कोई नहीं

लेखक- मधुप चौधरी

दूसरी ओर से दिनेश की घबराहट भरी आवाज आई, ‘‘पापा, आप लोग जल्द चले आइए. बबिता ने शरीर पर मिट्टी का तेल उडे़ल कर आग लगा ली है.’’

‘‘क्या?’’ रामगोपाल को काठ मार गया. शंका और अविश्वास से वह चीख पडे़, ‘‘वह ठीक तो है?’’ और इसी के साथ उन की आंखों के सामने वे घटनाएं उभरने लगीं जिन की वजह से आज यह स्थिति बनी है.

रामगोपाल ने अपनी बेटी बबिता का विवाह 6 साल पहले अपने ही शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में किया था. उन के समधी गिरधारी लाल भी व्यवसायी थे और मुख्य बाजार में उन की कपडे़ की दुकान थी, जिस पर वह और उन का छोटा बेटा राजेश बैठते थे.

बड़ा बेटा दिनेश एक फर्म में चार्टर्ड एकाउंटेंट था और अच्छी तनख्वाह पाता था. रामगोपाल की बेटी, बबिता भी कामर्स से गे्रजुएट थी अत: दोनों परिवारों में देखसुन कर शादी हुई थी.

रामगोपाल ने अपनी बेटी बबिता का धूमधाम से विवाह किया. 2 बेटों के बीच वही एकमात्र बेटी थी इसलिए अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर दानदहेज भी दिया जबकि समधी गिरधारी लाल की कोई मांग नहीं थी. दिनेश की सिर्फ एक मांग फोरव्हीलर की थी, सो रामगोपाल ने उन की वह मांग भी पूरी कर दी थी.

शादी के कुछ दिनों बाद ही ससुराल में बबिता के आचरण और व्यवहार पर आपत्तियां उठनी शुरू हो गईं. इसे ले कर दोनों परिवारों में तनाव बढ़ने लगा. गिरधारी लाल के परिवार में बबिता समेत कुल 5 लोग थे. गिरधारी लाल, उन की पत्नी सुलोचना, दिनेश और राजेश तथा नई बहू बबिता.

सुलोचना पारंपरिक संस्कारयुक्त और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं. वह सुबह उठतीं, स्नान करतीं और घरेलू कामों में जुट जातीं. वह चाहती थीं कि उन की बहू भी उन्हीं संस्कारों को ग्रहण करे पर बबिता के लिए यह कठिन ही नहीं, दुष्कर काम था. वास्तविकता यह थी कि वह ऐसे संस्कारों को पोंगापंथी और ढोंग समझती थी और इस के खिलाफ थी.

बबिता आधुनिक विचारों की थी तथा स्वाधीन रहना चाहती थी. रात में देर तक टेलीविजन के कार्यक्रम देखती, तो सुबह साढे़ 9 बजे से पहले उठ नहीं पाती. और जब तक वह उठती थी गिरधारी लाल और राजेश नाश्ता कर के दुकान पर जा चुके होते थे. दिनेश भी या तो आफिस जाने के लिए तैयार हो रहा होता या जा चुका होता.

सास सुलोचना को अपनी बहू के इस आचरण से बहुत तकलीफ होती. शुरू में तो उन्होंने बहू को घर के रीतिरिवाजों को अपनाने के लिए बहुत समझाया, पर बाद में उस की हठवादिता देख कर उस से बोलना ही छोड़ दिया. इस तरह एक घर में रहते हुए भी सासबहू के बीच बोलचाल बंद हो गई.

घर में काम के लिए नौकर थे, खाना नौकरानी बनाती थी. वही जूठे बरतनों को मांजती थी और कपडे़ भी धो देती. बबिता के लिए टेलीविजन देखने और समय बिताने के सिवा कोई दूसरा काम नहीं था. उस की सास सुलोचना कुछ न कुछ करती ही रहती थीं. कोई काम नहीं होने पर पुस्तकें ले कर पढ़ने बैठ जातीं. वह इस स्थिति की अभ्यस्त थीं पर बबिता को यह भार लगने लगा. एक दिन हालात से ऊब कर बबिता अपने मायके फोन मिला कर अपनी मम्मी से बोली, ‘मम्मी, आप ने कहां, कैसे घर में मेरा विवाह कर दिया? यह घर है या जेलखाना? मर्द तो काम पर चले जाते हैं, यहां दिन भर बुढि़या गिद्ध जैसी आंखें गड़ाए मेरी पहरेदारी करती रहती है. न कोई बोलने के लिए है न कुछ करने के लिए. ऐसे में तो मेरा दम घुट जाएगा, मैं खुदकुशी कर लूंगी.’

‘अरे नहीं, ऐसी बातें नहीं बोलते बेटी,’ उस तरफ से बबिता की मम्मी लक्ष्मी ने कहा, ‘यदि तुम्हारी सास तुम से बातें नहीं करती हैं तो अपने पति के आफिस जाने के बाद तुम यहां चली आया करो. दिन भर रह कर शाम को पति के लौटने के समय वापस चली जाना. ससुराल से मायका कौन सा दूर है. बस या टैक्सी से चली आओ. वे लोग कुछ कहेंगे तो हम उन्हें समझा लेंगे.’

यह सुनते ही बबिता की बाछें खिल गईं. उस ने झटपट कपडे़ बदले, पर्स लिया और अपनी सास से कहा, ‘मम्मी का फोन आया था, मैं मायके जा रही हूं. शाम को आ जाऊंगी,’ और सास के कुछ कहने का भी इंतजार नहीं किया, कदम बढ़ाती वह घर से निकल पड़ी.

इस के बाद तो यह उस की रोज की दिनचर्या हो गई. शुरू में दिनेश ने यह सोच कर इस की अनदेखी की कि घर में अकेली बोर होने से बेहतर है वह अपनी मां के घर घूम आया करे पर बाद में मां और पिताजी की टोकाटाकी से उसे भी कोफ्त होने लगी.

एक दिन बबिता ने उसे बताया कि वह गाड़ी चलाना सीखने के लिए ड्राइविंग स्कूल में एडमिशन ले कर आ रही है. उस ने दिनेश को एडमिशन का फार्म भी दिखाया. हुआ यह कि बबिता के बडे़ भाई नंद कुमार ने उस से कहा कि रोजरोज बस या टैक्सी से आनाजाना न कर के वह अपनी कार से आए और इस के लिए ड्राइविंग सीख ले. आखिर पापा ने दहेज में कार किसलिए दी है.

बबिता को यह बात जंच गई. पर दिनेश इस पर आगबबूला हो गया. अपनी नाराजगी और गुस्से को वह रोक भी नहीं पाया और बोल पड़ा, ‘तुम्हारे पापा ने कार मुझे दी है.’

‘हां, पर वह मेरी कार है, मेरे लिए पापा ने दी है.’

दिनेश बबिता का जवाब सुन कर दंग रह गया. उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए विवाद को तूल न देने के लिए समझौते का रुख अपनाते हुए कहा, ‘ठीक है पर ड्राइविंग सीखने की क्या जरूरत है. गाड़ी पर ड्राइवर तो है?’

‘मुझे किसी ड्राइवर की जरूरत नहीं. मैं खुद चलाना सीखूंगी और मुझे कोई भी रोक नहीं सकेगा. मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं हूं.’

दिनेश ने इस के बाद एक शब्द भी नहीं कहा. बबिता को कुछ कहने के बजाय उस ने अपने पिता को ये बातें बता दीं. गिरधारी लाल ने तुरंत रामगोपाल को फोन मिलाया और उस से बबिता के व्यवहार की शिकायत की तो उधर से उन की समधिन लक्ष्मी का जवाब आया, ‘भाईसाहब, आप के लड़के से बेटी ब्याही है, कोई बेच नहीं दिया है जो उस पर हजार पाबंदियां लगा रखी हैं आप ने. यह मत करो, वह मत करो, पापामम्मी से बातें मत करो, उन के घर मत जाओ, क्या है यह सब? हम ने तो अपने ही शहर में इसीलिए बेटी की शादी की थी कि वह हमारे पास आतीजाती रहेगी, हमारी नजरों के सामने रहेगी.’

‘पर समधिनजी,’ फोन पर गिरधारी लाल ने जोर दे कर अपनी बात कही, ‘यदि आप की बेटी बराबर आप के घर का ही रुख किए रहेगी तो वह अपना घर कब पहचानेगी? संसार का तो यही नियम है कि बेटी जब तक कुंआरी है अपने बाप की, विवाह के बाद वह ससुराल की हो जाती है.’

‘यह पुरानी पोंगापंथी बातें हैं. मैं इसे नहीं मानती. रही बात बबिता की तो वह जब चाहेगी यहां आ सकती है और वह गाड़ी चलाना सीखना चाहती है तो जरूर सीखे. इस से तो आप लोगों के परिवार को ही फायदा होगा.’

गिरधारी लाल ने इस के बाद फोन रख दिया. उन के चेहरे पर चिंता की गहरी रेखा खिंच आई थीं. परिवार वाले चिंतित थे कि इस स्थिति का परिणाम क्या होगा?

दिनेश ने भी इस घटना के बाद चुप्पी साध ली थी. सास सुलोचना ने सब से पहले बहू से बोलना बंद किया था, उस के बाद गिरधारी लाल भी बबिता से सामना होने से बचने का प्रयत्न करते. राजेश को भाभी से बातें करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. उस की जरूरतें मां, नौकर और नौकरानी से पूरी हो जाती थीं.

दिनेश और बबिता के बीच सिर्फ कभीकभार औपचारिक शब्दों का संबंध रह गया था. आफिस से छुट्टी के बाद वह ज्यादा समय बाहर ही गुजारता, देर रात में घर लौटता और खाना खा कर सो जाता.

इस बीच बबिता ने गाड़ी चलाना सीख लिया था. वह सुबह ही गाड़ी ले कर मायके चली जाती और रात में देर से लौटती. कभी उस का फोन आता, ‘आज मैं आ नहीं सकूंगी.’ बाद में इस तरह का फोन आना भी बंद हो गया.

कानूनी और सामाजिक तौर पर बबिता गिरधारी लाल के परिवार की सदस्य होने के बावजूद जैसे उस परिवार की ‘कोई नहीं’ रह गई थी. यह एहसास अंदर ही अंदर गिरधारी लाल और उन की पत्नी सुलोचना को खाए जा रहा था कि उन के बेटे का दांपत्य जीवन बबिता के निरंकुश एवं दायित्वहीन आचरण तथा उस के ससुराल वालों की हठवादिता से नष्ट हो रहा है.

आखिर एक दिन दिनेश ने दृढ़ स्वर में बबिता से कहा, ‘हम दोनों विपरीत दिशाओं में चल रहे हैं. इस से बेहतर है तलाक ले कर अलग हो जाएं.’

दिनेश को तलाक लेने की सलाह उस के पिता गिरधारी लाल ने दी थी. वह अपने बेटे के बिखरते वैवाहिक जीवन से दुखी थे. उन्होंने यह सलाह भी दी थी कि यदि बबिता उस के साथ अलग रह कर अपनी अलग गृहस्थी में सुखी रह सकती है तो वह ऐसा ही करे. पर दिनेश को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था कि वह अपने मातापिता को छोड़ कर अलग हो जाए.

दिनेश के मुंह से तलाक की बात सुन कर बबिता सन्न रह गई. उसे जैसे इस प्रकार के किसी प्रस्ताव की अपेक्षा नहीं थी. इस में उसे अपना घोर अपमान महसूस हुआ.

मायके आ कर बबिता ने अपने मम्मीपापा और भाइयों को दिनेश का प्रस्ताव सुनाया तो सभी भड़क उठे. रामगोपाल को जहां इस चिंता ने घेर लिया कि इतना अच्छा घरवर देख कर और काफी दानदहेज दे कर बेटी की शादी की, वहां इतनी जल्दी तलाक की नौबत आ गई. समाज और बिरादरी में उन की क्या इज्जत रहेगी? पर लक्ष्मी काफी उत्तेजित थीं. वह चीखचीख कर बारबार एक ही वाक्य बोल रही थीं, ‘उन की ऐसी हिम्मत…उन्हें इस का मजा चखा कर रहूंगी.’

उधर बबिता के भाइयों नंद कुमार और नवल कुमार तथा उन की पत्नियों को दूसरी चिंता ने घेर लिया कि बबिता यदि उन के घर में आ कर रहने लगी तो भविष्य में वह पापामम्मी की संपत्ति में दावेदार हो जाएगी और उसे उस का हिस्सा भी देना पडे़गा. इसलिए दोनों भाइयों ने आपस में सुलह कर बबिता से कहा कि दिनेश ने तलाक की बात कही है तो तुम उसे तलाक के लिए आवेदन करने दो. अपनी तरफ से बिलकुल आवेदन मत करना.

‘भैया, मेरा भी उस घर में दम घुट रहा है,’ बबिता बोली, ‘मैं खुद तलाक लेना चाहती हूं और अपनी मरजी का जीवन जीना चाहती हूं. इस अपमान के बाद तो मैं हरगिज वहां नहीं रह सकती.’

नंद कुमार ने कठोर स्वर में कहा, ‘ऐसी गलती कभी मत करना. तुम खुद तलाक लेने जाओगी तो ससुराल से कुछ भी नहीं मिलेगा. दिनेश तलाक लेना चाहेगा तो उसे तुम्हें गुजाराभत्ता देना पडे़गा.’

‘गुजाराभत्ता की मुझे जरूरत नहीं,’ बबिता बोली, ‘मैं पढ़ीलिखी हूं, कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी और अपना खर्च चला लूंगी पर दोबारा उस घर में वापस नहीं जाऊंगी.’

‘नहीं, अभी तुम्हें वहीं जाना होगा और वहीं रहना भी होगा,’ इस बार नवल कुमार ने कहा.

बबिता ने आश्चर्य से छोटे भाई की ओर देखा. फिर बारीबारी से मम्मीपापा व भाभियों की ओर देख कर अपने स्वर में दृढ़ता लाते हुए वह बोली, ‘दिनेश ने तलाक की बात कह कर मेरा अपमान किया है. इस अपमान के बाद मैं उस घर में किसी कीमत पर वापस नहीं जाऊंगी.’

समझाने के अंदाज में पर कठोर स्वर में नंद कुमार ने कहा, ‘तुम अभी वहीं उसी घर में रहोगी, जब तक  कि तुम्हारे तलाक का फैसला नहीं हो जाता. तुम डरती क्यों हो? सभी तुम्हारे साथ हैं. शादी के बाद से कानूनन वही तुम्हारा घर है. देखता हूं, तुम्हें वहां से कौन निकालता है.’

बडे़ भैया की बातों में छिपी धमकी से आहत बबिता ने अपनी मम्मी की ओर इस उम्मीद से देखा कि वही उस की मदद करें. मम्मी ने बेटी की आंखों में व्याप्त करुणा और दया की याचना को महसूस करते हुए नंद कुमार से कहा, ‘बबिता यहीं रहे तो क्या हर्ज है?’

‘हर्ज है,’ इस बार दोनों भाइयों के साथ उन की पत्नियां भी बोलीं, ‘ब्याही हुई बेटी का घर ससुराल होता है, मायका नहीं. बबिता को अपने पति या ससुराल वालों से कोई हक हासिल करना है तो वहीं रह कर यह काम करे. मायके में रह कर हम लोगों की मुसीबत न बने.’

मां ने सिर नीचे कर लिया तो बबिता ने अपने पापा की ओर देखा. बेटी को अपनी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देख कर उन्हें मुंह खोलना ही पड़ा. उन्होेंने कहा, ‘तुम्हारे भाई लोग ठीक ही कह रहे हैं बबिता. बेटी का विवाह करने के बाद पिता समझता है कि उस ने एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली. पर इस के बाद भी उसे बेटी की चिंता ढोनी पडे़ तो उस के लिए इस से बड़ी दूसरी पीड़ा नहीं हो सकती.’

बबिता पढ़ीलिखी थी. उस में स्वाभिमान था तो अहंकार भी था. उस ने अपने भाइयों और मम्मीपापा की बातों का अर्थ समझ लिया था. इस के पश्चात उस ने किसी से कुछ नहीं कहा. वह उठी और चली गई. उस को जाते हुए किसी ने नहीं रोका.

अचानक फोन की घंटी फिर बजने लगी तो रामगोपालजी चौंके और लपक कर फोन उठा लिया.

दिनेश की घबराहट भरी आवाज थी, ‘‘पापा, आप लोग जल्दी आ जाइए न. बबिता ने अपने शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है.’’

रामगोपाल का सिर घूमने लगा. फिर भी उन्होंने फोन पर पूछा, ‘‘कैसे हुआ यह सब? अभी तो कुछ समय पहले ही वह यहां से गई है.’’

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ दिनेश की आवाज आई, ‘‘वह हमेशा की तरह आप के घर से लौट कर अपने कमरे में चली गई थी और उस ने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया था. अंदर से धुआं निकलता देख कर हमें संदेह हुआ. दरवाजा तोड़ कर हम अंदर घुसे तो देखा, वह जल रही थी. क्या वहां कुछ हुआ था?’’

इस सवाल का जवाब न दे कर रामगोपाल ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘हम लोग तुरंत आ रहे हैं.’’

लक्ष्मी ने बिस्तर पर लेटेलेटे ही पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘दिनेश का,’’ रामगोपाल ने घबराहट भरे स्वर में कहा, ‘‘बबिता ने आग लगा ली है.’’

इतना सुनते ही लक्ष्मी की चीख निकल गई. मम्मी की चीख सुन कर नंद कुमार और नवल कुमार भी वहां पहुंच गए.

नंद कुमार ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है?’’

रामगोपाल ने जवाब दिया, ‘‘बबिता ने यहां से लौटने के बाद शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है, दिनेश का फोन आया था,’’ इतना कह कर रामगोपाल सिर थाम कर बैठ गए, फिर बेटों की तरफ देख कर बोले, ‘‘ससुराल से अपमानित बेटी ने मायके में रहने की इजाजत मांगी थी. तुम लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उसे यहां रहने नहीं दिया. यहां से भी अपमानित होने के बाद उस ने आत्महत्या कर ली.’’

‘‘चुप कीजिए,’’ बडे़ बेटे नंद कुमार ने जोर से अपने पिता को डांटा, ‘‘आप ऐसा बोल कर खुद भी फंसेंगे और साथ में हम सब को भी फंसा देंगे. बबिता ने खुदकुशी नहीं की है, उसे मार डाला गया है. बबिता के ससुराल वालों ने दहेज के खातिर मिट्टी का तेल उडे़ल कर उसे जला डाला है.’’

रामगोपाल ने आशा की डोर पर झूलते हुए कहा, ‘‘चलो, पहले देख लें, शायद बबिता जीवित हो.’’

‘‘पहले आप थाने चलिए,’’ नंद कुमार ने फैसले के स्वर मेंकहा, ‘‘और तुम भी चलो, मम्मी.’’

रामगोपाल का परिवार जिस समय गिरधारी लाल के मकान के सामने पहुंचा, वहां एक एंबुलेंस और पुलिस की एक गाड़ी खड़ी थी. मकान के सामने लोगों की भीड़ जमा थी. जली हुई बबिता को स्ट्रेचर पर डाल कर बाहर निकाला जा रहा था. गाड़ी रोक कर रामगोपाल, लक्ष्मी, नंद कुमार तथा नवल कुमार नीचे उतरे. सफेद कपडे़ में ढंकी बबिता के चेहरे की एक झलक देखने के लिए रामगोपाल लपके पर नंद कुमार ने उन्हें रोक लिया.

थोड़ी देर बाद ही पुलिस के 4 सिपाही और एक दारोगा गिरधारी लाल, दिनेश, सुलोचना और राजेश को ले कर बाहर निकले. उन चारों के हाथों में हथकडि़यां पड़ी हुई थीं. दिनेश, बबिता को बचाने की कोशिश में थोड़ा जल गया था. रामगोपाल की नजर दामाद पर पड़ी तो जाने क्यों उन की नजर नीची हो गई.

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