हम सभी अत्याधुनिक जीवन षैली के आदी होते जा रहे हंै. मगर आज भी हमारे देष में ‘कंडोम’ टैबू बना हुआ है. आज भी लोग दुकानदार से ‘कंडोम’ मांगने में झिझकते हैं. जबकि ‘कंडोम’ कोई बुराई नहीं बल्कि जरुरत है. लोगो के बीच जागरूकता लाने व ‘कंडोम’ को टैबू न मानने की बात करने वाली फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’’ 14 अक्टूबर को सिनेमाघरों में प्रदर्षित होने जा रही है.

इस फिल्म की खासियत यह है कि इसके लेखन व निर्देषन की जिम्मेदारी किसी पुरूष ने नहीं, बल्कि एक महिला ने संभाली है. जिनका नाम है-सारिका संजोत. सारिका संजोत की बतौर लेखक व निर्देषक यह पहली फिल्म है.पहली बार ही ‘कंडोम’ जैसे टैबू माने जाने वाले विषय पर फिल्म बनाकर सारिका संजोत ने एक साहसिक कदम उठाया है. पर वह इसे सामाजिक जिम्मेदारी मानती हैं.

फिल्म ‘कहानी रबरबैंड की’’ में ‘ससुराल सिमर’ फेम अभिनेता मनीष रायसिंघन व ‘बालिका वधू’ फेम अविका गोर के साथ ही ‘स्कैम 92’ फेम प्रतीक गांधी सहित कई अन्य कलाकारों ने अभिनय किया है.

पेष है सारिका संजोत से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंष...

अब तक की आपकी यात्रा क्या रही है? फिल्मों की तरफ मुड़ने की कोई खास वजह रही?

-मैं गैर फिल्मी बैकग्राउंड से हॅूं. बचपन से फिल्में देखने का षौक रहा है. हर परिवार में मां बाप अपने बच्चों को डाक्टर या इंजीनियर बनाना चाहता है,वहीं मेरे पिता मुझे फिल्म निर्देषक बनाना चाहते थे. जबकि उनका खुद का इस क्षेत्र से कोई जुड़ाव नहीं था. वह मुझे ढेर सारे सपने दिखाते थे. मुझे हर तरह की फिल्में दिखाते थे. मैने मूक फिल्म ‘राजा हरिष्चंद्र से लेकर अब तक की लगभग हर भारतीय व कई विदेषी फिल्में देखी हैं.

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