अभिनय का पेश इस कदर असुरक्षा वाला है कि हर कलाकार खुद को सफल बनाने के लिए निरंतर संघर्ष करता रहता है. एक फिल्म की सफलता के बाद भी अगली फिल्म की सफलता की कोई गारंटी नही होती. परिणामतः कलाकार अपनी निजी जिंदगी और करियर के बीच सामंजस्य बैठाने के चक्कर में न सिर्फ बीमार पड़ते हैं, बल्कि डिप्रेशन का भी शिकार होेते रहते हैं. दीपिका पादुकोण सहित कई अभिनेत्रियां डिप्रेशन का शिकार हो चुकी हैं. उन्ही में से एक हैं चर्चित फिल्म व टीवी अदाकारा शमा सिकंदर.
जो कि डिप्रेशन के ही चलते चार पांच वर्ष तक अभिनय व अपने दोस्तों से भी दूर रहीं. मगर वह डिप्रेशन से छुटकारा पाने में सफल हुईं,और नए सिरे से अपने अभिनय करियर को संवारने के साथ ही निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख चुकी हैं. इन दिनों वह एक नवंबर को प्रदर्षित होने जा रही नमन नितिन मुकेश की रहस्य व रोमांच से भरपूर फिल्म ‘बाय पास रोड’’ को लेकर चर्चा में हैं. इस फिल्म में शमा सिकंदर के साथ नील नितिन मुकेश, अदा शर्मा, रजित कपूर, सुधांषु पांडे व गुल पनाग जैसे कलाकार हैं.
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हाल ही में जब फिल्म ‘‘बाय पास रोड’’ के प्रमोशन के दौरान शमा सिकंदर से एक्सक्लूसिब मुलाकात हुई, तो शमा सिकंदर से उनके डिप्रेशन में जाने की वजहें और उससे उबरने को लेकर लंबी बातचीत हुई.
इन दिनों अभिनेत्रियों के डिप्रेशन में जाने की काफी खबरें आ रही हैं. बीच में चार साल तक आप भी डिप्रेशन की शिकार रहीं. ऐसा क्या हो गया था कि आप डिप्रेशन में चली गयी थी?
– किसी भी इंसान के डिप्रेशन में जाने की तमाम वजहें होती हैं. कैरियर व जिंदगी के उतार चढ़ाव अथवा छोटी उम्र में हुआ कोई ट्रोमा, जो कि दिमाग में बस जाते हैं. जब आप दो वर्ष या चार वर्ष या सात वर्ष के बच्चे होते हैं. उस वक्त आपका दिमाग विकसित हो रहा होता है. एक कच्ची मिट्टी की तरह, जिसमें कोई भी इंप्रेशन जमकर बैठ जाता है, तो उसको बदलने के लिए बहुत समय चाहिए होता है.
पहली बात तो यह होती है कि पता चलना चाहिए कि बदलना क्या है? इस बात को समझने में ही इंसान की आधी उम्र निकल जाती है. इस मामले में मैं लकी थी. मैं जान गई थी कि मुझे बदलने की जरूरत है. डिप्रेशन इसीलिए होता है कि वह आपको याद दिला रहा होता है कि आपकी क्षमता क्या है और आप बन क्या गए हो.
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दिमाग कहता है कि मेरा पोटेंशियल मुझे दे दो. मैं इस चीज को डिजर्व करता हूं. तो डिप्रेशन की मूल वजह यही होती है. बचपन के सारे ड्रामे आज जब आपको हिट करने लगते हैं, तो आप डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. क्योंकि आपकी जिंदगी में बहुत कुछ चलता रहता है.
कुछ बताना चाहेंगी, क्या खास था?
– नहीं! ऐसा कुछ खास नहीं था. जब हुआ,उस वक्त सब कुछ अच्छा ही था. मैं तो शौक हो गई कि ऐसा क्यों हुआ? हमारी आदत यह है कि हम हमेशा टेंपरेरी/क्षणिक दुःख के कारण को ढूंढने में ही लगे रहते हैं. जो दुःख लंबे समय से चला आ रहा है, उसे हम भूल जाते हैं. वह पीछे रह जाता है. यह डिप्रेशन लंबे समय से चले आ रहे दुःख का है. यह एक दिन इतना बढ़ जाता है कि फिर आपको समझ नहीं आता कि क्या करें?उस हमारी कंडीशनिंग/हालत भी ऐसी है कि हमें सिखाया जाता है कि सच मत बोलो.
सच कह रही हूं. वास्तव में हमें सिखाया जाता है कि सच मत बोलो. जबकि हमसे कहा जाता है कि सच बोलना चाहिए. लेकिन हमें सिखाते हैं कि सच मत बोलो. क्योंकि करनी में सत्य नहीं होता. जब करनी में सत्य नहीं हैं, तो इंसान वही सीखेगा. बड़ों की सीख पर जब सच बोलते हैं, तो थप्पड़ पड़ता है. इसलिए यह जो कंडीशनिंग है, उसको मिटाना जरुरी है. ऐसा करना आसान नही होता. वक्त लगता है. तो डिप्रेशन के बहुत से कारण हैं.
डिप्रेशन से बाहर निकलने के लिए आपने क्या रास्ता अपनाया?
– मेडीटेशन किया.डौक्टर की मदद ली. बहुत सारी दवाइयां खानी पड़ी. इसके अलावा सबसे ज्यादा मदद थेरेपी ने की. डीप मेडीटेशन करना ही होता है. डौक्टर आपके सीक्रेट्र के साथ आपको आपके वही पुराने ट्रौमा से एक बार फिर से ‘फेस टू फेस’ कराकर उन बातों को आपके दिमाग से साफ करने में मदद करते हैं. तभी आप आगे बढ़ सकते हैं, अन्यथा नहीं बढ़ पाएंगे. अगर आप मुझसे कहेंगे कि मैं बदल गया हूं मैं मान ही नहीं सकती. क्योंकि इतने साल की जो कंडीशनिंग है, उसको बदलना इतना आसान नहीं है. इसी के चलते मैंने चार-पांच वर्ष तक काम बंद कर दिया. दोस्तों से भी नहीं मिलती थी. मैं बिल्कुल अपने अंदर ही घुस गई.
मेरे अंदर सिर्फ एक ही जिद थी कि मुझे हर हाल में इससे बाहर निकलना है. इतना डिप्रेशन था कि मैं मरने के कगार पर आ गई थी. फिर भी अंदर से आवाज आती थी कि नहीं, तुम इससे बाहर निकल सकती हो. तुम इससे ज्यादा मजबूत हो. मैं हर किसी को सलाह देना चाहूंगी कि अगर आपको लगता है कि जिंदगी खत्म हो गई या बर्बाद हो गई है, तो आप इस बात को भी समझ लें कि आप इससे ज्यादा मजबूत हैं. यह आपका अंत नहीं बल्कि आपकी एक नई शुरुआत है.
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अंत का मतलब यह नहीं है कि आपको लिटरली अपने आप को खत्म करना है. अंत का मतलब यह है कि आपको अगर कोई चीज नहीं समझ में आ रही, तो उसका खात्मा कीजिए. अगर आपको अपने अंदर का कोई किरदार समझ नही आ रहा है, तो आप उस किरदार का खात्मा करिए. आप अपने आपको एकदम से बदल लें, जिस तरह से हम कलाकार फिल्म दर फिल्म करते हैं. आप यह न भूले कि हमारी सोच में इतनी ताकत है कि हम जो चाहें, वह बन सकते हैं.