धारा 370: किस तरफ चली कांग्रेस की धारा

कश्मीर में धारा 370 के हटने से वहां के लोगों का कितना भला या बुरा होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन कांग्रेस की धारा किस तरफ जा रही है, यह बड़ी चिंता की बात है. उस के नेता एक सुरताल में कतई नहीं दिख रहे हैं.

राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद को छोड़ कर और किसी गैर गांधी परिवार वाले को इस की कमान सौंपने का जो सपना देश की जनता को दिखाया था वह सोनिया गांधी को फिर से अंतरिम अध्यक्ष चुन कर तोड़ दिया गया है, जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच से लबरेज भारतीय जनता पार्टी मजबूत होती जा रही है.

शनिवार, 10 अगस्त, 2019 को कांग्रेस हैडक्वार्टर में दिनभर मचे घमासान में अध्यक्ष का फैसला नहीं हो सका था. राहुल गांधी को मनाने की पुरजोर कोशिश हुई, पर वे अध्यक्ष न बनने पर अड़े रहे. इस के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया गया और राहुल गांधी का लंबित चल रहा इस्तीफा भी स्वीकार कर लिया गया.

आज से कई साल पहले भारत की ज्यादातर जनता इस तरह की खबरों पर इतना ज्यादा ध्यान नहीं देती थी, लेकिन राजनीति से जुड़े लोग या विपक्षी दलों वाले ऐसे फेरबदल पर पैनी नजर रखते थे. चूंकि अभी कांग्रेस विपक्ष में है और राहुल गांधी किसी भी तरह से अपनी पार्टी में नई जान नहीं फूंक पा रहे थे इसलिए लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद उन्होंने तकरीबन ऐलान कर दिया था कि अगला अध्यक्ष कोई गैर कांग्रेसी होगा, ताकि जनता यह भरम अपने दिल से निकाल दे कि कांग्रेस का मतलब गांधीनेहरू परिवार ही है.

पर अफसोस, ऐसा हो न सका. पहले तो लोगों ने सोचा कि क्या पता राहुल गांधी ही अपनी जिद छोड़ देंगे या फिर वे प्रियंका गांधी के नाम पर सहमत हो जाएंगे. कुछ के दिमाग में यह भी चल रहा था कि शायद कांग्रेस किसी युवा चेहरे को जनता के सामने ले आए, पर जब कहीं कोई बात नहीं बनी तब सोनिया गांधी को कांटों का हार पहना दिया गया.

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कभी इंदिरा गांधी को ले कर हवा बनाई गई थी कि ‘इंदिरा इज इंडिया’ और अब आज ऐसा ही कुछ सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद महसूस हुआ है. लेकिन यह बात कांग्रेस के दोबारा फलनेफूलने में बड़ी बाधा साबित हो सकती है.

ऐसा कहने की एक बहुत बड़ी और खास वजह है. अभी जब भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने जम्मूकश्मीर से धारा 370 को हटाया तो इस ज्वलंत मसले पर भी कांग्रेस बंटी हुई दिखाई दी.

गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे पर बड़ी बेबाकी से अपनी राय रखी थी और लगा था कि कांग्रेस अब इस मसले को हवा दे कर लोगों को यह बताने में कामयाब हो जाएगी कि जबरदस्ती के थोपे गए इस फैसले पर वह जनता के साथ है.

लेकिन बाद में इसी पार्टी के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई दूसरे नेताओं जैसे जनार्दन द्विवेदी, भुबनेश्वर कलिता, दीपेंद्र हुड्डा, मिलिंद देवड़ा, कर्ण सिंह और रंजीता रंजन ने धारा 370 पर केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन कर दिया था.

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर के कहा था कि जम्मूकश्मीर और लद्दाख को ले कर उठाए गए कदम और भारत देश में उन के पूरी तरह से एकीकरण का समर्थन करता हूं. संवैधानिक प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन किया जाता तो बेहतर होता.

कुछ साल पहले तक सोनिया गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले जनार्दन द्विवेदी ने तो दो हाथ आगे बढ़ कर इस मुद्दे पर कहा, ‘मैं ने राम मनोहर लोहियाजी के नेतृत्व में राजनीति शुरू की थी. वे हमेशा इस धारा के खिलाफ थे. आज इतिहास की एक गलती को सुधार लिया गया है.’

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भुबनेश्वर कलिता को कश्मीर मुद्दे को ले कर ह्विप जारी करना था लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कहा कि सचाई यह है कि देश का मिजाज पूरी तरह से बदल चुका है और यह ह्विप देश की जन भावना के खिलाफ है.

भुबनेश्वर कलिता ने जवाहरलाल नेहरू का भी जिक्र किया और कहा कि पंडितजी तो खुद धारा 370 के खिलाफ थे और उन्होंने कहा था कि एक दिन घिसतेघिसते यह खत्म हो जाएगी. आज कांग्रेस की विचारधारा से ऐसा लगता है कि पार्टी खुदकुशी करना चाहती है और मैं इस का भागीदार नहीं बनना चाहता हूं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह राहुल गांधी के बेहद करीब माने जाने वाले हरियाणा के युवा कांग्रेसी नेता दीपेंद्र हुड्डा ने धारा 370 के मुद्दे पर कांग्रेस को गच्चा दे दिया. उन्होंने जम्मूकश्मीर से धारा 370 हटाने और राज्य को 2 केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बांटने के सरकार के कदम का समर्थन करते हुए कहा कि यह फैसला देश की अखंडता और जम्मूकश्मीर के हित में है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह उन की निजी राय है.

कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद रंजीता रंजन ने कहा कि कांग्रेस पार्टी विपक्ष में है लेकिन विपक्ष में होने का मतलब यह नहीं है कि सरकार के हर फैसले का विरोध किया जाए. धारा 370 को हटना ही चाहिए. यह तो पहले से तय था कि धारा 370 को हटाना है. आज अगर उसे हटा दिया गया है तो यह सही फैसला है.

कांग्रेस नेता कर्ण सिंह ने धारा 370 के हटाए जाने पर कहा कि निजी तौर पर मैं इस फैसले के विरोध में नहीं हूं. इस के कई फायदे हैं. हालांकि, मैं इस को ले कर संसद द्वारा अचानक लिए गए फैसले से हैरान हूं. इस का अलगअलग लैवलों पर असर होगा, मेरी पूरे हालात पर नजर है. लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने का मैं स्वागत करता हूं.

साल 1965 में मैं ने खुद भी राज्य के पुनर्गठन की बात कही थी. नए परिसीमन के बाद पहली बार जम्मूकश्मीर रीजन में राजनीतिक शक्ति का सही से बंटवारा होगा.

युवा कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने इस मुद्दे पर कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि धारा 370 को उदार बनाम रूढि़वादी बहस में तबदील कर दिया गया. कांग्रेस पार्टी को अपनी विचारधारा से अलग हट कर इस पर चर्चा करनी चाहिए कि भारत की अखंडता और जम्मूकश्मीर में शांति बहाली कश्मीरी युवाओं को नौकरी और कश्मीरी पंडितों के न्याय के लिए बेहतर क्या है.

भारत पर इतने साल राज करने वाली कांग्रेस की इतनी बुरी हालत कभी नहीं हुई थी. अब जब भाजपा अपना राष्ट्रवादी एजेंडा देश पर थोप देना चाहती है तब अगर इस पार्टी के नेता यों अपने निजी विचार लोगों के सामने रखेंगे तो सोशल मीडिया के इस जमाने में कांग्रेस को और ज्यादा रसातल में जाने से कोई नहीं बचा पाएगा.

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नेताओं में विचारों की यह फूट सोनिया गांधी और राहुल गांधी के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा रही है. सब से अहम सवाल तो यह है कि जो युवा नेता जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, दीपेंद्र हुड्डा राहुल गांधी के साथ जुड़ कर ताकतवर हो रहे थे, क्या वे उन के इस्तीफे के बाद कमजोर तो नहीं पड़ गए हैं या वे अपनेअपने राज्य के लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि देशहित से जुड़े धारा 370 के मुद्दे पर वे जनता की भावनाओं का सम्मान करते हैं, ताकि उन की सियासी जमीन न सरक जाए?

कांग्रेस के साथ दिक्कत यह रही कि जम्मूकश्मीर पुनर्गठन बिल पर वह भाजपा को दमदार तरीके से घेर न सकी. गुलाम नबी आजाद और शशि थरूर ने जरूर पार्टी के विचारों को जनता के सामने रखा था और जता दिया था कि देशभक्ति के नाम पर सरकार की मनमानी नहीं चलेगी, पर कांग्रेस के ही नेता अधीर रंजन चौधरी ने इसे भारत का आंतरिक मामला न कहते हुए पूरा खेल ही बिगाड़ दिया जिस से जनता को पता चलता कि क्यों कांग्रेस इस मसले पर अपना विरोध जाहिर कर रही है.

इस सब में एक बात और बेहद जरूरी है कि अब राहुल गांधी के भविष्य का क्या होगा? जो नेता उन के अध्यक्ष बनने के बाद हाशिए पर चले गए थे, वे सोनिया गांधी के दोबारा मजबूत होने से मन ही मन खुश हो रहे होंगे कि उन को अब दोबारा तवज्जुह मिलने लगेगी. अब तो राहुल गांधी के इस तरह अपने पद को छोड़ने के बाद उन की वापसी की राह भी मुश्किल हो जाएगी.

इस का सब से बड़ा फायदा अब प्रियंका गांधी को मिल सकता है, क्योंकि सोनिया गांधी के पास अब विकल्प के रूप में सिर्फ वे ही कांग्रेस का नया चेहरा बचती हैं. अगर सोनिया गांधी ज्यादा समय तक इसी तरह अंतरिम अध्यक्ष पद पर बनी रहीं तो फिर प्रियंका गांधी के लिए कांग्रेस की कमान संभालने में और ज्यादा आसानी रहेगी.

वैसे, अपने एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने बताया कि किस तरह उन्होंने सुझाव दिया है कि चुनाव से कांग्रेस का अध्यक्ष तय किया जाए. उन्होंने इंगलैंड की कंजर्वेटिव पार्टी का उदाहरण देते हुए कहा कि उस की हालत हमारी पार्टी की हालत से भी कमजोर थी. उस हालत में उन्होंने जब चुनाव किया तो उस प्रक्रिया से लोगों के मन में भी कंजर्वेटिव पार्टी को ले कर दिलचस्पी जगी. कांग्रेस में भी ऐसा ही किया जाएगा तो पूरे देश का ध्यान कांग्रेस पर होगा कि कौन जीत रहा है, कौन हार रहा है. कार्यकर्ताओं को भी लगेगा कि अध्यक्ष उन्होंने तय किया है और इस से उन्हें मोटिवेशन मिलेगा.

इस के अलावा पिछले कुछ समय से कांग्रेस में जो गलतियां हुई हैं, उन से इस के नेताओं ने कोई खास सबक लिया नहीं है. उन्होंने सरकार के खिलाफ तो बहुतकुछ कहा, पर वे जनता तक अपना संदेश पहुंचाने में ज्यादा कामयाब नहीं रहे, जबकि भारतीय जनता पार्टी आज के समय में बहुत ज्यादा प्रोफैशनल हो चुकी है. उस के कार्यकर्ता बहुत ज्यादा संगठित हैं. मजबूत सोशल मीडिया सेल है. फंड भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है. नरेंद्र मोदी अपनी मार्केटिंग बड़े जबरदस्त तरीके से करते हैं.

कांग्रेस ने इन बातों को हलके में लिया, जबकि उसे भी यह सब करना चाहिए था, लेकिन शायद कांग्रेस को लगा कि उसे मार्केटिंग की जरूरत नहीं है, क्योंकि उस की जनता में बहुत ज्यादा पैठ है और लोग नरेंद्र मोदी को जुमलेबाज समझ कर इन लोकसभा चुनावों में नकार देंगे, पर ऐसा हो न सका.

अब भारतीय जनता पार्टी ने जम्मूकश्मीर से धारा 370 हटा कर यह जताने की कोशिश की है कि वह जो कहती है, कर के दिखाती है. यह मुद्दा अब कांग्रेस से हैंडल नहीं हो पा रहा है, क्योंकि उस के कई नेता इस फैसले के पक्ष में दिखाई दिए हैं.

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कोढ़ पर खाज तो यह है कि कांग्रेस की इस सियासी बेमेल खिचड़ी को सोशल मीडिया भी चटकारे लेले कर खा रहा है. लोगों को भाजपा से उतना प्रेम नहीं है, जितनी कोफ्त कांग्रेस की वैचारिक टूट से हो रही है. मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गजों का मीडिया के सामने बचकाना रुख अपनाना जनता को कतई रास नहीं आ रहा है. कांग्रेस को इस का सब से ज्यादा नुकसान उन जगहों पर उठाना पड़ सकता है जहां आने वाले समय में राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं.

लालबहादुर शास्त्री के बेटे और कांग्रेसी नेता अनिल शास्त्री ने धारा 370 को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस को चेताते हुए कहा, ‘कांग्रेस को अवश्य ही लोगों के मन को भांपना चाहिए और फिर कोई रुख अख्तियार करना चाहिए. इस मुद्दे पर लोग पूरी तरह से सरकार के साथ हैं. हम ने मंडल (कमीशन) का विरोध किया और उत्तर प्रदेश व बिहार को गंवा दिया और अब भारत को खोने का खतरा मोल नहीं लेना चाहिए.’

अनिल शास्त्री की यह देश गंवाने की चिंता जायज भी है क्योंकि अगर भाजपा अगले कुछ साल और इसी तरह देश पर राज करती रही तो वह राष्ट्रभक्ति के नाम पर ऐसेऐसे बड़े फैसले ले लेगी जो जनता को दिवास्वप्न में रखेंगे और जब तक जनता जागेगी तब तक चिडि़या खेत चुग चुकी होगी. शायद तब तक कांग्रेस की सियासी जमीन भी बंजर हो चुकी होगी, इसलिए कांग्रेस को अपने भीतर लगा यह आपातकाल जल्दी ही हटाना होगा.

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