गहरी पैठ: यूक्रेन राष्ट्रपति ने दी दुनिया को सीख

सोवियत संघ का कभी हिस्से रहे यूक्रेन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का हुक्म मानने से इनकार कर के अपने देश की जमीन को बरबाद तो करवा दिया पर बदले में जो इज्जत उन के नेता वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कमाई है उस की कीमत बहुत ज्यादा है. अब दुनियाभर का हर छोटा देश ही नहीं, हर छोटा वर्ग, जाति, रंग का समूह इस भरोसे में रह सकता है कि यदि कोई सही हो और दिखने में कितना कम, छोटा और कमजोर लगे, अपनी पर आ जाए तो बड़ों को हिला सकता है.

हमारे देश पर यह बात पूरी तरह लागू होती है. थोड़े से मुट्ठीभर पढ़ेलिखे, जन्म से अपने को ऊंचा सम?ाने वाले, धर्म के रखवाले पूरे देश को गुलाम बना कर सदियों से रखते आए हैं क्योंकि यहां की दबीकुचली जनता को कोई वोलोदिमीर जेलेंस्की नहीं मिला और न ही यूक्रेनी जनता सा जज्बा पनपा. नतीजा यह रहा है कि यहां हमेशा आम जनता अपने ही तानाशाहों के जुल्म सहती रही है और आज भी सह रही है.

पुतिन जिस ?ाठ के सहारे यूक्रेन पर कब्जा कर के वहां मनमरजी के शासक को बैठाना चाहता था, उसी तरह के ?ाठ का सहारा गीता के उपदेशों, रामायण की कथाओं, महाभारत के किस्सों और पुराणों की कहानियों से यहां के अछूतों और शूद्रों के हलक में उड़ेला गया है. फुले या भीमराव अंबेडकर जैसे सैकड़ों ने ?ाठ का परदाफाश किया पर उन की बात इस तरह हर घर में नहीं पहुंची जैसे यूके्रन में पहुंच गई.

यूक्रेन में हर घर अब एक लड़ाई का मैदान बन गया है, हर सड़क पर रूसी सेना को लड़ना पड़ रहा है. यूक्रेन के घर वैसे ही जलाए जा रहे हैं जैसे गरीबों की बस्तियों को बुलडोजरों से इस देश में नष्ट किया जा रहा है पर इन टूटे मकानों से विरोध की गोलियों की बौछार हो रही है.

यूक्रेन की हिम्मत देख कर पूरी दुनिया उस के साथ हो गई है. एटम बमों से लैस विशाल, दुनिया का सब से बड़ा देश रूस अब दुनिया का सब से ज्यादा नफरत का निशाना बन गया है. रूसी जनता का खुद उस पर भरोसा है यह पता नहीं क्योंकि रूसी हमले में साथ देने के लिए भरती होने के लिए रूस में कतारें नहीं लग रहीं. हमारे यहां हिंदू राष्ट्र, मंदिरों, देवीदेवताओं, गायों के नाम ?ाठ पर ?ाठ बोल कर जो जुल्म आज 21वीं सदी में भी गरीबों, दलितों और पिछड़ों पर किए जा रहे हैं और उन के बुलेट नहीं तो बैलेट के हथियार को भी बेमतलब का बनाया जा रहा है, वह रूसी हमले की तरह ही है.

अगर आम जनता में बल हो जो यूक्रेन की जनता में दिख रहा है तो एक नहीं कईकई वोलोदिमीर जेलेंस्की पैदा हो जाएंगे जो दलित और पिछड़ों के नेताओं की तरह अपनी जमात को लूटने वालों के सामने नाक रगड़ने की जगह सिर उठा कर खड़े होंगे. रूस एटम बमों की धमकी दे कर अपने छोटे पड़ोसी को धमका रहा है, हमारे देश में छोटा सा वर्ग धर्म के बमों, कानून के हथियारों और पढ़ाई से आई चतुराई का फायदा उठा कर अपने कब्जे को लगातार सदियों से बनाए रख रहा है. क्या हमारे यहां वोलोदिमीर जेलेंस्की खड़े होंगे?

गहरी पैठ: भारतीय जनता पार्टी और जातिवाद

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनावों में बारबार जातिवादी पार्टियों को कोस रही है कि वे कभी किसी का भला नहीं कर सकतीं. असल में अगर देश में आज सब से बड़ी जातिवादी पार्टी है तो वह भारतीय जनता पार्टी है, जिस ने पूरे देश में पौराणिक जातिवाद को हर पायदान पर बिना साफ किए लागू कर दिया है.

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यह जातिवादी तौरतरीकों का नतीजा है कि आज देश में भूखा ब्राह्मण सुदामा सरीखा कहीं नहीं मिलेगा, क्योंकि हर गांव में 5-6 मंदिर और हर शहर की हर गली में 5-6 मंदिर खुलवा दिए गए हैं जिन में ऋषिमुनियों की संतानें ठाठ से ‘हमारे पास तो कुछ नहीं है’, ‘सब भगवान का है’ कह कर रेशमी कपड़ों में, एयरकंडीशंड हालों में, हलवापूरी रोज चार बार खा रहे हैं.

सरकार को संविधान के हिसाब से 50 फीसदी नौकरियां पिछड़ों और दलितों को दे देनी थीं, पर किसी भी सरकारी दफ्तर में घुस जाएं, वहां इक्केदुक्के ही सपाबसपा वाले नाम दिखेंगे. वहां काम कर रहे लोग ज्यादातर ठेकों पर काम कर रहे हैं और ठेकदार को जाति के हिसाब से रखने का कोई कानून नहीं है. ठेकेदार ऊंची जातियों का है और उस ने जिन्हें रखा होगा वे भी ऊंची जातियों के ही होंगे.

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भारतीय जनता पार्टी बारबार माफिया को नीची जातियों से जोड़ रही है. यह पुरानी तरकीब है. पुराणों में हर कहानी में दस्युओं को, जो कहर ढाते थे, नीची जाति का दिखाया गया है. रामायण में मारीच, शूर्पणखा, रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद सब को माफिया की तरह दिखाया गया है और पिछले 200 सालों से हर शहर में रामलीला के दौरान उन्हें काला भुजंग बता कर दिखाया जाता है. जब अमित शाह कहते हैं कि कमल पर वोट नहीं दिया तो जातिवादी माफिया आ जाएगा, उन का इशारा इन्हीं की ओर होता है. उन के लिए ये जातियां पौराणिक युग के दस्युओं, शूद्रों और अछूतों की संतानें हैं. शंबूक या एकलव्य जैसों के लिए भारतीय जनता पार्टी में कोई जगह नहीं है.
सरकार के 500 सब से ऊंचे अफसरों में से मुश्किल से 60 अफसर उन जातियों के हैं जिन्हें रिजर्वेशन मिला हुआ है.

भारतीय जनता पार्टी चुनचुन कर ऊंची जातियों के लोगों को ताकत दे रही है. वैसे भी हर पार्टी में चाहे वह समाजवादी हो या बहुजन समाज या तृणमूल कांग्रेस, ऊंची जातियों के ही लोग ऊंचे पदों पर हैं पर फिर भी कम से कम वे बात तो उन जातियों की करते हैं जिन के बच्चे आज पढ़ कर आगे आ गए हैं और हर बाधा पार करने को तैयार हैं.

यह न भूलें कि देश चलता उन मजदूरों और किसानों के बल है जिन्हें भारतीय जनता पार्टी माफिया कहती है. यहां तक कि पुलिस और ठंडी हड्डियां जमाने वाली पहाड़ी सीमाओं पर यही लोग हैं. इन्हें माफिया के साथ होने की गाली दे कर भारतीय जनता पार्टी जाति के नाम पर देश को बांट रही है.

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देश का बंटवारा हिंदूमुसलिम के नाम पर तो 1947 में भी नहीं हुआ था, क्योंकि जो लोग पिछले 500-600 सालों में मुसलमान बने थे, उन में ज्यादातर उन जातियों के थे जिन्हें माफिया की गाली दी जा रही है. इसी गाली को एकलव्य को सुनना पड़ा था, घटोत्कच को सुनना पड़ा था, हिरण्यकश्यप को सुनना पड़ा था, बाली को सुनना पड़ा था. आज नए दौर में नए नेता सुन रहे हैं.

गहरी पैठ: चुनाव और जाति के नाम पर बंटवारा

चुनावों के टिकटों के बंटवारे में जाति को कितना भाव दिया गया है, यह किसी से छिपा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट हर माह एकदो फैसले अवश्य ऐसे देती है जिन में जाति का सवाल उठाया जाता है पर जब दुनियाभर में लिंग, रंग, धर्म या क्षेत्र पर भेदभाव की बात होती है तो भारत सरकार बारबार कहती है कि जाति तो कोई भेदभाव वाली बात ही नहीं है.

अब अमेरिका की कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की सीनेट ने फैसला किया है कि जाति के सवाल को लिंग, धर्म, भाषा वगैरह के मामलों की तरह लिया जाएगा और किसी की जाति को ले कर किसी को कुछ कहने, कोई चीज या सेवा देने में आनाकानी करने, उन्हें ज्यादा सुविधाएं देने पर सवाल उठाने का हक न होगा.

मजेदार बात यह है कि स्टेट यानी सरकार के फंड से चलती इस यूनिवर्सिटी के 80 भारतीय रंग वाले शिक्षकों ने इस की जम कर खिलाफत की. अमेरिका की 4,85,000 छात्रों वाली इस यूनिवर्सिटी में 55,000 पढ़ाने वाले हैं जिन में काफी भारतीय भी हैं. ये भारतीय ज्यादातर ऊंची जातियों के हैं जो बारबार दोहराते हैं कि भारत तो एक है, भारतीयों में जाति को ले कर कोई भेदभाव नहीं है.

जाति के सवाल को नकारने का मतलब यही होता है कि कहीं पिछड़े और दलित यूनिवर्सिटी में कोटों का फायदा न उठा लें और वहां पढ़ाने का काम न मिलने लगे. अगर वे साथ उठनेबैठने लगेंगे तो उन में आपस में लेनदेन भी होगा और एकदूसरे के घर जाना पड़ेगा. आज भी विदेशों में दशकों नहीं पीढि़यों तक हिंदुस्तान से बाहर रहने के बावजूद घर में भारतीय जाति देख कर ही एकदूसरे को बुलाते हैं. गोरा आ रहा हो तो कोई बात नहीं, चीनीजापानी चलेगा पर मुसलिम, पिछड़ा या दलित नहीं होना चाहिए.

अगर ऊंची जाति के घरों के बच्चों ने कहीं दलितपिछड़ों में प्रेम का बीज बो लिया तो आफत आ जाएगी, इसलिए भारतीय मूल के मातापिता अपने बच्चों के भारतीय मूल के दोस्तों के नाम के साथ जाति पर सवाल करने में देर नहीं लगाते. अमेरिका में बराबरी की मांग करने वाले अकसर इस सवाल को खड़ाकरते रहते हैं. भारत सरकार और वहां की कट्टर हिंदू संस्थाएं इस की जम कर खिलाफत करती हैं, क्योंकि हमेशा की तरह यहां जाति, जो पूरी तरह रगरग में फैली है, नकारा जाता है. एक देश, एक लोग का नारा लगाने वाले जाति के सवाल पर एकदम कान खड़े कर लेते हैं. बैकवर्ड और दलित सेवाकरते रहे हैं, एक हो कर और ऊंचों को वोट देते रहें, बस यही गुंजाइश छोड़ना चाहते हैं.

अमेरिका ही नहीं यूरोप में भी जाति के नाम पर अत्याचारों के सवाल उठाए जाते रहते हैं पर हर कहीं मौजूद ऊंची जातियों के भारतीय मूल के लोग इस पर अपना गुस्सा दिखाते हैं और अपनी बोलने की कला का फायदा उठा कर मुंह बंद कर देते हैं.

दलित और पिछड़ों के साथ दिक्कत है कि स्कूलकालेजों में पढ़ने के बाद भी वे न बोलना सीख रहे हैं, न पढ़ना. वे पढ़ते तो वही हैं जो ऊंची जातियों वाले पढ़ाते हैं, सुनते हैं तो वही जो ऊंची जातियों के सुनाते हैं, देखते हैं तो वही जो ऊंची जातियों वाले दिखाते हैं और आखिर में करते हैं तो वही जो ऊंची जातियों वाले कराते हैं. कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की बीमारी दूसरे विश्वविद्यालयों में न फैल जाए यह फिक्र होनी चाहिए वहां की हिंदू संस्थाओं को जहां ज्यादातर ब्राह्मण और बनिया का गठजोड़ चलता है.

गहरी पैठ: औरतों की बदलती सामाजिक स्थिति

औरतों के बारे में हमदर्दी रखने वाले कानूनों और लगातार अदालतों का औरतों की शिकायतों पर आदमियों को जेल में भेज देने से जहां आदमियों के लिए औरतों को खिलवाड़ की चीज सम?ाने पर खतरा पैदा कर दिया है, वहीं औरतों का अपनी जवानी और बदन का इस्तेमाल अपने सुखों को पाने का रास्ता भी बंद कर दिया है. पिछले 10-20 सालों में जिस तरह से औरतों ने सामाजिक बेइज्जती से डरे बिना शिकायतें करना शुरू किया है उस से सैकड़ों लोग देशभर में जेलों में बंद हैं और छूटते हैं तो तब जब शिकायती औरतें अपना रवैया बदलती हैं.

एक तरह से तो यह सामाजिक बदलाव अच्छा है और आदमी औरतों को कमजोर नहीं सम?ा सकते पर दूसरी ओर औरतों के हाथ से अपने बदन का इस्तेमाल कर के अपना काम निकलवाने का मौका मारा गया है. चाहे यह मौका औरतों की अपनी कमजोरियों को पूरा करने में काम आता था पर फिर भी राजनीति, दफ्तरों, छोटीबड़ी नौकरियों में जहां औरतों के पास बदन के अलावा कोई और हुनर नहीं होता वहां कुछ दे देता था. इन कानूनों की वजह से अब औरतों को अपने बदन और अपनी अदाओं से नहीं, अपने काम और गुणों से आदमियों से डील करने की आदत डालनी पड़ेगी.

जिन लड़कियों को किशोरपन में आदत डाल दी जाती थी कि एक मुसकान से वे कुछ पा सकती हैं उन्हें अब सारी मेहनत अपने हुनर को ठीक करने पर लगानी होगी. आदमियों को भी एहसास हो गया है कि औरत कोई कबूतरी नहीं कि कुछ दाने फेंक कर उसे पिंजरे में बंद किया जा सकता है. जिन औरतों में योग्यता होगी, हुनर होगा, सिर्फ बदन का इस्तेमाल कर बच्चे पैदा करना आता होगा, वे पीछे रह जाएंगी. मांबाप को अब अपनी सुंदर बेटियों पर नहीं अपनी हुनरमंद लड़कियों पर सिर ऊंचा करना होगा और लड़की सांवली है या नाटी है या सुंदर नहीं है, अब बेमतलब का हो गया है.

यह बदलाव उन धर्मग्रंथों के बावजूद हो रहा है जिन में बारबार औरतों को पाप की खान बताया गया है और बेटी के जन्म होते ही घर वालों के मुंह लटक जाते थे. अब बेटियां घरों की शान बनने लगी हैं, क्योंकि वे लड़कों से ज्यादा मेहनत कर रही हैं. उन्हें मालूम है कि सिर्फ अच्छे बदन और सुंदर चेहरे के बल पर वे अपनी जिंदगी नहीं गुजार सकतीं. आदमी अब कानूनों की वजह से भयभीत हैं और कभी भी कौन सी लड़की जो आज छूट दे रही है, कल बिफर जाए, पता नहीं.

अभी दिल्ली में एक बौडी बिल्डर को जेल भेज दिया गया क्योंकि 38 साल की एक बच्चे की विवाहित मां ने आरोप लगा दिया कि उस के साथ न सिर्फ शादी का वादा कर के सैक्स किया गया, उस की वीडियो क्लिप बना कर उसे ब्लैकमेल किया गया और इस वजह से वह न पति की रह गई है, न प्रेमी ने उसे अपनाया. प्रेमी बौडी बिल्डर जो शायद सोच रहा होगा कि औरत भी उस के शरीर को चाहती है अब जेलों में रहेगा और वकीलों पर अपनी जमापूंजी खर्च करेगा. आधीअधूरी शिकायत के बावजूद प्रेमी की अदालत ने नहीं सुनी.

आदमियों के लिए तो यह चेतावनी है ही पर औरतों के लिए भी सबक है कि आज के युग में चाहे वे अच्छी प्रेमिका बनना चाहें या अच्छी बीवी, उन्हें बहुत तरीके के हुनर आने चाहिए. अपनी पढ़ाई पूरी करनी होगी, शादी हो गई तो सबकुछ मिल गया जैसी बातें नहीं चलेंगी. गांवकसबों में भी यह सम?ा फैल गईर् है और लड़कियों ने अब पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है और वे लड़कों से ज्यादा आगे निकल रही हैं.

औरतों के बदन की खरीदारी जितनी जल्दी खत्म हो, उतना अच्छा है क्योंकि पाखंड और अंधविश्वास तभी दूर होंगे जब औरतें अपने को भगवान की पाप की गिनती में नहीं गिनेंगी.

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