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शिवम उस की तारीफ करते हुए पहले भी ऐसा कुछेक बार कर चुका था. रानी शिवम के मन की यौन जिज्ञासाओं को समझती थी. इसलिए उस की हरकतों का बुरा नहीं मानती थी.

वह जानती थी कि शिवम का मन इस से आगे कुछ और भी चाहता होगा, पर वह शिवम से यही कहती थी, ‘‘बेसब्र मत बनो, मैं तुम से प्यार करती हूं और शादी के बाद पूरी तरह तुम्हारी हो जाऊंगी, तब जो जी चाहे करना.’’

शिवम भी उस की भावनाओं को समझ कर खुद को रोक लेता था. लेकिन आज माहौल एकदम बदला हुआ था. शिवम के नग्न भीगे कसरती बदन को देख कर रानी की सोई हुई भावनाएं जाग उठी थीं. जब शिवम ने उस की पतली कमर में हाथ डाल कर जिस तरह उस के होंठों को चूमा तो उस के बदन में चिंगारियां चटखने लगी थीं.

एक फुट के फासले पर खड़े शिवम के हाथ में रानी की कलाई थी और निगाहों में एक सवाल था. वह अपलक रानी के चेहरे को निहार रहा था. जबकि रानी की झुकी हुई आंखें चोरीचोरी उस के बदन को देख रही थीं. उस की नजरों के लक्ष्य को समझ कर शिवम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जब तुम्हारा हूं तो मेरे शरीर का जर्राजर्रा तुम्हारा है इन पर तुम्हारा ही हक है.’’

रानी लजा गई. चेहरे पर हया की लाली फैली तो कांपते होंठों से उस ने कहा, ‘‘तुम बहुत शरारती होते जा रहे हो.’’

‘‘हुस्न का खजाना बांहों में हो तो बड़ेबड़े तपस्वी बेईमान हो जाते हैं.’’ कहते हुए शिवम रानी के एकदम करीब खिसक आया. उस ने अपने दोनों हाथ दीवार पर टिका कर उस ने रानी को अपनी जद में ले लिया. फिर धीरे से अपने होंठ उस के होंठों की तरफ  बढ़ाए.

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