भोजपुरी सिनेमा का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है, लेकिन इस भाषा में बनी बहुत सी फिल्मों ने उत्तर प्रदेश, बिहार समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में अपनी अमिट छाप छोड़ी थी.
उन्हीं में से कुछ फिल्मों की जानकारी यहां दी जा रही है, जिन्होंने अपने समय में कामयाबी के नए कीर्तिमान बनाए थे.
गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो
आज भोजपुरी सिनेमा जिस मुकाम पर?है, उस की बुनियाद साल 1963 में रखी गई थी. कहते हैं कि भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भोजपुरी फिल्म बनाने की पेशकश की थी.
फिल्म भी ऐसी, जिस ने सिनेमाघरों में आते ही धमाल मचा दिया था. पहली ही फिल्म इतनी सुपरहिट हुई थी कि लगा अब भोजपुरी सिनेमा के आने वाले दिन सुनहरे साबित होंगे.
देश के पहले राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने खुद इस फिल्म को देखा था, जिस का नाम?था ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’.
किसी विधवा की दूसरी शादी की कहानी पर बनी इस फिल्म का डायरैक्शन कुंदन कुमार ने किया था, जिस में कुमकुम, असीम कुमार और नजीर हुसैन ने अहम किरदार निभाए थे.
जब यह फिल्म पटना के ‘वीणा’ सिनेमाघर पर लगी थी, तब लोग बैलगाडि़यों पर सवार हो कर इसे देखने दूरदूर से आए थे.
नदिया के पार
हालांकि यह फिल्म बौलीवुड में बनाई गई थी, लेकिन थी भोजपुरी. साल 1982 में आई इस फिल्म को राजश्री प्रोडक्शन के बैनर तले बनाया गया?था. केशव प्रसाद मिश्र के हिंदी उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ पर बनी इस फिल्म में सचिन, साधना सिंह, इंद्र ठाकुर, मिताली, लीला मिश्रा और राम मोहन ने बतौर कलाकार काम किया था.
‘नदिया के पार’ एक खालिस गंवई फिल्म?थी, जिस में पारिवारिक ड्रामा बड़ा गजब का था. बड़े भाई के लिए अपने प्यार की कुरबानी देने वाले छोटे भाई को बड़ा भाई आखिर में?क्या तोहफा देता था, यह देखना बड़ा ही रोचक था.