवाब दिया, ‘‘नहीं पापा, कोई नहीं जागा.’’

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