मल्लिकार्जुन खड़गे : ‘इंडिया’ का कितना मजबूत दलित चेहरा

वोट के लिहाज से देखें, तो ओबीसी के बाद सब से ज्यादा तादाद दलित वोटर की है. यही वजह है कि ‘इंडिया’ गठबंधन लगातार इस कोशिश में था कि बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती को गठबंधन का हिस्सा बनाया जा सके.

इस पर कांग्रेस में 2 विचार थे. राहुल गांधी चाहते थे कि अखिलेश यादव ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा रहें, वहीं प्रियंका गांधी और उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेता चाहते थे कि मायावती को ‘इंडिया’ गठबंधन से जोड़ा जाए.

‘इंडिया’ गठबंधन की दिल्ली में मीटिंग के बाद कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के अपने नेताओं की मीटिंग भी बुलाई थी. इस मीटिंग में कांग्रेस प्रदेश में अपनी जमीनी हालत देखना चाहती थी. प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने 2 बातें प्रमुख रूप से कहीं. पहली यह कि गांधी परिवार के तीनों सदस्य उत्तर प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ें. दूसरी बात यह कि अखिलेश यादव के मुकाबले मायावती से गठबंधन फायदेमंद रहेगा.

मायावती का अड़ियल रुख

इस मीटिंग से कांग्रेस को लगा कि उत्तर प्रदेश में वह बेहद कमजोर है. बिना गांधी परिवार और गठबंधन के वह आगे नहीं बढ़ना चाहती. मीटिंग में प्रदेश कांग्रेस के एक भी नेता ने यह नहीं कहा कि वह मुख्यमंत्री बनने के लिए मेहनत कर सकता है.

कांग्रेस ने जब उत्तर प्रदेश की तुलना तेलंगाना से कर के देखी, तो लगा कि कांग्रेस वहां भी सत्ता से बाहर थी. इस के बाद भी वहां कांग्रेस के पास 6 नेता ऐसे थे, जो मुख्यमंत्री बनने के लिए मेहनत कर रहे थे.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अपनी कमजोरी का पता चल गया. मायावती को ले कर दुविधा यह है कि वे खुल कर बात नहीं करतीं. प्रियंका गांधी उन से मिल कर ‘इंडिया’ गठबंधन में उन्हें लाना चाहती थीं, लेकिन मायावती की तरफ से कोई सिगनल नहीं मिला. चुनाव करीब आने और 3 राज्यों में हार के बाद कांग्रेस दबाव में थी. ऐसे में उस ने यह फैसला कर लिया कि अब मायावती वाला चैप्टर बंद कर दिया जाए.

डर क्या है

अब चुनाव के पहले मायावती ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगी. मायावती ने अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर के यह जरूर कहा कि ‘राजनीति में संबंध ऐसे रखने चाहिए कि जरूरत पड़ने पर सहयोग लिया जा सके’.

इस का मतलब यह लगाया जा रहा है कि मायावती चुनाव के बाद सीटों के नंबर के मुताबिक अपना साथी चुन सकती हैं.

मायावती के इस ऊहापोह की वजह समाजवादी पार्टी है. 2 जून, 1995 को उत्तर प्रदेश के स्टेट गैस्ट हाउस कांड की खौफनाक यादें अभी भी उन के मन पर छाई हैं. सामाजिक स्तर पर भी ओबीसी और एससी वोटर के बीच उसी तरह की हालत है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव और मायावती के बीच सम?ाता हुआ था, पर उस का अंत भी बुरा ही रहा.

मायावती खुद को समाजवादी पार्टी से कमतर नहीं आंकतीं. साल 2019 में जब सपाबसपा गठबंधन हुआ था, तो मायावती ने बसपा के लिए सपा से एक सीट ज्यादा ली थी. ‘इंडिया’ गठबंधन में मायावती के हिस्से सीटें कम आतीं. वे अखिलेश यादव से कमजोर दिखना नहीं चाहतीं. इस वजह से वे ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा नहीं बनीं.

चुनाव बाद के लिए मायावती ने हर समझेते के रास्ते खुले रखे हैं. कहीं न कहीं प्रधानमंत्री पद की इच्छा मायावती के भी मन में है. लिहाजा, मायावती चुनाव के पहले अपने पत्ते नहीं खोलना चाहतीं.

मल्लिकार्जुन कितने मजबूत

मायावती के विकल्प के रूप में ‘इंडिया’ गठबंधन ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम पीएम फेस के रूप में आगे किया है. यह फैसला जिस रणनीति के तहत हुआ, उस पर मेहनत करना ‘इंडिया’ गठबंधन की जिम्मेदारी है. केवल दलित होने के चलते नाम घोषित होने से दलित वोट नहीं मिलने वाले. पंजाब विधानसभा का चुनाव इस का उदाहरण है.

पंजाब में विधानसभा चुनाव के पहले चरनजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने सोचा था कि दलित वोट उन को मिल जाएंगे. कांग्रेस ने इस के लिए मेहनत नहीं की. लिहाजा, पंजाब में कांग्रेस चुनाव हार गई.

मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे करने से दलित वोट नहीं मिलेंगे. इस के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन को पूरी ईमानदारी के साथ काम करना होगा. केवल कांग्रेस के चाहने से भी यह नहीं होगा.

यह बात सच है कि कांग्रेस मल्लिकार्जुन खड़गे की बहुत इज्जत करती है. कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके और सांसद राहुल गांधी हमेशा खुद मल्लिकार्जुन खड़गे की कार में उन के पीछे बैठते हैं, जिस से पार्टी और लोगों को यह संदेश जाए कि खड़गे ‘डमी कैंडिडेट’ नहीं हैं. पार्टी चलाने में वे आजाद हैं.

दिक्कत यह है कि देश के तमाम राज्यों में कांग्रेस मजबूत नहीं है. ऐसे में वह अपने सहयोगी दलों पर निर्भर है. साल 2024 के आम चुनाव में अगर ‘इंडिया’ गठबंधन सरकार बनाने की हालत में आता भी है, तो राहुल गांधी पीएम नहीं बनेंगे. राहुल गांधी यह सोच कर चल रहे हैं कि अभी उन की उम्र जिस दौर में है, वहां उन के पास पीएम बनने के लिए 10 साल का समय है.

ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे ही पीएम बनेंगे, यह तय है. ‘इंडिया’ गठबंधन तभी सरकार बना पाएगा, जब कांग्रेस के पास अपने 120 से 150 के बीच सांसद आएं. ऐेसे में मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम का चेहरा बनाने से काम नहीं चलने वाला. उस के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन और उस में शामिल हर दल को पूरी ईमानदारी से यह सोच कर मेहनत करनी होगी कि मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री बनाना है.

सोशल मीडिया : भरम फैलाती खबरों का दलदल

Social News in Hindi: एक नया इसथान (स्थान) गांव-गढ़ौत, तहसील-मैहर, जिला-सतना में नया ऊदगम (उद्गम). 13 वर्ष की कन्या से जो भी अर्जी करता है उस की मनोकामना पूरी होती है. 21 लोगों को फैलाओ आप की भी मनोकामना पूरी होगी. प्रेम से बोलो जय माता दी. ह्वाट्सऐप पर यह मैसेज 29 जुलाई, 2018 की देर रात भोपाल के एक ग्रुप में किसी ने डाला था जिस के साथ एक लड़की की तसवीर भी थी जिस में उस के बाल बिखरे हुए थे और वह गले में फूलों की माला पहने हुए थी. लड़की के माथे पर एक लंबा सा टीका भी लगा था. लड़की के पीछे किसी देवीदेवता की फोटो थी जिस से लग रहा था मानो वह कोई सिद्ध है.

इस मैसेज में मनोकामना पूरी करने के लिए लोगों को गढ़ौत गांव नहीं बुलाया गया था बल्कि मैसेज फौरवर्ड करने की सलाह दी गई थी जिसे कई लोगों ने किया भी और देखते ही देखते यह चमत्कारिक मैसेज कई ह्वाट्सऐप ग्रुपों में फैल गया.

यह और इस तरह के कई ऊटपटांग मैसेज आज के दौर की हकीकत बयान करते हैं कि लोग सोशल मीडिया की लत के चलते दिमाग से इतने पैदल हुए जा रहे हैं कि अपना भलाबुरा और सहीगलत सोच ही नहीं पाते हैं.

बात जहां तक किसी लड़की से अर्जी लगाने पर मनोकामना पूरी होने की थी तो यह लोगों को धर्म के नाम पर ठगने और बेवकूफ बनाने वाली बात थी जिस का मकसद इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का था.

विलाशक जमाना सोशल मीडिया का है लेकिन अफसोस की बात यह है कि यही सोशल मीडिया झूठी और भ्रामक खबरों का दलदल बनता जा रहा है जिस में रोजाना करोड़ों लोग धंसते जा रहे हैं.

एक और बानगी

ब्रेकिंग न्यूज- मुख्य चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित राजस्थान में विधानसभा चुनावों कि तारिखों का किया ऐलान. 15 दिसंबर से होगा पहले चरण का मतदान. कुल 4 चरणों में होगा मतदान.

15 दिसंबर, 5 जनवरी, 7 जनवरी, 20 जनवरी

4 चरणों में होंगे विधानसभा चुनाव

जून के महीने से वायरल हो रहे इस मैसेज का कोई सिरपैर नहीं है. जिस ने भी इसे बनाया होगा उसे ‘कि’ और ‘की’ की मात्रा लगाने की भी तमीज नहीं है. तारीख शब्द में भी ‘रि’ की मात्रा गलत है. यह मैसेज भी झूठा था, यह 4 महीनों में हर किसी को समझ आ चुका है लेकिन इस के बाद भी लोग इसे वायरल किए जा रहे हैं तो इस के पीछे छिपी मंशा सिर्फ लोगों को बेवकूफ बना कर मजा लूटने की ही है.

चुनाव वाले मैसेज और 13 साल की लड़की वाले मैसेज में फर्क सिर्फ इतना है कि चुनाव वाला मैसेज वायरल करने से सीधे किसी को कोई नुकसान नहीं हो रहा है लेकिन लड़की वाले मैसेज का मकसद दोहरा है. पहला लुत्फ उठाना और दूसरा धार्मिक अंधविश्वास को फैलाना.

दहशत फैलाते मैसेज

ऊपर के दोनों मैसेज जिन्हें खबर की शक्ल दे कर वायरल किया गया, वे बेमकसद नहीं थे. एक में खुदगर्जी भी थी, पर दूसरे में नहीं थी. यह आदमी की फितरत है कि उसे झूठी खबरें फैलाने में एक खास किस्म का सुख मिलता है फिर इस से किस का कैसा नुकसान होता है, यह झूठी खबरें फैलाने वाले नहीं सोचते.

लेकिन चिंता की बात वे खबरें भी हैं जो इस तरह बनाई और वायरल की जाती हैं कि जिन में 2 धर्मों, जातियों या संप्रदायों के बीच कटुता बढ़े. इस तरह की खबरें जाहिर हैं एक खास मकसद से एक खास तबके के लोग गढ़ते हैं जिन से दहशत फैलती है और माहौल भी बिगड़ता है.

एक वायरल मैसज में अकसर बताया जाता है कि रतलाम से राजस्थान होते हुए गायों से भरा एक ट्रक मुंबई या पाकिस्तान ले जाया जा रहा है. ट्रक ले जाने वाले मुसलमान हैं जो इन गायों को काटेंगे. यह हिंदू धर्म के  खिलाफ है. लिहाजा, गाय को माता मानने वाले लोग इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा इतना फौरवर्ड करें कि बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचे.

मैसेज के साथ गायों से भरा एक ट्रक भी अटैच होता है. मैसेज फैलाने के लिए मां की कसम भी दी जाती है.

ऐसे भड़काऊ मैसेज न केवल हिंदूमुसलमानों के बीच दरार डाल कर हिंसा फैलाते हैं बल्कि दहशत का माहौल भी बनाते हैं. कट्टरवादी बिना किसी जांचपड़ताल किए इन्हें सच मान लेते हैं और मैसेज आगे खिसका देते हैं.

गौहत्या और गौतस्करी को ले कर मौब लिंचिंग अब बेहद आम है जिस में अकसर मरने वाला मुसलमान या दलित ही होता है.

इस बहस से परे कोई यह नहीं सोचता कि बड़े पैमाने पर साजिश रची जा रही है और आम लोगों को धर्म और देवीदेवताओं की आड़ ले कर उकसाया जा रहा है. हमारी माता गाय को कोई कत्लखाने ले जाए यह किसी को गवारा नहीं होता. ये वही लोग होते हैं जिन्हें अपने महल्ले की गाय से कोई लगाव या उस के लिए श्रद्धा नहीं होती पर बात धर्म की आती है तो इन का खून खौल उठता है.

धर्म से इतर इस तरह की झूठी खबरों से कैसे लोगों को डराया जाता है इसे समझने के लिए 2 मैसेज देखना काफी है जो हर उस शख्स ने पढ़े होंगे जो सोशल मीडिया पर हैं.

काकड़ीघाट, अल्मोड़ा से भिखारी की शक्ल में 500 लोगों को मार कर कलेजे और किडनी निकाल रहे हैं. 6-7 लोग पकड़े भी गए हैं. जो पकड़े गए हैं उन्होंने कड़ी पूछताछ के बाद 500 लोगों को मारने की बात कबूली है. कृपया सावधान रहें. 15 से 20 लोगों की टोली आई है. उन के साथ बच्चे और लेडीज भी हैं और उन के पास हथियार भी हैं. आधी रात को वे किसी भी वक्त आते हैं और बच्चों के रोने की आवाज आती है.

यह मैसेज खबर जैसा लगता है इसलिए लोग दहशत में आ जाते हैं और यह नहीं सोच पाते कि 500 लोगों की हत्या हो गई और न्यूज चैनल, अखबार और पत्रिकाएं हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. फिर यह सोचने की उम्मीद तो लोगों से करनी ही नहीं चाहिए कि किसी को हथियार से मार कर उस की किडनी या कलेजा निकाल भी लिया जाए तो वह किसी काम का नहीं रह जाता.

ऐसा ही एक और मैसेज देखें. ‘अलर्ट उत्तराखंड’ खासकर घरेलू महिलाओं से अनुरोध है कि किसी भी अजनबी जैसे कबाड़ी वाला, फेरी वाला या भिखारी कोई भी हो, उस के लिए दरवाजा न खोलें और न ही कोई बात करें. बस, हल्ला कर के भगा दें. गलती से भी ये शब्द न कहें, ‘अभी कोई घर में नहीं है, बाद में आना’ या ‘चले जाओ’. घर में अगर कुत्ता है तो उसे खोल दो उसी टाइम और मेन गेट मत खोलो. अपना और अपने बच्चों का ध्यान रखिए. सतर्क रहें, सुरक्षित रहें.

इस तरह के मैसेज से खासतौर से पूरे उत्तराखंड में ऐसी दहशत फैली थी कि वहां के अपर पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने 20 जुलाई, 2018 को कहा था कि सोशल मीडिया पर इस तरह की झूठी खबरें भेजना दंडनीय अपराध है. नैनीताल में ऐसे 2 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था जो ऐसी झूठी खबरें फैला रहे थे.

अशोक कुमार ने लोगों से अपील की थी कि वे फेसबुक, ट्विटर या ह्वाट्सऐप पर पोस्ट डालने या फौरवर्ड करने से पहले अपने दिमाग से काम लें और कोई भी मैसेज या वीडियो शेयर करने से पहले उस की सचाई का पता लगा लें.

समझें अपनी जिम्मेदारी

सरकार भी अब अखबारों में बड़ेबड़े इश्तिहार देने लगी है जिन में जनता से वही अपील की जाती है जो उत्तराखंड के आला पुलिस अफसर ने की. पर इस के बाद भी लोग भ्रामक खबरों को फैलाने से बाज नहीं आ रहे हैं तो इस की एक बड़ी वजह तुरंत उन के खिलाफ कोई कार्यवाही न होना है.

सख्त कानून बन जाए और कार्यवाही होने भी लगे तो कोई खास फर्क अब लोगों पर पड़ेगा ऐसा लगता नहीं, क्योंकि उन्हें सच्ची से ज्यादा झूठी खबरें अच्छी लगती हैं. वजह, उन में मिर्चमसाला, हिंसा, छलकपट सब होता है.

इन से ऐसे बचें

जरूरत इस बात की है कि लोग भ्रामक खबरों के दलदल में न फंसें. इस में मजा आता है लेकिन वह मजा कभी भी सजा बन सकता है. हर वह आदमी गैरजिम्मेदार ही कहा जाएगा जो भ्रामक खबरें फैलाने में उन लोगों का काम आसान करता है जो उन्हें अपनी खुदगर्जी, दुकानदारी और धर्म समेत सियासत के लिए बनाते हैं.

जब भी ऐसी खबरें सोशल मीडिया पर दिखें तो उन्हें नजरअंदाज करें और पोस्ट करने वाले को लताड़ लगाने की हिम्मत दिखाएं. इस से भी जरूरी और अहम बात यह है कि आप इस दलदल में बिलकुल न फंसें, समझदार बनें और अपना जिम्मेदारी भरा रोल बखूबी निभाएं.

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