कौन थी मरजान जिसे गुल का प्यार नहीं मिला तो कहा अलविदा

समर गुल हत्या कर के फरार हुआ था, सरहद पार कबीले के सरदार नौरोज खान ने उसे शरण दी. लेकिन नौरोज की बेटी समर गुल और मरजाना एकदूसरे को प्यार कर बैठे, जो कबाइली परंपरा के विपरीत था. आखिर क्या हुआ उन के प्यार का अंजाम…    

मर गुल ने जानबूझ कर एक अभागे की हत्या कर दी थी. पठानों में ऐसी हत्या को बड़ी इज्जत की नजर से देखा जाता था और हत्यारे की समाज में धाक बैठ जाती थी. समर गुल की उमर ही क्या थी, अभी तो वह विद्यार्थी था. मामूली तकरार पर उस ने एक आदमी को चाकू घोंप दिया था और वह आदमी अस्पताल ले जाते हुए मर गया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए समर गुल कबाइली इलाके की ओर भाग गया था.

 जब वह वहां के गगनचुंबी पहाड़ों के पास पहुंचा तो उसे कुछ ऐसा सकून मिला, जैसे वे पहाड़ उस की सुरक्षा के लिए हों. सरहदें कितनी अच्छी होती हैं, इंसान को नया जन्म देती हैं. फिर भी यह इलाका उस के लिए अजनबी था, उसे कहीं शरण लेनी थी, किसी बड़े खान की शरण. क्योंकि मृतक के घर वाले किसी कबाइली आदमी को पैसे देकर उस की हत्या करवा सकते थे. पठानों की यह रीत थी कि अगर वे किसी को शरण देते थे तो वे अपने मेहमान की जान पर खेल कर रक्षा करते थे.

वह एक पहाड़ी पर खड़ा था, उसे एक गांव की तलाश थी. दूर नीचे की ओर उसे कुछ भेड़बकरियां चरती दिखाई दीं. उस ने सोचा, पास ही कहीं आबादी होगी. वह रेवड़ के पास पहुंच कर इधरउधर देखने लगा. गड़रिया उसे कहीं दिखाई नहीं दिया. अचानक एक काले बालों वाला कुत्ता भौंकता हुआ उस की ओर लपका. उस ने एक पत्थर उठा कर मारा, लेकिन कुत्ता नहीं रुका. उस ने चाकू निकाल लिया, तभी एक लड़की की आवाज आई, ‘‘खबरदार, कुत्ते पर चाकू चलाया तो…’’ 

उस ने उस आवाज की ओर देखा तो कुत्ता उस से उलझ गया. उस की सलवार फट गई. कुत्ते ने उस की पिंडली में दांत गड़ा दिए थे. आवाज एक लड़की की थी, उस ने कुत्ते को प्यार से अलग किया और उसे एक पेड़ से बांध दिया. समर गुल एक चट्टान पर बैठ कर अपने घाव का देखने लगा. लड़की ने पास कर कहा, ‘‘मुझे अफसोस है, मेरी लापरवाही की वजह से आप को कुत्ते ने काट लिया.’’

समर गुल ने गुस्से से लड़की की ओर देखा तो उसे देखता ही रह गया. वह बहुत सुंदर लड़की थी. उस की शरबती आंखों में शराब जैसा नशा था. लड़की ने पिंडली से रिसता हुआ खून देखा तो भाग कर पानी लाई और उस का खून साफ किया. फिर अपना दुपट्टा फाड़ कर उसे जलाया और समर के घाव पर उस की राख रखी, जिस से खून बंद हो गया. समर गुल उस लड़की की बेचैनी और तड़प को देखता रहा. खून बंद हो गया तो वह खड़ी हो गई.

  ‘‘कोई बात नहीं,’’ समर गुल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कुत्ते ने अपनी ड्यूटी की और इंसान ने अपनी ड्यूटी.’’

‘‘अजनबी लगते हैं आप.’’ लड़की ने कहा तो उस ने अपनी पूरी कहानी उसे सुना दी.

‘‘अच्छा तो आप फरार हो कर आए हैं. मैं बाबा को आप की कहानी सुनाऊंगी तो वह खुश होंगे, क्योंकि काफी दिन बाद हमारे घर में किसी फरारी के आने की चर्चा होगी.’’

मलिक नौरोज खान एक जिंदादिल इंसान था. 70-75 साल की उमर होने पर भी स्वस्थ और ताकतवर जवान लड़कों जैसा. बड़ा बेटा शाहदाद खान सरकारी नौकरी में था जबकि छोटा बेटा शाहबाज खान जिसे सब प्यार से बाजू कहते थे, बड़ा ही खिलंदड़ा और नटखट था. वह बहन ही की तरह सुंदर और प्यारा था. बेटी की जुबानी समर गुल की कहानी सुन कर नौरोज ने सोचा कि इतनी कम उम्र का बच्चा हत्यारा कैसे हो सकता है. फिर भी उस के लिए अच्छेअच्छे खाने बनवाए गए. उसे घर में रख लिया गया. कुछ दिन के बाद समर गुल ने सोचा, कब तक मेहमान बन कर इन के ऊपर बोझ बनूंगा, इसलिए कोई काम देखना चाहिए. उस ने नौरोज खान से बात करना ठीक नहीं समझा. इस के लिए उसे मरजाना से बात करना ठीक लगा. हां, उस लड़की का ही नाम मरजाना था.

अगले दिन सुबह उस ने मरजाना से कहा, ‘‘बात यह है कि मुझे लकड़ी काटना नहीं आता, हल चलाना नहीं आता. मैं ने सोचा कि रेवड़ तो चरा सकता हूं. मुफ्त की रोटी खाते मुझे शरम आती है.’’

‘‘यह काम भी तुम से नहीं होगा, तुम इस काम के लिए पैदा ही नहीं हुए हो. मुझे तो हैरानी है कि तुम ने हत्या कैसे कर दी. तुम ऐसे ही रहो, तुम्हें मुफ्त की रोटी खाने का ताना कोई नहीं देगा.’’

‘‘अगर मुझे सारा जीवन फरारी बन कर रहना पड़ा तो?’’

‘‘मैं बाबा से बात करूंगी, वह भी यही कहेंगे जो मैं ने कहा है.’’ इतना कह कर वह रेवड़ ले कर चली गई और समर गुल उसे जाते हुए देखता रहा. हकीकत जान कर नौरोज ठहाका मार कर हंसा और समर से बोला, ‘‘फरारी बाबू, मैं ने तुम्हारे लिए काम ढूंढ लिया है. तुम बाजू को पढ़ाया करोगे.’’

यह काम उस के लिए बहुत अच्छा था. अगले दिन से उस ने केवल बाजू को बल्कि गांव के और बच्चों को इकट्ठा कर के पढ़ाना शुरू कर दिया. शाम के समय चौपाल लगती थी, गांव के सब बूढ़ेबच्चे इकट्ठे हो जाते. समर गुल भी चौपाल पर चला जाता था. वहां कोई कहानी सुनाता, कोई चुटकुले और कोई शेरोशायरी. यह सभा आधीआधी रात तक जमी रहती थी. रात को लौट कर समर गुल जब दरवाजा खटखटाता तो मरजाना ही दरवाजा खोलती, क्योंकि मलिक नौरोज खान ऊपर के माले पर सोता था.

समर गुल को यहां आए हुए 2-3 महीने हो गए थे, लेकिन मरजाना से उस की बात नहीं हो पाई थी, क्योंकि वह उस से डराडरा सा रहता था. वह समर से हंस कर पूछती, ‘‘ गए…’’ वह उसे सिर झुकाए जवाब देता, लेकिन एक पल के लिए भी वहां नहीं रुकता था और अपने कमरे में जा कर लेट जाता था. वह बिस्तर पर भी मरजाना के बारे में सोचता रहता थामरजाना का व्यवहार सदैव उस के प्रति प्यार भरा होता था. लेकिन अब वह उस की तरफ और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी. एक रात जब वह आया तो मरजाना ने रोज की तरह कहा, ‘‘ गए…’’

वह कुछ नहीं बोला और खड़ा रहा. दोनों के ही दिल तेजी से धड़क रहे थे. दोनों ने एक अनजानी सी खुशी और डर अपने अंदर महसूस किया. मरजाना ने धीरे से कहा, ‘‘अंदर आ जाओ.’’ वह अंदर आ गया. मरजाना ने दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी. फिर भी वह वहीं खड़ा रहा. मरजाना भी वहीं खड़ी उसे निहारती रही. फिर धीरे से बोली, ‘‘जाओ, सो जाओ.’’ वह चला गया, लेकिन मरजाना वहीं खड़ी रही. उस का अंगअंग एक अनोखी मस्ती से बहक रहा था. साथ ही दिल भी एक अनजानी खुशी से भर गया था. समर गुल अपने कमरे में पहुंचा तो उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. वह बारबार होंठों ही होंठों में दोहरा रहा था, ‘‘जाओ,सो जाओ.’’

मरजाना का प्यारभरा स्वर उस की आत्मा को झिंझोड़ गया था. वह भावुक हो गया और सिसकियां ले कर रोने लगा. यह खुशी के आंसू थे. उस की हालत एक बच्चे जैसी हो गई थी. उसे यह अहसास डंक मार रहा था कि उस ने किसी की हत्या की हैवह पहली बार दिल की गहराइयों से अपने किए पर लज्जित था, उस की आत्मा पर पाप का बोझ पड़ा था. इस बोझ को उस ने पहले महसूस नहीं किया था, लेकिन प्रेम की अग्नि ने उसे कुंदन बना दिया था. आज वह किसी का दुश्मन नहीं रहा. मरजाना अपने बिस्तर पर लेट कर अंदर ही अंदर खुश हो रही थी, ऐसी खुशी उसे पहली बार मिली थी. वह सोच रही थी कि जब मैं ने दरवाजा बंद किया तो समर वहीं खड़ा रहा. वह चुपचाप था. उस की खामोशी ने मुझे अंदर तक हिला डाला. क्या इसी को प्रेम कहते हैं?

सोच रही थी कि क्या यही मीठामीठा प्रेम का दर्द है, जिस के लिए दरखुई आदम खान के लिए मर गई थी और आदम खान दरखुई के लिए मरा था. गुल मकई मूसा खान के लिए मरी और मूसा खान गुल मकई के लिएहां, ये सब प्रेम के लिए मर गए थे, लेकिन लोग प्रेम करने वालों के दुश्मन क्यों होते हैं. इतनी पवित्र चीज और खुशी से इंसानों को क्यों दूर रखा जाता है. लेकिन मेरी अंतरात्मा पवित्र है, मैं ने कोई पाप नहीं किया. वह झटके से बोली, ‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. अपने आप को इस अनजानी खुशी से वंचित नहीं होने दूंगी.’’ सुबह हुई तो मरजाना ने उजाले में वह सुंदरता देखी जो उसे पहले कभी दिखाई नहीं दी थी. समर गुल जाग रहा था. वह उठा और उस ने बाहर जा कर देखा, मरजाना रेवड़ ले कर जा चुकी थी. उस की निगाहें हवेली की दीवारों पर टिक गईं, ऐसा लगा जैसे उस का बचपन यहीं गुजरा हो.

तभी बाजू पास कर बोला, ‘‘गुल लाला चलो, सब बच्चे आप का इंतजार कर रहे हैं. आप अभी तक पढ़ाने नहीं आए.’’ उस ने बाजू को गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा. बाजू बोला, ‘‘लाला, इतना प्यार तो आप ने मुझे कभी नहीं किया.’’ उस ने कहा, ‘‘हां बाजू, मैं ने कभी इतना प्यार नहीं किया, लेकिन दिल में तुम्हारे लिए बहुत प्यार रखता था.’’ फिर वह उसे नीचे उतार कर बोला, ‘‘बाजू, जाओ आज तुम सब छुट्टी कर लो.’’ वह खुश हो कर चला गया. गुल घर में रखी रायफल ले कर जंगल चला गया. मरजाना रेवड़ के पास डलिया बुन रही थी. साथ ही धीमे स्वर में गा रही थी. समर गुल चुपके से उस के पीछे खड़ा हो कर उस का गाना सुनने लगा.

मरजाना जो गा रही थी, उस का सार कुछ इस तरह था, ‘तुम नहीं आए थे तो दिल में कोई हलचल नहीं थी, जीवन शांति से अपनी डगर पर चल रहा था. तुम आते तो यह जीवन इसी तरह कट जाता. लेकिन तुम ने अपनी सुंदर आंखों से मेरे दिल को जगमगा दिया है. तुम ने यह क्या कियापलक झपकते ही मेरी दुनिया ही बदल डाली. बाप, भाई, मां सब से नाता टूट गया, यह तुम ने क्या किया. अब तुम मेरे खून में दौड़ने लगे.’ समर गुल चुपचाप सुनता रहा. फिर धीरे से बोला, ‘‘मरजाना!’’ वह एकदम चौंक पड़ी. उस के होंठ कांपने लगे. उस की भूरी आंखें खुशी के आंसुओं से भर गईं.

समर गुल उस के आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘तुम मुझे दूर पहाडि़यों में ढूंढ रही थी, लेकिन मैं यहां तुम्हारे दिल के पास खड़ा था.’’ ‘‘खुदा करे, मैं तुम्हें हर पल ढूंढती रहूं.’’ वह उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘मरजाना, मैं हत्या कर के बहुत पछता रहा हूं. लेकिन लगता है कि कुदरत ने तुम से मिलवाने के लिए मुझ से यह हत्या करवाई थी. मुझे हैरानी है कि पाप के बदले इतनी बड़ी खुशी मिली. डरता हूं कि यह खुशी छिन जाए.’’

मरजाना बोली, ‘‘तुम्हारे बिना मैं जीने की चाहत भी नहीं कर सकती. मुझे तुम पहले दिन से ही अच्छे लगने लगे थे. कुछ भी हो जाए, मुझे तुम अपने साथ ही पाओगे. मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती.’’ ‘‘मरने की बात न करो मरजाना.’’ ‘‘मेरा नाम मरजाना है गुल, मुझे मर जाना आता है. मरने की बात क्यों न करूं?’’ ‘‘नहीं मरजाना नहीं, मैं तुम्हें बाबा से मांग लूंगा. पूरी जिंदगी की गुलामी कर लूंगा. अगर तब भी नहीं माने तो बापभाइयों से कहूंगा कि मरजाना के कदमों में पैसे का ढेर लगा दो, उसे हीरेजवाहरात में तोल दो. सब कुछ ले लो मगर मरजाना को दे दो.’’

‘‘यह सब तो ठीक है, लेकिन गुल यहां के कानून के मुताबिक यहां के लोग अपनी बेटियों को सरहद के पार नहीं देते. देख लेना, बाबा तुम से यही कहेगा.’’ ‘‘इस का मतलब मरजाना, मैं तुम्हें कभी नहीं पा सकूंगा?’’ ‘‘मैं ने कह तो दिया मेरा नाम मरजाना है और मुझे मरना आता है.’’ ‘‘मरने की बातें मत करो मरजाना,’’ गुल ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. अचानक कहीं से उस का कुत्ता गया और गुल के पांव चाटने लगा. गुल बोला, ‘‘देखो, एक दिन इस ने मेरी टांग पर काटा था और अब पैर चाट रहा है.’’ मरजाना बोली, ‘‘यह तुम्हारे प्रेम को समझ गया है.’’

कुछ देर बातें करने के बाद दोनों घर पहुंचे तो गुल के पिता, भाई और मामा बैठे थे और चाय पी रहे थे. गुल को उन्होंने गले लगा लिया. गुल के चेहरे की रंगत और सेहत देख कर सब हैरत में पड़ गए. उन के आने से केस के बारे में पता चला, पुलिस ने दोनों पार्टियों का समझौता करा कर केस बंद कर दिया था. वे लोग गुल को लेने के लिए आए थे. रात में गुल ने बड़े भाई को सब बातें बता दीं. साथ ही अपना फैसला भी सुना दिया कि वह वापस नहीं जाएगा और अगर जाएगा तो मरजाना भी साथ जाएगी. 

उस की बातें सुन कर उस का भाई परेशान हो गया. अंत में यह तय हुआ कि मरजाना के पिता से रिश्ता मांग लिया जाए. बहुत झिझक के साथ मरजाना के बाबा से उस के रिश्ते की बात की तो उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं बहादुर आदमियों की इज्जत करता हूं. घर में शरण भी देता हूं लेकिन सरहद पार का पठान कितना भी बड़ा क्यों हो, हमारे कबीले के सरदारों का मुकाबला नहीं कर सकता. मैं किसी ऐसे आदमी को दामाद नहीं बना सकता, जो हमारे खून की बराबरी कर सके.’’

समर गुल के बाप ने मिन्नत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हजारों रुपयों का लालच दिया, लेकिन रुपयों की बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘हमें रुपयों का लालच दो, हमारे पास पैसे की कोई कमी नहीं है. हम सरहद पार अपनी लड़की नहीं देंगे.’’ समर गुल ने ये बातें सुनीं तो उस की आंखों से नींद ही गायब हो गई. कुछ दिन पहले उस ने जो ख्वाब देखे थे, वे तिनके की तरह बिखर गए. इस का मतलब यह कि उसे बिना मरजाना के जाना होगा. अगली सुबह वे लोग अपने घर की ओर चल दिए. समर गुल ने आखिरी बार पीछे मुड़ कर देखा. वह रोने लगा. उस के भाई ने उसे गले से लगा लिया. उस का बाप, भाई और मामा उस के दुख को समझते थे. सब लोग चले जा रहे कि अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. वह गुल की ओर दौड़ा चला आ रहा था. उस के पीछे मरजाना दौड़ी आ रही थी.

‘‘मरजाना…’’ गुल जोर से चीखा. मरजाना उस के पास आ कर उस के सामने खड़ी हो गई. वह हांफते हुए बोली, ‘‘मैं ने कहा था न, मेरा नाम मरजाना है, मुझे मरना आता है.’’ गुल ने अपने बाप की ओर इशारा करते हुए  मरजाना से कहा, ‘‘यह मेरे बाबा हैं.’’ मरजाना उस के बाप के पैरों में गिर गई और बोली, ‘‘बाबा, मुझे भी अपनी बेटी बना लो, अब मैं वापस नहीं जाऊंगी.’’ समर गुल का बाप उसे देख कर भौचक्का रह गया. उस ने उसे उठाया और ध्यान से देखा. वह लड़की उस के बेटे के लिए अपना परिवार, अपना वतन सब कुछ छोड़ कर आ गई थी. लेकिन वह तुरंत संभल गया. उस ने सोचा कि यह उस आदमी की बेटी भी तो है, जिस ने मेरे बेटे पर बड़े उपकार किए हैं. 

गुल के पिता ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी इज्जत करता हूं. तुम ने मेरे बेटे से प्यार किया है, तुम जैसी लड़की लाखों में भी नहीं मिलेगी. लेकिन बेटी तुझे साथ ले जा कर मैं दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगा. लोग कहेंगे सरहद के पठान का क्या यही किरदार होता है कि जिस थाली में खाए उसी में छेद करे.’’ मरजाना गिड़गिड़ाई, ‘‘बाबा, मैं वापस नहीं जाऊंगी, आप के साथ ही चलूंगी. यह सब दुनियादारी की बातें हैं.’’

समर गुल के बाप ने मरजाना को गले लगा कर कहा, ‘‘बेटी, जरा सोचो तुम अपने बाप की इज्जत हो. अपने भाइयों की आन हो, जब दुनिया यह सुनेगी, नौरोज खान की बेटी घर से भाग गई है तो तुम्हारे बाप के दिल पर क्या गुजरेगी? एक बाप के लिए यह बात मरने के बराबर होगी.’’ उस ने कहा, ‘‘बाबा, रात मैं ने कसम खाई थी कि जो रास्ता मैं ने चुना है, उस से पीछे नहीं हटूंगी.’’

समर गुल ने बाप से कहा, ‘‘बाबा, मान जाइए. इस ने कसम खा ली है. अगर यह मेरी नहीं हुई तो अपनी जान दे देगी और फिर मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’’ बाप चुप हो गया और समर गुल का भाई व मामा भी चुप रहे. लगता था मोहब्बत जीत गई थी. मरजाना का कुत्ता बारीबारी से सब को सूंघ रहा था, जैसे सब को पहचानने की कोशिश कर रहा हो. समर गुल के बाप ने भीगी आंखों से मरजाना को गले लगा लिया और उस के सिर पर हाथ रख दिया.

शाम को इक्कादुक्का भेड़ें घर पहुंचीं, लेकिन उन के साथ मरजाना नहीं थी. कुत्ता भी गायब था, नौरोज का दिल बैठा जा रहा था. कुछ ही देर में पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि नौरोज की लड़की मरजाना घर से भाग गई.अगले दिन तक आसपास के कबीलों में यह खबर पहुंच गई. दोस्त या दुश्मन सब के लिए यह खबर दुख की थी. यह सवाल नौरोज के घर की इज्जत का ही नहीं, बल्कि पूरे कबीले की इज्जत का था. तक हर गांव से हथियारबंद लड़के पहुंचने शुरू हो गए. कबीले का जिरगा (कबीले की संसद) बुलाया गया और यह तय किया गया कि हर गांव से एक जवान चुना जाए और ये जवान चारों ओर फैल जाएं. इन्हें हर हाल में मरजाना को ले कर आना होगा. जो जवान खाली हाथ सरहद पर वापस आता दिखाई दे, उसे तुरंत गोली मार दी जाए. इसलिए 25 जवानों का दस्ता मालिक नौरोज के नेतृत्व में रवाना हो गया.

समर गुल के बाप ने अपने गांव पहुंचते ही समर गुल और मरजाना का निकाह करा दिया. अभी उन की शादी को एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि उन के गांव को चारों ओर से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग होने लगी. गांव के लोग भी चुप नहीं थे. एक कबीले के सरदार की बेटी उन की बहू बनी थी, इसलिए गोली का जवाब गोली से दिया गया. 2 दिन तक फायरिंग होती रही, दोनों ओर से कई लोग घायल भी हुए लेकिन फायरिंग बंद नहीं हुई. मरजाना के हाथों की मेहंदी का रंग अभी ताजा था, उस में अभी तक महक थी. तीसरे दिन पुलिस की भारी कुमुक पहुंच गई और बहुत मुश्किल से फायरिंग पर काबू पाया गया. लेकिन नौरोज घेरा तोड़ने को तैयार नहीं हुआ. पुलिस औफीसर ने सोचा अगर इन पर सख्ती की गई तो यह कबीला मरनेमारने पर तैयार हो जाएगा. पुलिस अधिकारी ने समझदारी से काम लेते हुए दोनों ओर के 4-4 जवानों को चुना और उन की मीटिंग बैठा दी.

समर गुल के बाप ने कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, मुझे उस का खेद है. हम पहले से ही मरजाना के पिता के सामने आंख उठा कर नहीं देख सकते. मैं उस से माफी मांगने के लिए भी पीछे नहीं हटूंगा. यह मैं किसी दबाव में नहीं कह रहा हूं बल्कि यह मेरे दिल की आवाज है. नौरोज ने हमारे ऊपर उपकार किया है, हम नौरोज से दगा करने वाले लोग नहीं हैं. अगर वह चाहे तो मरजाना के बदले मैं अपनी बेटी उस के बेटे से ब्याह सकता हूं. और अगर खून बहाना हो तो मेरे बेटे के बदले मैं अपना खून दे सकता हूं. मैं उन के साथ सरहद पर जा सकता हूं. वे मेरी हत्या कर के अपने दिल की भड़ास निकाल लें. जहां तक मरजाना का सवाल है, मेरा बेटा उसे भगा कर नहीं लाया है. हम ऐसा कर ही नहीं सकते. अब वह मेरी बहू बन चुकी है और उसे मैं किसी भी कीमत पर वापस नहीं करूंगा. बहू परिवार की इज्जत होती है.’’

जिरगे में मौजूद नौरोज खान ने कहा, ‘‘मुझे समर गुल के बाप का खून नहीं चाहिए. उस से मेरी प्यास नहीं बुझ सकती और ही उस की लड़की का रिश्ता चाहिए. उस से मेरी तसल्ली नहीं होगी. मुझे हीरेजवाहरात भी नहीं चाहिए, उन से मेरे घाव नहीं भर सकते. भागी हुई बेटी बाप की आत्मा में जो घाव लगा देती है, दुनिया की कोई दवा उसे ठीक नहीं कर सकती. थप्पड़ के बदले थप्पड़, हत्या के बदले हत्या की जा सकती है, लेकिन मैं दिल वालों से पूछता हूं, भागी हुई बेटी का बदला कोई किस तरह ले? मुझे समझाओ, मैं यहां क्या लेने आया हूं? समर के पिता को गोली मारूं, समर को गोली मारूं या अपनी बेटी को? कोई बतलाए कि मैं क्या करूं?’’ 

इतना कह कर मलिक नौरोज फूटफूट कर रोने लगा. सब ने पहली बार एक चट्टान को रोते देखा. मरजाना ने सब कुछ सुन लिया था. अपनी खुशी के लिए उस ने जो कदम उठाया था, वह अपने बाप के दुख के सामने कितना मामूली था. यह जीवन कितना अजीब है, दूसरों के लिए जीना, दूसरों के लिए मरना, उस ने समर गुल से कहा, ‘‘मेरे प्रियतम, अब मैं बहुत दूर चली जाऊंगी.’’

समर गुल कुछ नहीं बोला. उसे हक्काबक्का देखता रहा.

‘‘समर गुल,’’ उस ने रुंधी आवाज में कहा, ‘‘मुझे जाना ही होगा, मुझे मान लेना चाहिए. मैं बाप की इज्जत से खेली हूं. जीवन दूसरों के लिए होता है, मुझे आज इस का अहसास हुआ है.’’ ‘‘जो होना था, वह तो हो चुका.’’ समर गुल ने तड़प कर कहा, ‘‘गई हुई इज्जत तो गिरे हुए आंसुओं की तरह होती है, जो फिर हाथ नहीं आते.’’

‘‘हां, इज्जत वापस नहीं सकती, लेकिन मैं उस का प्रायश्चित करना चाहती हूं, मेरे जानम.’’ ‘‘तो तुम मरना चाहती हो?’’ ‘‘हां, मेरे बाप का कुछ तो बोझ हलका होगा, उस की आनबान को कुछ तो सहारा मिल जाएगा.’’ उस ने समर के सीने पर अपना सिर रख कर कहा, ‘‘यह मेरा आखिरी फैसला है, समर गुल. मेरे बाबा से कह दो, मैं उस के साथ जाने के लिए तैयार हूं.’’ जिरगे को बता दिया गया. समर गुल के बाप को बड़ी हैरत हुई. लेकिन मरजाना के बाप के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उस ने राइफल की गोलियां निकाल कर फेंक दी, जंग खत्म हो गईवे लोग मरजाना को ले कर चल दिए. पूरा गांव उदास था. आई थी तो गई ही क्यों, हर एक की जुबान पर यही सवाल था. उस के जाने का कारण समर गुल के अलावा और कोई नहीं जानता था.

अगले दिन वे सरहद पर पहुंच गए. सब लोग सरहद पर रुक गए, लेकिन मरजाना नहीं रुकी. वह आगे बढ़ती रही. अचानक गोलियां की बौछार हुई, मरजाना तड़प कर मुड़ी और गिर पड़ी. हिचकी ली, एकदो बार मुंह खोला और शांत हो गई. उस की आंखें आसमान की ओर थीं, जैसे कह रही हों, ‘मेरा नाम मरजाना है, मुझे मर जाना आता है.’

सास और बहू की शानदार दोस्ती

दीपा की शादी जब प्रताप के साथ हुई थी, तब वह बीएड की पढ़ाई कर रही थी. शादी के बाद दीपा ने टीचर की नौकरी के लिए कई बार इम्तिहान दिया, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. इस बात से दीपा का हौसला टूट रहा था. उस ने नौकरी की उम्मीद छोड़ कर इवैंट मैनेंजमैंट का काम शुरू कर दिया.

दीपा का पति एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता था. घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी, क्योंकि प्रताप के मातापिता यानी दीपा के सासससुर भी सरकारी नौकरी में थे.

दीपा की सास रंजना लखनऊ के एक महिला कालेज में नौकरी करती थीं, जबकि ससुर रमेश बैंक में नौकरी करते थे. दीपा उन की एकलौती बहू थी.

दीपा की सास चाहती थीं कि बहू खुश रहे और वह भी नौकरी करे. उन्होंने दीपा को नैट के इम्तिहान की तैयारी करने को कहा. उन के अपने अनुभव और मार्गदर्शन के चलते दीपा ने नैट क्वालिफाई कर लिया.

इस के एक साल के बाद इंटर कालेज में वेकैंसी निकली, तो दीपा ने भी नौकरी का फार्म भरा. इस बार उसे कामयाबी हाथ लग गई.

दीपा भी सरकारी कालेज में टीचर की नौकरी करने लगी. इस बीच दीपा को बेटा हुआ. दीपा की सास जैसे अपने स्कूल के बच्चों और स्टाफ को मैनेज करती थीं, वैसे ही घर को भी मैनेज करती थीं. दीपा भी सास के साथ मिल कर अपना घर और नौकरी संभाल रही थी.

दीपा जैसी कहानी रेखा की भी है. रेखा शादी के बाद ससुराल आई, तो उस की सास भी बैंक में नौकरी करती थीं. रेखा का पति बाहर नौकरी करता था.

रेखा की सास ने उसे टीचर बनने के लिए कहना शुरू किया. उन का सोचना था कि टीचर बन कर बहू अपने घर पर रहेगी और फिर बेटा भी वापस घर आ जाएगा.

सास की कोशिश ने रेखा को आगे बढ़ने के लिए तैयार किया. उसे भी स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई. रेखा के ससुर भी टीचर थे. सास बैंक में थीं और बेटा प्राइवेट दवा कंपनी में मुंबई में नौकरी करता था.

रेखा की सास कहती हैं, ‘‘बेटा बाहर नौकरी करने जाता है, तो वह वापस घर आ जाता है. जब बहू साथ जाती है, तो उन के घर वापस लौटने की उम्मीद कम हो जाती है. इस वजह से मैं सोचती थी कि जैसे मैं अपने शहर में रह कर नौकरी करती हूं, वैसे ही मेरी बहू भी करे.’’

सासबहू में झिझिक नहीं जब घर की औरतें अपने पैरों पर खड़ी होती हैं, तो उन के बीच आपस में कई तरह के झगड़े नहीं होते हैं. घर के फैसले मिलबांट कर ले लिए जाते हैं.

दीपा कहती है, ‘‘मेरे घर के फैसले लेने में मेरे पति या ससुर अपनी राय देते हैं. बाकी वे कह देते हैं कि जैसा करना है, तुम दोनों सोच लो.

‘‘जब मैं जिस जिम में जाती हूं,

तो अपनी सास को भी ले जाती हूं. हम दोनों ब्यूटीपार्लर भी साथ जाती हैं और कोशिश करती हैं कि एक के साथ एक मुफ्त वाला कोई औफर मिल जाए.

‘‘बाहर कोई भी हमें देख कर यह समझ ही नहीं पाता कि हम सासबहू हैं. कई बार हम दोस्तों की तरह हंसीमजाक करने में भी कोई परहेज नहीं करती हैं.

‘‘मेरे लिए मेरी सास गाइड भी हैं और मेरी ताकत भी हैं. मुझे लगता है कि जिस तरह से सासबहू के रिश्ते बदल रहे हैं, वह समाज के लिए एक शानदार पहल है.’’

सुखदुख की साथी

रेखा कहती है, ‘‘मेरी सास को छाती में गांठ थी. एक दिन उन्होंने मु?ो वह गांठ दिखाई. उस में दर्द नहीं था. इस वजह से उन्हें कोई चिंता नहीं थी.

‘‘मैं ने जब देखा तो उन्हें सम?ाया कि हम लोग माहिर डाक्टर से मिल लेते हैं, तो पहले तो वे तैयार नहीं हो रही थीं, फिर मैं ने उन्हें डाक्टर के ब्रैस्ट केयर को ले कर कुछ वीडियो दिखाए, तब जा कर वे तैयार हुईं.

‘‘डाक्टर ने देखा, कुछ जांचें कराईं, तो पता चला कि वह कैंसर वाली गांठ थी. हम लोग बिना देरी किए उन्हें मुंबई के टाटा अस्पताल ले गए. 3 महीने का समय लगा. हम ने छुट्टी ले ली थी. वहां इलाज चला. वे अब पूरी तरह से ठीक हैं. हम समयसमय पर चैकअप के लिए जाते हैं.

‘‘डाक्टर ने मेरी सास से कहा कि अगर आप 2-3 महीने की और देर करतीं, तो आप की ब्रैस्ट निकाल देनी पड़ती. जल्दी आने से केवल छोटा सा आपरेशन कर के काम चल गया.

‘‘मेरी सास ने तारीफ करते हुए कहा कि यह मेरी बहू की वजह से हुआ. मुझे तो तब तक नहीं पता चलता, जब तक दर्द नहीं शुरू होता. ऐसे में मुझे दिक्कत हो जाती.

‘‘इस तरह केवल मैं ही नहीं, बल्कि वे भी मेरा खयाल रखती हैं. मेरा बच्चा देर से हुआ तो मेरी सास ही डाक्टर के पास ले गई थीं. डाक्टर की 3 महीने तक दवा चली, तब मेरे पेट में बच्चा आया.’’

साथ जाती हैं घूमने

कविता और टीना सासबहू हैं. टीना कहती है, ‘‘हम दोनों को छुट्टियों में दूसरे शहर देखना ज्यादा पसंद है. हमें या तो ऐतिहासिक इमारतों वाले शहर देखने पसंद हैं या फिर पहाड़ी शहर. कई बार हमारे पति साथ नहीं जाते, वे टालमटोल करते हैं. ऐसे में हम सासबहू अकेले ही चल देती हैं. वहां मेरी सास मेरे से ज्यादा फैशनेबल बन कर रहती हैं.

‘‘मैं तो शौर्ट कपड़े पहनने से बचती हूं, लेकिन मेरी सास मौडर्न स्टाइल वाले कपड़े पहनती हैं. वे मुझे भी कहती हैं कि पहनो तो मैं थोड़ा परहेज करती हूं. एक बार हम लोगों के फोटो ससुरजी ने देखे तो वे बोले कि जिस को पूरे कपड़े पहनने चाहिए, वह आधे पहने हुए है.

‘‘मैं फ्लाइट या ट्रेन के टिकट बुक कराने, होटल, पैकेज, शहर वाला सारा काम कर लेती हूं. सारा खर्च मेरी सास खुद उठाती हैं. हम लोगों के बीच कभी भी पैसे को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ.

‘‘नौकरी करने वाली सास न केवल कामकाजी बहू की दिक्कतों को समझाती हैं, बल्कि उस की मदद भी करती हैं. मुझे लगता है कि यह सास की नौकरी से ज्यादा उन के बरताव के चलते होता है. जहां अच्छा बरताव है, वहां रिश्ते बेहतर होते हैं.’’

इन्फ्लुएंसर्स करते पौयजनस फूड का प्रचार लोग होते बीमार

कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब वायरल हुआ. वायरल वीडियो में दिखाया गया कि एक बच्चा जिस की उम्र लगभग 11-12 साल है, कुछ खा रहा है और खाते समय उस के मुंह से धुआं निकल रहा है. सामने ही एक स्टौल है जिस पर स्मोक्ड बिस्कुट लिखा हुआ है. बच्चा वहीं से बिस्कुट ले कर खा रहा है. असल में वह स्मोक्ड बिस्कुट खा रहा है.

दरअसल, स्मोक्ड बिस्कुट कोई अलग बिस्कुट नहीं है. नौर्मल बिस्कुट को ही लिक्विड नाइट्रोजन के साथ परोस दिया जाता है और इसे ही स्मोक्ड बिस्कुट कहा जाता है. असल में बच्चा वही स्मोक्ड बिस्कुट खा रहा है और बिस्कुट खाते ही बच्चे की तबीयत अचानक खराब हो जाती है. आननफानन बच्चे को हौस्पिटल ले जाया जाता है. जहां इलाज के बाद उसे घर भेज दिया जाता है. यह वीडियो कर्नाटक के दावणगेरे से आया है.

गुरुग्राम मामले में क्या हुआ

लेकिन यह कोई पहला केस नहीं है जहां कैमिकल का इस्तेमाल ठेलों, दुकानों, रैस्टोरैंटों में मिलने वाले फूड में किया जा रहा हो. इस से पहले भी खाने में कस्टमर को कैमिकल यूज्ड फूड दिया गया. अभी कुछ महीने पहले ही गुरुग्राम में एक केस आया था. जहां एक रैस्टोरैंट में डिनर करने गई फैमिली को माउथफ्रैशनर के नाम पर ड्राई आइस सर्व कर दी गई. ड्राई आइस खाते ही फैमिली के 5 लोग नेहा सबरवाल, मनिका गोयनका, प्रितिका रुस्तगी, दीपक अरोड़ा और हिमानी के मुंह से खून आने लगा. उन्हें उलटियां होने लगीं. वे दर्द से तड़पने लगे. जल्दबाजी में उन्हें हौस्पिटल ले जाया गया. जहां इलाज के बाद उन्हें घर भेज दिया गया.

जब डाक्टर से ड्राई आइस के बारे में बात की गई तो डाक्टर ने आशुतोष शुक्ला को बताया, ‘जब इन 5 लोगों ने ड्राई आइस के टुकड़े खाए तो ठंड के कारण उन के मुंह में अल्सर हो गया और उस से खून आना शुरू हो गया. इसी वजह से उन की हालत खराब हुई.’

इन दोनों घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि स्वाद के चक्कर में सेहत के साथ खिलवाड़ करना कितना महंगा साबित हो सकता है.

क्या है ड्राई आइस

बात करें अगर ड्राई आइस की तो ड्राई आइस जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि इसे सूखी बर्फ कहते हैं. जिस का टैंपरेचर 80 डिग्री तक होता है. यह सौलिड कार्बन डाइऔक्साइड से बना होता है. इसे आप आसान भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि नौर्मल बर्फ को जब आप मुंह में रखते हैं तो वह पिघलने लगती है. जब नौर्मल बर्फ पिघलती है तो पानी में बदलने लगती है. वहीं ड्राई आइस पिघलती है तो वह सीधी कार्बन डाइऔक्साइड गैस में बदल जाती है. यह अकसर मैडिकल स्टोर, किराने के सामान को स्टोर करने के लिए किया जाता है. इस का इस्तेमाल फोटोशूट और थिएटर के दौरान भी किया जाता है.

ड्राई आइस इतनी खतरनाक है कि पेट में जाते ही वहां छेद बना देती है, जो काफी जानलेवा साबित हो सकता है. जब यह कार्बन डाइऔक्साइड गैस में बदल जाती है तो मुंह के आसपास के टिश्यूज और सेल्स को नुकसान पहुंचाती है.

लिक्विड नाइट्रोजन कितना खतरनाक

लिक्विड नाइट्रोजन कितना खतरनाक है, इस का अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है.  2017 में दिल्ली में एक व्यक्ति ने गलती से ऐसी ड्रिंक पी ली थी जिस में लिक्विड नाइट्रोजन था. व्यक्ति को ड्रिंक से निकल रहे धुएं को हटाने के बाद उसे पीना था लेकिन उस ने धुएं हटने का इंतजार नहीं किया और उसे ऐसे ही पी लिया. इस के बाद उस व्यक्ति के पेट में दर्द हुआ और बाद में सर्जरी में पता चला कि उस के पेट में एक बड़ा छेद हो चुका है.

लिक्विड नाइट्रोजन और ड्राई आइस दोनों पदार्थों के नाम से ही सम?ा आता है कि लिक्विड नाइट्रोजन तरल होता है और ड्राई आइस ठोस. ड्राई आइस का तापमान -78.5 डिग्री सैल्सियस तक होता है. वहीं लिक्विड नाइट्रोजन इस से भी ज्यादा ठंडी होती है और इस का तापमान -196 डिग्री सैल्सियस तक हो सकता है. दोनों पदार्थों का इस्तेमाल खानेपीने की चीजों में स्मोक इफैक्ट देने के काम में किया जाता है.

कितने खतनाक हैं ये

2018 में अमेरिकी सरकार के फूड एंड ड्रग विभाग ने खानपान में लिक्विड नाइट्रोजन और ड्राई आइस के इस्तेमाल को ले कर एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ड्राई आइस या लिक्विड नाइट्रोजन का इस्तेमाल सावधानी से न किया जाए तो अत्यधिक कम तापमान की वजह से यह घातक हो सकता है. इन्हें सीधेतौर पर खाना नहीं चाहिए. इस से स्किन और हमारे इंटरनल और्गन को नुकसान पहुंच सकता है.

लेकिन फिर भी दिनबदिन रासायनिक पदार्थों का खानपान में इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और इन को बढ़ावा देने वाला और कोई नहीं, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों का ग्रुप है, जो खुद को फूड व्लौगर कहते हैं. ज्यादा व्यूज बटोरने के लिए ये दुकानदारों को उकसाते भी हैं कि अलग और बेढंगी चीजें बनाएं, उस के लिए ऊटपटांग फ्यूजन किए जाते हैं. दुकानदार भी ज्यादा वायरल होने के चक्कर में कुछ भी चीजें खाने में इस्तेमाल करते हैं, ताकि लोगों का ध्यान अनोखेपन पर जाए.

एक्सपैरिमैंटल फूड

सोशल मीडिया पर ये इन्फ्लुएंसर्स आएदिन ऐसे फूड स्टौल और रैस्टोरैंट को कवर करते हैं जो फ्यूजन के नाम पर कुछ भी बना रहे हैं, जैसे फेंटा मैगी, दही मैगी, चौकलेट पकोड़ा, पेस्टी मैगी, कौफी आइसक्रीम, गुलाबजामुन के पकौड़े, चुकंदर से बनी चाय, चौकलेट मोमोस, चौकलेट डोसा और न जाने क्याक्या. ये शरीर में जा कर कैसा प्रभाव छोड़ रहे हैं, इस पर कोई बात नहीं करता. इन क्या दिक्कतें हो रही हैं. इस पर कोई बात नहीं करता.

बहुत जगह दुकानदार वायरल होने के चक्कर में भरभर कर बटर, तेल, घी डाल कर दिखाता है. कोई आम इंसान जो नौर्मल या कहें घर का सिंपल खाना खाने वाला हो, इसे खा ले तो उस का सिर चकरा जाए, पैसे अलग उस के कुएं में जाएं.

मूक क्यों खाद्य विभाग

क्या फूड सेफ्टी एंड स्टेटैंडर्ड अथौरिटी औफ इंडिया (एफएसएसएआई) को इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिए? क्यों यह विभाग इस पर चुप है? जिस तरह सोशल मीडिया पर खाने से संबंधित ऊटपटांग चीजें वायरल होती रहती हैं, घटिया चीजें परोसी जाती हैं, क्या यह फूड सिक्योरिटी औफिसर की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह ध्यान दे कि मैगी के साथ कोल्डड्रिंक का छौंका हैल्थ के लिए नुकसानदेह तो नहीं?

दरअसल, ये फूड औफिसर भी चीजों को चलता करने के मूड में रहते हैं या दुकानदारों से लेदे कर मामला रफादफा करते हैं. उन्हें नागरिकों की हैल्थ की परवा नहीं होती. सड़क के किनारे एक व्यक्ति ठेला खोल कर गरीबों को सस्ते में स्वाद वाला खाना तो दे रहा है पर साथ में बीमारियां भी दे रहा है. आम लोग कुछ कहते नहीं क्योंकि हर नुक्कड़, चौराहे पर यही कचरा परोसा जा रहा है.

फूड व्लौगर का साथ

फूड एक्सपैरिमैंट करने वाले दुकानदारों को फूड इन्फ्लुएंसर्स ने आसमान पर बैठा लिया है. जहां कहीं भी देखो, ये व्लौगर अपना कैमरा उठा कर चालू हो जाते हैं. न तो इन्होंने खाने की क्वालिटी चैक करने का कोर्स कर रखा है, न ही ये फूड की वैराइटीज के बारे में ज्यादा जानकारी रखते हैं. अब इन को क्या पता कि स्मोक्ड बिस्कुट किस एज ग्रुप के लिए है. इन्हें क्या पता कि स्मोक्ड बिस्कुट को कितनी देर बाद खाना चाहिए? इन्हें क्या पता कि इसे खाने के बाद ठंडा पानी पीना चाहिए या नहीं?

सच बात तो यह है कि इन्फ्लुएंसर को एक्सपैरिमैंटल फूड की सिर्फ वीडियो नहीं बनानी चाहिए बल्कि उस के फायदे और नुकसान भी बताने चाहिए. तभी वह एक अच्छा जानकारी देने वाला मार्गदर्शक कहलाएगा.

‘लीप ईयर में’ 29 फरवरी को महिलाओं को क्यों बच्चा पैदा करने से किया जाता है मना

अंग्रेजी कैलेंडर की गणना सूर्य वर्ष के आधार पर की जाती है. इस कैलेंडर को ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ कहा जाता है और इस का पहला महीना जनवरी होता है. इसी ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के हिसाब से साल में 365 दिन होते हैं और हर 4 साल बाद लीप ईयर आता है, जिस में 365 की बजाय 366 दिन हो जाते हैं.

एक दिन बढ़ने की यह वजह

दरअसल, पृथ्‍वी को सूर्य का चक्‍कर लगाने में 365 दिन और करीब 6 घंटे लगते हैं और तब जा कर एक सूर्य वर्ष पूरा होता है और नया साल शुरू होता है. ये 6-6 घंटे की अवधि जुड़ते हुए 4 सालों में पूरे 24 घंटे की हो जाती है और 24 घंटे का एक पूरा दिन होता है. इस एक्‍सट्रा दिन को फरवरी में जोड़ दिया जाता है. यही वजह है कि हर चौथे साल में फरवरी 29 दिनों की होती है.

इस दिन से जुड़े मिथक और अंधविश्वास

चूंकि यह 29 तारीख 4 साल में एक बार आती है तो इसे अजूबा मान लिया जाता और फिर इस से जुड़े कई मिथक जन्म ले लेते हैं, जो धीरे धीरे अंधविश्वास में बदल जाते हैं.

29 फरवरी से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि इस दिन जनमे बच्चे बड़े विलक्षण होते हैं. लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नहीं है. केवल 4 साल में एक बार जन्मदिन आने से किसी का विलक्षण होना अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं है.

महिलाओं को बच्चा पैदा करने की मनाही

कई देशों खासकर स्कॉटलैंड में ऐसा माना जाता है कि महिलाओं के लिए 29 फरवरी भी एक बहुत ही सफल दिन हो सकता है, क्योंकि हर 4 साल में एक बार 29 फरवरी को उन्हें किसी पुरुष को प्रपोज करने का ‘अधिकार’ होता है.

इस ‘अधिकार’ की भी गजब कहानी है. काफी साल पहले ‘लीप ईयर’ के दिन को अंग्रेजी कानून में कोई मान्यता नहीं थी (उस दिन को ‘लीप ओवर’ कर दिया गया था और नजरअंदाज कर दिया गया था, इसलिए इसे ‘लीप ईयर’ कहा गया). लिहाजा यह निर्णय लिया गया कि उस दिन की कोई कानूनी स्थिति नहीं है, जिस का अर्थ है कि इस दिन परंपरा को तोड़ना स्वीकार्य है.

किंवदंती है कि 5वीं शताब्दी में किल्डारे के सेंट ब्रिगिड ने कथित तौर पर सेंट पैट्रिक को प्रस्ताव दिया था कि महिलाओं को 4 साल में एक बार अपने डरपोक प्रेमी को प्रपोज करने का अधिकार देना चाहिए. इस की इजाजत भी दी गई थी और आज भी बहुत सी महिलाएं यह रिवाज निभाती दिख जाती हैं.

स्कॉटिश अंधविश्वास का मानना ​​है कि 29 फरवरी को किसी मां का अपने बच्चे को जन्म देना दुर्भाग्यपूर्ण है. इस दिन की तुलना 13वें शुक्रवार से की जाती है, जिसे एक अशुभ दिन के रूप में भी देखा जाता है. इस 13 तारीख को इसे अंग्रेजी में ‘फ्राइडे द थर्टिंथ’ कह कर दुर्भाग्य से जोड़ा जाता है. बहुत से लोगों का मानना है कि यह दिन और तारीख जब भी मिलते हैं तो दुर्भाग्य पैदा करते हैं. इस दिन और तारीख के संयोग को अशुभ मान कर लोग घर से बाहर निकलने तक से घबराते हैं.

‘लीप डे’ यानी 29 फरवरी पर किसी पुरुष को प्रपोज करना ठीक है, लेकिन उसी दिन के बारे में यूनानियों का मानना ​​है कि ‘लीप डे’ पर शादी करना बेहद अशुभ होता है और यदि आप लीप डे’ पर तलाक लेते हैं, तो आप को कभी भी दोबारा प्यार नहीं मिलेगा.

बीमारियों से बचाता है सैनेटरी पैड

माहवारी के दिनों में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनेटरी पैड का इस्तेमाल दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. इस के बाद भी गांवदेहात में इस का इस्तेमाल कम ही हो रहा है जिस से वहां की लड़कियों और औरतों को सेहत से जुड़ी तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस संबंध में डाक्टर सुनीता चंद्रा से बात की गई. पेश हैं, उसी बातचीत के खास अंश:

गांवदेहात में लड़कियों और औरतों में सैनेटरी पैड का कितना इस्तेमाल बढ़ा है?

पिछले कुछ साल से गांवों में सेहत के लिए काम करने वाले लोगों ने सैनेटरी पैड के इस्तेमाल को ले कर जागरूकता फैलाने का काम शुरू किया है. इस से लड़कियों और नई शादीशुदा औरतों में सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करने की आदत बढ़ी है. इस के बावजूद वहां 70 से 85 फीसदी औरतें और लड़कियां इस का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं.

आज भी गांवदेहात में रहने वाली ज्यादातर लड़कियां और औरतें माहवारी के दिनों में सैनेटरी पैड की जगह पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं.

वे सैनेटरी पैड की जगह पुराने कपड़े क्यों इस्तेमाल करती हैं?

पुराना कपड़ा घर में ही मिल जाता है और सस्ता पड़ता है. कई बार तो जब खून का बहाव ज्यादा होता है तो वे कपड़े के अंदर और कई कपड़े भर लेती हैं. कई बार जब नए कपड़े नहीं मिलते हैं तो वे पहले इस्तेमाल किए गए कपड़ों को धो कर दोबारा इस्तेमाल कर लेती हैं. कई बार तो वे कपड़े के अंदर चूल्हे की राख या बालू भर कर अंग पर बांध लेती हैं. इस की वजह से वे कई तरह की बीमारियों की शिकार हो जाती हैं.

माहवारी में सैनेटरी पैड का इस्तेमाल न करने से किस तरह की बीमारियां हो सकती हैं?

गंदे कपड़ों का इस्तेमाल करने से उस जगह पर खुजली होती है, दाने और लाल चकत्ते पड़ने लगते हैं. धीरेधीरे गंदगी से इंफैक्शन अंदर तक पहुंच जाता है. इस से सफेद पानी आना, ल्यूकोरिया और दूसरी तरह की तमाम बीमारियां लग सकती हैं. ये बीमारियां औरत के मां बनने की कूवत पर बुरा असर डालती हैं. कई बार तो उन को बांझपन का दंश झेलना पड़ता है. यह इंफैक्शन कैंसर की वजह भी बन जाता है.

society

माहवारी के दिनों में औरतों को सामाजिक रूप से किस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है?

माहवारी के दौरान औरतों को अछूत सा समझा जाता है. इस वजह से माहवारी के संबंध में बात करने को भी गलत माना जाता है. जब किसी औरत को माहवारी आती है तो उस के साथ भेदभाव सा होता है.

कई घरों में उस को सोने के लिए अंधेरे कमरे में बिस्तर लगा दिया जाता है. उस को किसी दूसरे घर वाले के साथ उठनेबैठने नहीं दिया जाता है. साफसफाई रखने के बजाय उसे नहाने नहीं दिया जाता है. सामान्य खाने की जगह रूखासूखा खाना दिया जाता है. रसोई में जाने से मना किया जाता है.

माहवारी में इस्तेमाल किए गए कपड़े या सैनेटरी पैड को किस तरह से नष्ट किया जाता है?

आमतौर पर इन को बाहर खुले में फेंक दिया जाता है जिस से ये गंदगी फैलाने की वजह बनते हैं. जो औरतें खुले में शौच के लिए जाती हैं वहीं फेंक देती हैं. कुछ समझदार औरतें इन को मिट्टी के बड़े बरतन में रख देती हैं. बरतन ऊपर से बंद कर दिया जाता है. हवा आनेजाने के लिए बरतन में छेद कर दिया जाता है. कुछ दिन बाद जब कपड़े सूख जाते हैं तो खेत या खुली जगह में ले जा कर जला दिया जाता है. शहरों में इन को ठीक तरह से कूड़ेदान में फेंक देना चाहते है.

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