दर्शन सोलंकी की मौत : क्यों करते हैं दलित छात्र खुदकुशी

वह इतना मासूम और खूबसूरत था कि जो देखता वह मुंह से कहे न कहे, लेकिन एक बार मन ही मन सोचता जरूर था कि इस लड़के को तो मौडलिंग या फिल्मों में होना चाहिए था. सफेद रंगत, घने बाल, मजबूत कदकाठी वाला 18 साल का वह लड़का पिछले साल दीवाली के दिनों में अहमदाबाद से मुंबई गया था तो उस की आंखों में ढेर सारे सपने थे. मसलन, अब से तकरीबन 4-5 साल बाद जब नौकरी लग जाएगी तो घर के खर्चों में हाथ बंटाएगा, अच्छेअच्छे कपडे पहनेगा, बहन को उस की पसंद के चीजें खिलाएगा और मम्मी को उन की पसंद के खूब सारे कपड़े खरीद कर देगा.

ये छोटेछोटे सपने देखने का हक उसे था, क्योंकि हाड़तोड़ मेहनत और पढ़ाई में दिनरात एक कर देने के बाद वह आईआईटी मुंबई तक पहुंचा था और उसे अपनी मनचाही ब्रांच कैमिकल इंजीनयरिंग भी मिल गई थी. पर दाखिले के बाद जब दर्शन सोलंकी नाम का यह लड़का होस्टल पहुंचा, तो कुछ दिनों बाद ही उस के सारे सपने एकएक कर के टूटने लगे. इसलिए नहीं कि उस में कोई कमी थी, बल्कि इसलिए कि उस के साथ वालों में एक भयंकर कमी थी, जो पुश्तों से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है. वे अपने ऊंची जाति का होने पर गुरूर करते थे. यह दर्शन के लिए एतराज की बात नहीं थी, बल्कि परेशानी और टैंशन की बात यह थी कि वे उस पर उस के एससी होने के चलते ताने मारने लगे थे.

धीरेधीरे सहपाठी दर्शन सोलंकी से और ज्यादा कन्नी काटने लगे तो वह और परेशान रहने लगा और यह बेहद कुदरती बात भी थी. अब सोचने में उसे अपने पिता रमेश भाई सोलंकी नहीं दिखते थे, जो पेशे से प्लंबर हो कर और सारा दिन लोगों के रसोईघर और लैट्रिनबाथरूम में पाइपलाइन ठीक करते, माथे पर आया पसीना पोंछते रहते थे. अब खयालों में भी उसे अपने वे साथ पढ़ने वाले ही दिखते थे जो उस पर फब्तियां कस रहे होते थे.

दर्शन सोलंकी को जिंदगी के आखिरी लमहों तक यह समझ नहीं आया होगा कि आखिर एससी होने पर उस की अपनी क्या गलती या गुनाह था और इन ‘दोस्तों’ को उसे तंग करने में कौन सा सुकून मिलता था? इस से उन्हें हासिल क्या होता था? हद तो तब हो गई जब उस के रूम पार्टनर ने भी बेरुखी दिखानी शुरू कर दी.

दुनियादारी के बुनियादी उसूलों से नावाकिफ दर्शन सोलंकी इतना छोटा था कि वह अभी अकेले अहमदाबाद से मुंबई नहीं जा सकता था. 10 फरवरी, 2023 को जब सैमेस्टर के इम्तिहान खत्म हुए, तो वह 14 फरवरी का बेसब्री से इंतजार करने लगा, क्योंकि इस दिन उस के पापा उसे लेने आने वाले थे. 12 फरवरी को दिन में कोई 12 बज कर, 20 मिनट पर उस ने पापा से वीडियो काल से बात भी की थी, जिस में उस ने उन्हें बताया था कि इम्तिहान अच्छा हुआ और आज वह दोस्तों के साथ जुहू, चौपाटी और गेटवे औफ इंडिया घूमने जाएगा.

खुदकुशी या कत्ल

पापा से बात करने के एक घंटे बाद ही दर्शन ने खुदकुशी कर ली. होस्टल की 7वीं मंजिल पर जा कर उस ने छलांग लगा दी और नीचे गिरते ही अपने सपनों के साथ उस ने भी दम तोड़ दिया. इस तरह एक और एकलव्य की कहानी खत्म हुई, पर पीछे ढेरों सवाल छोड़ गई जो कई शक पैदा करती है. पहला तो यही कि उस ने मरने के पहले सुसाइड नोट क्यों नहीं छोड़ा जैसा कि आमतौर पर खुदकुशी करने वाले करते हैं. तो क्या दर्शन की हत्या हुई थी जैसा कि उस के घर वाले आरोप लगा रहे हैं.

और अगर यह खुदखुशी थी तो उस की कोई वजह भी होना चाहिए जो कि फौरीतौर पर नहीं दिखी. दिखती भी कैसे, क्योंकि मामला कानूनी लफ्जों में कहें तो सरासर जातिगत प्रताड़ना का था. इस बात की चर्चा दर्शन ने घर वालों से भी की थी और होस्टल के अपने मैंटर से शिकायत भी की थी, लेकिन उम्मीद के मुताबिक कोई कार्यवाही नहीं हुई.

बेटे की मौत की खबर भी रमेश भाई सोलंकी को किस्तों में दी गई. पहले उन्हें फोन पर यह बताया गया कि आप के बेटे का ऐक्सीडैंट हो गया है. असल बात तीसरी बार फोन पर ही बताई गई कि दर्शन 7वीं मंजिल से गिर गया है जिस से उस के बचने की उम्मीद न के बराबर है. रमेश भाई सोलंकी, उन की पत्नी और बेटी पर क्या गुजरी होगी, इस बात का अंदाजा लगाना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं है. ये लोग भागेभागे मुंबई गए तो वहां जवान बेटे की लाश उन का इंतजार कर रही थी. दर्शन की लाश का पोस्टमार्टम हुआ जिस की रिपोर्ट में बताया गया कि मौत चोट लग जाने की वजह से हुई.

हैरानी की बात तो यह थी कि इस पोस्टमार्टम के लिए घर वालों का इंतजार करना तक मुनासिब नहीं समझा गया. इस पर रमेश भाई सोलंकी ने रोते हुए कहा, “मेरे पहुंचने से पहले ही पोस्टमार्टम कर दिया गया. मुझे नहीं लगता कि यह खुदकुशी का मामला है. अगर आप सातवी मंजिल से गिरेंगे, तो आप को कई चोटें लगेंगी, लेकिन पोस्टमार्टम के बाद जब मैं ने अपने बेटे का चेहरा देखा तो मुझे चोट के निशान नहीं दिखे. यह कैसे मुमकिन है? पोस्टमार्टम बेहद जल्दबाजी में मेरी इजाजत के बिना किया गया और मुझे उस का चेहरा भर देखने दिया गया.”

रमेश भाई सोलंकी की नजर में यह साजिशन की गई हत्या है और इस में काफीकुछ छिपाया और ढका जा रहा है.

दर्शन सोलंकी की मां तरलिका बेन और बहन जाह्नवी ने भी यही बातें दोहराते यह भी कहा कि छोटी जाति की वजह के चलते यह हादसा हुआ. दरअसल, जैसे ही दर्शन के सहपाठियों को यह पता चला कि वह शैड्यूल कास्ट से आता है, तो सभी ने उस से दूरी बनाना शुरू कर दी और ये ताने मारने भी शुरू कर दिए कि तुम तो फ्री वाले हो, हमें तो फीस भरना पड़ती है. इन तानों से दर्शन परेशान हो उठता था लेकिन बकौल रमेश भाई सोलंकी फोन पर बात करते हुए वह नौर्मल नजर आ रहा था और अहमदाबाद आने को ले कर खुश था.

फिर थोड़ी ही देर में ऐसा क्या हो गया जो उसे खुदकुशी करने पर मजबूर होना पड़ा? इस सवाल का जवाब अब शायद ही कभी मिले, क्योंकि हादसे के बाद से ही सारे रिकौर्ड आईआईटी मुंबई के मैनेजमेंट और पुलिस वालों की मुट्ठी में थे. इसी साल मकर संक्रांति पर जब वह घर गया था तो घर वालों से इस बात की चर्चा की थी कि छोटी जाति का होने के चलते कैंपस में सभी उसे नापसंद करने लगे हैं.

पिता से बात करने के बाद कौनकौन दर्शन सोलंकी से मिला था, यह बताने को कोई तैयार नहीं और कोई नहीं भी भी मिला था तो एकाएक ही उस ने खुदकुशी क्यों कर ली? अगर जातिगत प्रताड़ना के चलते उसे दिमागी तौर पर परेशान किया जा रहा था जैसा कि उस के घर वाले दावा कर रहे हैं और नाम न छापने की शर्त पर कुछ छात्रों ने भी कुछ मीडिया वालों को बताया तो उस पर गौर क्यों नहीं किया गया?

कमेटी की करतूत

हल्ला मचा और आईआईटी मुंबई पर उंगली उठने लगी तो मैनेजमैंट ने दूसरे दिन ही 12 लागों की जांच कमेटी बना दी. असल में एपीपीएसएस यानी अंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्किल ने दर्शन सोलंकी की मौत पर सवाल भी उठाए थे और विरोध भी किया था. इस संस्था का काम खासतौर से दलित छात्रों के हितों की निगरानी करना है. जो कमेटी बनाई गई उस में सारे लोग आईआईटी मुंबई के ही थे और दलित 10 फीसदी भी नहीं थे, लिहाजा उन्होंने उम्मीद के मुताबिक संस्थान की साख और इज्जत पर तवज्जुह देते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा कि दर्शन सोलंकी के साथ कोई जातिगत टीकाटिप्पणी या भेदभाव कर रहा था, बल्कि वह अपनी पढ़ाई को ले कर तनाव में था.

कमेटी ने कुछ छात्रो के हवाले से यह भी कहा कि दर्शन सोलंकी कंप्यूटर और इंगलिश सब्जैक्ट में कमजोर था और इस बाबत गिल्ट में रहता था, इसलिए उस ने खुदकुशी की होगी. वह अपने दोस्तों से यह भी कहता रहता था कि वह मुंबई छोड़ कर अहमदाबाद के ही किसी कालेज में पढ़ेगा.

साफ दिख रहा है कि दर्शन सोलंकी की मौत को तो खुदकुशी माना गया, लेकिन उस की वजह पलट दी गई . दर्शन को एडमिशन लिए अभी साढ़े 3 महीने ही हुए थे और उस ने एक बार ही इम्तिहान दिया था. इसी की बिना पर उसे नकारा मानना उस के साथ मौत के बाद भी ज्यादती है. आमतौर पर टैक्निकल कालेजों में पहले साल के छात्रों के साथ यह दिक्कत आम है. वे किस जाति के हैं इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. दूसरे इस कमेटी ने कोई रिजल्ट उजागर नहीं किया. देखा जाए तो जो क्लीन चिट देने के मकसद से कमेटी बनाई गई थी, वह फर्ज उस ने निभा दिया नहीं तो सवाल तो ये भी जवाब मांग रहे हैं :

-कुछ लोगों, जिन से दर्शन सोलंकी की जानपहचान महज 3 महीने पुरानी थी, की यह बात सच मान ली गई कि दर्शन पढ़ाई में कमजोर था. वैसे ही यह क्यों नहीं माना गया कि उस के मांबाप और बहन भी झूठ नहीं बोल रहे?

-दर्शन पहली बार घर छोड़ कर बाहर गया था और नए व कमउम्र छात्र अपने साथ हो रही ज्यादतियों की शिकायत करने से डरते हैं. साथ के छात्रों और सीनियर्स की दहशत उन के सिर पर सवार रहती है, जो रैगिंग ले कर उन का हाल बुरा कर देते हैं, फिर यह तो जातिगत रैगिंग थी. दर्शन को भी इस बात का डर क्यों नहीं रहा होगा कि इस बात ने ज्यादा तूल पकड़ा तो कहीं घर वाले ही वापस न बुला लें?

-कमेटी ने इस हकीकत पर गौर क्यों नहीं किया कि दर्शन हमेशा अव्वल दर्जे में पास हुआ है और आईआईटी तक पहुंचने में भी उस ने कभी कोई कोचिंग नहीं ली. यह उस की काबीलियत नहीं तो और क्या थी?

-होस्टल में रैगिंग के नाम पर जूनियरों से मारपीट कितनी आम और खतरनाक होती है, यह बात किसी सुबूत की मुहताज नहीं, फिर इतने बड़े और नामी कालेज के होस्टल में  सीसीटीवी क्यों नहीं थे और अगर थे तो उन के फुटेज क्यों जांच रिपोर्ट में शामिल नहीं किए गए?

-दर्शन सोलंकी की लाश सब से पहले जिस ने भी देखी होगी, वह क्यों सुसाइड नोट गायब नहीं कर सकता?

-क्या वाकई ऐसा होना मुमकिन है कि कोई 7वीं मंजिल से गिरे और उसे उतनी हलकी चोट आए जितनी कि दर्शन सोलंकी को आई थी?

बदनाम है आईआईटी मुंबई

साफ दिख रहा है कि दाल में बहुतकुछ काला है और जांच किसी बड़ी एजेंसी से कराई जानी जरूरी है, जिस से सच का पता चल सके. कालेज लैवल की जांच कमेटियों के ऐसे गंभीर मामलों में कोई माने नहीं होते, जिन का काम ही सच पर परदा डालने का होता है. उन पर भारी दवाव भी रहता है. लेकिन इस से हट कर भी मुद्दे की बात कैंपसों का माहौल है, जिस में सरेआम कोटे वाले छात्रों का हर तरह से शोषण होता है. उन्हें ऊंची जाति के छात्र तो दूर की बात है, पढ़ाने वाले तक नफरत से देखते और बुरा बरताव करते हैं. इस बात को साबित करना टेढ़ी खीर है, क्योंकि सभी बड़े कालेजों और तकनीकी संस्थानों में ऊंची जाति वालों का दबदबा रहता है.

आईआईटी मुंबई तो इस के लिए कुख्यात है. इसी कैंपस में साल 2014 में चौथे साल की पढ़ाई कर रहे अनिकेत अम्भोरे नाम के दलित छात्र ने भी होस्टल की छठी मंजिल से कूद कर  खुदकुशी कर ली थी. अनिकेत के घर वालों ने भी आरोप लगाया था कि उस ने जातिगत भेदभाव से तंग आ कर खुदकुशी की थी. तब उस की मौत के लिए बनी जांच कमेटी ने यह माना था कि अनिकेत को कोटे की वजह से एडमिशन मिला था, इसलिए उसे कई बार गिल्ट फील करवाया जाता था. लेकिन इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.

रोशन की मौत के ठीक एक साल पहले फरवरी, 2022 में इसी संस्थान की एससीएसटी स्टूडैंट सैल ने एक सर्वे में पाया था कि यहां पढ़ने वाले आरक्षित कोटे के 388 छात्रों में से एकतिहाई का यह कहना है कि वे कैंपस में अपनी जाति की चर्चा खुलेतौर पर करने में हिचकते हैं यानी सहज नहीं महसूस करते. 133 छात्रों ने माना कि वे अपनी जाति की चर्चा सिर्फ करीबी यानी अपनी ही कैटेगिरी वाले दोस्तों से ही कर पाते हैं. केवल 27 छात्रों ने माना कि वे थोड़ी ज्यादा चर्चा जाति की कर लेते हैं.

यह संस्थान जातिगत लिहाज से एससीएसटी छात्रों के लिए कितना असुरक्षित और असंवेदनशील है, इस रिपोर्ट, जिस में और भी अहम व चौंका देने वाली बातें हैं, को आईआईटी मुंबई प्रशासन एक साल बाद भी सार्वजनिक नहीं कर रहा है, तो साफ दिख रहा है कि उस की दाढ़ी में तिनका हैं है, बल्कि यह कहना ज्यादा सटीक है कि उस के तिनकों में दाढ़ी है.

एपीपीएसएस के एक ट्वीट पर गौर करें, तो हमें यह समझना चाहिए कि यह कोई निजी मामला नहीं है, बल्कि एक संस्थागत हत्या है. हमारी शिकायतों के बावजूद संस्थान ने दलित बहुजन आदिवासी छात्रों के लिए समावेशी और सुरक्षित माहौल बनाने की परवाह नहीं की.

हकीकत यह भी है कि पूरे देश के बड़े टैक्निकल इंस्टीट्यूट में 95 फीसदी पढ़ाने वाले ऊंची जाति के हैं. कुछ साल पहले कांग्रेसी सांसद शाशि थरूर ने संसद में आंकड़े मांगे थे तो यह बात सामने आई थी कि रिजर्वेशन वाले आधे प्रोफैसरों की सीट खाली रह जाती हैं. एक बड़ी दिक्कत जिस पर जागरूक और बुद्धिजीवी लोगों ने बोलना और पूछना बंद कर दिया वह यह है कि आईआईटी में नियुक्ति का तरीका ही घालमेल वाला है और नियुक्तियों के तरीके का कोई नियमधरम ही नहीं है. इसे कभी सार्वजनिक भी नहीं किया जाता. दो टूक कहा जाए तो उन में आरक्षण नियमों और रोस्टर का पालन ही नहीं होता.

एक आंकड़े के मुताबिक देश की सभी आईआईटी में साल 2019 में महज 2.85 फीसदी प्रोफैसर ही कोटे के थे.

बात मुंबई आईआईटी की ही करें तो पिछले 20 सालों में शैड्यूल कास्ट का एक भी प्रोफैसर भरती नहीं किया गया. वहां तकरीबन 4 प्रोफैसर ही इस कोटे से हैं. ऐसी हालत में माहौल से घबराए दर्शन सोलंकी की खुदकुशी कतई हैरानी की बात नहीं, क्योंकि वहां कोटे वाले छात्रों की मदद के लिए कोई है ही नहीं. माहौल तो यहां यह भी है कि 80 फीसदी ऊंची जाति के छात्रों ने एक सर्वे में माना था कि उन्होंने जातिगत आरक्षण पर चुटकुले और मीम्स न केवल बनाए, बल्कि उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर भी किया.

भयावह हैं आंकड़े

नामी और बड़ी संस्थाओं में दलित छात्रों की बदहाली पर चिंता जताते हुए देश के चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने ‘द नैशनल अकेडमी औफ लीगल स्टडीज ऐंड रिसर्च’ के एक प्रोग्राम में दर्शन सोलंकी के घर वालों से हमदर्दी जताते हुए कहा था कि हाशिए के समुदायों के साथ ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं..ये संख्याएं केवल आंकड़े नहीं हैं. मुझे लगता है कि भेदभाव का मुद्दा शिक्षण संस्थाओं में सहानुभूति की कमी से सीधे जुड़ा हुआ है. यह कभीकभी सदियों के संघर्ष की कहानी है.

असल में इस चिंता की वजह केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का लोकसभा में यह मानना भी है कि साल 2014 से ले कर साल 2021 के बीच देशभर के नामी संस्थानों में 122 छात्रों की मौत खुदकुशी करने से हुई है जिन में से 65 छात्र आरक्षित कोटे से थे. दर्शन सोलंकी से पहले भील समुदाय की ही  पायल तड़वी और उस से भी पहले रोहित वेमुला की मौत चर्चा में रही थी और इन पर खूब हल्ला भी मचा था.

पायल तड़वी मुंबई के टीएन टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थीं और उन्होंने भी 22 मई, 2019 को अपनी 3 सीनियर्स की लगातार जातिगत प्रताड़ना के चलते होस्टल में खुदकुशी कर ली थी.

इस से पहले दलित समुदाय के ही हैदराबाद सैंट्रल यूनिवर्सिटी के 26 साला रोहित वेमुला ने भी 16 जनवरी, 2016 को होस्टल में ही फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली थी. पीएचडी कर रहे रोहित दलित छात्रों के भले के लिए काम करने वाली अंबेडकर स्टूडैंट एसोसिएशन के नेता थे. इस संस्था ने मुंबई बम धमाकों के आरोपी याकूब मेनन की फांसी का विरोध किया था जिस के चलते हिंदूवादी छात्र संगठन एबीवीपी के सदस्यों से उन का झगड़ा भी हुआ था.

यह विवाद हाईकोर्ट तक भी पहुंचा था. जैसे ही मामला सामने आया था तो हैदराबाद के सांसद और केंद्रीय मंत्री बंगारू दत्तात्रेय ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को चिट्ठी लिखते हुए तुरंत  कार्यवाही करने के लिए कहा था.

उन की मंशा के मुताबिक, 17 दिसंबर, 2015 को रोहित वेमुला समेत दूसरे 4 छात्रों को सस्पैंड करते हुए होस्टल से बाहर भी निकाल दिया गया था. उन की स्कौलरशिप भी रुकी हुई थी.

फिल्मों में दिखाई जाने वाली तंग और बदबूदार दलित बस्ती में रहने बाले रोहित वेमुला चूंकि अंबेडकरवादी थे, इसलिए उन की खुदकुशी के बाद देशभर में इतना हल्ला मचा था कि मोदी सरकार सकते में आ गई थी और स्मृति ईरानी को मंत्रिमंडल के फेरबदल में अपना पद गंवाना पड़ा था, क्योंकि वे जहां भी जाती थीं, वहीं उन का विरोध दलित समुदाय के लोग और संगठन करते थे.

अब खामोशी क्यों

लेकिन दर्शन सोलंकी की मौत पर जो विरोध हुआ, वह छिटपुट ही कहा जाएगा जिस की अहम वजह देश का कट्टर होता हिंदूवादी माहौल है. धार्मिक दहशत दलित समुदाय में भी साफ दिख रही है. रोजरोज कहीं न कहीं से हिंदू राष्ट्र की मांग उठने लगती है. इस से हिंदूवादी नौजवानों के हौसले बुलंद हैं और अब वे पौराणिक काल की तरह दलितों को भी कुछ नहीं समझ रहे हैं, फिर मुसलमानों का तो जिक्र ही फुजूल है, जो आएदिन गौकशी के नाम पर भी कूटे और मारे जाते हैं.

इन हिंदूवादियों को लगता है कि दलित अगर पढ़लिख गया तो उन के लिए खतरा बन जाएगा, इसलिए धर्मग्रंथ ठीक ही कहते हैं कि शूद्र को पढ़ने मत दो नहीं तो वह सांप बन कर तुम्हें ही काटेगा.

दर्शन सोलंकी की मौत खुदकुशी थी या कत्ल, इस से परे यह सच है कि मकसद उसे पढ़ने से रोकना और अपनी जातिगत और धार्मिक भड़ास का कहर उस पर बरपाना था, जिस से फिर कोई दलित नौजवान बड़े शिक्षण संस्थानों में दाखिले के नाम से ही डरे.

हालांकि एक और कड़वा सच यह भी है कि प्राइमरी स्कूलों से ही दलित बच्चों के साथ जातिगत भेदभाव शुरू होने लगता है. कहीं उन के साथ मिड डे मील में भेदभाव होता है, तो कहीं उन्हें अपने बराबर बैठने ही नहीं दिया जाता है. जाहिर है कि यह सब वे घर के बड़ों से ही सीखते हैं. मास्टर भी उन्हें पढ़ाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते यानी रोग आईआईटी जैसी बड़ी संस्थाओं में ही नहीं, बल्कि गांवदेहातों के स्कूलों में भी पसरा है, जो बाद तक चलता है.

अब तो हालत यह है कि दर्शन सोलंकी जैसे होनहार छात्रों की मौत पर दलित नेता भी खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं, इसलिए कोई मायावती या चिराग पासवान कुछ नही बोलता, फिर अखिलेश यादव या तेजस्वी यादव जैसे पिछड़ों के रहनुमाओं से उम्मीद रखने की कोई वजह नहीं है. हां, भारतीय जनता पार्टी की गोद में बैठे रामदास अठावले को जरूर दोष दिया जाना चाहिए जो इतनी मासूमियत से इस मौत पर खामोश रहे मानो कुछ बोले तो मोदीशाह उन्हें दरबार से बाहर कर देंगे.

अकेले कांग्रेसी विधायक जिग्नेश मेवाणी के बोलने से दर्शन सोलंकी जैसे दलित छात्रों को इंसाफ मिलेगा, ऐसा कहने की भी कोई वजह नहीं.

क्लास में छेड़ते थे लड़के-लड़कियां, तो ट्रेन के आगे कूदी

12वीं की एक छात्रा अपने ही दो सहपाठियों की छेड़छाड़ से इतनी आहत हो गई कि उसने जान दे दी. मामला जवाहर कौलोनी का है. जीआरपी को बुधवार शाम 7:00 बजे जानकारी मिली कि एक लड़की ने न्यू टाउन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली है. इसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और उसके परिवारजनों को बुलाया. लड़की के पिता की शिकायत पर पुलिस ने 4 छात्रों के खिलाफ आत्महत्या के लिए विवश करने का मामला दर्ज कर लिया है. इनमें दो लड़कियां भी शामिल हैं.

जीआरपी में दर्ज मामले के अनुसार, जवाहर कालोनी की रहने वाली 18 साल की एक लड़की यहीं के एक पब्लिक स्कूल में 12वीं कक्षा की छात्रा थी. उसी की क्लास में पढ़ने वाले दो लड़के उसका पीछा कर अश्लील शब्द बोलते थे.

आरोप है कि इसमें उनका सहयोग 12वीं कक्षा की ही दो लड़कियां भी करती थीं. पीड़ित छात्रा ने कई बार चारों को समझाया पर वे नहीं माने. आखिर में पीड़िता ने अपने परिवार के लोगों को आपबीती बताई. यह बात पता चलने के बाद परिवारजनों ने चारों छात्रों को समझाया, लेकिन इसका उनपर कोई असर नहीं हुआ. पिता का कहना है कि इससे उनकी बेटी परेशान रहने लगी थी.

वारदात वाले दिन वह बुधवार सुबह स्कूल गई थी. वहां पांचों के बीच स्कूल में कुछ कहासुनी हुई. इसके बाद दोपहर 2:00 बजे स्कूल की छुट्टी होने के बाद वह अपनी घर पहुंची. शाम 4:30 बजे वह स्कूटी चलाकर जवाहर कालोनी में ही ट्यूशन पढ़ने के लिए निकल गई, लेकिन देर शाम तक घर नहीं पहुंची.

उधर, जीआरपी एसएचओ ओमप्रकाश को बुधवार शाम 7:00 बजे जानकारी मिली कि एक लड़की ने न्यू टाउन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली है. जानकारी मिलने पर एसएचओ ओमप्रकाश व एएसआई कृपाल सिंह मौके पर पहुंचे. शव की पहचान न होने से उसे बीके अस्पताल के रखवा दिया. उधर, छात्रा के रात 8:00 बजे तक घर न पहुंचने पर परिवारीजन जीआरपी थाने पहुंचे. पुलिस ने मौके से टूटी घड़ी और कंगन बरामद किए हैं.

पड़ोस में खड़ी कर दी थी स्कूटी

छात्रा ट्यूशन पढ़ने के लिए स्कूटी लेकर जाती थी. बुधवार शाम उसने स्कूटी जवाहर कालोनी में ही खड़ी कर दी. वह न्यू टाउन रेलवे स्टेशन कैसे पहुंची, यह अभी तक पता नहीं चल पाया है. एक अन्य थ्योरी यह भी सामने आई है कि छुट्टी होने के बाद रास्ते में लड़की समेत पांचों छात्रों ने किसी केक की दुकान से सामान भी खरीदा. इसी दौरान पांचों की आपस में कहासुनी हो गई. इससे नाराज छात्रा मौके पर ही स्कूटी छोड़कर न्यूटाउन स्टेशन पहुंच गई. स्कूल के प्रिंसिपल आकाश शर्मा ने बताया कि पीड़ित परिवारजनों ने स्कूल आकर बताया था कि 28 अक्टूबर को मृतक छात्रा के नाना की मौत हो गई है, इसलिए उनकी बेटी कुछ दिनों तक स्कूल नहीं आ पाएगी.

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