तो अब धार्मिक रिवाजों से इंसाफ मिलेगा

आखिरकार धार्मिक रीति और नीतियां कैसे महिलाओं के इंसाफ के लिए रुकावट बनती हैं, इस का जीताजागता उदाहरण इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश से सामने आया, जो उस ने 23 मई, 2023 को दिया था.

मामला उत्तर प्रदेश के चिनहट क्षेत्र का है, जहां एक लड़की ने गोविंद राय उर्फ मोनू पर शादी का झांसा दे कर सैक्स संबंध बनाने का आरोप लगाया. अपने बचाव में आरोपी ने दलील दी

कि उस ने आरोप लगाने वाली लड़की से ब्याह करना तो चाहा, पर चूंकि लड़की मांगलिक थी, इसलिए उस ने शादी नहीं की.

यहां इस धार्मिक रिवाज का जिक्र करना जरूरी है कि मंगली या मांगलिक होना हिंदू परंपरा के अनुसार मंगल के प्रभाव में पैदा हुआ वह इनसान है, जिस की शादी सिर्फ किसी मांगलिक इनसान से ही हो सकती है.

धार्मिक रिवाजों के अनुसार इसे एक तरह का ‘भाग्यदोष’ कहा जाता है यानी लड़की की शादी इस दोष में आसान नहीं होती और कहा जाता है कि अगर वह किसी गैरमांगलिक लड़के से शादी करेगी तो भारी अनहोनी घट सकती है, जैसे शादी टूटना, परिवार में किसी की मौत होना, लड़ाईझगड़े या तरक्की न कर पाना वगैरह.

अब चूंकि उत्तर प्रदेश में पौराणिक सरकार है और सरकार ने आधिकारिक तौर पर ज्योतिष विद्या की पढ़ाई करनेकराने का कोर्स यूनिवर्सिटी में शुरू करा ही दिए हैं, तो लखनऊ बैंच के जस्टिस बृज राज सिंह ने सोचा कि लड़के की बात में तो दम है, आखिर भला कोई भारतीय संस्कृति को मानने वाला कैसे किसी मांगलिक लड़की से शादी कर सकता है? तो फौरन लखनऊ यूनिवर्सिटी के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष से 10 दिन के भीतर लड़की की कुंडली जांचने का आदेश दे दिया कि वह मांगलिक है भी कि नहीं.

यह तो उस दलील से भी घटिया बात निकली, जब कोई लड़का कहे कि चूंकि फलां लड़की घर से बाहर निकली, इसलिए उस के साथ रेप किया. इस में उस बेचारे की गलती नहीं, बल्कि सारी गलती तो लड़की की है और कोर्ट यह पता लगाने लग जाए कि लड़की घर से निकली थी या नहीं.

हालांकि 3 जून, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि ‘सवाल यह नहीं है कि मांगलिक तय किया जा सकता है या नहीं और ज्योतिष भी एक विज्ञान है, सवाल यह है कि क्या कोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है?’

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही आदेश को रोक दिया, लेकिन इस से यह सवाल उठा कि क्या आने वाले समय में देश में इंसाफ की यही भाषा होने जा रही है? क्या ऐसे जज देशभर के कोर्टों में भरने नहीं लग गए हैं? सवाल यह भी है कि क्या अब इंसाफ करते समय वैज्ञानिक तर्कों की जगह धार्मिक रिवाजों को ऊपर रखा जाने लगा है?

अगर ऐसा होने लगता है, तो कल को कोई महिला अगर घरेलू हिंसा का मामला ले कर अदालत पहुंच कर कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाती है, तो उस का मामला तो ऐसे ही रफादफा हो जाएगा कि धार्मिक रिवाज तो औरतों को पति की दासी बनी रहने का आदेश देता है, वह चाहे मारेपीटे, उसे चुपचाप सहना है और पति के आदेश का पालन करना है, क्योंकि ऐसे मौकों पर ही तो आरोपी पति अपने पक्ष में सती प्रथा में जलाई जाने वालों के तर्क रखेंगे.

ऐसा होता है तो कोई दलित कुएं से पानी पीने की फरियाद ले कर पहुंचेगा तो पहले चैक किया जाएगा कि हिंदू रिवाजों में दलित सवर्णों के बनाए कुओं से पानी पी सकता है कि नहीं? वह साथ बैठ कर खाना खा सकता है कि नहीं? या उसे पढ़नेलिखने का हक है कि नहीं?

जिस समाज में लड़की के रंगरूप वगैरह को ले कर इतना भेदभाव किया जाता है, जहां दहेज जैसी कुरीति का बोलबाला है, दहेज हत्या के मामले भयानक हैं, वहां ऐसे आदेश देशभर की लड़कियों का मजाक उड़ाने जैसे नहीं हैं क्या? इस तरह के आदेश कहीं न कहीं पंडोंज्योतिषियों की लूट की दुकान चलती रहे, इसलिए दिए जा रहे हैं.

जरूरत तो यह थी कि कुंडली जैसे फिजूल के रिवाजों और प्रथाओं से लड़ने की एक वैज्ञानिक चेतना जगाई जाए, लेकिन इस की जिम्मेदारी ही जिन्हें सौंपी जा रही है, वे ही ऐसे आदेश देंगे तो हो गया फिर सब का भला.

तंत्रमंत्र के मकड़जाल में फंसे लोग

यह बिहार के बांका जिले के तहत आने वाले बेलहर ब्लौक की घटना है. वहां के टेंगरा गांव में एक तथाकथित तांत्रिक जोड़े ने दुर्गा पूजा के मौके पर महाष्टमी पूजा करने के दौरान अपने 4 साला बेटे के सिर में कील ठोंक कर उस की बलि दे दी.

तांत्रिक योगेंद्र पंडित और उस की पत्नी मुनिया देवी पिछले कई सालों से तंत्र विद्या की सिद्धि में लगे हुए थे. इसी सिलसिले में उन दोनों ने अपने मासूम बेटे गुलिया की बलि दे दी.

तांत्रिक विधि से इलाज करने के लिए योगेंद्र पंडित पिछले 10-15 सालों से लगातार तांत्रिक क्रिया करता आ रहा था और बिहार, झारखंड व उत्तर प्रदेश के जिलों में जाता था.

इसी तरह राजस्थान की एक घटना है. 4 साल की रिजवाना की उस के ही पिता ने रमजान महीने में अल्लाह को खुश करने के लिए कुरबानी दे दी.

रिजवाना अपने ननिहाल में थी. रिजवाना के पिता को धार्मिक लोगों से जो जानकारी मिली उस से उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि अगर कोई आदमी अपने सब से प्रिय की कुरबानी देता है तो उसे ज्यादा सवाब मिलेगा. इस भरम में उस ने अपनी बेटी की ही कुरबानी दे दी.

इस के लिए धार्मिक मौलाना भी कुसूरवार हैं जो अपनी तकरीर में कहते फिरते हैं कि जो अपने सब से ज्यादा प्यारे की कुरबानी देता है उसे सवाब ज्यादा मिलता है.

समाज में इस तरह का भरम फैलाने वाले और थोथी दलील देने वाले लोग सब से बड़े गुनाहगार हैं जो इस तरह की बातें लोगों के बीच फैलाते रहते हैं.

यह बहुत ज्यादा धार्मिक होने का नतीजा है. इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा देने का काम मुल्ले, पंडित और धार्मिक गुरु कर रहे हैं.

जब कोई मुसलिम अपनी मौत के बाद अंग दान करने की इच्छा जाहिर करता है तो धार्मिक कठमुल्ला बताने लगते हैं कि धार्मिक नजरिए से यह जायज नहीं है. इन धार्मिक कठमुल्लों को खुद कोई जानकारी नहीं है और इनसानियत की बात करने वाले, समाज में फैले अंधविश्वास के खिलाफ

बोलने वाले और सच को सच कहने वाले लोगों के ऊपर ये मौत का फतवा जारी करते हैं.

राजस्थान वाली इस घटना में धार्मिक मौलवीमौलाना खामोश हैं. अगर इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाना चाहते हैं तो सब से पहले अंधविश्वास फैलाने वाले लोगों को समाज के बाहर करना होगा. विज्ञान से जुड़ी बातों को सब को बताना होगा.

पिछले साल झारखंड के रजरप्पा मंदिर में एक सिपाही ने अपने परिवार की मनोकामना पूरी करने के लिए अपना ही सिर काट कर बलि दे दी थी.

जब इस तरह की कोई घटना घटती है तो धर्मगुरु चुप्पी साधे रहते हैं. देशभर से बलि देने की घटनाओं की खबरें गाहेबगाहे मिलती रहती हैं. हम विकास और डिजिटल इंडिया के सपने का जितना भी ढिंढोरा पीट लें, आज भी आदिम युग में ही जी रहे हैं.

ऐसी घटनाओं पर टैलीविजन चैनल वाले बहस नहीं कराते हैं. वहां सिर्फ ऊलजलूल मुद्दों पर ही बहस चलती रहती है.

कुछ दिन पहले बिहार के औरंगाबाद जिले में इस तरह की 2 घटनाएं सामने आई थीं. जिले के हसपुरा ब्लौक के तहत गांव गहना में एक पिता ने मंत्र सिद्धि करने के लिए अपने ही 6 साला बेटे की बलि दे दी थी.

इस आदमी का गुरु, जो खुद तथाकथित ओझागुनी था, ने उसे बताया कि अगर तुम अपने बेटे की बलि दे दोगे तो तुम्हें पूरी तरह मंत्र सिद्धि हासिल हो जाएगी और तुम जिस की भी झाड़फूंक करोगे वह ठीक हो जाएगा.

पुलिस ने तो उस आदमी को पकड़ कर जेल में डाल दिया लेकिन जिस के कहने पर उस ने अपने बेटे की बलि दी थी, उस पाखंडी तक पुलिस नहीं पहुंच सकी है.

जिन की वजह से इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है, वे कभी कुसूरवार साबित नहीं होते हैं. जरूरत इस बात की है कि उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए.

औरंगाबाद जिले के तहत देव ब्लौक में एक चिमनी भट्ठे पर अच्छी तरह से आग नहीं सुलग रही थी और ईंटें किसी वजह से सही ढंग से नहीं पक रही थीं. तब एक ओझा ने ईंटभट्ठे वाले को बता दिया कि अगर किसी आदमी की बलि दोगे तो ईंटें बहुत ही अच्छी पकेंगीं और कोई परेशानी भी नहीं आएगी.

इस भट्ठे के मालिक ने गांव के एक गरीब बच्चे की बलि दे दी. उस बच्चे के मातापिता जब अपने बेटे को खोजने लगे तब कुछ दिनों के बाद यह पता चला कि उस की तो बलि दे दी गई है.

विधायक रह चुके राजाराम सिंह ने जब इस घटना पर बड़ा आंदोलन चलाया तब जा कर उस भट्ठा मालिक पर कार्यवाही हुई. हालांकि, कुछ राजनीतिक दलों के नेता उस के पक्ष में भी खड़े हो गए थे.

इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगों के पक्ष में भी जातपांत और धर्म के नाम पर लोग उसे मदद करने लगते हैं, जो बड़े ही शर्म की बात है.

औरंगाबाद जिले के देव ब्लौक के ही एक गांव की लड़की ने रात में सपना देखा कि उस की शादी नाग देवता से होगी और वे नाग देवता एक खेत के बिल से निकलेंगे.

सुबह होने पर लड़की ने अपने मातापिता को यह बात बताई. इस के बाद लड़की दुलहन की तरह सजधज कर उस जगह तक पहुंच गई. वहां लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.

लड़की को इंतजार करतेकरते शाम हो गई पर नाग देवता नहीं निकले. लड़की अपनी जिद पर अड़ी हुई थी. आखिर में उस लड़की को पुलिस ने वहां से हटाया.

इसी तरह झारखंड की राजधानी रांची से 50 किलोमीटर दूर एक गांव में 18 साल की लड़की मांगली मुंडा की शादी शेरू नामक कुत्ते से करा दी गई क्योंकि गांव के एक बाबा ने लड़की के परिवार वालों को बताया कि लड़की के अंदर प्रेत बाधा है और कुत्ते के साथ शादी नहीं कराई गई तो पूरा परिवार तबाह और बरबाद हो जाएगा.

इस शादी में पूरे गांव के लोगों ने नाचगाने के साथ सारी रस्में निभाईं और उस के बाद कुत्ता को बाकायदा दूल्हा बना कर आम दूल्हे की तरह कार में बिठा कर घर लाया गया और पूरे गांव में उस का स्वागत किया गया.

वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाले सामाजिक सरोकारों से जुड़े सुनील कुमार और देवनंदन शर्मा का कहना है कि समाज की तरक्की के लिए वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना ही कारगर हथियार है. हम चंद्रमा की सैर कर आए और मंगल ग्रह पर उतरने की तैयारी में हैं पर आज भी जनसाधारण को वैज्ञानिक सोच से लैस करने का काम नहीं कर पाए हैं.

अगर हम ने ऐसा किया होता तो देश में नरबलि, भूतप्रेतों और अंधविश्वास का बाजार इतना फलताफूलता नजर नहीं आता.

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