गहरी पैठ

कोरोना के कहर में तबलीगी जमात की नासमझी से जो समस्याएं बढ़ी हैं, उन्होंने केंद्र सरकार को फिर से हिंदू मुसलिम करने का कट्टर कार्ड थमा दिया है. देखा जाए तो देश की जनता को आराम से जीने का मौका देने का वादा दे कर जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपना एक और दांव, दंगे चला कर अब घरघर में दहशत का माहौल खड़ा कर दिया है. किसी को भी देश का गद्दार कहने का हक खुद ब खुद लेने के बाद अब उन्होंने जगहजगह गोली मारो गद्दारों को नारा गुंजाना शुरू कर दिया है. बिना सुबूत, बिना गवाह, बिना अदालत, बिना दलील, बिना वकील के किसी को भी गद्दार कह कर उसे मार डालने का हक बड़ा खतरनाक है.

न सिर्फ मुसलमानों को डराया जा सकता है, इस नारे से हर उस को डराया जा सकता है, जिस ने अपनी अक्ल लगा कर भगवा भीड़ की मांग को पूरी करने से इनकार कर दिया हो.

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आज देश का दलित, किसान, मजदूर, बेरोजगार युवा, बलात्कारों से परेशान लड़कियां, छोटे व्यापारी सरकारी फैसलों से परेशान हैं. दलितों के घोड़ी पर चढ़ कर शादी करने पर मारपीट ही नहीं हत्या कर दी जाती है और जिस ने भी उस के खिलाफ आवाज उठाई, उसे गद्दार कह कर गोली मारने का हक ले लिया गया है. अगर किसान कर्ज माफ करने के लिए सरकार के खिलाफ मोरचा खोलें तो उन्हें गद्दार कहा जा सकता है. अगर व्यापारी नोटबंदी, जीएसटी और बैंकों के फेल होने पर होने वाले नुकसान की बात करें तो उन्हें गद्दार कहा जा सकता है. नागरिकता कानून ?की फुजूल की बात करने वाले को गद्दार कहने का हक है. छोटीबड़ी अदालतों में वकीलों के झुंड मौजूद हैं जो अपने हकों को मांगने वालों को गद्दार कह कर जज के सामने तक नहीं जाने दे रहे. जजों को गद्दार कह कर उन का रातोंरात तबादला कर दिया जा रहा है.

सारे देश में सरकार डिटैंशन सैंटर बनवा रही है जो आधी जेल की तरह हैं जहां नाममात्र का खाना मिलेगा, नाममात्र के कपड़े मिलेंगे, पर बरसों रहना पड़ सकता है. उन को गुलाम बना कर उन से काम कराया जा सकता है. लड़कियों को बदन बेचने पर मजबूर किया जा सकता है. यह हिटलर ने जरमनी में किया था. स्टालिन ने रूस में किया था. माओ ने चीन में किया था. कंबोडिया में पोलपौट ने किया था.

गद्दार कह कर कैसे सिर फोड़े जा सकते हैं. घरों को जला कर सजा दी जा सकती है. इस का नमूना दिल्ली में दिखा दिया गया. जिन्होंने किया वे आजाद घूम रहे हैं. जो शांति के लिए जिम्मेदार हैं, वे भड़काऊ भाषण देने में लगे हैं.

इस सब से मुसलमानों को तो लूटा जा ही रहा है, दलित और पिछड़े भी लपेटे में आ गए हैं. आज सरकारी नौकरियों में केवल ऊंचों को पद देने का हक एक बार फिर मिल गया है, क्योंकि या तो सरकारी काम ठेके पर दे दिए गए हैं या बंद कर दिए गए हैं. दहशत के माहौल की वजह से कोई बोल नहीं पा रहा. कन्हैया कुमार जो बिहार में भारी भीड़ जमा कर रहा था को अब दिल्ली की अदालतों में बुला कर परेशान करने की साजिश की जा रही है. चंद्रशेखर आजाद को बारबार लंबी जेल में भेज दिया जाता है. हार्दिक पटेल का मुंह बंद कर दिया गया है.

देश को अमन चाहिए, क्योंकि अगर पेट में आधा खाना ही हो, कपड़े फटे हुए हों तो भी अगर चैन हो तो जिंदगी कट जाती है. अब यह चैन भी गद्दार के नारे के नीचे दब रहा है.

पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से जूझ रही है. लौकडाउन के बाद जरूरी कीमती सामान से लदे ट्रक जहां थे वहीं खड़े हैं. पहले भी हालात ट्रक ड्राइवरों के पक्ष में कहां थे. देखें तो देश के ट्रक ड्राइवरों की जिंदगी वैसे ही उबाऊ और खानाबदोशी होती है, उस पर हर नाके पर, हर सड़क पर बैठे खूंख्वारों से निबटना एक आफत होती है. सेव लाइफ फाउंडेशन का अंदाजा है कि ट्रक ड्राइवर हर साल तकरीबन 50,000 करोड़ रुपए रिश्वत में देते हैं. रिश्वत ट्रैफिक पुलिस वाले, टैक्स वाले, नाके वाले, चुंगी वाले, पोल्यूशन वाले तो लेते ही हैं, अब धार्मिक धंधे करने वाले भी जम कर लेने लगे हैं. धार्मिक धंधे वाले ट्रकों और टैक्सियों को रोक कर ड्राइवरों से उगाही करते हैं.

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कोई कह सकता है कि यह रिश्वत तो मालिक की जेब से जाती होगी, पर यह गलत है. बहुत से ट्रकों को लगभग ठेके पर दे दिया जाता है कि ट्रक पहुंचाओ, रास्ते में जो हो, भुगतो और एकमुश्त पैसा ले लो. ड्राइवर को ऐसे में अपने मुनाफे में कटौती नजर आती है. वह कानूनी, गैरकानूनी दोनों रोकटोक पर रिश्वत देने में हिचकिचाता है और अकसर झगड़ा हो जाता है और मारपीट तक हो जाती है तो नुकसान ट्रक ड्राइवर का ही होता है.

ड्राइवरों की जिंदगी वैसे ही बड़ी दुखद है. उन्हें 12 घंटे ट्रक चलाना होता है, इसलिए अकसर वे शराब और दवाओं का नशा करते हैं. देश की सड़कें बेहद खराब हैं जो ट्रक चलाने में ड्राइवर की हड्डीपसली दुखा देती हैं. आमतौर पर सड़कों पर लाइट नहीं होती. अंधेरे में चलाना मुश्किल होता है. भारत में अब तक सुरक्षित ट्रक नहीं बनने शुरू हुए हैं. ड्राइवरों के केबिन एयरकंडीशंड नहीं होते, उन ट्रकों के भी नहीं जिन में खाने के सामान या दवाओं के लिए रेफ्रीजरेटर लगे होते हैं, इसलिए बेहद गरमीसर्दी का मुकाबला करना पड़ता है. बहुत से ड्राइवरों को बदलते साथियों के साथ चलना होता है.

हमारे यहां ड्राइवरों को रास्ते में सोने के लिए ढाबों पर पड़ी चारपाइयां ही होती हैं, जिन पर न गद्दे होते हैं, न पंखे तक.

घरों से दूर रहने की वजह से ड्राइवर राह चलती बाजारू औरतों को पकड़ते हैं, पर वे लूटने की फिराक में रहती हैं. उन के गैंग अलग बने होते हैं जो परेशान करते हैं. ड्राइवरों को बीवियों की चिंता भी रहती है कि उन के पीछे वे औरों के साथ तो नहीं आंखें लड़ा रहीं.

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यही वजह है कि आज 1000 ट्रकों पर 400-500 ड्राइवर ही मिल रहे हैं. ट्रांसपोर्ट उद्योग को ड्राइवरों की कमी की वजह से भारी नुकसान होने लगा है. एक तरफ बेरोजगारी है, पर दूसरी तरफ ट्रेनिंग न मिलने की वजह से ड्राइवरों की कमी है. ट्रेनिंग तो आज सिर्फ जय श्रीराम कह कर मंदिर के धंधे कैसे चलाए जाएं की दी जा रही है.

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