मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.
सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.
निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की.
ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या
लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है.
आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है. घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’
पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे.
पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’
यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है.
पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई.
थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.
वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. उस के बाद दोनों के बीच फिर से अवैध संबंध बन गए. सोना के कहने पर ही उस ने किराए का कमरा लिया था, जहां दोनों का शारीरिक मिलन होता था.
आशीष ने बताया कि घटना वाले दिन सोना 12 बजे आई थी. आशीष ने उस से कहा कि वह पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ. झगड़े के बीच आशीष ने यह सोच कर प्रणय निवेदन किया कि यौन प्रक्रिया में गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन सोना ने उसे दुत्कार दिया.
शादी की बात न मानने और प्रणय निवेदन ठुकराने की वजह से आशीष को गुस्सा आ गया और उस ने पास रखी कैंची उठा कर सोना के पेट में घोंप दी. फिर उसी कैंची से उस का गला भी छेद डाला. हत्या करने के बाद वह फरार हो गया था. चूंकि आशीष सिंह ने सोना की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और पुलिस आला ए कत्ल भी बरामद कर चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—
कानपुर महानगर के पनकी थाना क्षेत्र में एक मोहल्ला है सराय मीता. मुन्नालाल सोनकर अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. मुन्नालाल सोनकर नगर निगम में सफाई कर्मचारी था. उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था.
मुन्नालाल अपनी बड़ी बेटी बरखा की शादी कर चुका था. बरखा से छोटी सोना 18 साल की हो गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. पढ़ाईलिखाई में मन लगाने के बजाए वह सजनेसंवरने पर ज्यादा ध्यान देती थी. नईनई फिल्में देखना, सैरसपाटा करना और आधुनिक फैशन के कपड़े खरीदना उस का शौक था. मुन्नालाल सीधासादा आदमी था. रहनसहन भी साधारण था. वह बेटी की फैशनपरस्ती से परेशान था.
सोना अपनी मां गीता के साथ दादानगर स्थित एक लोहा फैक्ट्री में काम करती थी. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उसे वह अपने फैशन पर खर्च करती थी. जिद्दी स्वभाव की सोना को बाजार में जो कपड़ा या अन्य सामान पसंद आ जाता, वह उसे खरीद कर ले आती. मातापिता रोकतेटोकते तो वह टका सा जवाब दे देती, ‘‘मैं ने सामान अपने पैसे से खरीदा है. फिर ऐतराज क्यों?’’
उस के इस जवाब से सब चुप हो जाते थे. सोना की अपनी भाभी ज्योति से खूब पटरी बैठती थी.
सोना दादानगर स्थित जिस लोहा फैक्ट्री में काम करती थी, आशीष सिंह उसी में सुपरवाइजर था. वह मूलरूप से जिला कानपुर के देहात क्षेत्र के कस्बा गजनेर का रहने वाला था. उस का घरेलू नाम अजय था. लोग उसे अजय ठाकुर कहते थे. उस के पिता गांव में किसानी करते थे. सोना लोहा फैक्ट्री में पैकिंग का काम करती थी.
ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर
निरीक्षण के दौरान एक रोज आशीष सिंह की निगाह खूबसूरत सोना पर पड़ी. दोनों की नजरें मिलीं तो दोनों कुछ देर तक आकर्षण में खोए रहे. जब आकर्षण टूटा तो सोना मुसकरा दी और नजरें झुका कर पैकिंग में जुट गई. नजरें मिलने का सुखद अहसास दोनों को हुआ.
अगले दिन सोना कुछ ज्यादा ही बनसंवर कर आई. आशीष उस के पास पहुंचा और इशारे से उसे अपने औफिस के कमरे में आने को कहा. वह उस के औफिस में आई तो आशीष ने उस से कुछ कहा, जिसे सुन कर सोना सकपका गई. वह यह कह कर वहां से चली गई कि कोई देख लेगा. सोना की ओर से हरी झंडी मिली तो आशीष बहुत खुश हुआ.
आशीष सिंह पढ़ालिखा हृष्टपुष्ट युवक था. वह अच्छाखासा कमा भी रहा था. लेकिन वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की पत्नी से नहीं बनी तो वह घाटमपुर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. आशीष सिंह ने सोना से यह बात छिपा ली थी. उस ने उसे खुद को कुंवारा बताया था.
सोना सजीले युवक आशीष से मन ही मन प्यार करने लगी और मां से नजरें बचा कर आशीष से फैक्ट्री के बाहर एकांत में मिलने लगी. दोनों के बीच प्यार भरी बातें होने लगीं. धीरेधीरे आशीष सोना का दीवाना हो गया. सोना भी उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी.
प्यार परवान चढ़ा तो देह की प्यास जाग उठी. एक रोज आशीष सोना को अपने दादानगर वाले कमरे पर ले गया, जहां वह किराए पर रहता था. सोना जैसे ही कमरे में पहुंची, आशीष ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. आशीष के स्पर्श से सोना को बहकते देर नहीं लगी. आशीष जो कर रहा था, सोना को उस की अरसे से तमन्ना थी. इसलिए वह भी आशीष का सहयोग करने लगी.
कुछ देर बाद आशीष और सोना अलग हुए तो बहुत खुश थे. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. जब भी मन होता, शारीरिक संबंध बना लेते. आशीष कमरे में अकेला रहता था, जिस से दोनों आसानी से मिल लेते थे. लेकिन कहते हैं कि प्यार चाहे जितना चोरीछिपे किया जाए, एक न एक दिन उस का भेद खुल ही जाता है.
एक शाम सोना और गीता एक साथ फैक्ट्री से निकली तो कुछ दूर चल कर सोना बोली, ‘‘मां, मुझे गोविंद नगर बाजार से कुछ सामान लेना है. तुम घर चलो, मैं आ जाऊंगी.’’
गीता ने कुछ नहीं कहा. लेकिन उसे सोना पर संदेह हुआ. इसलिए उस ने सोना का गुप्तरूप से पीछा किया और उसे आशीष के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया.
गीता ने सोना को फटकारा और भलाबुरा कहा. साथ ही प्रेम से सिर पर हाथ रख कर समझाया भी, ‘‘बेटी, आशीष ठाकुर जाति का है और तुम दलित की बेटी हो. आशीष के घर वाले दलित की बेटी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मेरी बात मानो और आशीष का साथ छोड़ दो, इसी में हम सब की भलाई है.’’
ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को