त्रिया चरित्र भाग-2

यहां पढ़िए पहला भाग- त्रिया चरित्र भाग-1

अब आगे….

आशा के पति रतनलाल ने जब उस में आए इस बदलाव को महसूस किया तो उस का माथा ठनका. रतनलाल को लगा कि हो न हो, आशा ने घर से बाहर अपना कोई यार पाल लिया है.

एक रात को वह आशा से बोला, ‘‘आशा, आजकल तू किस दुनिया में रह रही है?’’

पति रतनलाल के इस सवाल पर आशा चौंकी, पर जल्द ही अपनेआप

को संभालते हुए वह बोली, ‘‘क्या मतलब…?’’

‘‘मैं देख रहा हूं कि आजकल तेरे तो रंगढंग ही बदल गए हैं. तू यह बात बिलकुल भूल गई है कि घर में तेरा एक पति भी है. रात को जब मैं तुझे हाथ लगाता हूं तो तू मेरा हाथ झटक देती है. कहीं तू ने घर के बाहर अपना कोई यार तो नहीं पाल लिया है?’’

मन ही मन डरती आशा तेज आवाज में बोली, ‘‘तुम्हें अपनी पत्नी से ऐसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती? यह सीधासीधा मेरे चरित्र पर लांछन है.’’

‘‘अच्छा होगा, यह लांछन ही हो. मगर हकीकत में बदला तो याद रख. मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा,’’ रतनलाल उसे घूरता हुआ बोला.

पति रतनलाल के शक को देखते हुए आशा कुछ दिनों तक रमेश यादव से मिलने में सावधानी बरतती रही और जब उसे पक्का यकीन हो गया कि रतनलाल उस की ओर से बेपरवाह हो गया है तो फिर से खुल कर उस से मिलने लगी.

पर रतनलाल उस की ओर से लापरवाह नहीं हुआ था, बल्कि चोरीछिपे उस की हरकतों पर नजर रख रहा था.

कुछ ही दिन के बाद रतनलाल को मालूम हो गया कि आशा ने रमेश यादव नामक के एक अपराधी से यारी गांठ ली है और उस के साथ मिल कर रंगरलियां मनाती है.

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सचाई जानते ही उस का खून खौल उठा. एक रात जब वह घर लौटी, तो रतनलाल बोला, ‘‘कहां से आ रही है तू?’’

‘‘पुलिस स्टेशन से.’’

‘‘पता है, इस समय रात के 11 बज रहे हैं?’’ रतनलाल उसे घूरता हुआ बोला, ‘‘मैं ने पुलिस स्टेशन फोन किया था. मालूम हुआ कि तू वहां से शाम 7 बजे ही निकल गई थी.’’

‘‘रास्ते में एक सहेली मिल गई थी. उसी के साथ उस के घर चली गई थी,’’ आशा उस से नजरें चुराते हुए बोली.

‘‘और तुम्हारी उस सहेली का नाम रमेश यादव है?’’ रतनलाल गुस्से से चिल्लाया, ‘‘यह कहते हुए तेरी रूह कांपती है कि तू अपने इसी यार के साथ रंगरलियां मना कर वापस लौट रही है.’’

आशा बौखलाई हुई सी उसे देखती रह गई.

‘‘बोलती क्यों नहीं?’’

‘‘यह सरासर झूठ है,’’ आशा कांपती हुई आवाज में बोली.

बदले में रतनलाल उस की ओर लपका, फिर उस के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ रसीद करता हुआ बोला, ‘‘तू क्या समझती है, मैं अंधा और

बहरा हूं. मुझे कुछ भी दिखाई या सुनाई नहीं देता?

‘‘जानती है, जिस रमेश यादव की तू आजकल प्यारी बनी हुई है, उस के फार्महाउस का गार्ड मेरा दोस्त है. कल वह मजे लेले कर कह रहा था कि उस के साहब ने आजकल एक रखैल पाल रखी है जिस का नाम आशा है और वह घंटों उस की बांहों में झूलती वासना का नंगा खेल खेलती है.’’

आशा के मुंह से बोल नहीं फूटे. दूसरी ओर गुस्से से पागल हुआ पति रतनलाल उसे पीटता चला गया.

रतनलाल उसे पीट कर घर से निकल गया, पर आशा घंटों बेइज्जती और बदले की आग में जलतीसिसकती रही.

अगली मुलाकात में रमेश यादव से जब आशा ने ये सारी बातें कहीं, तो वह गुस्से से उबलता हुआ बोला, ‘‘उस की यह हिम्मत कि वह रमेश यादव की यार पर हाथ उठाए, पर तुम फिक्र न करो. मैं जल्द ही इस का इलाज कर दूंगा. बस, तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’

आशा ने उसे इस की सहमति दे दी.

आशा के घर के दरवाजे पर एक खास अंदाज में थाप पड़ी. इसे सुनते ही बिछावन पर आंखें मूंदे लेटी आशा ने अपनी आंखें खोल दीं. वह चुपके से बिछावन से उतरी, फिर बिछावन पर गहरी नींद में सोए रतनलाल पर एक गहरी नजर डालने के बाद दरवाजे की ओर बढ़ गई. उस ने जब दरवाजा खोला तो रमेश यादव जल्दी से अंदर आता हुआ बोला, ‘‘कहां है?’’

‘‘अपने कमरे में गहरी नींद में सोया पड़ा है.’’

‘‘चलो,’’ रमेश यादव बोला.

आशा ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया, फिर कमरे में आ गई. कमरे में बिछी चारपाई पर पति रतनलाल दीनदुनिया से बेखबर सो रहा था.

बिछावन के पास पहुंच कर रमेश यादव ने आंखों ही आंखों में आशा को कुछ इशारा किया, फिर चुपके से वह बिछावन पर चढ़ गया. उस ने रतनलाल के बगल में पड़ा तकिया उठा कर उस के मुंह पर रखा, फिर उस के सीने पर सवार हो कर अपनी हथेलियों का पूरा वजन तकिए पर डाल दिया.

दबाव पड़ते ही रतनलाल ने अपनी आंखें खोल दीं. ऐसे में जब उस की नजर अपने सीने पर सवार रमेश यादव पर पड़ी तो हैरानी से उस की आंखें फटती चली गईं. उसे समझते देर न लगी कि रमेश यादव उस का गला घोंटना चाहता है. यह समझते ही उस की आंखों में खौफ के भाव उभरते चले गए और वह उस के चंगुल से छूटने के लिए अपने हाथपैर पटकने लगा.

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उस के ऐसा करते ही रमेश यादव बिछावन के पास ही खड़ी आशा से बोला, ‘‘इस के पैर पकड़ो आशा.’’

पर ऐसा लगा, जैसे आशा ने उस की बात सुनी ही न हो. वह मूर्ति बनी कभी रतनलाल के सीने पर सवार, उस का गला घोंटते रमेश यादव को देख रही थी, तो कभी हाथपैर पटकते रतनलाल को.

सच तो यह था कि इस समय उस के दिलोदिमाग में एक भयानक लड़ाई चल रही थी. एक औरत और एक पत्नी में धीरेधीरे पत्नी का पलड़ा भारी पड़ता चला गया और आशा सोचने लगी कि चाहे रतनलाल कैसा भी है, पर है तो उस का पति ही. उस का और उस के बच्चे का भविष्य उसी के साथ सुरक्षित था.

दूसरी ओर रमेश यादव एक अपराधी था और इस समय भी एक अपराध करने जा रहा था. वह उसे भी इस अपराध में शामिल करना चाहता था.

पुलिस में होने के चलते आशा को यह बात अच्छी तरह से मालूम थी कि अगर उस का यह अपराध उजागर हो जाता तो उस के साथ उस की भी जिंदगी तबाह हो जाती. पर आशा ऐसा हरगिज नहीं चाहती थी, तो फिर…?

जवाब में आशा ने अपनी नजरें कमरे में चारों तरफ दौड़ाईं. उसे कमरे में एक ओर मोटा डंडा पड़ा दिखाई दिया. उस ने डंडा उठाया, फिर रतनलाल का गला घोंटते रमेश यादव के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा.

रमेश यादव के मुंह से एक दर्दनाक चीख उभरी. रतनलाल का गला छोड़ वह अपना सिर पकड़ कर वहीं जमीन पर गिर पड़ा. उस का सिर फट गया था और वहां से खून का फव्वारा फूट पड़ा था. कुछ देर तक वह तड़पता रहा, फिर वह मर गया.

एक घंटे बाद आशा के घर में पुलिस वालों की भीड़ लगी हुई थी और उस ने इंस्पैक्टर को यह बयान दिया था कि रमेश यादव उस पर बुरी नजर रखता था जिस का विरोध उस का पति रतनलाल करता था. रमेश यादव उस के घर में घुस आया और उस ने उस के पति का गला घोंट कर मारना चाहा. अपने पति की जान बचाने के लिए उसे रमेश यादव को मारना पड़ा.

जब आशा अपना यह बयान दे रही थी तो रतनलाल हैरत भरी नजरों से उसे देख रहा था.

आशा के इस बरताव ने उसे सकते में ला दिया था और वह यह सोचने पर मजबूर हो गया था कि लोग यह गलत नहीं कहते, ‘औरत का चरित्र इनसान तो क्या कोई नहीं समझ सकता.’

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