पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट को पहली बार कोई महिला जस्टिस मिली है. पाकिस्तान के ज्यूडिशियल कमीशन ने 6 जनवरी, 2022 को 55 साल की जस्टिस आयशा अहेद मलिक के नाम को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के तौर पर मंजूरी दी है.
चीफ जस्टिस गुलजार अहमद की अध्यक्षता वाले पाकिस्तानी न्यायिक आयोग ने आयशा मलिक की बहाली को बहुमत (5 के मुकाबले 4 वोट) के आधार पर मंजूरी दी है. अब उन के नाम पर संसदीय समिति विचार करेगी, जो माना जाता है कि बमुश्किल ही जेसीपी (ज्यूडिशियल कमीशन औफ पाकिस्तान) के खिलाफ जाती है.
हालांकि पिछले साल 9 सितंबर, 2021 को भी जेसीपी ने आयशा मलिक के नाम पर विचार किया था, पर उस दौरान वोट बराबर होने के चलते उन का नाम रिजैक्ट हो गया था, पर इस बार पकिस्तान की न्यायपालिका में आयशा मलिक की बहाली इतिहास बनाने जा रही है.
क्यों जरूरी हैं आयशा मलिक
पाकिस्तान जैसे रूढि़वादी देश के लिए यह किसी बड़ी बात से कम नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में किसी महिला जस्टिस की बहाली को मंजूरी मिली है. पाकिस्तान वैसे भी दक्षिण एशिया का एकलौता ऐसा देश है, जिस ने कभी किसी महिला को सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस बहाल नहीं किया है.
पाकिस्तान की मानवाधिकार कमीशन रिपोर्ट 2016 के मुताबिक, पाकिस्तान के हाईकोर्ट के जस्टिसों में केवल 5.3 फीसदी ही महिलाएं हैं, जो महिला नुमाइंदगी के तौर पर तादाद में बेहद कम हैं.
हालांकि वहां का संविधान भारत के संविधान के तर्ज पर यह हक तो देता है कि ‘सभी नागरिक कानून के आगे समान हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा’, पर पाकिस्तान में इसलामिक कट्टरपन के चलते महिलाओं की नुमाइंदगी हमेशा से दरकिनार की जाती रही है. ऐसे में यह कदम पाकिस्तान में मर्दऔरत की बराबरी के नजरिए से जरूरी है.
इस से माना जा रहा है कि पाकिस्तान जैसे देश में सब से बड़ी अदालत में महिला जस्टिस के होने से वहां की महिलाओं को बल मिलेगा और उन से जुड़े बड़े मसलों पर प्रगतिशील बदलाव होंगे. ऐसे में पाकिस्तानी महिलाएं आयशा मलिक से खासा उम्मीदें बांध सकती हैं.
कौन हैं आयशा मलिक
आयशा मलिक का जन्म 3 जून, 1966 को हुआ था. उन की शादी हुमायूं एहसान से हुई है, जिन से उन के 3 बच्चे हैं.
जस्टिस आयशा मलिक ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पैरिस और न्यूयौर्क के स्कूलों से हासिल की है. इस के बाद उन्होंने लाहौर में पाकिस्तान कालेज औफ ला से कानून की पढ़ाई की और लंदन के हौर्वर्ड ला स्कूल व मैसाचुसैट्स से मास्टर डिगरी हासिल की.
आयशा मलिक इस से पहले पाकिस्तान के चीफ इलैक्शन कमिश्नर रह चुके और मशहूर जस्टिस (रिटायर्ड) फखरुद्दीन इब्राहिम की सहयोगी थीं और साल 1997 से साल 2001 के बीच यानी 4 साल तक उन के साथ असिस्टैंट के तौर पर काम कर चुकी थीं.
आयशा मलिक साल 2012 में लाहौर हाईकोर्ट में जस्टिस के तौर पर बहाल हुई थीं. इस से पहले वे एक कौर्पोरेट और कमर्शियल ला फर्म में पार्टनर थीं.
हालांकि आयशा मलिक को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के तौर पर चुने जाने को ले कर पाकिस्तान में वकील संघों ने सीनियर वाले मुद्दे को ले कर अपना विरोध दर्ज किया है, पर अगर आयशा मलिक की सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर बहाली नहीं भी होती, तो भी इस बात की पूरी उम्मीद थी कि वे साल 2026 में लाहौर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस होतीं, जो खुद में पाकिस्तान के लिए एक ऐतिहासिक बात होती.
आयशा का शानदार कैरियर
जस्टिस आयशा मलिक ने साल 1997 में अपना कानूनी कैरियर शुरू किया था और साल 2001 तक कराची में कानूनी फर्म में फखरुद्दीन इब्राहिम के साथ काम किया था. वे साल 2012 में लाहौर हाईकोर्ट में जस्टिस बन गई थीं.
बाद में वे साल 2019 में लाहौर में महिला जस्टिसों की हिफाजत के लिए बनाई गई समिति की अध्यक्ष बनी थीं. उसी साल जिला अदालतों में वकीलों ने महिला जस्टिसों के प्रति हिंसक बरताव के खिलाफ एक पैनल बनाया था. इतना ही नहीं, वे द इंटरनैशनल एसोसिएशन औफ विमन जज का हिस्सा भी रही हैं, जो एक गैरसरकारी संगठन है. वहां उन्होंने महिलाओं को समानता और इंसाफ दिलाते हुए उन्हें मजबूत बनाने की पहल की थी.
आयशा मलिक अपने अनुशासन के लिए भी जानी जाती हैं. उन्होंने कई प्रमुख संवैधानिक मुद्दों पर अहम फैसले लिए हैं, जिन में चुनावों में संपत्ति की घोषणा, गन्ना उत्पादकों को भुगतान और पाकिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता को लागू करना शामिल है.
कुछ खास फैसले
आयशा मलिक ने पिछले साल जनवरी महीने में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. उन्होंने घोषणा की थी कि यौन हमले की सर्वाइवर पर टू फिंगर और हाइमन टैस्ट गैरकानूनी है और इसे पाकिस्तान के संविधान के खिलाफ माना जाएगा.
टू फिंगर और हाइमन टैस्ट पर अपने फैसले में उन्होंने कहा था, ‘‘यह एक अपमानजनक प्रथा है, जो सर्वाइवर पर ही संदेह डालती है और आरोपी व यौन हिंसा की घटना पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता है.’’
साल 2016 में उन्होंने पहली बार पंजाब महिला न्यायाधीश सम्मेलन 2016 की शुरुआत की थी और तब से वे इस तरह के 3 सम्मेलनों की अगुआई कर चुकी हैं.
पाकिस्तान में साल 2022 में आयशा मलिक का सुप्रीम कोर्ट में बतौर पहली महिला जस्टिस चुना जाना स्वागत की बात तो है, पर चिंता वाली बात यह भी है कि वहां महिलाओं को अपनी पहली मौजूदगी दर्ज कराने में आखिर इतने साल कैसे लग गए?