विवाह में शर्तें उचित या अनुचित, बरतें सावधानी

Society News in Hindi: मेरी एक परिचिता की बेटी को लड़के वाले देखने आए. सारी बातें पक्की हो जाने के बाद जब लड़का व लड़की ने एकांत में औपचारिक वार्त्तालाप किया तो लड़के ने लड़की से प्रश्न किया, ‘‘विवाह के बाद यदि फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया का प्रयोग करने से हम मना करेंगे तो तुम बंद कर दोगी?’’

लड़की ने उत्तर दिया, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं.’’ साथ ही बाहर आ कर लड़की ने विवाह करने से भी यह कह कर मना कर दिया कि लड़का संकुचित मानसिकता का है. अभी से ऐसी शर्त रखी जा रही है तो विवाह के बाद तो जीना ही मुश्किल हो जाएगा.

एक अन्य परिवार में लड़के वालों ने लड़की वालों से कहा, ‘‘हमारे लगभग सौ बराती होंगे. उन के स्वागतसत्कार में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. साथ ही, हरेक बराती को विदाई में सोने का सिक्का देना होगा.’’

सीमा को एक लड़का देखने आया. औपचारिक वार्त्तालाप के बाद उस के मातापिता ने कहा, ‘‘देखो बेटी, हमारे घर की सभी बहूबेटियां नौकरी करती हैं तो तुम्हें भी हम घर में बैठने नहीं देंगे. बस, शादी के बाद एमबीए कर लेना ताकि सैलरी पैकेज अच्छा हो जाए, और शान से नौकरी करना.’’

सीमा को नौकरी करने के स्थान पर आराम से घर पर रहना पसंद था, सो उस ने शादी करने से इनकार कर दिया.

आजकल अरेंज मैरिज में लड़के वाले लड़की वालों के समक्ष शर्तों का पिटारा कुछ इस प्रकार खोलते हैं मानो लड़की और उस के परिवार का कोई अस्तित्व ही नहीं. कुछ लड़कियों और उन के मातापिता से की गई बातचीत के आधार पर हम ने जाना कि कैसीकैसी शर्तें लड़के वाले लड़की और उस के मातापिता के समक्ष रखते हैं-

  • शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी और यदि लड़की कामकाजी नहीं है तो यह, कि हमें कामकाजी बहू पसंद है इसलिए नौकरी करनी पड़ेगी.
  • हमारे पास मेहनत से कमाया हुआ सबकुछ है. हमें कुछ चाहिए नहीं. पर फिर भी, शादी का आप का बजट कितना है?
  • शादी के बाद मायके से कोई रिश्ता नहीं रखोगी और उन की किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं करोगी. जो भी कमा कर लाओगी, हमारे हाथ पर ही रखोगी.
  • तुम एमबीए नहीं हो, हमें तो एमबीए लड़की ही चाहिए. शादी के बाद एमबीए करना पड़ेगा.
  • मोटी बहुत हो, शादी से पहले 10 किलो तक वजन कम करना पड़ेगा.
  • 35 साल की उम्र तक अविवाहित रहने के पीछे क्या कारण रहा.
  •  नाक नहीं छिदी है, शादी से पहले छिदवानी पड़ेगी.
  • एक लड़के वाले ने यह कह कर रिश्ता करने से इनकार कर दिया कि लड़की के पिता को आंखों की लाइलाज बीमारी है.

उपरोक्त शर्तों को पढ़ कर पता चलता है कि समाज में स्त्री को किस दृष्टि से देखा जाता है. इस प्रकार की शर्तें लड़की के लिए ही क्यों? आज के समय में मातापिता लड़की और लड़के दोनों को पढ़ालिखा कर आत्मनिर्भर बनाने में समान पैसा, और परिश्रम व्यय करते हैं, फिर दोनों में असमानता क्यों? क्या अरेंज मैरिज में लड़की की अपनी इच्छा कोई माने नहीं रखती?

एक कंपनी में मैनेजर के पद पर काम कर रही नेहा गोयल कहती हैं, ‘‘कोई भी रिश्ता शर्तों पर नहीं टिक सकता क्योंकि शर्तों पर तो सिर्फ बिजनैस डील होती है, रिश्ता नहीं निभाया जा सकता.’’

वरिष्ठ मैरिज काउंसलर और मनोवैज्ञानिक निधि तिवारी कहती हैं, ‘‘विवाह से पूर्व लड़की व लड़की दोनों का ही शर्त रखना कुछ हद तक सही है क्योंकि विवाह से पूर्व ही सारी बातें साफ हो जाती हैं तो भविष्य में विवाद की आशंका नहीं होती. दोनों को यदि एकदूसरे की बात पसंद है तो शादी होगी वरना नहीं.

‘‘इस की अपेक्षा, विवाह के बाद यदि कोई शर्त रखी जाती है तो कई बार विवाह जैसा पवित्र बंधन टूटने के कगार तक पहुंच जाता है. दरअसल, लड़की व लड़का मानसिक रूप से उस स्थिति के लिए तैयार नहीं होते. परंतु सिर्फ लड़के के परिवार या लड़के के द्वारा ही शर्तों का रखना पूरी तरह गलत है.’’

शर्तों में बंधा बंधन

विवाह एक प्यारा सा बंधन है जो परस्पर सहयोग, समझदारी, विश्वास और आपसी सामंजस्य पर टिका होता है. इस बंधन में भावना प्रधान होती है. ऐसे बंधन में बंधने से पूर्व ही यदि शर्तें लाद दी जाएंगी तो उस का टिकना ही संदेहास्पद हो जाएगा. इसलिए इस में किसी भी प्रकार की अनपेक्षित शर्तों का रखा जाना बेमानी है. शर्त रखने के स्थान पर दोनों परिवारों के लोग आपसी बातचीत के माध्यम से अपनी इच्छाएं साझा करें ताकि दोनों को एकदूसरे की विचारधारा का पता लग सके.

कितनी बार देखा जाता है कि विवाह के बाद समय और परिस्थिति की मांग को देखते हुए बच्चों की परवरिश की खातिर अथवा अन्य कारणों से महिलाएं नौकरी खुद ही छोड़ देती हैं, या परिवार की आवश्यकतानुसार नौकरी करती हैं. विवाहोपरांत पति, पत्नी और ससुराल के परस्पर व्यवहार व सहयोग के बाद अनेक समस्याएं खुद हल हो जाती हैं परंतु विवाह पूर्व जब उन्हीं समस्याओं को शर्त के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो रिश्ते की शुरुआत में ही कटुता आ जाती है जो कई बार ताउम्र भी समाप्त नहीं हो पाती.

विवाह 2 परिवारों और संस्कृतियों का मिलन होता है, नई रिश्तेदारी का सृजन होता है, लड़का व लड़की इस से अपने एक नवीन जीवन का प्रारंभ करते हैं, नवीन रिश्तों को जीना शुरू करते हैं. ऐसे नाजुक रिश्ते में बंधने से पूर्व ही किसी भी प्रकार की शर्त रखना सरासर गलत है. वास्तविकता तो यह है कि विवाह में लड़की के मातापिता अपने खून से सींचे गए अंश को लड़के वालों के परिवार को दे कर शृंगारित करते हैं. ऐसे में लड़की वालों का स्थान लड़के वालों से ऊपर हो जाता है. सो, उन्हें हेय न समझ कर, बराबरी का मानसम्मान दिया जाना चाहिए.

विवाह में किसी भी प्रकार की शर्त का रखा जाना सर्वथा अनुचित है. बिना शर्त प्यार और सहयोग की भावना से किए गए विवाह में लड़की अपने ससुराल के प्रति प्यार, विश्वास और सम्मान की भावना ले कर सासससुर के घर में प्रवेश करती है जिस से घर में चहुंओर खुशियां रहती हैं.

अकेलेपन से कब तक जूझते रहेंगे बुजुर्ग

7 अगस्त, 2017 को मुंबई के ओशिवारा में अपनी मां से मिलने पहुंचे ऋतुराज साहनी को बंद फ्लैट से अपनी मां आशा साहनी का कंकाल मात्र ही मिला. अमेरिका में बसे बेटे ने आखिरी बार, अपनी मां से फोन पर बात अप्रैल 2016 में की थी. पुलिस को फ्लैट से सुसाइड नोट मिला, ‘‘मेरी मौत के लिए किसी को दोषी न ठहराया जाए.’’ आखिरी बार की बातचीत में महिला ने अपने पुत्र से कहा था, ‘मैं घर में बहुत अकेलापन महसूस करती हूं और ओल्डएज होम जाना चाहती हूं.’ आशाजी के नाम पर सोसायटी में करीब 5 से 6 करोड़ रुपए के 2 फ्लैट हैं.

संदर्भ यही है कि महिला अपने अकेलेपन से ऊब गई थी और मौत को ही अंतिम विकल्प मान कर इस दुनिया से चली गई. मगर अफसोस इस बात का है कि उस के पासपड़ोस के लोगों ने एक बार भी उस विषय में चर्चा नहीं की. क्या उस के घर अखबार वाला या कामवाली बाई कोई भी नहीं आती थी? क्या अपने पुत्र के सिवा किसी अन्य से बातचीत नहीं होती थी? क्या पूरी मुंबई या भारत में उस से संपर्क रखने वाले, उस के सुखदुख के साथी, पड़ोसी, मित्र या रिश्तेदार नहीं बचे थे? ऐसा कैसे हो सकता है जबकि उस की उम्र मात्र 63 वर्ष थी.

समाज और बुजुर्ग

भारत में 2020 तक 20 प्रतिशत भारतीय मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे होंगे, ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ है. हर वर्ष 2 लाख लोग आत्महत्या करते हैं जोकि विश्व में होने वाली आत्महत्याओं का 25 प्रतिशत है. देश में अकेलापन और आर्थिक व मानसिक असुरक्षा बुजुर्गों के दुख के प्रमुख कारण हैं.

हम समाज से हैं और समाज हम से है. व्यक्ति परिवार, पड़ोस, विद्यालय, समुदाय, राज्य, धर्म आदि विभिन्न लोगों से जुड़ा रहता है. इन सब के बावजूद हम अकेले कैसे पड़ जाते हैं, यह विचारणीय है.

सही कहावत है, बचपन खेल कर खोया, जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देख कर रोया. बचपन और जवानी का समय, विभिन्न प्रकार की गतिविधियों, जिम्मेदारियों के बीच कब गुजर जाता है, पता नहीं चलता. लेकिन वृद्धावस्था की समस्याओं की व्यापकता, गंभीरता और जटिलता वर्तमान समय की प्रमुख समस्या के रूप में सामने आ रही है. जैसेजैसे लोगों के रहनसहन के स्तर में उन्नति हुई है, वैसे ही वृद्ध व्यक्तियों की अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना भी बढ़ती जा रही है. सो, वृद्ध व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही है.

समाज की यह परंपरा रही है कि वृद्धों के पुत्र व अन्य संबंधी उन की देखभाल करते हैं. इस के बावजूद, कई परिवारों में वृद्धों को पर्याप्त व आवश्यक देखभाल और सहायता नहीं मिल पाती. इस कारण वे दुखी व शारीरिकमानसिक बीमारियों से त्रस्त रहते हैं. वृद्धों की दुखदाई परिस्थिति के लिए परिवार का परस्पर मतभेद, कमजोर आर्थिक स्थिति, साधनों का अभाव और संतानों का विदेश जा कर बस जाना प्रमुख कारण हैं.

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क्या न करें : रेमंड के मालिक विजयपत सिंघानिया का कहना है कि उन का पुत्र उन्हें कौड़ीकौड़ी के लिए तरसा रहा है और वे करोड़ों की जायदाद बेटे के नाम करने के बाद मुंबई की ग्रैंड पराडी सोसायटी में किराए के मकान में रह रहे हैं. जब अरबों की जायदाद पा कर भी किसी संतान में लालच आ सकता है तो मामूली हैसियत वाले परिवारों की बात ही क्या? अपने जीतेजी प्रौपर्टी अपनी संतानों के हवाले बिलकुल नहीं करनी चाहिए.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ बुजुर्ग ही अकेलेपन के शिकार हो मानसिक अवसाद से घिर जाते हैं बल्कि युवा भी जब समाज से कटते हैं तो वे भी मानसिक रोगी बन जाते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं या अपने को घर में कैद कर रहने लगते हैं. ऐसे कई युवकयुवतियों को घर से पुलिसबल द्वारा जबरन अस्पताल में भरती कराने की खबरें भी समयसमय पर सुर्खियां बनती रहती हैं.

क्या करें : अपनी आर्थिक सुरक्षा बरकरार रखनी चाहिए. अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मौसमी फल, सब्जी व स्वास्थ्यवर्धक आहार लेना चाहिए. पड़ोसी, रिश्तेदार व मित्रों के संपर्क में रहना चाहिए. सभी की यथासंभव आर्थिक, मानसिक या शारीरिक स्तर की मदद जरूर करनी चाहिए. जब आप आगे बढ़ कर दूसरों के सुखदुख में काम आएंगे तभी आप दूसरों की नजरों में आ पाएंगे.

अकेलेपन को अपना साथी न बना कर नियमित रूप से अपनी सोसायटी, महल्ले के क्लब या पार्क में जाएं. लोगों के संपर्क में रह कर उन के सुखदुख जानें. इस तरह के संपर्क आप को जीवन के सकारात्मक रुख की ओर ले जाते हैं.

यदि आर्थिक रूप से समर्थ हैं तो ड्राइवर, कामवाली, घरेलू नौकर की समयसमय पर आर्थिक मदद अवश्य करें. यदि धनाभाव है तो कमजोर तबके के बच्चों की पढ़ाई में निशुल्क या कम पैसे से ट्यूशन दे कर अपना समय व्यतीत करें व अकेलापन भी दूर करें.

यदि आप संयुक्त परिवार में हैं तो घर के सभी सदस्यों को साथ ले कर चलें. किसी भी प्रकार का भेदभाव पारिवारिक संबंधों की कड़वाहट का कारण बन सकता है. अगर आप अकेले ही वृद्धावस्था का सफर काट रहे हैं और आप की संतानें दूसरे शहरों या विदेशों में बसी हैं तो आप को अपने बच्चों से संपर्क में रहने से ज्यादा, अपने पड़ोसियों के संपर्क में रहना जरूरी है. आप की किसी भी परेशानी में बच्चों के पहुंचने से पहले पड़ोसी स्थिति संभाल लेंगे. यह तभी संभव है जब आप पड़ोसियों से मधुर संबंध रखेंगे.

आप अपनी सोसायटी, महल्ले के बुजुर्ग लोगों का एक अलग ग्रुप बना कर अपना समय बहुत ही अच्छे ढंग से बिता सकते हैं. बारीबारी से चायपानी का प्रोग्राम, साथ घूमने का प्रोग्राम, लूडो, कैरम, शतरंज जैसे खेल साथ में खेलने का प्रस्ताव भी समय को रोचक बनाता है.

सब का संगसाथ

महिमाजी पूरे महल्ले के बच्चों को अपने घर पर बुला कर रमी खेलती मिल जाएंगी. आतेजाते को पुकारेंगी, ‘‘ए लली, थोड़ी देर रमी खेलो न.’’ सब जानते हैं कि वे ताश खेलने की काफी शौकीन हैं. जो भी फुरसत में रहता है, उन के पास जा कर ताश खेल लेता है. किसी दिन उन की आवाज न सुनाई दे तो लोग खुद ही उन का हालचाल पूछने लगते हैं.

सुनयनाजी भजन, सोहर, बन्नाबन्नी सभी लोकगीत बहुत सुरीले स्वर में गाती हैं. हर घर के तीजत्योहार या किसी भी प्रोग्राम में उन की उपस्थिति अनिवार्य है. उन के लिए हर घर से निमंत्रण आता है.

महेशजी ने व्यायाम में महारत हासिल की हुई है. वे पार्क में नियमित रूप से लोगों को योग के टिप्स देते मिल जाते हैं. यदि वे पार्क में न दिखें, तो लोग उन का हालचाल लेने उन के घर पहुंच जाते हैं.

विनयजी को गप मारने की आदत है. अपने दरवाजे पर बैठेबैठे वे हर आनेजाने वाले की कुशलता पूछ लेते हैं. जिस दिन वे न दिखाई दें, उस दिन लोग उन के घर ही चल देते हैं.

प्रकाशजी एक बडे़ से बंगले के मालिक हैं. अपने बच्चों के विदेश प्रवास और पत्नी की मृत्यु के बाद अकेलेपन को दूर करने का उन्होंने एक नायाब तरीका ढूंढ़ा. उन्होंने अपने बंगले के आधे हिस्से में असहाय, निराश्रित वृद्धजन के लिए द्वार खोल दिए, जिस में रहनेखाने की सुविधा के बदले श्रमदान को अधिक महत्त्व दिया. वहां पर दिनभर किसी भी कार्य में दिया योगदान ही आप को वहां की सुविधा का लाभार्थी बनाता है, जैसे साफसफाई, खाना बनाना या बगीचे का रखरखाव. इस प्रकार वे अपनी उम्र के लोगों से जुड़े हुए हैं और वहीं वे उन का सहारा भी बन गए हैं.

समाज को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है जहां धन, यश व भीड़भाड़ के बावजूद वृद्ध एकाकी हो कर अपनों के इंतजार में दम तोड़ रहे हैं.

 

महंगाई ने निकाला दम, कैसे मनाएं दिवाली हम

आमतौर पर त्योहार एक दिन का होता है, दीवाली अकेला ऐसा त्योहार है, जो 5 दिनों का होता है. इस की शुरुआत धनतेरस से होती है. उस के बाद छोटी दीवाली और बड़ी दीवाली आती है. चौथा दिन गोवर्धन पूजा और सब से आखिर में भैयादूज का होता है.

एक त्योहार के 5 दिन में अलगअलग आयोजन होने से महंगाई का असर ज्यादा होता है. धनतेरस में नई चीजें खरीदने का रिवाज होता है. ऐसे में कुछ न कुछ खरीदना ही पड़ता है. छोटी और बड़ी दीवाली घर की साफसफाई, सजावट, झालर लगाने जैसे तमाम काम होते हैं. इसी दिन लोग मिलने भी आते हैं. गोवर्धन पूजा को ‘अन्नकूट’ भी कहते हैं. भैयादूज का दिन रक्षाबंधन की तरह भाईबहन के बीच का होता है. अब इस में लेनदेन और दिखावा भी होने लगा है.

पर महंगाई के दौर में दीवाली का त्योहार कैसे मनाएं, इस बात को समझने की जरूरत है. त्योहार साल में एक बार आता है. ऐसे में इस को हंसीखुशी से मनाने की जरूरत है.

त्योहार का मतलब यह होता है कि अपनी जानपहचान और करीबी लोगों के साथ इस की खुशियां मनाएं. पर अगर महंगाई है, तो उस का मुकाबला करने के लिए कुछ उपाय कर सकते हैं. गांवकसबों में बहुत सारी उपहार में दी जाने वाली चीजें कम पैसों में मिलती हैं.

ये चीजें दें उपहार में

हाथ से बने सामान को बड़ेबड़े बाजारों में हस्तशिल्प के नाम से जाना जाता है. उपहार देने के लिए इन की खरीदारी करने से कम पैसों में अच्छी चीजें मिल जाती हैं. दीवाली में मिट्टी के दीए, घर को सजाने के लिए कपड़ों से बने बंदनवार, हस्तशिल्प और लकड़ी के सामान मिलते हैं. मिट्टी से बने खिलौने केवल खेलने के ही काम नहीं आते हैं, बल्कि अब इन का इस्तेमाल घर को सजाने में भी किया जाने लगा है.

बचपन में एक बूढ़ा सिर हिलाते हुए हर खिलौने की दुकान पर दिखता था. आज भी मिट्टी के बने खिलौनों में वह सब से ज्यादा पसंद किया जाता है. अब यह लोगों के ड्राइंगरूम या बच्चों के कमरे में सजावटी सामान की तरह से रखा मिलता है. इसी तरह से मिट्टी से बनी बैलगाड़ी भी मिल जाती है.

अपने दोस्तों और परिवार के लिए महंगे उपहार खरीदने के बजाय इस तरह के सस्ते सामान उपहार में दे सकते हैं. इस के अलावा घर में बनी मिठाइयां, पापड़ और नमकीन, हाथ से बनी पेंटिंग या शिल्पकला जैसे सामान को अपने बजट में रहते हुए उपहार में दे सकते हैं.

इन उपहारों की न केवल कीमत कम होती है, बल्कि ये दिल से दिए उपहार लगते हैं. इस के अलावा गांव और कसबों के लोगों को रोजगार भी दिया जा सकता है. इस से उन की भी दीवाली खुशियों वाली होगी.

जितनी जरूरत उतना खर्च

त्योहार के शुरू होते ही औनलाइन से ले कर औफलाइन तक छूट और औफर की भरमार दिखने लगती है. इस के चक्कर में लोग अपनी जरूरत से ज्यादा का सामान ले कर अपना बजट बिगाड़ लेते हैं.

दुकानदार बड़ी होशियारी से वह सामान बेच लेते हैं, जो पहले बिक नहीं रहा होता है. ज्यादा वजन वाली चीजें कम बिकती हैं. जैसे 100 ग्राम वाला टूथपेस्ट ज्यादा बिकता है. अब दुकानदार इस पर कोई छूट और औफर नहीं देता. 250 ग्राम वाला टूथपेस्ट नहीं बिकता. ऐसे में इस पर 20 फीसदी छूट का औफर रख दिया जाता है. अब अगर औफर के चक्कर में आ कर ज्यादा वजन वाला पैकेट ले लिया, तो इस से बजट बिगड़ जाता है.

जरूरत से ज्यादा का सामान लेने पर ज्यादा बजट लगा, जिस ने त्योहार के खर्च को बढ़ा दिया. ऐसे में खरीदारी करते समय ध्यान रखें कि जितनी जरूरत हो उतनी ही खरीदारी करें.

औनलाइन खरीदारी करने की जगह पर अपने पड़ोस वाली दुकान से खरीदारी करें. इस से आप अपने आसपास वाले की ही मदद करते हैं और उस के साथ निजी संबंध भी बनाते हैं. ये लोग औफर और छूट का झांसा कम देते हैं.

ऐसे में आप उतनी ही चीजें खरीदते हो जितनी जरूरत होती है. इस के अलावा यह आप का हालचाल पूछ कर आप को अहसास दिलाता है कि हम आप के अपने है. कभी कोई शिकायत हो, तो सुन लेता है.

नकद खर्च का अहसास

कुछ पैसे कमज्यादा भी हो गए, तो बाद में दे सकते हैं. इस तरह की सुविधा भी होती है. क्या किसी मौल या औनलाइन दुकान से बिना पैसा दिए चीजें ले सकते हो? नहीं. पर पड़ोस वाली दुकान से बिना पैसे दिए भी ले सकते हो, जिस का पैसा बाद में दे सकते हैं.

औनलाइन खरीदारी करते समय भुगतान क्रेडिट कार्ड और ईवौलेट जैसे माध्यमों से होता है, जिस से खर्च करते समय पता नहीं चलता कि कितना खर्च हो गया. इसलिए बजट बढ़ जाता है, जबकि जेब में रखे पैसे खर्च होते हैं, तो खर्च का अहसास होता है. ऐसे में ज्यादा खर्च नहीं हो पाता है.

औनलाइन खरीदारी में खर्च ज्यादा हो जाता है. ऐसे में फैस्टिवल का बजट बिगड़ जाता है. बजट बनाए रखने के लिए नकद खरीदारी करनी जरूरी है, क्योंकि जो क्रेडिट कार्ड से पैसा खर्च होता है, वह भी देना तो पड़ता ही है.

औनलाइन खरीदारी से केवल एक महीने का ही नहीं, बल्कि कई महीने तक का बजट बिगड़ सकता है. ऐसे में उधार की जगह नकद पर भरोसा करें. यह पैसा जैसे ही ज्यादा खर्च होगा, समझ आने लगता है. ऐसे में हम खर्च करने की हद के अंदर ही रहते हैं.

त्योहार के दिन करें सफर

दीवाली के 3 महीने पहले ही अखबारों में यह खबर देखने को मिलती है कि दीवाली के समय सारी ट्रेन और बस के टिकट बुक हो गए हैं. गांवकसबों में रहने वाले ज्यादातर लोग दिल्ली, मुंबई और दूसरे बड़े शहरों में रहते हैं. दीवाली में गांवघर आना जरूरी होता है. पहले से टिकट बुक नहीं हो पाया है, तो महंगी कीमत में टिकट लेने से अच्छा है कि त्योहार के दिन सफर कीजिए.

त्योहार के एक दिन पहले ज्यादा तादाद में लोग सफर करते हैं. त्योहार के दिन भीड़ कम होती है. वापसी भी 1-2 दिन बाद करेंगे, तो टिकट मिलने में दिक्कत नहीं होगी. आराम से कम बजट में सफर कर सकेंगे.

दीए जलाएं

दीवाली रोशनी का त्योहार है और घर को रोशन करना रिवाज का हिस्सा है. पहले के समय में घर में रूई से बाती बनाई जाती थी. तेल में एक दिन पहले से भिगो कर रख दिया जाता था, जिस से बाती ठीक से तेल में तर हो जाती थी.

मिट्टी के दीए भी एक दिन पहले धो कर रखे जाते थे, जिस से उन का पानी सूख जाता था. ऐसे में जब उन में तेल डाला जाता था, तब वह कम तेल सोखते थे. पहले से तेल में डूबी रूई की बाती देर तक जलती थी. तेल कम लगता था. खर्च कम होता था.

आज भी सरसों का तेल 150 रुपए लिटर तक का होता है. एक लिटर तेल में पूरे घर में दिए जल जाते हैं. दीए भी झालर के मुकाबले सस्ते पड़ते हैं. दीए से रोशनी करना सस्ता और पारंपरिक है. इस से असली त्योहार की फीलिंग आती है.

बनाएं त्योहारी बजट

त्योहार में कितना खर्च करना है, पहले से ही यह सोच कर इस का बजट बना लें. बजट के मुताबिक ही खर्चा करने से ज्यादा खर्च नहीं होगा. उस के खर्च का इंतजाम भी पहले से कर सकेंगे. इस के लिए सभी मदों की सूची बनाएं और हर मद के लिए उन्हें मिलने वाली प्राथमिकता के मुताबिक पैसा अलग करें. इस से आप को ज्यादा खर्च करने से बचने में मदद मिलेगी. त्योहार खत्म होने के बाद इस बात का अफसोस नहीं होगा कि खर्च ज्यादा हो गया है. इस से दीवाली के त्योहार का भरपूर मजा आएगा.

 दीवाली पर सस्ते में घर रोशन

दीवाली पर रोशनी को ले कर ‘न्यू आर्क स्टूडियोज’ की आर्किटैक्ट नेहा चोपड़ा ने बताया, ‘‘बहुत से लोग तो यही सोचते रहते हैं कि हम ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे, पर कर नहीं पाते. कभी पैसे की कमी, तो कभी समय न होने के चलते लोगों को यह तरीका ही नहीं सूझता है कि दीवाली पर अपने घर को रोशन कैसे करना है. पर घबराइए नहीं, क्योंकि इस समस्या का हल कुछ इस तरह से किया जा सकता है :

-हर शादीशुदा औरत के पास कोई फटीपुरानी चमकदार साड़ी या जूट का रंगबिरंगा कपड़ा रखा ही होता है. 2 लोहे के छल्ले ले कर उस पर साड़ी का एक हिस्सा या रंगबिरंगा जूट कस कर लपेट दें और एक एलईडी बल्ब बीच में जला कर कमरे में सजा दें. अगर बल्ब नहीं है, तो बड़ा सा दीया भी जला कर रखा जा सकता है. दीया रखते समय सावधानी बरतें कि कपड़ा आग न पकड़ ले.

-अगर कपड़ा नहीं है, तो किसी गत्ते के डब्बे को डिजाइन में काट कर उस के चारों तरफ मजबूत रंगीन कागज चिपका दें और अंदर बल्ब जला दें या दीया रख दें. कटे गत्ते के डिजाइन से बाहर निकलती रोशनी खूबसूरत लगेगी.

-अगर किसी के घर की भीतरी छत खराब दिख रही है, तो दीवाली पर मिलने वाली इलैक्ट्रिकल लडि़यों को करीने से छत पर लगा दें. उस के बाद किसी साड़ी की मदद से उन लडि़यों को ढक दें. रात को जब वे लडि़यां जगमगाएंगी, तो छत भी खराब नहीं दिखेगी और साड़ी में से निकलती लाइट से घर का माहौल ही बदल जाएगा.

-आप घर में ही कागज से कंदील बना सकते हैं. उस में बल्ब लगा कर कम रोशनी वाली जगह को रोशन कर सकते हैं.

-अलगअलग रंगों या फूलों की रंगोली बना कर बीच में बड़ा सा दीया रख कर भी घर की रोशनी बढ़ाई जा सकती है.

-आजकल सस्ती इलैक्ट्रिक लडि़यां भी बाजार में मिल जाती हैं. किसी लड़ी को कांच की खाली बोतल वगैरह में भर कर रोशन करने से भी घर की रौनक बढ़ जाती है.

-घर को जगमग करने में मोमबत्ती भी अच्छाखासा रोल निभाती हैं. ये ज्यादा महंगी भी नहीं होती हैं.

बच्चा उदास रहे तो हो जाएं सावधान

15 साल की रिया जब भी स्कूल जाती, क्लास में सब से पीछे बैठ कर हमेशा सोती रहती. उस का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. वह किसी से न तो ज्यादा बात करती और न ही किसी को अपना दोस्त बनाती. अगर वह कभी सोती नहीं थी, तो किताबों के पन्ने उलट कर एकटक देखती रहती. क्या पढ़ाया जा रहा है, इस से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. हर बार उस की शिकायत उस के मातापिता से की जाती, पर इस का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था.

वह हमेशा उदास रहा करती थी. इसे देख कर कुछ बच्चे तो उसे चिढ़ाने भी लगते थे, पर वह उस पर भी अधिक ध्यान नहीं देती थी. परेशान हो कर उस की मां ने मनोवैज्ञानिक से सलाह ली. कई प्रकार की दवाएं और थेरैपी लेने के बाद वह ठीक हो पाई.

दरअसल, बच्चों में डिप्रैशन एक सामान्य बात है, पर इस का पता लगाना मुश्किल होता है. अधिकतर मातापिता इसे बच्चे का आलसीपन समझते हैं और उन्हें डांटतेपीटते रहते हैं. इस से वे और अधिक क्रोधित हो कर कभी घर छोड़ कर चले जाते हैं या फिर कभी आत्महत्या कर लेते हैं.

बच्चों की समस्या न समझ पाने की 2 खास वजहें हैं. पहली तो हमारे समाज में मानसिक समस्याओं को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता और दूसरे, अभी बच्चा छोटा है, बड़ा होने पर समझदार हो जाएगा, ऐसा कह कर अभिभावक इस समस्या को गहराई से नहीं लेते. मातापिता को लगता है कि यह समस्या सिर्फ वयस्कों को ही हो सकती है, बच्चों को नहीं.

शुरुआती संकेत : जी लर्न की मनोवैज्ञानिक दीपा नारायण चक्रवर्ती कहती हैं कि आजकल के मातापिता बच्चों की मानसिक क्षमता को बिना समझे ही बहुत अधिक अपेक्षा रखने लगते हैं. इस से उन्हें यह भार लगने लगता है और वे पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं. अपनी समस्या वे मातापिता से बताने से डरते हैं और उन का बचपन ऐसे ही डरडर कर बीतने लगता है, जो धीरेधीरे तनाव का रूप ले लेता है. मातापिता को बच्चे में आए अचानक बदलाव को नोटिस करने की जरूरत है. कुछ शुरुआती लक्षण निम्न हैं :

–       अगर बच्चा आम दिनों से अधिक चिड़चिड़ा हो रहा हो या बारबार उस का मूड बदल रहा हो.

–       बातबात पर  गुस्सा होना या रोना.

–       अपनी किसी हौबी या शौक को फौलो न करना.

–       खानेपीने में कम दिलचस्पी रखना.

–       सामान्य से अधिक समय तक सोना.

–       अलगथलग रहने की कोशिश करना.

–       स्कूल जाने की इच्छा का न होना

–       स्कूल के किसी काम को न करना आदि.

इस बारे में दीपा आगे बताती हैं कि किसी भी मातापिता को बच्चे को डिप्रैशन में देखना आसान नहीं होता और वे इसे मानने को भी तैयार नहीं होते कि उन का बच्चा डिप्रैशन में है.

तनाव से निकालना : निम्न कुछ बातों से बच्चे को तनाव से निकाला जा सकता है–

–       हमेशा धैर्य रखें, गुस्सा करने पर बच्चा भी रिवोल्ट करेगा और आप उसे कुछ समझा नहीं सकते.

–       बच्चे को कभी यह एहसास न होने दें कि वह बीमार है. यह कोई बीमारी नहीं है, इस का इलाज हो सकता है.

–       हिम्मत से काम लें, बच्चे को डिप्रैशन से निकालने में मातापिता से अच्छा कोई नहीं हो सकता.

–       बच्चे से खुल कर बातचीत करें, तनावग्रस्त बच्चा अधिकतर कम बात करना चाहता है. ऐसे में बात करने से उस के मनोभावों को समझना आसान होता है. उस के मन में कौन सी बात चल रही है, उस का समाधान भी आप कर सकते हैं.

–       हमेशा बच्चे को लोगों से मिलनेजुलने के लिए प्रेरित करें.

–       बातचीत से अगर समस्या नहीं सुलझती है, तो इलाज करवाना जरूरी है. इस के लिए आप खुद उसे मनाएं और ध्यान रखें कि डाक्टर जो भी दवा दे, उसे वह समय पर ले, इस से वह जल्दी डिप्रैशन से निकलने में समर्थ हो जाएगा.

अपना दायित्व समझें : मातापिता बच्चे के रिजल्ट को ले कर बहुत अधिक परेशान रहते हैं. इस बारे में साइकोलौजिस्ट राशिदा कपाडि़या कहती हैं कि बच्चों में तनाव और अधिक बढ़ जाता है जब उन की

बोर्ड की परीक्षा हो. ऐसे में हर मातापिता अपने बच्चे से 90 प्रतिशत अंक की अपेक्षा लिए बैठे रहते हैं और कम नंबर आने पर वे मायूस होते हैं. ऐसे में बच्चा और भी घबरा जाता है. उसे एहसास होता है कि नंबर कम आने पर उसे कहीं ऐडमिशन नहीं मिलेगा, जबकि ऐसा नहीं है, हर बच्चे को अपनी क्षमता के अनुसार दाखिला मिल ही जाता है.

कई ऐसे उदाहरण हैं जहां रिजल्ट देखे बिना ही बच्चे परीक्षा में अपनी खराब परफौर्मेंस के बारे में सोच कर आत्महत्या तक कर लेते हैं. इस से बचने के लिए मातापिता को खास ध्यान रखने की जरूरत है :

–       अपने बच्चे की तुलना किसी अन्य बच्चे से न करें.

–       वह जो भी नंबर लाया है उस की तारीफ करें और उस की चौइस को आगे बढ़ाएं.

–       अपनी इच्छा बच्चे पर न थोपें.

–       उस की खूबियों और खामियों को समझने की कोशिश करें. अगर किसी क्षेत्र में प्रतिभा नहीं है, तो उसे छोड़ उस के हुनर को उभारने की कोशिश करें.

–       एप्टिट्यूड टैस्ट करवा लें, इस से बच्चे की प्रतिभा का अंदाजा लगाया जा सकता है.

–       उस के सैल्फ स्टीम को कभी कम न करें.

–       उस की मेहनत को बढ़ावा दें.

–       समस्या के समाधान के लिए बच्चे से खुल कर बातचीत करें और उस के मनोभावों को समझें तथा उस के साथ चर्चा करें.

–       अपनी कम कहें, बच्चे की ज्यादा सुनें, इस से बच्चा आप से कुछ भी कहने से हिचकिचाएगा नहीं.

–       बच्चे को हैप्पी चाइल्ड बनाएं, डिप्रैशनयुक्त नहीं.

देश में फैला है अंधविश्वास ही अंधविश्वास

चाहे कोई भी हो, यह मानने को कतई तैयार नहीं है कि वह अंधविश्वासी है. किसी को गाली देने से जैसे कोई शख्स दुखी और गुस्सा हो जाता है, वैसे ही किसी को अंधविश्वासी कहने से भी वह गुस्सा हो जाता है. अंधविश्वासी कहलाना कोई भी नहीं चाहता, पर अंधविश्वास हैं क्याक्या, यही उन्हें पता नहीं होता. हालांकि यह सभी मानने को तैयार हैं कि अंधविश्वास और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक बुराइयां, परंपरा, रस्मोरिवाज हमारी तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट हैं.

देश में ‘अर्जक संघ’ समेत कई ऐसे संगठन हैं, जो अंधविश्वास के साथसाथ समाज में फैली बुराइयों को खत्म करने में जुटे हैं.

हम यहां कुछ अंधविश्वासों, परंपराओं व बुराइयों की ओर आप का ध्यान खींच रहे हैं:

* सुबह उठते ही अपनी दोनों हथेलियां देखना.

* अगर कोई काम नहीं हो सका, तो यह कहना कि न जाने हम किस का मुंह देख कर उठे थे.

* नहाधो कर सुबह एक लोटा पानी सूरज की ओर गिराना और कान ऐंठ कर प्रणाम करना.

* सुबहसवेरे नहाधो कर तुलसी के पौधे में पानी डालना.

* तथाकथित धर्मग्रंथ का पाठ कर के खुद और अपने परिवार का समय बरबाद करना.

* दिन के मुताबिक रंगीन कपड़ों को पहनना, भोजन करना वगैरह.

* घर के दरवाजे पर पुरानी चप्पल या जूता, सूप, नीबू, मिर्च वगैरह टांगना.

* बाहर निकलते समय घर के लोगों को दही, चीनी खाने को कहना और माथे पर टीका करना.

* बाहर निकलते समय अगर तेली जाति का शख्स दिख जाए, तो अशुभ मानना.

* अगर कोई छींक दे, तो अशुभ मान कर रुक जाना.

* रास्ते में अगर आगे से कोई बिल्ली चली जाए, तो वहीं रुक जाना.

* अगर बच्चा या कोई शख्स बीमार पड़ जाए, तो झाड़फूंक कराना.

* किसी को सांपबिच्छू काट ले, तो झाड़फूंक कराना.

* हाथ में गंडातावीज बांधना और काला टीका करना.

* बच्चे के जन्म के बाद उस के पास लोहे की चीज रखना.

* नवजात बच्चे को किसी को इसलिए नहीं दिखाना कि कहीं नजर न लग जाए.

* बच्चे के हाथपैर, कमर में काला धागा बांधना या काला टीका लगाना.

* जन्म के बाद किसी ब्राह्मण को बुला कर पत्री दिखाना और उस के कहने पर कर्मकांड करना.

* नाम रखने के लिए ब्राह्मण पर आश्रित रहना.

* पढ़ने की शुरुआत किसी खास दिन से करना और पुरोहित से पूछ कर स्कूल भेजना.

* कहीं बाहर जाने से पहले ब्राह्मण से पत्री दिखाना और उसी के मुताबिक चलना.

* नए घर जाने से पहले ब्राह्मण से पूछ कर तारीख तय करना.

* शादी के पहले ब्राह्मण से दिन दिखाना और उसी से शादी या श्राद्ध कराना.

* कोई भी कर्मकांड करने या त्योहार के बाद ब्राह्मण को दान देना.

* त्योहार के नाम पर पत्थर, मिट्टी की मूर्ति के सामने गिड़गिड़ाना.

* किसी चमत्कार के बाद उस की वजह को ढूंढ़ने के बजाय ईश्वरीय शक्ति मान बैठना.

* अपनी गरीबी, जोरजुल्म से लड़ने के बजाय तकदीर में लिखा है कह कर चुप बैठ जाना.

* शरीर से ठीकठाक होने के बावजूद घरघर घूमते साधुमहात्मा के नाम पर लोगों को दान देना.

* शादी के समय काला कपड़ा नहीं पहनना.

* शादी के समय किसी विधवा को नहीं रहने देना.

* मरने के बाद कर्मकांड करना, सिर मुंड़वाना, ब्रह्मभोज करना, दान देना.

* सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण लगने पर भोजन नहीं करना और ब्राह्मण को दान देना.

* वास्तुशास्त्र के मुताबिक ही मकान बनवाना.

* ज्योतिष से हाथ दिखाना, भविष्यफल देखना और उस के बताए उपाय करना.

* रविवार को हल नहीं चलाना.

* देवीदेवता की पूजा किए बगैर धान नहीं रोपना.

और भी ऐसी कई बातें हैं, जो अंधविश्वास मानी जाती हैं. लेकिन हैं बिलकुल अधार्मिक बातें.

हमें वैज्ञानिक सोच पैदा करने की जरूरत है, ताकि जिंदगी में तरक्की के रास्ते पर चल सकें. इस से एक फायदा यह भी होगा कि जो बगैर मेहनत किए अपना पेट पाल रहा है, वह मेहनत की अहमियत समझ कर और ज्यादा मेहनत करने लगेगा. देश और समाज तरक्की की ओर बढ़ सकेगा.

इन सब प्रपंचों से धर्म के दुकानदारों को पैसा मिलता है, जो चाहे मंदिरों, चर्चों, मसजिदों में इस्तेमाल हो या दूसरों का सिर फोड़ने के काम आए. अंधविश्वास सीधे पंडों की जेबों से जुड़े हैं.

‘ड्राइवर्स फुट’ : इस बीमारी से बच कर रहें

32 साल के राहुल ने अपना कारोबार शुरू किया था, जिस के सिलसिले में उसे रोज दिल्ली से गुड़गांव जाना पड़ता था. रोजाना 5-6 घंटे गाड़ी चलाने से उसे दाएं पैर में तकलीफ होने लगी. आराम करने से भी कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि उस का दर्द और बढ़ गया. यहां तक कि उस ने गाड़ी चलाना भी छोड़ दिया. पैर में तेज दर्द होने के चलते उसे अपने निजी काम करने में भी परेशानी होने लगी.

मजबूर हो कर राहुल को डाक्टर के पास जाना पड़ा. उसे दर्द दूर करने और दूसरी दवाएं दी गईं. इस से उसे थोड़ी देर के लिए तो आराम हो जाता, लेकिन फिर दर्द शुरू हो जाता.

पूरी जांच करने के बाद पता चला कि राहुल को ‘ड्राइवर्स फुट’ की समस्या है, जिस के चलते उस के प्लांटर फैशिया में तकलीफ हो रही थी.

यह प्लांटर फेशिया पैरों के दर्द की एक सामान्य समस्या है, जो अकसर लंबे समय तक गाड़ी चलाने से हो जाती है. ट्रैफिक जाम में इंतजार करने और 2-3 घंटे तक लगातार ड्राइविंग करने से न केवल एडि़यों में दर्द होने लगता है, बल्कि दाएं पैर में सुन्नपन महसूस होने लगता है और दर्द बढ़तेबढ़ते कमर के निचले हिस्से तक चला जाता है.

अगर इस समस्या का लंबे समय तक इलाज न कराया जाए, तो दर्द बढ़ जाता है, जिसे ‘प्लांटर फैशिया’ कहते हैं. इस के साथसाथ एड़ी और फुट की बाल में भी दर्द होता है.

क्या है ‘ड्राइवर्स फुट’

यह पैरों के दर्द की एक सामान्य समस्या है, जो ज्यादातर ड्राइवरों को हो जाती है. अगर इस समस्या का इलाज न कराया जाए, तो इस से कई दूसरी बड़ी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.

जो लोग लंबे समय तक लगातार ड्राइविंग करते हैं, उन्हें इस समस्या का शिकार होने का डर ज्यादा होता है. आमतौर पर दर्द पैर की एडि़यों में महसूस होता है. पैर के अंगूठे में भी तेज दर्द होता है, फुट की आर्च में भी सूजन आ जाती है और फुट के अंगूठे की बाल में भी लगातार दर्द होता है, क्योंकि यह हिस्सा लगातार ऐक्सिलेटर पर रहता है. ट्रैफिक जाम इस दर्द को ज्यादा बढ़ा देता है, क्योंकि इस दौरान लंबे समय तक पैर एक ही हालत में रहता है.

ये हैं लक्षण

फुट की बाल में दर्द होना

पैर का वह भाग, जो पैडल से टच होता है, उस में सब से ज्यादा दर्द होता है. लगातार पैडल को दबाने से दर्द और बढ़ जाता है, जिस के चलते पैरों की उंगलियों पर खरोंचें आ जाती हैं और हड्डियों में तेज दर्द होता है.

एडि़यों में दर्द होना

ड्राइविंग करते समय हमेशा एडि़यां गाड़ी के फर्श पर होती हैं, इस से उन में खरोंच आ सकती है और दर्द हो सकता है. ब्रेक लगाने, ऐक्सिलेटर दबाने वगैरह से यह दर्द और बढ़ सकता है.

पैरों के अगले हिस्से में दर्द होना

ज्यादा ट्रैफिक में लंबे समय तक पैडल को दबाने से पैरों में तनाव हो सकता है. इस से पंजों के आगे के हिस्से में दर्द हो सकता है.

हालांकि, यह दर्द तुरंत गायब हो जाता है, लेकिन जो लोग रोजाना लंबी दूरी तक ड्राइविंग करते हैं या पेशेवर ड्राइवर हैं, उन्हें इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगर समय रहते इलाज न कराया जाए, तो हालात और भी गंभीर हो सकते हैं.

फुट की आर्च में सूजन हो जाना

आमतौर पर जिन लोगों को इस तरह की समस्या होती है, उन्हें एड़ी और फुट की आर्च में तेज दर्द होता है. लंबे समय तक ड्राइव करने के बाद जब गाड़ी से उतरते हैं, तब यह दर्द और ज्यादा बढ़ जाता है.

इलाज भी है

ऐक्सरसाइज और स्ट्रैचिंग?

इस दर्द से आराम पाने के लिए सब से पहला जरूरी और आसान उपाय है कि स्ट्रैचिंग और ऐक्सरसाइज करें. स्ट्रैचिंग सब से अच्छा उपाय है, क्योंकि इस से एडि़यों, आर्च और बाल सौकेट का तनाव कम होता है. लौंग ड्राइव से बचें, ज्यादा भारी सामान उठाने से तुरंत आराम मिल जाता है. शरीर के प्रभावित क्षेत्र पर दिन में कई बार 20-30 मिनट तक बर्फ लगाएं, इस के साथ ही प्लांटर फैशिया और एचिलिस टेंडन को स्ट्रैच करने के लिए ऐक्सरसाइज करें. इस से न केवल आप को आराम मिलेगा, बल्कि दोबारा यह समस्या होने का डर भी कम हो जाएगा.

दवाएं

शुरुआती दौर में हील पैड्स के साथ सूजन कम करने वाली दवाएं ही  काफी रहती हैं.

सर्जरी 

बहुत ही कम मामलों में सर्जरी की जरूरत होती है. अगर समय के साथ हालात गंभीर हो जाते हैं और अगर दवाओं से भी इलाज न हो पाए, तो डाक्टर सर्जरी करने की सलाह भी दे सकते हैं.

ऐसे करें रोकथाम

  • अगर आप लंबे समय से ड्राइविंग कर रहे हैं, तो ऐंठन से बचने के लिए तुरंत ड्राइविंग बंद कर दें.
  • अपने पैरों के खून के बहाव को ठीक करने के लिए मसाज करें और हलके हाथ से रगड़ें. इस से मांसपेशियां रिलैक्स होंगी और ऐंठन कम हो जाएगी.
  • हमेशा आरामदायक जूते पहनें, जो आप के पैरों में अच्छी तरह फिट हों.
  • मांसपेशियों में लगातार ऐंठन, शरीर में विटामिन और इलैक्ट्रोलाइट की कमी से भी यह समस्या हो सकती है. सही मात्रा में ऐसी तरल चीजों का सेवन करें, जिन में पोटैशियम और मैग्नीशियम ज्यादा मात्रा में हो.

मासूम की बलि, जिसकी कहानी हैरान कर देगी

अशोक कुमार पंजाब के जिला जालंधर के गांव मलको में पत्नी रजनी और 2 बच्चों 7 वर्षीय गुरप्रीत चुंबर उर्फ गोपी एवं 4 वर्षीय मनप्रीत के साथ रहता था. वह कौंप्लेक्स स्थित एक फैक्ट्री में खराद मशीन का मिस्त्री था. फैक्ट्री के लिए वह सुबह 8 बजे घर से निकलता तो रात को लगभग 8 बजे ही घर आता था. उस का बड़ा बेटा गांव के ही सरकारी स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ता था. उसे स्कूल तक पहुंचाने और छुट्टी के बाद घर लाने की जिम्मेदारी रजनी की थी. गुरप्रीत बड़ा ही खूबसूरत, मासूम दिखने वाला हंसमुख स्वभाव का था, इसलिए मोहल्ले के सभी लोग उस से स्नेह रखते थे.

अशोक कुमार के पड़ोस में 2-4 मकान छोड़ कर जीतराम और उस के बेटे राजकुमार का मकान था. जुलाई 2016 के अंतिम सप्ताह में राजकुमार के मकान में मंगतराम पत्नी के साथ किराए पर रहने आया. वह मूलरूप से  फाजलवाल का रहने वाला था.  वह मकान बनाने के ठेके लेता था, इसीलिए गांव के लोग उसे मंगत ठेकेदार कहते थे.

मंगत के बगल वाले कमरे में इंद्रजीत रहता था. वह मंगतराम के साथ ही काम करता था. दोनों साथ ही काम पर जाते थे और साथ ही रात को घर लौटते थे. मंगतराम की पत्नी जानकी हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की थी, इसलिए पड़ोस की औरतों से उस की खूब पटती थी.

जानकी शाम को मोहल्ले के बच्चों को घर बुला कर नि:शुल्क ट्यूशन पढ़ाती थी. इस से उस का समय भी कट ही जाता था और बच्चों को भी फायदा होता था. अशोक कुमार का बेटा गुरप्रीत चुंबर भी रोजाना शाम को जानकी के घर ट्यूशन पढ़ने जाने लगा था.

जानकी ने 8 अगस्त, 2016 को मोहल्ले में सब से कह दिया कि वह अपने पति के साथ माता चिंतपूर्णी मंदिर जा रही है. उस के लौटने तक उस का देवर इंद्रजीत बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएगा. उस दिन शाम को तय समय पर ट्यूशन पढ़ने के बाद बच्चे घर नहीं पहुंचे तो उन के घर वाले मंगतराम के घर जा पहुंचे. सब ने देखा इंद्रजीत बच्चों को पढ़ा रहा था. उस ने कहा कि थोड़ी देर में वह बच्चों को घर भेज देगा.

15 मिनट बाद सभी बच्चे अपनेअपने घर पहुंच गए, पर गुरप्रीत नहीं आया. रजनी को जब पता चला कि उस के बेटे के अलावा सभी बच्चे ट्यूशन पढ़ कर घर आ गए हैं तो वह मंगतराम के घर गई.

मकान का दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाजा खटखटाने पर इंद्रजीत बाहर निकला तो पूछने पर उस ने बताया कि बस 2 प्रश्न रह गए हैं. उन्हें पूरा करने के बाद वह खुद गुरप्रीत को घर पर पहुंचा देगा. उस की बात से संतुष्ट हो कर रजनी घर लौट आई. पर आधे घंटे बाद भी जब गुरप्रीत नहीं आया तो रजनी को चिंता हुई.

वह उसे लेने के लिए बड़बड़ाती हुई घर से निकली कि ऐसी कौन सी पढ़ाई है, जो खत्म नहीं हो रही है. वह फिर से मंगतराम के घर पहुंची तो दरवाजे पर लगा ताला देख कर उस का माथा ठनक गया. उस के मुंह से निकला, ‘अरे ताला डाल कर ये कहां चले गए और मेरा गोपी कहां है?’

रजनी ने घबरा कर शोर मचा दिया तो मोहल्ले के तमाम लोग जमा हो गए. पूछने पर रजनी ने अपने बेटे और इंद्रजीत के गायब हो जाने की बात बता दी. मोहल्ले वाले भी सोच में पड़ गए कि इंद्रजीत बच्चे को ले कर पता नहीं कहां चला गया है? किसी अनहोनी की कल्पना से रजनी का दिल बैठा जा रहा था. उस समय शाम के साढ़े 7 बज रहे थे. मोहल्ले वाले गोपी को इधरउधर खोजने लगे.

एक दुकानदार ने बताया कि करीब सवा 6 बजे के करीब इंद्रजीत गुरप्रीत को ले कर उस की दुकान पर आया था. उस ने गुरप्रीत को 2 चौकलेट और 2 कुरकरे के पैकेट दिलाए थे.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ रजनी ने कहा, ‘‘सवा 6 बजे से 7 बजे तक मैं ने खुद गुरप्रीत को इंद्रजीत के यहां ट्यूशन पढ़ते देखा था.’’

दुकानदार ने विश्वास दिलाते हुए कहा कि सवा 6 बजे के करीब ही वह दुकान पर आया था. अब रजनी को मामला गड़बड़ नजर लगने लगा. वह सोचने लगी कि जब वह सवा 6 बजे के करीब इंद्रजीत के घर गई थी तो वहां घर में कौन था? लोगों ने कुछ ही देर में गांव का कोनाकोना छान मारा गया, पर गुरप्रीत और इंद्रजीत का कहीं पता नहीं चला. अब रजनी रोने लगी. गांव के एक आदमी ने मंगतराम और जानकी को फोन कर सारी बात बताई. मंगतराम ने कहा कि इस समय वह चिंतपूर्णी माता के मंदिर में है. इसलिए इस मामले में कुछ नहीं कर सकता. बात खत्म कर के उस ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया.

संयोग से उस समय अशोक घर पर नहीं था. उस की नाइट ड्यूटी थी. गुरप्रीत को ढूंढतेढूंढते रात के 11 बज गए थे. बेटे के गायब होने की सूचना रजनी ने फोन द्वारा पति को दी तो वह तुरंत घर आ गया और बेटे की खोज में लग गया. जब वह कहीं नहीं मिला तो रात करीब साढ़े 12 बजे मोहल्ले के कुछ लोग पड़ोसी की छत से मंगतराम के घर में पहुंचे.

मकान के अंदर कमरों के दरवाजे खुले हुए थे. एक कमरे का नजारा बड़ा ही रहस्यमयी था. कमरे के बीचोबीच एक हवनकुंड बना था, जिस में अधजली लकडि़यां और हवन सामग्री पड़ी थी. कुछ हवन सामग्री हवनकुंड के बाहर भी पड़ी थी. वहीं एक छुरी, कुछ कटे नींबू, लौंग, जायफल, सिंदूर और किसी जानवर के बाल और 7 हड्डियां पड़ी थीं.

यह सब देख कर सभी हैरान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या है और गुरप्रीत कहां है? इस के बाद सभी दूसरे कमरे में पहुंचे तो उस कमरे का ज्यादातर सामान गायब था. एक कमरे में एक तख्त पड़ा था और लोहे की एक पुरानी अलमारी रखी थी.

जब उस अलमारी को खोल कर देखा गया तो सभी के होश उड़ गए. अलमारी खुलते ही उस के अंदर रखी गुरप्रीत की लाश फर्श पर गिर पड़ी. अपने जिगर के टुकड़े की हालत देख कर अशोक की चीख निकल गई. लोगों ने लाश उठा कर तख्त पर लिटा दी. मकान का मेनगेट खुलने पर रजनी भी अंदर आ गई थी. बेटे की लाश देख कर वह भी दहाड़े मार कर रोने लगी. फौरन पुलिस को सूचना दी गई.

सूचना मिलते ही थाना लंबड़ा के थानाप्रभारी सरबजीत सिंह टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. घटनास्थल पर पूरा गांव जमा था. थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना डीसीपी और क्राइम इन्वैस्टिगेशन टीम को दे दी थी. गांव वाले बच्चे की हत्या पर उत्तेजित थे. कुछ ही देर में एडिशनल डीसीपी परमिंदर सिंह भंडाल सहित अन्य अधिकारी भी वहां आ गए थे.

एडिशनल डीसीपी भंडाल ने गांव वालों को समझा कर शांत किया और भरोसा दिया कि जल्द ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया. बरामद सामान और माहौल देख कर साफ लग रहा था कि कमरे में तांत्रिक क्रिया की गई थी. मृतक बच्चे के माथे पर काला तिलक लगा था. गले में फूलों की माला, हाथों पर सिंदूर और गरदन पर खून के निशान थे. लाश को गोटा लगी लाल सुर्ख रंग की चुनरी में लपेट कर अलमारी में रखा गया था. उस के हाथपैर लाल रंग के मौली धागे से बंधे थे. सिर पर किसी भारी चीज के मारने की चोट थी.

अब तक की जांच से स्पष्ट हो गया था कि इंद्रजीत या किसी तांत्रिक ने गुरप्रीत की बलि दी गई थी. बहरहाल मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज कर कमरे से जरूरी सबूत कब्जे में ले लिए गए. इस के बाद अशोक कुमार के बयानों के आधार पर पुलिस ने इंद्रजीत के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी.

एडिशनल डीसीपी परमिंदर सिंह भंडाल ने आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अतिरिक्त थानाप्रभारी विजय कुमार, एएसआई गुरमेज सिंह, हैडकांस्टेबल जोगिंदर सिंह, तलविंदर सिंह, कांस्टेबल बलजीत  कुमार, कुलदीप सिंह की एक टीम बनाई बनाई, जिस का निर्देशन थानाप्रभारी सरबजीत सिंह को सौंपा गया.

गांव के लोगों को ले कर ले कर टीम माता चिंतपूर्णी के लिए रवाना हो गई. इस के अलावा थानाप्रभारी ने पूरे शहर में इंद्रजीत की तलाश में मुखबिरों को भी लगा दिया था. सरबजीत सिंह ने क्षेत्र में प्रमुख स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी निकलवा कर देखी. एक फुटेज में इंद्रजीत गुरप्रीत को ले कर जाता दिखाई दिया. उस के हाथ में कुरकुरे के पैकेट थे, एक अन्य फुटेज में इंद्रजीत हैंडबैग ले कर कहीं जा रहा था. शायद यह उस के फरार होने के समय का था.

पुलिस दिनरात इंद्रजीत की तलाश में जुटी थी. माता चिंतपूर्णी गई टीम खाली हाथ लौट आई थी. 4 दिनों बाद मुखबिर ने इंद्रजीत के बारे में पुख्ता सूचना दी. सूचना के आधार पर बस्ती जोधेयाल में दबिश दे कर इंद्रजीत को गिरफ्तार कर लिया गया. वह थका हुआ सा दिखाई दे रहा था.

पूछताछ शुरू करने से पहले ही उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के कहा कि उस ने एक ऐसा पाप कर दिया है, जिस की माफी शायद ही उसे मिले. इस के बाद गुरप्रीत की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह कोई नई नहीं थी. चालाक और शातिर लोग सदियों से दूसरों की कमजोरी का फायदा उठा कर अपना मनचाहा काम करवाते रहे हैं, यह भी उसी का नतीजा थी.

मंगतराम जालंधर में पिछले कई सालों से काम कर रहा था. उस की लगभग 4-5 महीने पहले इंद्रजीत से मुलाकात हुई थी. वह राजमिस्त्री का काम करता था. दोनों की जल्दी ही अच्छी जानपहचान हो गई और उस ने उसे रहने के लिए अपने घर पर जगह दे दी. मंगतराम की पत्नी ने उसे अपना देवर मान लिया और उस का खाना भी वही बनाने लगी. इंद्रजीत को पतिपत्नी ने अपने चक्रव्यूह में फंसा लिया.

इंद्रजीत कपूरथला के गांव रावलपिंडी के एक गरीब परिवार का लड़का था. उस की एक बहन थी जो शादी लायक थी और उस का रिश्ता भी तय हो गया था. 2 महीने बाद उस की शादी होने वाली थी. इंद्रजीत के पिता वृद्ध और कमजोर थे, पर जैसेतैसे वह घर के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम कर लेते थे.

3-4 सौ रुपए रोज की मजदूरी में बहन की शादी करनी असंभव थी. शादी के लिए लाखों रुपए की जरूरत थी, इसलिए इंद्रजीत किसी ऐसे बड़े आदमी या बड़े ठेकेदार की तलाश में था, जो उसे लाखों का कर्ज ब्याज पर दे सके या कोई ठेकेदार उसे लाखों रुपए एडवांस दे सके. वह हर महीने एक मुश्त रकम चुकाता रहेगा. यही एक तरीका था बहन की शादी करने का.

इस बात का पता जब मंगतराम को चला तो एक दिन शाम को उस ने घर पर बोतल मंगवा कर इंद्रजीत के साथ पीते हुए पूछा, ‘‘तुम्हें 2 लाख रुपए की जरूरत है न?’’

‘‘हां,’’ इंद्रजीत बोला, ‘‘बहन की शादी के लिए 2 लाख रुपए जल्द चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दे सकता हूं.’’ मंगतराम ने जाल फेंकते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ इंद्रजीत ने कुछ कहना चाहा तो मंगतराम ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘पहले मेरी पूरी बात सुन लो, मैं तुम्हें 2 लाख रुपए बिना ब्याज के दूंगा. मतलब 2 लाख रुपए दे कर वापस भी नहीं लूंगा, पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम?’’ इंद्रजीत ने पूछा तो मंगतराम ने कहा कि शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी उस की भाभी को औलाद नहीं हुई है. इस की कोख पर किसी जिन्न का साया है. वह खुद तांत्रिक है. उस ने अपनी तंत्र विद्या से जिन्न का साया हटा दिया है. अब उस से किसी ने कहा है कि वह एक 7 साल के बच्चे की बलि दे तो उस की आत्मा उस की पत्नी की कोख से जन्म ले लेगी.

मंगतराम ने बताया कि उस की पत्नी जानकी ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के चक्कर में पूरा माहौल तैयार कर लिया है. जिस बच्चे की बलि दी जानी है, उसे चुन लिया है. उसे बस उस के कहे अनुसार उस की बलि देनी है.

बच्चे की बलि की बात सुन कर इंद्रजीत एकबारगी घबरा गया. पर जब उस ने अपने घर में झांक कर देखा तो बच्चे की बलि से अधिक उसे अपनी जरूरत बड़ी लगी. काम कैसे करना है, यह सब मंगतराम ने उसे समझा दिया और सामान आदि के लिए 10 हजार रुपए भी दे दिए.

योजना के अनुसार, 7 अगस्त 2016 को जानकी ने मोहल्ले में कह दिया कि वह चिंतपूर्णी मंदिर जा रही है. उसी दिन मंगतराम पत्नी के साथ घर छोड़ कर चला गया. वे चिंतपूर्णी गए या कहीं और इस बात का अभी तक पता नहीं चला है.

बहरहाल अगले दिन योजना के अनुसार इंद्रजीत ने ट्यूशन पढ़ाने के बहाने सभी बच्चों घर बुला लिया. इस के पहले दोपहर को वह बाजार से पूजा की सामग्री ले आया था, जो उसे मंगतराम लिख कर दे गया था.

कुछ देर बाद उस ने सभी बच्चों की छुट्टी कर दी और गुरप्रीत को रोक लिया. गुरप्रीत से उस ने कहा कि वह सब से अच्छा बच्चा है, इसलिए वह उसे इनाम देगा. इनाम के लालच में गुरप्रीत वहीं रुक गया. वह गुरप्रीत को एक दुकान पर ले गया और वहां से उसे चौकलेट और कुरकुरे के पैकेट दिलवा दिए.

दुकान से सामान दिला कर वह गुरप्रीत को घर ले आया और उसे पीने के लिए पानी दिया, जिस में नशे की दवा मिली थी. पानी पीने के कुछ देर बाद गुरप्रीत बेहोश हो गया. इस के पहले कि वह अपना काम शुरू करता, गुरप्रीत को पूछने के लिए उस की मां आ गई.

रजनी को इंद्रजीत ने बहाना बना कर वापस भेज दिया और हवन कुंड में जल्दी से लकडि़यां जला कर मंगतराम द्वारा बताई गई क्रियाएं खत्म कर एक सूआ गुरप्रीत की सांस नली में घुसेड़ कर खून निकाला और बाद में सिर में ईंट मार कर जान ले ली. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए मंगतराम द्वारा बताए तरीके से उस की बलि चढ़ा हत्या कर के उस की लाश एक लाल रंग की चुनरी में लपेट कर अलमारी में रख दी और फरार हो गया.

पुलिस ने इंद्रजीत को अदालत में पेश कर पूछताछ के लिए रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि के दौरान उस की निशानदेही पर सूआ और ईंट बरामद कर ली गई, रिमांड खत्म होने पर उसे फिर से 18 अगस्त, 2016 को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

पुलिस इस बलिकांड के सूत्रधार मंगतराम और उस की पत्नी की सरगर्मी से तलाश कर रही है, पर उन के मिलने की संभावनाएं न के बराबर हैं. इस कांड से इंद्रजीत की बहन की शादी में तो समस्या आएगी, साथ ही रजनी को उस का बेटा गुरप्रीत कभी नहीं मिलेगा. तांत्रिक मंगतराम को औलाद होगी या नहीं? यह तो बाद की बात है, पर उस की इस घटिया सोच और अपराध ने एक मां से उस का बेटा जरूर छीन लिया है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित घटना का नाटकीय रूपांतरण किया गया है.

दोस्त के ब्रेकअप के बाद कैसे करें मदद

‘‘क्या हुआ, तुम इतनी उदास क्यों बैठी हो,’’ नीता ने पूछा तो नेहा फूट पड़ी, ‘‘अविनाश से मेरा ब्रेकअप हो गया है. काफी समय से हम दोनों साथ थे परंतु उस ने मुझे धोखा दे दिया. आई डोंट नो यार, वह तो हमेशा साथ निभाने की बातें करता था, लेकिन उस के मन में क्या चल रहा था यह मुझे पता नहीं था.’’

‘‘यार नेहा, छोड़ अब इन बातों को और अपनी जिंदगी की नए सिरे से शुरुआत कर,’’ नीता ने नेहा के आंसू पोंछते हुए समझाया.

अकसर देखने में आता है कि ब्रेकअप के बाद युवतियां अपनेआप को काफी हताश महसूस करने लगती हैं साथ ही मानसिक रूप से भी इतनी अधिक कमजोर पड़ जाती हैं कि उन्हें जरूरत होती है ऐेसे दोस्त की जो उन्हें समझ सके.

अगर आप की दोस्त का भी ब्रेकअप हो गया है तो आप अपनी दोस्त को इस मुश्किल घड़ी से निकालने में मदद कर सकते हैं जानिए कैसे :

समझदारी दिखाएं

सब से पहले जरूरी है कि आप उस की बात समझिए आखिर उन के बीच हुआ क्या था? उसे अपने मन की बात बोलने दें, इस से उस का मन हलका होगा और जब आप उस की बात सुनेंगे तो उसे अपनेपन का एहसास भी होगा.

ब्रेकअप के बाद वैसे भी दोनों पार्टनर के मन में काफी कुछ चलता रहता है. दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराते नजर आते हैं. ऐसे में आप की दोस्त में भी काफी गुस्सा होना लाजमी है. यदि वह आप को सबकुछ बता देगी तो उस का मन शांत हो जाएगा इसलिए बिना कोई राय दिए उस की पूरी बात सुनें.

अनदेखा करना

कई बार ऐसा होता है कि शुरू में जब आप की दोस्त का दिल टूटा होता है, आप उस की सब बातें सुन लेते हैं, लेकिन थोड़े दिन बाद उसे अनदेखा करने लगते हैं. इस से वह मानसिक तौर पर भी टूट जाती है, क्योंकि जिस से वह प्यार करती थी वह तो दूर चला ही गया अब तो उस के सच्चे दोस्त भी उसे अनदेखा कर रहे हैं.

इसलिए जरूरी है कि इस दौरान जब भी उसे अकेलापन महसूस हो, तो आप उसे खुशी का एहसास कराएं. इस से वह बेहतर तरीके से आप से जुड़ पाएगी और मजबूत होती चली जाएगी. इस के लिए आप उसे ज्यादा से ज्यादा समय दें, जब वह निराश हो तो उस में अपनी पौजिटिव बातों से नई ऊर्जा भरने की कोशिश करें. इस से वह बहुत जल्दी इस गम से उभर पाएगी.

घूमने जाएं

यदि आप उस के साथ कहीं घूमने का प्रोग्राम बनाते हैं तो उसे अच्छा लगेगा, क्योंकि ब्रेकअप के बाद युवतियां काफी तनाव में आ जाती हैं. इस तनाव से उभारने के लिए जरूरी है कि  आप उस का ध्यान किसी और जगह पर लगाएं. सभी पुराने दोस्तों को इकट्ठा करें और कहीं घूमने का प्लान बनाएं. किसी ऐसी जगह, जहां आप सभी ऐंजौय कर सकें. जैसे किसी कौमेडी मूवी को देखने या ऐम्यूजमैंट पार्क आदि जगहों पर वह अपनेआप को बेहतर महसूस करेगी और वैसे भी पुराने दोस्तों के साथ मजा दोगुना हो जाएगा.

विश्वासघात न करें

यदि आप अपनी दोस्त का सच्चा मित्र बनना चाहते हैं तो जरूरी है कि आप उस से विश्वासघात न करें. जब वह आप के  सामने अपनी बातें शेयर कर रही हो तो जरूरी है कि आप उस की बातों को और कहीं किसी के सामने न बताएं, क्योंकि शायद उस ने अपने ब्रेकअप से पहले की कुछ सीक्रेट बातें आप से कह दी हों, लेकिन ऐसे में आप का फर्ज है कि उन की बातों को अपने तक ही रखें. धीरेधीरे आप उन के सब से भरोसेमंद फ्रैंड बन जाएंगे और वह आप से हर तरह की बात शेयर कर पाएगी.

बौयफ्रैंड की बुराई न करें

आप की दोस्त का बौयफ्रैंड जिस से उस का ब्रेकअप हुआ है, की बुराई न करें. इस से उस का मन और भी दुखी होगा. साथ ही वह बहुत ज्यादा तनाव महसूस करेगी बल्कि कोशिश करें कि  वह इन बातों से उबर सके, क्योंकि जितनी बातें आप उस से ब्रेकअप के बारे में करेंगे या उस के ऐक्स केबारे में करेंगे वह उतनी ही परेशान होगी. यह भी हो सकता है कि वह इरिटेट हो कर आप से बात करना ही छोड़ दे.

मजाक न बनाएं

कई लोगों की आदत होती है कि वे दूसरों की बातों का मजाक उड़ाते फिरते हैं. यह भी नहीं सोचते कि उस पर क्या गुजर रही है. जरूरी यह है कि आप किसी की भावनाओं को बिना ठेस पहुंचाए उस को ऐसी परिस्थितियों से उबारने की कोशिश करें. मुश्किलें तो हर किसी के जीवन में आती हैं, लेकिन यदि हम सच्चे दोस्त हैं तो जरूरी है कि इस मुश्किल घड़ी में उस का साथ दें.

नए रिश्ते बनाने की सलाह

ब्रेकअप के बाद जब आप की फ्रैंड सिंगल है तो इस का यह मतलब कतई न निकालें कि उसे एक बौयफ्रैंड की सख्त जरूरत है. उसे समझाएं कि उस का ऐक्स बौयफ्रैंड उस के लिए बना ही नहीं था, उसे किसी ऐसे का चुनाव करना चाहिए जो उसे समझ सके. इस से उसे भी लगेगा कि जल्दबाजी में किसी से भी दोस्ती करने का कोई फायदा नहीं होगा.

व्हाट्सऐप की लत है गलत

जब से व्हाट्सऐप नामक तकनीकी भूचाल ने हमारी जिंदगी में प्रवेश किया है, तब से हमारी जिंदगी का स्वरूप ही बदल गया है. पुरुष हो या महिला, बुजुर्ग हों या बच्चे, सभी के हाथ में स्मार्टफोन हैं. सभी व्यस्त हैं अपनेआप में व्हाट्सऐप के माध्यम से. जहां एक तरफ व्हाट्सऐप ने हमारे लिए जीवन में अत्यंत सुगमता और खुशियां भर दी हैं वहीं उस की ही वजह से जिंदगी में अनेक तरह के तनाव भी उत्पन्न हो रहे हैं.

ये तनाव एक साइलैंट किलर की तरह हमारे स्वास्थ्य को खा रहे हैं जिस का एहसास हमें होता तो है पर अपने इस तनाव की चर्चा हम किसी से कर नहीं सकते. चर्चा करने पर हंसी के पात्र बनने की संभावना होती है, क्योंकि व्हाट्सऐप से उपजा तनाव होता ही है कुछ अलग तरह का.

व्हाट्सऐप से उत्पन्न होने वाले तनाव देखनेसुनने में तो बहुत मामूली लगते हैं पर जिन लोगों ने व्हाट्सऐप को अपनी दिनचर्या का अहम हिस्सा बना रखा है, निश्चितरूप से ये छोटीछोटी बातें उन के दिलोदिमाग पर दिनरात हावी हो कर न केवल उन की दिनचर्या को प्रभावित करती हैं, बल्कि उन के मानसिक स्वास्थ्य और दैनिक व्यवहार को भी प्रभावित करती हैं.

जवाब का इंतजार

जब भी लोग व्हाट्सऐप पर कोई मैसेज भेजते हैं तो भेजने के तुरंत बाद से ही दिमाग यह जानने को उत्सुक हो उठता है कि मैसेज डिलीवर हुआ या नहीं और उस के तुरंत बाद से मैसेज के जवाब या उस पर आने वाले कमैंट्स के इंतजार में दिमाग उलझ जाता है. हर मिनट 2 मिनट पर व्हाट्सऐप औन कर के जवाब चैक किया जाता है.

अगर भेजे गए मैसेज का जवाब आशा के अनुरूप तुरंत आ गया तब तो ठीक है, किंतु यदि जवाब आने में देर हुई या किसी वजह से 1-2 दिनों तक नहीं आया तब तो तनाव का माप अत्यंत बढ़ जाता है. जैसा कि इंसान का स्वभाव होता है उस के दिमाग में गलत और खराब खयाल ही जल्दी आते हैं और वह बजाय यह सोचने के कि हो सकता है मैसेज पढ़ने वाला किसी वजह से अत्यंत व्यस्त या परेशान हो जिस की वजह से मैसेज का जवाब नहीं दे पाया, वह यह सोचने लगता है कि कहीं वह नाराज तो नहीं है, कहीं वह जानबूझ कर उपेक्षा तो नहीं कर रहा है या कहीं ऐसा तो नहीं कि मैसेज का जवाब न दे कर वह नीचा दिखाना चाहता है.

यानी मैसेज डिलीवर हुआ या नहीं, पढ़ा गया या नहीं और उस के बाद मैसेज का जवाब आया या नहीं और जवाब आया तो वह अनुकूल आया या प्रतिकूल, यह जिंदगी में व्हाट्सऐप के माध्यम से उत्पन्न हुआ ऐसा तनाव है जो हर पल, हर क्षण हमारे व्यवहार व हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है.

ग्रुप, चैटिंग व मनमुटाव

व्हाट्सऐप पर ग्रुप बनाना और ग्रुप चैटिंग करना समय व्यतीत करने और एक समय में ही बहुत सारे लोगों के साथ जुड़ने का बहुत ही रोचक व पसंदीदा माध्यम है. पारिवारिक सदस्यों का ग्रुप, मित्रों का ग्रुप, कार्यालय ग्रुप, पड़ोसियों का ग्रुप, बच्चों के स्कूल का ग्रुप, भाईबहनों का ग्रुप, ऐसे कम से कम 5-7 ग्रुप लगभग हर व्हाट्सऐप यूजर्स के होते हैं.

ग्रुप चैटिंग की सब से खास बात यह होती है कि जब यह चैटिंग शुरू हो जाती है तब उस का रुकना और उस में शामिल न होना दोनों ही अपने वश में नहीं रह जाता और एकएक कर के अनेक लोग जब चैटिंग में शामिल होते जाते हैं तो एक अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है.

ग्रुप चैटिंग का समापन यदि अच्छी और खुशनुमा बातों के साथ हो जाता है तब तो वह दिनभर हमारे मुसकराने और दिन को खुशनुमा बनाने के लिए पर्याप्त होता है किंतु यदि चैटिंग में किसी बात पर बहस या वादविवाद शुरू हो जाए तो वह फिर न केवल दिन खराब करने के लिए काफी हो जाता है, बल्कि बैठेबैठे ही रिश्तों में दरार भी डाल जाता है.

अगर हम आमने सामने होते हैं तो बात बुरी लगने पर हमें चेहरे के हावभाव से पता भी लग जाता है और हमें बात को संभालने का मौका मिल जाता है पर व्हाट्सऐप पर लिखी हुई बात तीर से निकले कमान की तरह हो जाती है जिसे रोक पाने का कोई माध्यम नहीं होता. बात चूंकि कई लोगों के बीच हुई होती है, इसलिए वह सरलता से शांत भी नहीं होती. और कई बार तो ऐसा होता है कि उस बहस पर व्यक्तिगत चैटिंग द्वारा एक नई बहस शुरू हो जाती है.

कई बार तो ऐसा भी होता है कि ग्रुप में विवाद या बहस होने के बाद उस ग्रुप के 4-6 सदस्यों का अलग एक ग्रुप बन जाता है जहां वे खुल कर अपने विरोधी पक्ष के बारे में अपनी भड़ास निकालने लगते हैं. यानी व्हाट्सऐप एक ऐसा कीड़ा है जो दूरदूर से ही लोगों के मन में द्वेष उत्पन्न कर दरार व मनमुटाव का जहर फैला देता है.

कमतरी का एहसास

यों तो सभी अपनेअपने जीवन में सुखी, संपन्न और खुश है किंतु जिस तरह किसी बड़ी लाइन के बगल में उस से बड़ी लाइन खींच दी जाती है तो वह बड़ी लाइन छोटी लगने लग जाती है, ठीक उसी तरह शांत और सुखी जीवन में असंतोष तब व्याप्त हो जाता है जब आसपास बड़ी कोई लकीर दिख जाती है और इस तरह का असंतोष फैलाने में व्हाट्सऐप अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा है.

किसी ने शिमला की वादियों में घूमते हुए अपनी फोटो खींच कर व्हाट्सऐप पर डाल दी तो खुशीखुशी घरगृहस्थी में रमी गृहिणी के मन में असंतोष का बीज पनप उठा, ‘मेरी जिंदगी में तो चूल्हाचौका के अलावा कुछ और लिखा ही नहीं है.’

किसी ने अपने बेटे के 93 प्रतिशत अंक पाने की खुशी सुनाई तो अपने बेटे के 85 प्रतिशत अंक पर पानी फिर जाता है. किसी ने रैस्टोरैंट में खाना खाते हुए अपनी फोटो शेयर कर दी तो घर में पूरे परिवार के साथ हंसते खिलखिलाते माहौल में खाना खाते सदस्यों के मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है.

इसी तरह ग्रुप चैटिंग में किस ने हमारे पोस्ट पर कमैंट किया, किस ने नहीं किया, कौन किस के पोस्ट पर ज्यादा कमैंट्स दे रहा है और कौन नहीं, जैसी बचकानी बातें भी कुछ व्हाट्सऐप यूजर्स को तनाव दे रही हैं और रिश्तों में मनमुटाव उत्पन्न कर रही हैं.

समय की बरबादी

सच तो यह है कि जहां एक तरफ व्हाट्सऐप का आवश्यकता से अधिक उपयोग करना हमारे समय और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है वहीं दूसरी तरफ व्हाट्सऐप ने हमारे जीवन को इतना सरल, रोचक और साधनसंपन्न बना दिया है कि अब उस के बिना जीवन की कल्पना रसहीन लगती है. व्हाट्सऐप के माध्यम से अपनों के बीच एकएक पल की खुशियां, एकएक पल की जानकारी शेयर कर के जो खुशी मिलती है उस का कोई जवाब नहीं है.

पलभर में हजारों किलोमीटर दूर बैठे अपनों की तसवीर देख पाना, समयाभाव वश किसी कार्यक्रम में न पहुंच पाने के बावजूद हर एक पल की जानकारी फोटो समेत तुरंत पा जाना, लिखित दस्तावेज एक सैकंड में एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा देना जैसी सुविधाएं व्हाट्सऐप के माध्यम से ही संभव हैं.

समझदारी से सदुपयोग करें

आवश्यकता इस बात की है कि हम व्हाट्सऐप के इस्तेमाल को अपनी आदत न बनाएं बल्कि उस का सदुपयोग समझदारीपूर्वक करें.

  • व्हाट्सऐप पर मनोरंजन के नाम पर जितना ही अधिक समय गुजारेंगे वह उतना ही अधिक हानिकारक होगा किंतु सोचसमझ कर और आवश्यकतानुसार उस का उपयोग करना हमारे लिए बेहद फलदायी हो सकता है.
  • आवश्यकता इस बात की भी है कि यदि व्हाट्सऐप को पूरी तरह अपने जीवन में रचाबसा लिया है और हर

5 मिनट पर उसे चैक किए बिना रहा नहीं जाता तो कुछ बातों को ध्यान में रख कर अपने तनाव पर नियंत्रण करें.

  • कोशिश इस बात की करनी चाहिए कि यदि आवश्यकता से अधिक व्हाट्सऐप यूज करने की आदत पड़ गई हो तो सब से पहले, धीरेधीरे कर के ही सही, व्हाट्सऐप में अपनी तल्लीनता में कमी लाएं.
  • मैसेज भेजने के बाद वह पढ़ा गया या नहीं, और उस का जवाब आया कि नहीं, उस पर किसी ने कमैंट किया या नहीं, यह देखने के लिए और जवाब के इंतजार में बारबार व्हाट्सऐप चैक न करें.
  • यदि अपेक्षित समय में जवाब नहीं आता है तो मन में नकारात्मक विचार न उत्पन्न होने दें, क्योंकि हो सकता है कि जब मैसेज डिलीवर हुआ हो और पढ़ा गया हो, उस समय प्राप्तकर्ता इस परिस्थिति में न हो कि वह तुरंत मैसेज का रिप्लाई कर सके क्योंकि मैसेज पढ़ा तो कभी भी, कहीं भी और किसी भी परिस्थिति में  जा सकता है किंतु रिप्लाई करने के लिए मनोस्थिति का शांत और परिस्थिति का अनुकूल होना जरूरी है.
  • अगर कोई अस्पताल में अपने या अपने प्रियजन के इलाज के लिए गया हुआ है या किसी इंटरव्यू के लिए औफिस के बाहर बैठा हुआ है तो ऐसी दशा में अपना समय व्यतीत करने या दिमाग से तनाव को झटकने के लिए व्हाट्सऐप के मैसेजेज पढ़े तो जाते हैं किंतु जवाब एक का भी नहीं लिखा जाता क्योंकि उस समय उस की मनोस्थिति अस्थिर होती है.
  • ट्रेन, बस, आटो, कार से कहीं भी सफर करतेकरते भी मैसेज पढ़ना तो आम बात है पर जवाब उस समय भी नहीं लिखा जा सकता. और अकसर ऐसा भी हो जाता है कि मैसेज पढ़ कर के तुरंत अगर उस का जवाब नहीं दे दिया गया हो, तो बाद में वह दिमाग से उतर भी जाता है.
  • व्हाट्सऐप का प्रयोग अगर अपने व्यवसाय, आवश्यक सूचनाओं के आदानप्रदान, अध्ययन, तथा आवश्यक दस्तावेजों के आदानप्रदान के लिए करें तो यह हमारे जीवन को सुगम व सरल बनाता प्रतीत होता है और अत्यंत सुविधाजनक होता है किंतु जब इस का प्रयोग मनोरंजन और टाइमपास के लिए किया जाता है तो जरा सी असावधानी से कई बार यह तनाव का कारण बन जाता है.
  • आवश्यक है कि व्हाट्सऐप का प्रयोग तो करें पर उसे अपने जीवन के लिए जहर न बनाएं. जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ, दुखबीमारी आदि अवसरों पर व्हाट्सऐप के बजाय मिल कर या फोन कर के रिश्तों को मजबूत व सुखद बनाने का प्रयत्न करें.

बोलने की क्षमता का हृास

व्हाट्सऐप से यूजर्स को एक अहम नुकसान यह भी हो रहा है कि उन का बातचीत करने का कौशल घट रहा है. फोन की सुविधा ने मिलनेजुलने की परंपरा कम कर दी थी. इंसान मिलने के बजाय फोन के माध्यम से ही लेनेदेने का कार्य करने लगा था. उस में गनीमत इतनी थी कि इंसान आवाज के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ता था पर अब व्हाट्सऐप द्वारा तो मूकबधिरों की तरह सूचनाओं और हालचाल का आदान प्रदान होने लगा है. ऐसा लगता है कि अभी तो सुबह सुबह पार्क में लोग इकट्ठे होते हैं हंसने के लिए, कुछ सालों बाद बोलने के लिए भी इकट्ठे होने लगेंगे.

पढ़ाई लिखाई में पिछड़ते बच्चे, कुसूरवार कौन

तमाम तरह की सहूलियतें मिलने के बावजूद सरकारी प्राइमरी स्कूलों से ले कर बड़े स्कूलों के छात्र पढ़ाईलिखाई में पिछड़ रहे हैं और राज्य सरकारें यह ढिंढोरा पीट रही हैं कि उन के यहां साक्षरता दर बढ़ी है. सही माने में आज 7वीं 8वीं जमात के छात्रों को ठीक ढंग से जमा, घटा, गुणा, भाग के आसान सवाल भी हल करने नहीं आते हैं. अंगरेजी भाषा के बारे में तो उन का ग्राफ बहुत नीचे है. वे हिंदी भी नहीं लिख सकते हैं, न ही आसानी से पढ़ सकते हैं. क्या है इस की वजह?

स्कूलों में तख्ती लिखने को खत्म कर देने के चलते आज ज्यादातर छात्रों की लिखाई पढ़ने में ही नहीं आ पाती है. ऐसे छात्रों की नोटबुक जांच करने में टीचरों को खूब पसीना बहाना पड़ता है.

सालों पहले तख्ती लिखने पर बहुत जोर दिया जाता था, ताकि बचपन से छात्रों की लिखाई सुंदर हो और उन को वर्णमाला की पहचान हो सके. तब होमवर्क के तौर पर उन को तख्ती लिखने के लिए बढ़ावा दिया जाता था. अगले दिन टीचर उन छात्रों की तख्तियों की जांच करते थे. कच्ची छुट्टी यानी स्कूल इंटरवल में छात्र उन तख्तियों को धोते थे और दोबारा तख्ती लिखते थे.

अब यह बीते जमाने की बात हो गई है. अब तो पहली जमात का छात्र भी जैलपैन या बालपैन का इस्तेमाल करना अपनी शान समझता है. यही वजह है कि छात्रों की लिखाई अच्छी नहीं बन पाती है और इम्तिहान में उन के नंबर कम हो जाते हैं.

कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन होता है. यह कहावत तब कसौटी पर खरी उतरेगी, जब प्राइमरी स्कूलों के छात्रों को पढ़ाईलिखाई के साथसाथ खेलों के लिए भी वक्त दिया जाएगा.

प्राइमरी स्कूलों में पीरियड सिस्टम ही नहीं है, इसलिए यह टीचर की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह पूरे दिन किसकिस सबजैक्ट को कितनी देर पढ़ा कर बच्चों को बीच में रिलैक्स करने के लिए कह दे. सरकारी स्कूलों में खेल पीरियडों के लिए कोई खास तवज्जुह नहीं दी गई है.

अगर खेल पीरियड का इंतजाम हो तो बच्चों में पढ़ाईलिखाई के साथसाथ खेलकूद में भी अच्छा तालमेल हो जाएगा. जहांजहां प्राइमरी स्कूलों के साथ मिडिल, हाई या सीनियर सैकेंडरी स्कूल हैं, वहां बच्चों के लिए स्पोर्ट्स पीरियड भी होता है. बड़े स्कूल के छात्र जब मैदान में खेलते हैं, तब प्राइमरी स्कूल के छात्रों का मन भी खेलने को करता है, पर वे अपने मन की बात किसी से नहीं कह पाते हैं.

ऐसे छात्रों को सिर्फ इतना पता होता है कि उन का स्कूल सुबह 9 बजे लगता है और उन की 3 बजे छुट्टी होती है.

इस बीच उन्हें दोपहर 12 बज कर 20 मिनट से 1 बजे तक का वक्त दोपहर के भोजन के लिए मिलता है यानी स्कूल के 6 घंटों के बीच उन्हें खेलने के लिए समय कोई पीरियड नहीं मिलता है.

हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो एक जिले में डिप्टी डायरैक्टर, ऐजूकेशन ने फरमान जारी किया है कि पहली से  5वीं जमात तक के छात्रों की इकट्ठे ही 3 बजे छुट्टी की जाए. ऐसे डिप्टी डायरैक्टर को कैसे समझाया जाए कि पहलीदूसरी जमात के छात्र इतनी लंबी सिटिंग नहीं कर सकते हैं. उन के लिए तो यह बोरियत भरा काम हो जाएगा.

इन स्कूलों में डिक्टेशन का चलन भी खत्म हो गया है. डिक्टेशन से एक ओर जहां बच्चों को सही रूप से लिखने का अभ्यास होता है, वहीं दूसरी ओर उन के लिखने की रफ्तार बढ़ती है और शब्दों का उच्चारण भी सही ढंग से होता है. उन की गलतियों को सुधारने की गुंजाइश बनी रहती है और वे इम्तिहान में अच्छे ढंग से लिख कर तय समय में पूरे सवाल हल कर पाते हैं.

पहले प्राइमरी स्कूलों में हर शनिवार को आधी छुट्टी के बाद बाल सभा कराई जाती थी, जिस में छात्र बड़े जोश के साथ कविता, एकलगान व एकांकी जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे. उन को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता था.

पर अब ये बातें यादों का हिस्सा बन गई हैं. अब तो टीचरों को ऐसा लगता है कि इस तरह के आयोजनों का मतलब है समय को बरबाद करना, जबकि इस तरह के आयोजनों से छात्रों का खुद पर यकीन बढ़ता है और उन में कुछ नया कर दिखाने की ललक बढ़ती है.

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की बात की जाए, तो यहां 5 शिक्षा खंड, सदर, घुमारवीं एक, घुमारवीं द्वितीय, स्वारघाट व झंडूता शिक्षा खंड हैं. पूरे जिले में कुल 593 प्राइमरी स्कूल हैं.

सदर शिक्षा खंड के तहत 153 स्कूल हैं और छात्रों की तादात 4101, घुमारवीं एक शिक्षा खंड में 106 स्कूल, घुमारवीं द्वितीय शिक्षा खंड में 92 स्कूल और छात्रों की तादाद 2561 है.

स्वारघाट शिक्षा खंड में 120 स्कूल व छात्रों की तादाद 3523 है, जबकि झंडूता शिक्षा खंड में स्कूलों की तादाद 122 है और इन में 3521 छात्र पढ़ रहे हैं.

पर पिछले साल ही जिस डिप्टी डायरैक्टर, प्राइमरी स्कूल ने इस जिले में काम संभाला है, उस शख्स का नाम है पीसी वर्मा. उन्होंने स्कूलों का धड़ाधड़ निरीक्षण कर के प्राइमरी स्कूलों के उन टीचरों के छक्के छुड़ा दिए हैं, जो स्कूलों के लिए बोझ बने हुए हैं.

पीसी वर्मा ने दूरदराज के इलाकों में बने स्कूलों में दस्तक दे कर उन टीचरों को यह कड़ा संदेश दिया है कि वे छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ न कर के अपने फर्ज का पालन करें.

पीसी वर्मा ने 29 दिसंबर, 2015 को सदर शिक्षा खंड के तहत आने वाले ‘सिहड़ा’ व ‘सिहड़ा खास’ स्कूलों में निरीक्षण के दौरान छात्रों की पढ़ाईलिखाई का लैवल जांचा, जो कसौटी पर खरा उतरा, जबकि 12 फरवरी, 2016 को बागी प्राइमरी स्कूल व 25 फरवरी, 2016 को पंजगाई स्कूल में खामियां पाई गईं. उन्होंने टीचरों को इस के लिए कुसूरवार ठहराया.

सदर खंड के खंड प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी बनारसी दास का कहना है कि वे नियमित तौर पर स्कूलों का निरीक्षण करते हैं और जो टीचर ड्यूटी के प्रति कोताही बरतता है, उस पर कार्यवाही की जाती है.

सदर खंड के खंड स्रोत केंद्र समवन्यक राजेश गर्ग का कहना है कि पढ़ाईलिखाई में क्वालिटी लाने के लिए सभी एकजुट हो कर कोशिश करें, तो उस के नतीजे अच्छे रहते हैं. जिन टीचरों का काम अच्छा होता है, उन को तरक्की मिलनी चाहिए और जो अपने फर्ज के प्रति लापरवाह रहते हैं उन की डिमोशन होनी चाहिए.

समाजसेवी दया प्रकाश कहते हैं कि अफसर चाहे जितने भी निरीक्षण कर लें, सूचना पहले ही लीक हो जाती है और मोबाइल क्रांति द्वारा सबकुछ दुरुस्त हो जाता है. ऐसे में छात्र पढ़ाईलिखाई में पिछड़ते रहेंगे. ढुलमुल सरकारी नीतियां भी इस के लिए जिम्मेदार हैं.

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