सुबह के 10 बज रहे थे. अनिल गुप्ता जल्दीजल्दी कपड़े पहन कर तैयार हो रहे थे. वह ठीक साढ़े 9 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते थे, लेकिन उस दिन उन्हें थोड़ी देर हो गई थी.

तैयार हो कर उन्होंने दूसरे कमरे में सवा साल के बेटे करण को दूध पिला रही पत्नी कनिका गुप्ता को आवाज दे कर कहा, ‘‘कनिका, मुझे देर हो रही है. मैं औफिस जा रहा हूं, किसी से जरूरी मीटिंग है. तुम दरवाजा बंद कर लो.’’

‘‘जी, आप जाइए, मैं अभी दरवाजा बंद कर लेती हूं.’’ कनिका ने अंदर से ही जवाब दिया.

अनिल कुछ फाइलें और जरूरी सामान ले कर निकल गए. उन्होंने सारा सामान कार में रखा और औफिस की ओर चल पड़े. उन का औफिस मैहणा चौक पर था. अनिल पेशे से सीए थे, इसलिए औफिस पहुंच कर वह काम ऐसे उलझे कि उन्हें खाना खाने तक की फुरसत नहीं मिली.

दोपहर करीब 3 बजे उन के छोटे साले अनुज ने उन्हें जो बताया, उसे सुन कर अनिल परेशान हो उठे. अनुज ने बताया, ‘‘जीजाजी, जल्दी से घर आ जाइए. किसी ने दीदी की हत्या कर दी है.’’

पत्नी की हत्या की बात सुन कर अनिल गुप्ता के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उन की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. अपने आप को जैसेतैसे संभाल कर वह घर की ओर चल पड़े. घर पहुंचे तो वहां का मंजर देख कर वह सन्न रह गए. वहां का दृश्य बड़ा ही भयावह था. कमरे में बैड के पास फर्श पर उन की पत्नी कनिका की खून से सनी लाश पड़ी थी. वहीं पास में बैठा करण रो रहा था.

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