Top 20 Erotic Stories in Hindi. आज हम आपके लिए लेकर आए है कुछ ऐसी कहानियां जिन्हे पढ़ कर आप इनसे खुद को जोड़ पाएंगे, साथ ही इन कहानियों से जुड़कर नई-नई जानकारियां हासिल कर पाएंगे. तो पढ़े Hindi Erotic Stories.
1. बारिश : फुहार इश्क की
मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’
‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’
‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’
धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.
एक दिन उस ने खूब सजधज कर चारबत्ती के पास मेरी साइकिल के अगले पहिए से अपनी साइकिल का पिछला पहिया भिड़ा दिया था. शायद वह मुझ से आगे निकलना चाहती थी.
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2. प्यासा सावन : जब पारो ने अमर को रिझाया
रात के 2 बजे थे. अमर अपने कमरे में बेसुध सोया हुआ था कि तभी दरवाजे पर ठकठक हुई. ठकठक की आवाज से अमर की नींद खुल गई. लेकिन उस ने सोचा कि शायद यह आवाज उस के मन का भरम है, इसलिए वह करवट बदल कर फिर सो गया.
लेकिन कुछ देर बाद फिर ठकठक की आवाज आई. ‘लगता है कोई है,’ उस ने मन ही मन सोचा, फिर उठ कर लाइट जलाई और दरवाजा खोलने लगा. तभी उस के मन में खयाल आया कि कहीं बाहर कोई चोर तो नहीं है.
यह खयाल आते ही वह थोड़ा सहम सा गया. फिर उस ने धीरे से पूछा, ‘‘कौन है?’’
‘‘मैं हूं,’’ बाहर से किसी लड़की की मीठी सी आवाज आई. अमर ने दरवाजा खोल दिया. सामने पारो को खड़ा देख कर वह हैरान हो कर बोला, ‘‘अरे तुम?’’
‘‘क्यों, कोई अनहोनी हो गई क्या?’’ पारो मुसकराते हुए बोली. अमर ने देखा कि पारो नारंगी रंग का सलवारसूट पहने हुए थी. दुपट्टा न होने से उस के उभरे अंग दिख रहे थे.
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3. प्यासी नदी : क्या थी नौकरानी की कहानी
मेरे पतिदेव को चलतेफिरते मुझे छेड़ते हुए शरारत करने की आदत है. वे कभी गाल छू लेते हैं, तो कभी कमर पर चुटकी ले लेते हैं. यह भी नहीं देखते कि आसपास कोई है या नहीं. बस, मेरे प्रति अपना ढेर सारे प्यार को सरेआम जता देते हैं. मेरे मना करने पर या ‘शर्म करो’ कहने पर कहते हैं, ‘अरे यार, अपनी खुद की बाकायदा बीवी को छेड़ रहा हूं, कोई राह चलती लड़की को नहीं और प्यार जता रहा हूं, सता नहीं रहा… समझी जानू…’
बेशक, मुझे भी उन का यों प्यार जताना गुदगुदा जाता है. कभी चुपके से मैं भी इन की पप्पी ले लेती हूं… हम मियांबीवी जो हैं. पर, 1-2 बार मैं ने नोटिस किया है कि मेरी कामवाली गीता हम पतिपत्नी की ये अठखेलियां दरवाजे के पीछे खड़ी रह कर छिपछिप कर देखती है. पहले तो मुझे लगा कि यह मेरा भरम है, पर अब तो गीता ऐसी हरकतें बारबार करने लगी थी. वैसे, गीता बहुत अच्छी है. स्वभाव भी मिलनसार और काम भी परफैक्ट, कभी शिकायत का मौका नहीं देती.
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4. खूबसूरत लम्हे – भाग 1 : क्या शेखर को मिला उसका प्यार
शेखर इस नए शहर में जिंदगी की नई शुरुआत करने आ पहुंचा था. आईएएस पूरी करने के बाद उस की पत्नी की पोस्टिंग इसी शहर में हुई. वैसे भी अमृतसर आ कर वह काफी खुश था. इस शहर में वह पहली बार आया था, पर उसे ऐसा लगता कि वह अरसे से इस शहर को जानता है. आज वह बाजार की तरफ निकला ताकि अपनी जरूरत का सामान खरीद सके. अचानक एक डिपार्टमैंटल स्टोर में शेखर को एक जानापहचाना चेहरा नजर आया. हां, वह संगीता थी और साथ में था शायद उस का पति. शेखर गौर से उसे देखता रहा. संगीता शायद उसे देख नहीं पाई या फिर जानबूझ कर उस ने देख कर भी अनदेखी कर दी. वह जब तक संगीता के करीब पहुंचा, संगीता स्टोर से निकल कर अपनी कार में जा बैठी और चली गई. शेखर उसे देख कर अतीत में खो गया.
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5. दिल की दहलीज पर: मधुरा का सपना क्यों चकनाचूर हो गया?
‘‘आहा,चूड़े माशाअल्लाह, क्या जंच रही हो,’’ नवविवाहिता मधुरा की कलाइयों पर सजे चूड़े देख दफ्तर के सहकर्मी, दोस्त आह्लादित थे. मधुरा का चेहरा शर्म से सुर्ख पड़ रहा था. शादी के 15 दिनों में ही उस का रूप सौंदर्य और निखर गया था. गुलाबी रंगत वाले चेहरे पर बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और लाल रंगे होंठ…
कुछ गहने अवश्य पहने थे मधुरा ने, लेकिन उस के सौंदर्य को किसी कृत्रिम आवरण की आवश्यकता न थी. नए प्यार का खुमार उस की खूबसूरती को चार चांद लगा चुका था.
‘‘और यार, कैसी चल रही है शादीशुदा जिंदगी कूल या हौट?’’ सहेलियां आंखें मटकामटका कर उसे छेड़ने लगीं. सच में मनचाहा जीवनसाथी पा मानों उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. मातापिता के चयन और निर्णय से उस का जीवन खिल उठा था.
‘‘वैसे क्या बढि़या टाइम चुना तुम ने अपनी शादी का. क्रिसमस के समय वैसे भी काम कम रहता है… सभी जैसे त्योहार को पूरी तरह ऐंजौय करने के मूड में होते हैं,’’ सहेलियां बोलीं.
‘‘इसीलिए तो इतनी आसानी से छुट्टी मिल गई 15 दिनों की,’’ मधुरा की हंसी के साथसाथ सभी सहकर्मियों की हंसी के ठहाकों से सारा दफ्तर गुंजायमान हो उठा.
तभी बौस आ गए. उन्हें देख सभी चुप हो अपनीअपनी सीट पर चले गए.
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6. वह सुंदर लड़की: दोस्त की बड़ी बहन पर आया दिल
मेरा घर सहारनपुर में था. 10वीं का इम्तिहान देने के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए पिताजी ने मुझे मेरे काकाजी के पास भेज दिया, जो दिल्ली के सब्जी मंडी नामक महल्ले में रहते थे.
जेबखर्च के लिए पिताजी हर महीने मुझे 2,000 रुपए भेजा करते थे. दिल्ली जैसा इतना बड़ा शहर और खुली आजादी, मेरे तो मजे हो गए. कालेज जाने के बजाय वे रुपए मैं फिल्में देखने और दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने में खर्च कर देता था.
मैं जहां रहता था, उस महल्ले में मेरी उम्र के और भी कई लड़के थे, जिन से बहुत जल्द मेरी दोस्ती हो गई. उन में मेरा सब से अच्छा दोस्त था अविनाश. रोज शाम के समय हम सब क्रिकेट खेलते थे. अपने काकाजी को जब मैं गली में घुसते हुए देखता तब मैं तुरंत किसी दीवार की आड़ में छिप जाता.
अगर वे देख लेते कि शाम के समय पढ़ाई करने के बजाय मैं क्रिकेट खेल रहा हूं, तब फोन कर के पिताजी को बता देते और फिर पिताजी मुझे सहारनपुर बुला लेते.
7. कठपुतली: निखिल से क्यों टूटने लगा मीता का मोह
जैसे ही मीता के विवाह की बात निखिल से चली वह लजाई सी मुसकरा उठी. निखिल उस के पिताजी के दोस्त का इकलौता बेटा था. दोनों ही बचपन से एकदूसरे को जानते थे. घरपरिवार सब तो देखाभाला था, सो जैसे ही निखिल ने इस रिश्ते के लिए रजामंदी दी, दोनों को सगाई की रस्म के साथ एक रिश्ते में बांध दिया गया.
मीता एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करती थी और निखिल अपने पिताजी के व्यापार को आगे बढ़ा रहा था.
2 महीने बाद दोनों परिणयसूत्र में बंध कर पतिपत्नी बन गए. निखिल के घर में खुशियों का सावन बरस रहा था और मीता उस की फुहारों में भीग रही थी.
वैसे तो वे भलीभांति एकदूसरे के व्यवहार से परिचित थे, कोई मुश्किल नहीं थी, फिर भी विवाह सिर्फ 2 जिस्मों का ही नहीं 2 मनों का मिलन भी तो होता है.
विवाह को 1 महीना पूरा हुआ. उन का हनीमून भी पूरा हुआ. अब निखिल ने फिर काम पर जाना शुरू कर दिया. मीता की भी छुट्टियां समाप्त हो गईं.
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8. नया जमाना: क्या बदल गई थी सुरभि
डरबन की चमचमाती सड़कों पर सरपट दौड़ती इम्पाला तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी. कुलवंत गाड़ी ड्राइविंग करते हिंदी फिल्म का एक गीत गुनगुनाने में मस्त थे. सुरभि उन के पास वाली सीट पर चुपचाप बैठी कनखियों से उन्हें निहारे जा रही थी. इम्पाला जब शहर के भीड़भाड़ वाले बाजार से गुजरने लगी तो सुरभि ने एक चुभती नजर कुलवंत पर डाली और बोली, ‘‘अंकल, कहीं मैडिकल की शौप नजर आए तो गाड़ी साइड में कर के रोक देना, मुझे दवा लेनी है.’’
कुलवंत के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आए. सुरभि की तरफ देख कर बोले, ‘‘क्यों, क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’
‘‘हां, तबीयत तो ठीक है.’’
‘‘फिर दवा किस के लिए लेनी है?’’
‘‘आप के लिए.’’
‘‘मेरे लिए, क्यों? मुझे क्या हुआ है? एकदम भलाचंगा तो हूं.’’
‘‘आप बड़े नादान हैं. नहीं समझेंगे. अब आप अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाना बंद कीजिए. मैडिकल शौप नजर आए तो वहां गाड़ी रोक देना. मैं 1 मिनट में वापस आ जाऊंगी.’’
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9. यादों के सहारे: क्या प्रकाश और नीलू एक हो पाए
वह बीते हुए पलों की यादों को भूल जाना चाहता था. और दिनों के बजाय वह आज ज्यादा गुमसुम था. वह सविता सिनेमा के सामने वाले मैदान में अकेला बैठा था. उस के दोस्त उसे अकेला छोड़ कर जा चुके थे. उस ने घंटों से कुछ खाया तक नहीं था, ताकि भूख से उस लड़की की यादों को भूल जाए. पर यादें जाती ही नहीं दिल से, क्या करे. कैसे भुलाए, उस की समझ में नहीं आया.
उस ने उठने की कोशिश की, तो कमजोरी से पैर लड़खड़ा रहे थे. अगलबगल वाले लोग आपस में बतिया रहे थे, ‘भले घर का लगता है. जरूर किसी से प्यार का चक्कर होगा.
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10. कैलेंडर गर्ल : कैसी हकीकत से रूबरू हुई मोहना
‘‘श्री…मुझे माफ कर दो…’’ श्रीधर के गले लग कर आंखों से आंसुओं की बहती धारा के साथ सिसकियां लेते हुए मोहना बोल रही थी.
मोहना अभी मौरीशस से आई थी. एक महीना पहले वह पूना से ‘स्कायलार्क कलेंडर गर्ल प्रतियोगिता’ में शामिल होने के लिए गई थी. वहां जाने से पहले एक दिन वह श्री को मिली थी.
वही यादें उस की आंखों के सामने चलचित्र की भांति घूम रही थीं.
‘‘श्री, आई एम सो ऐक्साइटेड. इमैजिन, जस्ट इमैजिन, अगर मैं स्कायलार्क कलेंडर के 12 महीने के एक पेज पर रहूंगी दैन आई विल बी सो पौपुलर. फिर क्या, मौडलिंग के औफर्स, लैक्मे और विल्स फैशन वीक में भी शिरकत करूंगी…’’ बस, मोहना सपनों में खोई हुई बातें करती जा रही थी.
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11. सबसे हसीन वह: भाग 1
इन दिनों अनुजा की स्थिति ‘कहां फंस गई मैं’ वाली थी. कहीं ऐसा भी होता है भला? वह अपनेआप में कसमसा रही थी.
ऊपर से बर्फ का ढेला बनी बैठी थी और भीतर उस के ज्वालामुखी दहक रहा था. ‘क्या मेरे मातापिता तब अंधेबहरे थे? क्या वे इतने निष्ठुर हैं? अगर नहीं, तो बिना परखे ऐसे लड़के से क्यों बांध दिया मु झे जो किसी अन्य की खातिर मु झे छोड़ भागा है, जाने कहां? अभी तो अपनी सुहागरात तक भी नहीं हुई है. जाने कहां भटक रहा होगा. फिर, पता नहीं वह लौटेगा भी या नहीं.’
उस की विचारशृंखला में इसी तरह के सैकड़ों सवाल उमड़तेघुमड़ते रहे थे. और वह इन सवालों को झेल भी रही थी. झेल क्या रही थी, तड़प रही थी वह तो.
लेकिन जब उसे उस के घर से भाग जाने के कारण की जानकारी हुई, झटका लगा था उसे. उस की बाट जोहने में 15 दिन कब निकल गए. क्या बीती होगी उस पर, कोई तो पूछे उस से आ कर.
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12. बेवफाई: नैना को कैसे हुआ अपनी गलती का अहसास
नैना रसोईघर में रात का खाना पकाने की तैयारी कर रही थी. उस के मोबाइल फोन पर काल आ रहा था. रिंगटोन नहीं बजे, इसलिए उस ने मोबाइल फोन को साइलैंट मोड पर रखा था. वह नहीं चाहती थी कि उस के पति मुकेश को काल करने वाले के बारे में पता चले.
नैना ने मोबाइल फोन उठा कर देखा तो पाया कि उस का आशिक दीपक काल कर रहा था. हालांकि वह अभी उसे कुछ दिन तक काल करने से मना कर चुकी थी, फिर भी उस का बारबार काल आ रहा था. वह मुकेश के डर से कई दिनों से उस का काल नहीं रिसीव कर पा रही थी.
मुकेश कई सालों से गुजरात में प्राइवेट नौकरी कर रहा था. वह 3 महीने पहले घर वापस आ चुका था. कोरोना के वायरस से जितना लोगों को नुकसान नहीं हो रहा था, उस से ज्यादा नैना के लिए उस के पति की घर वापसी से आफत आई हुई थी. वह अपने आशिक दीपक से बात नहीं कर पा रही थी.
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13. निशि डाक: अंधेरी रात में किसने भूपेस को पुकारा
आज खेत से लौटने में रात हो गई थी. भूपेश ने इस बार अपने खेत में गेहूं की फसल बोई थी. आवारा जानवरों से फसल को उजड़ने से बचाना था, सो रातरातभर जाग कर रखवाली करनी पड़ती थी. बाड़ लगाने का भी कोई ज्यादा फायदा नहीं था, क्योंकि आवारा पशु उसे भी काट डालते थे. आज तो खेत में पानी भी लगाना था, सो भूपेश को लौटने में बहुत रात हो गई थी.
अगलबगल के खेतों वाले बाकी साथी भी चले गए थे. भूपेश को रात में अकेले ही लौटना पड़ा. घर पर मां इंतजार कर रही थी. रात सायंसायं कर रही थी. खेतोंखेतों होता हुआ भूपेश चला आ रहा था. पीपल, नीम, आम, बबूल के पेड़ों की छाया ऐसी लग रही थी जैसे प्रेतात्माएं आ कर खड़ी हो गई हों. बीचबीच में किसी पक्षी की आवाज सन्नाटे को चीर जाती थी. ‘ऐसी गहरी काली रात में ही अकेले आदमी को प्रेतात्माएं घेरने की कोशिश करती हैं. वे अकसर खूबसूरत औरत का वेश बना कर आती हैं और बड़ी ही मीठी आवाज में बुलाती हैं.
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14. उपहार: क्या मोहिनी का दिल जीत पाया सत्या
मोहिनी थी कि उसे एक भी तोहफा न पसंद आता. आखिर में जब सत्या की मेहनत की कमाई से खरीदे छाते को भी नापसंद कर के मोहिनी ने फेंका तो…
‘‘सिर्फ एक बार, प्लीज…’’
‘‘ऊं…हूं…’’
‘‘मोहिनी, जानती हो मेरे दिल की धड़कनें क्या कहती हैं? लव…लव… लेकिन तुम, लगता है मुझे जीतेजी ही मार डालोगी. मेरे साथ समुद्र किनारे चलते हुए या फिर म्यूजियम देखते समय एकांत के किसी कोने में तुम्हारा स्पर्श करते ही तुम सिहर कर धीमे से मेरा हाथ हटा देती हो. एक बार थिएटर में…’’
‘‘सत्या प्लीज…’’
‘‘मैं ने ऐसी कौन सी अनहोनी बात कह दी. मैं तो केवल इतना चाहता हूं कि तुम एक बार, सिर्फ एक बार ‘आई लव यू’ कह दो. अच्छा यह बताओ कि तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?’’
‘‘नहीं जानती.’’
‘‘यह भी क्या जवाब हुआ भला? हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं. हैसियत भी एक जैसी ही है. तुम्हारी और मेरी मां इस रिश्ते के लिए मना भी नहीं करेंगी. हां, तुम मना कर दोगी, दिल तोड़ दोगी, तो मैं…तो मर जाऊंगा, मोहिनी.’’
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15. कांटे गुलाब के – भाग 1 : अमरेश और मिताली की प्रेम कहानी
सुबह के 8 बज रहे थे. किचन में व्यस्त थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. मन में यह सोच कर खुशी की लहर दौड़ गई कि अमरेश का फोन होगा. फिर अचानक मन ने प्रतिवाद किया. वह अभी फोन क्यों करेगा? वह तो प्रतिदिन रात के 8 बजे के बाद फोन करता है.
अमरेश मेरा पति था. दुबई में नौकरी करता था. मोबाइल पर नंबर देखा, तो झट से उठा लिया. फोन मेरी प्रिय सहेली स्वाति ने किया था. बात करने पर पता चला कि कल उस की शादी होने वाली है. शादी में उस ने हर हाल में आने के लिए कहा. शादी अचानक क्यों हो रही है, यह बात उस ने नहीं बताई. दरअसल, उस की शादी 2 महीने बाद होने वाली थी. जिस लड़के से शादी होने वाली थी, उस की दादी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गईर् थी. डाक्टर ने उसे 2-3 दिनों की मेहमान बताया था. इसीलिए घर वाले दादी की मौजूदगी में ही उस की शादी कर देना चाहते थे.
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16. हवस का नतीजा : देवर और भाभी की रासलीला
मुग्धा का बदन बुखार से तप रहा था. ऊपर से रसोई की जिम्मेदारी. किसी तरह सब्जी चलाए जा रही थी तभी उस का देवर राज वहां पानी पीने आया. उस ने मुग्धा के हावभाव देखे तो उस के माथे पर हाथ रखा और बोला, ‘‘भाभी, आप को तो तेज बुखार है.’’
‘‘हां…’’ मुग्धा ने कमजोर आवाज में कहा, ‘‘सुबह कुछ नहीं था. दोपहर से अचानक…’’
‘‘भैया को बताया?’’
‘‘नहीं, वे तो परसों आने ही वाले हैं वैसे भी… बेकार परेशान होंगे. आज तो रात हो ही गई… बस कल की बात है.’’
‘‘अरे, लेकिन…’’ राज की फिक्र कम नहीं हुई थी. मगर मुग्धा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मामूली बुखार ही तो है. तुम जा कर पढ़ाई करो, खाना बनते ही बुला लूंगी.’’
‘‘खाना बनते ही बुला लूंगी…’’ मुग्धा की नकल उतार कर चिढ़ाते हुए राज ने उस के हाथ से बेलन छीना और बोला, ‘‘लाइए, मैं बना देता हूं. आप जा कर आराम कीजिए.’’
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17. बंद किताब : रत्ना के लिए क्या करना चाहता था अभिषेक
बनो मत. मैं ने जोकुछ कहा है, वह तुम्हारे ही मन की बात है. तुम्हारी उम्र इस समय 30 साल से ज्यादा नहीं है, जबकि तुम्हारे पति 60 से ऊपर के हैं. औरत को सिर्फ दौलत ही नहीं चाहिए, उस की कुछ जिस्मानी जरूरतें भी होती हैं, जो तुम्हारे बूढ़े प्रोफैसर कभी पूरी नहीं कर सके.
‘‘10 साल पहले किन हालात में तुम्हारी शादी हुई थी, वह भी मैं जानता हूं. उस समय तुम 20 साल की थीं और प्रोफैसर साहब 50 के थे. शादी से ले कर आज तक मैं ने तुम्हारी आंखों में खुशी नहीं देखी है. तुम्हारी हर मुसकराहट में मजबूरी होती है.’’
‘‘वह तो अपनाअपना नसीब है.’’
‘‘देखो, नसीब, किस्मत, भाग्य का कोई मतलब नहीं होता. 2 विश्व युद्ध हुए, जिन में करोड़ों आदमी मार दिए गए. इस देश ने 4 युद्ध झेले हैं. उन में भी लाखों लोग मारे गए. बंगलादेश की आजादी की लड़ाई में 20 लाख बेगुनाह लोगों की हत्याएं हुईं. क्या यह मान लिया जाए कि सब की किस्मत.
18. मिस्टर बेचारा : क्या पूरा हो पाया चंद्रम का प्यार
दरवाजा खुला. जिस ने दरवाजा खोला, उसे देख कर चंद्रम हैरान रह गया. वह अपने आने की वजह भूल गया. वह उसे ही देखता रह गया.
वह नींद में उठ कर आई थी. आंखों में नींद की खुमारी थी. उस के ब्लाउज से उभार दिख रहे थे. साड़ी का पल्लू नीचे गिरा जा रहा था.
उस का पल्लू हाथ में था. साड़ी फिसल गई. इस से उस की नाभि दिखने लगी. उस की पतली कमर मानो रस से भरी थी.
थोड़ी देर में चंद्रम संभल गया, मगर आंखों के सामने खुली पड़ी खूबसूरती को देखे बिना कैसे छोड़ेगा? उस की उम्र 25 साल से ऊपर थी. वह कुंआरा था. उस के दिल में गुदगुदी सी पैदा हुई.
वह साड़ी का पल्लू कंधे पर डालते हुए बोली, ‘‘आइए, आप अंदर आइए.’’
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19. क्या जादू कर दिया : चंपा बनी ‘चंपालाल’
चंपा अपने गांव के बसअड्डे पर बस से उतर कर गलियां पार कर के अपने घर की ओर जा रही थी. वह रोजाना सुबह कालेज जाती थी, फिर दोपहर तक वापस आ जाती थी.
चंपा इस गांव के बाशिंदे भवानीराम की बेटी थी. वे चंपा को कालेज पढ़ाना नहीं चाहते थे, मगर चंपा की इच्छा थी और उस के टीचरों के दबाव देने पर वे उसे पढ़ाने के लिए शहर भेजने को राजी हो गए.
जैसे ही चंपा का कालेज में दाखिला हुआ, उस की सहेलियों ने खुशियां मनाईं. वे सब चंपा को पढ़ाकू सम झती थीं और उसे चाहती भी खूब थीं.
जब चंपा गांव के हायर सैकेंडरी स्कूल में पढ़ती थी, तब पूरी जमात में उस का दबदबा था. अगर कोई लड़का ऊंची आवाज में बोल देता था, तब वह उसे ऐसी नसीहत देती थी कि वह चुप हो जाता था. इसी वजह से वह अपनी सहेलियों की चहेती बनी हुई थी.
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20. प्यार के राही : हवस भरे रिश्ते
उस दिन गजाला और मासूम राही की शादी बड़ी धूमधाम से हो रही थी. सभी लोग निकाह के वक्त का इंतजार कर रहे थे. मासूम राही दोस्तों के बीच सेहरा बांधे गपें मार रहे थे, तभी मौलवी साहब आए और निकाह की तैयारी होने लगी.
मौलवी साहब बोलते गए और मासूम राही निकाह कबूल करते गए. सारी रस्में खत्म होने के बाद सभी लोग मजे ले कर खाना खाने लगे.
अगली रात गजाला और मासूम राही अपने सुहागरात के कमरे में एकदूसरे के आगोश में खोए हुए थे और गरम तूफान की आग में जल रहे थे. कुछ मिनटों के बाद वह आग ठंडी हुई, तो वे एकदूसरे से अलग हुए.
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