क्या आप भी ज्यादा पसीना आने के कारण रहते हैं परेशान, तो जरूर अपनाएं ये उपाय

अगर हवा न चल रही हो और काम करतेकरते माथे से टपटप पसीना बहता जा रहा हो, तो झंझलाहट पैदा होना एक आम सी बात है. इन दिनों की उमस, बेचैनी और चिलचिलाती गरमी वाले मौसम में सब से ज्यादा चिड़चिड़ापन और गुस्सा पसीने के चलते भी आता है. लू के गरम थपेडे़ हों या 40 डिगरी से ऊपर तापमान, ये सब पसीना आने की वजह ही तो हैं.

दिक्कत तब होती है, जब पसीना भी टपक रहा है और शरीर से बदबू भी आने लगती है. दरअसल, होता यह है कि शरीर में मौजूद बैक्टीरिया हाइड्रोजन सल्फाइड बनाने लगते हैं, जिस से बदबू पैदा होती है.

कई बार जब कोई मरीज अपने इलाज के दौरान कुछ खास तरह की तेज दवा लेते हैं, तो भी उन को पसीना और उस से बहुत तेज बदबू आने लगती है.

कुछ लोग हर समय तनाव में रहते हैं. ऐसे लोगों के माथे पर हमेशा ही पसीना रहता है. यह पसीना चेहरे पर चिपक जाता है, दाग बना देता है और कई बार तो पसीना सूखने पर कपड़ों पर सफेद और पीले दाग दिखने लगते हैं. ऐसा पसीने के रंग से नहीं, बल्कि उस में मौजूद नमक के चलते होता है.

ज्यादा और बारबार पसीना आने की वजह से लोग संकोच से भी बेहाल हो जाते हैं. इस की वजह यह है कि कुछ लोगों के पसीने में ज्यादा बदबू होती है, जिस की वजह से कहीं समूह में या परिचित और दोस्तों के बीच उन्हें मन ही मन शर्मिंदा होना पड़ता है.

कुछ लोग तो इस पसीने की वजह

से सफेद, हलका गुलाबी या आसमानी रंग का कपड़ा पहनने को तरस जाते हैं. वजह यही है कि उन की त्वचा से जो पसीना बहता है, वह भद्दे दाग छोड़ देता है. पसीना तो तेज गरमी या मेहनत के बाद आता ही है, पर किसी हवादार या ठंडी जगह पर बदबूदार पसीना आ रहा है, तो तुरंत सावधान हो जाना चाहिए.

अगर किसी के आहार में तीखे मसाले इस्तेमाल हो रहे हैं और उन को अलकोहल की आदत भी है, तो पसीना आता है. साथ ही, सिगरेटबीड़ी वगैरह की लत, नाश्तालंच वगैरह में कोलैस्ट्राल और नमक की मात्रा ज्यादा लेते हैं, तो पसीना आना लाजिमी है.

मेनोपौज या किसी कैमिकल के इस्तेमाल से शरीर में हार्मोनल बदलाव होना भी पसीना पैदा करने वाली वजह है.

जरूरत से ज्यादा चौकलेट और चायकौफी का सेवन करना भी पसीना पैदा करता है. पेट से होने की वजह से भी बारबार पसीना आता है.

ये हैं उपाय

ज्यादा पसीना आने पर दिन में 2 बार नहाने की आदत डालें. अगर पानी की समस्या है, तो टैलकम या एंटीफंगल पाउडर इस्तेमाल करें या कैलामाइन लोशन लगाएं. ये तुरंत अपना असर दिखाते हैं. आजकल तो पुदीना और नीम का इत्र भी बहुत आसानी से मिल जाते हैं, जो पसीने की इस समस्या को दूर कर सकते हैं.

फिटकरी तो हर घर में मिल जाती है और यह भी बहुत फायदा देती है. दिन में 2 बार फिटकरी को हलका गीला कर शरीर के पसीने वाली जगह पर लगा लें. इस से पसीना आना कम हो जाता है. फिटकरी से एक और फायदा यह भी है कि इस के इस्तेमाल से बैक्टीरिया भी कम पनपेंगे.

जरूरी मात्रा में पानी पिएं. कम पानी पीने से भी डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है और यह कमी भी पसीना पैदा करती है. अगर पैरों में बारबार चिपचिपा पसीना आता है, तो यह आगे जा कर खुजली की समस्या पैदा कर सकता है. जुराब और जूते सही और आरामदायक हों. त्वचा विशेषज्ञ की सलाह से ही चप्पल, जूते, जुराब वगैरह पहनें.

जहां तक हो सके, नमक के पानी से पैर धोएं. यह बहुत आसान है. एक टब में कुनकुना पानी भरें और उस में 5 से 7 चम्मच नमक डाल कर पैरों को उस में आधा घंटे तक डुबो कर रखें.

पानी से पैर निकालने के बाद उन्हें पोंछें नहीं, बल्कि अपनेआप सूखने दें, फिर जुराब पहनें.

दरअसल, नमक का पानी त्वचा को सूखा बनाता है, साथ ही पसीना आने से भी रोकता है. गरमी में बाहर जाने से पहले पसीना आने वाली जगहों पर बर्फ रगड़ने से भी पसीना कम आता है.

शरीर के जिस हिस्से पर ज्यादा पसीना आता है, उस पर आलू के टुकड़े काट कर मलने से पसीना आना कम हो जाता है.

चेहरे पर अगर ज्यादा पसीना आता है, तो टमाटर या खीरे के रस को चेहरे पर लगाने से पसीने से राहत मिलती है. कुछ लोग ज्यादा पसीना आने के डर से चाय ज्यादा पीते हैं, जिस की वजह से पसीने में ज्यादा बदबू आती है. पसीने की बदबू से नजात पाने के लिए ज्यादा चाय नहीं पीनी चाहिए.

पसीने वाली जगहों के लगातार गीला रहने से बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जिस की वजह से बदबू आने लगती है, इसलिए वहां की साफसफाई का खास ध्यान रखना चाहिए.

नीबू एक लाभदायक उपाय है और यह हमारे शरीर से पसीने की समस्या और बदबू दोनों को दूर करने में काफी असरदार होता है. नीबू हमारी त्वचा के पीएच मान को कंट्रोल करता है. शरीर के जिन हिस्सों में हम नीबू के रस का इस्तेमाल करते हैं, वहां पर जीवाणु जल्दी पनप नहीं पाते हैं.

नीबू को रुई के सहारे अपने शरीर खासकर अंडरआर्म पर लगाएं या उस जगह पर नीबू के एक टुकड़े को हलकेहलके रगड़ें. इस से पसीने की बदबू आप से कोसों दूर रहेगी.

अगर आप को जरूरत से ज्यादा पसीना आता है, तो अपने आहार में चटपटी और मसालेदार चीजों का सेवन कम कर दें. हार्मोनल बदलाव और पेट से होने के दौरान भी ज्यादा पसीना आता है, तो तुरंत डाक्टर से मिलें. टमाटर का जूस, ग्रीन टी व गेहूं के ज्वार का सेवन करें. ये चीजें ज्यादा पसीना आने में राहत देती हैं.

गरमी में पानी खूब पिएं. इस से पसीने में बदबू आने की समस्या नहीं होगी. फास्ट फूड और डब्बाबंद चीजों को अपनी आहार सूची से निकाल दें. गरमी में सूती कपड़े ही पहनें, ताकि वे पसीने को आसानी से सोख सकें.

बनावटी और ब्रांड वाले कोल्ड ड्रिंक की जगह दही, छाछ, लस्सी, शिकंजी, कैरी पना, खीरे का रस, लौकी का रस  वगैरह पीने की आदत डालना बहुत ही अच्छा है. इस से आप का लिवर और किडनी भी साफ रहेंगे. ऐसी चीजों का सेवन ज्यादा करें, जिन में रेशा ज्यादा मात्रा में हो.

पिता बनने में परेशानी बन सकता है गलत अंडरवियर, जानें कैसे

Sex News in Hindi: ज्यादातर पुरुष 2 ही तरह के अंडरवियर पहनना पसंद करते है और वे दो हैं बौक्सर और ब्रीफ. मार्केट में बिकने वाले हजारों में से अपने लिए सही अंडरवियर चुनना काफी मुश्किल हो सकता है. क्या आप जानते हैं कि गलत अंडरवियर आपके लिए काफी सारी परेशानियां खड़ी कर सकता है और उन बीमारियों में से एक मुख्य बीमारी है शुक्राणुओं की कमी.

25 प्रतिशत तक कम हो सकता है स्पर्म काउंट…

जी हां गलत अंडरवियर पहनने से आपका पिता बनना मुश्किल हो सकता है. एक रिसर्च के मुताबिक जो पुरुष टाइट अंडरवियर पहनते हैं उन पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या 25 प्रतिशत तक कम हो सकती है और यही नहीं बल्कि टाइट अंडरवियर से स्पर्म काउंट और क्वालिटी दोनों कम हो सकते हैं.

अगर कंपेयर किया जाए तो जो पुरुष टाइट अंडरवियर ना पहन के ढीले अंडरवियर पहनना पसंद करते हैं उन पुरुषों की स्पर्म क्वालिटी काफी बेहतर होती है उन पुरुषों से जो टाइट अंडरवियर पहनते हैं. स्पर्म काउंट और क्वालिटी पुरुषों के पिता बनने में काफी प्रभाव डालता है.

स्टाइलिश के साथ खतरनाक भी है टाइट अंडरवियर…

बौक्सर अंडरवियर हमारी जांघों के पास से ढीले होते हैं जो काफी कंफरटेबल होते हैं और वहीं दूसरी तरफ ब्रीफ अंडरवियर की शुरुआत बौक्सर के मुताबिक काफी समय बाद हुई था और ब्रीफ अंडरवियर बिकनी की तरह बौडी से चिपका होता है और इसकी टाइट फिटिंग की वजह से ये काफी स्टाइलिश लगता है. यही कारण है कि आज कल के लड़के ब्रीफ पहनना ज्यादा पसंद करते हैं.

अंडकोषों का तापमान होना चाहिए कम…

टाइट अंडरवियर पहनने से स्पर्म क्वालिटी काफी हद तक प्रभावित होती है क्योंकि पुरुषों में स्पर्म टेस्टिस यानी अंडकोष में होता है जिसका तापमान से काफी असर पड़ता है. हमारे शरीर का तापमान वैसे ही काफी गरम होता है और हमारे शरीर के अनुसार अंडकोषों का तापमान 2-4 डिग्री सेल्सियस तक कम काफी जरूरी है.

यही कारण है कि टाइट अंडरवियर पहनने से शरीर से निकलने वाली गर्मी के कारण अंडकोष भी गर्म हो जाते हैं और स्पर्म क्वालिटी खराब हो जाती है. हमें जितना हो सके ढीले अंडरवियर पहनने चाहिए ताकी हमारे शरीर के अनुसार अंडकोषों का तापमान कम रह सके.

माहवारी में खुद को ऐसे महफूज रखें

माहवारी लड़कियों और औरतों में एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. पहले जहां एक लड़की में माहवारी की शुरुआत 12 से 15 साल की उम्र में हुआ करती थी, वहीं आज यह 10 साल की उम्र में ही हो सकती है. हमारी दादीनानी के समय में सैनेटरी पैड्स आम जनता की पहुंच में नहीं थे, इसलिए वे घर के फटेपुराने कपड़ों की परतें बना कर इस्तेमाल करती थीं. यही नहीं, उन्हीं कपड़ों को धो कर वे फिर से भी इस्तेमाल करती थीं. पर आज हमारे पास ‘इन दिनों’ में इस्तेमाल करने के लिए अलगअलग तरह के पैड्स, टैंपोंस और कप मौजूद हैं और लड़कियां व औरतें इन्हें इस्तेमाल भी करती हैं.

पर ‘इन दिनों’ में साफसफाई और कुछ दूसरी बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, लेकिन अकसर जानकारी की कमी में बहुत सी लड़कियां और औरतें साधारण सी सावधानियां भी नहीं रख पाती हैं और पेशाब व फंगल इंफैक्शन का शिकार हो जाती हैं.

आप बाजार में भी मिलने वाले किसी भी साधन का माहवारी में इस्तेमाल करें, पर इन बातों का ध्यान जरूर रखें :

सैनेटरी पैड्स

सैनेटरी पैड्स लड़कियों और औरतों द्वारा सब से ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं, क्योंकि ये कम कीमत में आसानी से मिल जाते हैं पर अकसर बहुत सी औरतें इन्हें एक बार इस्तेमाल करने के बाद बदलने में कंजूसी करती हैं जबकि पैड्स खून के बहाव को एक जगह पर जमा कर देते हैं जिस से अकसर योनि में संक्रमण, एलर्जी और निशान पड़ जाते हैं, इसलिए अपने खून के बहाव के मुताबिक पैड्स को 4-5 घंटे के बाद बदलना बहुत जरूरी है. साथ ही, अगर बहाव ज्यादा है तो चौड़े पैड्स का इस्तेमाल करें, ताकि आप किसी भी तरह के लीकेज से बची रहें.

टैंपोंस

पैड्स के मुकाबले टैंपोंस काफी आरामदायक और सुरक्षित होते हैं. ये खून को भी अच्छीखासी मात्रा में सोखने की ताकत रखते हैं, पर इन्हें बनाने में भी कैमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इन्हें भी नियमित समय पर बदलना बहुत जरूरी होता है वरना इन का कैमिकल शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है.

डाक्टरों के मुताबिक इसे 8 घंटे से ज्यादा नहीं पहनना चाहिए और रात में इस के बजाय सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करना चाहिए वरना आप को जलन और खुजली की समस्या हो सकती है.

मैंसट्रूअल कप

यह माहवारी के लिए सब से महफूज माना जाता है, क्योंकि यह कैमिकल रहित सिलिकौन का एक कप होता है जिसे योनि के मुख पर रखा जाता है और भर जाने पर साफ कर के फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है, पर किसी भी तरह की एलर्जी या इंफैक्शन होने पर इस का इस्तेमाल केवल डाक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए.

इसे साफ करते समय डेटोल और सेवलोन वगैरह का इस्तेमाल भी करना चाहिए, ताकि यह पूरी तरह कीटाणु रहित हो जाए.

रखें इन बातों का भी ध्यान

  • -इन दिनों में अपनी अंदरूनी हाईजीन का खास ध्यान रखें, ताकि आप किसी भी तरह के इंफैक्शन से बची रहें.
  • -हमेशा अच्छी कंपनी के बने सामान को ही इस्तेमाल करें.
  • -माहवारी के शुरुआती और आखिरी दिन में जब फ्लो कम होता है तो पैंटी लाइनर पैड्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. ये पैड्स पैंटी में आसानी से चिपक जाते हैं.
  • -‘इन दिनों’ में बहुत भारी वजन को उठाने और लोअर बौडी पार्ट की ऐक्सरसाइज को करने से बचें, क्योंकि इन दिनों में लोअर पार्ट में काफी बदलाव होते हैं.
  • -सिंथैटिक कपड़े की जगह केवल सूती पैंटी का ही इस्तेमाल करें, क्योंकि कई बार सिंथैटिक कपड़े से आप के नाजुक अंग के आसपास लाल निशान हो सकते हैं.

भांग का नशा है बड़ी सजा

सस्ता होने के चलते भांग का नशा बड़ी तेजी से नशेडि़यों के बीच मशहूर होता जा रहा है. वैसे तो भांग सरकारी ठेके से ही मिलती है, लेकिन बहुत बार लोग खुद ही भांग की पत्तियों को पीस कर, उन के गोले बना कर नशे के तौर पर इस्तेमाल करने लगते हैं.

आमतौर पर लोग सालभर भांग का नशा करते हैं, लेकिन होली के त्योहार में इस का शौकिया इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. कई बार लोग भांग को मस्ती से जोड़ कर देखते हैं, पर असल में यह नशा मजा नहीं, बल्कि बड़ी सजा होता है.

भांग एक तरह का पौधा होता है, जिस की पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है. भांग खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में प्रचुरता से पाई जाती है.

भांग के पौधे 3-8 फुट ऊंचे होते हैं. इस के नर पौधे के पत्तों को सुखा कर भांग तैयार की जाती है. भांग के मादा पौधों के फूलों को सुखा कर गांजा तैयार किया जाता है. भांग की शाखाओं और पत्तों पर जमी राल के समान पदार्थ को चरस कहते हैं.

भारत में भांग की खेती बहुत समय से की जाती रही है. ईस्ट इंडिया कंपनी ने कुमाऊं, उत्तराखंड में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यापार को अपने हाथ में ले लिया था. उस ने काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी. दानपुर, दसौली और गंगोली की कुछ जातियां भांग के पौधे के रेशे से कुथले और कंबल बनाती थीं.

इन्होंने किया भांग का प्रचार

भांग के नशे का मस्ती वाला रंग कई फिल्मों और गानों में भी दिखाई देता है. इस को देख कर लोगों को लगता है कि भांग के नशे में मजा ही मजा होता है. भांग को पीसते, उस में ड्राईफ्रूट्स, दूध मिलाते और इस को ठंडाई के रूप में पीते दिखाया जाता है. इसी तरह कुछ लोग इस को प्रसाद के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं.

असल में भांग का नशा अलग तरह का होता है. यह काफी हद तक शरीर के तंत्र पर मस्तिष्क की पकड़ को खत्म कर देता है. मेवों के साथ भांग को बारीक पीस कर बनाई गई ठंडाई स्वादिष्ठ होती है, जिस की वजह से लोग इस को ज्यादा पी जाते हैं.

नहीं रहता शरीर पर कंट्रोल

भांग का नशा करने वाला नशे के बाद जो भी काम करता है, उसी को बारबार करता रहता है. इस की वजह यह होती है कि भांग के नशे के चलते इनसान के दिमाग का कंट्रोल शरीर पर नहीं रहता है.

भांग के नशे के बाद मुंह और जीभ का स्वाद कड़वा सा हो जाता है. तब कुछ भी खाने पर उस का स्वाद महसूस नहीं होता. सोने पर ऐसा लगता है कि आप बिस्तर से ऊपर उठ कर उड़ते जा रहे हैं.

अगर भांग का ज्यादा नशा किया है, तो 2-3 दिनों तक इस का असर रहता है. कई बार हालत इतनी खतरनाक हो जाती है कि इनसान को अस्पताल तक ले जाना पड़ सकता है.

बना देता है मानसिक रोगी

‘द माइंड स्पेस’ क्लिनिक की साइकोलौजिस्ट डाक्टर अदिति जैन कहती हैं, ‘‘ये वे हालात हैं, जब दिमागी तौर पर शरीर का कंट्रोल खत्म होने लगता है. यह डिप्रैशन को बढ़ाने वाला होता है. इस वजह से ही भांग का नशा करने के बाद लोग या तो लगातार हंसते रहते हैं या फिर रोते रहते हैं.

‘‘भांग के लगातार सेवन से खतरे बढ़ जाते हैं. इस का असर दिमाग पर पड़ता है. यूफोरिया, एंजाइटी, याददाश्त का असंतुलित होना, साइकोमोटर परफौर्मेंस जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. इस के साथ ही भांग के सेवन से दिमाग पर खराब असर पड़ता है. गर्भवती महिलाओं के भ्रूण पर बुरा असर पड़ता है. इस की वजह से याददाश्त कमजोर होने लगती है. भांग का नशा आंखों और पाचन क्रिया के लिए भी अच्छा नहीं होता है.’’

कुछ लोग भांग की पत्तियों को चिलम में डाल कर धूम्रपान करते हैं, तब यह खून में सीधे प्रवेश करते हुए दिमाग और शरीर के दूसरे भागों में पहुंच जाती है. यह सोचनेसमझने की ताकत को प्रभावित करता है.

भांग के नियमित इस्तेमाल से साइकोटिक एपिसोड या सीजोफ्रेनिया होने का खतरा दोगुना हो सकता है. भूख में कमी, नींद आने में दिक्कत, वजन घटना, चिड़चिड़ापन, आक्रामकता, बेचैनी और गुस्सा बढ़ना जैसे लक्षण शुरू हो जाते हैं.

अगर कोई आदमी 15 दिन तक लगातार भांग का सेवन करे, तो वह आसानी से मानसिक रोगों का शिकार हो सकता है. लिहाजा, इस नशे से बचें.

सोरायसिस से रहें सावधान

कई बार आप ने देखा होगा कि कुछ लोगों की कुहनी, घुटने या सिर के पीछे लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. ये चकत्ते थोड़े उभरे होते हैं. इस जगह की चमड़ी मोटी और खुरदुरी दिखती है. सामान्य रूप से ये सोरायसिस नामक बीमारी के लक्षण होते हैं.

सोरायसिस चमड़ी से जुड़ी एक बीमारी है. इस में खुजली होने के साथसाथ, पपड़ीदार चमड़ी के अलावा चकत्ते दिखाई देते हैं. आमतौर पर ये चकत्ते घुटने, कुहनी, धड़ और सिर पर सब से ज्यादा होते हैं. जिन लोगों को डायबिटीज, दिल की बीमारी, मोटापा और डिप्रैशन है, उन्हें सोरायसिस होने का खतरा ज्यादा होता है.

इम्यूनिटी सिस्टम और आनुवंशिक वजह से यह बीमारी किसी को भी हो सकती है. इस का असर शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकता है, इसलिए इस के लक्षणों पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है.

होता यह है कि शरीर में खुजली और चमड़ी पर चकत्ते देख कर लोग इन को नजरअंदाज कर देते हैं. यह गलती न करें. सावधान हो जाएं और तुरंत डाक्टर के पास जाएं, क्योंकि ये ही सोरायसिस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं.

अगर घर में किसी को सोरायसिस की शिकायत रह चुकी है तो खास सावधानी बरतने की जरूरत है. स्किन पर अगर खुरदुरापन है, चमड़ी मोटी लगे या उस पर चकत्ते हों, तो माहिर डाक्टर से जांच करा लेनी चाहिए. इस बीमारी का सब से ज्यादा असर कुहनी के बाहरी हिस्से और घुटने पर देखने को मिलता है.

लखनऊ की स्किन स्पैशलिस्ट डाक्टर प्रियंका सिंह बताती हैं, “सोरायसिस को संक्रामक बीमारी नहीं माना जाता है. यह बीमारी स्विमिंग पूल में नहाने, किसी सोरायसिस पीड़ित के साथ संपर्क में आने और किसी सोरायसिस पीड़ित के साथ शारीरिक संबंध बनाने से नहीं फैलती है, इसलिए ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है.”

सोरायसिस के प्रकार

सोरायसिस बीमारी के कई प्रकार हैं. प्लाक सोरायसिस सब से आम है. सोरायसिस से पीड़ित लोगों में से तकरीबन 80 फीसदी से 90 फीसदी को प्लाक सोरायसिस होता है. उलटा सोरायसिस में चमड़ी पर सिलवटें दिखाई देती हैं. यह छोटे, लाल, बूंद के आकार के पपड़ीदार धब्बों जैसा दिखता है. यह अकसर बच्चों और नौजवानों में होता है. कुछ में टुकड़े के ऊपर छोटे, मवाद से भरे थक्के होते हैं. कई बार सोरोयसिस चमड़ी के झड़ने की वजह बनता है.

सोरायसिस में चेहरे और खोपड़ी पर एक चिकने, पीले रंग के धब्बे के साथ जगह दिखाई देती है. यह हाथ के नाखूनों के अंदर गड्ढे और पैर की उंगलियों में भी होता है.

सोरायसिस के चलते चमड़ी में खुजली, चमड़ी का फटना, सूखी चमड़ी, चमड़ी में दर्द, नाखून का उखड़ना, फटना और जोड़ों का दर्द भी होता है. अगर इस के साथसाथ दर्द, सूजन और बुखार लगे तो यह संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं. ऐसे में डाक्टर के पास जाना चाहिए.

सोरायसिस का इलाज

इस बीमारी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन कई ऐसे उपचार जरूर हैं, जो इस के लक्षणों और चमड़ी के चकत्तों को कम कर सकते हैं. इस के इलाज के लिए डाक्टर से बात करने की जरूरत होती है.

सोरायसिस से बचाव के लिए शरीर को साफसुथरा रखें और खुद का ध्यान रखे. सेहत से भरपूर भोजन और दिनचर्या, तनाव से दूर रह कर इस बीमारी से बचा जा सकता है.

धूम्रपान और का सेवन न केवल सोरायसिस का खतरा बढ़ाता है, बल्कि बीमारी को भी खतरनाक बनाता है. सोरायसिस का इलाज करने के लिए स्टेरौयड, क्रीम, रूखी चमड़ी के लिए मौइस्चराइजर या एंटीसैप्टिक क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं.

मैडिकेटेड लोशन या शैंपू, विटामिन डी 3, विटामिन ए या रैटिनोइड क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं. चमड़ी पर छोटे दाने ठीक करने के लिए क्रीम या मलहम का इस्तेमाल कर सकते हैं. पर साथ ही याद रखें कि बिना डाक्टरी सलाह के दवा कभी न लें.

गरमियों की बीमारियां: कर लें बचने की तैयारियां

वैसे तो हर मौसम में कोई न कोई छोटीमोटी बीमारी किसी को भी हो सकती है, लेकिन गरमी का मौसम अपने साथ कई खतरनाक बीमारियां ले कर आता है. इस मौसम में जरा सी लापरवाही करना सेहत पर भारी पड़ सकता है.

दरअसल कुछ ऐसी बीमारियां हैं, जो मौसम के मुताबिक ही होती हैं. गरमियों में डायरिया, फूड पौइजनिंग वगैरह होने का डर बहुत ज्यादा रहता है. इस मौसम में तेज धूप और पसीने की वजह से हीट स्ट्रोक, डिहाईड्रेशन वगैरह से भी लोग बीमार हो सकते हैं. लेकिन तेज धूप से बचाव और डाक्टर की सलाह पर दवा ले कर पूरी तरह से ठीक भी हो सकते हैं.

लू लगना

लू लगने को सामान्य बोली में हीट स्ट्रोक या सन स्ट्रोक भी कहा जाता है.  इसे मैडिकल टर्म में ‘हाइपरथर्मिया’ कहा जाता है. गरमी के मौसम में होने वाली सब से आम बीमारियों में से यह भी एक है. अगर आप लंबे समय तक तेज धूप में रहते हैं, तो लू की चपेट में आ सकते हैं. हीट स्ट्रोक होने पर सिर में तेज दर्द, तेज बुखार, उलटी, तेज सांस लेना, चक्कर आना, कमजोरी महसूस होना या बेहोश हो जाना, यूरिन कम पास होना जैसे लक्षण नजर आते हैं.

इस से बचाव के लिए कभी भी खाली पेट बाहर न निकलें. पानी पीते रहें. जहां तक हो सके, खुद को ढक कर ही धूप में जाएं. दोपहर 11 बजे से 4 बजे तक तेज धूप होती है, तो उस समय बाहर निकलने से परहेज करें.

अगर लू लग गई है, तो सब से पहले इलैक्ट्राल का सेवन करें. नीबू पानी, शिकंजी, आम पना का सेवन करें, जिस से शरीर को पानी की कमी न हो. सिर में तेज दर्द, उलटी या बुखार है, तो डाक्टर की सलाह से दवा लें.

पैरासिटामोल नामक दवा बुखार को दूर करती है. उलटी नहीं रुक रही है, तो उसे रोकने की दवा लें. कोई दवा अपने मन से न लें, बल्कि डाक्टर की सलाह पर ही लें.

फूड पौइजनिंग

फूड पौइजनिंग भी गरमियों में होने वाली एक बड़ी बीमारी है. यह बीमारी दूषित भोजन या पानी के सेवन से होती है. इस मौसम में बैक्टीरिया, वायरस और फंगस तेजी से पनपते हैं. ऐसे में शरीर के अंदर अगर किसी तरह का बैक्टीरिया, वायरस, टौक्सिन वगैरह चला जाए, तो फूड पौइजनिंग हो सकती है.

इस के लक्षण की बात करें, तो इस में पेटदर्द, जी मिचलाना, दस्त, बुखार और शरीर में दर्द वगैरह होते हैं. इस में न सिर्फ पेट मरोड़ के साथ दर्द करता है, बल्कि डायरिया, उलटी जैसी समस्याएं भी नजर आने लगती हैं, इसलिए इस मौसम में रोड किनारे का खाना, कच्चा मीट, खुले में बिक रहा खाना, ठंडा खाना, बासी खाना खाने से बचना बहुत जरूरी है.

टाइफाइड

टाइफाइड दूषित पानी या जूस वगैरह पीने से होता है. आमतौर पर जब संक्रमित बैक्टीरिया पानी के साथ शरीर में दाखिल हो जाता है तब टाइफाइड के लक्षण दिखने लगते हैं. टाइफाइड में तेज बुखार, भूख न लगना, पेट में तेज दर्द होना, कमजोरी महसूस होना जैसे लक्षण नजर आते हैं.

टाइफाइड से बचाव के लिए बच्चों को टाइफाइड वैक्सीन भी लगाई जा रही है. इसे बालिग भी लगवा सकते हैं. इस के अलावा उपचार के लिए दवाओं का सहारा लेना पड़ता है, जो डाक्टर की सलाह पर ही लें.

मीजल्स

यह गरमी में होने वाली एक और बहुत ही आम बीमारी है, जिसे रूबेला या मोरबिली के नाम से भी जाना जाता है. इस के फैलने का तरीका करीबकरीब चिकनपौक्स की तरह होता है.

यह पैरामाइक्सो वायरस से फैलता है, जो गरमी में सक्रिय होता है. इस के लक्षणों में कफ, हाई फीवर, गले में दर्द, आंखों में जलन वगैरह हैं. इस में पूरे शरीर पर सफेद जैसे दाने हो जाते हैं. इस से बचाव का एकमात्र उपाय एमएमआर वैक्सीनेशन है.

चिकनपौक्स

यह वायरस से होने वाली बीमारी है. इस बीमारी में पूरे शरीर की स्किन पर बड़ेछोटे पस वाले दाने हो जाते हैं, जो ठीक होने के बाद भी दाग छोड़ जाते हैं. जिन लोगों की इम्यूनिटी कम होती है, उन्हें आसानी से यह बीमारी अपने चंगुल में ले सकती है.

वैरीसेला जोस्टर वायरस की वजह से चिकनपौक्स होता है. आबोहवा में अगर मरीज का ड्रौपलैट गिर जाए, तो यह इस के फैलने की वजह बनता है. यह मरीज के छींकने या खांसने से फैलता है.

इस से बचाव के लिए नवजात शिशुओं को एमएमआर का टीका लगाया जाता है, जो बड़े भी लगवा सकते हैं. चिकनपौक्स से बचने के लिए हाईजीन का खास ध्यान रखना जरूरी होता है.

स्किन पर रैश और घमौरी होना

गरमी में पसीना ज्यादा निकलता है. ऐसे में अगर आप तंग कपड़े पहने हों या पसीना ठीक तरीके से शरीर से बाहर न निकल पाए, तो स्किन पर रैश और घमौरियां हो जाती हैं, जिन की वजह से खुजली की समस्या हो सकती है. ऐसे में गरमियों में हलके रंग वाले ढीले सूती कपड़े पहनें.

हैपेटाइटिस ए यानी पीलिया

गरमियों में यह बीमारी भी बहुत ही आम है. पीलिया भी दूषित पानी और बासी खाना खाने से होता है. इस बीमारी में मरीज की आंखें और नाखून पीले होने लगते हैं और पेशाब भी पीले रंग का होता है. इस का सही समय पर इलाज नहीं कराया जाए, तो यह जानलेवा भी हो सकता है.

पीलिया से बचने के लिए सब से जरूरी है लिवर को हैल्दी रखना. इस के लिए डाक्टर की सलाह पर ही दवा लें.

अगर पीलिया ठीक हो गया है, तब भी कुछ महीनों तक सादा भोजन यानी खिचड़ी, दलिया खाने की सलाह दी जाती है.

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