सिलक्यारा सुरंग से निकाले गए 41 मजदूर, क्या सरकार को मिला सबक

Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: आप को याद होगा कि साल 2018 में थाइलैंड (Thailand) में हुए एक हादसे में जूनियर फुटबाल टीम (Juinor Football Team) के कोच समेत 12 बच्चे पानी से भरी एक गुफा में फंस गए थे. उन्हें बचाने के लिए एक रैस्क्यू मिशन (Rescue Mission) शुरू किया गया था, जिस में तकरीबन 10,000 लोग शामिल हुए थे. उन लोगों में 100 से ज्यादा तो गोताखोर (Diver) ही थे. इस दौरान एक गोताखोर की मौत भी हो गई थी, लेकिन वह आपरेशन चलता रहा था. 15 दिनों की मशक्कत के बाद वे सभी छात्र और कोच उस गुफा से बाहर निकल पाए थे. अब भारत की बात करते हैं, जहां पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की एक नई बन रही सुरंग में 41 मजदूर कुछ इस कदर फंस गए थे कि उन का बचना भी मुश्किल ही लग रहा था. उत्तरकाशी (Uttarkashi) की सिलक्यारा (Silkyara) नामक इस सुरंग में यह हादसा दीवाली पर 12 नवंबर, 2023 की सुबह 4 बजे हुआ था, जब सुरंग में मलबा गिरना शुरू होने लगा था और साढ़े 5 बजे तक मेन गेट से सुरंग के 200 मीटर अंदर तक भारी मात्रा में जमा हो गया था.

फिर शुरू हुआ एक ऐसा बचाव अभियान, जिस में हर दिन उम्मीद जगती थी कि जल्दी ही सारे मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा, पर टनों पड़ा मलबा जैसे इस अभियान में जुड़े लोगों का इम्तिहान ले रहा था. पर इनसान की जिद, नई तकनीक और मजदूरों का सब्र रंग लाया और 12 नवंबर की सुबह के साढ़े 5 बजे से 28 नवंबर की रात के 8.35 बजे तक यानी 17 दिन बाद पहला मजदूर शाम को 7.50 बजे बाहर निकाला गया. इस के 45 मिनट बाद 8.35 बजे सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया.

रैट होल माइनिंग तकनीक ने किया कमाल

इस पूरे अभियान में लोगों के साथसाथ कई महाकाय मशीनें भी मलबे को चीर कर मजदूरों तक पहुंचने की जद्दोजेहद कर रही यहीं. जब औगर मशीन मलबे से जूझ कर हार मान गई थी, तब रैट होल माइनिंग तकनीक को इस्तेमाल करने का फैसला लिया गया. रैट का मतलब है चूहा, होल का मतलब है छेद और माइनिंग मतलब खुदाई. इस तकनीक में पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है और धीरेधीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है. इस में हाथ से ही मलबा बाहर निकाला जाता है.

भारत में रैट होल माइनिंग तकनीक का इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरपूर्व में रैट होल माइनिंग जम कर होती है, लेकिन यह काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे कई बार बैन भी किया जा चुका है.

मिला नया सबक

सिलक्यारा हादसा उत्तराखंड राज्य के साथसाथ पूरी दुनिया को सबक भी सिखा गया खासकर भारत के पहाड़ी राज्यों ने यह सीखा है कि वे आपदा में केंद्रीय एजेंसियों का बारबार मुंह नहीं ताक सकते. उन्हें अपने दम पर तैयार रहना होगा, क्योंकि आपदाएं हर बार सिलक्यारा हादसे जैसा समय नहीं देंगी.

पहाड़ी इलाके में इस तरह के काम में सब से बड़ी बाधा तो खुद कुदरत ही होती है. बारिश के मौसम में लैंड स्लाइडिंग होना आम बात है. बड़ीबड़ी मशीनों को पहाड़ी रास्तों से लाना और ले जाना भी बड़ी चुनौती वाला काम होता है. वर्तमान सरकार पहाड़ों पर नएनए प्रोजैक्ट बना रही है. इस का मतलब यह है कि आगे भी सरकार और मजदूरों को सावधान रहना होगा.

मजदूरों का किया स्वागत

सुरंग से बाहर आए पहले बैच के पहले मजदूर का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने माला पहना कर स्वागत किया. पाइप के जरीए सब से पहले बाहर आने वाले मजदूर का नाम विजय होरो था. वह खूंटी, झारखंड का रहना वाला था.

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने ऐलान किया सभी मजदूरों को उत्तराखंड सरकार की ओर से 1-1 लाख रुपए की मदद दी जाएगी. उन्हें एक महीने की तनख्वाह समेत छुट्टी भी दी जाएगी, जिस से वह अपने परिवार वालों से मिल सकें. उन्होंने एक संदेश भी दिया, ‘मैं इस बचाव अभियान से जुड़े सभी लोगों के जज्बे को भी सलाम करता हूं. उन की बहादुरी और संकल्पशक्ति ने हमारे श्रमिक भाइयों को नया जीवन दिया है. इस मिशन में शामिल हर किसी ने मानवता और टीम वर्क की एक अद्भुत मिसाल कायम की है.’

यह बात बिलकुल सही है, क्योंकि इस पूरे अभियान में 42 मजदूरों के साथसाथ उन सभी लोगों की जान दांव पर लगी थी, जो मजदूरों की जिंदगी बचाने के लिए नए से नया जोखिम ले रहे थे.

ये ही वे लोग हैं जो देश को आगे बढ़ाने का काम करते हैं. मजदूरों की अनदेखी तो किसी भी सरकार को नहीं करनी चाहिए. वे ही सही माने में अपने खूनपसीने से देश को खुशहाल बनाते हैं. वे भले ही दो वक्त की रोटी न खाएं, पर शरीर से फुरतीले और मजबूत होते हैं. यह बात इन 41 मजदूरों ने साबित भी कर दी. ये लोग अमूमन जाति से भले ही निचले हों, पर काम हमेशा अव्वल दर्जे का करते हैं. पूरे देश को इन की जीने की इच्छा को सलाम करना चाहिए.

रैलियों में भीड़ बढ़ाने में दलितपिछड़ों का इस्तेमाल

मध्य प्रदेश में उज्जैन जिले की बड़नगर विधानसभा क्षेत्र में इन दिनों कांग्रेस उम्मीदवार मुरली मोरवाल की नामांकन रैली का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिस में कुछ नाबालिग बच्चे हाथों में कांग्रेस का झंडा ले कर ‘मुरली मोरवाल जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि हमें झाबुआ, पेटलावद से इस रैली में लाया गया है और रैली में आने के लिए हमें 500-500 रुपए भी दिए गए हैं.

इस पूरे मामले पर मुरली मोरवाल का कहना था कि उन पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे सरासर गलत हैं. विधानसभा क्षेत्र में उन के कई व्यापार हैं. ईंटभट्ठे और कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में सैकड़ो लोग उन से जुड़े हुए हैं. इन लोगों को जब पता चला कि उन के सेठ को कांग्रेस पार्टी ने टिकट दिया है तो वे सभी लोग परिवार समेत नामांकन रैली में शामिल हुए थे. झाबुआ, पेटलावद से लोगों को पैसे दे कर बुलाने की बात झूठी है. जो भी ऐसी बात कर रहे हैं, वे गलत कह रहे हैं.

इसी साल जुलाई महीने में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक बस का भीषण ऐक्सीडैंट हो गया है. तेज रफ्तार बस ने हाईवे में खड़े हाइवा ट्रक को पीछे से जोरदार टक्कर मार दी थी, जिस में बस सवार 3 लोगों की मौके पर मौत हो गई थी. वहीं, 6 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे.

जानकारी के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में शामिल होने के लिए बस सवार यात्री अंबिकापुर से रायपुर जा रहे थे. यह सड़क हादसा तड़के हुआ, जब बस अंबिकापुर से रवाना बेलतरा पहुंची थी. इसी दौरान बेलतरा के पास हाईवे पर खड़े हाइवा को तेज रफ्तार बस ने पीछे से जोरदार टक्कर मार दी थी.

अब एक बहुत बड़ी खबर का रुख करते हैं. नवंबर महीने में होने वाले विधानसभा चुनावों में एससीएसटी जातियों को अपने पक्ष में लुभाने के लिए 24 फरवरी, 2023 को मध्य प्रदेश के सतना में कोल जाति का महाकुंभ आयोजित किया गया, जिस में शामिल होने के लिए सीधी और सिंगरौली जिले से बसों में सवार हो कर कोल समाज के लोग शामिल हुए थे.

इस महाकुंभ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आए हुए थे. उस दिन शाम को तकरीबन 5 बजे इस रैली के खत्म होने के बाद सभी लोग बसों में सवार हो कर सीधीसिंगरौली अपने घर जा रहे थे.

रास्ते में 2 बसें रात के तकरीबन 9 बजे मोहनिया टनल से 300 मीटर दूर बडखरा गांव के पास रुकीं. वहां सवारियों के लिए चायनाश्ते का इंतजाम किया गया था.

कोल समाज के लोगों को बसों में जब नाश्ते के पैकेट दिए जा रहे थे, तभी रीवा की ओर से आ रहे एक तेज रफ्तार ट्रक ने एक बस को पीछे से टक्कर मार दी. टक्कर इतनी तेज थी कि आगे वाली बस बीच सड़क पर पलट गई, जबकि जिस बस में टक्कर लगी थी, वह डिवाइडर से टकरा कर बीच सड़क पर आ गई.

उसी दौरान सीधी की ओर से आ रही एक और बस भी टकरा कर पलट गई. जबकि, ट्रक टक्कर मारते हुए नीचे गिर कर पलट गया. इस हादसे में 15 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए.

अमित शाह के सामने अपनी ताकत दिखाने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस कोल महाकुंभ का आयोजन सतना में किया था, उस में शामिल हुए ये एससीएसटी तबके के लोग चायनाश्ता, भोजनपानी और एक दिन की मजदूरी के बदले बड़ीबड़ी बसों में भर कर लाए गए थे. रैली में भीड़ जुटाने के लिए सरकारी अफसरों और मुलाजिमों की भी ड्यूटी लगाई गई थी.

बताया जाता है कि इस रैली में 10 स्कूल मास्टर और 7 पटवारी भी घायल हुए थे. इन‌ मास्टरों और पटवारियों की ड्यूटी अमित शाह की रैली में भीड़ जुटाने के लिए लगाई गई थी.

रैली में भीड़ जुटाने की यह घटना न‌ई नहीं है. जब भी कहीं किसी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की रैली होती है, सरकारी मुलाजिमों की ड्यूटी इस तरह के कार्यक्रम में लगाई जाती है. वे अपना कामकाज छोड़ कर नेताओं की रैली में भीड़ जुटाने का काम करते हैं. कायदेकानून की अनदेखी कर के एक जिले से दूसरे जिले में बसों को बिना परमिट भेजा जाता है.

इन रैलियों में सब से ज्यादा एससीओबीसी तबके के लोगों का इस्तेमाल किया जाता है. इन जातियों का बड़ा तबका अभी भी रोजीरोटी के‌ लिए जद्दोजेहद करता है. अपने परिवार का पेट पालने के लिए रोज कड़ी मेहनत करता है, तभी उन के घरों का चूल्हा जलता है.

यही वजह है कि जब राजनीतिक दलों के लोग उन्हें दिनभर की मजदूरी और खानेपीने का लालच देते हैं, तो वे यह सोच कर आसानी से तैयार हो जाते हैं कि एक दिन की मजदूरी भी मिल जाएगी.

रैलियों की भीड़ जीत का पैमाना नहीं

राजनीतिक दलों की रैलियों में जुट रही भीड़ से इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि वोटर का रुख किस के पक्ष में है. क‌ई बार वोटर सभी दलों की रैलियों में बतौर मेहनताना शामिल होता है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय भी जब प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली थी, तब उन की रैलियों में काफी भीड़ जुटती थी. इसी तरह से साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश यादव और राहुल गांधी की रैलियों में भी भीड़ बहुत रहती थी, मगर चुनाव में जीत भारतीय जनता पार्टी की हुई थी. भाजपा ने 300 से ज्यादा सीटें हासिल की थीं.

दलितों की हिमायती मायावती की रैलियों में भी भारी भीड़ उमड़ती थी. बसपा सुप्रीमो मायावती के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि वे एकलौती ऐसी नेता हैं, जिन के लिए मैदान छोटा पड़़ जाता था, इसलिए किसी की रैली में उमड़ी भीड़़ के आधार पर किसी पार्टी या नेता की जीत का दावा नहीं किया जा सकता.

बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में सभी दल वोटरों को लुभाने में लगे थे, रैलियों में भीड़ भी दिखाई दे रही थी, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैरानपरेशान थे, क्योंकि उन की रैलियों से भीड़ न जाने कहां गायब हो गई थी.

रैलियों से नदारद भीड़ को देख कर नीतीश कुमार यह मान चुके थे कि सत्ता उन के हाथ से फिसल कर राष्ट्रीय जनता दल की की झोली में जा रही है, लेकिन जब वोटिंग मशीनों से नतीजे निकले तो राजनीतिक पंडित ही नहीं, बल्कि नीतीश कुमार भी हैरान रह गए थे.

उस समय नीतीश कुमार की जीत में महिला वोटरों ने अहम रोल निभाया था, जो नीतीश सरकार द्वारा प्रदेश में शराबबंदी किए जाने से नीतीश सरकार की मुरीद हो गई थीं. इस के अलावा कानून व्यवस्था में सुधार भी एक अहम मुद्दा था. बिहार में महिला वोटरों को लगता था कि अगर बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की सरकार बन जाएगी, तो बिहार में फिर से जंगलराज कायम हो जाएगा.

नरेंद्र मोदी की भीड़ भी नहीं दिला पाई जीत

आज भी देश के ज्यादातर इलाकों में आदिवासी और दलितपिछड़े तबके के लोग कम पढ़ेलिखे हैं, उस की वजह सरकारी योजनाओं का फायदा उन तक नहीं पहुंच पाना है. इसी वजह से आदिवासी और दलितपिछड़ों के वोट बैंक का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियां अपने लिए आसानी से करती रहती है.

साल 2018 के विधानसभा चुनाव के वक्त 24 अप्रैल को मध्य प्रदेश के मंडला जिले में भी एक बड़ी रैली का आयोजन सरकार द्वारा किया गया था, जिस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे.

रमपुरा गांव में रहने वाले आदिवासी वंशीलाल गौड़ बताते हैं कि उन्हें बस द्वारा मंडला ले जाया गया था. रास्ते में खानेपीने के इंतजाम के साथ रैली से लौटने पर 500 रुपए बतौर मेहनताना दिए गए थे. इस रैली में लाखों की तादाद में आदिवासियों को मध्य प्रदेश के ‌क‌ई जिलों से बसों में भर कर लाया गया था.

इस भीड़ को देख कर भाजपा ने यही अंदाजा लगाया जा कि उस की सरकार फिर से बनेगी, लेकिन उस समय कांग्रेस की सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे. यह अलग बात है कि 15 महीने बाद भाजपा ने सिंधिया समर्थक विधायकों की खरीदफरोख्त कर फिर से सरकार बना ली थी.

पश्चिम बंगाल में साल 2021 में विधानसभा चुनाव के समय भी यही नजारा देखने को मिला था, जहां भाजपा की रैलियों में जनसैलाब उमड़ रहा था. ऐसा लग रहा था कि ममता बनर्जी की सत्ता से विदाई तय है. भाजपा की रैलियों में जनता की मोदी के प्रति दीवानगी देखने लायक थी.

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में ब्रिगेड मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में उमड़े जनसैलाब की तसवीरों को कौन भूल सकता है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों में यहां किसी भी नेता को सुनने के लिए इतने लोगों की भीड़ एकसाथ जमा नहीं हुई थी.

इस मैदान के बारे में यह कहा जाता रहा है कि केवल कम्यूनिस्टों की रैली में ही यह पूरा भर पाता था. तृणमूल की रैली में भी इस मैदान में काफी भीड़ जमा होती थी, पर भाजपा की यहां हुई रैली में जुटी भीड़ माने रखती थी. इस रैली के जरिए भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत को दिखाया था.

भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के लिए 10 लाख लोगों की भीड़़ जुटाने का टारगेट रखा था. इस के लिए भाजपा ने राज्य के हर शहर, हर गांव से कार्यकर्ताओं को कोलकाता पहुंचने का आदेश दिया था.

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के लिए यह रैली पश्चिम बंगाल में इज्जत का सवाल बन गई थी. इसी वजह से भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं ने पश्चिम बंगाल के नेताओं को साफ निर्देश दिया था कि किसी भी कीमत पर इस रैली को कामयाब बनाना है.

मध्य प्रदेश के भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय इस रैली की देखरेख खुद कर रहे थे. उन्हीं के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल के लोकल भाजपा नेताओं ने कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में इतनी बड़ी तादाद में जनसैलाब जुटाया था. लेकिन जब नतीजे आए तो भाजपा चारों खाने चित नजर आई और ममता बनर्जी फिर से मुख्यमंत्री बनीं.

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भी साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में रैली की थी, जो भीड़ के हिसाब से ऐतिहासिक थी, पर नतीजों के लिहाज से फेल ही रहीं.

एक दौर था जब लोग नेताओं के भाषण सुनने जाते थे और नेता नुक्कड़ सभाओं के जरीए अपनी बात जनता के बीच रखते थे. किसी दल या नेता की रैलियों में जुटने वाली भीड़ से अंदाजा लगा लिया जाता था कि किस दल का पलड़ा हलका या भारी है.

इस के पीछे की मुख्य वजह यही थी कि तब वोटर अपनी मरजी से अपने चहेते नेताओं के भाषण सुनने और उसे देखने आया करते थे, लेकिन अब समय बदल चुका है. धीरेधीरे भीड़ जुटाने के लिए रणनीति बनने लगीं. लोगों को खानेपीने और पैसे का लालच दे कर रैली की जगह पर बुलाया जाने लगा, इसीलिए कई बार भीड़ में जो चेहरे एक पार्टी के रैली में दिखाई देते थे, वही चेहरे दूसरी पार्टी की रैली में भी दिख जाते हैं. अब भीड़ के बिना नेता भाषण भी देना नहीं चाहता.

पंजाब का वाकिआ लोगों को याद ही होगा जब सभा में भीड़ न जुटने के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुरक्षा में खामी बता कर वापस लौट आए थे.

हैलीकौप्टर और फिल्मी ऐक्टर देखने उमड़ती है भीड़

चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए राजनीतिक दलों के लोग तमाम तरह के हथकंडे अपनाते हैं. गांवकसबों में भी चुनाव के वक्त बड़े नेताओं, फिल्मी ऐक्टरों की रैली और सभाएं होती हैं, जिन में लोग केवल फिल्म ऐक्टर और हैलीकौप्टर को देखने जाते हैं.

साल 2018 के विधानसभा चुनाव में गाडरवारा विधानसभा में भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने फिल्म हीरोइन हेमा मालिनी आई थीं, जिन्हें देखने के लिए भारी तादाद में भीड़ जुटी थी, लेकिन यह भीड़ भाजपा उम्मीदवार को जीत नहीं दिला सकी.

चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार की कोशिश रहती है कि उस के प्रचार में कोई स्टार प्रचारक हैलीकौप्टर से आए और उस बहाने बड़ी तादाद में भीड़ जमा हो जाए. पार्टी आलाकमान के कहने पर स्टार प्रचारक हैलीकौप्टर में सवार हो कर दिनभर में 4-5 सभाएं करते हैं, जिन्हें देखने के लिए भीड़ लगती है और पार्टी उम्मीदवार समझता है कि उस की जीत पक्की हो गई है. कई बार तो इस तरह की रैली में भाषण देने आए इन स्टार प्रचारकों को उम्मीदवार का नाम ही पता नहीं रहता है.

रणनीतिकार बाकायदा दावा करते हैं कि अमुक नेता की रैली में इतने लाख की भीड़ जुटेगी और भीड़ जुटती भी है, लेकिन इस में कौन किस पार्टी को वोट देगा, कोई नहीं जानता. अब रैलियों की भीड़ से किसी दल या नेता की लोकप्रियता का अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है.

चुनाव का वक्त आते ही सभी राजनीतिक दलों के नेता दलितपिछड़े लोगों के हिमायती बन जाते हैं और चुनाव जीतने के बाद कोई उन की सुध तक नहीं लेता. इसी तरह चुनाव में शराब और पैसे का लालच दे कर इन भोलेभाले लोगों के वोट हासिल किए जाते हैं और फिर पूरे 5 साल तक उन की अनदेखी की जाती है.

विकास की मुख्यधारा से हमेशा दूर रहने वाले इस तबके के लोगों का चुनावी रैलियों में इस तरह से इस्तेमाल करना लोकतंत्र का मजाक नहीं तो और क्या है. दलितपिछड़े तबके के लोगों को जागरूक होने की जरूरत है.

राहुल गांधी ने अडानी समूह के बहाने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा

दुनिया का सब से बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने राजनीति में ईमान को ताक पर रख दिया है. चाहे आर्थिक हो, राजनीतिक हो, सामाजिक हो या फिर वैश्विक क्षेत्र हो, हर जगह वह सब काम किया है, जो देशहित में नहीं है और कतई नहीं करना चाहिए.

इस का वर्तमान में कमज्यादा असर होता दिखाई दे रहा है. आगे दूरगामी रूप में यह देश के लिए घातक साबित होगा. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की दशा और दिशा पर आज रिसर्च करने की जरूरत है, ताकि आने वाले समय में भाजपा की नीतियों के चलते देश को जो चौतरफा नुकसान हो रहा है, उस का आकलन किया जा सके.

भारतीय जनता पार्टी में देश के प्रति समर्पण, निष्ठा और ईमानदारी की कमी है. एक राजनीतिक दल होने के नाते सत्ता में होने के चलते देश की आम जनता को किस तरह आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाए, यह भावना भी उस में नहीं दिखाई देती.

इस की जगह पर ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम’, ‘मंदिर बनाएंगे’ जैसे मसलों को ले कर जनता को बरगलाने का काम किया गया. इसी के तहत भाजपा के बड़े नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा मुकेश अंबानी और गौतम अडानी दोनों को जो संरक्षण दिया गया, इस के चलतेवे दोनों मालामाल हो गए.

जिस तरह भाजपा दुनिया की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का ढोल बजा रही है, उसी तरह गौतम अडानी को भी दुनिया का सब से बड़ा अमीर आदमी बनने के लिए केंद्र सरकार खुल कर समर्थन कर रही है.

यह बात आज देश का बच्चाबच्चा जानता है. यही वजह है कि जब गौतम अडानी समूह की पोल खुली तो वह लुढ़क कर नीचे आ गया. नरेंद्र मोदी सरकार ने जिस तरह गौतम अडानी को समर्थन दिया है, वह सीमाओं का अतिक्रमण करता है और देश के लिए चिंता का सबब होना चाहिए.

देश में कांग्रेस और दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने भी सरकार चलाई है, मगर कभी भी किसी उद्योगपति का आंख बंद कर के समर्थन नहीं किया गया. यही वजह है कि कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने अडानी समूह पर कोयले के आयात में ज्यादा कीमत दिखा कर 12,000 करोड़ रुपए की अनियमितता का आरोप लगाया है और कहा है कि अगर साल 2024 में उन की पार्टी को केंद्र सरकार बनाने का मौका मिला, तो इस कारोबारी समूह से जुड़े मामले की जांच कराई जाएगी.

दुनिया की निगाहों में अडानी

राहुल गांधी ने ब्रिटिश अखबार ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ की एक खबर का हवाला देते हुए कहा, “वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस संदर्भ में मदद करना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री अडानी समूह के मामले की जांच कराएं और अपनी विश्वसनीयता बचाएं.”

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले के अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने खुल कर अपना और पार्टी का पक्ष देश के सामने रख दिया है और नरेंद्र मोदी पर तल्ख टिप्पणी की है. नरेंद्र मोदी और देश उस चौराहे पर खड़ा है, जहां से गौतम अडानी पर सरकार को जांच कर के दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए.

मगर आजकल भारत सरकार जिस तरीके से काम कर रही है, वह निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जहां सरकार और उन के चेहरों के पक्ष की बात होती है, वहां फैसले बदल जाते हैं. यह बात देश के लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती और दुनिया के जीनियस इसे ले कर चिंतित हैं.

राहुल गांधी ने उद्योगपति गौतम अडानी से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की मुलाकातों को ले कर सफाई दी और कहा, “शरद पवार देश के प्रधानमंत्री नहीं हैं और अडानी का बचाव भी नहीं कर रहे हैं, इसलिए वे राकांपा नेता से सवाल नहीं करते.”

दरअसल, राहुल गांधी ने ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ की जिस खबर का हवाला दिया है, उस में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री काल में साल 2019 और साल 2021 के बीच अडानी की 31 लाख टन मात्रा वाली 30 कोयला शिपमैंट की स्टडी की गई, जिस में कोयला व्यापार जैसे कम मुनाफे वाले कारोबार में भी 52 फीसदी लाभ समूह को मिला है.

कुलमिला कर सच यह है कि कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने अडानी समूह पर कोयले के आयात में ज्यादा कीमत दिखा कर 12,000 करोड़ रुपए की अनियमितता का आरोप लगाया है.

उन्होंने कहा, “यह चोरी का मामला है और यह चोरी जनता की जेब से की गई है. यह राशि करीब 12,000 करोड़ रुपए हो सकती है. पहले हम ने 20,000 करोड़ रुपए की बात की थी और सवाल पूछा था कि यह पैसा किस का है और कहां से आया? अब पता चला है कि 20,000 करोड़ रुपए का आंकड़ा गलत था, उस में 12,000 करोड़ रुपए और जुड़ गए हैं.अब कुल आंकड़ा 32,000 करोड़ रुपए का हो गया है.”

महिलाओं का आरक्षण है जरुरी

महिलाओं को आरक्षण देने का कानून तो अब 2023 में बना है पर लागू होने में उसे 5 साल लगते हैं, 10 साल लगते हैं, पर शैड्यूल कास्टों और शैड्यूल ट्राइबों को 1950 से रिजर्वेशन मिला हुआ है लेकिन साजिश इस तरह की है कि आज सनातन धर्म की बदौलत लगभग 4.3 फीसदी ब्राह्मण मंदिरों में 100 फीसदी, मीडिया में 90 फीसदी, राजसभाओं में 50 फीसदी, मंत्री स्तर के सचिव 54 फीसदी, सुप्रीम कोर्ट में 96 फीसदी, हाईकोर्ट में 80 फीसदी, राजदूत 81 फीसदी हैं.

व्यापार में 70-80 फीसदी वैश्य होंगे और सेना के अफसरों के आंकड़े मिलते नहीं हैं, पर पक्का है कि 70-80 फीसदी से कम नहीं होंगे. यह तब है जब नौकरियों और पढ़ाई में एससी को 15, एसटी को 7.5, ओबीसी को 27 फीसदी रिजर्वेशन है.

मतलब यह है कि संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी का रिजर्वेशन जब भी औरतों को मिलेगा वे फिर भी घरों में, समाज में, व्यापारों में, राजनीति में केवल डैकोरेशन पीस बनी रहेंगी. धर्म और राजा की मिलीभगत से सदियों से औरतों को जो दबा कर रखा है, वह आज भी उन के खून में है.

किसी भी कंस्ट्रक्शन साइट पर देख लें. आधी औरतें होंगी पर वे ही सुबह पानी भर कर लाती हैं, सुबह व दोपहर का खाना लाती हैं, बराबर की सी दिहाड़ी मिलने के बाद भी रात को खाना बनाती हैं, बच्चों को पालती हैं, कपड़े धोती हैं, पूजापाठ का जिम्मा उन के सिर पर होता है.

आदमी घर से बाहर बैठ कर दारू पीता है, बीड़ीसिगरेट पीता है, जब चाहे कमाऊ बीवी को पीटता है. अफसर बनीं आधी औरतों ने इन औरतों की सुध नहीं ली तो सांसद व विधायक बन कर वे क्या कर लेंगी? यह छलावा नहीं तो क्या है?

आज औरत अपने मनपसंद लड़के से शादी नहीं कर सकती, अकेले बच्चे पैदा नहीं कर पाती, लड़ाकू, हिंसक, निकम्मे मर्द को छोड़ नहीं पाती. विधवाओं और तलाकशुदाओं को अकेले जीना पड़ता है जबकि विधुर व तलाकशुदा मर्द चार दिन में दूसरी शादी कर सकते हैं.

कुछ कानून बने हैं जो औरतों को हक देते हैं पर ये हक वे तब ले पाती हैं जब पिता या भाई साथ खड़े हों. तभी 1956 व 2005 के कानूनों के बावजूद औरतों को हक नहीं मिले और वे दहेज की मारी हैं.

कमाऊ औरतों का सारा पैसा मर्द ले लेते हैं चाहे वे ऊंची जातियों की हों, ओबीसी हों या एससी. सांसद व विधायक औरतें जो आज हैं क्या कर रही हैं? उन की औरतों के लिए क्या पहचान है?

आज पति के, पिता के घर से निकाली गई लड़की को कहीं रहने की जगह नहीं मिलेगी. किराए पर मकान नहीं मिलेगा, होटल वाला घुसने नहीं देगा. अफसर, जज या नेता औरतें दूसरी औरतों के लिए कोई आश्रयघर तक नहीं बनवा रहीं. सिर्फ आंसू बहा देती हैं टीवी पर.

सांसदी पा कर वे क्या कर लेंगी? विधायकी पा कर क्या कर लेंगी जब एसपी, एसआई, कांस्टेबल, प्रिंसिपल बन कर कुछ नहीं कर पा रही हैं? वे सब मर्दों की ओर देखती हैं. बनठन कर रहती हैं ताकि मर्द मालिक नाराज न हो जाए.

यह उस तरह का काम है जो पंडित 11,000 रुपए ले कर हवनपूजा कर के जजमान को कहता है कि लो अब तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे, बीमारियां भाग जाएंगी, दरिद्रता खत्म हो जाएगी.

जब वोट देने जाएं तो खयाल रखें कि 2014 के 15 लाख रुपए जैसे वादों और 2016 के नोटबंदी जैसे वादों की तरह का यह वादा है. इस भुलावे में न रहो कि नरेंद्र मोदी ने औरतों के लिए स्वर्ग उतार दिया है. यह सपना है, कोरा भरम, शाहरुख की फिल्म ‘जवान’ की तरह का जिस में 6,000 कैदी महिलाएं देश को बदलने चलती हैं. बेपर की उड़ान है.

अब मुसलमानों का एक नया हितैषी पैदा हुआ है–नरेंद्र मोदी. 30-40 सालों से मुसलमानों के खिलाफ माहौल बना कर सत्ता हासिल करने में सफलता पाने के बाद बिहार की जाति जनगणना से चिढ़ कर नरेंद्र मोदी ने कहना शुरू किया है कि जाति जनगणना से जिस की गिनती ज्यादा उस को ज्यादा जगह का फार्मूला मुसलमानों पर भी लागू होगा और उन्हें अपनी जरूरत की जगह नहीं मिलेगी.

नरेंद्र मोदी की सरकार, पार्टी और उन के संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 30-40 सालों से मुसलमानों को नाहक परेशान कर के रखा है क्योंकि वे हिंदू वोट एक टैंट में लाना चाहते थे. अब बिहार की जाति जनगणना ने साफसाफ बता दिया है कि न तो भीमराव अंबेडकर का दलित आरक्षण गलत था और न ही बीपी मंडल के मंडल आयोग की सिफारिशों पर ओबीसी आरक्षण.

यह गिनती साफ करती है कि 4.3 फीसदी ब्राह्मणों ने ज्यादातर मोटे पदों पर कब्जा कर रखा है जिन में पैसा सरकार देती है या सरकार के साए तले पलती कोई कंपनी. मैरिट जिसे कहते हैं वह असल में यही 4.3 फीसदी तय करते थे जो और उस में खुद पास हो गए तो खुद को प्रतिभाशाली कह दिया.

सदियों से भारत के बामनों में एक गुन रहा है, वे लंबीलंबी किताबें याद रख सकते हैं और उन में से जो भी मरजी का हिस्सा जब चाहें इस्तेमाल कर सकते हैं. वेद, पुराण, स्मृतियां, काव्य 1500 ईसवी तक तो संस्कृत में भी नहीं लिखे गए थे. वे पीढ़ी दर पीढ़ी याद किए जाते रहे हैं और उन्हें याद रखने वाले सारे देश में घूमघूम कर चेले ढूंढ़ते रहते और उन्हें याद करा देते.

कहींकहीं इन्हें कुछ बदला गया पर सदियों तक बिना लिखे ये भारीभरकम ग्रंथ दिमागों में रहे. इस कला का आज की परीक्षा में बहुत फायदा होता है. अमेरिका में एक कंपीटिशन होता है, स्पैलिंग का. इस में मुश्किल शब्दों की सही स्पैलिंग याद रखनी पड़ती है और लगातार 12-15 साल के भारतीय बच्चे ही जीतते रहे हैं, क्योंकि उन्हें तरहतरह के ग्रंथ आज अमेरिका में पहुंचने पर याद कराए जा रहे हैं. अब लिखित व छपे हुए हैं पर फिर भी जो मैरिट इन्हें याद कराने में है वह कंप्यूटर रीडिंग में बहुत काम आता है और इसीलिए भारत के गए युवा हाईटैक कंपनियों में बहुत सफल हो रहे हैं.

भारत में जाति जनगणना से फायदा होगा कि यह याद रखने की खासीयत सिरों की गिनती के नीचे दब जाएगी. जिन की गिनती ज्यादा है वे दबाव बनाएंगे कि सवाल ऐसे पूछे जाएं जिन में याददाश्त कम सही बात परखने की खासीयत हो. इस में किसानों, मजदूरों के बच्चे कम नहीं निकलेंगे जो जुगाड़ों से तरहतरह की चीजें तैयार कर के अपनी कीमत हर रोज दिखाते हैं. किसानी में भी याद रखना जरूरी है पर भारी ग्रंथ नहीं, बीजों, जमीन, पानी, पौधों व पशुओं की बीमारियों के बारे में. इस में किसान मजदूर के बच्चे कहीं पीछे नहीं रहेंगे.

अगर देश पर पढ़ेलिखे, हाथ से काम कर सकने वाले छा गए तो यह देश दुनिया के पहले नंबर के देशों में जा बैठेगा. आज भारत का औसत आदमी गरीबों में से है. उस के ऊपर 135 अमीर देश हैं. जाति जनगणना ने खिड़की खोली है. अब इस खुली हवा का फायदा उठाया जाता है या उस में से कूद कर खुदकुशियां की जाती हैं, यह देखना होगा.

 

हमास और इजराइल जंग

अभी यूक्रेन और रूस के बीच जारी जंग खत्म नहीं हुई थी, एक और हमले की खबर ने पूरी दुनिया में तहलका मचा रखा है. हमास ने इजराइल में हमला कर 1,000 से ज्यादा लोगों की जानें ले लीं. हमास ने इजराइल पर एक के बाद एक कई रौकेट दाग कर तबाही मचा दी.

इस वक्त पूरे देश में हमास और इजराइल के बीच जारी इस जंग की चर्चा है. वैसे तो हमास और इजराइल के बीच की लड़ाई नई नहीं है, लेकिन

7 अक्तूबर, 2023 को हमास द्वारा किए गए हमले ने पूरे इजराइल को हिला कर रख दिया है. चारों तरफ सिर्फ तबाही का ही मंजर नजर आया. हमास ने कई नागरिकों, महिलाओं और बच्चों को बंधक भी बनाया.

हमास के हमले के बाद इजराइल ने जवाबी कार्यवाही शुरू की. इजराइल ने गाजा पट्टी पर बम बरसाना शुरू कर दिया. इस में भी 800 लोगों की मौत हो चुकी है और बहुत ज्यादा घायल हुए.

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि हमला करने वालों को इस की कीमत चुकानी होगी. हमास ने गाजा पट्टी और इजराइल के एक बौर्डर को विस्फोटक से उड़ा दिया. गाजा पट्टी से लोग बौर्डर के जरीए इजराइल में दाखिल हुए. हम और भी कड़ी कार्यवाही करेंगे.

हमास है क्या

दरअसल, हमास एक फिलिस्तीनी आतंकी समूह है, जिस की स्थापना साल 1987 में पहले फिलिस्तीनी विद्रोह के दौरान शेख अहमद यासीन ने की थी. इस आतंकी समूह का मकसद फिलिस्तीन में इसलामिक राज्य स्थापित करना है.

12 साल की उम्र से व्हीलचेयर पर रहने वाले अहमद यासीन ने साल 1987 में इजराइल के खिलाफ पहले बगावत का ऐलान किया था. इस फिलिस्तीनी आतंकी समूह को ईरान का भी समर्थन है.

खबरों के मुताबिक, इजराइल पर हमास की अल कासिम ब्रिगेड ने हमला किया है. यह हमला इतना तेज और सटीक था कि इजराइल की पूरी डिफैंस लाइन बिखर गई. अल कासिम ब्रिगेड हमास की सब से खूंख्वार मिलिट्री यूनिट है. इस यूनिट में शामिल आतंकवादियों की तुलना आईएसआईएस से की जाती है.

अल कासिम ब्रिगेड को साल 1991 में बनाया गया था. उस वक्त इस का संबंध ओस्लो समझौते की वार्त्ता को रोकना था. 1994 से 2000 तक अल कासिम ब्रिगेड ने इजराइलियों के खिलाफ कई हमलों को अंजाम देने की जिम्मेदारी ली थी.

कई देशों की नजर

आप को बता दें कि हमास को सिर्फ इजराइल ही नहीं, बल्कि कई देश आतंकी संगठन मानते हैं. इन में अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा, मिस्र और जापान भी आतंकवादी संगठन मानता है.

लेकिन वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं, जो हमास को आतंकी संगठन नहीं मानते. इन देशों में ईरान, चीन, मिस्र, नार्वे, ब्राजील, तुर्की, कतर, रूस और सीरिया शामिल हैं. हमास गाजा पट्टी इलाके में काफी ताकतवर है. फिलिस्तीनी कब्जे वाले इलाकों में भी हमास के समर्थक भारी तादाद में मौजूद हैं.

इस की शुरुआत कब

खबरों के मुताबिक, बात साल 2006 की है, जब फिलिस्तीनी संसदीय चुनावों में हमास की जबरदस्त जीत हुई थी और उस ने गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया था. हमास के कब्जे को तत्कालीन राष्ट्रपति अब्बास ने तख्तापलट करार दिया था.

यह वही समय था, जब से हमास और इजराइल के बीच खूनी संघर्ष का दौर शुरू हो गया, जिस के बाद अकसर गाजा से इजराइल में हमास के रौकेट हमले होते रहे हैं, वहीं इजराइल भी हवाई हमले और बमबारी करता रहा है.लेकिन 7 अक्तूबर, 2023 को हुए हमले ने पूरे इजराइल को दहला कर रख दिया. एक के बाद एक 5,000 रौकेट दागे गए. जो अब तक का सब से बड़ा आतंकी हमला माना जा रहा है.

भारत पर हमले का असर

अभी तक भारत और इजराइल के संबंध बेहद अच्छे रहे हैं. अरब देशों से भी भारत के अच्छे रिश्ते रहे हैं, लेकिन अरब और इजराइल देशों में तनाव के चलते अगले कुछ महीनों में तेल के दामों में वृद्धि से भारत पर उलटा असर पड़ सकता है, क्योंकि सारे अरब देश हमास के सपोर्ट में हैं और भारत का ज्यादातर तेल का आयात अरब देशों से ही होता है.

 

बिहार : जातिगत जनगणना और जनता का सच

2 अक्तूबर, 2023 को मोहनदास करमचंद गांधी की जन्मतिथि होती है और देश उन्हें अपनेअपने तरीके से याद करता है. इस बार बिहार ने उन्हें अलग तरीके से याद किया है और जिन वंचितों, दबेकुचलों के हकों की बात महात्मा गांधी करते थे, राज्य में उन की तादाद कितनी है उसे जातिगत जनगणना के आधार पर उजागर किया है.

बिहार सरकार की तरफ से विकास आयुक्त विवेक सिंह ने मीडिया को बताया कि बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना का काम पूरा कर लिया है.

बिहार में जातिगत जनगणना के जो आंकड़े जारी किए गए हैं, उन के मुताबिक राज्य में सब से ज्यादा आबादी अति पिछड़े वर्ग की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में सवर्ण यानी ऊंची जाति वाले एक तरह से काफी कम आबादी में सिमट गए हैं.

आबादी के हिसाब से अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 फीसदी है, जिस की संख्या 4,70,80,514 है. वहीं पिछड़ा वर्ग 27.12 फीसदी है जिन की तादाद 3,54,63,936 है, जबकि अनुसूचित जाति के 19.6518 फीसदी हैं और इन की आबादी 2,56,89,820 है.

अनुसूचित जनजाति की आबादी 21,99,361 है जो कुल आबादी का 1.6824 फीसदी है. अनारक्षित यानी जनरल कास्ट, जिसे सवर्ण भी कह सकते हैं, की आबादी 2,02,91,679 है, जो बिहार की कुल आबादी का 15.5224 फीसदी है.

बिहार में हिंदुओं की आबादी सब से ज्यादा है. ये आबादी 81.9986 फीसदी हैं. वहीं अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 फीसदी, पिछड़े वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी, एससी19.65 फीसदी, एसटी 1.6 फीसदी और मुसहर की आबादी 3 फीसदी बताई गई है.

बिहार सरकार की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा यानी 13,07,25,310 है. धर्म के हिसाब से आबादी की बात करें तो हिंदू धर्म की आबादी 81.99 फीसदी है, जो तादाद के लिहाज से 10,71,92 958 है. इसलाम धर्म 17.70 फीसदी है और आबादी 2,31,49,925 है. ईसाई धर्म 0.05 फीसदी है और आबादी 75,238 है.

सिख धर्म 0.011 फीसदी है और आबादी 14, 753 है. बौद्ध धर्म 0.0851 फीसदी है और आबादी 1,11,201 है. जैन धर्म 0.0096 फीसदी है और आबादी 12,523 है. दूसरे धर्म 0.1274 फीसदी हैं. आबादी 1,66,566 है. वहीं, कोई धर्म नहीं मानने वाले 0.0016 फीसदी हैं. वे आबादी के लिहाज से 2,146 हैं.

जाति पर गरमाई सियासत

नीतीश कुमार की इस कूटनीतिक चाल का सब से ज्यादा असर भारतीय जनता पार्टी पर पड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी का नाम लिए आरोप लगाए, “वे पहले भी गरीबों की भावनाओं से खेलते थे. आज भी वे यही खेल खेल रहे हैं. वे पहले भी जाति के नाम पर समाज को बांटते थे और आज भी वही पाप कर रहे हैं. पहले वे भ्रष्टाचार के दोषी थे आज वे और ज्यादा भ्रष्टाचारी हो गए हैं. वे तब भी सिर्फ और सिर्फ एक परिवार का गौरवगान करते थे. वे आज भी वही करने में अपना भविष्य देखते हैं.”

प्रधानमंत्री की इस तिलमिलाहट से साफ जाहिर हो रहा है कि विपक्ष इस जातिगत मुद्दे को भुना कर अपना पक्ष जनता खासकर वंचित समाज की बात बड़ी ही ऊंची आवाज में उठाने की पुरजोर कोशिश करेगा.

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इसे कांग्रेस के नजरिए से समझते हैं. बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी काफी कड़ी टिप्पणी की.

राहुल गांधी ने सोशल प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर लिखा, ‘बिहार की जातिगत जनगणना से पता चला है कि वहां ओबीसी+एससी+एसटी 84 फीसदी हैं. केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ 3 ओबीसी हैं, जो भारत का महज 5 फीसदी बजट संभालते हैं, इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना जरूरी है. ‘जितनी आबादी, उतना हक’ यह हमारा प्रण है.’

जनता के क्या हाल

देश में आखिरी जातिगत जनगणना साल 1931 में हुई थी. साल 1941 में दूसरे विश्व युद्ध के चलते जातिगत जनगणना नहीं कराई जा सकी थी. आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई थी. तब केंद्र की जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने तय किया था कि आजाद भारत में जाति आधारित भेदभाव को खत्म करना है, इसलिए जातिगत जनगणना की जरूरत नहीं है.

अब चूंकि बिहार में जातिगत जनगणना हो गई है और इस का पूरे देश की सियासत पर क्या असर पड़ेगा, यह तो आने वाले समय में पता चल ही जाएगा, पर फिलहाल ये जो 84 फीसदी वाले ओबीसी, एससी और एसटी तबके के लोग हैं, उन के हालात क्या हैं और क्या आने वाले समय में उन का कुछ भला होगा? यह खुद में लाख टके का सवाल है.

2 साल पहले की एक रिपोर्ट पर नजर डालते हैं. नीति आयोग ने तब नैशनल मल्टीडाइमैंशनल पोवर्टी इंडैक्स- बेसलाइन रिपोर्ट जारी की थी. उस रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार की 51.91 फीसदी आबादी मल्टीडाइमैंशनली गरीब है, जबकि 51.88 फीसदी लोग न्यूट्रिशन से वंचित हैं. गरीबी, न्यूट्रिशन, मां की सेहत, स्कूल में हाजिरी, रसोई ईंधन और बिजली के मामले में बिहार का नंबर देशभर में सब से ज्यादा खराब है.

बिहार के ऐसे 26.27 फीसदी बच्चे हैं जिन्होंने स्कूली पढ़ाईलिखाई पूरी नहीं की है. यहां के 12.52 फीसदी बच्चे जमात 8 तक स्कूल नहीं गए हैं. इतना ही नहीं, बिहार में 63.20 फीसदी आबादी पारंपरिक इंधरों पर निर्भर है यानी लोग उपले, लकड़ी, चारकोल या कोयले पर खाना बना रहे हैं. यह देश के सभी राज्यों के मुकाबले ज्यादा है.

ये जो बिहार की कुल आबादी के 84 फीसदी लोग हैं वे ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं हैं और बहुत से तो दूसरे राज्यों में बेहद कम मजदूरी में बेगार करने को मजबूर हैं और वहां जिल्लत भरी जिंदगी बिताने पर मजबूर हैं.

याद रखिए, बिहार वही राज्य है जिसे विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग खुद नीतीश कुमार करते रहे हैं. अब जातिगत जनगणना कराने के बाद वे राज्य में हर तबके की तरक्की की बात कर रहे हैं, जो होनी भी चाहिए, पर उस के लिए रोड मैप बनना भी जरूरी है.

अगर ऐसा नहीं हुआ और जातिगत जनगणना पर सिर्फ सियासत हुई तो गरीबों और वंचितों को आगे बढ़ाने की बात कागजों में सिमट कर रह जाएगी और वे केवल वोट बैंक बन कर रह जाएंगे, जो इस जातिगत जनगणना का मकसद कतई नहीं है.

जानिए शेरपा अमिताभ कांत के बारे में

हाल ही में दिल्ली में जी-20 का सम्मेलन किया गया था. इस सम्मेलन में भारत के रवैए और कूटनीति पर कांग्रेस के बड़े नेता शशि थरूर का बड़ा ही पौजिटिव कमैंट आया था और उन्होंने सरकार से ज्यादा एक आदमी की तारीफ की थी, जिन का नाम है शेरपा अमिताभ कांत.
तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने अपनी एक पोस्ट में कहा था, ‘बहुत अच्छे अमिताभ कांत. ऐसा लगता है कि जब आप ने आईएएस बनना चुना तो आईएफएस ने एक बहुत अच्छा राजनयिक खो दिया. जी-20 शेरपा ने कहा कि रूस और चीन के साथ बातचीत की और कल रात ही अंतिम ड्राफ्ट मिला. यह भारत के लिए जी-20 में एक गौरवपूर्ण क्षण है.’
याद रहे कि भारत के जी-20 की अध्यक्षता मिलने के बाद अमिताभ कांत को भारत की तरफ से शेरपा नियुक्त किया गया था. अमिताभ कांत से पहले केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल जी-20 में भारत के शेरपा थे.
जी-20 में शेरपा की अहम जिम्मेदारी होती है. इन का सब से अहम काम जी-20 सदस्य देशों के बीच तालमेल बिठाना और बातचीत करना होता है.
शेरपा ही सदस्य देशों के साथ बैठकें करते हैं, जी-20 के काम की जानकारी साझा करते हैं और आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनवाते हैं.
सवाल उठता है कि शेरपा शब्द जी-20 के साथ कैसे जुड़ गया? दरअसल, यह शब्द आया है नेपाल और तिब्बत की पहाड़ियों में रहने वाले एक समुदाय के नाम से. इन लोगों को उन की जीवटता और मुश्किल हालात में हिम्मत दिखाने के लिए जाना जाता है. इतना ही नहीं, शेरपा पर्वतारोहियों को शिखर पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते हैं.
शेरपा अमिताभ कांत ने भी एक तरह से जी-20 के शिखर सम्मेलन में भारत की शिखर पर पहुंचाया है.
भारत सरकार के कार्यक्रमों स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, इंक्रेडिबिल इंडिया में अहम भूमिका निभाने वाले अमिताभ कांत का जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ था और वे 1980 बैच के आईएएस हैं. वे केरल के कोझीकोड के कलक्टर रहे हैं. इस के अलावा वे केरल सरकार के पर्यटन विभाग के सचिव भी रहे हैं.
अमिताभ कांत भारत सरकार के पर्यटन विभाग के संयुक्त सचिव भी रह चुके हैं और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम  के वे भारत में ग्रामीण पर्यटन के नैशनल प्रोजैक्ट डायरैक्टर भी रह चुके हैं. जून, 2022 तक वे नीति आयोग के चेयरमैन भी थे.

एक देश एक चुनाव का फुस्स शिगूफा

एक देश एक चुनाव का बेमतलब का मुद्दा उठा कर भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक दलों का ध्यान बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, सरकार के पल्लू से बंधे हर रोज अमीर होते धन्ना सेठों, अरबों रुपए के सेठों के कर्जों की ओर से हटा देने की कोशिश कर रही है. यह कदम नरेंद्र मोदी का हर चुनाव जीत ही लेने की ताकत की पोल भी खेलता है.

एक चुनाव का मतलब है कि जब लोकसभा के चुनाव हों तभी विधानसभाओं के भी हों. शायद तभी शहरी कारपोरेशनों, जिला परिषदों और पंचायतों के भी हों. एकसाथ आदमी वोट देने जाए तो वह 4-5 चुनावों में एक बार वोट दे दे और फिर 5 साल तक घर बैठे, रोए या हंसे.

एक देश एक चुनाव का नारा एक देश एक टैक्स की तरह का है जिस ने हर चीज पर कुल मिला कर टैक्स पिछले 6 सालों में दोगुना कर दिया है. इसी के साथ एक विवाह नियम की बात भी होगी. फिर शायद कहना शुरू करेंगे कि सारी शादियां भी 5 साल में एक बार हों और बच्चे भी एकसाथ पैदा हों.

इस जमात का भरोसा नहीं है कि यह कौन सा शिगूफा कब ले कर खड़ी हो जाए. मोदी सरकार लगातार शिगूफों पर जी रही है. 2016 में नोटबंदी 2 घंटे में लागू कर दी गर्ई कि अब नकदी का राज खत्म, काला धन गायब. फिर टैक्स के बारे में यही कहा गया. फिर कोविड के आने पर एक देश एक दिन में लौकडाउन का शिगूफा छेड़ा गया. हर बार का वादे किए गए, जो कभी पूरे नहीं हुए.

अभी सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा कि एक देश एक कानून के हिसाब से धारा 370 जो कश्मीर से हटाई गई है उस के बाद वहां के हालात कब ठीक होंगे कि उसे केंद्र शासित राज्य की जगह दूसरों जैसी राज्य सरकार मिल सके.

एक ही मालिक है वाली सोच स्वयंसेवक संघ के सदस्यों को पहले दिन से पढ़ानी शुरू कर दी जाती है. मंदिरों, मठों में जिन के पास जनता की दान की गई अरबों की संपत्ति होती है एक बार ही, शायद जन्म से तय, बड़े महंत को गद्दी मिलती है, फिर उस के बेटे को. कहींकहीं जहां शादी की इजाजत न हो, वहां एक बार एक चेला महंत बना नहीं, वह जब तक चाहे गद्दी पर बैठेगा.

सरकार की मंशा एक देश एक ‘बार’ चुनाव की है, ठीक वैसे जैसे हिंदू संयुक्त परिवार में एक बार कर्ता बना तो हमेशा वही रहेगा चाहे जितना मरजी खराब काम करे. परिवार को तोड़ना पड़ता है, पार्टीशन होता है. मंदिरों में झगड़ेदंगे होते हैं, दूसरा बड़ा चेला मंदिर के दूसरे हिस्से पर जबरन कब्जा कर लेता है.

क्या यह देश में राजनीति में दोहराया जाएगा? क्या लेनिन, स्टालिन, माओ, हिटलर की तरह एक चुनाव का मतलब एक बार चुनाव होगा? नतीजा क्या हुआ, वह इन देशों के बारे में जानने से पता चल सकता है. व्यापारिक घरानों में एक बार चुनाव का मतलब व्यापारिक घर छूटना होता है. अंबानी का घरव्यापार टूटा, बिड़लों के टूटे तो एक हिस्से का 20,000 करोड़ एक अकाउंटैंट के हाथ लग गए.

खापों में एक बार मुखिया चुन लिया गया तो इस का मतलब होता है उस की धौंस, उस की उगाही, उस की बेगार कराने की ताकत. एक देश एक चुनाव जिसे एक ‘बार’ चुनाव कहना ठीक होगा. इसी ओर एक कदम है. फिर तो जैसे इंद्र अपनी गद्दी बचाने के लिए मेनकाओं का और वज्रों का इस्तेमाल करता था, भाजपा का एक बार चुना गया नेता करेगा. रूस के पुतिन और चीन के शी जिनपिंग ने 2 बड़े देशों को अब पतन की राह पर ले जाना शुरू कर दिया है. लाखों अमीर, पढ़ेलिखे रूसीचीनी भाग रहे हैं, फिर लाखों भारतीय भी भागेंगे.

राजनीति के समर में शरद पवार की गुगली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सब से बड़े नेता शरद पवार का राजनीति के मैदान में घातप्रतिघात का दौर चल रहा है. नरेंद्र मोदी लगातार प्रयास में लगे हुए हैं कि शरद पवार को अपने पक्ष में ले कर देश की राजनीति का मानचित्र ही बदल दें. वहीं दूसरी ओर शरद पवार हैं कि लगातार लाख कोशिशों के बावजूद नरेंद्र मोदी के संजाल में फंसने के बजाय नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बड़ी लकीर खींचते चले जा रहे हैं, ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में शरद पवार की एक बड़ी भूमिका सामने आने की संभावना दिखाई देने लगी है.

शरद पवार के गृह प्रदेश महाराष्ट्र के साथसाथ देश की सियासत में उठापटक जारी है. इसी उठापटक के बीच खबर आई है कि नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार को कैबिनेट मंत्री का पद औफर किया गया है. लेकिन खुद शरद पवार ने इन अटकलों पर प्रतिक्रिया दी है और जो कहा है, उस से नरेंद्र मोदी के हाथों के तोते उड़ने लगे होंगे.

शरद पवार ने कहा, “मैं नरेंद्र मोदी केबिनेट में आ रहा हूं, इस से वाकिफ नहीं हूं. सीक्रेट मीटिंग की बातें हो रही हैं, लेकिन वास्तविकता ये है कि इस बैठक में कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई. केंद्र सरकार ने मुझे कैबिनेट मंत्री बनने का औफर किया है. इस तरह की बातों में कोई सचाई नहीं है.

“भारत में राजनीतिक माहौल मोदी के पक्ष में नहीं है. केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में भाजपा सत्ता में नहीं है. यहां तक कि चंद्रबाबू नायडू भी इंडिया गठबंधन से जुड़ गए हैं. महाराष्ट्र और मध्य

प्रदेश में नरेंद्र मोदी की भाजपा ने सरकारों को अस्थिर किया. दिल्ली, झारखंड, बंगाल और अन्य राज्यों में भाजपा सत्ता में नहीं है. देश के लोगों ने यह तय कर लिया है कि उन्हें क्या करना है. इसलिए अब नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि मैं वापस आऊंगा. पवार ने कहा कि भाजपा ने कई राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने का काम किया है.”

सचाई देश को बता दी

देश के महत्वपूर्ण नेताओं में  एक शरद पवार ने बेबाक तरीके से अपनी बात रखी है. शरद पवार ऐसे नेताओं में हैं, जिन की बात देश बड़ी गंभीरता से सुनता है और जो बहुत ही सालदोरिक तथ्य के साथ अपनी बात रखते हैं. सरसावा में जो कुछ कहा है, उसे अगर हम सच मानें, तो नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के रूप में उलटी गिनती शुरू हो गई है.

शरद पवार ने कहा, “मोदी की अगुआई में चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने का काम किया जा रहा है. मणिपुर चीन की सीमा पर है. इस वजह से यह संवेदनशील राज्य है. हमें सचेत रहने की जरूरत है. लेकिन उत्तर भारत में जो हो रहा है, वह चिंताजनक है. पुलिस बलों पर हमला किया गया. दो समुदायों के बीच जहर घोला जा रहा है. नरेंद्र मोदी मणिपुर को ले कर लोकसभा में सिर्फ तीन से चार मिनट ही बोलते हैं.”

इस तरह शरद पवार ने सबकुछ देश को बता दिया है. जो आप सोचतेसमझते हैं और इन बातों में  सचाई भी है. इस तरह उन्होंने एक अलग लाइन खींच दी है. इस सब के बाद विपक्ष के नएनए गठबंधन इंडिया में एक नई ताकत का संचार होना स्वाभाविक है और नरेंद्र मोदी के लिए चिंता का सबब.

विपक्ष की ऐतिहासिक एकता : सत्ता डरी हुई क्यो है

पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आह्वान पर राहुल गांधी, ममता बनर्जी, लालू यादव, शरद पवार और अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं की “विपक्षी एकता” को देखकर भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार के माथे पर साफ-साफ पसीना देखा जा सकता है. लोक तंत्र में सत्ता के विरुद्ध विपक्ष का एक होना एक सामान्य बात है. अब लोकसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं है ऐसे में अगर विपक्ष एक हो रहा है तो यह भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी सरकार के लिए स्वाभाविक रूप से चिंता का विषय है. क्योंकि जब तक विपक्ष में एकता नहीं है भारतीय जनता पार्टी सत्ता में बनी रहेगी यह सच विपक्ष के सामने भी और सत्ता में बैठी भाजपा के नेताओं को भी पता है. यही कारण है कि जब पटना में विपक्ष के लगभग सारे राजनीतिक दलों में एक सुर में भारतीय जनता पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में उखाड़ फेंकने का ऐलान किया तो भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता तिलमिला गए उनके बयानों से दिखाई देता है कि उन्हें अपनी कुर्सी हिलती हुई दिखाई दे रही है . दरअसल ,भारतीय जनता पार्टी और आज की केंद्र सरकार का एजेंडा जगजाहिर हो चुका है. बड़े-बड़े नेता यह ऐलान कर चुके हैं कि हम तो 50 सालों तक सत्ता पर काबिज रहेंगे, यह बोल कर के इन भाजपा के नेताओं और सत्ता में बैठे चेहरों ने बता दिया है कि उनकी आस्था लोकतंत्र में नहीं है और सत्ता उन्हें कितनी प्यारी है. और उनकी मंशा क्या है यही कारण है कि आज एक वर्ग द्वारा लोकतंत्र को खतरे में माना जा रहा है. क्योंकि सत्ता में बैठे हुए अगर यह कहने लगे कि हम तो उसी छोड़ेंगे ही नहीं इसका मतलब यह है कि असंवैधानिक तरीके से सत्ता पर काबिज रहने के लिए आप कुछ भी कर सकते हैं. यही कारण है कि विपक्ष आरोप लगा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियां कुछ इस तरह की है जिससे चंद लोगों को लाभ है अदानी और अंबानी इसके बड़े उदाहरण हमारे सामने हैं. अब हालात यह है कि विपक्षी दलों के एकजुट होने की कोशिश की आलोचना करते हुए पटना की बैठक को ‘स्वार्थ का गठबंधन’, ‘नाटक’ और ‘तस्वीर खिंचवाने का अवसर बताकर भारतीय जनता पार्टी के नेता अपना बचाव कर रहे हैं.

भाजपा की बैचेनी जगजाहिर

बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की ओर से साल 2024 के लोकसभा चुनाव में साथ मिलकर लड़ने की घोषणा के तत्काल बाद दिल्ली मे पार्टी मुख्यालय केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी मोर्चा संभाला और कहा ” जो राजनीतिक दल कभी एक दूसरे को आंखों नहीं सुहाते थे, वे भारत को आर्थिक प्रगति से वंचित करने के संकल्प से एकत्रित हुए हैं.”
अपने चिर परिचित अंदाज में स्मृति ईरानी ने कहा, ‘कहा जाता है कि भेड़िये शिकार के लिए झुंड में आते हैं और यह राजनीतिक झुंड पटना में मिला. उनका ‘शिकार’ भारत का भविष्य है.’
महत्वपूर्ण बात या की पटना में विपक्षी एकता चल रही थी और केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह जम्मू मे थे उनसे भी नहीं रहा गया और बोल पड़े ” विपक्षी एकता लगभग असंभव है. उन्होंने कहा, ‘आज पटना में एक फोटो सेशन चल रहा है। सारे विपक्ष के नेता संदेश देना चाहते हैं कि हम भाजपा और मोदी को चुनौती देंगे मैं सारे विपक्ष के नेताओं को यह कहना चाहता हूं कि कितने भी हाथ मिला लो, आपकी एकता कभी संभव नहीं है और हो भी गई … कितने भी इकट्ठा हो जाइए और जनता के सामने आ जाइए…. 2024 में 300 से ज्यादा सीटों के साथ मोदी का प्रधानमंत्री बनना तय है.’
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा उड़ीसा कालाहांडी में थे, उन्होंने वहीं से कहा “आज जब सभी विपक्षी दल पटना में गलबहियां कर रहे हैं तो उन्हें आश्चर्य होता है कि कांग्रेस विरोध के साथ अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने वाले नेताओं की स्थिति क्या से क्या हो गई है. उन्होंने कहा, ‘यही लालू प्रसाद यादव पूरे 22 महीने जेल में रहे. कांग्रेस की इंदिरा … राहुल की दादी ने उन्हें जेल में डाला था. यही नीतीश कुमार पूरे 20 महीने जेल की सलाखों के पीछे रहे.”
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर भी चुप नही बैठे उन्होने विपक्षी दलों की बैठक को एक ‘तमाशा’ करार दिया. अब आप स्वयं देखें और विवेचना करें कि राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जो एकता कर रहे हैं वह कितना देश हित में है और भारतीय जनता पार्टी पर जो सत्ता का मद चढ़ा हुआ है उससे देश को किस तरह हानि हो रही है

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