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अवध आसाम एक्सप्रैस ट्रेन अपना लंबा सफर तय करती हुई दिल्ली के करीब पहुंच गई थी. जिन्हें दिल्ली
उतरना था, वे अपनाअपना सामान संभालने लगे थे. उन के चेहरे प्रफुल्लित थे, दिल्ली पहुंचने का उत्साह व खुशी थी. वहीं पैसेंजर डिब्बे के एक कोने में गठरी बनी बैठी 18 साल की सानिया परेशान और चिंता में डूबी बारबार अपने छोटे से मोबाइल को उलटपुलट कर देख रही थी.

दिल्ली में उसे जिस के पास पहुंचना था, उस का न तो उस के पास एडे्रस था, न उस से फोन से संपर्क हो पा रहा था. शायद यही सानिया की परेशानी का सबब था.जब वह गुवाहाटी से इस ट्रेन में सवार हुई थी, उस ने अपनी परिचित को फोन किया था और अपने दिल्ली आने की खबर की थी. परिचित जो उस की गांव की ही थी और 8वीं तक उस के साथ पढ़ी थी, ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा था कि वह दिल्ली आ जाए, वह उसे यहां स्टेशन पर लेने पहुंच जाएगी.

सानिया तब बेफिक्र ट्रेन में सवार हो गई थी. जब दिल्ली करीब आने की सुगबुगाहट उस के कानों में पड़ी तो उस ने अपनी सहेली को फिर से संपर्क करना चाहा था, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया था.बस, इसी चिंता ने सानिया को परेशान कर के रख दिया था. उस के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं, उसे दिल्ली के नजदीक आने की जरा भी खुशी नहीं हो रही थी.सानिया अपना छोटा सा बैग ले कर वह डिब्बे से नीचे आ गई. प्लेटफार्म पर बहुत भीड़ थी. बहुत शोर था. वह घबरा गई.

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