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kavita in hindi
रूप को आंख से भी जरा पीया कीजे
भर कर अपनी बांहों में खूब प्यार कीजिए
जाड़े की तपिश और तेरा अंगूरी बदन
रसभरे तेरे होंठों की आपसी घिसाई में
जन्नत भी इस हुस्न से पनाह मांगती है
तेरे बिन सजनी कैसे कटेंगी सर्द लंबी रातें
सावन में उन की हो गई
थाम लो मुझे हाथ बढ़ाकर
कैसे कहें कि हमें उन की चाहत हो गई
न पूछो हाल गोरी का, खुला खजाना गोरी का
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