रामपुर गांव के रहने वाले देवराज के पास गांव में 6 बीघा खेत हैं. वे अपने खेतों में धान, गेहूं, सरसों, आलू जैसी फसलों की खेती करते हैं. उन के पास अपने खुद के 5 मवेशी हैं जिन में एक गाय, एक भैंस और 2 बैल हैं. वे उन्हें अच्छे ढंग से रखते हैं. इस के अलावा वे अपने खेतों में भी उन से काम लेते हैं.
देवराज के 6 बीघा खेत 2-2 बीघा के टुकड़ों में गांव के 3 अलगअलग हिस्सों में बंटे हैं. पिछले एक साल से गांव में छुट्टा जानवरों का इतना आतंक है कि देवराज केवल 2 बीघा खेत में ही खेती कर पा रहे हैं. इस खेत में उन्होंने तारबंदी कर रखी है.
वे बताते हैं कि अब खेत की तारबंदी किए बिना फसल को बचाया नहीं जा सकता. तारबंदी कराने में पैसा खर्च होता है. यह भी एक बोझ की तरह है. बहुत सारे किसानों को छुट्टा जानवरों का आतंक सता रहा है.
झगड़े की वजह
छुट्टा जानवर केवल खेती को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं, बल्कि वे गांव के सामाजिक और सांप्रदायिक माहौल को भी खराब कर रहे हैं.
बुलंदशहर जैसी बड़ी घटनाएं तो सामने आ जाती हैं, पर ऐसे तमाम झगड़े भी होते हैं जो बड़ी घटना भले न बन सकें, पर गांव के लैवल पर तो बड़े बन जाते हैं.
किसी जानवर के मारे जाने पर शरारती तत्त्व उस को गौमांस कह कर प्रचारित करते हैं. लखनऊ की बक्शी का तालाब तहसील में गोमती नदी में
23 जानवर डूब कर मर गए तो लोगों ने उन्हें गाय बता कर सनसनी फैलाने की कोशिश की. लिहाजा, प्रशासन को हर जानवर का पोस्टमौर्टम करा कर यह बताना पड़ा कि वे गौवंश के नहीं थे.
कई बार गाय या दूसरे छुट्टा जानवर किसी दूसरे धर्म के किसान के खेत में चले जाते हैं तो आपस में झगड़ा होने लगता है. गांव के लोग अब अपने गांव से इन जानवरों को पकड़ कर दूसरे गांवों में छोड़ने का काम करने लगे हैं.
इस बात को ले कर गांव वालों के बीच आपस में झगड़े बढ़ गए हैं. गांव के लोग अब स्कूलों और पंचायत भवनों में इन जानवरों को कैद करने लगे हैं.
मोहनलालगंज विधानसभा के विधायक अंबरीष सिंह पुष्कर ने इस के खिलाफ आवाज उठाई और तहसील के ब्लौक भवन में ही ऐसे जानवरों को कैद कर अपना विरोध प्रदर्शन किया.
हादसे की वजह
छुट्टा जानवर केवल गांव में ही आतंक की वजह नहीं हैं, बल्कि शहरों में भी इन का आतंक कम नहीं है. ये सड़कों पर चलती गाडि़यों से टकरा जाते हैं.
अपनी भाभी को इलाज के लिए अस्पताल ले जा रहे बीघापुर के रामकुमार की मोटरसाइकिल एक गाय से टकरा गई, जिस से गिर कर भाभी घायल हुईं और खुद रामकुमार की मौत हो गई थी.
ऐक्सप्रैस हाईवे पर बाउंड्री वाल बनी होने के बाद भी ये हादसे हो जाते हैं. छुट्टा जानवरों की तादाद बढ़ने से ऐसे हादसे और भी ज्यादा बढ़ गए हैं.
खरीद फरोख्त हुई बंद
पहले जानवर किसान की पूंजी का काम करते थे. जब किसान को पैसों की जरूरत होती थी तो वे अपने कुछ जानवर बेच लेते थे.
बिकने वाले जानवरों में गाय, बैल, बकरी, भैंस और भैंसा अहम होते थे. पिछले कुछ सालों से जानवरों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मुश्किल भरा काम होने लगा है.
गौरक्षक ऐसे कारोबारियों को परेशान करने, जान से मारने और पैसा वसूलने में पीछे नहीं रहते हैं.
जानवरों की खरीदफरोख्त में ज्यादातर मुसलिम बिरादरी के ही लोग होते थे. ऐसे में उन के साथ झगड़ा बढ़ने लगा. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में ऐसे झगड़े बहुत बार देखने को मिले. नोएडा का अखलाक, राजस्थान का पहलू हत्याकांड, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की घटना इस के खास उदाहरण हैं.
इन घटनाओं का असर यह पड़ा कि गांव के आसपास लगने वाले जानवरों के बाजार खत्म होने लगे. अब किसी भी बाजार में जानवर बिकते नहीं दिखते हैं.
इस कारोबार में लगे फैजाबाद के बाशिंदे रफीक अहमद बताते हैं, ‘‘हमारे लिए जानवरों को बाहर से लाना बहुत खतरनाक हो चुका है. पुलिस भी हमारी मदद नहीं करती और ऐसे में हमें इस कारोबार को ही बंद करना पड़ गया.’’
गाय पर राजनीति
भारतीय जनता पार्टी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लगता है कि गाय के सहारे ही उन की राजनीति परवान चढ़ेगी. जिंदगी के आखिरी समय में गौदान के सहारे सारे पाप धो कर पुनर्जन्म के लिए तैयार होने की परंपरा पुरानी है. अब उत्तर प्रदेश सरकार गाय को ही केंद्र में रख कर चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है. गाय और दूसरे छुट्टा जानवरों को ले कर गांव और शहर में आतंक है.
जनता के इस आतंक को खत्म करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने संरक्षण केंद्र खोलने की शुरुआत की है, पर इस का भी कुछ खास असर नहीं दिख रहा है.
भारतीय जनता पार्टी आम लोकसभा चुनाव की तैयारी में ‘राम’ नहीं तो ‘गाय’ सही के मुद्दे पर आगे बढ़े रही है.
3 राज्यों की चुनावी हार ने यह साफ कर दिया है कि लोकसभा चुनाव में वहां भाजपा के लिए पूरे देश में 2014 जैसे हालात नहीं हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश पर भाजपा की उम्मीदों का बोझ बढ़ गया है.
भाजपा ने जब राम मंदिर पर अपने पैर वापस खींचे तो प्रदेश में हिंदुत्व को धार देने के लिए गौरक्षा और उस के संरक्षण को मुद्दा बनाया जाने लगा.
उत्तर प्रदेश की सरकार ने कांजी हाउस का नाम बदल कर गौ संरक्षण केंद्र रखने का फैसला किया है. सैस टैक्स लगा कर वसूली से गाय के संरक्षण पर खर्च किया जाएगा.
इस पर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती कहती हैं, ‘‘आबकारी और टोल टैक्स पर सैस लगाना भाजपा और आरएसएस की सोच है. अगर इस से गाय का संरक्षण मुमकिन है तो भाजपा की केंद्र सरकार को इसे राष्ट्रीय स्तर पर लगाना चाहिए.’’