Family Crime: प्यार बना कातिल – मम्मी-पापा और भाई की ली जान

Family Crime: घर में मौजूद तमाम लोग खड़ेखड़े यही सोच रहे थे कि आखिर इन तीनों की किसी से क्या दुश्मनी रही  होगी, जो तीनों को इतनी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था. मुंशी बिंद और पत्नी देवंती देवी की खून से लथपथ लाशें कमरे में फर्श पर आड़ीतिरछी पड़ी हुई थीं, जबकि रामाशीष की लाश घर के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. तीनों की गला रेत कर हत्या की गई थी. शादी कार्यक्रम में दोबारा आ जाने से आशीष बच गया था. सब की जुबान पर यही चर्चा थी कि अगर आशीष भी घर पर रहा होता तो हत्यारे उसे भी नहीं बख्शते, बेरहमी से उस की भी जान ले लेते.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के थाना नंदगंज के अंतर्गत एक गांव कुसुम्ही कला खिलवा पड़ता है. इसी गांव में 45 वर्षीय मुंशी बिंद अपनी पत्नी देवंती देवी और 2 बेटों रामाशीष (20 साल) और आशीष (18 साल) के साथ हंसीखुशी से रहता था. मुंशी बिंद का परिवार छोटा था, जिस में सब हंसीखुशी से रहते थे. मुंशी बिंद मुंबई में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था. इस काम से उसे अच्छा मुनाफा होता था. 6 जून, 2024 को वह एक जरूरी काम की वजह से मुंबई से घर आया था, लेकिन कुछ परेशानी की वजह से वह काम पूरा नहीं हो पाया था, इसलिए उसे कुछ दिनों तक गांव में ही रुकना पड़ा. 

बात 8 जुलाई, 2024 की थी. इस दिन गांव में मुंशी बिंद के पट्टीदार के घर शादी थी. शादी में मुंशी बिंद के परिवार को भी आमंत्रित किया गया था. पत्नी और दोनों बेटों के साथ वह शादी में शामिल हुआ और देर रात तक पार्टी का आनंद लिया. उसे अब थकान हो रही थी सो रात 11 बजे के करीब परिवार सहित वह घर लौट आया. उस के बाद बाहर के कमरे में मुंशी बिंद पत्नी के साथ सो गया और दोनों भाई रामाशीष और आशीष अंदर के कमरे में सो गए थे. 

पता नहीं छोटे बेटे आशीष को नींद क्यों नहीं आ रही थी. वह बिस्तर पर उधरइधर करवटें बदलता रहा. बेचैनी काफी बढ़ गई तो आशीष बिस्तर से नीचे उतरा और बिना किसी से कुछ बताए फिर शादी वाले कार्यक्रम में चला गया. वहां डीजे का कार्यक्रम चल रहा था. लोग संगीत पर थिरक रहे थे. आशीष भी उन्हीं के बीच हो लिया और कार्यक्रम का लुत्फ ले रहा था. पता नहीं क्यों उस का मन अभी भी बेचैन और परेशान सा लग रहा था.

खैर, देर रात 2 बजे तक डीजे पर डांस चलता रहा. आशीष जब खुद को थका हुआ महसूस करने लगा तो वह उस कार्यक्रम को बीच में छोड़ कर वापस घर लौट गया और फिर थोड़ी ही देर में दौड़ता भागता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां अभी भी डीजे बज रहा था. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. चेहरे पर घबराहट और परेशानियों की लकीरें स्पष्ट उभरी हुई नजर आ रही थीं. जब उसे कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने डीजे को बंद करा दिया और हांफते हुए हाथ का इशारा अपने घर की तरफ किया और बोला, ”वहां…वहां…किसी ने मेरे मम्मीपापा और भाई को मार डाला है.’’ इतना कह कर दहाड़ मार कर वह रोने लगा.

किस ने किए 3 मर्डर

आशीष के रोने की आवाज सुन कर शादी वाली जगह पर सन्नाटा छा गया और जो जहां था, उस के पांव वहीं थम गए. वे दौड़तेभागते आशीष के घर पहुंच गए. घर पर आशीष के मम्मीपापा और भाई की खून से सनी लाशें पड़ी थीं. रात में ही तीनों की हत्या की खबर पूरे गांव में फैल गई थी. यह खबर जैसे ही उस के बड़े भाई रामप्रकाश बिंद को मिली, उस की आंखों से नींद ओझल हो गई. वह जिस हाल में था, मौके पर जा पहुंचा. इतना ही नहीं, घरपरिवार के लोग मौके पर जा पहुंचे थे.

बड़ा भाई रामप्रकाश और उस की मां यही सोचसोच कर परेशान हुए जा रहे थे कि आखिर किस ने और क्यों तीनों के कत्ल किए होंगे. जबकि वे ऐसे नेचर के नहीं थे. उसी रात गांव के चौकीदार रामनयन ने नंदगंज थाने के एसएचओ शमसुद्ïदीन अहमद को इस घटना की सूचना फोन द्वारा दे दी. उस समय घड़ी में साढ़े 4 बजे के करीब का टाइम हो रहा था और एसएचओ गश्त से कुछ देर पहले ही लौटे थे. वह सोने की तैयारी कर रहे थे. 

चौकीदार की बात सुन कर एसएचओ चौंक पड़े, ”3-3 कत्ल हुए हैं, लेकिन क्यों? किस ने किए ये सारे कत्ल?’’ एक साथ कई सवाल उन के मुंह से निकल गए. यही नहीं, इतना सुनते ही एसएचओ अहमद की आंखों से नींद छूमंतर हो गई. वह उसी समय आननफानन में कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. थाने से घटनास्थल करीब 5 किलोमीटर दूर था. थोड़ी देर में पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएचओ अहमद ने दिल दहला देने वाली घटना की जानकारी एसपी (गाजीपुर) ओमवीर सिंह को भी दे दी. 

सूचना पाते ही फोरैंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई थी. पुलिस टीम जांच में जुटी हुई थी. यही नहीं, दिल दहला देने वाली इस घटना की जानकारी वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक पीयूष मोर्डिया तक जा पहुंची थी. उन्होंने एसपी ओमवीर सिंह को निर्देश दिया कि वह जल्द से जल्द घटना का खुलासा कर आरोपियों को जेल के पीछे भेजें. पुलिस ने सब से पहले लाशों का मुआयना किया. मौकामुआयना से पता चला कि हत्यारों ने किसी धारदार हथियार से गले पर वार कर तीनों की हत्या की थी. हत्यारों का मकसद सिर्फ उन की हत्या करना था, क्योंकि अगर उन्होंने लूटपाट करने के उद्ïदेश्य से घटना को अंजाम दिया होता तो घर का सामान तितरबितर होता, जबकि घर का सारा सामान अपनी जगह पर था.

आशीष ने उगली चौंकाने वाली सच्चाई

बहरहाल, पुलिस ने लाशों का पंचनामा भर कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. पुलिस ने हत्या के बारे में मृतक के बड़े भाई रामप्रकाश से पूछताछ की तो पता चला कि एक महीने पहले पड़ोसी राधे बिंद ने फोन पर मुंशी को जान से मारने की धमकी दी थी. एक पंचायत में हुए फैसले को ले कर राधे बिंद उस से काफी नाराज था. रामप्रकाश बिंद के बयान के आधार पर पुलिस ने राधे बिंद को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वह एक ही बात रटता रहा कि वह निर्दोष है, उस ने किसी का कत्ल नहीं किया. रंजिशन रामप्रकाश और उस के घर वाले उसे फंसा रहे हैं.

लाश का पोस्टमार्टम करवा कर दोपहर बाद पुलिस ने उसे रामप्रकाश को अंतिम संस्कार के लिए सुपुर्द कर दिया. जांचपड़ताल के दौरान एक ऐसा सुराग पुलिस के हाथ लगा, जिस ने घटना का रुख मोड़ दिया और बिना समय गंवाए पुलिस की एक टीम श्मशान घाट जा पहुंची. वहां तीनों लाशों का अंतिम संस्कार किया जा चुका था और लोग अपने घरों को लौट रहे थे, तभी पुलिस वहां आ धमकी थी. फिर पुलिस बड़ी चतुराई से परिवार में एकमात्र बचे आशीष को थाने ले आई. यह देख कर सभी हैरान हो गए. रामप्रकाश बिंद भी उस के साथसाथ हो लिए.

थाने में पुलिस उस के साथ सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. पहले तो उस ने नानुकुर किया. पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. लेकिन जब देखा कि अब पुलिस के शिकंजे से बच पाना उस के लिए मुश्किल है तो उस ने सच बता देने में ही अपनी भलाई समझी और सारी सच्चाई बयां करते हुए बोला, ”हां…हां…हां… मैं ने ही मम्मी, पापा और भाई की हत्या की है. भाई को मैं मारना नहीं चाहता था, लेकिन उस ने मुझे मम्मीपापा का कत्ल करते हुए देख लिया था और उस ने शोर मचाना शुरू कर दिया. मैं कहीं पकड़ा न जाऊं, इसी डर से मैं ने उन्हें भी मार डाला.’’

आशीष पुलिस के सामने अपने दुस्साहस की कहानी ऐसे सुना रहा था, जैसे वह मैराथन दौड़ जीत कर आया हो. न तो उस के माथे पर पसीने की एक भी बूंद छलकी और न ही चेहरे पर पश्चाताप के कोई भाव ही दिख रहे थे. ढीठ की तरह अपनी अकड़ का प्रदर्शन कर रहा था. भतीजे के मुंह से उस की खूनी करतूत सुन कर बड़े ताऊ रामप्रकाश बिंद हैरानपरेशान और दुखी थे. उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मासूम सा दिखने वाला आशीष जो कह रहा है, वह सच भी हो सकता है. 

पहले प्यार का ऐसे हुआ अहसास

18 साल के आशीष पर मांबाप के लाड़प्यार और उन के परवरिश पर एक लड़की का प्यार इस कदर हावी हुआ कि उस ने अपने ही हाथों परिवार को नेस्तनाबूद कर डाला.

नादान इश्क की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी

मुंशी बिंद के पड़ोस में राधे बिंद अपने परिवार के साथ रहता था. 6 सदस्यों वाला उस का खुशहाल परिवार था, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. गाजीपुर में ही रह कर राधे बिंद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. 16 वर्षीया नंदिनी बिंद राधे की सब से बड़ी बेटी थी और जान से प्यारी भी. उस पर जान छिड़कता था वह. और जान छिड़के भी क्यों न, वह थी ही इतनी काबिल और होनहार कि वही नहीं घर के सभी उस पर जान छिड़कते थे.

नंदिनी जितनी काबिल थी, उतनी ही खूबसूरत भी थी. उस की सुंदरता और चंचलता पर हर किसी को प्यार आता था. ऐसे में भला आशीष कैसे अछूता रह सकता था, जबकि वह उस का पड़ोसी था. नंदिनी का अंगअंग विकसित हो चुका था. उस के बदन से जवानी की खुशबू फैली थी. कुदरत ने बड़ी फुरसत से उसे बनाया था. झील सी गहरी आंखें, सुर्ख गाल, गुलाब की नाजुक पंखुडिय़ों के समान होंठ, नागिन सी लहराती जुल्फें, किसी जन्नत की हूर से कम नहीं थी वह. जब होंठ दबा कर हौले से मुसकराती थी तो मानो कयामत आ जाती थी. कीचड़ में खिले कमल के जैसी थी नंदिनी. उस की मोहक अदा और गोरे रंग पर आशीष पूरी तरह फिदा था. 

उस दिन शाम का वक्त हो रहा था, जब नंदिनी सजधज कर पिंक रंग का सलवारसूट पहने अपनी छत पर खड़ी खोईखोई सी टकटकी लगाए आसमान की ओर देख थी. बयार मंदमंद बह रही थी. बयार के झोंकों से लहराते हुए बाल उस के सुर्ख गाल से अठखेलियां कर रहे थे. ऐसा होता देख उसे असीम सुख की अनुभूति हो रही थी. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि उस की इस अदा को एक आवारा भंवरा अपनी पलकों में कैद कर रहा है. उसे वह कई पलों से अपलक निहारता जा रहा है. वह कोई और नहीं, उस के पड़ोस में रहने वाला आशीष था. उस दिन के बाद से आशीष नंदिनी का दीवाना हो गया था. आंखें खुलतीं तो उसे देखना चाहता था, आंखें बंद होतीं तो उसे पहले देखना चाहता था. उठतेबैठते, खातेपीते हर घड़ी, हर पल आशीष उसे देखता चाहता था.

दिन दूना बढ़ता गया कच्ची उम्र का सच्चा प्यार

आशीष को देख कर नंदिनी का रोमरोम खिल उठता था. अपने रसीली होंठों को एक कोने में दबाए हौले से मुसकरा कर अंदर कमरे की ओर भाग जाती थी. उस के दिल के किसी एक कोने में आशीष के लिए जगह बन चुकी थी. मोहब्बत की आग दोनों के दिलों में बराबर की लगी हुई थी. मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था. धीरेधीरे दोनों का प्यार जवां हो रहा था. 2 प्यार के पंछी नीले गगन के तले सैर कर रहे थे. आशीष और नंदिनी का प्यार सच्चा था. उन का प्यार एक बिलकुल पाकसाफ था. वे शादी करना चाहते थे. लेकिन अपने दिल की बात न तो नंदिनी अपने घर वालों से कह पा रही थी और न ही आशीष ही. भीतर ही भीतर दोनों घुट रहे थे.

एक दिन की बात है. नंदिनी के घर वाले किसी काम से बाहर गए हुए थे. घर पर नंदिनी ही अकेली थी. यह बात आशीष को मालूम था. उस दिन दोपहर का समय हो रहा था. आशीष भी घर ही पर था. मौका देख कर वह नंदिनी से मिलने दबेपांव उस के घर में घुस गया. अचानक आशीष को सामने देख कर नंदिनी चौंक गई, ”तुम यहां… इस वक्त? किसी ने देख लिया तो?’’ सकपकाती हुई नंदिनी फुसफुसाते हुए बोली.

हां, मैं…’’ आशीष ने उसी के अंदाज में जवाब दिया, ”कोई देख लेगा तो देख लेने दो, मेरे ठेंगे से. मैं किसी की परवाह नहीं करता.’’

कोई काम था क्या?’’

हां, काम था.’’

बोलो.’’

तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता नंदिनी. मुझे डर लगता है कि कहीं हमारे घर वाले हमारे प्यार के दुश्मन न बन बैठें.’’

सो तो है, यह डर मेरे भी दिल में है. मैं भी सोचसोच कर परेशान रहती हूं. मैं तो ये सोचती हूं जिस दिन मम्मीपापा को हमारे प्यार के बारे में मालूम होगा तो कितनी बड़ी कयामत आ जाएगी.’’

”तुम्हें परेशान होने या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, नंदिनी. जब तक मैं जिंदा हूं, तुम सब कुछ मुझ पर छोड़ दो, जैसेतैसे मैं सब संभाल लूंगा. मेरा प्यार हीररांझे की तरह सच्चा है. हम एक साथ नहीं जी सके तो साथ मर तो सकेंगे न.’’

ना आशीष ना.’’ तड़प कर बोली नंदिनी, ”फिर दोबारा मत कहना. हम हमारे प्यार को पाने के लिए जमाने से लड़ेंगे. मम्मीपापा को समझाएंगे.’’ नंदिनी ने आशीष को समझाने की कोशिश की.

इस के बाद दोनों घंटों प्यार भरी बातें करते रहे. नंदिनी और आशीष प्यार की दुनिया में खोए भविष्य के सुनहरे सपने देख रहे थे. इसी दौरान नंदिनी के घर वालों को उन के प्यार के बारे में सब कुछ पता चल गया था. नंदिनी के पापा राधे बिंद को जैसे ही बेटी की आशिकी के बारे में पता चला, उस के तनबदन में आग लग गई थी. उस ने बेटी को तो आड़ेहाथों लिया ही, आशीष की तो जलालतमलामत सब कर डाली थी. 

यहां तक कि राधे बिंद ने मुंबई में रह रहे आशीष के पापा मुंशी बिंद को बेटे को संभाल लेने की धमकी दी. ऐसा न करने पर उस ने जान से मार देने की धमकी भी दे डाली थी. मुंशी बिंद ने राधे बिंद को समझाने की कोशिश की कि वह बेटे को नंदिनी से दूर रहने के लिए समझाएगा. परेशान मत हो. सब कुछ ठीक हो जाएगा. थोड़ा समय दे दो मुझे. मैं जल्द घर आ रहा हूं. मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा. फिर उस ने फोन पर ही आशीष को भी समझाया और उसे जम कर डांट पिलाई कि पढ़ाईलिखाई की उम्र है, मन लगा कर पढ़ो, समय आने पर अच्छी लड़की देख कर शादी करा दूंगा. लेकिन ये छिछोरपना करना छोड़ दो, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. 

बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई. जिद्ïदी स्वभाव के आशीष ने पापा की बातों को अनसुना कर दिया. उसे पापा का डांटना भी अच्छा नहीं लगा. प्यार में अंधा हो चुका आशीष नंदिनी से किसी भी कीमत पर दूर नहीं होना चाहता था. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था. मगर नंदिनी का साथ छोडऩा उसे मंजूर नहीं था. राधे बिंद के समझाने के बावजूद आशीष का उस की बेटी नंदिनी से मिलना और बातें करना बंद नहीं हुआ, बल्कि उस दिन के बाद से वह और उग्र हो गया और सारी हदें पार कर उस से मिलता रहा. राधे ने मुंशी को समझाया कि अब पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है. अपने बेटे के कदमों को रोक दो, वरना उसे जान से हाथ धोना होगा. फिर मत कहना कि तुम ने ऐसा क्यों कर दिया.

इस तरह बैठा दिए प्यार पर पहरे

राधे बिंद के बारबार शिकायत करने पर मुंशी बिंद परेशान हो गया था. बेटे को समझाने का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. मां और भाई को तो पुरुवापछुवा की बयार समझता था. उन के समझाने पर वह उन्हीं से लड़ पड़ता था. मजबूर हो कर मुंशी बिंद को 6 जून, 2024 को मुंबई से गाजीपुर आना पड़ा. उस के अगले दिन राधे बिंद ने गांव में पंचायत बुलाईपंचायत में पंचों के सामने आशीष, उस के पिता मुंशी बिंद और भाई रामाशीष को बुलाया गया. पंचों ने उस दौरान मुंशी बिंद और उस के बेटे आशीष को जम कर लताड़ा. बेटे की करतूत से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया था. पंचों ने जो जलालत मलालत की, सो अलग से.

पंचायत में तय किया गया कि लड़का और लड़की दोनों पर उन के घर वाले सख्त पाबंदी लगाएं. उन्हें मिलने से हर हाल पर रोकें. घंटों चली पंचायत में मुंशी बिंद का सिर झुका ही रहा. इस के बाद घर वालों ने आशीष पर पहरा लगा दिया. घर वालों की सख्ती से आशीष चिढ़ गया और उसे अपने ही घर वाले दुश्मन लगने लगे. मम्मीपापा की सख्ती से परेशान आशीष के मन में एक खौफनाक इंतकाम ने जगह बना ली. उस ने तय कर लिया कि जो भी उस के प्यार में रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, वह उस का सब से बड़ा दुश्मन होगा, चाहे वह उस के मम्मीपापा ही क्यों न हों.

उस दिन के बाद से आशीष अपने मम्मीपापा का दुश्मन बन गया और उन्हें रास्ते से हटाने के लिए अनेकानेक खतरनाक योजना बनाने लगा, मगर वह अपनी घिनौनी साजिश में कामयाब नहीं हो पा रहा था. मम्मीपापा की डांट और सख्त रवैए से आशीष विद्रोह पर उतर आया था. इधर आशीष की करतूतों से मम्मीपापा की पूरे गांव में थूथू हो रही थी, इसलिए बेटे के प्रति उन का रवैया सख्त हो गया था. वे हर कीमत पर उसे नंदिनी से मिलने से रोक रहे थे. क्योंकि नंदिनी के पापा राधे बिंद ने आशीष को जान से मारने की भी धमकी दी थी. यह बात उसे पता नहीं थी. वह तो इस बात पर घर वालों से खार खाए हुआ था कि मम्मीपापा की वजह से ही उसे नंदिनी से मिलने नहीं दिया जा रहा है.

आशीष को मम्मीपापा क्यों लगने लगे दुश्मन

घर वालों की सख्त पाबंदी के चलते आशीष ने उन्हें रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बना ली थी. बस उसे अंजाम देना शेष था. योजना को अंजाम देने के लिए आशीष सही समय का इंतजार कर रहा था और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया. दरअसल, 8 जुलाई, 2024 को गांव में एक परिचित के घर तिलक का कार्यक्रम होना था. उस कार्यक्रम में मुंशी बिंद को परिवार सहित आने का न्यौता मिला था. इस दिन को ही आशीष ने अंजाम देने को चुना. इस के पीछे उस का खास मकसद यह था कि लोग तिलक के कार्यक्रम में व्यस्त रहेंगे. डीजे के शोर में किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा और उस का काम भी पूरा हो जाएगा.

तिलक की रात मुंशी बिंद अपने दोनों बेटों रामाशीष और आशीष के साथ कार्यक्रम में चला गया. देर रात 11 बजे खाना खा कर सभी वापस घर लौट आए. उस के बाद आगे बरामदे में मुंशी बिंद अपनी पत्नी के साथ सो गया और दोनों बेटे भीतर वाले कमरे में सो गए. बिस्तर पर जाते ही रामाशीष नींद की आगोश में समा गया, जबकि आशीष की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. पलट कर पहले उस ने भाई को देखा. उसे हिलाडुला कर जांचा. वह पूरी तरह से नींद में जा चुका था. फिर वह दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा और उस ओर बढ़ गया, जहां उस के मांबाप सो रहे थे. वे भी गहरी नींद में जा चुके थे. 

पापा मुंशी बिंद को देखते ही आशीष का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा. आंखों से गुस्से का लावा फूट पड़ा और बदन कांपने लगा. उस पर खून सवार हो गया था. फिर क्या था, नींद में सो रहे पापा के गले की ओर उस के मजबूत हाथ बढ़ते गए और उस ने गला दबा कर मार डाला. गहरी नींद में होने के बावजूद जब आशीष पिता का गला दबा रहा था तो उस के हाथों से छूटने के लिए वह बिस्तर पर फडफ़ड़ा रहा था. उसी बीच पत्नी उठ बैठी और पति को बेटे के हाथों से छुड़ाने लिए बेटे से भिड़ गई. आशीष ने देखा कि अब खेल बिगड़ जाएगा तो मम्मी देवंती को भी गला दबा कर मार डाला. उस दौरान उस ने अपनी जान बचाने के लिए बड़े बेटे को नाम ले कर पुकारती रही.

गहरी नींद में होने के बावजूद मां की आवाज सुन कर रामाशीष उठ गया और बाहर की ओर लपका, जिस ओर से आवाज आ रही थी. उस ने देखा कि छोटा भाई आशीष मांबाप की हत्या कर वहीं खड़ा है. दोनों की लाशें नीचे फर्श पर पड़ी हैं तो वह कांप उठा. यह देख कर आशीष बुरी तरह डर गया कि सुबह होते ही भाई सभी को घटना के बारे में बता देगा और वह पकड़ा जाएगा. पुलिस से बचने और राज को राज बनाए रखने के लिए उस ने रामाशीष का भी गला घोंट दिया और उस की लाश को बाहर डाल दिया. 

इस के बाद उस ने खुरपी से एकएक कर तीनों के गले रेत दिए. ताकि लगे कि बदमाशों ने गला रेत कर कत्ल किया है. पुलिस का सीधा शक कभी उस पर नहीं आएगा और वह कानून के फंदे से बच जाएगा. बहरहाल, तीनों का कत्ल करने के बाद आशीष ने अपने खून सने कपड़े उतार दिए और पानी से हाथमुंह धो कर कर दूसरे कपड़े पहन कर तैयार हो कर चल रही पार्टी की ओर हो लिया और रास्ते में कपड़े और खून सनी खुरपी को फेंक दी. 

फिर खुद को इतना सामान्य बना लिया, जैसे उस ने कुछ किया ही न हो. फिर पार्टी में जा कर उस ने ऐसा ड्रामा रचा कि सारे लोग अवाक रह गए. फिर आगे क्या हुआ, कहानी में ऊपर बताया जा चुका है. बहरहाल, आशीष एक लड़की के प्यार के लिए इतना बागी हो गया कि उस ने अपने ही परिवार का खात्मा कर दिया. उसे अपने किए का जरा भी मलाल नहीं है, लेकिन अपने किए की सजा जेल की सलाखों के पीछे जा कर पा रहा है. 

कथा लिखे जाने तक आशीष सलाखों के पीछे कैद था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त खून सनी खुरपी और कपड़े बरामद कर लिए.

—कथा में नंदिनी बिंद परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. Family Crime

Love Crime: इश्क का जुनून – मां ने कराई खुद के बेटे की हत्या

Love Crime: पति की मौत के बाद आरफा बेगम की जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी. शादीशुदा बेटे मोहम्मद नदीम (30 वर्ष) ने भी पूरी तरह अब्बू का बिजनैस संभाल लिया था. लेकिन इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि आरफा बेगम अपने इकलौते बेटे नदीम की कातिल बन गई? उस ने 25 लाख की सुपारी दे कर आंखों के तारे, राजदुलारे की क्रूरता से हत्या करा दी.

सचमुच कुएं में पानी पर एक लाश उतरा रही थी. इस के बाद तो जिस ने भी यह बात सुनी, वह मंदिर के पास स्थित उस कुएं की तरफ चल दिया. कुछ ही देर में सैकड़ों की भीड़ वहां जमा हो गई. इसी बीच किसी व्यक्ति ने फोन के जरिए कुएं में लाश पड़ी होने की सूचना थाना अजगैन पुलिस को दे दी. यह बात 5 जून, 2024 की सुबह की थी.

सूचना पाते ही एसएचओ अवनीश कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हो गए. रवाना होने से पूर्व उन्होने प्राप्त सूचना से पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. कुछ देर बाद ही अवनीश कुमार सिंह घटनास्थल पहुंच गए. वह भीड़ को परे हटाते कुएं के पास पहुंचे और झांक कर देखा तो सच में कुएं में किसी युवक की लाश उतरा रही थी. कुएं के पास खून फैला था और एक बाइक खड़ी थी. एसएचओ ने अनुमान लगाया कि बाइक या तो मृतक की है या फिर कातिल की होगी.

चूंकि बाइक के नंबरों से उस के मालिक का पता चल सकता था. अत: उन्होंने आरटीओ औफिस से उस नंबर के संबंध में जानकारी जुटाई. इस जांच में पता चला कि उक्त बाइक का रजिस्ट्रैशन मोहम्मद नदीम निवासी अलहम्द रेजीडेंसी इफ्तखाराबाद थाना अनवरगंज, कानपुर नगर के नाम है. रजिस्ट्रैशन से बाइक के बारे में तो पता च ल गया, लेकिन कुएं में उतराती लाश नदीम की है या किसी और की, बिना शिनाख्त के कहना मुश्किल था. 

इस के बाद पुलिस ने कुएं से लाश बाहर निकलवाई. वहां मौजूद उस युवक की लाश की कोई शिनाख्त नहीं कर सका. पुलिस ने शिनाख्त के लिए नदीम के घर वालों को बुलवा लिया. शव देख कर एक अधेड़ उम्र की महिला फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपना नाम आरफा बेगम बताया और कहा कि यह लाश उस के इकलौते बेटे मोहम्मद नदीम की है. घर वालों ने बताया कि कुछ दिनों पहले ही आरफा बेगम के पति की मृत्यु हुई और अब इकलौता बेटा भी चला गया.

इस के बाद एसएचओ अवनीश सिंह ने शव का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या चाकू से गोद कर की गई थी. उस के सिर व गरदन पर गहरे जख्म थे. उस का मोबाइल फोन व पर्स गायब था. यह सामान या तो कुएं में गिर गया था या फिर कातिल अपने साथ ले गए.

किस ने की नदीम की हत्या

कुछ ही देर में एडिशनल एसपी उन्नाव (दक्षिणी) प्रेमचंद्र तथा सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जहां साक्ष्य जुटाए, वहीं पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने मौके पर मौजूद मृतक की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ की. आरफा बेगम ने बताया कि मोहम्मद नदीम घर से दुकान जाने के लिए कल 2 बजे बाइक से निकला था. जब वह रात 10 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो उस ने उस के मोबाइल फोन पर काल की, लेकिन उस का फोन बंद था. आज उस की लाश मिल गई.

पूछताछ में पता चला कि नदीम रेडीमेड कपड़ों का कारोबारी था. अनवरगंज में उस की अपनी दुकान है. वह बेहद सीधा था. किसी से लड़ताझगड़ता नहीं था. उस की न तो किसी से दुश्मनी थी और न ही लेनदेन का झगड़ा था. पूछताछ के बाद पुलिस ने नदीम के शव को पोस्टमार्टम हेतु उन्नाव के जिला अस्पताल भेज दिया. वापस थाने आ कर मृतक के मामा ताहिर की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र के निर्देश पर एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने इस ब्लाइंड मर्डर की जांच बड़ी बारीकी से शुरू की. उन्होंने सब से पहले एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. इस के बाद उन्होंने मृतक नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए.

लाश उन्नाव जिले के गांव दरबारी खेड़ा के पास मिली थी, इसलिए एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने दरबारी खेड़ा व उसके आसपास के गांवों के कई अपराधी किस्म के लोगों को हिरासत में लिया तथा उन से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन नदीम की हत्या का सुराग न लगा. इस के अलावा मुखबिर भी कोई खास जानकारी नहीं जुटा पा रहे थे. अब तक एक महीना से ज्यादा का समय गुजर गया था, लेकिन वह नदीम के हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. पुलिस अधिकारी भी जांच टीम पर दबाव बना रहे थे. नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर भी जबतब थाने आ जाते और जवाबसवाल करते.

एक रोज एसएचओ अवनीश कुमार सिंह अपने सहयोगियों के साथ नदीम की हत्या के संबंध में विचारविमर्श कर रहे थे, तभी एक युवती ने उन के कक्ष में प्रवेश किया. वह मुसलिम समुदाय की लग रही थी. एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने सहयोगियों को बाहर जाने का इशारा करने के बाद उस युवती को कुरसी पर बैठने को कहा. वह फिर बोले, ”मोहतरमा, आप अपने बारे में बता कर अपनी समस्या बताएं, ताकि हम आप का सहयोग कर सकें.’’

उस युवती ने दाएंबाएं नजर घुमाई फिर बोली, ”हुजूर, मेरा नाम जीनत फातिमा है. मैं मरहूम नदीम की बीवी हूं. छिपतेछिपाते किसी तरह थाने आई हूं. मैं आप को एक ऐसा राज बताने आई हूं, जिस पर शायद आप को यकीन ही न हो.’’

”कैसा राज?’’ इंसपेक्टर अवनीश ने पूछा.

”यही कि मेरे शौहर की हत्या का राज मेरी सास आरफा बेगम के पेट में छिपा है. मुझे शक है कि उन्होंने ही कोई योजना बना कर मेरे शौहर को मरवाया है.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने एक सरसरी निगाह जीनत फातिमा पर डाली, फिर बोले, ”न जानें क्यों मुझे तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है. भला एक मां अपने एकलौते बेटे का कत्ल क्यों कराएगी? फिर भी मैं तुम्हारे शक का कारण जानना चाहता हूं.’’

हुजूर, शक का पहला कारण यह है कि आरफा बेगम मकान व दुकान बेचना चाहती थी, लेकिन मेरे पति इस का विरोध कर रहे थे. इस को ले कर मांबेटे में तकरार होती थी. शक का दूसरा कारण आरफा बेगम की यारी. यानी उस के नाजायज संबंध अजमेर निवासी एक रिश्तेदार से हैं. वह मकानदुकान बेच कर उस के साथ रहना चाहती थी. लेकिन मेरे पति विरोध करते थे. मुझे शक है कि इसी विरोध के चलते सासू अम्मी ने उन का काम तमाम करा दिया.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह सोच में पड़ गए, ”क्या एक मां इतनी बेरहम हो सकती है कि देहसुख के लिए जवान बेटे का कत्ल करा दे?’’

इस के बाद अवनीश कुमार सिंह ने एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र से मुलाकात की और उन्हें पूरी बात बताई. शक के आधार पर उन्होंने इस ब्लाइंड मर्डर को खोलने का आदेश दिया. यही नहीं उन्होंने एक पुलिस टीम का गठन भी कर दिया. इस टीम में इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह, इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राम नारायण, हैडकांस्टेबल राधेश्याम, कांस्टेबल पवन, अर्पित, सूरजपाल, अरुण कुमार, तथा महिला कांस्टेबल विमल को शामिल किया गया. टीम की बागडोर सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह को सौंपी गई. 

पुलिस टीम ने शक के आधार पर मृतक की मां मोहम्मद आरफा बेगम की निगरानी शुरू कर दी. यही नहीं, आरफा बेगम व मृतक नदीम के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स रिपोर्ट निकलवाई. आरफा बेगम की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला. वह किसी बाहरी व्यक्ति से बात नहीं करती थी. घटना वाले दिन भी उस ने किसी से बात नहीं की थी. रात 10 बजे उस ने नदीम को फोन किया था. 

लेकिन नदीम के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स में टीम को एक संदिग्ध नंबर मिला. इस नंबर पर नदीम ने 4 जून, 2024 को बात की थी. इस संदिग्ध नंबर की पुलिस टीम ने जानकारी जुटाई तो पता चला यह नंबर सलीम पुत्र सिद्ïदीकी निवासी गली न 15 नवल नगर मोहल्ला लौंगिया थाना गंज, जिला अजमेर (राजस्थान) के नाम दर्ज है. संदिग्ध व्यक्ति सलीम पुलिस की रडार पर आया तो टीम उस की टोह में अजमेर जा पहुंची. टीम ने लौंगिया बस्ती में सलीम के घर दबिश दी, लेकिन वह घर से फरार था. पता चला कि वह किसी काम से उत्तर प्रदेश गया है. 

पुलिस टीम तब हाथ मलते हुए वापस लौट आई, लेकिन टीम हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठी. टीम ने खबरियों का जाल बिछा दिया और स्वयं भी टोह में लग गई. टीम ने उन्नाव के बस अड्ïडा व रेलवे स्टेशन पर निगरानी बढ़ा दी. 

सुपारी किलर ऐसे आया गिरफ्त में

19 जुलाई, 2024 को एसएचओ अवनीश कुमार सिंह को एक मुखबिर से पता चला कि सलीम उन्नाव स्टेशन पर मौजूद है. चूंकि सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए अवनीश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ उन्नाव स्टेशन पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर टीम ने सलीम को दबोच लिया. उस समय वह स्टेशन के बाहर किसी व्यक्ति के आने का इंतजार कर रहा था. सलीम को थाना अजगैन लाया गया. यहां पुलिस टीम ने उस से नदीम की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस से सख्ती की गई तो उस ने नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. 

उस ने बताया कि कानपुर निवासी कपड़ा कारोबारी मोहम्मद नदीम की हत्या उस ने ही पैसों के लालच में चाकू से गोद कर की थी तथा शव को कुएं में फेंक दिया था. उस ने यह भी बताया कि हत्या की साजिश नदीम की मां आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली निवासी कोडरा पसन नगर, थाना किशनगंज जिला अजमेर (राजस्थान) ने रची थी. उन्होंने ही नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख रुपए में उसे दी थी. 15 लाख रुपए उसे नकद दिया था. शेष रुपए काम तमाम होने के बाद देने का वादा किया था. शेष रुपए ही वह लेने आया था, लेकिन पकड़ा गया. इस के बाद सलीम ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल (चाकू) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने मांस तिराहे के पास पन्नी में लपेट कर छिपा दिया था.

सलीम को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम ने नाटकीय ढंग से आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली को भी गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों ने जब सलीम को हवालात में देखा तो समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं. अत: उन दोनों ने भी सहज में ही नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने नदीम की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकडऩे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर नदीम की हत्या का खुलासा किया. 

पुलिस ने भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत सलीम, हासम अली तथा आरफा बेगम को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक ऐसी मां की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने जवान बेटे को ही सुपारी दे कर कफन में लपेट दिया. कानपुर महानगर के अनवरगंज थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है-इफ्तखाराबाद. मुसलिम बाहुल्य इस मोहल्ले में ज्यादातर लोग व्यापार करते हैं. कोई कपड़े का व्यापार तो कोई लकड़ी का. कोई चमड़े का तो कोई मांसमछली का व्यापार करता है. घनी आबादी वाले इसी मोहल्ले में मोहम्मद नईम सपरिवार रहते थे. 

अलहम्द रेजीडेंसी में उन का निजी मकान था. उन के परिवार में पत्नी आरफा बेगम के अलावा एक बेटी आलिया तथा बेटा मोहम्मद नदीम था. मोहम्मद नईम रेडीमेड कपड़ा कारोबारी थे. अनवरगंज में उन की दुकान थी. बड़ी बेटी आलिया का वह निकाह कर चुके थे. मोहम्मद नदीम उन का इकलौता बेटा था. इसलिए वह सभी का दुलारा था. नदीम बचपन से ही तेज दिमाग था. वह जिद्ïदी व हठी भी था. उस के जिद्ïदी स्वभाव के कारण उस की अम्मी आरफा बेगम परेशान रहती थी. वह शौहर को उलाहना भी देती कि उन्होंने नदीम को बिगाड़ दिया है. 

नदीम का मन पढ़ाई में कम और गिल्लीडंडा खेलने में ज्यादा लगा रहता था. इस से नईम चिंतित रहते थे. जैसेतैसे नदीम ने 10वीं तक पढ़ाई की. फिर उस का मन पढ़ाई से उचट गया. नदीम कहीं गलत संगत में न पड़ जाए, इसलिए नईम ने उसे अपने कपड़ा व्यवसाय में लगा लिया. नदीम अब अब्बू के साथ कपड़े की दुकान पर जाता और दुकानदारी के गुर सीखता. मोहम्मद नदीम अब तक जवान हो चुका था और दुकान भी संभालने लगा था. इसलिए मोहम्मद नईम ने जुलाई, 2020 में उस का विवाह जीनत फातिमा नाम की लड़की से कर दिया.

जीनत फातिमा के अब्बू मोहम्मद कासिम बाकरगंज (बाबूपुरवा) कानपुर में रहते थे. बाकरगंज बाजार में उन की भी कपड़े की दुकान थी. अच्छा घरवर पा कर जीनत फातिमा भी खुश थी. घर में किसी चीज की कमी न थी और बेहद चाहने वाला शौहर मिला था. हंसीखुशी से दिन बीतते अभी एक साल ही बीता था कि नईम ऐसे बीमार पड़े कि उन्होंने खाट पकड़ ली. नदीम ने उन का कई डाक्टरों से इलाज कराया, लेकिन वह बच न पाए. आखिर उन्होंने दम तोड़ ही दिया. 

शौहर की मौत पर आरफा बेगम ने खूब आंसू बहाए. किसी तरह नदीम ने मां को संभाला. ताहिर ने भी बहन को समााया. तब कहीं जाकर वह सामान्य हुई. अब्बू के जाने का नदीम को भी बड़ा सदमा पहुंचा. उस ने अब्बू के गुजर जाने के बाद नदीम ने दुकान और घर चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. बीवी ने भी उस का साथ दिया.

आरफा बेगम की तन्हाइयां कैसे हुईं दूर

कहते हैं वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है. आरफा बेगम भी पति की मौत का गम भूल चुकी थी. बेटाबहू अपनी जिंदगी जी रहे थे और वह तन्हाइयों में जी रही थी. अकेलापन उसे बहुत खलता था. उन्हीं दिनों एक रोज हासम अली आरफा बेगम के घर आया. वह उस के मरहूम शौहर नईम का दोस्त व रिश्तेदार था. पहले भी वह घर आ चुका था. हासम अली, अजमेर (राजस्थान) शहर के कोडरा पसन नगर का रहने वाला था. वह कपड़ा व्यापारी था. दोनों में जानपहचान पहले से थी. इसलिए आरफा बेगम ने उस की खूब मेहमाननवाजी की. हासम अली ने दोस्त के गुजर जाने का दुख जताया और आरफा बेगम को धैर्य बंधाया. इस के बाद उस का वहां आनाजाना बढ़ गया.

आरफा बेगम के घर आतेजाते दोनों के बीच नजदीकियां बढऩे लगीं. उन के बीच छेड़छाड़ और हंसीमजाक भी होने लगी. दोनों तन्हा जिंदगी जी रहे थे. इसलिए दोनों को ही साथी चाहिए था. सो एक रात जब बेटाबहू सो गए, तब हासम अली आरफा बेगम के कमरे में पहुंचा और उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. आरफा बेगम भी फिसल गई. फिर दोनों ने ही अपनी हसरतें पूरी कीं. उन के बीच नाजायज रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता ही गया. अधेड़ उम्र की बेवा आरफा बेगम के जीवन में अब बहार आ गई थी. वह हासम अली पर दिलोजान से फिदा हो गई थी. हासम भी उस का दीवाना था. हासम अली अब होटल में भी रुकने लगा था. आरफा को वह होटल में ही बुला लेता था.

उधर नदीम की बीवी जीनत फातिमा ने अनुभव किया कि जब से हासम अली घर आने लगा, तब से सासू मां की चालढाल में बदलाव आ गया है. क्योंकि अब वह सजसंवर कर रहने लगी थी और चेहरा खिलाखिला सा रहने लगा था. एक रात जीनत फातिमा बाथरूम जाने को उठी तो उस ने सासू आरफा बेगम के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनीं. वह कमरे के अंदर तो नहीं गई, लेकिन समझ गई कि सासूमां हासम अली के साथ मौजमस्ती में डूबी हुई है. अब वह सासू की चालढाल व संजनेसंवरने का मकसद समझ चुकी थी.

सुबह नाश्ते के समय जीनत फातिमा ने नाजायज रिश्तों की बात शौहर नदीम को बताई तो वह नाराज होते हुए बोला, ”जीनत, तुम उन दोनों की उम्र का लिहाज करो. हमारी मां को बदनाम करोगी तो मैं सहन नहीं करूंगा. तुम अपनी गलती सुधारो.’’ नदीम ने बीवी की बातों पर यकीन नहीं किया और उसे फटकार लगाई तो वह रूठ कर मायके चली गई. कुछ दिन बाद मिन्नतें कर नदीम उसे वापस घर लाया. उस के बाद उस ने चुप्पी साध ली. 

इधर आरफा बेगम हासम अली की मोहब्बत में इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने दुकानमकान बेच कर हासम अली के साथ रहने का फैसला कर लिया. उस ने इस बाबत हासम अली से बात की तो वह उसे अपने साथ अजमेर ले जाने को राजी हो गया. वह तो चाहता ही था कि आरफा बेगम सदैव उस के साथ रहे.
इकलौते बेटे को मरवाने का क्यों आया विचार

एक रोज आरफा बेगम ने दुकानमकान बेचने की चर्चा बेटे नदीम से की तो वह मां पर भड़क उठा. उस ने साफ कह दिया कि वह पैतृक संपत्ति बेच कर दूसरे शहर बसने नहीं जाएगा. उस ने यह भी कहा कि वह किसी के बहकावे में न आए, वरना कुछ भी हो सकता है. इस के बाद तो आए दिन मांबेटे के बीच संपत्ति बेचने को ले कर झगड़ा होने लगा. कभीकभी तो झगड़ा इतना बड़ जाता कि नदीम घर के बजाय दुकान पर सोने चला जाता. 

आरफा बेगम जब समझ गई कि नदीम दुकानमकान नहीं बेचने देगा और वह उस के प्यार में भी बाधा बन सकता है तो उस ने उसे अपने आशिक हासम अली के साथ मिल कर इकलौते बेटे को ही रास्ते से हटाने का निश्चय किया. आरफा बेगम ने इस बाबत हासम से बात की तो वह राजी हो गया. उस ने आरफा से कहा, ”तुम रकम तैयार करो. हम सुपारी किलर को सुपारी दे कर नदीम को रास्ते से हटवा देंगे. इस की किसी को कानोकान खबर भी न होगी.’’

हासम अली की जानपहचान सुपारी किलर मोहम्मद सलीम से थी. वह अजमेर नवल नगर मोहल्ला लौंगिया का रहने वाला था. हासम अली ने सलीम से बात की और नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख में दे दी. सुपारी देने की बात हासम अली ने आरफा बेगम को बताई. आरफा बेगम ने तब अपने इकलौते बेटे को मरवाने के लिए 25 लाख रुपया हासम अली को दे दिए. इस रकम में से 15 लाख रुपया हासम अली ने सलीम को दे दिए. शेष काम होने के बाद देने को कहा.

रकम मिलने के बाद सलीम 3 जून, 2024 को कानपुर शहर आ गया. वह परेड के एक साधारण होटल में रुका. सुपारी किलर के पहुंचने की जानकारी तथा उस का मोबाइल नंबर हासम अली ने आरफा बेगम को बता दिया. 4 जून, 2024 की दोपहर आरफा बेगम ने बेटे नदीम से कहा कि एक रिश्तेदार बाहर से आए हैं. वह परेड पर हैं. उन्हें शहर घुमा दो. नदीम ने पहले तो नानुकुर की फिर मान गया. उस की बीवी जीनत फातिमा एक सप्ताह से मायके में थी, सो वह निश्चिंत था. नदीम तैयार हुआ फिर अपनी बाइक से परेड के लिए निकल पड़ा. जाने से पहले उस ने मां से रिश्तेदार का फोन नंबर ले लिया था. वह कोई रिश्तेदार नहीं, बल्कि उस की मौत बन कर आया सलीम था.

परेड चौराहा पर पहुंच कर उस ने रिश्तेदार को काल की तो वह चौराहे पर ही मिल गया. दोनों में बातचीत हुई फिर सलीम ने कहा, ”मुझे देवा शरीफ ले चलो. वहां जाने की बड़ी इच्छा है. तुम पेट्रोल की चिंता मत करो.’’ इस के बाद लखनऊ होते हुए शाम को वह देवा शरीफ पहुंच गए. वहां दोनों घूमेफिरे, फिर वापस कानपुर को चल पड़े.  लखनऊ पहुंचने तक रात के 10 बज गए थे. यहां दोनों ने खाना खाया. फिर कानपुर की ओर निकल पड़े. इस बीच दोनों खूब हिल मिल गए थे. रात 11 बजे के लगभग सलीम व नदीम दरबारी खेड़ा गांव पहुंचे. यह गांव उन्नाव जिले के अजगैन थाना अंतर्गत आता है. हाइवे रोड किनारे एक वीरान मंदिर था. मंदिर के पास ही एक कुआं था.

समीप सलीम ने बाथरूम (पेशाब) के बहाने बाइक रुकवा दी. सलीम बाथरूम करने चला गया और नदीम बाइक की सीट पर बैठ कर मोबाइल देखने लगा. उचित मौका देख कर सलीम ने चाकू निकाला और पीछे से नदीम के सिर पर चाकू से 2 प्रहार किए. नदीम जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ा. इस के बाद सलीम ने उस के गले व गरदन पर चाकू के प्रहार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद शव कुएं में फेंक दिया. फिर बाइक कुएं पर ही छोड़ कर फरार हो गया. चाकू को उस ने फरार होते समय मांस फैक्ट्री तिराहे के पास फेंक दिया था. 

इधर सुबह दरबारी खेड़ा के कुछ लोग खेतों की तरफ गए तो उन्होंने कुएं में उतराती लाश देखी. उन्होंने थाना अजगैन पुलिस को सूचना दी. 21 जुलाई, 2024 को पुलिस ने आरोपी आरफा बेगम, मोहम्मद सलीम व हासम अली को उन्नाव कोर्ट में पेश किया, जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. 

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, Love Crime

Suicide Story: शादी से एक दिन पहले प्रेमी-प्रेमिका ने की आत्महत्या

Suicide Story: 15 साल की प्रिया लखनऊ के बंथरा कस्बे से कुछ दूर दरोगाखेड़ा के एक प्राइवेट स्कूल में 10वीं में पढ़ती थी. उस के पिता रमाशंकर गुप्ता की जुराबगंज में हार्डवेयर की दुकान थीप्रिया के अलावा रमाशंकर गुप्ता के 2 और बच्चे थे, जो अलगअलग स्कूलों में पढ़ रहे थे. प्रिया देखने में सुंदर और मासूम सी थी. घर में सब लोग उसे प्यार से मुन्नू कहते थे. घर के बच्चों में वह सब से बड़ी थी, इसलिए मातापिता उसे कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे. घर वालों के इसी लाडप्यार में वह कुछ जिद्दी सी हो गई थी.

स्कूल में प्रिया की दोस्ती कुछ ऐसी लड़कियों से थी, जो खुद को ज्यादा मौडर्न समझने के चक्कर में प्यारमोहब्बत में पड़ गई थीं. उस की कई सहेलियों के बौयफ्रेंड थे, जिन से वे उस के सामने ही बातें करती थीं. प्रिया इन बातों से दूर रहती थी. वह अपना ज्यादा ध्यान पढ़ाई पर देती थी. लेकिन कहते हैं कि साथ रहने वाले पर थोड़ाबहुत संगत का असर पड़ ही जाता है. सुप्रिया ने कहा, ‘‘प्रिया, तू हमारी बातें तो खूब सुनती है, कभी अपने बारे में नहीं बताती. तेरा कोई बौयफ्रेंड नहीं है क्या?’’

  ‘‘नहीं, मैं इन चक्करों में नहीं पड़ती.’’

  ‘‘अच्छा, और मोबाइल.’’ आरती ने चौंकते हुए सवाल किया.

  ‘‘नहीं, अभी तो मोबाइल भी नहीं है. मैं तो तुम लोगों से अपनी मां के मोबाइल से ही बातें करती हूं.’’

  ‘‘अरे, किस जमाने में जी रही है तू. यार, यहां लोगों के पास स्मार्टफोन हैं, जिस से वे फेसबुक और वाट्सअप का उपयोग कर रहे हैं और एक तू है कि तेरे पास मोबाइल भी नहीं है.’’ आरती ने उपेक्षा से कहा. सहेली की बात प्रिया को भी चुभी. उसे लगा कि वह अपने स्कूल की सभी लड़कियों में सब से पीछे है. उस का तो कोई बौयफ्रेंड है और ही उस के पास कोई मोबाइल. वह यह सब सोच ही रही थी कि उस की दूसरी सहेली बोली, ‘‘प्रिया यह बता कि कभी तूने खुद को आईने में गौर से देखा है? जानती है जितनी तू सुंदर और समझदार है, तुझे तमाम लड़के मिल जाएंगे. उन में जो सही लगे, उसे बौयफ्रैंड बना लेना. फिर देखना, मोबाइल वह खुद ही दिला देगा.’’

सहेलियों की बातों ने प्रिया पर असर डालना शुरू कर दिया. वैसे प्रिया महसूस करती थी कि जब वह स्कूल आतीजाती है तो कई लड़के उसे चाहत भरी नजरों से देखते हैं. लेकिन उस ने कभी उन की तरफ ध्यान नहीं दिया. अब उन मनचलों के चेहरे उस के दिमाग में घूमने लगे. वह यह सोचने लगी कि वह किस लड़के से दोस्ती करे. प्रिया के स्कूल आनेजाने वाले रास्ते में एक लड़का हमेशा बनठन कर खड़ा रहता था. वह उम्र में उस से कुछ बड़ा था. प्रिया को और लड़कों के बजाए वह लड़का अच्छा लगा.

अगले दिन प्रिया जब घर से स्कूल के लिए निकली तो रास्ते में उसे वही लड़का मिल गया. प्रिया उसे देख कर मुसकराई तो उस लड़के की जैसे बांछे खिल गईं. वह समझ गया कि लड़की की तरफ से उसे ग्रीन सिग्नल मिल गया है. जल्दी ही वह लड़का स्कूल जाते समय मोटरसाइकिल से प्रिया के पीछेपीछे जाने लगा और उस से बातें करने का मौका तलाशने लगा. एक दिन मौका मिला तो उस ने प्रिया से बात की और उसे बताया कि उस का नाम रज्जनलाल है, वह हमीरपुर गांव का रहने वाला है. हमीरपुर बंथरा के पास ही था. इस के बाद दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. कुछ दिनों बाद रज्जनलाल ने प्रिया के सामने प्यार का इजहार किया तो उस ने हंसी में जवाब दे कर सहमति जता दी. इस के बाद दोनों स्कूल आनेजाने के रास्ते में मिलनेजुलने लगे.

रज्जनलाल टैंपो चलाता था. प्रिया को जब उस के काम के बारे में पता चला तो उस ने रज्जनलाल को टैंपो चलाने के बजाए कोई दूसरा काम करने की सलाह दी. बात प्रेमिका की पसंदगी की थी, इसलिए उस ने अगले दिन से ही टैंपो चलाना बंद कर दिया और कोई दूसरा काम खोजने लगा. वह चूंकि ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, इसलिए काफी कोशिश के बाद भी उसे दूसरा काम नहीं मिला. रज्जनलाल को पता था कि प्रिया के पिता रमाशंकर गुप्ता की हार्डवेयर की दुकान है. उन की दुकान पर उस का एक दोस्त काम करता था. उसी की मार्फत उसे जानकारी मिली कि रमाशंकर को अपनी दुकान के लिए एक और लड़के की जरूरत है. रज्जनलाल ने सोचा था कि अगर उन की दुकान पर उसे नौकरी मिल जाती है तो उसे प्रिया से मिलने में आसानी होगी. अपने उसी दोस्त की मार्फत रज्जनलाल ने रमाशंकर गुप्ता से नौकरी के बारे में बात की. फलस्वरूप उन के यहां उसे नौकरी मिल गई.

अगले कुछ दिनों में ही रज्जनलाल ने अपने कामकाज से रमाशंकर पर विश्वास जमा लिया. उन्हें यह पता नहीं था कि उस का उन की बेटी प्रिया के साथ कोई चक्कर चल रहा है. यही वजह थी कि कोई काम होने पर वह उसे अपने घर भी भेज देते थे. घर जाता तो वह प्रिया से भी मिल लेता था. चूंकि घर पर वह प्रिया से ज्यादा बात नहीं कर पाता था, इसलिए उस ने एक चाइनीज फोन खरीद कर प्रिया को दे दिया. इस के बाद दोनों की रात में फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. दिन में वे एकदूसरे को एसएमएस भेज कर काम चलाते. बीतते वक्त के साथ उन के बीच प्यार गहराता जा रहा था.

प्यार में फंस कर प्रिया को अपने कैरियर और मांबाप के प्यार की भी परवाह नहीं रह गई थी. सब ठीक चल रहा था कि एक दिन प्रिया की मां सपना को पता चल गया कि प्रिया का दुकान पर काम करने वाले रज्जनलाल के साथ चक्कर चल रहा है. उन्होंने प्रिया से मोबाइल छीन लिया और पति को सारी बात बता कर रज्जनलाल की दुकान से छुट्टी करवा दी. इस के बाद दोनों का एकदूसरे से संपर्क नहीं हो सका. प्रिया रज्जनलाल को अपने दिल में बसा चुकी थी, इसलिए पाबंदी लगाने के बाद भी वह उसे भुला सकी.

उधर रज्जनलाल गांव की प्रधान बिमला प्रसाद की कार चलाने लगा था. प्रिया और रज्जन एक बार फिर स्कूल आनेजाने के रास्ते में मिलने लगे. रज्जनलाल के प्यार में पड़ कर प्रिया ने केवल अपने मातापिता का विश्वास खो दिया था, बल्कि वह अपनी पढ़ाई भी नहीं कर पा रही थी. स्कूल के टीचरों और छात्रों के बीच भी उस के और रज्जनलाल के संबंध के चरचे होने लगे थे. बेटी की वजह से रमाशंकर की कस्बे में खासी बदनामी होने लगी तो उन्होंने प्रिया को डांटा और उस का स्कूल जाना बंद करा दिया. इस से रमाशंकर को लगा कि अब शायद प्रिया सुधर जाएगी और रज्जनलाल से दूरी बना लेगी.

हालांकि वह चाहते थे कि प्रिया अपनी पढ़ाई पूरी कर ले. लेकिन उस के बदम बहक जाने की वजह से उन्हें यह कठोर फैसला लेना पड़ा था. खुद के ऊपर पाबंदी लगाए जाने पर एक दिन प्रिया ने ज्यादा मात्रा में नींद की गोली खा कर जान देने की कोशिश की. यह बात रज्जनलाल को पता चली तो उसे इस बात का दुख हुआ. वह प्रिया से बात कर के उसे समझाना चाहता था. लेकिन उसे प्रिया से मिलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. ऐसे में उसे अपने उस दोस्त की याद आई, जो प्रिया के पिता की दुकान पर काम करता था. उस ने एक मोबाइल और सिम कार्ड खरीद कर उस के हाथों प्रिया के पास भिजवा दिया. इस के बाद उन दोनों के बीच फिर से बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

इस के साथ ही रज्जनलाल प्रिया का दीदार करने की कोशिश में उस के घर के आसपास मंडराने लगा. रमाशंकर ने जब यह देखा तो उन्होंने इस की शिकायत उस के घर वालों से की. रज्जनलाल की शिकायतें सुनसुन कर उस के घर वाले परेशान हो चुके थे. उन्होंने सोचा कि अगर रज्जनलाल की शादी कर दी जाए तो वह प्रिया को भूल जाएगा. कुछ दिनों बाद रज्जनलाल के लिए उन्नाव जिले के गांव मटियारी में रहने वाले प्रहलाद की बेटी अलका से शादी का प्रस्ताव आया. लड़की ठीकठाक थी, इसलिए घर वालों ने फटाफट उस की शादी अलका से तय कर दी. चूंकि घर वालों को शादी की जल्दी थी, इसलिए 21 फरवरी, 2014 को शादी का दिन मुकर्रर कर दिया गया. दोनों ही तरफ से शादी की तैयारियां होने लगीं.

उधर घर वालों के दबाव में रज्जनलाल शादी के लिए इनकार तो नहीं कर सका, लेकिन वह मन से इस शादी के लिए तैयार नहीं था. उस के दिल में तो प्रिया ही बसी थी. जैसेजैसे 21 फरवरी नजदीक रही थी, उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. इसी चिंता में 19-20 फरवरी की रात उसे नींद नहीं रही थी. करीब 12 बजे उस ने प्रिया के मोबाइल पर एसएमएस किया. जिस में लिखा था, ‘हम तेरे बिन अब जी नहीं सकते. हम न खुद किसी के होंगे और तुम को किसी और का होने देंगे.’ दूसरी तरफ से प्रिया ने भी उस का साथ निभाने के वादे के साथ एसएमएस किया. प्रिया का एसएमएस पाने के बाद रज्जनलाल ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. जिस के बारे में उस ने प्रिया को भी बता दिया.

उस रात प्रिया अपनी मां के पास लेटी थी. बेटी को देख कर मां यह अंदाजा नहीं लगा पाई कि वह उन के विश्वास को तोड़ने की साजिश रच चुकी थी. देर रात जब घर के सब लोग सो गए तो करीब 1 बजे प्रिया छत के रास्ते से निकल कर घर से बाहर आ गई. योजना के अनुसार रज्जनलाल अपनी मोटरसाइकिल ले कर उस के घर से कुछ दूर कर खड़ा हो गया. प्रिया उस के पास पहुंच गई. वहां से दोनों मोटरसाइकिल से लालाखेड़ा चले गए.

बंथरा के पास स्थित लालाखेड़ा के टुडियाबाग स्थित प्राथमिक विद्यालय में एनएसएस का शिविर लगा था. इस शिविर में छात्र अपने टीचरों के साथ रुके हुए थे. 20 फरवरी, 2014 की सुबह 7 बजे के वक्त शिविर के कुछ छात्र खाना बनाने के लिए लकड़ी लेने गांव से कुछ दूर एक खेत के नजदीक पहुंचे तो वहां एक लड़की की लाश देख कर उन की चीख निकल गई. लाश औंधे मुंह पड़ी थी. छात्रों ने यह बात अपने टीचरों को बताई तो उन्होंने इस की सूचना थाना बंथरा पुलिस को दी. थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर  पहुंच गए. तब तक वहां गांव के तमाम लोग एकत्र हो गए थे.

पुलिस ने जब लड़की की लाश सीधी की तो उसे देखते ही लोग चौंक गए. क्योंकि वह बंथरा के ही रहने वाले रमाशंकर गुप्ता की बेटी प्रिया थी. जिस जगह लाश पड़ी थी, वहीं पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी और एक तमंचा भी पड़ा हुआ था. पुलिस लाश का अभी मुआयना कर ही रही थी कि कुछ लोगों ने बताया कि पास के ही एक पेड़ पर एक युवक ने फांसी लगा ली है. उस की लाश महुआ के पेड़ में लटक रही है. थानाप्रभारी तुरंत उस महुआ के पेड़ के पास पहुंचे. वह पेड़ वहां से लगभग 50 मीटर दूर था. उन्होंने देखा पेड़ में बंधी लाल रंग की चुन्नी से एक युवक की लाश लटक रही है.पुलिस ने जब लाश को नीचे उतरवाया तो लोगों ने उस की शिनाख्त रज्जनलाल के रूप में की. पुलिस को लोगों से यह भी पता चला कि प्रिया और रज्जन का प्रेम संबंध चल रहा था.

2-2 लाशें मिलने की खबर आसपास के गांव वालों को चली तो सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. प्रिया और रज्जनलाल के घर वाले भी वहां पहुंच चुके थे. थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव ने यह सूचना अपने अधिकारियों को दी तो लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार त्रिपाठी, एसपी (पूर्वी क्षेत्र) राजेश कुमार, एसपी (क्राइम) रविंद्र कुमार सिंह और सीओ (कृष्णानगर) हरेंद्र कुमार भी मौके पर  पहुंच गए.

सभी पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और लाशों का मुआयना किया. प्रिया की कमर का घाव देख कर लग रहा था कि उस की हत्या वहां पड़े तमंचा से गोली मार कर की गई थी. अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि रज्जनलाल ने पहले प्रिया को गोली मारी होगी और बाद में उस ने खुद को फांसी लगाई होगी. प्रिया की लाश के पास जो मोटरसाइकिल बरामद हुई थी, पता चला कि वह रज्जनलाल की थी. पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उधर रज्जनलाल के भाई राजकुमार ने आरोप लगाया कि उस के भाई और प्रिया एकदूसरे से प्यार करते थे, इसलिए प्रिया के पिता रमाशंकर ने कुछ लोगों के साथ मिल कर प्रिया और रज्जनलाल की हत्या की है. उस ने इसे औनर किलिंग का मामला बताते हुए आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की मांग की.

रज्जनलाल बंथरा की ग्राम प्रधान विमला कुमार की गाड़ी चलाता था. विमला के पति रिटायर पुलिस आफिसर थे. वह भी थाना पुलिस के ऊपर दबाव डालने लगे तो पुलिस ने राजकुमार की तहरीर पर रमाशंकर और उन के नौकर राजू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. दूसरी ओर प्रिया के पिता रमाशंकर का आरोप था कि रज्जनलाल उन की बेटी को बहलाफुसला कर भगा ले गया और उस की गोली मार कर हत्या कर दी. रमाशंकर गुप्ता ने इस संबंध में थानाप्रभारी को एक तहरीर भी दी. इस मामले की जांच थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव खुद कर रहे थे.

20 फरवरी को जब दोनों लाशों का पोस्टमार्टम हुआ तो उस की पूरी वीडियोग्राफी कराई गई, जिस से काररवाई में पारदर्शिता बनी रहे और पुलिस के ऊपर अंगुली न उठे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रज्जनलाल के मरने की वजह फांसी के फंदे के कारण दम घुटना बताया गया. उस के शरीर पर किसी तरह की चोट का कोई निशान नहीं था. सारी हकीकत सामने आ सके इस के लिए एसएसपी प्रवीण कुमार ने एसपी रविंद्र कुमार सिंह को भी इस मामले की जांच में लगा दिया. रज्जनलाल ने हताशा में यह कदम उठा तो लिया, लेकिन ऐसा करने से पहले उस ने यह नहीं सोचा कि जिस लड़की से अगले ही दिन उस की शादी होने वाली थी, उस पर और उस के घर वालों पर क्या गुजरेगी? अलका को जब पता चला कि उस के होने वाले पति रज्जनलाल ने खुदकुशी कर ली है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस के यहां शादी की जो तैयारियां चल रही थीं, वह मातम में बदल गईं.

पिता प्रहलाद की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे में करें तो क्या करें, ऐसे में लोगों ने उन्हें सलाह दी कि जब शादी की सारी तैयारियां हो ही चुकी हैं तो क्यों न अलका की शादी रज्जनलाल के छोटे भाई राजकुमार से कर दी जाए. प्रहलाद ने जब यह प्रस्ताव राजकुमार के सामने रखा तो उस ने सहमति जता दी. इस पर 20 फरवरी, 2014 को जिस समय रज्जनलाल के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, उसी समय राजकुमार 5 लोगों के साथ अलका से शादी रचाने चला गया.

जांच के बाद पुलिस ने इस मामले को आनर किलिंग की घटना मानने से इनकार कर दिया. कुछ लोगों ने पुलिस की इस बात को झुठलाते हुए पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और कानपुर लखनऊ हाईवे पर जाम लगा दिया. जाम लगाने वालों की पुलिस ने वीडियोग्राफी कराई और बड़ी मुश्किल से समझाबुझा कर जाम खुलवाया. इस के बाद पुलिस ने हाइवे जाम करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

(प्रिया परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित), Suicide Story

Love Crime: मोहब्बत का खौफनाक अंत – प्रेमी ने गले लगाकर कर दी हत्या

Love Crime: शादीशुदा होने के बावजूद साथ काम करने वाली प्रभावती पर तेजभान का दिल आया तो कोशिश कर के उस ने उस से संबंध बना लिए. फिर इस संबंध का भी वैसा ही अंत हुआ, जैसा अकसर होता आया हैप्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलनेखाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनीअपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा. रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी.

प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’ ‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई. अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बातहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ. ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए

अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी. प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए. उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा. बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थींसमय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी.

मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी. जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

 ‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

 ‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

 ‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

 ‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा. प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था.

रायबरेली का मंशा देवी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है. करीब 5 साल पहले सितंबर महीने के पहले रविवार को प्रभावती मनोज के साथ वहां गई. दोनों ने मंदिर में मंशा देवी के सामने एकदूसरे को पतिपत्नी मानते हुए जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद एकदूसरे के गले में फूलों की जयमाल डाल कर दांपत्य बंधन में बंध गए

मंदिर में शादी कर के मनोज प्रभावती को अपने कमरे पर ले गया. मनोज को इसी दिन का बेताबी से इंतजार था. वह प्रभावती के यौवन का सुख पाना चाहता था. अब इस में कोई रुकावट नहीं रह गई थी, क्योंकि प्रभावती ने उसे अपना जीवनसाथी मान लिया था. इसलिए अब उस की हर चीज पर उस का पूरा अधिकार हो गया था. मनोज को प्रभावती किसी परी की तरह लग रही थी. छरहरी काया में उस की बोलती आंखें, मासूम चेहरा किसी को भी बहकने पर मजबूर कर सकता था. प्रभावती में वह सब कुछ था, जो मनोज को दीवाना बना रहा था. मनोज के लिए अब इंतजार करना मुश्किल हो रहा था.

वह प्रभावती को ले कर सुहागरात मनाने के लिए कमरे में पहुंचा. प्रभावती को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. मन तो वह पहले ही सौंप चुकी थी, उस दिन तन भी सौंप दिया. इस तरह प्रभावती की विवाहित जीवन की कल्पना साकार हो गई थी. यह बात प्रभावती ने अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने बुरा नहीं माना. कुछ दिनों तक रायबरेली में साथ रहने के बाद वह मनोज के साथ उस के घर बंगाल चली गई. मनोज बंगाल के हुगली शहर के रेल बाजार का रहने वाला था. लेकिन मनोज अपने घर जा कर कोलकाता की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा और वहीं मकान ले कर प्रभावती के साथ रहने लगा. साल भर बाद प्रभावती ने वहीं एक बेटे को जन्म दिया. मनोज नौकरी करता था तो प्रभावती घर और बेटे को संभाल रही थी. दोनों मिलजुल कर आराम से रह रहे थे.

मनोज बेटे और प्रभावती के साथ खुश था. लेकिन वह प्रभावती को अपने घर नहीं ले जा रहा था. प्रभावती कभी ले चलने को कहती तो वह कोई कोई बहाना कर के टाल जाता. कोलकाता में रहते हुए काफी समय हो गया तो प्रभावती को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन उस ने मनोज से रायबरेली चलने को कहा तो मनोज ने कहा, ‘‘यहां हमें रायबरेली से ज्यादा वेतन मिल रहा है, इसलिए अब मैं वहां नहीं जाना चाहता. अगर तुम चाहो तो जा कर अपने घर वालों से मिल आओ. वहां से आने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

मातापिता से मिलने के लिए प्रभावती रायबरेली गई. कुछ दिनों बाद वह मनोज के पास कोलकाता पहुंची तो पता चला कि मनोज तो पहले से ही शादीशुदा है. क्योंकि प्रभावती के रायबरेली जाते ही मनोज अपनी पत्नी सीमा को ले आया था. उस की पत्नी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया. उसे धमकाते हुए सीमा ने कहा, ‘‘तुम जैसी औरतें मर्दों को फंसाने में माहिर होती हैं. जवानी के लटकेझटके दिखा कर पैसों के लिए किसी भी मर्द को फांस लेती हैं. अब यहां कभी दिखाई मत देना. अगर यहां फिर आई तो ठीक नहीं होगा.’’ सीमा की बातें सुन कर प्रभावती के पास वापस आने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. उसे जलालत पसंद नहीं थी.

वह एक बार मनोज से मिल कर रिश्ते की सच्चाई के बारे में जानना चाहती थी. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी तो मनोज उस के सामने आया और उस ने फोन पर बात की. उस से मिलने के चक्कर में प्रभावती कुछ दिन वहां रुकी रही. लेकिन जब वह उस से मिलने को तैयार नहीं हुआ तो वह परेशान हो कर रायबरेली वापस चली आई. जिस मनोज को उस ने पति मान कर अपना सब कुछ सौंप दिया था, वह बेवफा निकल गया था. प्रभावती का दिल टूट चुका था. वापस आने पर उस की परेशानियां और भी बढ़ गईं. अब मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ बेटे की भी जिम्मेदारी थी. गुजरबसर के लिए प्रभावती फिर से काम करने लगी. बदनामी के डर से वह प्लाईवुड फैक्ट्री में नहीं गई. थोड़ी दौड़धूप करने पर उसे रायबरेली शहर में दूसरा काम मिल गया था.

जीवन फिर से पटरी पर आने लगा था. शादी के बाद प्रभावती की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार गया था. दूसरी जगह काम करते हुए उस की मुलाकात तेजभान से हुई. तेजभान उसी की जाति का था. प्रभावती रोजाना अपने काम पर साइकिल से रायबरेली आतीजाती थी. कभी कोई परेशानी होती या देर हो जाती तो तेजभान उसे अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंचा देता था. लगातार मिलनेजुलने से दोनों के बीच नजदीकी बढ़ने लगी. तेजभान के साथ प्रभावती को खुश देख कर उस के मांबाप भी खुश थे. तेजभान रायबरेली के ही डीह गांव का रहने वाला था.

एक दिन प्रभावती को कुछ ज्यादा देर हो गई तो तेजभान ने उस से अपने कमरे पर ही रुक जाने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद प्रभावती तेजभान के कमरे पर रुक गई. मनोज से संबंध टूटने के बाद शारीरिक सुख से वंचित प्रभावती एकांत में तेजभान का साथ पाते ही पिघलने लगी. उस की शारीरिक सुख की कामना जाग उठी थी. तेजभान तो उस से भी ज्यादा बेचैन था. उम्र में बड़ा होने के बावजूद तेजभान का जिस्म मजबूत और गठा हुआ था. उस की कदकाठी मनोज से काफी मिलतीजुलती थी. वह मनोज जैसा सुंदर तो नहीं दिखता था, लेकिन बातें उसी की तरह प्यारभरी करता था. प्रभावती की सोई कामना को उस ने अंगुलियों से जगाना शुरू किया तो वह उस के करीब गई. इस के बाद दोनों के बीच वह सब हो गया जो पतिपत्नी के बीच होता है.

तेजभान और प्रभावती के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हो गए थे. वह प्रभावती के घर तो पहले से ही आताजाता था, लेकिन अब उस के घर रात में रुकने भी लगा था. प्रभावती के मातापिता से भी वह बहुत ही प्यार और सलीके से पेश आता था. इस के चलते वे भी उस पर भरोसा करने लगे थे. तेजभान के पास जो मोटरसाइकिल थी, वह पुरानी हो चुकी थी. वह उसे बेच कर नई मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था. लेकिन इस के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. अपने मन की बात उस ने प्रभावती से कही तो उस ने उसे 10 हजार रुपए दे कर नई मोटरसाइकिल खरीदवा दी. तेजभान का प्यार और साथ पा कर वह मनोज को भूलने लगी थी. तेजभान में सब तो ठीक था, लेकिन वह थोड़ा शंकालु स्वभाव का था.

वह प्रभावती को कभी किसी हमउम्र से बातें करते देख लेता तो उसे बहुत बुरा लगता. वह नहीं चाहता था कि प्रभावती किसी दूसरे से बात करे. इसलिए वह हमेशा उसे टोकता रहता था. प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया

जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’ प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया.

वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी. प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’ प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’

एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’

‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’

‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.

प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गयाप्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.

तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया. मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया.

प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया. प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.

प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है. 11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई

घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ परआई लव यूलिखा है. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.

थाने कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी. प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया.

शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी. प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी. मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’

पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, Love Crime

Love Crime In Hindi: दरिंदगी की हदें पार, गद्दे में लपेटकर जलाई प्रेमिका

Love Crime In Hindi: समीर ने विवाहिता सोफिया से प्यार केवल उस का शरीर पाने के लिए किया था. जबकि सोफिया उस के साथ जिंदगी बिताने के सपने देख रही थी. कभी किसी के सपने पूरे हुए हैं जो सोफिया के पूरे होते.

आग भड़की तो धुआं खिड़कियों और दरवाजों की दराजों से बाहर निकलने लगा. पड़ोसियों ने तुरंत इस बात की जानकारी फायर और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने तत्काल इस बात की सूचना मुंबई के उपनगर चैंबूर के थाना पुलिस को दी. सूचना के अनुसार लल्लूभाई कंपाउंड की इमारत की पांचवीं मंजिल के किसी फ्लैट में आग लगी थी. उस में से निकलने वाले धुएं से मानव शरीर के जलने की गंध आ रही थी. उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर माली थे. सूचना गंभीर थी, इसलिए घटना की सूचना अपने सीनियर पुलिस इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को दे कर वह तुरंत कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

सबइंसपेक्टर माली के पहुंचने तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. आग बुझाने वाली गाडि़यां भी आ चुकी थीं और उन्होंने आग पर काबू भी पा लिया था. सबइंसपेक्टर माली साथियों के साथ फ्लैट के अंदर पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर स्तब्ध रह गए. कमरे में एक औरत बेहोशी की हालत में रुई के गद्दे में लिपटी थी. गद्दे के साथ उस के सारे कपड़े ही नहीं, सीना, पेट, हाथ, कमर और दोनों पैर भी बुरी तरह जल गए थे. गौर से देखने पर पता चला कि उस के सिर के ऊपरी हिस्से में गहरा घाव था, जिस से अभी भी खून रिस रहा था. वहां तेज धार वाला एक बड़ा सा खून से सना चाकू पड़ा था. साफ था, पहले हत्यारों ने महिला पर चाकू से वार किया था. उस के बाद सुबूत मिटाने के लिए उसे गद्दे में लपेट कर आग लगा दी थी.

सबइंसपेक्टर माली ने देखा कि महिला की सांस चल रही है तो उन्होंने उसे तुरंत एंबुलैंस में डाल कर उपचार के लिए घाटकोपर राजा वाड़ी असपताल भिजवा दिया. इस के बाद वह सुबूतों की तलाश में फ्लैट का कोनाकोना छानने में लग गए. पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि महिला का नाम सोफिया शेख था. वह अपनी बेटी के साथ वहां रहती थी. श्री माली अपने सहायकों के साथ सोफिया के बारे में जानकारी जुटा रहे थे कि घटना की सूचना पा कर ज्वाइंट सीपी कैसर खालिद, एडिशनल सीपी लखमी गौतम, एसीपी विजय मेरु, सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत, इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े, प्रमोद कदम घटनास्थल पर आ पहुंचे थे.

अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर के सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने सहायकों की मदद से चाकू, खून का नमूना, सोफिया का मोबाइल फोन कब्जे में लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए. थाने आ कर सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत हत्यारों तक पहुंचने का रास्ता तलाश करने लगे. घटनास्थल की स्थिति से साफ था कि यह लूटपाट का मामला नहीं था, क्योंकि फ्लैट का सारा समान यथास्थिति पाया गया था. ऐसे में सावाल यह था कि तब सोफिया की हत्या की कोशिश क्यों की गई थी.

सोफिया इस स्थिति में नहीं थी कि वह इस सवाल का जवाब देती. वह उस समय जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. वैसे भी उस के बचने की संभावना कम थी. आखिर वही हुआ, जिस का सभी को अंदाजा था. लाख कोशिश के बाद भी डाक्टर सोफिया को बचा नहीं सके. उसी दिन शाम लगभग 6 बजे सोफिया ने दम तोड़ दिया था. सोफिया की मौत के बाद हत्यारों के बारे में पता चलने की पुलिस की उम्मीद खत्म हो गई थी. अब उन्हें अपने तरीके से कातिलों तक पहुंचना था. सोफिया की हत्या किस ने और क्यों की, वे कहां के रहने वाले थे? अब पुलिस के लिए यह एक रहस्य बन गया था.

सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को सौंप दी थी. सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े ने इंसपेक्टर प्रमोद कदम, असिस्टेंट इंसपेक्टर पोपट सालुके, सबइंसपेक्टर संदेश मांजरेकर, सिपाही भरत ताझे, राजेश सोनावणे की एक टीम बना कर मामले की तफ्तीश तेजी से शुरू कर दी. चंद्रशेखर की इस टीम ने सोफिया की बेटी, इमारत में रहने वालों और उस के नातेरिश्तेदारों से लंबी पूछताछ की. इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी उस के कातिलों तक पहुंचने का पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला.

जब इस पूछताछ से पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने सोफिया के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस की नजरें काल डिटेल्स के उस नंबर पर जम गईं, जो उस दिन सोफिया पर हमला होने से पहले आया था. वही अंतिम फोन भी था. वह फोन 12 बज कर 03 मिनट पर आया था. सोफिया ने उसे रिसीव भी किया था. इस का मतलब उस समय तक वह जीवित थी. इस के बाद ही उस फ्लैट में आग लगने की सूचना पुलिस और फायरब्रिगेड को दी गई थी. इस का मतलब फोन करने के बाद 15 मिनट के अंदर हत्यारे अपना काम कर के चले गए थे.

इंसपेक्टर चंद्रशेखर की टीम ने एक बार फिर इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. उस समय की तस्वीरों को गौर से देखा गया. लेकिन कोई स्पष्ट तस्वीर पुलिस को दिखाई नहीं दी. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. तब पुलिस ने यह पता किया कि वह नंबर किस के नाम है और वह कहां रहता है? पुलिस को इस संबंध में तुरंत जानकारी मिल गई. वह किसी जावेद के नाम था. पुलिस को उस का पता भी मिल गया था. पुलिस उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर जावेद की बहन और भाभी मिलीं तो पुलिस ने पूछा कि उस का फोन बंद क्यों है? तब दोनों ने बताया कि उस का फोन इन दिनों उस के जिगरी दोस्त पप्पू के पास है. पप्पू का पता भी दोनों ने बता दिया था. इसलिए पुलिस टीम वहां से सीधे पप्पू के घर जा पहुंची.

पप्पू भी घर से गायब था. पुलिस टीम ने उस फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस का उपयोग पप्पू कर रहा था. इस के बाद सर्विलांस की मदद से 12 दिसंबर, 2013 की दोपहर 2 बजे पुलिस टीम ने पप्पू को शिवडी के झकरिया बंदर रोड से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब पप्पू से सोफिया की हत्या के बारे में पूछताछ की जाने लगी तो पहले उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ ढेर सारे सुबूत थे, इसलिए उसे घेर कर सच्चाई उगलवा ली. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि मुन्ना उर्फ परवेज शेख के साथ उसी ने दुबई में रहने वाले समीर के कहने पर सोफिया की हत्या की थी.

इस के बाद पुलिस ने पप्पू की निशानदेही पर घाटकोपर के तिलकनगर के सावलेनगर के रहने वाले मुन्ना को उस के घर छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया. पप्पू के पकड़े जाने से पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों को मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर के 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में दोनों ने जो बताया, उस के अनुसार सोफिया की हत्या की यह कहानी कुछ इस तरह थी. 40 वर्षीया सोफिया शेख अपने 2 बच्चों के साथ चैंबूर मानखुर्द के लल्लूभाई कंपाउंड की बिल्डिंग नंबर 60 की बी-विंग के फ्लैट नंबर 5/3 में रहती थी. उस का 13 वर्षीय बेटा रत्नागिरि के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था और वहीं बोर्डिंग के हौस्टल में रहता था. जबकि 10 वर्षीया बेटी सोफिया के साथ ही रहती थी. घटना के समय वह स्कूल गई हुई थी.

सन 1991 में सोफिया शेख का निकाह चैंबूर के शिवाजीनगर के रहने वाले इमरान हाजीवर शेख के बड़े भाई के साथ हुआ तो मानो उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. इस की वजह यह थी कि उस का पति उसे जान से ज्यादा प्यार करता था. उस का दांपत्यजीवन बड़ी हंसीखुशी से बीत रहा था. दोनों अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक उन की इस गृहस्थी पर किसी की काली नजर पड़ गई. अभी सोफिया के हाथों की मेहंदी भी ठीक से नहीं छूटी थी कि जिस पति ने उस का हाथ थाम कर जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था, वह हाथ ही नहीं, बल्कि हमेशाहमेशा Love Stories के लिए उस का साथ छोड़ कर चला गया. हैवानियत की एक ऐसी आंधी आई, जिस में उस का सुहाग पलभर में उड़ गया. सन 1992 में मुंबई में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस में उस का पति मारा गया था.

पति की आकस्मिक मौत ने सोफिया को तोड़ कर रख दिया. उसे दुनिया से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी नफरत हो गई. वह जीना नहीं चाहती थी, लेकिन आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. वह हमेशा सोच में डूबी रहने लगी. मुसकराने की तो छोड़ो, वह बातचीत भी करना लगभग भूल सी गई थी. उस की हालत देख कर मातापिता परेशान रहने लगे थे. उस ने जिंदगी शुरू की थी कि उस के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था. अभी उस की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की जिंदगी को संवारने के लिए उस के मातापिता उस के दूसरे निकाह के बारे में सोचने लगे.

सोफिया के मातापिता उस का दूसरा निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख से करना चाहते थे. सोफिया की ससुराल वालों से बातचीत कर के जब उस के मातापिता ने इमरान से निकाह का प्रस्ताव सोफिया के सामने रखा तो उस ने मना कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे ऊंचनीच का हवाला दे कर खूब समझायाबुझाया तो वह देवर इमरान हाजीवर शेख के साथ निकाह करने को तैयार हो गई. इस के बाद दोनों परिवारों की उपस्थिति में बड़ी सादगी से सोफिया का निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख के साथ हो गया. यह 1996 की बात थी. इमरान औटो चलाता था.

निकाह के बाद सोफिया अपने दूसरे पति से भी वैसा ही प्यार चाहती थी, जैसा उसे पहले पति से मिला था. यही वजह थी कि वह उसे भी उसी तरह प्यार कर रही थी. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो इमरान ने उसे उसी तरह प्यार किया, जिस तरह उस के पहले पति ने किया था. तब वह अपनी सारी कमाई ला कर सोफिया के हाथों में रख देता था. उस बीच उस ने उस के हर दुखसुख का खयाल भी रखा. उसी बीच सोफिया उस के 2 बच्चों की मां बनी. पहला बच्चा बेटा था तो दूसरा बेटी. बच्चों के बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खर्च बढ़ा, जिस के लिए इमरान को कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा समय देना पड़ता था.

अब वह पहले की तरह न सोफिया को प्यार कर पाता था, न समय दे पाता था. इस से सोफिया का मन बेचैन रहने लगा, जिस से छोटीछोटी बातों को ले कर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे. धीरेधीरे ये झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने अलग रहने का निर्णय ले लिया. इस तरह दोनों के संबंध खत्म हो गए. पति से अलग होने के बाद सोफिया दोनों बच्चों को ले कर मानखुर्द में मुंबई म्हाण द्वारा मिले मकान में आ कर रहने लगी. बच्चों के साथ यहां आ कर सोफिया खुश तो थी, लेकिन एक बात यह भी है कि पति से अलग होने के बाद हर औरत बहुत दिनों तक अपने दिलोदिमाग पर काबू नहीं रख पाती. अगर वह जवान हो तो यह समस्या और बढ़ जाती है. क्योंकि इस उम्र में जो जोश होता, उसे संभालना हर किसी के वश की बात नहीं होती. उस औरत के लिए यह और मुश्किल हो जाता है, जो उस का स्वाद चख चुकी होती है. ऐसे में वह उस सुख के लिए मर्यादा तक भूल जाती है.

ऐसा ही सोफिया Love Stories के साथ भी हुआ. पति इमरान हाजीवर से अलग होने के बाद वह अपने तनमन पर काबू नहीं रख पाई और स्वयं को समीर शेख की बांहों में झोंक दिया. 25 वर्षीय समीर शेख अपने भाई के साथ गोवड़ी शिवाजीनगर के उसी इलाके में रहता था, जहां सोफिया अपने पति इमरान हाजीवर शेख के साथ रहती थी. समीर शेख देखने में जितना सुंदर और स्वस्थ था, उतना ही दिलफेंक भी था. इसी वजह से लड़कियां उस की कमजोरी बन चुकी थीं. समीर के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. वह दुबई की किसी कंपनी में नौकरी करता था. अच्छी कमाई थी, इसलिए खर्च करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह हमेशा हीरो की तरह सजधज कर रहता था. उस की शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी.

अपने दिलफेंक स्वभाव की ही वजह से जब उस ने सोफिया को अपने एक रिश्तेदार के यहां देखा तो पहली ही नजर में उसे अपने दिल में बैठा लिया. कुंवारा समीर अपनी उम्र से बड़ी और 2 बच्चों की मां सोफिया पर मर मिटा. सोफिया जब तक अपने उस रिश्तेदार के घर रही, तब तक महिलाओं को पटाने में माहिर समीर की नजरें सोफिया के इर्दगिर्द ही घूमती रहीं. सोफिया को भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो उस के भटकते तनमन को काबू में ला सके. इसलिए समीर से नजरें मिलते ही उस ने उस के दिल की बात जान ली. सोफिया ने समीर को तब देखा था, जब वह लड़का था. आज वही समीर जवान हो कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था.

समीर का भरापूरा चेहरा, चौड़ी छाती और मजबूत बांहें देख कर सालों से शारीरिक सुख से वंचित सोफिया का मन विचलित हो उठा. वह उसे चाहत भरी नजरों से ताक ही रहा था, इसलिए सोफिया ने भी उस पर अपनी नजरें इनायत कर दीं तो बातचीत में होशियार समीर को उस पर अपना प्रभाव जमाने में देर नहीं लगी. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर भी ले लिए. इस के बाद मोबाइल पर शुरू हुई बातचीत जल्दी ही मेलमुलाकात में ही नहीं, प्यार और शारीरिक संबंधों में बदल गई.

2 बच्चों की मां होने के बावजूद सोफिया की सुंदरता में जरा भी कमी नहीं आई थी. उस के रूपसौंदर्य और शालीन स्वभाव में समीर डूब सा गया. औरतों का रसिया समीर शेख जब तक दुबई में रहता, फोन से बातें कर के सोफिया को अपने Love Stories प्यार में इस कदर उलझाए रहता कि उसे उस की दूरी का अहसास नहीं हो पाता.

दुबई से आने पर समीर सोफिया के लिए ढेर सारे उपहार तो लाता ही, उसे इस कदर प्यार करता कि बीच का खालीपन भर जाता. जब तक वह यहां रहता, सोफिया को इतना प्यार देता कि वह पूरी दुनिया भूली रहती. समीर के प्यार को पा कर सोफिया एक सुंदर भविष्य के सपनों में खो गई. उस के मन में उम्मीद जाग उठी कि समीर उस का पूरे जीवन साथ देगा. समीर ने वादा भी किया था, इसलिए सोफिया उस से निकाह के लिए कहने लगी. जबकि समीर टालता रहा.

जब समीर और अपने से दोगुनी उम्र की सोफिया के प्यार की जानकारी समीर के घर वालों की हुई तो वे परेशान हो उठे. उन्हें इज्जत के साथसाथ उस के भविष्य की भी चिंता सताने लगी. उन्होंने दुनियादारी बता कर उसे समझायाबुझाया तो वह शादी के लिए राजी हो गया. इस के बाद उस के लिए पारिवारिक लड़की खोजी जाने लगी. समीर शादी के लिए तैयार तो हो गया था, लेकिन वह जानता था कि सोफिया आसानी से मानने वाली औरतों में नहीं है. उस ने सिर्फ शारीरिक जरूरत के लिए ही उस से प्यार नहीं किया था. उस ने उसे दिल से प्यार किया था, इसलिए वह जानता था कि सोफिया आसानी से उसे छोड़ने वाली नहीं है.

समीर भले ही उस से शादी का वादा करता रहा था, लेकिन सच्चाई यह थी कि उस ने मात्र शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए सोफिया से प्यार किया था. यही वजह थी कि घर वालों ने उस के लिए लड़की की तलाश शुरू की तो वह सोफिया को ले कर परेशान रहने लगा. क्योंकि वह जानता था कि सोफिया आसानी से तो क्या, बिलकुल ही नहीं मानने वाली. पता चलने पर यह भी हो सकता था कि वह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दे.

तब बदनामी भी होती और समीर कानूनी शिकंजे में भी फंस जाता. इसलिए सोफिया नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से निकालने के लिए उस ने एक खतरनाक फैसला ले कर इस की जिम्मेदारी अपने एक दोस्त पप्पू उर्फ इस्माइल शेख को सौंप दी. इस के बाद वह सोफिया से एक बार फिर शादी का वादा कर के 20 नवंबर, 2013 को दुबई चला गया.

28 वर्षीय पप्पू उर्फ इस्माइल शेख शिवाजीनगर में उसी इमारत में रहता था, जिस में समीर शेख का परिवार रहता था. उस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने लगभग साल भर पहले व्यवसाय करने के लिए समीर से 35 हजार रुपए उधार लिए थे. समीर से रुपए ले कर उस ने जो व्यवसाय किया था, संयोग से वह चला नहीं. फायदा होने की कौन कहे, उस में उस की जमापूंजी भी डूब गई. जब पैसे ही नहीं रहे तो पप्पू समीर का कर्ज कहां से अदा कर पाता. समीर ने रुपए ब्याज पर दिए थे, जो ब्याज के साथ 50 हजार रुपए हो गए थे. समीर ने अपने रुपए मांगे तो पप्पू ने रुपए लौटाने में मजबूरी जताई और कुछ दिनों की मोहलत मांगी. समीर जानता था कि पप्पू जल्दी रुपए नहीं लौटा सकता, इसलिए उस ने मौका देख कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हारा यह कर्ज माफ कर दूंगा.’’

‘‘ऐसा कौन सा काम है, जिस के लिए तुम इतना कर्ज माफ करने को तैयार हो?’’ पप्पू ने पूछा.

‘‘भाई, इतनी बड़ी रकम माफ करने को तैयार हूं तो काम भी बड़ा ही होगा.’’ समीर ने कहा.

‘‘ठीक है, काम बताओ.’’

‘‘सोफिया शेख की हत्या करनी है.’’ समीर ने कहा तो पप्पू को झटका सा लगा. क्योंकि काम काफी खतरनाक था. लेकिन समीर के 50 हजार रुपए देना भी उस के लिए काफी मुश्किल था, इसलिए मजबूरी में वह यह मुश्किल और खतरनाक काम करने को राजी हो गया. इस के बाद सोफिया की हत्या कैसे और कब करनी है, समीर ने पूरी योजना उसे समझा दी.

समीर के दुबई चले जाने के बाद पप्पू उस के द्वारा बनाई योजना को साकार करने की कोशिश में लग गया. यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए मदद के लिए उस ने अपने एक परिचित 15 वर्षीय मुन्ना उर्फ परवेज शेख को साथ ले लिया. इस के बाद अपने दोस्त जावेद का मोबाइल फोन ले कर 9 दिसंबर, 2013 को मुन्ना के घर जा पहुंचा. पूरी रात दोनों समीर द्वारा बताई योजना पर विचार करते रहे.

अगले दिन 10 दिसंबर, 2013 की सुबह पप्पू मुन्ना के साथ बाजार गया और वहां से एक तेज धार वाला बड़ा सा चाकू खरीदा. अब उसे यह पता करना था कि सोफिया घर में है या कहीं बाहर. इस के लिए उस ने सोफिया को फोन किया. उस ने फोन रिसीव किया तो पप्पू ने छूटते ही कहा, ‘‘समीरभाई ने मेरा पासपोर्ट और कुछ जरूरी कागजात तुम्हारे घर पर रखे हैं, मैं उन्हें लेने आ रहा हूं. आप उन्हें ढूंढ़ कर रखें.’’

सोफिया कुछ कहती, उस के पहले ही पप्पू ने फोन काट दिया. इस के बाद पप्पू ने आटो किया और मुन्ना के साथ सोफिया के घर जा पहुंचा. उस ने घंटी बजाई तो सोफिया ने दरवाजा खोल दिया. पप्पू ने अपने पासपोर्ट और कागजातों के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘समीर मेरे पास न तो कोई पासपोर्ट रख गया है न कोई कागजात. जा कर उसी से पूछो, उस ने कहां रखे हैं.’’

इसी बात को ले कर पप्पू सोफिया से बहस करने लगा तो उस ने नाराज हो कर पप्पू को घर से निकल जाने को कहा. तभी पप्पू ने चाकू निकाल कर उस के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. वार इतना तेज था कि सोफिया संभल नहीं पाई और गिर पड़ी. गिरते ही वह बेहोश हो गई. इस के बाद पप्पू और मुन्ना ने सोफिया के सारे गहने उतार कर उसे उसी हालत में गद्दे में लपेट कर आग लगा दी. अपना काम कर के वे बाहर आ गए और काम हो जाने की सूचना समीर को दे दी.

रिमांड अवधि खत्म होने पर एक बार फिर पप्पू और मुन्ना को महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. हत्या की साजिश रचने वाला समीर शेख दुबई में था. पुलिस उसे वहां से भारत बुलाने की कोशिश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, Love Crime In Hindi

Acid Attack: चेहरे पर कैमिकल फेंक कर बदला लेने की दरिंदगी

Acid Attack: विभूति का सामान ज्यादा और भारी था, इसलिए सीट के नीचे एडजस्ट करने में उसे काफी दिक्कत हो रही थी. उसे परेशान देख कर सामने की सीट पर बैठे युवक ने कहा, ‘‘मैडम, आप बुरा मानें तो आप का सामान एडजस्ट कराने में मैं आप की मदद कर दूं.’’ विभूति ने युवक की ओर देखा और उठ कर एक किनारे खड़ी हो गई. एक तरह से यह उस की मौन सहमति थी. उस युवक ने विभूति का सारा सामान पलभर में सीट के नीचे करीने से लगा दिया. उस के बाद हाथ झाड़ते हुए बोला, ‘‘अब आप आराम से बैठिए.’’

‘‘थैंक यू.’’ कह कर विभूति युवक के सामने वाली अपनी सीट पर बैठ गई. कुछ पल तक खामोशी छाई रही. यह खामोशी शायद युवक को अच्छी नहीं लग रही थी, इसलिए चुप्पी तोड़ते हुए उस ने पूछा, ‘‘मैडम, आप कहां तक जाएंगी?’’

‘‘मुंबई तक.’’ विभूति ने संक्षिप्त सा जवाब दिया. युवक शायद विभूति से बातचीत के मूड में था, इसलिए उस ने तुरंत अगला सवाल दाग दिया, ‘‘आप यहीं की रहने वाली हैं?’’

‘‘नहीं,’’ विभूति युवक को लगभग घूरते हुए बोली, ‘‘मैं मुंबई की रहने वाली हूं. यहां मेरी कंपनी ने एक फैशन शो आयोजित किया था, उसी में भाग लेने आई थी.’’

‘‘आप मौडलिंग करती हैं क्या?’’ युवक ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं मौडल नहीं, फैशन डिजाइनर हूं.’’ विभूति ने कहा.

‘‘अच्छा, आप ड्रैस डिजाइनर हैं. मैं भी एक तरह से डिजाइनर ही हूं. आप अपनी डिजाइन से लोगों को सजाती हैं तो मैं अपनी डिजाइन से लोगों के घर, होटल आदि सजाता हूं. मैं इंटीरियर डिजाइनर हूं. मैं भी मुंबई का ही रहने वाला हूं. यहां एक होटल में मेरा काम चल रहा है, उसी सिलसिले में आया था.’’

‘‘इतनी सारी बातें हो गईं. कौन कहां रहता है, क्या करता है? यह तो पता चल गया लेकिन अभी तक हम एकदूसरे का नाम नहीं जान सके. चलो, पहले मैं ही अपने बारे में बताए देती हूं. मेरा नाम विभूति है और मैं मुंबई के घाटकोपर में रहती हूं. क्या करती हूं, यह आप जान ही गए हैं.’’ विभूति ने कहा.

‘‘मैं क्या करता हूं, यह आप को पता चल ही चुका है. मेरा नाम गौरव बरुआ है. मैं मुंबई के विलेपार्ले जुहू स्कीम में रहता हूं.’’ गौरव अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि विभूति झट बोल पड़ी, ‘‘आप तो मुंबई के बहुत ही वीआईपी इलाके में रहते हैं.’’

‘‘पिताजी जब मुंबई आए थे, तभी वह बंगला खरीदा था. बाकी मेरी हैसियत वहां बंगला खरीदने की कहां है.’’ गौरव ने कहा. इस तरह गौरव और विभूति में बातचीत शुरू हुई तो दोनों तब तक बातें करते रहे, जब तक ट्रेन मुंबई नहीं पहुंच गई. इस बीच दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर भी ले लिए थे. मुंबई पहुंचने पर गौरव ने विभूति का सामान उतरवाया ही नहीं, बल्कि बाहर तक लाने में मदद भी की. बाहर विभूति के पापा गाड़ी लिए खड़े थे, वह उन के साथ चली गई तो गौरव टैक्सी कर के अपने घर चला गया

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. ट्रेन पर हुई इस मुलाकात ने दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए चाहत का एक कोना बना दिया था. दरअसल दोनों ही पढ़ेलिखे और ठीकठाक घरों से तो थे ही, देखने में सुंदर और बातचीत में भी काफी स्मार्ट थे. शायद यही वजह थी कि दोनों ही एकदूसरे को भा गए थे. लेकिन सवाल यह था कि बात कैसे आगे बढ़े. गौरव शायद विभूति के लिए कुछ ज्यादा ही बेचैन था. वह स्टेशन पर विभूति को विदा कर के घर तो गया था, लेकिन उस का दिल खूबसूरत विभूति के साथ चला गया था. उस की आंखों में नींद की जगह अब विभूति समा गई थी. स्त्री सुख के लिए तरस रहे गौरव को विभूति की सुंदरता और वाचालता ने कुछ इस तरह से प्रभावित किया था कि एक बार फिर उसे पत्नी की याद सताने लगी थी.

वह उस सुख के लिए छटपटाने लगा था, जो कभी पत्नी से मिलता रहा था. वैसे तो पत्नी के छोड़ कर जाने के बाद से गौरव बरुआ को औरत नाम से नफरत हो गई थी. लेकिन विभूति से मिलने के बाद वह नफरत एक बार फिर प्यार में बदल गई थी. पहले उसे औरतों से जितनी नफरत थी, विभूति से मिलने के बाद उस से उतना ही प्यार हो गया था. वह उस की ओर खिंचता चला जा रहा था. लेकिन फोन करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. संकोच हो रहा था कि फोन करने पर वह उस के बारे में क्या सोचेगी. दूसरी ओर विभूति का भी वही हाल था, जो गौरव का था. गौरव का बातव्यवहार और कदकाठी उसे कुछ इस तरह से भाई थी कि हर पल वह उसी के बारे में सोचने को मजबूर थी.

29 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था, जब विभूति किसी युवक के प्रति आकर्षित हुई थी यानी उस का दिल आया था. एक  तरह से उसे गौरव से प्यार हो गया था. लेकिन चाह कर भी वह गौरव को फोन नहीं कर पा रही थी. 4-5 दिनों तक तो गौरव ने खुद को किसी तरह रोके रखा. लेकिन जब नहीं रहा गया तो उस ने विभूति को फोन कर ही दिया. गौरव के इस फोन ने विभूति के दिल को काफी ठंडक पहुंचाई. हालांकि उस दिन ऐसी कोई बात नहीं हुई थी कि लगता कि दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए कुछ चल रहा है. लेकिन बातचीत का रास्ता जरूर खुल गया था.  

एक बार बाचतीत शुरू हुई तो यह सिलसिला सा बन गया. धीरेधीरे बातें लंबी होती गईं. फिर एक समय ऐसा भी गया, जब दोनों समय निकाल कर एकदूसरे से मिलने लगे. लगातार मिलते रहने से जल्दी ही दोनों करीब ही नहीं गए, बल्कि उन के शारीरिक संबंध भी बन गए. इस की वजह यह थी कि विभूति को पाने के लिए गौरव ने शादी का वादा कर लिया था. विभूति भी उस से शादी करना चाहती थी, इसलिए वह गौरव की हर इच्छा पूरी करना अपना फर्ज समझने लगी थीयही वजह थी कि चाह कर भी वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और सारी मर्यादाएं ताक पर रख कर गौरव की इच्छा पूरी करने लगी. इस तरह गौरव जो चाहता था, वह उसे आसानी से मिल गया था. एक बार मर्यादा टूटी तो फिर टूटती ही चली गई.

गौरव ने अपने मकान के ग्राउंड फ्लोर पर ही अपना औफिस बना रखा था, जबकि फर्स्ट फ्लोर पर वह मां के साथ रहता था, इसलिए जब भी वह खाली होता, फोन कर के विभूति को अपने ही औफिस में बुला लेता था. विभूति को काम भी होता, तब भी वह मना नहीं कर पाती थी और गौरव से मिलने उस के औफिस पहुंच जाती थी. इसी तरह समय बीतता रहा. गौरव और विभूति को मिलते हुए लगभग 2 साल का समय बीत गया. इस बीच विभूति ने जाने कितनी बार गौरव से शादी के लिए कहा, लेकिन गौरव ने हर बार कोई कोई बहाना बना कर बात टाल दीगौरव की इस तरह लगातार बहानेबाजी से विभूति को लगने लगा कि गौरव उसे सिर्फ एंजौय का साधन समझता है. शादी का उस का कोई इरादा नहीं है यानी शादी का झांसा दे कर वह उस का यौनशोषण कर रहा है

इस बात का अहसास होते ही विभूति गौरव पर शादी का दबाव डालने लगी. गौरव ने इसे पहले की ही तरह लापरवाही से लिया, लेकिन जब विभूति ने उस पर कुछ ज्यादा ही दबाव बनाया तो वह बौखला उठा. उस की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे. क्योंकि अब विभूति के शरीर के बिना रहना उस के लिए मुश्किल थाजबकि विभूति ने पक्का इरादा बना लिया था कि अब वह शादी के बाद ही गौरव को अपने शरीर से हाथ लगाने देगी. गौरव ने देखा कि विभूति किसी भी तरह नहीं मान रही है तो काफी सोचविचार कर उस ने उसे समझाने और मनाने के लिए फोन कर के अपने बंगले पर बुलाया.

शनिवार का दिन था. काम ज्यादा होने की वजह से विभूति शाम को गौरव के बंगले पर जा पहुंची. बातचीत और इच्छा पूरी करने में लड़ाईझगड़ा भी हो सकता था. तब बात मां तक पहुंच सकती थी. बात मां तक पहुंचे, इस से बचने के लिए गौरव ने कार निकाली और विभूति को बैठा कर समुद्र के किनारे जुहू चौपाटी की ओर निकल पड़ाकाफी समय तक गौरव विभूति के साथ इधरउधर घूमता रहा. इस दौरान वह विभूति को भरोसा दिलाता रहा कि जल्दी ही वह उस से शादी कर लेगा. जब उसे लगा कि विभूति मान गई है तो वह उसे ले कर बंगले पर गया. बंगले पर कर उस ने विभूति से शारीरिक संबंध की पेशकश की तो उस ने साफ मना कर दिया. जबकि गौरव पूरे मूड में था, इसलिए वह उसे मनाने लगा.

जबकि विभूति अपनी बात पर अड़ी रही. उस ने साफ कह दिया कि अब तक जो हुआ, वह बहुत था. अब वह उसे शादी के बाद ही हाथ लगाने देगीलेकिन गौरव वासना के उन्माद में पूरी तरह अंधा हो चुका था, इसलिए वह होश खो बैठा. उसे अच्छेबुरे का भी खयाल नहीं रहा. आवेश में कर उस ने विभूति का गला दोनों हाथों से पकड़ लिया. इस पर भी विभूति नहीं मानी तो गौरव ने उस पर दबाव बनाने के लिए उस का गला दबाना शुरू कर दिया. गुस्से में होने की वजह से दबाव बढ़ गया तो विभूति मर गई. विभूति एक ओर लुढ़क गई तो वासना के उन्माद में अंधे गौरव की आंखें खुलीं. जब उस ने देखा कि विभूति मर चुकी है तो वह बुरी तरह डर गया. पुलिस और कानून से बचने के लिए विभूति के शव को ठिकाने लगाना जरूरी था. दूसरी ओर मां का भी डर था.

सुबह होने पर मां को इस बात की जानकारी हो, उस के पहले ही वह विभूति के शव को ठिकाने लगा देना चाहता था. उस ने कागज के एक पुराने बौक्स में लाश डाली और उसे कार की डिक्की में रख कर जान की परवाह किए बगैर उतनी रात को पवई कस्टम विभाग कालोनी के पीछे घने जंगलों में जा पहुंचा. लाश को एक खाई में डाल कर साथ लाए थिनर के पूरे कैन को उस के ऊपर उड़ेल कर जला दिया. यह 9 नवंबर, 2013 की रात की घटना थी.10 नवंबर की सुबह यही कोई 11 बजे मुंबई के उपनगर अंधेरी के पौश इलाके के थाना पवई के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला को किसी ने फोन द्वारा सूचना दी कि पवई कस्टम कालोनी के पीछे के जंगल में कुछ दूर अंदर जा कर घनी झाडि़यों के बीच एक खाई में एक महिला की क्षतविक्षत लाश पड़ी है.

लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने तुरंत ड्यूटी अफसर से यह मामला दर्ज कराने के साथ घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों और कंट्रोलरूम को दे दी. इस के बाद वह कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए 10 मिनट में वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. जहां लाश पड़ी थी, वह स्थान निर्जन और  सुनसान था. वहां कोई भीड़भाड़ नहीं थी. इस की वजह यह थी कि पवई कस्टम विभाग कालोनी का यह इलाका संजय गांधी नेशनल पार्क के अंतर्गत आता है, जहां अकसर तेंदुए और अन्य खतरनाक जंगली जानवर खुलेआम घूमते दिखाई दे जाते हैं. इसलिए यहां आम लोगों के आनेजाने पर पाबंदी है.

पहले तो पुलिस को लगा था कि किसी आदिवासी महिला को किसी जंगली तेंदुए ने अपना शिकार बनाया होगा. लेकिन घटनास्थल पर पहुंचने पर पता चला कि यह जंगली जानवर का नहीं, किसी आदमखोर इंसान का काम था. स्थिति स्तब्ध करने वाली थी. महिला की अधजली, क्षतविक्षत लाश 8-10 फुट गहरी खाई में पड़ी थी.लाश की शिनाख्त और सुबूतों को मिटाने के लिए हत्यारे ने महिला के चेहरे से ले कर पैर तक कैमिकल डाल कर बुरी तरह से जला दिया था. हत्यारे ने वहां कोई भी ऐसा सुबूत नहीं छोड़ा था, जिस से पुलिस को जांच आगे बढ़ाने में मदद मिलती.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला सहयोगियों के साथ घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि क्राइम ब्रांच के जौइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय, असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक, अरविंद महावद्धी, डीसीपी अंबादास पोटे आदि क्राइम टीम के साथ घटनास्थल पर गए. सभी अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. क्राइम टीम ने अपना काम कर लिया तो अधिकारी थाना पुलिस को दिशानिर्देश दे कर चले गए. पुलिस अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने लाश को खाई से बाहर निकलवाया और अन्य सारी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जेजे अस्पताल भेज दिया. इस के बाद थाने कर मृतका का पूरा हुलिया बता कर महानगर के सभी पुलिस थानों को लाश बरामद होने की सूचना दे दी

थाना पवई पुलिस को उम्मीद थी कि किसी किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी अवश्य दर्ज होगी. लेकिन पवई पुलिस को इस का कोई फायदा नहीं मिला. सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने मुखबिरों की मदद ली, लेकिन वह पूरा दिन बीत गया, पुलिस को कहीं से भी मृतका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. एक ओर थाना पवई पुलिस जहां लाश की शिनाख्त के लिए हाथपैर मार रही थी, वहीं दूसरी ओर घटनास्थल से लौट कर आने के बाद जौइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी दहिसर क्राइम ब्रांच यूनिट-12 के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले को सौंप दी थी. आदेश मिलते ही मिलिंद खेतले ने सहयोगियों के साथ एक मीटिंग की. इस मीटिंग में तमाम माथापच्ची के बाद भी जांच को आगे बढ़ाने की कोई राह नहीं मिली. इस की वजह यह थी कि एक तो अभी तक लाश की शिनाख्त नहीं हुई थी, दूसरे घटनास्थल से कोई सुबूत भी नहीं मिला था

हत्यारे ने मृतका की शिनाख्त इस तरह मिटाई थी कि उस का फोटो भी अखबार में नहीं छपवाया जा सकता था. जबकि बिना लाश की शिनाख्त के जांच को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था. क्राइम ब्रांच के जांच अधिकारी मिलिंद इस मामले को ले कर थोड़ा परेशान जरूर थे, लेकिन निराश बिलकुल नहीं थे. उन्हें पूरा यकीन था कि इस मामले को वह शीघ्र ही सुलझा लेंगेसीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए 4 टीमें बनाईं, जिन में पुलिस इंसपेक्टर राजेश कानड़े, संदीप विश्वासराव, असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर मनोहर दलवी, विजय कांदलगांवकर, संजय मराठे, राहुल देशमुख, सबइंसपेक्टर बालकृष्ण लाड को शामिल किया

इस के बाद उन्होंने चारों टीमों को जांच के लिए लगा दिया. सभी टीमों को निर्देश दिया गया कि वे शहर के हर थाने में जा कर स्वयं पता करें कि उन के यहां किसी लड़की की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई है. सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले की यह युक्ति काम कर गई और गोरेगांव ईस्ट के थाना वनराई गई पुलिस टीम को पता चल गया कि 10 नवंबर को यहां एक लड़की की गुमशुदगी दर्ज कराई गई थीयह गुमशुदगी घाटकोपर की अमृतनगर कालोनी के रहने वाले राजेंद्र कुमार संपत ने दर्ज कराई थी. इस के बाद क्राइम ब्रांच की जांच टीम ने गुमशुदगी दर्ज कराने वाले राजेंद्र कुमार संपत को क्राइम ब्रांच के औफिस बुला लिया. उन से पूछताछ में पता चला कि लाश की शिनाख्त के लिए वह थाना पवई गए थे, जहां से जेजे अस्पताल ले जा कर उन्हें वह लाश दिखाई गई थी.

लेकिन लाश की स्थिति ऐसी थी कि उसे देख कर पहचान पाना संभव नहीं था. कैमिकल से लाश का अधिकतर हिस्सा जला दिया गया था. लेकिन हाथ के कंगन से उन्होंने शव को पहचान लिया था. लाश उन की बेटी विभूति की थी. राजेंद्र कुमार संपत का कहना था कि 9 नवंबर की सुबह औफिस के लिए निकली विभूति 10 नवंबर की शाम तक घर नहीं पहुंची तो उन्हें चिंता हुई. उन्होंने उस की तलाश शुरू कीउस की कंपनी में तो पता किया ही, उस के यारदोस्तों और नातेरिश्तेदारों से भी पूछा. जब कहीं से कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने गोरेगांव (ईस्ट) के थाना वनराई में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दीथाना पवई पुलिस ने जब जंगल से लाश बरामद की तो उसी दर्ज रिपोर्ट के आधार पर उन्हें थाना पवई बुला कर वह लाश दिखाई गई थी. इस के बाद उन्होंने जो बताया, वह इस प्रकार था.

राजेंद्र कुमार संपत अपने परिवार के साथ घाटकोपर के अमृतनगर कालोनी में रहते थे. उन का अपना व्यवसाय था. 29 वर्षीया विभूति उन की एकलौती संतान थी. एकलौती होने की वजह से वह उन्हें बहुत प्यारी थी. विभूति पढ़नेलिखने में ठीक थी. बीएससी करने के बाद उस ने घाटकोपर के सौम्या कालेज से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया तो गोरेगांव ईस्ट स्थित केकेसीएल कंपनी में उसे एग्जीक्यूटिव फैशन डिजाइनर की नौकरी मिल गई थी. वह समय पर औफिस जाती थी और समय पर घर जाती थी. कभीकभार औफिस में काम होता तो देर भी हो जाती थी. जरूरत पड़ने पर वह दूसरे शहरों में भी जाती रहती थी. उस दिन भी उस ने कहा था कि काम अधिक होने की वजह से उसे देर हो जाएगी, इसलिए उस दिन वह नहीं आई तो घर वालों को लगा कि काम की वजह से वह घर नहीं पाई.

क्राइम ब्रांच की टीम को घर वालों से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी, जिस से उन्हें जांच को आगे बढ़ाने में मदद मिलती इस टीम ने उस के औफिस जा कर उस के सहकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन वहां से भी पुलिस के हाथ कुछ खास नहीं लगा. तब क्राइम ब्रांच की टीम उन लोगों के फोन नंबर ले कर अपने औफिस गई, जो विभूति के कुछ ज्यादा ही करीबी थे. अब पुलिस के पास हत्यारों तक पहुंचने का एक ही रास्ता बचा था, वह था विभूति का मोबाइल फोन नंबर. पुलिस ने विभूति के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पुलिस को एक नंबर पर शक हुआ, क्योंकि उस नंबर पर विभूति की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. जिस दिन विभूति गायब हुई थी, उस दिन उस नंबर से फोन तो नहीं आया था, लेकिन एसएमएस जरूर किया गया था.

इस के बाद पुलिस ने उस फोन की लोकेशन निकलवाई तो उस की लोकेशन वहां की मिल गई, जहां से विभूति की लाश बरामद की गई थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर विलेपार्ले जुहू स्कीम के रहने वाले गौरव बरुआ का निकला. क्राइम ब्रांच की यह टीम गौरव बरुआ के घर पहुंची और पूछताछ के लिए उसे दहिसर स्थित क्राइम ब्रांच के औफिस ले आई. पूछताछ में पहले तो गौरव बरुआ ने विभूति की हत्या के मामले में खुद को निर्दोष बताया. पहले तो उस ने विभूति को जानने से ही मना कर दिया था. लेकिन पुलिस ने विभूति की काल डिटेल्स में उस का नंबर दिखाया और जिस दिन वह गायब हुई थी, उस दिन उस के द्वारा भेजा गया एसएमएस दिखाने के साथ घटनास्थल की उस के मोबाइल फोन की लोकेशन दिखाई तो वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

गौरव बरुआ द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने के बाद क्राइम ब्रांच टीम ने 12 नवंबर, 2013 को उसे बोरीवली की अदालत में पेश कर के विस्तृत पूछताछ और सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में गौरव बरुआ से जो पता चला, वह इस प्रकार था. 35 वर्षीय गौरव बरुआ दिलीप बरुआ का एकलौता बेटा था. दिलीप बरुआ मूलरूप से गुजरात के रहने वाले थे. बरसों पहले वह मुंबई आए तो उन्होंने नौकरी करने के बजाय अपना व्यवसाय शुरू किया. वह सीधेसादे, सरल स्वभाव के मिलनसार आदमी थे. इसी वजह से उन का व्यवसाय चल निकला. दिलीप बरुआ के पास पैसा आया तो उन्होंने विलेपार्ले जुहू स्कीम जैसे पौश इलाके में अपने लिए एक छोटा सा बंगला खरीद लिया. यह ऐसा इलाका है, जहां अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमामालिनी, मनोज कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, अमरीश पुरी जैसे लोग रहते हैं.

गौरव बरुआ छोटा था, तभी दिलीप बरुआ की मौत हो गई थी. उस के बाद व्यवसाय और गौरव की जिम्मेदारी उस की मां ने संभाली. मां ने गौरव को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दिया कि उस ने घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी संभाल ली. उस ने मीठीबाई कालेज से बीएससी किया और इंटीरियर डेकोरेटर का कोर्स कर के अपना खुद का काम करने लगा. अपने इसी काम की वजह से गौरव बरुआ को अकसर बाहर जाना पड़ता था. ऐसे में घर में उस की मां अकेली रह जाती थीं. इसलिए वह बेटे की शादी के लिए लड़की की तलाश करने लगीं. शीघ्र ही उन्हें लड़की मिल गई और उस से उन्होंने गौरव की शादी कर दी.

लेकिन गौरव बरुआ की यह शादी ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई. पत्नी तलाक ले कर चली गई. पत्नी ने उस के साथ जो व्यवहार किया था, उस से उसे औरतों से नफरत हो गई. लेकिन विभूति से उस की मुलाकात के बाद उसे फिर से एक औरत की जरूरत महसूस होने लगी. उस ने विभूति से दोस्ती कर ली. उसे उस से प्यार नहीं हुआ. उस ने उसे मात्र हवस शांत करने का साधन समझा था. यही वजह थी कि जब विभूति ने उस की हवस शांत करने से मना किया तो उस ने उसे खत्म कर दिया.

 पूछताछ और सुबूत जुटा कर क्राइम ब्रांच यूनिट-12 के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले ने गौरव को थाना पवई पुलिस को सौंप दिया, जहां गौरव के खिलाफ विभूति की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उसे एक बार फिर अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक गौरव जेल में ही था. उस की जमानत नहीं हुई थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, Acid Attack

Suicide Story: आशिक का पागलपन – पाकिस्तान से मरने आया भारत

Suicide Story: मोहम्मद आसिफ ने सामने बैठी शबनम की पूरी बात सुनने के बाद एक गहरी सांस ले कर बुझे मन से कहा, ‘‘आखिर वही हुआ जिस का मुझे डर था, आज सारी दुनिया हमारे प्यार की दुश्मन बन बैठी है. जब अपनों ने ही साथ देने से साफ इंकार कर दिया तो किसी दूसरे को क्या दोष दें.’’

‘‘आसिफ मैं अम्मीअब्बू तो क्या, अपनी खाला से भी बात कर चुकी हूं. मुझे भी वही सब जवाब मिले थे, जो तुम्हें अपने परिवार से मिले हैं.’’ 

फिर कुछ सोचते हुए आसिफ ने कहा, ‘‘शबनम, हमें घर से भाग कर अपनी एक नई दुनिया बनानी होगी.’’

आसिफ की बात बीच में ही काटते हुए शबनम ने कहा, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, क्या घर से भागना इतना आसान है? आसिफ मुझे तो ऐसा लग रहा है कि आज यह हमारी आखिरी मुलाकात है. आज के बाद हम कभी नहीं मिल सकेंगे. क्योंकि अगले हफ्ते मेरा निकाह है. इस बीच अगर तुम अपने घर वालों को मना सको तो ठीक है, नहीं तो मुझे भूल जाना और बेवफा कह कर दोषी मत ठहराना. खुदा हाफिज.’’ कह कर शबनम वहां से उठ कर अपने घर की तरफ चली गई. आसिफ काफी देर तक वहीं बैठा सोचता रहा.

मोहम्मद आसिफ पाकिस्तान के जिला कसूर के अंतर्गत आने वाले गांव जल्लोके का रहने वाला था. उस के पिता का नाम था खलील मोहम्मद. खलील मोहम्मद की 4 संतानों में आसिफ सब से छोटा था. उसे छोड़ कर सभी बहनभाइयों की शादी हो चुकी थीखलील मोहम्मद के पास अपने गुजारे लायक जमीन थी, जिस में घर खर्च बड़े मजे से चलता था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि आसिफ की जिंदगी में उस दिन से हलचल शुरू हुई, जिस रोज उस ने पहली बार शबनम को देखा था. मन ही मन आसिफ ने उस की तारीफ की थी. उन की यह मुलाकात एक शादी समारोह में हुई थी. शबनम की एक झलक देखते ही आसिफ अपना दिल हार बैठा था. वह सोचने लगा कि अगर यह खूबसूरत लड़की उस की जिंदगी में जाए तो जिंदगी बन जाएगी

जब मन में उसे पाने की चाहत ने जन्म लिया तो उस ने अपनी हमउम्र मामू, खाला आदि की लड़कियों के माध्यम से शबनम के पास पैगाम भिजवाने शुरू कर दिए. वह जल्द से उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करने लगा. चूंकि वह उस के बड़े भाई हमीद की साली थी और आसिफ शबनम को पाने के लिए बेताब हो उठा. उस की चाहत को देखते हुए शबनम भी उस की ओर आकर्षित हो चुकी थी. यानी आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. जल्द ही आसिफ को शबनम के निकट रहने का मौका मिल गया. शादी समारोह के बाद सभी रिश्तेदार विदा हो कर अपनेअपने घरों को लौटने लगे, पर आसिफ के बड़े भाई हमीद को उस के ससुर ने कुछ दिनों के लिए अपने यहां रोक लिया. अपनी भाभी से जिद कर के आसिफ भी उन के साथ भाई की ससुराल में रुक गया

एक तरह से वह शबनम के बिलकुल करीब पहुंच गया था. घर में गहमागहमी का माहौल था. घर के बडे़ अपनी बातों में मशगूल रहते थे तो बच्चे और किशोर अपनी अलग मंडली जमाए बैठे थे. ऐसे में आसिफ और शबनम को अपनेअपने दिल की बात कहने का अवसर मिल गया. दोनों ने एकदूसरे के सामने प्यार का इजहार किया, साथ जीनेमरने की कसमें खाईं. दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था. शादी का फैसला करते वक्त दोनों ने यह बात सपने में भी नहीं सोची थी कि परिवार वालों को उन का फैसला मंजूर होगा भी या नहीं. दोनों अभी अपने प्यार की पींगे पूरी तरह बढ़ा भी नहीं पाए थे कि शबनम के अब्बू को उन की प्रेम कहानी का पता चल गया.

शबनम पर तो जैसे आफत का पहाड़ ही टूट पड़ा. इसी बात को ले कर ससुर और दामाद में भी कहासुनी हो गई. हामिद अपनी ससुराल से नाराज हो कर अपने गांव लौट आया. उस ने अपनी बीवी को भी सख्त ताकीद कर दी थी कि अब वह अपने अम्मीअब्बू को भूल जाए. आसिफ और शबनम के प्यार का घरौंदा बसने से पहले ही उजड़ गया. आसिफ और शबनम ने अपनेअपने तरीकों से इस रिश्ते को कायम रखने के लिए बहुत कोशिश की. पर दोनों परिवारों की जिद के आगे उन की एक नहीं चली. शबनम के अब्बू ने शबनम का रिश्ता कहीं दूसरी जगह तय कर दिया था. जल्दी ही शादी का दिन भी गया. इस शादी में उस ने अपनी बेटी और दामाद को भी नहीं बुलाया था

मोहम्मद आसिफ ने बड़ी बेबसी के साथ शबनम के घर की तरफ देखा. चारों तरफ जगमगाती लाइटें जल रही थीं, चहलपहल दिखाई दे रही थी. घर और आसपास के पेड़ों में लगे लाउडस्पीकर पर पंजाबी गाने बज रहे थे. वहां से 100 मीटर दूरी पर आसिफ एक जगह अंधेरे में बैठा था. वह नहीं चाहता था कि कोई उसे और उस के दर्द को देखे. जिसे देखना था वह अपनी खुशियों में व्यस्त थी. लाउडस्पीकर पर बजते गाने आसिफ के दिल में तीर की तरह चुभ रहे थे. अंदर ही अंदर बेचैनी खाए जा रही थी. बारात धीरेधीरे शबनम के घर की तरफ बढ़ रही थी. आवाज की तेजी बढ़ती जा रही थी. जैसे वे सारी आवाजें उस की तरफ रही हों. ढोल वाले के हर डंके की चोट में जैसे शबनम चीखचीख कर कह रही हो, ‘मैं जा रही हूं आसिफ. तुम को छोड़ कर. मेरी शादी किसी और के साथ हो रही है. अब मैं तुम्हारी नहीं रही.’

आसिफ धीरेधीरे वहां से उठा और खेतों की तरफ जाने लगा. वह इन आवाजों से दूर जाना चाहता था, बहुत दूर. काली अंधेरी रात में वह कहां जा रहा था, उसे पता नहीं चल रहा था. वह तो बस चले जा रहा थाउस के मन में उस समय एक ही धुन सवार थी कि जितनी जल्दी हो सके, बोझ बनी इस जिंदगी से छुटकारा पा कर सुकून हासिल कर ले. वह चले जा रहा था, पर शहनाई की आवाज उस का पीछा नहीं छोड़ रही थी. उस ने अपने कदमों की रफ्तार और तेज कर दी थी. वह शबनम के गांव से दूर चुका था. आवाजें उस का पीछा कर रही थीं. उस ने अपने दोनों कान बंद किए और वहीं बैठ गया. अचानक उस ने अपना मुंह आसमान की तरफ उठाया और चीखचीख कर रोने लगा. जैसे खुदा से शिकायत कर रहा हो

अपने भीतर कितने दिनों से दबा कर रखे आंसुओं के भंडार को वह आज जी भर के निकालना चाहता था. वहां कोई सुनने वाला था, और कोई कुछ कहने वाला. वह रोता रहा, रोता रहा. तब तक जब तक जहर भरे सारे आंसू बाहर नहीं निकल गए. मन हलका हो गया तो फिर से शबनम की यादों को समेटने लगा था. इस के पहले कि शबनम की यादों में पड़ कर कमजोर हो जाए, वह अपनी जगह से उठा और तेजी से एक ओर बढ़ता गया. आसिफ रात भर चलता रहा, उस के पैरों में बिजली सी तेजी थी, मानो वह जल्द से जल्द अपनी मंजिल पर पहुंचना चाहता हो. सुबह के करीब 5 बजे वह भारतपाक सीमा के हुसैनीवाला क्षेत्र फिरोजपुर बौर्डर के पास पहुंच गया. वह एक पल के लिए वहां रुका और आसपास देख कर वहां का जायजा लेने लगा. जब दूर से उस ने 2 देशों की सीमा को विभाजन करने वाली तारों की बाड़ को देखा तो उस की आंखें चमक उठीं.

किसी सम्मोहनवश वह लगभग दौड़ता हुआ सीमा पर लगी बाड़ की ओर लपका. सीमा के दोनों ओर दोनों देशों के सुरक्षाकर्मी हाथों में आधुनिक हथियार लिए बड़ी मुस्तैदी से खडे़ थे, पर आसिफ सुरक्षाकर्मियों की नजरों के सामने से बिना भयभीत हुएअल्लाह हू अकबरकहता हुआ सुरक्षा तारों को पार करने लगासीमा के दोनों ओर के जवान इस अजूबे को हैरत की नजरों से देख रहे थे और सोच रहे थे कि वह कौन है और क्या करना चाहता है. किसी की समझ में कुछ नहीं रहा था. क्योंकि आसिफ पाकिस्तान की ओर से सीमा पार कर के भारत की सीमा में प्रवेश कर चुका थाअब भारतीय फौजियों को ही उसे रोकना था सीमा पर उस समय सीमा सुरक्षाबल की 118वीं बटालियन के जवान तैनात थे. उन्होंने आसिफ को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘जहां हो वहीं रुक जाओ और वापस अपने सीमा क्षेत्र में लौट जाओ वरना गोली मार दी जाएगी.’’

सीमा सुरक्षाबल के जवानों की चेतावनी का आसिफ पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी धुन में तारों को पार करने की कोशिश करता रहा. थोडे़ से प्रयास के बाद वह अपने इरादों में सफल हो कर भारतीय सीमा में प्रवेश कर गयाभारतीय सीमा में प्रवेश करते ही सुरक्षाबलों ने उसे घेर लिया. एसआई राजवीर सिंह, हवलदार अरविंद कुमार, अशोक कुमार, सिपाही जुगल किशोर और पी.एच. डेविड ने आसिफ को गिरफ्तार कर अपनी हिरासत में ले लिया और यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दीसीमा सुरक्षा बल के आला अधिकारियों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने आसिफ से जम कर पूछताछ की. किसी हारे हुए जुआरी की तरह आसिफ ने अपना दिल खोल कर जब अपने नाकाम प्यार की दास्तां सुनाई तो सभी दंग रह गए

आसिफ ने अपने बयान में बताया कि उसे विश्वास था कि सीमा पर उस के द्वारा की गई इस हरकत के बदले जवान उसे गोली से उड़ा देंगे और वह दुनिया से मुक्त हो जाएगा. क्योंकि रमजान के पाक महीने में वह आत्महत्या जैसा गुनाह नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचसमझ कर जवानों की गोली से अपने प्यार के लिए शहीद होने की सोची थी. अपनी नाकाम मोहब्बत के सदमे की वजह से उस की जीने की इच्छा खत्म हो गई है. सुरक्षा एजेंसियों की पूछताछ के बाद अपने अधिकारियों के आदेश पर एसआई राजबीर सिंह ने आसिफ को जिला फिरोजपुर के थाना  ममदोह की पुलिस के हवाले कर दिया

थानाप्रभारी रछपाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ करने के बाद बताया कि नौजवान मानसिक तौर पर परेशान है. उस से सभी पहलुओं से पूछताछ की गई है. युवक की तलाशी लेने पर उस की जेब से 1200 रुपए की पाकिस्तानी करेंसी और 2 नींद की गोलियां बरामद हुई थीं. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी रछपाल सिंह ने आसिफ के खिलाफ 28 मई, 2018 को इंडियन पासपोर्ट एक्ट 1920 की धारा-3 और फारेनर एक्ट-1946 की धारा-14 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.    

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित, Suicide Story

Crime Story In Hindi: पेड़ से लटके भाई-बहन के शव, कातिल कौन?

Crime Story In Hindi: बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग तो चेतनाशून्य हो चला था. साथ ही उस के दिमाग में एक तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान उसे चैन नहीं लेने दे रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि वह कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर होता चला गया, जैसे वह किसीफैसले पर पहुंच गया था, उस फैसले के बिना जैसे और कुछ हो नहीं सकता था. बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे. 22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई 25 वर्षीय संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल (14 वर्ष) और भोलेशंकर (9 वर्ष) के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं, जोकि क्रमश: 17 वर्ष, 7 वर्ष और 5 वर्ष की थीं.

उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और उन के 6 बेटै रामपाल, विनीत उर्फ लाला, किशोरी, गोपाल उर्फ रामगोपाल, धर्मेंद्र और कुलदीप उर्फ सूखा थे. इस के अलावा इकलौती बेटी थी 21 वर्षीय सुखदेवी, जोकि सब भाइयों से छोटी थी. रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे. हर समय एकदूसरे का साथ दोनों को खूब भाता था. समय के साथ ही बचपन का यह खेल कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ. जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित हो गया था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे एक आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.

हिरनी जैसे नयन, गुलाब की पंखुडि़यों जैसे होंठ, जिन का रसपान करना हर नौजवान की हसरत होती है. उस के गालों पर आई लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे देख कर उसे पाने को लालायित हो उठा. सुखदेवी के यौवन में वह इस कदर खो गया कि उस के बदन को ऊपर से नीचे तक निहारता रह गया. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता की साफसाफ झलक दिखती थी. बंटी अपनी तहेरी बहन के मादक सौंदर्य को बस देखता रह गया और उस की चाहत में डूबता चला गया. वह इस बात को भी भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन तो है.

बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. उधर सुखदेवी इस बात से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया. चाहने लगा था सुखदेवी को सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था. रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

जब बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह पहले से अधिक व्याकुल हो उठा. उस के साथ सुंदर सपनों में खो गया. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का सारा ध्यान तो सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी. वह तो इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. उधर जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई. सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है. फिर सुखदेवी अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. उस के शरीर के स्पर्श ने उसे गुमशुदा कर दिया.

उस का दिल तो चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर न जाने कैसी झिझक उसे रोक देती और वह अपने जज्बातों पर काबू किए उस की बातें सुनता जा रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठते थे. थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही. मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया. प्यार के इजहार का नहीं मिला मौका बंटी को उस दिन के बाद कुछ अच्छा न लगता, वह तो बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की जता नहीं पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे अत्यंत उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर खूब चढ़ चुका था. उस के यौवन की किसी एक बात को भी वह भुला नहीं पा रहा था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता ही रहा था. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी ने बैठते ही बंटी को देखा और कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो बंटी के करीब पहुंच कर वह बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ है तुम्हें, तुम इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर उधर बंटी तो एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातों को सुन कर अचानक ही बंटी उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत हुआ उसे घूरता ही जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाह के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह भी खामोश नजरें झुकाए वहीं बैठी रही थी. बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में उलझा हुआ था कि वह मेरी तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की विजय हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और अपनी आंखें बंद कर लीं.

तभी बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत न कर सकी. फिर दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और फिर तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई’ उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह तो उस दिन अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था. तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की इन बातों को सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित हो गई और उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी तो अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और बड़े प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी. सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश होने पर मजबूर कर दिया और बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. लगातार कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया.

प्यार को लग गई हवा सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई. बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे और इसी दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या कहीं ताऊताई को उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा और पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती गई. घर पहुंच कर बिना कुछ खाएपीए वह अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद भी कहां थी.

वह भी इसी सोच में डूबी रही. बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह भी बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदलती जा रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही. पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम कर के अपनी मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. वह बस कभी बंटी के प्रेम स्नेह के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, रास्ते में जाते वक्त कई बार वापस होने को सोचा, मगर हिम्मत न जुटा सकी. क्योंकि बंटी के उस जुनून को भी भुला नहीं पा रही थी.

लेकिन कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इन्हीं सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और फिर उसे अंदर जाना ही पड़ा. उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. बस एक रात में ही ऐसा लग रहा था कि वह कई दिनों से बिना कुछ खाएपीए हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है. उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ चुकी थी कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को इस का आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है.

उस ने आते ही बंटी से पूछ लिया कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में उतार दिया कि अब उसे न समाज की सोच, न अपने परिजनों का भय रह गया, वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी. उस के बाद उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों तन्हाई में एक कमरे मे बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया. दोनों ने लांघ दी सीमाएं सुखदेवी ने इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं किया था. बंटी का हर स्पर्श सुखदेवी की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया.

सुखदेवी को भी यह अनुभव आनन्दमई लग रहा था. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी सब कुछ था. एक बार जब उस पर जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो बस यह सिलसिला चलता ही रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. एकदूसरे के बगैर दोनों के लिए रहना अब मुश्किल होता जा रहा था. लेकिन एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुल गया तो कोहराम सा मच गया. उन को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. आखिर रिश्ते में दोनों भाईबहन थे, ऐसे में समाज उन की शादी पर अंगुलियां उठाता और उन का जीना मुहाल हो जाता.

परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के परिजनों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी. शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में काफी देर तक वह सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें. अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई.

शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले कर भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला. प्रेमी युगल के मिले शव पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं. गांव के कुछ लड़के उधर आए तो उन्होंने यह देखी थीं. दोनों के घर वालों को उन लड़कों ने जानकारी दे दी. सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए.

सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे किसी तेजाब जैसे पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था. फिलहाल मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से पुलिस अधिकारियों ने आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर भड़ाना ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा का गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका शव मिला.

जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे, उस से कुछ दूरी पर ही कुलदीप का शव मिला. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना  पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ प्रतीत हो रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी. पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत सिर्फ आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, आत्महत्या का रूप दे कर हत्यारों ने गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था.

कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची. गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने शीघ्र ही केस का खुलासा करने के निर्देश इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिए. मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा थाने में दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया. उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया.

उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला. इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया. पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान हो गए थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात जा कर सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी. विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे. वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया. इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला. इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने दोनों हत्याएं करते उन लोगों को देख लिया. विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया.

इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए. वहां शीशम के पेड़ से दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया. फिर वापस अपने घरों को लौट गए. कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग भी सही नहीं था, उस पर भरोसा करना ठीक नहीं था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा. 2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए.

वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को नीम के पेड़ से दुपट्टे से बांध कर लटका दिया. और उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया. फिर निश्चिंत हो कर घरों को लौट गए. कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली. फिर आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्यौराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया. Crime Story In Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder Mystery: शादीशुदा आशिकी का खूनी अंजाम

Murder Mystery: आशा पति से जिन संबंधों को छिपा कर उस की नजरों में पाक साफ बनी रहना चाहती थी, प्रेमी की हत्या करने के बाद उन संबंधों के बारे में पति को ही नहीं पूरी दुनिया को पता चल गया…

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना औरास के अंतर्गत आने वाले गांव गागन बछौली का रहने वाला उमेश कनौजिया बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का था. इसी वजह से उस का सामाजिक और राजनीतिक दायरा काफी बड़ा था. उन्नाव ही नहीं, इस से जुड़े लखनऊ और बाराबंकी जिलों तक उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. वह अपने सभी परिचितों के ही सुखदुख में नहीं बल्कि पता चलने पर हर किसी के सुखदुख में पहुंचने की कोशिश करता था. उस की इसी आदत ने ही उसे इतनी कम उम्र में क्षेत्र का नेता बना दिया था. मात्र 25 साल की उम्र में वह जिला पंचायत सदस्य बना तो इस उम्र का कोई दूसरा सदस्य पूरे जिले में नहीं था.

नेता बनने की यह उस की पहली सीढ़ी थी. वह और आगे बढ़ना चाहता था, इसलिए उस ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया था. वैसे तो उस ने यह चुनाव भाजपा के समर्थन से जीता था, लेकिन उस के संबंध लगभग हर पार्टी के नेताओं से थे. इस की वजह यह थी कि उस की कोई ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं थी कि लोग उसे नेता मान लेते. उस के पिता सूबेदार कनौजिया दुबई में नौकरी करते थे. उमेश भी पढ़लिख कर नौकरी करना चाहता था, लेकिन जब उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो वह छुटभैया नेता बन कर गांव वालों की सेवा करने लगा. उसी दौरान उस की जानपहचान कुछ नेताओं से हुई तो वह भी नेता बनने के सपने देखने लगा. उस का यह सपना तब पूरा होता नजर आया, जब जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने पर भाजपा ने उस का समर्थन कर दिया.

उमेश अपनी मेहनत और जनता की सेवा कर के नेता बना था. वह राजनीति में लंबा कैरियर बनाना चाहता था, इसलिए अपने क्षेत्र की जनता से ही नहीं, क्षेत्र के लगभग सभी पार्टी के नेताओं से जुड़ा था. उस का सोचना था कि कभी भी किसी की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में उस के निजी संबंध ही काम आएंगे. इस का उसे लाभ भी मिल रहा था. बसपा के सांसद ब्रजेश पाठक उसे भाई की तरह मानते थे. उन्नाव के विकास खंड औरासा के वार्ड नंबर 2 से जिला पंचायत सदस्य चुने जाने के बाद उमेश ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा था. अपनी कार्यशैली की वजह से ही वह कम समय में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था.

उत्तर प्रदेश का जिला उन्नाव लखनऊ और कानपुर जैसे 2 बड़े शहरों को जोड़ने का काम करता है. यह लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर है तो कानपुर से मात्र 20 किलोमीटर दूर. एक तरफ प्रदेश की राजधानी है तो दूसरी ओर कानपुर जैसा महानगर है. इस के बावजूद इस की गिनती पिछड़े जिलों में होती है. शायद यही वजह है कि यहां नशा और अपराध अन्य शहरों की अपेक्षा ज्यादा हैं. जिला भले ही पिछड़ा है, लेकिन कानपुर और लखनऊ की सीमा से जुड़ा होने की वजह से यहां की जमीन काफी महंगी है. इसलिए यहां के लोग अपनी जमीनें बेच कर अय्याशी करने लगे हैं. इस के अलावा गांवों के विकास के लिए पंचायती राज कानून लागू होने की वजह से गांवों में सरकारी योजनाओं का पैसा भी खूब आ रहा है, जिस से पंचायतों से जुड़े लोग प्रभावशाली बनने लगे हैं.

यही सब देख कर युवा चुनाव की ओर आकर्षित होने लगे हैं. वे चुनाव जीत कर समाज और राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. उमेश कनौजिया भी कुछ ऐसा ही सोच नहीं रहा था, बल्कि इस राह पर उस ने कदम भी बढ़ा दिए थे. लेकिन उस का यह सपना पूरा होता, उस के साथ एक हादसा हो गया. 14 नवंबर, 2013 की सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना मलिहाबाद के गांव गढ़ी महदोइया के लोगों ने गांव के बाहर शारदा सहायक नहर के किनारे एक लाश पड़ी देखी. मृतक यही कोई 25-26 साल का था. वह धारीदार सफेदनीला स्वेटर, नीली जींस और हरे रंग की शर्ट पहने था. उस के दाहिने हाथ में कलावा बंधा था, जिस का मतलब था कि वह हिंदू था. उस के गले पर रस्सी का निशान साफ नजर आ रहा था. जिस से साफ था कि उस की हत्या की गई थी. हालांकि उस के दाहिने गाल से खून भी बह रहा था.

लाश से थोड़ी दूरी पर एक पैशन प्रो मोटरसाइकिल भी पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी 32 ईवाई 1778 था. उस में चाबी लगी थी. पहली नजर में देख कर यही कहा जा सकता था कि यह दुर्घटना का मामला है. लेकिन गले पर जो रस्सी का निशान था, उस से अंदाजा साफ लग रहा था कि यह एक्सीडेंट नहीं, हत्या का मामला  है. जिन लोगों ने लाश देखी थी, उन्हें लगा कि यह हत्या का मामला है तो उन्होंने इस बात की सूचना ग्रामप्रधान को दी. उस समय सुबह के यही कोई 7 बज रहे थे. ग्रामप्रधान के पति राजेश कुमार ने नहर के किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना मलिहाबाद पुलिस को दी तो एसएसआई श्याम सिंह सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, तो वहां जमा लोगों में से कोई भी उस की पहचान नहीं कर सका. लाश के कपड़ों की तलाशी में भी ऐसा कोई सामान नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती. मोटरसाइकिल के नंबर से अंदाजा लगाया गया कि मृतक लखनऊ का रहने वाला है, क्योंकि उस पर पड़ा नंबर लखनऊ का ही था. संयोग से मोटरसाइकिल की डिग्गी खोली गई तो उस में से उस के कागजात मिल गए. मोटरसाइकिल उमेश कनौजिया के नाम रजिस्टर्ड थी. उस पर पता एकतानगर, थाना ठाकुरगंज, लखनऊ का था. इस से साफ हो गया कि मारा गया युवक लखनऊ का ही रहने वाला था.

थाना मलिहाबाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद एसएसआई श्याम सिंह ने घटना की सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को एकता नगर भेज दिया. थाना मलिहाबाद के सिपाहियों ने थाना ठाकुरगंज के एकतानगर पहुंच कर उमेश कनौजिया के बारे में पता किया तो वहां पर उस की मौसी शशिकला मिलीं. पुलिस वालों ने जब उमेश की लाश मिलने की बात उन्हें बताई तो वह बेहोश हो गईं. घर वाले पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में ले आए तो उन्होंने बताया, ‘‘उमेश हमारी बहन का बेटा है. वह उन्नाव का रहने वाला है. जब वह मेरे यहां रह कर पढ़ाई कर रहा था, तभी उस ने यह मोटरसाइकिल खरीदी थी. इसीलिए उस के कागजातों में मेरा पता लिखा है.’’

इस के बाद पुलिस वालों ने शशिकला से उमेश के घर वालों का फोन नंबर ले कर उमेश की मौत की सूचना उस के घर वालों को दी. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही उमेश के घर वाले थाना मलिहाबाद पहुंच गए. उमेश के पिता सूबेदार कनौजिया ने उमेश की हत्या किए जाने की बात कह कर 2 लड़कों के नाम भी बताए. लेकिन थाना मलिहाबाद पुलिस का कहना था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद ही हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाएगा. इस पर उमेश के घर वाले भड़क उठे. धीरेधीरे यह बात फैलने लगी कि जिला पंचायत सदस्य उमेश कनौजिया की हत्या हो गई है और थाना मलिहाबाद पुलिस मुकदमा दर्ज करने में आनाकानी कर रही है. मलिहाबाद उन्नाव की सीमा से जुड़ा है, इसलिए खबर मिलने के बाद मृतक उमेश की जानपहचान वाले थाना मलिहाबाद पहुंचने लगे.

15 नवंबर, 2013 की सुबह से ही हत्या का मुकदमा दर्ज करने के लिए धरनाप्रदर्शन शुरू हो गया. अब तक शव घर वालों को मिल चुका था. घर वालों ने बसपा सांसद ब्रजेश पाठक, भाजपा के पूर्व विधायक मस्तराम, किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह के नेतृत्व में रहीमाबाद चौराहे पर लाश रख कर रास्ता रोक दिया. सांसद ब्रजेश पाठक का कहना था कि समाजवादी पार्टी के राज में पुलिस आम जनता की नहीं सुन रही है, इसलिए ऐसा करना पड़ रहा है. जाम लगने से आनेजाने वाले ही नहीं, रहीमाबाद कस्बे के लोग भी परेशान हो रहे थे. जाम लगाने वाले लोग उमेश कनौजिया के हत्यारों को गिरफ्तार करने, थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह को निलंबित करने, पीडि़त परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने और उमेश के छोटे भाई सुधीर को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे थे. जाम का नेतृत्व कर रहे नेताओं को लग रहा था कि उन के इस आंदोलन से राजनीतिक लाभ मिल सकता है, इसलिए वे आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे.

जाम लगाए लोगों को हटाने के लिए रहीमाबाद चौकी के प्रभारी अनंतराम सिपाही ज्ञानधर यादव, छेदी यादव, अशोक और होमगार्ड श्रीपाल यादव को साथ ले कर वहां पहुंचे तो गुस्साए लोगों ने अनंतराम और उन के साथ आए सिपाहियों के साथ मारपीट कर के उन्हें भगा दिया. इस बात की सूचना लखनऊ के एसपी (ग्रामीण) सौमित्र यादव, क्षेत्राधिकारी (मलिहाबाद) श्यामकांत त्रिपाठी और इंसपेक्टर (मलिहाबाद) जे.पी. सिंह को मिली तो आसपास के 3 थानों की पुलिस रहीमाबाद भेज दी गई. काफी समझानेबुझाने और भरोसा दिलाने के बाद लगभग 4 घंटे बाद जाम खुला. तब रहीमाबाद के लोगों ने राहत की सांस ली. इस के बाद उमेश के घर वाले उस का शव अंतिम संस्कार के लिए ले कर गांव चले गए. उस समय तो यह खतरा टल गया, लेकिन पुलिस को अंदेशा था कि अगले दिन भी राजनीतिक लोग इस घटना का लाभ उठाने के लिए धरनाप्रदर्शन कर सकते हैं.

इसी बात पर विचार कर के लखनऊ के एसएसपी जे. रवींद्र गौड ने मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए अपने मातहत अधिकारियों पर दबाव बनाया. इस के बाद थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह ने उमेश के घर वालों से मिल कर यह जानने की कोशिश की कि उन की किसी से रंजिश तो नहीं है. लेकिन घर वालों ने किसी भी तरह की राजनीतिक या पारिवारिक रंजिश से इनकार कर दिया. उमेश के पास इतना पैसा भी नहीं था कि लूटपाट के लिए उस की हत्या की जाती. वह पैसे का भी लेनदेन नहीं करता था. अब पुलिस के पास उमेश हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने का एकमात्र सहारा उस का मोबाइल फोन था.

पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस के अध्ययन से पता चला कि 13 नवंबर को एक ही नंबर पर उस ने 32 बार फोन किया था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर जिला उन्नाव के थाना हसनगंज के गांव शाहपुर तोंदा की रहने वाली आशा का निकला. आशा का विवाह थाना मलिहाबाद के अंतर्गत आने वाले गांव सिंधरवा के रहने वाले राजू से हुआ था. राजू दुबई में लांड्री का काम करता था. आशा यहीं रहती थी. पति बाहर रहता था, इसलिए वह ससुराल में कम, मायके शाहपुर तोंदा में ज्यादा रहती थी. उमेश का उस के यहां नियमित आनाजाना  था. जब भी आशा मायके में रहती, उमेश उस से मिलने के लिए दूसरेतीसरे दिन आता रहता था. अगर किसी वजह से वह नहीं आ पाता था तो उसे फोन जरूर करता था.

दरअसल आशा कनौजिया की मां महेश्वरी देवी ने भी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था. उमेश बिरादरी का नेता माना जाता था, इसलिए महेश्वरी देवी उमेश को अपने साथ रखने लगी थी. उसे लगता था कि उमेश साथ रहेगा तो बिरादरी के वोट उसे मिल जाएंगे. चुनाव महेश्वरी देवी लड़ रही थी, लेकिन उस का पूरा कामकाज पति प्रकाश कनौजिया देखता था. यही वजह थी कि उमेश और प्रकाश में गहरी छनने लगी थी. प्रकाश कनौजिया को भी लगता था कि उमेश के साथ रहने से बिरादरी का सारा वोट उसे ही मिलेगा.

चुनाव के दौरान महेश्वरी देवी के यहां आनेजाने में उमेश की नजर उस की 24 वर्षीया विवाहित बेटी आशा पर पड़ी तो वह उसे भा गई. भरेपूरे बदन वाली आशा पर उमेश की नजरें गड़ गईं. फिर तो जल्दी ही आशा की भी उमंगें हिलोरे लेने लगीं. यही वजह थी कि जल्दी ही दोनों के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उमेश स्मार्ट और खुशदिल इंसान था. अपने इसी स्वभाव की बदौलत वह आशा को भा गया था. चुनाव के दौरान अकसर दोनों का एकसाथ आनाजाना होता रहा. उसी बीच एकांत मिलने पर दोनों ने अपने इस प्रेमसंबंध को शारीरिक संबंध में तबदील कर दिया था.

समय के साथ उमेश और आशा के संबंध प्रगाढ़ हुए तो उमेश आशा को अपनी जागीर समझने लगा. जबकि आशा को यह बिलकुल पसंद नहीं था. क्योंकि आशा के संबंध कुछ अन्य लोगों से भी थे. यही बात उमेश को पसंद नहीं थी. वह चाहता था कि आशा उस के अलावा किसी और से संबंध न रखे. इस के लिए उस ने आशा को रोका भी, लेकिन वह नहीं मानी. उस का कहना था कि वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है, वह उसे रोकने वाला कौन होता है. उमेश के पास आशा के पति राजू का दुबई का फोन नंबर था. कभीकभी राजू की उस से बात भी होती रहती थी. आशा ने उमेश का कहना नहीं माना तो उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली.

एक दिन जब उस के पास राजू का फोन आया तो उमेश ने उस से बता दिया कि यहां आशा के कई लोगों से प्रेमसंबंध हैं. इस के बाद राजू और आशा में जम कर तकरार हुई. उमेश की यह हरकत आशा को बिलकुल पसंद नहीं आई. उस का इस तरह जिंदगी में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा तो उस ने उमेश को फोन कर के कहा, ‘तुम ने हमारे बारे में झूठ बोल कर राजू से मेरी जो लड़ाई कराई है, यह मुझे अच्छा नहीं लगा.’ अब तुम मुझ से न तो मिलने की कोशिश करना और न ही मुझे फोन  करना.

‘‘आशा, तुम मेरी बात का बेकार ही बुरा मान रही हो. मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसलिए चाहता हूं कि तुम मेरे अलावा किसी और से न मिलो.’’ उमेश ने सफाई दी.

‘‘लेकिन राजू से शिकायत कर के तुम ने मुझे उस की नजरों में गिरा दिया. वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा? शक तो वह पहले से ही करता था. अब उसे विश्वास हो गया कि मैं सचमुच गलत हूं.’’ आशा ने झल्ला कर कहा.

‘‘मैं गुस्से में था, इसलिए मुझ से गलती हो गई. अब ऐसा नहीं होगा. तुम मुझे समझने की कोशिश करो आशा.’’ उमेश ने आशा को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम्हारी यह पहली गलती नहीं है. इस के पहले तुम ने मेरे साथ मारपीट की थी, मैं ने उस का भी बुरा नहीं माना था. लेकिन यह जो किया, अच्छा नहीं किया. यह गलती माफ करने लायक नहीं है. मैं तुम जैसे आदमी से अब संबंध नहीं रखना चाहती.’’ आशा ने कहा.

‘‘आशा, 13 नवंबर को मैं तुम से मिलने आ रहा हूं. तब बैठ कर आराम से बातें कर लेंगे.’’ उमेश ने कहा.

‘‘मैं तुम से बिलकुल नहीं मिलना चाहती, इसलिए तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’ आशा ने उसे आने से रोका.

‘‘आशा इतना भी नाराज मत होओ बस एक बार मेरी बात सुन लो, उस के बाद सब साफ हो जाएगा. बात इतनी बड़ी नहीं है, जितना तुम बना रही हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भले ही यह बात बड़ी नहीं है, लेकिन मेरे लिए यह बड़ी बात है. मैं अभी तक तुम्हारी हरकतें नजरअंदाज करती आई थी, यह उसी का नतीजा है. लेकिन अब बरदाश्त के बाहर हो गया है.’’ कह कर आशा ने फोन काट दिया.

13 नवंबर को उमेश आशा से मिलने उस के घर जाने वाला था. 14 नवंबर को बाराबंकी में उस के दोस्त पंकज के यहां शादी थी. उमेश ने योजना बनाई थी कि वह आशा से मिलते हुए दोस्त के यहां शादी में चला जाएगा. 13 नवंबर की शाम को यही कोई 7 बजे उमेश ने अपने घर फोन कर के बताया भी था कि वह मलिहाबाद में अपने दोस्त से मिल कर बाराबंकी चला जाएगा. इस के बाद उमेश ने घर वालों से संपर्क नहीं किया. रात में उस के छोटे भाई सुधीर ने उसे फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. 13 नवंबर को उमेश ने दिन में 32 बार फोन कर के आशा को मनाने की कोशिश की थी. लेकिन आशा को अब उमेश से नफरत हो गई थी. उमेश ने उस के साथ जो किया था, अब वह उस से उस का बदला लेना चाहती थी.

आशा के संबंध गांव के ही रहने वाले रामनरेश, शकील और हरौनी के रहने वाले छोटे उर्फ पुत्तन से थे. आशा ने इन्हीं लोगों की मदद से उमेश से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाने का निश्चय कर लिया था. शाम को जब उमेश आशा से मिलने उस के घर पहुंचा तो आशा ने उस के साथ ऐसा व्यवहार किया, जैसे उस से उसे कोई शिकायत नहीं है. उस ने उसे खाना खिलाया और सोने के लिए बिस्तर भी लगा दिया. सोने से पहले उमेश ने शारीरिक संबंध की इच्छा जताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद आशा ने उस की यह इच्छा भी पूरी कर दी. आशा की यही अदा उमेश को अच्छी लगती थी. आशा के इस व्यवहार से उमेश को लगा कि वह मान गई है. वह उसे बांहों में लिएलिए ही निश्चिंत हो कर सो गया.

उमेश के सो जाने के बाद आशा उठी और अपने कपड़े ठीक कर के घर के बाहर आई. उस ने गांव का माहौल देखा. गांव में सन्नाटा पसर गया था. उस ने रामनरेश, शकील और छोटे को पहले से ही तैयार कर रखा था. उन के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘चलो उठो, वह सो चुका है. गांव में भी सन्नाटा पसर गया है. जल्दी से उसे खत्म कर के लाश ठिकाने लगा दो.’’

रामनरेश और आशा ने उमेश के पैर पकड़े तो छोटे ने हाथ पकड़ लिए. उस के बाद शकील ने गला दबा कर उसे खत्म कर दिया. छोटे महदोइया गांव का ही रहने वाला था, इसलिए उसे गांव की एकएक गली का पता था. सभी ने मिल कर उमेश की लाश को टैंपो नंबर 35 ई 8902 में डाला और ले जा कर गांव से काफी दूर नहर के किनारे फेंक दिया. शकील और छोटे टैंपो के पीछेपीछे उमेश की मोटरसाइकिल ले कर गए थे. उसे भी वहीं डाल दिया था. लाश ले जाने से पहले आशा ने उमेश की पैंट की जेब से मोबाइल और पर्स निकाल लिया था, जिस से उस की पहचान न हो सके.

शकील और छोटे ने उमेश की लाश को नहर के किनारे इस तरह फेंका था कि देखने वालों को यही लगे कि रात में दुर्घटना की वजह से इस की मौत हुई है. अपनी इस योजना में वे सफल भी हो गए थे, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पोल खुल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस की मौत Murder Stories in Hindi गला दबाने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर के मामले की जांच शुरू की तो हत्यारों तक पहुंचने में उसे देर नहीं लगी. आशा से पूछताछ के बाद पुलिस ने रामनरेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस शकील और छोटे की तलाश कर रही थी, लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों पुलिस के हाथ नहीं लगे थे. पुलिस हत्या के इस मामले में आशा के मांबाप की भूमिका की भी जांच कर रही है. आशा ने जो किया, उस से उमेश का ही नहीं, उस का खुद का भी परिवार छिन्नभिन्न हो गया. जिस पति से वह अपने जिन संबंधों को छिपाना चाहती थी, उमेश की हत्या के बाद पति को ही नहीं, पूरी दुनिया को पता चल गया. अब उस का क्या होगा, यह तो अदालत के फैसले के बाद ही पता चलेगा.

Meerut Crime News: प्रेमिका को नशा देकर बनाया संबंध, फिर क्यों ली जान?

Meerut News : दिल्ली से करीब 50 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में एक कस्बा है दौराला. यहीं पर एक गांव है लोइया, जहां 13 जून 2019 को इसी गांव के रहने वाले शबी अहमद के खेत से एक कुत्ता किसी मानव अंग को ले कर भाग रहा था. कुत्ते को मानव अंग ले कर भागते हुए गांव में रहने वाले ईश्वर पंडित ने देख लिया था. उसे शक हुआ कि हो ना हो वहां किसी इंसान को मार कर दबाया गया है. ईश्वर ने पहले गांव के कुछ लोगों को ये बात बताई. सब उस जगह पहुंचे, जहां से कुत्ता मानव अंग ले कर भागा था. तलाश करने पर खेत में एक जगह वो गड्ढा मिल गया, जहां एक लाश दबी थी और कुत्ते के खोदने से लाश का कुछ हिस्सा बाहर झांक रहा था. लिहाजा ईश्वर पंडित ने गांव वालों के साथ इस की सूचना दौराला पुलिस को दे दी.

दौराला थाने के एसएचओ इंसपेक्टर जनक सिंह चौहान तत्काल अपनी टीम के साथ लोइया गांव पहुंच गए. पुलिस ने आ कर शबी अहमद के खेत की खुदाई करवाई तो वहां वाकई एक लाश मिली. लाश किसी महिला की थी, जिस का सिर और दोनों हाथ गायब थे. शरीर पर अंतर्वस्त्र को छोड़ कर कोई भी कपड़ा नहीं था. देखने से ही लग रहा था कि शायद उस के साथ दुष्कर्म किया गया है जिस के बाद बेदर्दी से उस की हत्या कर के शव को वहां दबा दिया गया है. घटना दिल दहलाने और किसी को भी झकझोर देने वाली थी. इसलिए एसएचओ ने तत्काल उच्चाधिकारियों को सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही सीओ जितेंद्र सिंह सरगम, एसपी (सिटी) अखिलेश नारायण सिंह और मेरठ के एसएसपी अजय कुमार साहनी भी क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को ले कर मौके पर पहुंच गए. आमतौर पर पुलिस के लिए हत्या के मामले सामने आने की घटना होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी. लेकिन जिस तरह से इस महिला की हत्या की गई थी, वह जरूर हैरत में डालने वाली बात थी. क्योंकि उस का सिर तथा दोनों हाथ काटने के पीछे का रहस्य किसी की समझ में नहीं आ रहा था. सिर काटने के पीछे का मकसद तो समझ में आता था कि क्योंकि चेहरा देखने से उस की पहचान हो सकती थी इसलिए कातिल ने उस का सिर काटा होगा. लेकिन उस के दोनों हाथ कंधे से काट दिए गए थे, ये सब की समझ से परे था.

शव बुरी तरह से सड़गल चुका था. इस का मतलब था कि हत्या कर के शव कई दिन पहले दबाया गया होगा. शव की हालत देखने से एक दूसरी बात भी साफ हो रही थी कि लाश के सिर और हाथ काटने वाला अपराधी बेहद क्रूर होगा तथा उसे गांव में लड़की की पहचान का डर रहा होगा. इस के बाद क्राइम टीम ने पहले डौग स्क्वायड की मदद से शव के दूसरे हिस्सों और कातिल का सुराग लगाने का प्रयास किया. लेकिन काफी समय बीत जाने के कारण शायद कातिल की गंध और शव के दूसरे हिस्सों की गंध उड़ चुकी होगी . इसलिए डिटेक्टिव कुत्तों से कोई मदद नहीं मिल सकी.

इस के बाद पुलिस ने जेसीबी मशीन और ट्रैक्टर की मदद से पूरे खेत की खुदाई करवाई लेकिन खेत में शरीर का कोई दूसरा हिस्सा बरामद नहीं हो सका. इस दौरान पुलिस की एक टीम ने लोइया गांव के लोगों को बुला कर शव दिखाया और यह जानने की कोशिश की कि कहीं इस गांव की किसी लड़की का तो ये शव नहीं है. लेकिन पता चला कि गांव से कोई महिला या लड़की गायब नहीं थी. हालांकि उस की पहचान बिना सिर के कारण कोई नहीं कर पा रहा था. एसएसपी अजय साहनी के निर्देश पर उसी दिन शव का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और थाना दौराला में अपराध संख्या भादंसं की धारा 302 पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया.

सीओ जितेंद्र सिंह सरगम ने एसएचओ जनक सिंह चौहान की निगरानी में इस केस की जांच का जिम्मा एसआई एम.पी. सिंह को सौंप दिया और उन के सहयोग के लिए एसआई राजकुमार तथा कुछ पुलिसकर्मियों को नियुक्त कर दिया. शव का पोस्टमार्टम होने के बाद जांच अधिकारी ने 3 दिन तक अज्ञात महिला की लाश को अस्पताल में सुरक्षित रखवाया लेकिन आसपास के इलाके में मुनादी और समाचार पत्रों में उस लाश की जानकारी छपवाने के बाद भी जब कोई उस की पहचान के लिए नहीं आया तो पुलिस ने लावारिस के तौर पर शव का अंतिम संस्कार कर दिया.

लाश के ब्लड सैंपल और टिश्यू सैंपल सुरक्षित रख लिए गए. दौराला थाने की पुलिस अपने तरीके से इस हत्याकांड की जांच को सुलझाने के काम में लगी थी. लेकिन इस के अलावा एसएसपी अजय कुमार साहनी ने सर्विलांस टीम के इंचार्ज हैड कांस्टेबल मनोज दीक्षित को उन की टीम के साथ इस हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के काम पर लगा दिया. सर्विलांस टीम ने जांच तो शुरू कर दी, मगर पुलिस को तत्काल ऐसे साक्ष्य नहीं मिले, जिस से पुलिस मृतका की पहचान कर पाती या पुलिस के हाथ कातिल की गरदन तक पहुंचते. वक्त धीरेधीरे गुजरता रहा और लोइया गांव में मिले अज्ञात महिला के शव की फाइल पर धूल की परतें जमती रहीं. कहते हैं कातिल कितना भी चालाक हो, लेकिन एक दिन पुलिस के हाथ उस की गरदन तक पहुंच ही जाते हैं.

2 जून, 2020 को मेरठ के एसएसपी अजय साहनी के कौन्फ्रैंस कक्ष में पत्रकारों की भीड़ जमा थी. कोरोना की महामारी का संकट पूरे जोरों पर था और लौकडाउन के कारण पूरा देश अपने घरों के अंदर था. लेकिन उस दिन एसएसपी ने एक साल पहले लोइया गांव में मिली अज्ञात लड़की की हत्या के राज से परदा हटा दिया. लोइया गांव के खेत में मिली वह लाश एकता जसवाल (20) की थी और उस की हत्या लोइया गांव में रहने वाले शाकेब ने अपने भाई मुशर्रत, अपनी पत्नी इस्मत, पिता मुस्तकीम, एक अन्य भाई नावेद की पत्नी रेशमा और गांव के रहने वाले दोस्त अयान के साथ मिल कर की थी. एकता की हत्या करने वाले सभी 6 आरोपियों को सर्विलांस टीम के मुखिया मनोज दीक्षित ने अपनी टीम के कांस्टेबल शाहनवाज राणा, कांस्टेबल बंटी सिंह, महेश कुमार और सौरभ सिंह ने गहन जांच के बाद गिरफ्तार किया था.

मांबाप की एकलौती बेटी थी एकता आरोपियों से पूछताछ के बाद जब एकता की हत्या का पूरा सच सामने आया तो लव जेहाद की एक ऐसी कहानी से परदा उठा, जिस से पता चला कि बिना विचार किए अंजान लड़कों के प्रेम जाल में फंसने वाली लड़कियां किस तरह लव जेहाद का शिकार हो कर अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देती हैं. एकता जसवाल मूलरूप से हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले की तहसील डेहरा के गांव चिनौर में रहने वाले कर्मवीर जसवाल और बबीता जसवाल की एकलौती बेटी थी. एकता के पिता कांगड़ा की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर थे, जबकि मां घरेलू महिला.

मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी एकता के सपने पढ़लिख कर बड़ी नौकरी हासिल करने के थे. घर में कोई कमी नहीं थी, इसलिए मातापिता ने एकलौती बेटी की ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उसे पढ़नेलिखने की पूरी आजादी दी, मनचाही जिंदगी जीने का मौका दिया. कांगड़ा में अच्छे स्कूल नहीं थे, न ही ऊंची पढ़ाई करने का माहौल, इसलिए इंटरमीडिएट करने के बाद एकता पढ़ाई करने के लिए लुधियाना आ गई और बीकौम की पढ़ाई करने के लिए एक अच्छे कालेज में दाखिला ले लिया. पढ़ाई करने के साथ एकता अपने खर्चे चलाने के लिए पार्टटाइम जौब भी करने लगी थी. धीरेधीरे उस ने बीकौम की पढ़ाई पूरी कर ली. एक साल पहले वह लुधियाना की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में काम करती थी और लुधियाना अंकुजा आनंद नगर, खब्बेवार गली नंबर 1 में बी-34 नंबर मकान में किराए का कमरा ले कर रहती थी.

यहीं पर उस की जिंदगी में पंकज सिंह नाम का एक नौजवान आया. पंकज भी एक दूसरी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में नौकरी करता था. जल्द ही पंकज तथा एकता की दोस्ती प्यार में बदल गई. पंकज संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार का युवक था. पंकज और एकता के बीच कुछ ही दिनों में इतनी प्रगाढ़ता हो गई कि एकता उस के साथ जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी. लेकिन पंकज एक ऐसा मनचला भंवरा था, इसलिए दूसरी लड़की से संपर्क में आने के बाद उस ने एकता से दूरी बना ली. एकता की समझ में नहीं आ रहा था कि उस में आखिर ऐसी कौन सी कमी है जो पंकज उसे नजरअंदाज करने लगा है. पंकज को उस ने कई बार मनाने और जानने की कोशिश की लेकिन पंकज ने हर बार उसे झिड़क दिया. एकता पर पंकज को पाने का जुनून सवार था. वह किसी भी तरह पंकज को हासिल कर के अपनी लाइफ सेटल करना चाहती थी.

पंजाब और हरियाणा ऐसी जगह है, जहां लोग टोनेटोटके और झाड़फूंक करने वाले तथाकथित तांत्रिकों पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करते हैं. एकता ने भी तांत्रिक की वशीकरण विद्या के कई किस्से सुन रखे थे, लिहाजा उस ने पंकज को अपने वश में करने के लिए किसी तांत्रिक से वशीकरण उपाय कराने का मन बनाया. एक समाचार पत्र में छपे विज्ञापन के आधार पर एक दिन उस ने फोन पर अमन नाम के एक तांत्रिक से बात की. अमन ने एकता को भरोसा दिलाया कि वह सौ फीसदी ऐसा उपाय कर देगा कि उस का आशिक पूरी तरह उस पर लट्टू हो जाएगा.

प्रेमी को वश में करने के लिए गई एकता तांत्रिक के पास  2 दिन बाद ही एकता मोतीनगर स्थित तांत्रिक अमन के औफिस पहुंची. अमन तंत्रमंत्र का काम जरूर करता था लेकिन बातचीत में वह बेहद सलीकेदार था. पहनावे और शक्लसूरत से भी वह बेहद आकर्षक था. फीस तय होने के बाद एकता ने अमन को अपनी समस्या बताई. बातों ही बातों में अमन ने यह भी जान लिया कि एकता कांगड़ा में रहने वाले अपने परिवार से दूर लुधियाना में अकेली रहती है और अपने परिवार की इकलौती लड़की है. अमन समझ गया कि एकता उस के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो सकती है. क्योंकि उस के आगेपीछे रोकटोक करने वाला कोई नहीं था.

लिहाजा अमन ने उस दिन के बाद और भी ज्यादा सलीके से रहना और बातचीत करना शुरू कर दिया. उस ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि धीरेधीरे एकता पंकज को भूल कर सिर्फ अमन के बारे में सोचने लगी. अमन और एकता के बीच कुछ ही दिनों में एक तांत्रिक और पीडि़त वाले संबंधों की जगह दोस्ती के संबंध कायम हो गए. दोनों के बीच अब घंटों तक वाट्सऐप चैटिंग, कालिंग और फोन पर बात होने लगी. धीरेधीरे एकता को अमन से बात करतेकरते इस बात का भी आभास हो गया कि अमन कम पढ़ालिखा जरूर है लेकिन जिस काम को वो करता है उस में इतना पैसा है कि वह चाहे तो लाखों कमा सकता है. जब भी समय मिलता अमन एकता को कभी किसी रेस्टोरेंट में ले जाता तो कभी सिनेमा में मूवी दिखाता.

एकता के दिलोदिमाग से अब पंकज की मोहब्बत का जुनून लगभग पूरी तरह से उतर चुका था. अमन के साथ उस की दोस्ती धीरेधीरे दीवानगी की हद तक परवान चढ़ती जा रही थी. दोनों की दोस्ती को करीब डेढ़ महीने बीत चुका था कि इसी दौरान अमन को अपने पार्टनर तांत्रिक से पैसे के लेनदेन को ले कर झगड़ा हो गया. दरअसल अमन दिलशाद नाम के जिस तांत्रिक के औफिस में काम करता था, उस के ऊपर धीरेधीरे अमन का ग्राहक पटा कर लाने का 3 लाख रुपए का कमीशन जमा हो चुका था. एक दिन हुआ यूं कि लेनदेन के इसी विवाद में अमन और दिलशाद के बीच हाथापाई हो गई.

दिलशाद ने अमन को अपने यहां से हटा दिया. इस के बाद अमन ने लुधियाना के किसी दूसरे तांत्रिक के साथ मिल कर काम शुरू कर दिया. लेकिन वहां भी एक महीने से ज्यादा अमन की नहीं पटी. क्योंकि दिलशाद की तरह वह तांत्रिक भी आसामियों से मिलने वाला सारा पैसा खुद ही हजम कर लेता था. अब उस ने मन बना लिया कि वह अंजान लोगों के इस इलाके में काम ही नहीं करेगा. उस ने करनाल जाने की तैयारी कर ली. करनाल में उस के गांव के कई लड़के तंत्रमंत्र और टोनेटोटके का काम करते थे. उस ने सोचा क्यों न वह अपने दोस्तों के सहयोग से करनाल में अपना खुद का काम शुरू करे.

लेकिन इस काम के लिए तो पैसे की जरूरत थी. अचानक उसे एकता का खयाल आया. उस ने सोचा क्यों न एकता को झांसे में ले कर उस से मोटी रकम ऐंठी जाए. करनाल छोड़ने से पहले अमन ने एकता से मुलाकात की और उसे पिछले दिनों में अपने साथ पार्टनर तांत्रिकों द्वारा किए गए धोखे के बारे में बताया. उस ने कहा कि वह करनाल जा रहा है, वहां जा कर वह कोई ठीया देख कर खुद का औफिस शुरू कर देगा. अपना काम होगा तो वह लाखों रुपए कमा लेगा. कामधंधा जमाने के बाद अमन ने एकता से शादी करने का भी वायदा कर लिया.

अमन करनाल में गांव के रहने वाले अपने दोस्तों के पास करनाल चला गया और वहां कुछ दिन में ही उस ने अपना एक दफ्तर खोल कर तंत्रमंत्र जादू टोने और वशीकरण का काम शुरू कर दिया. अमन ने किराए का एक कमरा भी ले लिया. कमरा लेने के बाद अमन ने एक दिन एकता को फोन किया. इधर अमन के करनाल जाने के बाद जैसे एकता पर मुसीबतों का दौर शुरू हो गया था. अचानक उस की नौकरी छूट गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. ऐसे में उसे अमन की बेहद याद सता रही थी. अचानक उस दिन जब अमन का फोन आया तो उसे लगा जैसे डूबते को किनारा मिल गया हो. बातचीत में एकता ने उसे बता दिया कि उस की नौकरी चली गई है और वह खुद को अकेला महसूस कर रही है.

अमन ने कहा, ‘‘अब तुम लुधियाना छोड़ो, क्योंकि यहां मैं ने अपना औफिस खोल लिया है. सामान ले कर मेरे पास चली आओ. यहीं पर तुम्हारी नौकरी का भी इंतजाम कर दूंगा. इस के बाद हम दोनों यहीं पर अपनी गृहस्थी बसाएंगें.’’

अमन की बातें सुन कर एकता भविष्य के सुनहरे ख्वाब संजोने लगी. अमन ने उसे अपना पता भेज दिया और अगले कुछ दिन बाद ही एकता लुधियाना से अपना बोरियाबिस्तर समेट कर करनाल अमन के पास पहुंच गई. 1-2 दिन साथ रहने के बाद अमन ने एकता से कहा, ‘‘देखो एकता, अगर हमें अपना भविष्य सुनहरा बनाना है और अपने काम से मोटा पैसा कमाना है तो इस के लिए हमें कुछ मोटी रकम खर्च करनी होगी ताकि हम अपने काम को बड़े स्तर से कर सकें. इसलिए अगर तुम अपने परिवार से कुछ पैसा मांग कर मेरी मदद कर सको तो हमारी आगे की जिंदगी बहुत हसीन हो जाएगी.’’

प्रेमी की मदद करने के लिए,एकता पहुंची अपने घर एकता अमन के प्यार में इस कदर दीवानी हो चुकी थी कि उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगी थी. कुछ महीने पहले जो एकता अमन के पास किसी और के वशीकरण के लिए आई थी वह अब खुद अमन के वशीकरण का शिकार हो चुकी थी. अमन की बातों का एकता पर ऐसा असर हुआ कि वह पैसे लेने के लिए अपने परिवार के पास कांगड़ा चली गई. कांगड़ा में अपने घर पहुंच कर उस ने अपनी मां बबीता को यह नहीं बताया कि वह लुधियाना छोड़ कर करनाल चली गई है. उस ने यह बताया कि अमन नाम के एक लड़के से वह प्यार करती है.

‘‘कौन है, कहां का रहने वाला है और किस जाति का है?’’ मां ने पूछा

‘‘मां ये तो पता है कि वो मेरठ का रहने वाला है, लेकिन जाति का नहीं पता वैसे जितना मैं ने उसे जाना है, अच्छी जाति का ही होगा.’’

एकता ने जिस भोलेपन से जवाब दिया उसे देखसुन कर मां बबीता ने अपना सिर पीट लिया, ‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है लड़की, जिस लडके से शादी करना चाहती है, यह तक नहीं पता कि वह किस जाति का है, गोत्र क्या है. अरे वह कुछ कामधाम भी करता है या उसे भी हमारी छाती पर ही ला कर पालेगी.’’ बबीता का पारा चढ़ने लगा.

‘‘देखो मां, वह अच्छाखासा पैसा कमाता है. लोगों की समस्याएं सुलझाता है. कंसलटेंसी का काम करता है.’’ एकता ने मां से अमन के असल कामधंधे की बात छिपा कर इस तरीके से उस के काम का परिचय दिया ताकि मां को अच्छा लगे.

‘‘देख लड़की तेरे पापा ने बड़ी मेहनत से एकएक पाई जोड़ कर तेरी शादी के लिए कुछ गहने बनवाए हैं और पैसा जोड़ा है. अब तू पढ़लिख चुकी है…बहुत हो चुका, छोड़ ये नौकरी और घर आ जा. कोई अच्छा सा लड़का देख कर तेरे हाथ पीले कर देंगे.’’ मां ने समझाया. मां का लहजा देख कर एकता भी समझ गई कि वह अमन से उस की शादी कतई नहीं करेंगी और न ही उस के लिए मातापिता से उसे कोई आर्थिक मदद मिलेगी. लिहाजा जल्दी ही एकता यह कह कर अपने घर से लुधियाना के लिए चली गई कि वह अंबाला में मामाजी के घर होते हुए लुधियाना चली जाएगी और कुछ दिन में नौकरी से सारा हिसाबकिताब कर के वापस यहां आ जाएगी.

लेकिन इस दौरान एकता ने अपने घर में मां की अलमारी में रखे करीब 3 लाख रुपए की नकदी और 12 लाख रुपए के गहने चुरा कर अपने बैग में रख लिए थे. क्योंकि वह मानती थी कि इन पैसों और गहनों पर तो उसी का अधिकार है. अब वह इन्हें जिस तरह चाहे अपने ऊपर खर्च करे. अपने ही घर से गहने और रुपया चुरा कर एकता अंबाला में अपने मामा के घर पहुंची और वहां एक रात रुकी. मामा अच्छे संपन्न व्यापारी थे. घर में रुपएपैसे और गहनों की कमी नहीं थी. उसी रात एकता ने अमन के प्यार की दीवानगी में अपने मामा के घर से करीब 2 लाख रुपए नकद और 7 लाख रुपए के गहने चुरा कर अपने बैग में रख लिए.

अगली सुबह जब तक किसी को कुछ पता चलता तब तक वह मामा के घर से लुधियाना जाने की बात कह कर निकल गई. एकता ने अपने माता और मामा के घर से करीब 25 लाख के गहने और नकदी चुरा ली थी. वह लुधियाना के बजाय सीधे करनाल पहुंच गई. एकता ने मातापिता और मामा के घर से चुराए गए नकद रुपए और गहने ले जा कर अमन के हाथों में सौंप दिए और बोली, ‘‘देखो अमन, मैं अपने घर से जेवर और रुपए चुरा कर ले तो आई हूं, लेकिन एक बात साफ समझ लो कि अब मैं अपने घर में नहीं जा सकती. मैं ने तुम पर भरोसा किया है, मेरे भरोसे का खून मत कर देना.’’

इतनी बड़ी रकम और लाखों के गहने देख कर अमन की खुशी की सीमा नहीं रही. उस ने महीनों की मोहब्बत के बाद आज पहली बार एकता को अपनी बांहों में भर लिया. उस के माथे पर एक प्यारभरी जुंबिश दे कर बोला, ‘‘कैसी बात करती हो पगली, मेरी दुनिया भी तो तुम तक ही सीमित है. तुम फिक्र मत करो, हम 1-2 दिन में ही शादी कर लेंगे और तुम्हें परिवार की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरा परिवार भी तो तुम्हारा ही परिवार है. शादी के बाद मैं तुम्हें अपने परिवार वालों के पास ले चलूंगा. देखना मेरा परिवार तुम्हें इतना प्यार देगा कि तुम दुनिया को भूल जाओगी.’’

अमन की बातें सुन कर एकता की आंखें डबडबा आईं. एकता अपनी किस्मत पर इतराने लगी क्योंकि वह तो पंकज की चाहत में अमन से मिली थी, लेकिन उसे क्या पता था कि किस्मत उस के लिए पंकज से भी अच्छा जीवनसाथी चुन चुकी है.  इधर जब एकता अपने परिवार और मामा के घर से नकदी और गहने चोरी कर के भागी तो अगले दिन तक ही उस के मातापिता और मामा के घर में पता चल गया कि वह घर से चोरी कर के भागी है. मामा और मामी एकता के मातापिता के पास पहुंचे तो उन्हें सारी बात पता चली. पूरा परिवार चिंता में डूब गया. क्या किया जाए इस पर विचार किया गया. एक बात तो साफ थी कि एकता ने अपने ही घर में चोरी करने का ये काम अमन नाम के अपने उस प्रेमी की मदद करने के लिए किया था, जिस से वह शादी करना चाहती थी.

बेटी नहीं मिली तो लिखाई थाने में गुमशुदगी परिवार ने लुधियाना जा कर एकता की तलाश करने का फैसला किया. लेकिन यह क्या, जब परिवार के लोग लुधियाना पहुंचे तो उन्हें पता चला कि एकता एक महीना पहले ही उस मकान को छोड़ कर जा चुकी थी, जहां वह रहती थी. एकता कहां गई है, किसी को भी इस बात का पता नहीं था. एकता के घर वाले समझ गए कि एकता पूरी तरह अमन नाम के लड़के के प्यार में पागल हो चुकी है. इसलिए अब एक ही चारा था कि एकता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए. घर वालों ने पुलिस को यह बात तो नहीं बताई कि उन की बेटी अपने ही घर से बड़ी रकम और गहने चुरा कर भागी है, लेकिन उन्होंने लुधियाना के मोतीनगर थाने में उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए पुलिस को यह जरूर बताया कि उन की बेटी किसी अमन नाम के लड़के से प्यार करती थी और शायद उसी के बहकावे में आ कर भाग गई है.

मोतीनगर पुलिस ने एकता की गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया और एक एएसआई को उस की तलाश तथा मुकदमे की जांच का काम सौंप दिया. पुलिस ने आसपास के सभी जिलों की पुलिस और नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में एकता के फोटो और गुमशुदगी से जुड़ी सभी जानकारी भेज दी. एकता जब अपने परिवार में चोरी कर के अमन के पास आई थी तब यह बात मई, 2019 की थी. दूसरी तरफ जब एकता ने करीब 25 लाख रुपए की नकदी और गहने अमन को ले जा कर दिए तो उस ने करनाल में तंत्रमंत्र का काम करने वाले अपने 5-6 दोस्तों की उपस्थिति में एकता से घर में ही एक पंडित को बुला कर हिंदू रीतिरिवाज से शादी कर ली और अगले ही दिन वह एकता को ले कर अपने गांव दौराला चला गया.

दौराला में अमन ने पहले से ही अपने कुछ परिचितों की मदद से फोन पर बातचीत कर के किराए के एक मकान की व्यवस्था भी कर ली थी. अमन और एकता के पास अपने पहनने के कपड़े तथा जरूरत का कुछ सामान था. बाकी की घरगृहस्थी का जरूरी सामान उन्होंने वहां जा कर खरीद लिया. लेकिन सब से बड़ी बात यह थी कि एकता से शादी के बाद भी अमन ने उस के शरीर को छुआ तक नहीं था. एकता के पूछने पर वह हमेशा यही कहता कि कुछ दिन बाद वह अपने परिवार वालों से उसे मिलाने के लिए ले जाएगा तब परिवार वालों का आशीर्वाद लेने के बाद ही वह उस के साथ सुहागरात मनाएगा. अपने परिवार और मातापिता के लिए ऐसे आदर्शवादी पति के मुंह से ये बातें सुन कर एकता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया. उसे लगा कि उस ने अमन को अपना जीवनसाथी चुन कर कोई गलती नहीं की है.

इस दौरान एकता ने अपनी मां को 1-2 बार वाट्सऐप पर मैसेज कर के यह बात जरूर बता दी थी कि उस ने अमन से शादी कर ली है और वह बहुत खुश है. साथ ही उस ने यह भी कहा कि उसे ढूंढने की कोशिश न करें. इस बीच करीब एक महीना गुजर गया. एकता को घर में अकेला छोड़ कर काम की तलाश में जाने की बात कर के अमन रोज कई घंटों के लिए कहीं चला जाता था. शाम को जब वह देर से आता तो पूछने पर एकता को यही बताता कि वह नया काम शुरू करने के लिए जगह की तलाश कर रहा है, जल्द ही उसे औफिस मिल जाएगा.

एकता से टालमटोल करता रहा अमन जब एक महीना पूरा हो गया तो एकता ने थोड़ा सख्त लहजे में अमन से पूछना शुरू कर दिया कि वह जल्द ही उसे अपने परिवार से मिला देगा और उन का आशीर्वाद ले कर उसे पत्नी का दरजा देगा लेकिन एक महीना होने के बाद भी वह न तो उसे परिवार से मिला रहा था और न ही कोई नया काम शुरू किया. इस तरह तो सारा पैसा भी खत्म हो जाएगा. एकता ने उस दिन थोड़ा सख्त लहजे में कहा कि उस ने अपने परिवार के साथ छल किया और उस पर भरोसा कर के बहुत बड़ी गलती की है. अमन को उस दिन लगा कि अब अगर उस ने एकता को जल्द ही पत्नी का दरजा नहीं दिया तो वह बगावत कर के उसे छोड़ कर चली जाएगी.

2 दिन बाद ईद का त्यौहार था. इस से एक दिन पहले अमन दोपहर को अचानक बाहर से काम निबटा कर घर पहुंचा और एकता को बांहों में भर लिया, ‘‘लो जी मैडम, आज वह खुशी का दिन आ गया, जब तुम्हें अपनी ससुराल वालों से मिलना है. जल्दी से तैयार हो जाओ, हमें गांव चलना है घरवालों के पास.’’ एकता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इस दिन का वह कितनी बेसब्री से इंतजार कर रही थी जब वह पूरी तरह अमन की हो जाएगी. एकता झटपट तैयार हो गई. अमन उसे एक आटोरिक्शा में बैठा कर अपने गांव लोइया आ गया. लेकिन यह क्या अमन तो उसे किसी मुसलिम परिवार में ले आया था.  घर में मौजूद लोगों के मुसलिम लिबास, रहनसहन और बोलचाल देख कर साफ समझ आ रहा था कि वह जिस घर में आई है, वह एक मुसलिम परिवार है.

प्रेमी की असलियत जान कर बिफर पड़ी एकता एकता ने हैरतभरी निगाहों से अमन की तरफ देखा तो अमन बोला, ‘‘अरे देख क्या रही हो, यही मेरा परिवार है. ये मेरे अब्बू हैं, ये बड़े भाईजान और ये दोनों मेरी भाभीजान हैं.’’

‘‘लेकिन अमन तुम ने तो कभी नहीं बताया कि तुम मेरे धर्म के नहीं और तुम ने तो अपना नाम अमन बताया था.’’ एकता फटी आखों से अमन को देख कर बिफरते हुए बोली.

‘‘अरे..अरे मेरी प्यारी बीवी, इस में नाराज होने की क्या बात है. भई मेरा प्यार का नाम अमन ही है, इस में मैं ने झूठ कहां बोला. हां, वैसे घर वाले मुझे शाकेब कह कर बुलाते हैं. तुम ने तो अपना घरबार मेरे लिए ही छोड़ा है अब मेरा नाम शाकेब हो या अमन, मैं हिंदू हूं या मुसलमान क्या फर्क पडता है.’’

अमन जो वास्तव में शाकेब था, उस ने बड़ी ही धूर्तता के साथ एकता के कंधों को पकड़ कर कहा.

‘‘दूर हट जाओ मुझ से. खबरदार जो मुझे छूने की कोशिश की. तुम्हारा धर्म क्या है, तुम्हारा असली नाम क्या है, मेरे लिए यह बहुत मायने रखता है. तुम ने मेरे साथ छल किया है. इसलिए भूल जाओ कि अब मैं तुम्हारे पास रहूंगी. मुझे अभी अपने घर जाना है, अपने परिवार वालों के पास जाना है. मैं ने तुम्हारे लिए उन का जो दिल दुखाया है, उन से मिल कर मैं माफी मांगना चाहती हूं. तुम्हारी खातिर मैं ने अपने ही घर में चोरी की है. उन की मेहनत की कमाई वापस लौटा कर, मैं उन से माफी मांग कर अपने पाप को कम करना चाहती हैं.’’ एकता ने एक ही सांस में अपनी सारी भड़ास अमन उर्फ शाकेब पर निकाल दी.

दूसरी तरफ शाकेब जो अब तक खुद को अमन के रूप में पेश करता रहा था. उसे लग गया कि एकता के ऊपर चढ़ा उस के सम्मोहन का जादू अब टूट गया है और मामला बिगड़ चुका है. उस ने एक ही क्षण में फैसला कर लिया कि उसे क्या करना है. उस ने किसी तरह सब से पहले एकता को शांत कराया और उस से कहा कि वह उस के साथ किसी तरह की जोरजबरदस्ती नहीं करेगा. अगर वह उस के साथ नहीं रहना चाहती तो वह ईद से अगले दिन उस के घर भेज देगा और उस ने जो गहने और पैसे दिए हैं, उसे वापस दे देगा. शाकेब उर्फ अमन ने एक दिन शांति के साथ एकता को अपने घर पर ही एक मेहमान की तरह रुकने का अनुरोध किया तो एकता भी विरोध न कर सकी. शाकेब के इरादों से अनजान एकता एक दिन के लिए उसी घर में रुकने के लिए मान गई.

इस के बाद शाकेब ने एकता का अपने पूरे परिवार से बेहद सलीके से परिचय कराया. शाकेब के परिवार में उस के पिता मुस्तकीम के अलावा 4 भाई थे, जिन में शाकेब खुद सब से छोटा था. मां का इंतकाल हो चुका था. उस से बड़े 3 भाई मुशर्रत, नावेद और जावेद हैं. शाकेब के पिता पेशे से ड्राइवर हैं जबकि चारों भाई दौराला से बाहर अलगअलग शहरों में तंत्रमंत्र और झाड़फूंक का काम करते हैं. मुशर्रत की शादी इस्मत से हुई थी, जबकि नावेद की पत्नी रेशमा है, आशिया तीसरे नंबर के भाई जावेद की पत्नी थी, जो अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल गया हुआ था. नावेद भी इन दिनों किसी अपराध में शामिल होने के कारण मेरठ जेल में बंद था.

एकता ने की अपने घर जाने की जिद एकता शाकेब के परिवार के बारे में जानने के बाद यह तो समझ गई थी कि उस का परिवार अच्छा नहीं है. शाकेब के साथ उस के गांव आने के बाद एकता को पूरी तरह आभास हो चुका था कि वह तथाकथित अमन के सम्मोहन में पड़ कर बुरी तरह फंस चुकी थी. लेकिन जिस तरह शाकेब ने उसे भरोसा दिया था कि वह ईद के अगले दिन उसे उस के पैसों के साथ सकुशल घर वापस पहुंचा देगा, उसे जानने के बाद वह सुकून महसूस कर रही थी कि चलो उसे अपनी भूल सुधारने का मौका मिल गया है.

वह किसी तरह अगले दिन मनाई जाने वाली ईद का इंतजार करने लगी, ताकि उस के खत्म होते ही वह अपने परिवार के पास वापस लौट सके. रात में एकता ने शाकेब के पूरे परिवार के साथ मिल कर खाना खाया. खाना खाने के बाद परिवार के सभी लोगों ने सोने से पहले कोल्डड्रिंक पी. शाकेब की भाभी रेशमा ने एकता को भी एक गिलास में डाल कर कोल्डड्रिंक पीने के लिए दी, जिस के बाद सभी लोग खुशनुमा माहौल में कुछ देर बात करने लगे. चंद मिनटों बाद एकता को नींद की उबासी आने लगी तो उस ने कहा कि उसे सोना है. यह सुनने के बाद सभी लोग उसे कमरे में सोने के लिए छोड़ कर बाहर चले गए.

दरअसल अब तक जो घटनाक्रम हो रहा था, वह एक एक साजिश का हिस्सा था जिसे अब अंजाम दिया जाना था. जिन दिनों अमन बना शाकेब दौराला में एकता के साथ किराए का घर ले कर रह रहा था, उस वक्त वह रोज अपने घर वालों से मिलने के लिए आता था. उस ने घर वालों को बता दिया था कि उस ने एक हिंदू लडकी को अपने जाल में फंसाया है और उस से दिखावे के लिए शादी भी कर ली है. क्योंकि उस ने लड़की को अपने बारे में यही बताया था कि वह हिंदू है.

परिवार वालों को जब ये पता चला कि एकता शाकेब के प्यार में फंसने के बाद अपने घर से करीब 25 लाख रुपए के गहने व नकदी भी चुरा कर ले आई है तो सब बहुत खुश हुए. चूंकि एक दिन तो एकता के ऊपर अमन उर्फ शाकेब के मुसलिम होने की हकीकत पता चल ही जानी थी और उस के परिवार की हकीकत भी उजागर हो जानी थी. शाकेब का परिवार यह भी जानता था कि अगर शाकेब से हिंदू लड़की एकता निकाह के लिए राजी भी हो गई तो उन की बिरादरी के लोग उन का गैरमजहब में शादी के कारण जीना हराम कर देंगे. अगर शाकेब और एकता की शादी नहीं हुई तो यह भी तय था कि वह शाकेब को दी गई अपनी सारी रकम मांग लेगी.

इसलिए शाकेब ने अपने पिता, भाई और भाभियों के साथ मिल कर पहले ही यह साजिश तैयार कर ली थी कि एकता को अपने घर ला कर उस की हत्या कर दी जाए. इस से उसे एकता की रकम भी नहीं लौटानी पड़ेगी और उस से छुटकारा भी मिल जाएगा. एकता के नशे में बेसुध हो जाने के बाद शाकेब ने उस के कपड़े उतारे और नशे की अवस्था में ही उस के शरीर से अपनी हवस की भूख शांत की. एकता के शरीर से खिलवाड़ करने के बाद बिस्तर से उठ कर अंगड़ाई लेने के बाद शाकेब बुदबुदाया, ‘‘मूर्ख लड़की तुझे मेरे साथ सुहागरात मनाने की बड़ी जल्दी थी न…चल मरने से पहले मैं ने तेरी ये ख्वाहिश भी पूरी कर दी. अब अगले जन्म में हमारी मुलाकात होगी.’’

शाकेब ने उस के बाद दूसरे कमरों में बेसब्री से इंतजार कर रहे अपने भाई, भाभियों और पिता को बुलाया. इस के बाद उन्होंने मिल कर एकता की गला दबा कर हत्या कर दी. चूंकि पूरी साजिश पहले ही तैयार कर ली गई थी. एकता की लाश को भी ठिकाने लगाना था. इस काम के लिए शाकेब ने अपने ही गांव में रहने वाले एक कम उम्र के लड़के अयान को भी अपने साथ मिला लिया था. अयान कुछ दिनों से शाकेब के साथ मिल कर तंत्रमंत्र का काम सीख रहा था. शाकेब ने उसे 20 हजार रुपए भी देने का वायदा किया. एकता की हत्या करने के बाद शाकेब ने अपने भाई, पिता और अयान के साथ मिल कर ईद पर दी जाने वाली बलि की पहले बलकटी से एकता की गरदन काट कर उसे धड़ से अलग किया. उस के बाद दोनों हाथों को कंधे से काट कर अलग किया.

दरअसल सिर और दोनों हाथ काटने की खास वजह थी. शाकेब को डर था कि अगर कल को किसी वजह से एकता का शव बरामद भी हो जाए तो उस की पहचान न हो सके. क्योंकि उस के हाथ पर उस का अपना नाम गुदा हुआ था और दूसरे पर उस ने अमन का नाम गुदवाया हुआ था. इसीलिए शाकेब ने उस के दोनों हाथ भी धड़ से अलग कर दिए थे. एकता की हत्या के बाद उस के शरीर के चारों टुकड़ों को 4 अलगअलग बोरियों में भर कर उसी रात शाकेब अपने भाई व दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर लाद कर उन्हें ठिकाने लगाने के लिए ले गए.

सब से पहले लोइया गांव में ही ईश्वर पंडित के खेत में गड्ढा खोद कर एकता के धड़ वाले हिस्से को दफना दिया गया. शव जल्द से गल जाए, इस के लिए शाकेब ने शव के ऊपर 5 किलो नमक डाल दिया और ऊपर से मिट्टी डाल दी. धड़ को ठिकाने लगाने के बाद शाकेब ने भाई व दोस्त के साथ मिल कर एकता के सिर व दोनों कटे हुए हाथों को बोरी समेत गांव के आसपास के कीचड़ भरे तालाबों के किनारे दफना दिया. अगले दिन शाकेब के पूरे परिवार ने धूमधाम से ईद मनाई. उस दिन 5 जून, 2019 थी. ईद मनाने के कुछ दिन बाद ही शाकेब फिर से करनाल में आ कर अपने दोस्तों के साथ तंत्रमंत्र के काम में लग गया.

लेकिन इस दौरान कहीं न कहीं उस के मन में एक डर भी बना रहा. वह जानता था कि एकता ने अपने परिवार को उस के बारे में बता रखा है और यह भी बता दिया है कि उस ने अमन से शादी कर ली है. इसलिए उस ने एकता के मोबाइल का सिम निकाल कर उस के वाट्सऐप तथा फेसबुक को खुद ही अपडेट करने का काम शुरू कर दिया. ताकि उस के परिवार को लगे कि एकता ठीक है. शाकेब अमन बन कर एकता के वाट्सऐप तथा फेसबुक की गैलरी में पड़ी प्रोफाइल फोटो भी चेंज करता रहता था, जिस से एकता के परिवार को लगता कि वह खुश है. कभीकभी एकता की मां उसे मैसेज करती थी, जिस का वह चैटिंग के जरिए तो एकता बन कर जवाब देता मगर जब वह उस से फोन पर बात करने के लिए कहती तो वह एकता बन कर कह देता कि सौरी मम्मी, मैं फोन पर बात नहीं करूंगी.

इधर कुछ दिन बाद 13 जून को कुत्तों ने ईश्वर पंडित के खेत में उस जगह को खोद दिया, जहां एकता की लाश को दबाया गया था. कुत्ता शव के एक हिस्से को मुंह में दबा कर जा रहा था तो गांव वालों पर ये भेद खुल गया और मामला पुलिस तक पहुंच गया. सर्विलांस टीम ने खोला केस चूंकि पुलिस को एकता की लाश का केवल धड़ मिला था, इसलिए पुलिस के सामने सब से बडी चुनौती थी कि शव की शिनाख्त कैसे की जाए. इसलिए एसएसपी अजय साहनी ने अपनी सर्विलांस टीम को जांच के काम में लगा दिया. ये टीम एसएसपी के कैंप औफिस में उन्हीं की निगरानी में काम करती है और छोटी से छोटी जानकारी के बारे में एसएसपी को ही रिपोर्ट करती है.

सर्विलांस टीम ने जब अपना काम शुरू किया तो उसे लोइया गांव या आसपास के इलाके में किसी भी महिला अथवा युवती के लापता होने की जानकारी नहीं मिली. अलबत्ता यह जरूर पता चला कि लोइया गांव के ज्यादातर नौजवान पंजाब व हरियाणा के अलगअलग स्थानों पर तंत्रमंत्र झाड़फूंक और टोनेटोटके, वशीकरण का काम करते हैं. एसएसपी के निर्देश पर सर्विलांस टीम ने एक साथ 2 तरह से विवेचना के काम को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया. टीम ने सब से पहले लोइया गांव से 13 जून से एक महीने पहले तक के उन तमाम फोन नंबरों का डं डाटा एकत्र किया जो उस वक्त वहां सक्रिय थे. सर्विलांस टीम ने पंडित ईश्वर चंद के खेत के आसपास से मिले मोबाइल फोनों के डंप डाटा की जांच शुरू करनी शुरू कर दी जो एक थका देने वाली प्रक्रिया थी.

इसी के साथ सर्विलांस टीम ने डिस्ट्रिक्ट क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो और स्टेट क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो में दर्ज लापता युवतियों के बारे में सूचना एकत्र करनी शुरू की. लेकिन ब्यूरो से मिले कोई तथ्य शव से मेल नहीं खा रहे थे. इस के बाद पुलिस ने यह पता लगाना शुरू किया कि इस गांव के कौनकौन से लोग दूसरे राज्यों में काम करते हैं. क्योंकि अगर मेरठ या आसपास के इलाकों की मृतक महिला होती तो अब तक उस के परिजन पुलिस से संपर्क कर चुके होते. पुलिस ने जब इस ऐंगल पर पड़ताल शुरू की तो पता चला कि करनाल और लुधियाना भी ऐसे शहर हैं, जहां इस गांव के युवक तंत्रमंत्र और वशीकरण का काम करते हैं. पुलिस की पड़ताल जब लुधियाना तक पहुंची तो उन शहरों में महिलाओं की रिपोर्ट खंगाली गई.

आखिरकार, लुधियाना पहुंची मेरठ की सर्विलांस टीम के हाथ सफलता लग गई. पुलिस को पता चला कि लुधियाना के मोतीनगर इलाके में रहने वाली करीब 20 साल की एक युवती जिस का नाम एकता है, उस के परिवार वालों ने उस की मिसिंग रिपोर्ट दर्ज कराई है. युवती की मिसिंग रिपोर्ट के साथ उस का फोटो भी था और उस के परिजनों का पता व फोन नंबर भी थे. पुलिस ने परिजनों से जब संपर्क साधा तो उन्हें पता चला कि उन की बेटी एकता ने तो अमन नाम के एक लड़के से शादी कर ली है. परिजनों ने बताया कि उन की बेटी को कुछ नहीं हुआ है क्योंकि वह तो वाट्सऐप पर उन से चैटिंग करती रहती है और अपना स्टेटस भी चेंज करती रहती है.

हालांकि पुलिस निराश जरूर हो गई थी लेकिन फिर भी उस ने एकता और उस के प्रेमी अमन का मोबाइन नंबर उस के परिवार वालों से हासिल कर लिया. मेरठ आने के बाद पुलिस ने इन दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकाल कर पड़ताल शुरू कर दी तो पता चला कि एकता का फोन तो कई महीनों से एक्टिव ही नहीं है. अलबत्ता उस के नंबर पर वाट्सऐप जरूर चल रहा है. जबकि अमन का जो नंबर है वह भी लुधियाना के ही किसी फरजी पते से लिया गया था. इसलिए पुलिस ने एक बार फिर लुधियाना का रुख किया.

पुलिस ने लुधियाना में उन दफ्तरों की खाक छाननी शुरू की, जहां एकता काम करती थी. पुलिस का एकता के आखिरी दफ्तर में काम करने वाली उस की एक खास सहेली प्रीति (परिवर्तित नाम) से पता चला कि एकता जब वहां काम करती थी तो वह मोतीनगर में ही दिलशाद नाम के एक तांत्रिक के यहां काम करने वाले अमन से मिलने जाती थी. तांत्रिक दिलशाद से मिली खास जानकारी अमन के बारे में यह सुराग मिलते ही सर्विलांस टीम की बांछें खिल गईं. बस फिर क्या था, पुलिस टीम ने दिलशाद को उठा लिया. दिलशाद से अमन के बारे में पूछा गया तो उस ने बता दिया कि उस के यहां अमन नाम का जो लड़का काम करता था, उस का असली नाम शाकेब था और वह अब उस के यहां काम नहीं करता. हां, दिलशाद ने इतना जरूर बताया कि अमन उर्फ शाकेब मेरठ के दौराला में लोइया गांव का रहने वाला है.

इतनी जानकारी मिलते ही पुलिस टीम उछल पडी. क्योंकि जिस कातिल को वह दुनिया भर में ढूंढ रही थी, वह तो लोइया गांव में ही मौजूद था. इस के बाद का काम बहुत आसान था. दिलशाद से जो जानकारी मिली थी, उस के आधार पर पुलिस ने लोइया गांव के शाकेब के बारे में जानकारी हासिल कर ली. 20 मई, 2020 को सर्विलांस टीम ने शाकेब को उस वक्त उस के घर से उठा लिया जब वह परिवार से मिलने के लिए गांव की तरफ जा रहा था. बाद में शाकेब ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एकता की हत्या में सहयोग करने वाले अन्य नामों का खुलासा कर दिया. जिस के बाद पुलिस ने उसी रात को दबिश दे कर शाकेब के पिता, भाई, दोनों भाभियों और उस के दोस्त अयान को गिरफ्तार कर लिया.

उसी रात पुलिस ने काल कर के एकता के घर वालों को भेज कर एकता की हत्या और उस के कातिलों के पकड़े जाने की पूरी जानकारी दे दी. घर वाले अगले ही दिन कांगड़ा से मेरठ पहुंच गए. पुलिस ने सभी आरोपियों को साथ में ले जा कर उन स्थानों की पहचान की, जहां एकता के शव के दूसरे अंग ठिकाने लगाए थे. पुलिस टीम ने उन जगहों की गहराई से छानबीन की, लेकिन एकता के शव के बाकी हिस्से कहीं नहीं मिले. दरअसल वक्त इतना बीत चुका था कि शरीर के बाकी हिस्सों का मिलना अब वैसे भी नामुमकिन था. एकता के शव की सच्चाई स्थापित करने के लिए पुलिस ने उस के परिवार के लोगों के ब्लड सैंपल लिए. पुलिस ने एकता के शव के रिजर्व रखे गए अंश से फोरैंसिक जांच के बाद डीएनए कराने की प्रक्रिया शुरू की है ताकि यह साबित किया जा सके कि लोइया गांव में जो शव मिला था वह एकता का ही था.

पुलिस ने सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद उन की निशानेदही पर एकता का मोबाइल फोन, शाकेब का मोबाइल फोन, एकता के शव के टुकड़े करने में इस्तेमाल बलकटी और गड्ढा खोदने में इस्तेमाल फावड़ा बरामद कर लिया है. आरोपियों से विस्तृत पूछताछ व जांच के बाद मामले की जांच कर रहे विवेचक ने एकता हत्याकांड के मुकदमे में सबूत मिटाने की धारा 201, 147,148 व 149 भी जोड़ दी. पुलिस ने सभी आरोपियों को मेरठ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. एक साल पुराने इस ब्लाइंड मर्डर केस की गुत्थी सुलझाने वाली सर्विलांस टीम को एसएसपी अजय साहनी ने 20 हजार रुपए का पुरस्कार दिया है.

—कथा पुलिस की जांच आरोपियों के बयान और पीडि़त परिवार से मिली जानकारी पर आधारित

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