पहाड़गंज फिल्म रिव्यू: दूरी ही भली

फिल्म: पहाड़गंज

कलाकार: लोराना फ्रंको, ब्रजेश जयराजन, नीत चौधरी, राजीव गौड़ सिंह

रेटिंग: डेढ़ स्टार

क्या दिल्ली का पहाड़गंज इलाका महज गंदगी, अपराध, हत्यारों, समलैंगिक व वेश्यावृत्ति से जुड़े लोगों से ही भरा हुआ है. फिल्मकार राकेश रंजन कुमार की ‘वयस्क’ प्रमाणपत्र वाली फिल्म ‘‘पहाड़गंज’’ तो ऐसा ही बताती है. फिल्म ‘पहाड़गंज’ किसी कुंठित मानसिकता के तहत बनी फिल्म नजर आती है.

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कहानी…

फिल्म ‘‘पहाड़गंज’’ की कहानी के केंद्र में स्पैनिश लड़की लौरा कोस्टा( लेाराना फ्रंको) है, जो कि भारत के दिल्ली शहर में अपने प्रेमी राबर्ट की तलाश में आयी है. वह दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में एक होटल में रूकती है. जहां उसका सामना कई तरह के लोगों और पहाड़गंज में जो कुछ अच्छा-बुरा हो रहा है, उससे होता है. एक दिन बाबा घंटाल (गौतम करूप) अपने आश्रम में ही लौरा का बलात्कार करता है. पहाड़गंज पुलिस उसकी शिकायत लिखने को तैयार नहीं, मगर जब जीतेंद्र तोमर की हत्या के बाद सीआईडी हरकत में आती है, तो लौरा के साथ हुए बलात्कार की भी जांच शुरू होती है. मगर कहानी भटक कर सिर्फ जीतेंद्र तोमर के हत्यारों को पकड़ने तक ही सीमित होकर रह जाती है.

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उधर बौस्केट बाल कोच गौतम मेनन (ब्रजेश जयराजन) अपने भाई व बेहतरीन बौस्केटबाल खिलाड़ी जौय मेनन की मौत के बाद अपनी टीम को बौस्केटबाल में विजेता बनकर देखना चाहता है, मगर उनकी टीम देश के गृहमंत्री धर्मपाल तोमर (ज्योति कलश) के बेटे जीतेंद्र तोमर (करण सोनी) की टीम से हार जाती है. इससे गौतम मेनन काफी निराश होते हैं और अपनी टीम के सदस्यों को बुरा भला कहते है. तथा कोच के पद से त्यागपत्र दे देते हैं, मगर जीतेंद्र तोमर के साथ उनकी नोक-झोंक होती है. गौतम मेनन के चिड़चिड़े होते जा रहे स्वभाव से उनकी पत्नी पूजा मेनन (नीत चैधरी) व बेटी पलक भी परेशान रहती है. एक दिन वह स्थानीय गुंडे मुन्ना (सलमान खान) को ट्रेन के नीचे आकर मरने से बचाते हैं. एक बार वह उसे एक गुंडे से बचाते हैं. तो मुन्ना, उनका भक्त बन जाता है. मुन्ना ड्रग्स के धंधे का बेताज बादशाह बनने का सपना देख रहा है. वह त्रिलोक प्रधान (शिव प्रसाद) के लिए काम करता है. जबकि रौबर्ट, जीतेंद्र तोमर के लिए ड्ग्स के अवैध धंधो के अलावा कई गलत धंधो से जुड़ा हुआ है. एक दिन गौतम मेनन की पत्नी मुन्ना से मिलती है और उससे कहती है कि वह जीतेंद्र तोमर को मरा हुआ देखना चाहती है. मुन्ना, जीतेंद्र तोमर के साथ साथ रौबर्ट को भी मौत की नींद सुला देता है. पर अंततः वह सीआईडी द्वारा पकड़ा जाता है. अदालत से मुन्ना व पूजा मेनन को सजा हो जाती है. रौबर्ट की हत्या होने व मुन्ना को सजा होने के बाद वह अपने देश स्पेन वापस लौट जाती है.

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डायरेक्शन…

फिल्म ‘पहाड़गंज’ की कहानी राजनीति, राजनीतिक गुंडो, ड्रग्स के अवैध व्यापार, हत्या, मैरिज ब्यूरो की आड़ में चल रही वेश्यावृत्ति, जिस्मफरोशी, बेटिंग सहित पहाड़गंज इलाके की स्याह दुनिया की सच्चाई बयां करती है. सब कुछ विश्वसनीयता से परे नजर आता है. मगर फिल्मकार ने सब कुछ बहुत ही ज्यादा वीभत्स तरीके से पेश किया है. यदि पटकथा लेखक ने कहानी को कई स्तर पर फैलाया नहीं होता, मूल कहानी यानी कि रौबर्ट की तलाश के साथ ही आगे बढ़ते तो शायद फिल्म कुछ ठीक ठाक बनती. मगर कहानी में इतने पात्र और इतनी उप कहानियां हैं कि फिल्मकार व लेखक अंततः किसी भी कहानी के साथ न्याय नहीं कर पाए. निर्देशन भी सतही स्तर का है.

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अभिनय…

फिल्म का कोई भी कलाकार अपने अभिनय से प्रभावित नहीं करता. गीत-संगीत भी आकर्षित नही करता. एक घंटा 48 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘पहाड़गंज’’ का निर्माण प्रकाश भगत ने किया है. फिल्म के कार्यकारी निर्माता देवनाथ नायर, सह निर्माता सुभाष राज,  निर्देशक राकेश रंजन कुमार, लेखक  राकेश रंजन कुमार, हनुमान प्रसाद राय व धीरज विरमानी, संगीतकार अजय सिंहा, कैमरामैन विनायक राधाकृष्णन है.

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