किराएदार नहीं मकान मालिक बन कर जिएं, कोई धर्म कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा

जब कोई आदमी किसी के घर पर पैसे दे कर रहे तो वह उस का किराएदार कहलाता है. पर अमूमन ज्यादातर किराएदार किराए के मकान में कैसे रहते हैं, यह सब जानते हैं. उन्हें घर के रखरखाव से ज्यादा मतलब नहीं होता है.

दीपक की भी यही समस्या थी. उस का किराएदार नया शादीशुदा जोड़ा अपने में ही मगन रहता था. वे दोनों प्रेम के पंछी किराया तो समय पर देते थे, पर घर की साफसफाई पर कोई ध्यान नहीं देते थे.

एक दिन दीपक की मां छत पर कपड़े सुखाने आईं. छत की साफसफाई की जिम्मेदारी उस जोड़े की थी, क्योंकि वे पहली मंजिल पर रहते थे. पर मजाल है पिछले कई दिनों से बुहारी हुई हो. मां को गुस्सा आया और वे उस जोड़े से मिलने चली गईं. पर घर के भीतर तो और भी बुरा हाल था. पोंछे की तो छोड़िए, फर्श पर झाड़ू तक नहीं लगी थी. रसोईघर का कबाड़ा कर दिया था. दीवारों पर जाले लगे थे और बाथरूम देख कर तो वे धन्य हो गईं. नल टपक रहा था और दीवार पर सीलन के चलते पपड़ी जमा थी. शायद दीवार के भीतर पानी का कोई पाइप फट गया था, लेकिन उन्हें बताया जाना जरूरी नहीं समझा गया.

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यह हाल हर उस घर का है जहां किराएदारों ने मकान मालिक के सपनों के आंगन को नरक बना दिया है. नरक से याद आया धर्म का वह बेरहम एंगल जिस में उस के ठेकेदार धर्मभीरु जनता को यह समझाने में लगे रहते हैं कि यह शरीर और दुनिया तो किराए का घर हैं, अपना असली प्लौट तो यह दुनिया और शरीर छोड़ने के बाद मोक्ष के रूप में स्वर्ग में मिलेगा, जहां मनोरंजन के लिए अप्सराएं और देवता आप के लिए 24 घंटे हाजिर रहेंगे. और अगर कहीं कोई गड़बड़ की तो नरक भी मौजूद है, जहां आप की आत्मा को इतना सताया जाएगा कि वह अगली बार किराएदार बनने के लायक भी नहीं रहेगी.

दरअसल, स्वर्ग का लालच और नरक का डर धर्म के धंधेबाजों का वह अचूक पैतरा है जो गरीबअमीर, अनपढ़ और तालीमशुदा पर एकजैसा असर करता है. यह जो भय का भगवान है, उस ने इस दुनिया में धर्म की बेहिसाब मजबूत दुकानें खोल दी हैं और उस के ठेकेदार उन दुकानों के मालिक बन बैठे हैं जो पूजापाठ कराने के बहाने हमारे जीतेजी हमें ही स्वर्ग का टिकट बांटते हैं.

दरअसल, कोई भी इनसान पूजापाठ 2 वजह से करता है, डर या लालच. लेकिन थोड़ा सा दिमाग लगा कर समझें तो हर धर्म में यह बताया जाता है कि जब कोई मरता है तो उस की आत्मा, सोल या रूह शरीर छोड़ देती है और वही उस स्वर्ग, हैवन या जन्नत में जाती है जहां मोक्ष मिलता है. पर यह आत्मा है क्या और जब यह हमारे शरीर की नहीं हुई तो इस बात की क्या गारंटी है कि यह हमें मोक्ष दिलवा देगी?

हिंदू धर्मग्रंथों में लिखा है कि आत्मा न पानी में डूब सकती है न हवा से उड़ सकती है और न ही आग में जल सकती है. मतलब आत्मा पर किसी चीज का कोई असर नहीं होता. वह तो अमर है. तो फिर लोगों को स्वर्ग का लालच और नरक की डर क्यों दिखाया जाता है?

अगर कोई किराएदार ढंग से नहीं रहता है, घर की साफसफाई में कोताही बरतता है, तो मकान मालिक उसे नोटिस दे कर घर से निकाल देता है. पर धर्म के धंधेबाज इस का उलटा करते हैं. वे तो चाहते हैं कि आप हमेशा इस दुनिया में नकारा किराएदार बन कर रहें. न इस दुनिया की खूबसूरती को समझें और न अपने शरीर की ताकत को.

ऐसे शातिर लोग आप को उन चीजों में उलझाए रखना चाहते हैं जो आप के किसी काम की नहीं हैं, जैसे रोजगार करो या न करो पर दानी पक्के बनो. स्कूल बेशक न जाओ पर धर्मस्थलों की शोभा बनो. मंदिर, मसजिद और चर्च में भजनकीर्तन, नमाज, प्रार्थना को ही अपना सब से बड़ा सुख मानो.

इस प्रपंच में कामयाब होने लिए धर्म के ठेकेदार हमारे शरीर को सब से बड़ा हथियार बनाते हैं. वे ही इसे 4 ऐसे हिस्सों में बांट देते हैं, जो जातिवाद की जहरीली जड़ है. इस में रंगभेद का तड़का लगने से मामला और ज्यादा बिगड़ जाता है. उस के बाद धर्मभीरु लोगों का एक ही मकसद होता है कि चाहे शरीर से प्राण ही क्यों न छूट जाएं, पर धर्म का झंडा हवा में लहराता रहना चाहिए.

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जबकि सच तो यह है कि यह खूबसूरत दुनिया और हमारा निरोगी व कामकाजी शरीर ही सब से बड़ा मोक्ष है और हमें जीतेजी ही उस मोक्ष का मजा लेना है. क्या किसी किसान को खेत में पसीना बहाते हुए किसी भगवान की जरूरत पड़ती है? क्या कोई सेठ दुकान पर ग्राहकों से मोलभाव में चाहेगा कि कोई भगवान उस के काम में खलल डाले? कभी नहीं. कहने का मतलब यह है कि जब हम अपने काम में मगन होते हैं तो मोक्ष में होते हैं. हमें दीनदुनिया से कोई मतलब नहीं रहता है.

लेकिन यही बात धर्म के धंधेबाजों को खटकती है,लिहाजा वे लोगों को नकारा बनाए रखना चाहते हैं. उन्हें इस डर के साए में जीने को मजबूर करते हैं कि भगवान नहीं तो कुछ नहीं.

पर एक लाख टके का सवाल यह है कि वे खुद क्यों इसी दुनिया में रह कर ऐशोआराम से मौज काट रहे हैं? अपने धर्म के रहनुमाओं पर नजर दौड़ाइए. लाल चेहरा, सुर्ख गाल, आलीशन महल जैसे आशियाने, सरकार से मिलने वाली चाकचौबंद सिक्योरिटी, पैरों में गिरते हमआप जैसों के सिर… उन की क्या मति मारी गई है जो इस दुनिया को छोड़ कर किसी अनदेखे स्वर्ग का टिकट कटाएंगे. याद रखिए, जिस दिन इनसान ने अमर होने का फार्मूला खोज लिया, तो उसे पाने की कतार में इन्हीं पाखंडियों का पहला नंबर होगा.

होना तो यह चाहिए कि आम जनता इन शातिरों के धार्मिक प्रपंचों से बाहर निकले और अपने शरीर को सेहतमंद और काम करने लायक बनाए. अपनी मेहनत को कुदरत की नेमत समझे, इसलिए खुद को इस दुनिया में बेगैरत किराएदार न बनने दें, बल्कि एक होशियार मकान मालिक की तरह इसे अपनी जायदाद समझ कर सजाएंसंवारें. फिर किसी भगवान और उस के एजेंट की जरूरत नहीं पड़ेगी, यह गारंटी है.

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