क्या बला है बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट और यह फेल क्यों हुआ

तकरीबन 13 वर्षों पहले सोशल मीडिया पर शुरू हुआ बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट ‘मी टू’ मूवमैंट की तरह दम तोड़ चुका है. हां, अब युवा खुद को ज्यादा एक्सपोज करते हैं. सोशल मीडिया पर हो रही ट्रोलिंग कहती है कि लोगों की मेंटैलिटी इस मामले में नहीं बदली है.

‘तू मोटी है, तू काली है, तू नाटा है, इस की नाक देखो कैसी पकौड़े जैसी है, इस का पेट देखो कितना बाहर निकला हुआ है’ इसी तरह के कमैंट इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. ऐसा लगता है मानो कुछ लोग बस दूसरों को यह बताना चाहते हैं कि उन की बौडी, उन की पर्सनैलिटी सही नहीं है. उस में कुछ न कुछ कमी है.

इसी का एक उदाहरण इलियाना डिक्रूज है. एक बार इलियाना (इलियाना प्रैग्नैंसी न्यूज) ने अपने इंस्टाग्राम पर ‘आस्क एनीथिंग’ सैशन रखा था. तब एक यूजर ने उन से पूछा कि आप अपनी अजीब बौडीटाइप से कैसे डील करती हैं? इस पर ऐक्ट्रैस ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘पहली बात मेरी बौडीटाइप अजीब नहीं है. मेरी क्या किसी की नहीं होती. दूसरी बात मैं अपनी बौडीटाइप को ले कर बहुत क्रिटिसाइज हुई हूं. लेकिन मैं अपनेआप से प्यार करना सीख रही हूं और किसी दूसरे के आदर्शों के अनुरूप नहीं बनना चाहती हूं.’’

कहने का अर्थ यह है कि आम नागरिक क्या, सैलिब्रिटीज भी यानी सभी अपनी बौडी, स्किन के लिए कभी न कभी क्रिटिसाइज जरूर हुए हैं लेकिन युवाओं ने इस मुद्दे को ऐड्रैस किया और साल 2012 के आसपास एक मूवमैंट की शुरुआत हुई जिसे बौडी पौजिटिवटी मूवमैंट कहा गया. इस का उद्देश्य अपनी शारीरिक बनावट को स्वीकार करना और आत्मसम्मान को बढ़ावा देना था.

मूवमैंट की शुरुआत

यह मूवमैंट 2012 में इंस्टाग्राम पर उभरा था. इस मूवमैंट के शुरू होने के बाद इंस्टाग्राम पोस्ट पर बड़ी संख्या में बौडी पौजिटिविटी हैशटैग देखने को मिले. बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट बौडी की शेप को बेहतर बनाने की कोशिश में शरीर के प्रति प्यार और एक्स्पैक्टेशन को बढ़ावा देता है. साथ ही, यह सभी शारीरिक आकृतियों, साइज, लिंग और त्वचा टोन की स्वीकृति को बढ़ावा देता है. लेकिन 13 वर्षों बाद यह मूवमैंट फेल होता दिखाई दे रहा है. इस के फेल होने के कई कारण रहे.

बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के फेल होने का एक कारण यह है कि शरीर के अतिरिक्त वजन उठाने से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को बौडी पौजिटिविटी की अवधारणा नजरअंदाज करती है. आलोचकों का कहना था बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के चलते लोग मोटापे को इग्नोर करेंगे और मोटापे से होने वाली बीमारियों से घिर जाएंगे, जो उन की हैल्थ के लिए बिलकुल भी सही नहीं है.

दूसरा कारण यह था कि बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट के हैशटैग का यूज करने वाले ज्यादातर इंस्टाग्राम पोस्ट युवा, श्वेत, पारंपरिक रूप से आकर्षक, गैरविकलांग, सिजैंडर महिलाओं को दर्शाता था. जो बाकी जातीय लोगों, पुरुषों, एलजीबीक्यूटी प्लस समुदायों के लोगों और बूढ़े लोगों को सही प्रतिनिधित्व नहीं देता है.

तीसरा कारण यह था कि बहुत से लोग सोशल मीडिया पर जो फोटो और वीडियो पोस्ट करते हैं वह एडिट किया गया होता था, ऐसे में दूसरों के लिए यह जान पाना बहुत मुश्किल हो गया कि सच क्या है और ?ाठ क्या.

चौथा कारण यह था कि कुछ लोग इसे सिर्फ अभिनेत्रियों की एक प्रकार की पहचान मानते थे. इस का मतलब है कि वे उन्हें केवल उन की शारीरिक सुंदरता के आधार पर मापते थे.  बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट का मुख्य उद्देश्य यह था कि सभी शरीरों को स्वीकार किया जाए, लेकिन यह मूवमैंट कुछ लोगों के लिए बस एक विदेशी कला बन गया था.

पांचवां कारण यह था कि कुछ लोगों का मानना था कि इस में शारीरिक सुंदरता के आधार पर महिलाओं को अधिक प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिस से कि यह केवल महिलाओं के बारे में ही सिमट कर रह गया है. बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट को सामाजिक समता के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए था, लेकिन कुछ लोगों ने इसे एक महिला आंदोलन के सिवा कुछ और नहीं सम?ा था.

हवाहवाई बन गया कैंपेन

यह मूवमैंट इसलिए भी फेल रहा क्योंकि कुछ लोग इसे एक सामाजिक सुधार प्रक्रिया की तरह देखते थे, जिस में शारीरिक सुंदरता और हैल्थ के मानकों को सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन के साथ जोड़ा गया. कुछ लोग इस मूवमैंट को एक संघर्ष के रूप में देखते थे जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के बीच एक विवाद का विषय बन गया.

इस ने सोसाइटी के अलगअलग ग्रुप्स के लोगों के बीच एक खाई पैदा कर दी. बजाय इस के कि यह एक ग्रुप के रूप में मिल कर बौडी पौजिटिविटी के उद्देश्यों के लिए काम करता, बल्कि इस ने उन गु्रप्स के बीच विरोधात्मक भावना पैदा कर दी.

बौडी पौजिटिविटी को बढ़ावा देना आमतौर पर एक अच्छी बात है. लेकिन जरूरी यह है कि इस पौजिटिविटी की धारा में समाज के सभी सेगमैंट्स को जोड़ा जाए न कि इक्कादुक्का और फिल्मी सैलिब्रिटी को. अगर इन कारणों को नहीं सुधारा गया तो जबजब बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट आएंगे, फेल ही कहलाएंगे.

बौडी पौजिटिविटी मूवमैंट आखिर क्यों फेल हुआ. अगर इस सवाल का जवाब ढूंढ़ा जाए तो इस का सब से बड़ा जवाब यही है कि यह मूवमैंट एक हवाहवाई मूवमैंट था, बिलकुल वैसे ही जैसे कुछ सालों पहले ‘मी टू’ मूवमैंट आया था, जिस ने हल्ला खूब मचाया पर उस से निकला क्या, किसी को कुछ नहीं पता. इस मूवमैंट का भी कोई सिरपैर न था. हालांकि यह सच है कि इस मूवमैंट के जरिए लोगों में सैल्फ कौन्फिडैंस आया लेकिन उस कौन्फिडैंस का क्या फायदा जो आप को बीमारियों का घर बना दे.

कमियों को स्वीकारना जरूरी

अगर आप मोटे हैं, आप का शरीर थुलथुला है, आप की तोंद आप की पैंट में नहीं फंसती तो आप के लिए यह एक समस्या है, न कि इसे पौजिटिव माना जाए. ऐसे में आप को शरीर पर काम करना चाहिए न कि बौडी पौजिटिविटी के नाम पर प्राउड.

याद रखें, अगर आप मोटे हैं तो लोग आप को मोटा ही कहेंगे. आप के सामने नहीं तो आप के पीठपीछे ही सही, पर कहेंगे जरूर. आप उन की आवाज पर रोक लगा सकते हैं पर सोच पर नहीं. यही उन की मानसिकता है. लेकिन आप औरों के लिए नहीं, खुद के लिए, खुद को बदलें. इस से न सिर्फ आप हैल्दी रहेंगे बल्कि बीमारियों से आप की दोस्ती भी नहीं होगी.

वहीं अगर आप बौडी पौजिटिविटी के नाम पर मोटापे को अपनी बौडी पर कब्जा करने देंगे तो आप भविष्य में जरूर पछताएंगे. मोटापा कोई अच्छी चीज नहीं है. इस से पर्सनैलिटी और कौन्फिडैंस खराब ही होता है.

बौडी पौजिटिविटी उन मानो में अच्छा है जहां यह रंगत की बात करता हो. अगर आप काले हैं, आप की स्किन पर निशान हैं, आप की बौडी पर ज्यादा हेयर हैं और लोग आप को इन चीजों के लिए चिढ़ा रहे हैं तो यहां आप का बौडी पौजिटिविटी वाला एटिट्यूड काम आएगा क्योंकि रंगत से आप की हैल्थ को कोई नुकसान नहीं होगा.

बड़ी औरतों के शिकार कम उम्र के लड़के

योगिता 48 साल की एक बेहद खूबसूरत औरत है. उस का चेहरा देख कर कोई भी उस की असली उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता. अपने पति हरीश की अचानक हुई मौत के बाद से योगिता उस का पूरा कारोबार खुद ही संभाल रही है. कारोबार में योगिता को कोई बेवकूफ नहीं बना सकता. लेकिन उस में एक खास कमजोरी है, कम उम्र के लड़कों से दोस्ती करना. अपने स्टाफ में योगिता ज्यादातर 20 से 25 साल की उम्र के स्मार्ट व खूबसूरत कुंआरों को ही रखती है.

योगिता इस बारे में कहती है कि ऐसे लड़के जोशीले होते हैं. वे ज्यादा मेहनत से काम करते हैं और ईमानदार भी होते हैं. लेकिन खुद उस के स्टाफ के ही लोग दबी जबान में कुछ और ही कहते हैं. इन लोगों का मानना है कि योगिता आजाद तबीयत की औरत है और उसे अलगअलग मर्दों के साथ बिस्तरबाजी करने की आदत है.

इसी तरह नीलम एक मध्यवर्गीय औरत है. उस की उम्र 36 साल है और उस की शादी को तकरीबन 10 साल हो चुके हैं. वह 2 बच्चों की मां भी बन चुकी है, लेकिन अपनी भोली शक्लसूरत के चलते वह अभी भी काफी जवान व खूबसूरत नजर आती है.

नीलम के पति रमेश की पोस्टिंग दूसरे शहर में है, जहां से वह महीने में 1-2 बार ही घर आ पाता है. नीलम और दोनों बच्चे चूंकि घर में अकेले रहते थे, इसलिए रमेश ने एक 19 साल के लड़के सुनील को एक कमरा किराए पर दे दिया. वह स्नातक की पढ़ाई करने के लिए गांव से शहर आया था.

पति की गैरहाजिरी में नीलम अपना ज्यादातर समय सुनील के साथ ही गुजारने लगी. एक रात नीलम की जिस्मानी प्यास इस हद तक बढ़ गई कि उस ने बच्चों के सो जाने के बाद सुनील को अपने कमरे में ही बुला लिया.

सुनील कुछ देर तक तो झिझकता रहा, लेकिन नीलम के मस्त हावभाव आखिरकार उसे पिघलाने में कामयाब हो ही गए. फिर नीलम ने अपना बदन सुनील को सौंप दिया.

इस के बाद तो वे दोनों आएदिन मौका निकाल कर एकदूसरे के साथ सोने लगे. काफी दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा, पर सुनील की असावधानी से उन का भांड़ा फूट गया. फिर तो सुनील को काफी बेइज्जत हो कर उस मकान से निकलना पड़ा.

दिनेश ने अपने घर में काम करने के लिए एक 18 साल का पहाड़ी नौकर रामू रखा हुआ था. लेकिन उस के काम से दिनेश खुश नहीं थे. रामू न केवल काम से जी चुराता था, बल्कि दिनेश ने 2-3 बार उसे अपने घर की छोटीमोटी चीजें चुराते हुए भी पकड़ा था.

दिनेश उसे निकालने की सोच रहे थे, लेकिन उस की पत्नी हेमलता ने रोक दिया. आखिरकार एक दिन दफ्तर में अचानक तबीयत खराब होने के चलते दिनेश दोपहर में ही घर आ गया. घर आ कर उस ने अपनी 34 साला बीवी हेमलता को बिना कपड़ों के बिस्तर पर नौकर के साथ सोए हुए देख लिया.

दरअसल, हेमलता दिनेश की दूसरी बीवी थी. अधिक उम्र के पति से जिस्मानी संतुष्टि न मिल पाने के चलते हेमलता ने अपने कम उम्र, लेकिन शरीर से तगड़े नौकर को ही अपना आशिक बना लिया था.

इस तरह की तमाम घटनाएं हमारे समाज की एक कड़वी सचाई बन चुकी हैं, जिस से इनकार नहीं किया जा सकता.

कौन हैं ऐसी औरतें

 अपनी जिस्मानी जरूरतें पूरी करने के लिए ऐसे लड़कों को अपना शिकार बनाने वाली इन औरतों में समाज के हर तबके की औरतें शामिल हैं. इन में एक काफी बड़ा तबका माली रूप से अमीर और ज्यादा पढ़ीलिखी औरतों का है. ऐसी औरतें अपनी जिंदगी को अपनी मरजी से ही गुजारना चाहती हैं.

दूसरी बात यह भी है कि माली रूप से आत्मनिर्भर हो जाने के बाद लड़कियों में अपनी एक अलग सोच पैदा हो जाती है और वे शादी नामक संस्था को फालतू मानने लगती हैं.

जब सारी जरूरतें बगैर शादी किए ही पूरी होने लगें, तो फिर कोई खुद को एक बंधन में क्यों उलझाना चाहेगा? इस के अलावा ऐसी औरतें जवान लड़कों से संबंध कायम करने में सब से आगे हैं, जिन के पतियों के पास धनदौलत की तो कमी नहीं है. लेकिन अपनी बीवियों के लिए समय की कमी है.

इन दोनों के अलावा एक तबका ऐसा भी है, जो कि खुद पहल कर के लड़कों को अपने प्रेमजाल में फंसाने की कोशिश करता है. ये वे औरतें हैं, जो कि किसी मजबूरी के चलते आदमी के साथ का सुख नहीं पातीं.

परिवार में पैसे की कमी के चलते या ऐसी ही किसी दूसरी मजबूरी के चलते जिन लड़कियों की शादी समय से नहीं हो पाती और शरीर की भूख से परेशान हो कर जो मजबूरन किसी आदमी के साथ संबंध बना लेती हैं, उन्हें भी इसी तबके में रखा जा सकता है.

कम उम्र ही क्यों

यह एक सचाई है कि अगर कोई औरत खासकर वह 30-32 साल से ऊपर की है, अपनी इच्छा से किसी पराए मर्द से संबंध बनाने की पहल करती है, तो उस के पीछे खास मकसद जिस्मानी जरूरतों को पूरा करना होता है.

हकीकत यही है कि एक 30-35 साल की खेलीखाई और अनुभवी औरत को पूरा सूख अपने हमउम्र मर्द के साथ ही मिल सकता?है, जिसे बिस्तर के खेल का पूरा अनुभव हो. लेकिन कई औरतें ऐसी भी होती हैं, जो कि अनुभव व सलीके के बजाय केवल तेजी और जोशीलेपन पर कुरबान होती हैं.

स्टेटस सिंबल के लिए

 भारतीय समाज काफी तेजी से बदल रहा है. कभी अमीर लोग खूबसूरत लड़कियों को रखैल बना कर रखते थे, उसी तर्ज पर आजकल अमीर औरतों के बीच सेहतमंद जवान मर्द को बौडीगार्ड के रूप में रखना शान समझा जाने लगा है.

लेकिन वजह चाहे कोई भी हो, अपनी उम्र से छोटे लड़कों के साथ दोस्ती करना और उन के बदन का सुख लूटना ऊपरी तौर पर कितना भी मजेदार नजर आए, लेकिन हकीकत में यह बेहद खतरनाक है.

बढ़ रहे तलाक के मामले, माहौल गरमाया

देश में तीन तलाक के मुद्दे पर सियासी और सामाजिक माहौल गरमाया हुआ है. मजहबी कट्टरपंथी मुसलिम पर्सनल ला में किसी भी तरह के बदलाव का विरोध कर रहे हैं जबकि हिंदूवादी संगठन और केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने को आमादा दिख रही है. यह ठीक है कि मुसलमानों में तलाक को ले कर मुसलिम महिलाएं बहुत त्रस्त हैं. केवल 3 बार तलाक कह कर औरत को छोड़ दिया जाता है. इस मामले में हिंदू संगठनों को खुश होने की जरूरत नहीं है. देश में हिंदुओं में भी तलाक के मामले बढ़ते जा रहे हैं. वह भी ऐसे में जब सगाई से ले कर फेरे तक धर्म के रीतिरिवाजों द्वारा आस्थापूर्ण तरीके से विवाह संपन्न कराए जाते हैं.

हम सुनते आए हैं कि जोडि़यां आसमान से बन कर आती हैं. सच तो यह है कि जोडि़यां टूटती धरती पर हैं. तलाक का रोग अब धीरेधीरे भारत में भी फैलता जा रहा है. हालांकि पश्चिमी देशों की तुलना में तलाक के मामले अभी भी यहां बहुत कम हैं. भारत में तलाक के ज्यादातर मामले बड़े शहरों कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, लखनऊ आदि में नजर आए हैं. पिछले एक दशक में कोलकाता में तलाक के मामले लगभग 350 प्रतिशत बढ़े हैं. मुंबई और लखनऊ में तो पिछले 5 वर्षों में यह 200 प्रतिशत बढ़ा है. तलाक के बढ़ते मामलों को देखते हुए बेंगलुरु में 2013 में 3 नए फैमिली कोर्ट खोलने पड़े थे. शादी के 5 साल के अंदर ही तलाक चाहने वाले ज्यादातर युवाओं के तलाक के हजारों मामले कचहरी में लंबित पड़े हैं.

आखिर हमारे देश में भी तलाक के मामले क्यों बढ़ रहे हैं? हम शादी के फेरे लेते समय तो सात जन्म तक साथ रहने की कसमें खाते हैं. पर फिर ऐसा क्या हो जाता है जो तलाक की नौबत आ जाती है. तलाक के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक समस्याएं आदि. सब से पहले तो हमें यह समझना होगा कि औद्योगिकीकरण और आधुनिकीकरण की दौड़ में अब संयुक्त परिवार टूट कर बिखर चुके हैं. तरक्की के मामले में अब गांव कसबा बन गया है, कसबा शहर और शहर मैट्रो. जहां सरसों के खेत थे, भैंसें बंधी होती थीं, उस जमीन पर अब मौल्स, शौपिंग कौंप्लैक्स, अपार्टमैंट्स और आईटी कंपनियों के दफ्तर बन गए हैं खासतौर से गुड़गांव में. यही हाल बाकी शहरों का भी है. साथ ही तलाक के मामले भी बढ़ रहे हैं.

तलाक के बढ़ते मामलों की सब से बड़ी वजह धर्म है. प्रेम, शादी और तलाक के बीच धर्म की गहरी घुसपैठ है. भला ब्याहशादी में धर्म का क्या काम? पंडे, पादरी, मुल्लामौलवी बीच में क्यों? किसी भी जोड़े के बीच सब से पहले धर्म, जाति, गोत्र का सवाल सामने आता है. अगर कोई जोड़ा धर्म की इन बाधाओं को पार कर के शादी कर भी लेता है तो परिवार, समाज का सामना करना उन के लिए मुश्किल होता है और आखिर नौबत रिश्ता टूटने तक आ जाती है.
हर धर्म के अपनेअपने पर्सनल ला बने हुए हैं. विवाह, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार जैसे मामलों में धर्म की दखलंदाजी है. वहीं, महिला पहले की अपेक्षा अब पढ़लिख रही है, तरक्की कर रही है.

  1. रूढि़वादी बंधन : पहले की अपेक्षा स्त्रियों की शिक्षा दर में काफी वृद्धि हुई है. अब लगभग 46 प्रतिशत महिलाएं स्नातक या 12वीं पास हैं, पीएचडी में 40 प्रतिशत, 28 प्रतिशत इंजीनियरिंग में, 40 प्रतिशत आईटी में, 32 प्रतिशत वकालत में और 35 प्रतिशत मैनेजमैंट में लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं. इन कोर्सेज की पढ़ाई पर काफी पैसा खर्च होता है. जाहिर है इतना खर्च कर के पढ़लिख कर वे घर में तो नहीं बैठेंगी. वे भी नौकरी करने लगती हैं तो उन में कुछ आत्मसम्मान, स्वतंत्रता व आत्मनिर्भरता की भावना आना भी स्वाभाविक है. वे कठोर या रूढि़वादी बंधन अब बरदाश्त नहीं कर सकती हैं. ऐसे में आपसी टकराव और रंजिशें बढ़ने लगती हैं. अब औरत भी रिश्ते में बराबरी चाहती है पर धर्म उसे बेडि़यों में जकड़े रखना चाहता है.
    2. सासससुर का दखल : एक तरफ जहां बेटे की शादी के बाद भी अकसर मां बेटे पर पहले जैसा ही अधिकार समझती है तो दूसरी तरफ पत्नी का भी पूर्ण अधिकार अपने पति पर होना स्वाभाविक है. कभी बेटी के मातापिता पतिपत्नी के बीच के छोटेमोटे विवाद में अपनी बेटी का जरूरत से ज्यादा पक्ष लेते हैं. इस से विवाद बढ़तेबढ़ते बड़ा रूप ले लेता है. परिवार अपनी बहू से लड़का ही चाहता है. लड़की होने पर बहू का तिरस्कार किया जाता है. कदाचित तलाक के एक ऐसे केस में अदालत को और्डर देना पड़ा था कि 6 महीने तक पतिपत्नी को साथ रहने दिया जाए, इस बीच दोनों में किसी के मातापिता उन से कोई संपर्क नहीं रखें. 6 महीने साथ रहने के बाद भी अगर वे तलाक चाहते हैं तो कोर्ट उस पर विचार करेगा.

3. इच्छा के विरुद्ध शादी : मातापिता अपनी संतान की शादी उन की इच्छा के विरुद्ध अपनी मरजी से कर देते हैं, कभी तिलक की रकम तो कभी जातपात या धर्म के चलते. इस के चलते पतिपत्नी में प्रेम का अभाव होता है.

4. सासबहू का झगड़ा : सास अपनी बहू पर ज्यादा रोब जमाने लगती हैं. धार्मिक परंपराओं को निभाने का दबाव डालती है. एक या दो पीढ़ी पहले उन की सास उन के साथ रहा करती होंगी लेकिन आजकल की पढ़ीलिखी कमाऊ बहू को यह बरदाश्त नहीं है और वह विद्रोह करती है. इस से घर में तनाव पैदा होता है और पति के साथ भी रिश्ता बिगड़ जाता है.

5. धारा 498 ए और घरेलू हिंसा के नियम का दुरुपयोग : कुछ वर्ष पहले औरतों को दहेज विरोधी उपरोक्त नियम से कुछ विशेष अधिकार मिले थे ताकि उन को पति या ससुराल का कोई सदस्य दहेज न मिलने या कम मिलने के चलते प्रताडि़त न करे. इस की आड़ में छोटीमोटी बातों को तोड़मरोड़ कर पत्नी, पति के विरुद्ध मुकदमा इस धारा के तहत दायर कर देती है. आगे चल कर मुकदमे का अंजाम ज्यादातर तलाक ही होता है.

6. साजिश के तहत शादी : कभी कोई गरीब या साधारण घर की लड़की बहुत अमीर घर के लड़के से शादी कर लेती है. आगे चल कर ब्लैकमेल कर मोटी रकम ले कर तलाक कर समझौता कर लेती है. स्थिति इस के विपरीत भी हो सकती है यानी कोई गरीब लड़का और अमीर लड़की.

7. प्यार में कमी आना : लड़कालड़की प्रेमविवाह तो कर लेते हैं पर कभीकभी उसे निभा नहीं पाते हैं. शादी के कुछ अरसे बाद उन का प्यार कम होने लगता है और वे अलग होना ही बेहतर समझते हैं. क्योंकि वे धर्म और जाति की रूढि़वादी परंपराओं में अलगअलग रह नहीं पाते.

8. व्यभिचार का होना : कभीकभी तो पति या पत्नी का व्यभिचारी होना भी तलाक का कारण बन जाता है. हमारा कोर्ट भी इसे तलाक के लिए जायज मुद्दा मानता है और साबित हो जाने पर इस आधार पर तलाक मंजूर हो जाता है.

9. किसी प्रकार की मृगमरीचिका : कभीकभी पति या पत्नी को यह वहम होता है कि उस का वर्तमान साथी उसे वह खुशी नहीं दे पा रहा है जो कोई दूसरा पुरुष या महिला उस को दे सकती है. ऐसी कल्पना मात्र से दोनों के एकदूसरे के प्रति प्रेम और रुचि में कमी आ जाती है.

10. मायके से ज्यादा नजदीकी : शादी के बाद भी औरत अगर ससुराल को नजरअंदाज कर मायके को प्राथमिकता देती है तो यह पति या ससुराल वालों को अच्छा नहीं लगता है. औरत अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा मायके पर खर्च करे, तो ससुराल वालों को आपत्ति होती है. इस से कमाऊ पत्नी नाराज हो जाती है. इस के अतिरिक्त हजारों ऐसे मामले भी हैं जहां पति या पत्नी एकदूसरे से बिना तलाक के अलग रह रहे हैं. वे चाहे कितनी भी लंबी अवधि तक अलग रहें, यह तलाक का आधार नहीं हो सकता है. हां, जहां पति या पत्नी ने पहले से ही तलाक की अर्जी दे रखी है, कोर्ट उन को एक खास समय के लिए कानूनी अलगाव की मंजूरी देता है ताकि वे एकदूसरे से अपने रिश्ते के बारे में पुनर्विचार करें. इस अवधि में वे कानून की नजर में शादीशुदा रहेंगे. फिर अगर वे साथ रहने का फैसला लेते हैं तो कोर्ट उन की तलाक की अर्जी खारिज कर सकता है. अगर वे साथ न रहना चाहें तो कानून के अंतर्गत उन की तलाक याचिका सुनी जाएगी.

जो भी हो, तलाक पति या पत्नी किसी के लिए अच्छा नहीं है. मानसिक तनाव तो दोनों को होता है. अगर उन के बच्चे हुए तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है. हमारा कोर्ट भी तलाक के मामले में अंत तक पतिपत्नी को मिलाने का प्रयास करता है. एकदूसरे की छोटीमोटी गलतियों या कमियों को उजागर न कर के, उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है ताकि रिश्ते में माधुर्य बना रहे और बात घर से बाहर निकल कर कोर्टकचहरी तक पहुंचने की नौबत न आए. पतिपत्नी में परस्पर विश्वास बना रहे, वे एकदूसरे की भावना और पारिवारिक जिम्मेदारी को महत्त्व दें.

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