#मी टू का कसता फंदा

शहरी औरतों ने कुछ हद तक बगावत का झंडा खड़ा कर दिया है. जिन मर्दों ने कभी उन से छेड़खानी की थी उन का नाम ले कर उन्हें कठघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया गया है. मुकदमे तो नहीं चल रहे पर इन औरतों ने हैसियत वाले मर्दों का नाजायज फायदा उठाने के लिए की गई भद्दी हरकतों का परदाफाश कर दिया है. भारत में आमतौर पर औरतें यह नहीं मान रहीं कि उन के साथ जबरन सैक्स किया गया था लेकिन अमेरिका और यूरोप में औरतों ने माना कि एक बार नहीं कईकई बार उन के साथ जबरन सैक्स किया गया ताकि उन्हें नौकरी या आगे बढ़ने के मौके मिलते रहें.

अपनी हैसियत का फायदा औरतों से उठाना जितना गांवों व कसबों में होता है, उतना कहीं नहीं. गुंडई तो एक अलग बात है जिस में लड़की या औरत को दबोच कर उस से जबरदस्ती की जाती है और लहूलुहान कर के छोड़ा जाता है. इस पर कभी मुकदमे हो जाते हैं पर आमतौर पर लाज के कारण मुंह छिपाना पड़ता है. बात हैसियत वालों की है जो जोरजबरदस्ती नहीं करते, लालच देते हैं या नुकसान पहुंचाने की धमकी देते हैं और लड़कियों को बदन सौंपने पर मजबूर करते हैं.

जिस से प्यार करते हो उसे कौन कब अपना बदन शादी के पहले या बाद में दे यह उस लड़की की मरजी है पर जहां यह सिर्फ नौकरी, ओहदा, काम बचाए रखने के लिए किया जाए वह हरगिज गलत है.

शहरी औरतों के साथ जो मीटू हो रहा है वह तो लंबी रस्सी का सिरा भर है. गांवकसबों की औरतों के साथ तो यह घरों, स्कूलों, अस्पतालों, कैंपों, आश्रमों, खेतों, गाडि़यों में जम कर होता है जिन में शिकार औरत होने के बावजूद अपने शिकारी के साथ घूमती रहती है क्योंकि उसे जो चाहिए वह केवल बदन दे कर टांगें खोल कर मिल सकता है.

गांवों में अगर बात खुल जाए तो फैलते देर नहीं लगती इसलिए लड़कियां जीतेजी मुंह नहीं खोलतीं. मर्दों की पीढ़ी दर पीढ़ी औरतों को मांगने की आदत बन चुकी है. शहरी प्त मी टू का उफान गांवों और कसबों की जरूरत है क्योंकि इस की शिकार औरतें जिंदगीभर घुटन में रहती हैं. उन्हें हर पल डर रहता है कि कहीं राज खुल न जाए. कभीकभार मर्द को शक हो भी जाता है तो वह मारपीट पर उतर आता है और खुद दूसरी के पास जाने की धमकी दे कर सताता है.

प्त मी टू, यानी मैं भी शिकार रही हूं, गांवगांव, कसबेकसबे में उजागर होना चाहिए. हैसियत का फायदा कोई आदमी न उठा पाए. बदन प्यार में मिले, यह दूसरी बात है चाहे किसी की बीवी का हो या किसी और का पर फोकट में नहीं, बस दोनों की इच्छा हो. न जबरदस्ती हो, न ऐसी नौबत हो कि औरत को लगे कि बदन देने से ही उस का काम बनेगा.

‘मीटू’: ढीली पैंटों का टूटा नाड़ा

कहने को तो ‘मी टू’ मामूली से 2 शब्द हैं, लेकिन इन्हीं 2 शब्दों के जरीए औरतों ने अपने साथ हुए यौन शोषण की कहानी बेबाकी के साथ सुना दी है.

इस मूवमैंट का मकसद है कि हर वह शख्स जो कभी यौन उत्पीड़न या छेड़खानी का शिकार हुआ है, वह ‘मी टू’ के साथ अपनी स्टोरी शेयर करे. लाखों लोग इस कैंपेन का हिस्सा बन रहे हैं और उन्होंने आगे बढ़ कर सोशल मीडिया पर आपबीती सुनाई है.

पिछले कई सालों से फिल्मों से गायब रही ‘मिस इंडिया’ रह चुकी फिल्म हीरोइन तनुश्री दत्ता ने फिल्म कलाकार नाना पाटेकर पर कई आरोप लगा दिए. उन्होंने बताया कि किस तरह 10 साल पहले एक फिल्म की शूटिंग के दौरान नाना पाटेकर ने उन्हें गलत तरीके से छुआ था.

इस खुलासे ने तो मानो जैसे पीड़ित औरतों को हिम्मत देने का काम किया क्योंकि बहुत सी औरतों या लड़कियों ने ऐसे छिपे आरोपियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर अब धड़ल्ले से लिखना शुरू कर दिया है.

बौलीवुड हो या राजनीति, मीडिया हो या आम आदमी ‘मी टू’ मुहिम की लिस्ट में रोजाना कई लोगों के नाम जुड़ रहे हैं. अब तक 100 से भी ज्यादा मामले सोशल मीडिया पर आ चुके हैं. इन मामलों में साजिद खान, एमजे अकबर, सुभाष घई, नाना पाटेकर, चेतन भगत, आलोकनाथ, कैलाश खेर जैसे कई बड़े नाम शामिल हैं.

मीटू’ के साथ निकले बोल

अगर हम सोशल मीडिया पर नजर डालें तो ज्यादातर आरोप कई सालों बाद लगाए जा रहे हैं. सोचने वाली बात यह है कि अगर किसी लड़की या औरत के साथ छेड़खानी हुई थी तो उन्होंने उस वक्त शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई थी? उन में अचानक जो यह हिम्मत देखने को मिल रही है, क्या वह दिखावा तो नहीं है? ऐसे कई तरह के सवाल लोगों के जेहन में घूम रहे हैं.

हमारे देश का कानून सब के लिए बराबर है लेकिन बात जब औरतों की इज्जत की आती है तो बराबरी नाम का यह नकाब कहीं गिरा हुआ नजर आता है.

जी हां, हमारे देश में रेप के ऐसे कई अनगिनत मामले हैं जिन्हें आज तक दर्ज भी नहीं किया गया है. पीडि़त औरतों को मना किया जाता है, धमकियां दी जाती हैं. वे हिम्मत भी करती हैं तो उन्हें रोक दिया जाता है.

लेकिन आज ‘मी टू’ मुहिम ने देशभर में औरतों को अपने हक की लड़ाई को जीतने की प्रेरणा दी है.

प्रिया रमानी, विंता नंदा, फ्लोरा सैनी, नताशा हेमरजानी ये कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने सोशल मीडिया पर ‘मी टू’ का इस्तेमाल कर के अपने साथ हुए यौन शोषण को बखूबी बिना किसी डर के लोगों तक पहुंचाया है.

‘मी टू’ मुहिम का ही असर है कि अब तक बौलीवुड के कई नामचीन लोग नप चुके हैं. नाना पाटेकर को फिल्म ‘हाउसफुल 4’ से निकाल दिया गया. यही हश्र इस फिल्म के डायरैक्टर साजिद खान का हुआ. गायक कैलाश खेर को दीवाली के एक प्रोग्राम में पहले न्योता दिया गया, फिर मना कर दिया. म्यूजिक डायरैक्टर अनु मलिक को चल रहे एक टैलीविजन शो से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

इस के बाद भी मर्दों द्वारा अपने ऊपर जुल्म ढहाने के औरतों के किस्सों में कोई कमी नहीं आई है. अब तो डौली बिंद्रा ने राधे मां को ही कठघरे में खड़ा कर दिया कि कैसे राधे मां ने चंडीगढ़ में एक आला पुलिस अफसर के आवास पर उन का यौन शोषण कराया.

डौली बिंद्रा ने इस बारे में एक ट्वीट करते हुए बताया कि साल 2015 में राधे मां और उन के भक्तों ने उन्हें चंडीगढ़ में पंजाब पुलिस के एक आला अफसर के आवास पर यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया था.

इसी तरह बौलीवुड की हीरोइन शमा सिकंदर ने बताया, ‘‘अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में जब मैं महज 14 साल की थी, तब एक डायरैक्टर ने मेरी जांघ पर हाथ रखा था. मैं ने उसी समय मना किया और उन्हें दूर कर दिया.

‘‘तो उस ने मुझ से कहा, ‘तुम्हें क्या लगता है, तुम स्टार बन जाओगी. यहां कोई नहीं छोड़ेगा तुम्हें. अगर कोई डायरैक्टर नहीं, तो कोई ऐक्टर या प्रोड्यूसर तुम्हारा शोषण करेगा. तुम उस के बिना यहां नहीं बढ़ सकतीं.’’’

‘मी टू’ की यह आग उत्तर भारत की फिल्म इंडस्टी से दक्षिण भारत के टौलीवुड की ओर बढ़ चली है. वहां की एक कन्नड़ हीरोइन श्रुति हरिहरन ने अपने फेसबुक पोस्ट पर ‘मी टू’ मुहिम की तारीफ करते हुए साल 2016 में हीरो अर्जुन सरजा द्वारा गलत तरीके और गैरपेशेवर हरकत करने का आरोप लगाया है.

हालांकि इस बात पर अर्जुन नाराज हो गए और उन्होंने श्रुति हरिहरन पर 5 करोड़ रुपए का मानहानि का दावा ठोंक दिया.

इस मुद्दे पर दिल्ली प्रदेश महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष डाक्टर साई अनामिका का कहना है, ‘‘मैं औरतों की इस हिम्मत को सलाम करती हूं. हमारे समाज में औरतों को खिलौना समझा जाता है लेकिन खुशी की बात यह है कि यह खिलौना अब टूटने वालों में से नहीं है.’’

डाक्टर साई अनामिका ने एमजे अकबर पर निशाना साधते हुए कहा कि इस आंदोलन को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. यह औरतों के हक की लड़ाई है. इसे आंदोलन के नजरिए से ही देखा जाना चाहिए.

हमारे समाज में जब किसी लड़की या औरत के साथ कुछ गलत होता है तो उसे चुप रहने को बोला जाता है. उस वक्त न समाज साथ देता है, न कानून. ऐसे में एक पीडि़ता खुद को अकेला, बेबस, कमजोर समझने लगती है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि वह अपने साथ हुए अपराध को भूल जाए. वह रास्ता ढूंढ़ती है इंसाफ पाने का और अब वह रास्ता उसे मिल गया है. ‘मी टू’ मुहिम की वजह से अब न चाहते हुए भी हमारे समाज, कानून और मीडिया को इन मुद्दों पर नजर डालनी ही पड़ेगी.

एम्स की स्टूडैंट स्वाति पुरोहित का कहना है, ‘‘मैडिकल स्टूडैंट्स को अकसर ऐसे हालात का सामना करना पड़ता है जब वे यौन शोषण का शिकार तो हो जाती हैं लेकिन अपने साथ हुए इस अत्याचार को कैंपस की चारदीवारी में ही बंद कर देती हैं. अगर शिकायत दर्ज कराई गई तो कैरियर चौपट हो सकता है. यही वजह है कि ऐसी तमाम लड़कियां अपने साथ हुए शोषण को अपने अंदर ही दफन कर लेती हैं. लेकिन ‘मी टू’ द्वारा हम अपनी बात कानून व समाज तक आसानी से पहुंचा सकती हैं.’’

क्या बदलाव आएगा

इसे डर कहें या बदलाव, इस से औरतों को सुकून तो मिल ही रहा है. ‘मी टू’ मुहिम ने मर्दों को डर के साए में रहना तो सिखा ही दिया है. कल तक जो लोग औरतों के करीब आने का जुगाड़ ढूंढ़ते थे, ‘मी टू’ ने उस जुगाड़ का ही खात्मा कर दिया है.

मैट्रो ट्रेन में अकसर भीड़ होती है और इस भीड़ में कुछ मर्दों की पैंट ढीली हो ही जाती है लेकिन अब इन ढीली पैंट वाले मर्दों ने भी ऐक्सट्रा नाड़ा खरीद लिया है. अब वे चार कदम दूरी बना कर चलना पसंद करते हैं.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर साधना सिंह का कहना है, ‘‘पहले हमारे समाज में लड़कियां बोलने की हिम्मत नहीं रखती थीं. अगर इतने सालों बाद भी उन में हिम्मत देखने को मिल रही है तो सिर्फ ‘मी टू’ मुहिम की वजह से. जिन लोगों का कहना है कि इतने सालों बाद ये इलजाम क्यों? उन के लिए मैं कहना चाहूंगी कि औरतों को हमेशा एक उम्मीद और एक सही दिशा की जरूरत होती है और आज वह दिशा उन्हें ‘मी टू’ के रूप में मिल गई है.

‘‘किसी पर आरोप लगाने के लिए बहुत हिम्मत की जरूरत होती है. लड़कियां सिर्फ कैरियर बनाने की वजह से ही चुप नहीं रहतीं. इस के अलावा भी कई वजहें होती हैं जो उन्हें चुप रहने को मजबूर कर देती हैं.

‘‘जहां तक औरतों के झूठ बोलने की बात है तो आलोकनाथ के बारे में तो सब जानते हैं कि नशे की हालत में वे इनसान भी नहीं रहते. ऐसे में उन पर लगाया गया इलजाम झूठ कैसे हो सकता है?

‘‘मेरा मानना है कि 100 में से 98 फीसदी औरतें झूठ नहीं बोल सकतीं. ‘मी टू’ मुहिम एक अच्छी पहल है. इसे एक आंदोलन के रूप में देखा जाना चाहिए.’’

हमारे देश में बलात्कार जैसे मुद्दे हर रोज पुलिस चौकी में आते हैं लेकिन इन को बाहर से ही रफादफा कर दिया जाता है. कानून पूंजीवादियों का गुलाम बनता जा रहा है और इस गुलामी की सजा पीडि़तों को सहनी पड़ रही है.

‘मी टू’ मुहिम का आने वाले दिनों में क्या रूप देखने को मिलेगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, पर इतना तो पक्का है कि जो लोग औरतों और लड़कियों को वर्कप्लेस पर अपनी बपौती समझते थे, वे अब थोड़ा डर कर रहेंगे.

मी टू’ पर कौन क्या बोला

‘मी टू’ अभियान महिलाओं का समर्थन करता है लेकिन उन्हें इस का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए. उन्हें इस का सही माने में इस्तेमाल करना चाहिए.

रजनीकांत, फिल्म कलाकार.

मैं ‘मी टू’ अभियान के तहत यौन उत्पीड़न की अपनी कहानियों को साझा करने वाली महिलाओं के साथ पूरी एकजुटता के साथ खड़ा हूं क्योंकि मैं उन की इस पीड़ा को बखूबी समझता हूं. मैं ने कई साल पहले उत्पीड़न का सामना किया था, लेकिन वह यौन प्राकृतिक नहीं था.

सैफ अली खान, फिल्म कलाकार.

महिलाओं के सम्मान से खिलवाड़ करने वालों को सबक तो सिखाना ही चाहिए. काम पर जाने वाली महिलाओं को उन के काम की जगह पर पूरा सम्मान मिलना ही चाहिए. अगर कोई इस का उल्लंघन करता है या उस के सम्मान में बाधा पहुंचाता है तो उसे सबक सिखाना चाहिए.

लता मंगेशकर, गायिका.

महिलाओं के साथ इज्जत और गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए. मुझे खुशी है कि ऐसा नहीं करने वालों के लिए अब जगह खत्म हो रही है.

राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष.

आखिर क्या है ‘मी टू’?

‘मी टू’ एक ऐसी मारक मुहिम है, जिस के जरीए औरतें और लड़कियां वर्कप्लेस पर अपने साथ हुए यौन शोषण का सोशल मीडिया पर खुलासा कर रही हैं. इस में उन के द्वारा बताया जा रहा है कि कैसे उन को मर्दों से असुरक्षा महसूस हुई या उन्हें बेइज्जत होना पड़ा या फिर शारीरिक या मानसिक तौर पर प्रताडि़त होना पड़ा.

दरअसल, ‘मी टू’ मुहिम की शुरुआत हौलीवुड से हुई है. साल 2006 में अमेरिकी सिविल राइट्स ऐक्टिविस्ट तराना बर्क ने पहली बार इस की शुरुआत की थी. उन के खुलासे के 11 साल बाद 2017 में यह सोशल मीडिया में वायरल हुआ.

अमेरिकी अखबार ‘न्ययौर्क टाइम्स’ ने हौलीवुड के दिग्गज प्रोड्यूसर हार्वी वाइंस्टीन को ले कर खुलासे किए थे. इस के बाद उन्हें कंपनी छोड़नी पड़ी थी. एक तरह से उन का कैरियर ही बरबाद हो गया. इस के बाद से ही यह सिलसिला शुरू हो गया था.

भारत में इस की शुरुआत तनुश्री दत्ता द्वारा नाना पाटेकर पर लगाए गए यौन शोषण के आरोप से हुई और धीरेधीरे यह बात इस कदर बढ़ गई कि इस ने ‘मी टू’ मुहिम का रूप ले लिया. इस के बाद साजिद खान, विकास बहल, रजत कपूर, अनु मलिक, आलोकनाथ, चेतन भगत, अभिजीत भट्टाचार्य, कैलाश खेर और मोदी सरकार में मंत्री एमजे अकबर पर ‘मी टू’ द्वारा कई औरतों ने यौन शोषण का आरोप लगाया.

राय आप की: क्या ‘मी टू’ मुहिम से औरतों को अपनी बात बेबाकी से रखने की हिम्मत मिली है? अपनी राय मोबाइल फोन नंबर 08826099608 पर whatsapp करें और सरस सलिल पाठक ग्रुप में शामिल हों.

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