कोरोना से जंग में जीते हम: कभी न सोचें, हाय यह क्या हो गया!

“11अप्रैल को मेरी बेटी टिया का 15वां जन्मदिन था. पिछले एक हफ्ते से हम उसे सैलिब्रेट करने की सोच रहे थे, क्योंकि टिया का पिछला जन्मदिन भी लौकडाउन की भेंट चढ़ गया था. हालांकि दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर आ चुकी थी, पर शायद स्वार्थी हो कर हम ने आंखें मूंद ली थीं.

“सब ठीकठाक चल रहा था कि 9 अप्रैल की शाम को मुझे हलका बुखार चढ़ गया. बुखार ज्यादा तेज नहीं था, पर मन के किसी कोने में डर ने दस्तक दी कि कहीं जालिम कोरोना तो नहीं है? इस आशंका की वजह यह भी थी कि मुझे आसानी से बुखार या सर्दीजुकाम नहीं होता. पर मेरा सारा ध्यान रविवार को बेटी के जन्मदिन पर ही था. शनिवार तक बुखार 100-101 डिगरी फौरेनहाइट था. रविवार आया, जन्मदिन मनाया गया और सब खुश थे. पर कोरोना का वार होना अभी बाकी था. जैसे कान में कह रहा हो, ‘हा हा हा, कल आऊंगा मैं…’

“सोमवार की सुबह ठीकठाक रही. दोपहर को मेरा चीकू खाने का मन हुआ. खाया भी, पर अचानक बीच में ही मुझे महसूस हुआ कि उस में से खुशबू नहीं आ रही है. बारबार नाक के पास चीकू ले जाऊं और उसे सूंघने की कोशिश करूं, पर कोई गंध न पता चले.

“इस के बाद तो मैं पूरे घर में भटकती रही कि ऐसा क्या करूं कि किसी भी चीज की गंध का पता चल सके. तब तक मेरे मन में यह आ चुका था कि कुछ तो गड़बड़ है दया… फिर मैं ने अपने हाथ पर परफ्यूम छिड़का और उसे सूंघा. नथुनों में कोई हरकत नहीं हुई.

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“इस के बाद मैं अपने कमरे में 10 मिनट के लिए अकेली बैठी, गहरी लंबी सांसें लीं और कहा, ‘आल इज वैल…’

“खैर, अब तो कोरोना टैस्ट कराना था, जो हुआ भी. घर के 4 सदस्यों में से मेरा ही पौजिटिव नतीजा आया. मेरी रिपोर्ट देखते ही मेरे पति योगेश के चेहरे पर एक अजीब सी मुसकान आई, जैसे वे पूछना चाहते हों कि तुम कैसे लपेटे में आ गई, पर वे बोले, “घबराओ नहीं. आज के हालात में कुछ भी हो सकता है. लेकिन तुम चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगा.

“इसी बीच अच्छा यह हुआ था कि मैं खुद को आइसोलेट कर चुकी थी. फिर मैं ने ठंडे दिमाग से सोचा कि अब शायद मुझे अपने लिए समय मिला है. बस, आराम करो बिना किसी चिंता के. फिर मैं ने मन बनाया कि फोन पर किसी से ज्यादा बात नहीं करूंगी, क्योंकि एक तो सब मेरी सेहत को ले कर चिंता करेंगे और दूसरे फोन पर सकारात्मक से ज्यादा नकारात्मक मैसेज ज्यादा फौरवर्ड हो रहे हैं. लोग कैसे मर रहे हैं, यह तो सब दिखा रहे हैं, पर जो लोग कोरोना से जंग जीत चुके हैं, उन के बारे में ज्यादा बात नहीं हो रही है. उस समय मेरा फोकस खुद पर था बस.

“जहां तक मेरी दिनचर्या की बात है तो वह सामान्य ही थी. लेकिन मैं इस बात का खास खयाल रखती थी कि कोरोना का कोई नया लक्षण तो मेरे अंदर नहीं आया है न. चूंकि एक अकेले कमरे में खुद को अलग रखना था तो उस अकेलपन को दूर करने का विचार किया. इस बीच मैं ने अपनी बेटी की 10वीं की हिंदी और सामाजिक विज्ञान की किताबें पढ़ डालीं.

“अपने अनुभव से बताना चाहूंगी कि ऐसे अकेलेपन में टैलीविजन पर खबरें न देखें, क्योंकि मुझे याद है कि कोरोना के 8वें दिन जब मुझे रात को नींद नहीं आ रही थी, मैं खबरें देखने लगी. साथ ही मुझे यह भी पता चला कि हमारा कोई रिश्तेदार अस्पताल में भरती हो गया है. टैलीविजन पर जिस तरह से कोरोना की खबरें दिखाई जा रही हैं, उन से कोरोना मरीज अपना आत्मविश्वास खो सकते हैं. मेरे साथ उस रात वैसा ही कुछ हुआ. सारी रात नींद नहीं आई.

“दिन बीतते गए. धीरेधीरे मेरी सूंघने की ताकत वापस आ गई और आज मैं ने सेहतमंद हूं. पर इस बीमारी से मुझे एक सीख मिली है कि भले ही यह पूरी दुनिया के लिए एक बुरा समय है, पर अगर आप और आप के घर वाले हौसला नहीं खोते हैं, अपना स्नेह आप को देते हैं, डाक्टर जो कहता है या दवा देता है, उस का पालन करते हुए सेवन करते हैं, तो इस बीमारी से पार पा सकते हैं.

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“मैं आज भी जब उन दिनों को याद करती हूं तो सामने आते हैं मेरे बच्चे जो सुबह होते ही ‘गुड मौर्निंग मम्मा’ कहते थे या मेरे पति योगेश का मेरे लिए चाय बनाना आंखों के सामने आ जाता है. इस से मुझे बड़ी ताकत मिली थी. ये छोटीछोटी बातें भावना के स्तर पर बड़ा काम कर जाती हैं और मरीज का अकेलापन दूर कर देती हैं.

“आखिर में इतना ही कहूंगी कि परेशानियां तो जिंदगी में आती रहेंगी, उन का सामना पूरे हौसले से करें. जीत मिल ही जाएगी.”

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