30 दिसंबर, 2018 की सुबह साढ़े 10 बजे देवरिया के जिला कारागार में उस समय अफरातफरी मच गई, जब जिलाधिकारी अमित किशोर ने एसडीएम (प्रशासन) राकेश कुमार पटेल, एडीएम रामकेश यादव, जिला सूचना विज्ञान अधिकारी कृष्णानंद यादव, एएसपी शिष्यपाल, सीओ (सदर) वरुण कुमार मिश्र और साइबर एक्सपर्ट सहित करीब 500 पुलिसकर्मियों के साथ जेल में छापा मारा. उन का मुख्य टारगेट था बैरक नंबर-7. इस बैरक में पूर्वांचल के कुख्यात बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद बंद थे.
जिलाधिकारी अमित किशोर ने यह काररवाई प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार के निर्देश पर की थी. दरअसल एक दिन पहले 29 दिसंबर को राजधानी लखनऊ के रहने वाले रीयल एस्टेट कारोबारी मोहित जायसवाल ने लखनऊ के कृष्णानगर थाने में पूर्व सांसद अतीक अहमद, उन के बेटे उमर अहमद सहित 4 गुर्गों गुलाम इमामुद्दीन, गुलफाम, फारुख और इरफान के खिलाफ अपहरण, धोखाधड़ी, रंगदारी मांगने, जाली कागज तैयार करने और आपराधिक साजिश रचने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.
मोहित जायसवाल ने पुलिस को बताया कि 26 दिसंबर, 2018 को लखनऊ से उन का अपहरण कर उन्हें देवरिया जेल लाया गया था. जेल में बंद पूर्व सांसद अतीक अहमद की बैरक नंबर-7 में उन के बेटे उमर अहमद, अतीक अहमद और 2 गुर्गों गुलाम इमामुद्दीन और इरफान ने उन्हें जान से मारने की नीयत से बुरी तरह पीटा.
इस के साथ ही इन लोगों ने उन की करीब 45 करोड़ रुपए की संपत्ति हथियाने के लिए उन से जबरन स्टांप पेपरों पर दस्तखत करा लिए थे. उस के बाद उन्हें जबरन गाड़ी में बैठा कर लखनऊ के गोमतीनगर में फेंक दिया और उन की गाड़ी लूट कर चारों गुर्गे मौके से फरार हो गए. गौरतलब है, इलाहाबाद के बहुचर्चित मरियाडीह दोहरे हत्याकांड के केस में अतीक अहमद देवरिया जेल की बैरक नंबर-7 में बंद थे.
अतीक अहमद के खिलाफ कृष्णानगर थाने में मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया था. ये कोई मामूली बात नहीं थी. एक कैदी ने जेल के भीतर रहते हुए सारे कायदेकानून तोड़ते हुए प्रशासन की नाक के नीचे ऐसा दुस्साहस किया कि प्रशासन उस के सामने बौना बना रहा.
मामला जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा तो उन्होंने इस की सच्चाई जानने के लिए प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार को लगाया. सरकार ने एडीजी (जेल) डा. शरद से 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी ताकि देवरिया जेल प्रशासन पर जवाबदेही तय की जा सके.
एडीजी (जेल) डा. शरद के निर्देश पर इस मामले की जांच गोरखपुर मंडलीय कारागार के वरिष्ठ जेल अधीक्षक डा. रामधनी और एसपी (देवरिया) एन. कोलांची को सौंपी गई थी. दोनों अधिकारियों ने देवरिया जेल जा कर मामले की जांच की.
जेल प्रशासन भी डर गया अतीक अहमद से
जांच में मोहित जायसवाल द्वारा लगाए गए आरोप सही पाए गए. इस में देवरिया जेल अधिकारियों की घोर लापरवाही उजागर हुई. 26 दिसंबर, 2018 की वह सीसीटीवी फुटेज भी डिलीट कर दी गई थी, जिस में कारोबारी मोहित जायसवाल के साथ मारपीट की घटना कैद थी. फुटेज की बारीकी से जांच करने पर एक जगह मोहित को दरजन भर लोगों के साथ जेल के भीतर जाते हुए देखा गया था, जबकि जेल के आगंतुक रजिस्टर में 26 दिसंबर को सिर्फ मोहित जायसवाल के अलावा एक और व्यक्ति के आने की एंट्री दर्ज थी.
यह मामला साफतौर पर घोर लापरवाही की ओर इशारा कर रहा था. जांच में डिप्टी जेलर देवकांत यादव, हेड वार्डन मुन्ना पांडे, वार्डन राकेश कुमार शर्मा और वार्डन रामआसरे की लापरवाही साफसाफ झलक रही थी. जेल अधीक्षक दिलीप पांडे और जेलर मुकेश कटियार की कार्यशैली भी काफी संदिग्ध पाई गई थी. 24 घंटों के भीतर जांच कर के दोनों अधिकारियों ने रिपोर्ट एडीजी (कारागार) डा. शरद को भेज दी थी.
जांच रिपोर्ट के आधार पर एडीजी (कारागार) डा. शरद ने डिप्टी जेलर देवकांत यादव, हेड वार्डन मुन्ना पांडे, वार्डन राकेश कुमार शर्मा और वार्डन रामआसरे को तत्काल निलंबित कर दिया और जेल अधीक्षक दिलीप पांडे व जेलर मुकेश कटियार के खिलाफ विभागीय काररवाई करने के निर्देश दिए.
जेल अधिकारियों द्वारा पूर्व सांसद अतीक अहमद के खिलाफ कानूनी काररवाई न करने पर ही प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार ने जांच के आधार पर डीएम अमित किशोर को जेल में जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए.
डीएम की मौजूदगी में अतीक अहमद के बैरक नंबर-7 की जांच की गई तो वहां सेलफोन, कई सिमकार्ड, खानेपीने की सामग्री (काजू, किशमिश, बादाम आदि) के अलावा और भी कई चीजें बरामद की गईं. पुलिस अधिकारियों ने बरामद चीजों को अपने कब्जे में ले लिया था.
इस मामले में साफतौर पर जेल अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी. जेल की गहनता से छानबीन करने पर डीएम अमित किशोर और एसपी एन. कोलांची ने जेल परिसर में बाहुबली अतीक अहमद के आतंक का अहसास महसूस किया.
अतीक का आतंक देख कर सरकार ने उसी दिन उसे देवरिया से बरेली जेल स्थानांतरित करने का फैसला ले लिया. बरेली जेल स्थानांतरित होने का फैसला सुनते ही अतीक अहमद का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. यही नहीं पति से मिलने आई उस की पत्नी शाइस्ता परवीन और बहन सलहा खान ने मीडियाकर्मियों को बयान देते हुए इस काररवाई को एक साजिश बताया.
खैर, सच और झूठ का पता तो अदालत में हो ही जाएगा. मुद्दा यह है कि बाहुबली के आतंक के सामने पुलिसप्रशासन ने घुटने क्यों टेक दिए थे? जेल प्रशासन उस के इशारे पर क्यों नाचता था? यह सब जानने के लिए अतीक अहमद के अतीत में झांकना होगा कि उस ने किस तरह जुर्म की दुनिया से राजनीति के गलियारों में कदम रखा.
अतीक अहमद की कर्मकथा
56 वर्षीय अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त, 1962 को हुआ था. मूलरूप से वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के रहने वाले थे, जो कालांतर में परिवार सहित इलाहाबाद, चकिया के कसारी मसारी में आ कर रहने लगे थे. बचपन से ही दबंग रहे अतीक अहमद की पढ़ाईलिखाई में कोई खास रुचि नहीं थी. सन 1979 में उन्होंने इलाहाबाद के एमआईसी विद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा दी थी लेकिन फेल हो जाने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई छोड़ दी. पढ़ाई से मुंह मोड़ लेने के बाद अतीक अहमद जुर्म की दुनिया में पहुंच गए.
जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अतीक अहमद के खिलाफ कत्ल का पहला केस सन 1979 में इलाहाबाद के खुल्दाबाद थाने में दर्ज हुआ था. उस के बाद अतीक ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. साल दर साल उन के जुर्म की किताब के पन्ने थानों के रोजनामचे में दर्ज होते रहे.
1992 में इलाहाबाद पुलिस ने अतीक की हिस्ट्रीशीट खोल दी, जिस में बताया गया था कि अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशांबी, चित्रकूट, इलाहाबाद, घूमनगंज, खुल्दाबाद, शाहगंज, कोतवाली, कर्नलगंज, बरेली, कीडगंज ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली, गुंडा ऐक्ट, अवैध हथियार रखने, गैंगस्टर, बलवा आदि के मामले दर्ज हैं.
अतीक के खिलाफ सब से ज्यादा मामले इलाहाबाद जिले में ही दर्ज हुए थे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सन 1986 से 2007 तक अतीक अहमद के खिलाफ एक दरजन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर ऐक्ट के तहत दर्ज किए गए थे.
अंतरराज्यीय गिरोह के सरगना खुल्दाबाद थाने के हिस्ट्रीशीटर अतीक अहमद के खिलाफ इस साल तक 75 मुकदमे दर्ज हो चुके थे. उन के गिरोह में 138 सदस्य थे. कचहरी में पुलिस वकीलों के बीच शूटआउट में 4 लोगों का कत्ल, चकिया में नस्सन हत्याकांड, चांद बाबा हत्याकांड, कचहरी परिसर में बम से हमला और चकिया में निवास के सामने भाजपा नेता अशरफ हत्याकांड से अतीक अहमद शहर और प्रदेश में सुर्खियों में बने रहे.
खैर, अपराध की दुनिया में नाम कमा चुके खूंखार अतीक अहमद को समझ आ चुका था कि सत्ता की ताकत कितनी अहम होती है. पुलिस से बचना है तो सत्ता का सुरक्षा कवच पहनना जरूरी है. इस के बाद अतीक ने राजनीति का रुख कर लिया.
सन 1989 में उन्होंने पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमाई. नतीजतन चुनाव जीत कर वह विधायक बन गए. विधायक बने अतीक अहमद ने सन 1991 और 1993 का विधानसभा चुनाव भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और जीत हासिल कर विधायक बन गए.
अपराधी से विधायक बने अतीक अहमद की इलाहाबाद में तूती बोलती थी. समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की नजर दबंग अतीक अहमद पर पड़ी तो उन्होंने सन 1996 के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी का टिकट दे कर उन्हें चुनाव लड़ाया. फलस्वरूप अतीक फिर से विधायक चुने गए.
दबंग से बाहुबली बने अतीक अहमद ने सन 1999 में समाजवादी पार्टी से रिश्ता तोड़ कर सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल का दामन थाम लिया. अतीक अहमद की दबंगई का जलवा देख कर सोनेलाल पटेल ने इलाहाबाद के बजाए उन्हें प्रतापगढ़ से चुनाव मैदान में उतारा. विधानसभा के चुनाव में पहली बार अतीक को हार का मुंह देखना पड़ा. सन 2002 में अपना दल ने उन्हें उन के पुराने चुनावी मैदान से खड़ा किया. यहां से चुनाव जीत कर अतीक फिर से विधायक बन गए.
अतीक अहमद बने मुलायम सिंह के सिपहसालार
सन 2003 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो दल बदलने में माहिर अतीक अहमद ने फिर से मुलायम सिंह यादव का दामन पकड़ लिया. सपा मुखिया ने बाहुबली अतीक अहमद की पुरानी बातों को भुला कर अपने खेमे में पनाह दे दी. सन 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद को फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह सांसद बन गए.
राजनीति में आने के बाद अतीक अहमद ने खुल्दाबाद में रंगदारी को ले कर कपड़ा व्यवसाई नीटू सरदार की हत्या करा कर क्षेत्र में दहशत फैला दी. नीटू सरदार हत्याकांड को भले ही 15 साल बीत गए हैं, लेकिन लोगों के जहन में आज भी उस की टीस है. विधायक अतीक अहमद ने रंगदारी को ले कर हुए विवाद में नीटू सरदार की गोलियों से छलनी कर के दिनदहाड़े हत्या करा दी थी.
इस हत्या में तब के विधायक रहे बाहुबली अतीक अहमद सहित 7 लोग आरोपी बनाए गए थे, जिस में अतीक के अलावा मोहम्मद जाकिर, मोहम्मद अहमद फहीम, मोहम्मद कैफ, नरेंद्र सिंह, शेरू उर्फ शिराज और अशरफ शामिल थे. बाद के दिनों में शेरू उर्फ शिराज की मौत हो जाने के कारण उस पर से मुकदमा समाप्त कर दिया गया था और अशरफ के गैरहाजिर रहने के कारण उस की केस फाइल अलग कर दी गई थी.
लंबे समय तक विशेष अदालत में चले इस मुकदमे में विशेष जज पवन कुमार तिवारी ने पूर्व सांसद अतीक अहमद सहित पांचों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया. उन्होंने 16 दिसंबर, 2018 को यह फैसला खान फरहत, खान शौकत, एडवोकेट राधेश्याम पांडेय और शासकीय अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के बाद दिया था.
कोर्ट ने साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद कहा कि इस मामले की कडि़यां पूरी तरह जुड़ नहीं पाईं, जिस से अपराध साबित होता है. बचावपक्ष के तर्क अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में आरोपों को प्रमाणित नहीं कर सके.
हत्या एवं आपराधिक साजिश रचने के आरोप को संदेह से परे साबित करने में अभियोजन पक्ष असफल रहा है. न्यायहित की चिंतन की स्याही और चेतना की लेखनी का निष्कर्ष स्पष्ट व साफ है कि दंडित किया जाना न्यायहित में नहीं है, इसलिए सभी आरोपियों को बरी किया जाता है.
आरोपियों के बरी किए जाने का मुख्य आधार पुलिस द्वारा विवेचना के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्यों को कोर्ट में साबित नहीं कर पाना था, जो साक्ष्य प्रस्तुत हुए, उन से मुकदमे की पूरी कडि़यां जुड़ नहीं पाई थीं.
मुकदमे के वादी रहे नीटू के पिता की मौत 2004 में होने के कारण उन का कोर्ट में बयान दर्ज नहीं हो सका. नीटू के पिता ने नामजद आरोपी जोगेंद्र सिंह को बनाया था. लेकिन बाहुबली अतीक के दबाव में आ कर नामजदगी गलत बता कर पुलिस ने दूसरे को आरोपी बना दिया था. और तो और बाहुबली की दहशत का आलम यह था कि जितने भी गवाह पेश हुए, किसी ने भी घटना का समर्थन नहीं किया.
मृतक नीटू सरदार की पत्नी जितेंद्र कौर भी अपने बयान से पलट गई. मृतक की मां परमदीप कौर ने भी इसी तरह का बयान दिया. नीटू के भाई अरविंद सिंह ने भी घटना का समर्थन नहीं किया. इस का सीधा लाभ आरोपियों को मिला.
खैर, 2004 के आम चुनाव में फूलपुर से सपा के टिकट पर अतीक अहमद सांसद बन गए थे. उन के सांसद बनने पर इलाहाबाद (पश्चिम) विधानसभा सीट खाली हो गई थी. इस सीट पर उपचुनाव हुआ. सपा ने सांसद अतीक अहमद के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया था, वहीं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने कभी सांसद अतीक का दाहिना हाथ कहे जाने वाले राजू पाल को चुनावी मैदान में उतार दिया.
राजू पाल की हत्या
राजू पाल ने बाहुबली के दुलारे छोटे भाई अशरफ अहमद को हरा कर चुनाव जीत लिया. राजू पाल की जीत से सांसद अतीक अहमद खुश नहीं थे, क्योंकि उन के अपने ही प्यादे से उन्हें करारी शिकस्त मिली थी. इस शिकस्त को वह बरदाश्त नहीं कर पाए और उसे रास्ते से हटाने की खतरनाक साजिश रच डाली.
उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद ही 25 फरवरी, 2005 को दोपहर 3 बजे दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गई. राजू पाल एसआरएन अस्पताल स्थित पोस्टमार्टम हाउस से अपने समर्थकों के साथ 2 गाडि़यों में धूमनगंज के नीवां स्थित अपने घर लौट रहे थे, तभी सुलेमसराय में जीटी रोड पर अमितदीप मोटर्स के पास उन की गाड़ी को घेर कर गोलियों की बौछार कर दी गई थी.
उस वक्त विधायक राजू पाल खुद क्वालिस कार की ड्राइविंग सीट पर थे. उन के बगल में उन के दोस्त की पत्नी रुखसाना बैठी थी, जो उन्हें चौफटका के पास मिली थी. इसी गाड़ी में संदीप यादव और देवीलाल भी सवार थे. पीछे स्कौर्पियो में ड्राइवर महेंद्र पटेल और ओमप्रकाश तथा नीवां के सैफ समेत 4 लोग और थे. दोनों गाडि़यों में एकएक शस्त्रधारी सिपाही भी था.
राजू पाल ने सांसद अतीक अहमद से अपनी जान को खतरा बताया था, इसीलिए उन की सुरक्षा में सिपाही तैनात कर दिए गए थे. कई गोलियां लगने से घायल राजू पाल समेत सभी लोगों को औटो से जीवन ज्योति अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. इस शूटआउट में संदीप यादव और देवीलाल भी मारे गए थे.
घटना की सूचना पा कर तत्कालीन एसएसपी सुनील गुप्ता, एसपी (सिटी) राजेश कृष्ण और थानाप्रभारी (धूमनगंज) परशुराम सिंह मौके पर पहुंच गए थे. पुलिस ने राजू पाल का शव पोस्टमार्टम हाउस भेजा. लेकिन उन के समर्थक उन का शव वहां से उठा कर ले गए और सुलेमसराय में चक्काजाम कर दिया.
बसपा विधायक की हत्या से पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी. विधायक राजू पाल की नवविवाहिता पत्नी पूजा पाल ने धूमनगंज थाने में सपा सांसद अतीक अहमद, उन के छोटे भाई अशरफ, करीबियों फरहान, आबिद, रंजीत पाल, गुफरान समेत 9 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 120बी, 506 और 7 सीएल ऐक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. 9 दिन पहले ही राजू पाल ने पूजा से प्रेम विवाह किया था. अभी पूजा के हाथों की मेहंदी भी फीकी नहीं पड़ी थी.
बसपा विधायक राजू पाल की हत्या में नामजद आरोपी होने के बावजूद अतीक अहमद सांसद बने रहे. इस की वजह से चौतरफा आलोचनाओं का शिकार बनने के बाद मुलायम सिंह ने दिसंबर 2007 में सांसद अतीक अहमद को पार्टी से बाहर कर दिया.
मायावती ने अतीक को दिखाई अपनी हनक
अतीक अहमद ने राजू पाल हत्याकांड के गवाहों को भी डरानेधमकाने की कोशिश की. लेकिन मुलायम सिंह के सत्ता से बाहर हो जाने और मायावती के मुख्यमंत्री बन जाने की वजह से कामयाब नहीं हो सके. इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उन के भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया था.
मुख्यमंत्री मायावती की हनक से अतीक अहमद के हौसले पस्त होने लगे थे. उन के खिलाफ एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हो रहे थे. इसी दौरान बाहुबली अतीक अहमद भूमिगत हो गए.
बाहुबली सांसद अतीक के फरार होने के बाद न्यायालय के आदेश पर उन के घर, कार्यालय सहित 5 स्थानों की संपत्ति कुर्क की जा चुकी थी और 5 मामलों में उन की संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए गए थे. फरार अतीक अहमद की गिरफ्तारी पर पुलिस ने 20 हजार रुपए का ईनाम रख दिया था.
ईनामी सांसद की गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी किया गया था. इस के 6 महीने बाद दिल्ली पुलिस ने उन्हें पीतमपुरा के एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार कर लिया था. उस वक्त अतीक ने कहा था कि उन्हें मुख्यमंत्री मायावती से जान का खतरा है, इसलिए शहर छोड़ कर वह फरार हो गए थे.
सांसद अतीक अहमद की उलटी गिनती शुरू हो गई थी. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक अहमद की एक खास परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए उस का निर्माण ध्वस्त कर दिया था.
औपरेशन अतीक के तहत ही 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. दरअसल, सांसद अतीक अहमद ने राजू पाल कांड में उमेश पाल को गवाही देने से साफ मना कर दिया था.
ऐसा न करने पर इस का बुरा अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी. इसी के तहत उमेश पाल ने अतीक सहित 5 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. इस के 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उन के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए थे.
सन 2013 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार आई तो एक बार फिर अतीक साइकिल पर सवार हो गए. फिलहाल वह जमानत पर बाहर चल रहे थे. उन के छोटे भाई अशरफ भी जमानत पर बाहर थे और और अपना कारोबार कर रहे थे.
बाहुबली पूर्व सांसद के आतंक की दास्तान अभी खत्म नहीं हुई थी. अपराध के दस्तावेजों में एक और खूनी इबारत लिखे जाने की तैयारी चल रही थी. दहशत भरी यह कहानी मरियाडीह के दोहरे हत्याकांड के नाम से मशहूर हुई, जिसे सोच कर लोग आज भी दहशत में आ जाते हैं. यह लोमहर्षक घटना 25 सितंबर, 2015 को बकरीद के दिन घटी थी. उस दिन मरियाडीह निवासी आबिद प्रधान के घर जोशोखरोश से त्यौहार की खुशियां मनाई जा रही थीं.
रात के समय आबिद प्रधान का ड्राइवर सुरजीत उस की चचेरी बहन अल्कमा को गाड़ी से घर छोड़ने जा रहा था. वह एक दावत में शरीक होने के बाद लौट रही थी. अल्कमा बला की खूबसूरत थी. अपनी खूबसूरती पर उसे नाज था. वह ड्राइवर सुरजीत से जल्द घर पहुंचने को कह रही थी. अंधेरी रात की वजह से सुरजीत भी जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था. अभी वे घर के पास ही पहुंचे थे कि उन्हें नकाबपोश बंदूकधारियों ने चारों तरफ से घेर कर उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी.
बंदूकधारियों ने आबिद की चचेरी बहन अल्कमा और ड्राइवर को गोलियों से छलनी कर दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि अल्कमा को 17 और सुरजीत को 8 गोलियां मारी गई थीं.
मृतका के चचेरे भाई आबिद प्रधान ने इस केस में 7 लोगों उमरी के साबिर, वसी अहमद, मकसूद अहमद, बेली गांव के कम्मू, जाबिर मीरापट्टी के तौसीफ और इंतेखाब आलम के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया. इस में अल्कमा के सगे भाइयों बेली निवासी कम्मू और जाबिर को भी आरोपी बनाया गया था.
हत्याकांड की वजह प्रेम संबंध बताई गई थी. दरअसल, धूमनगंज के बेली निवासी अल्कमा एक लड़के से प्रेम करती थी. धीरेधीरे यह मामला पूरे गांव में फैल गया था. अल्कमा के भाइयों कम्मू और जाबिर को बहन के प्रेम संबंधों की जानकारी हुई तो वे इतना नाराज हुए कि बहन को प्रेमी से दूर रहने के लिए कह दिया.
लेकिन अल्कमा प्रेमी से चोरीछिपे मिलती रही. बहन के इश्किया मिजाज से समाज बिरादरी में दोनों की हंसी उड़ाई जा रही थी.
आबिद प्रधान ने नामजद रिपोर्ट जरूर लिखा दी थी, लेकिन वारदात के बाद से ही शक जताया जा रहा था कि इस हत्याकांड में खुद आबिद प्रधान का हाथ है. मामला प्रेम संबंध नहीं बल्कि कुछ और ही था.
आबिद प्रधान के सिर पर बाहुबली सांसद अतीक अहमद का हाथ था, इसलिए पुलिस उस पर हाथ डालने से कतरा रही थी. उस के प्रभाव से पुलिस ने यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया.
उधर आबिद प्रधान ने अल्कमा के दोनों भाइयों कम्मू और जाबिर को आरोपी बनवा कर जिन 7 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी, वे सभी आरोपी फरार हो गए थे. तत्कालीन एसएसपी ने सभी आरोपियों पर 5-5 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था.
जांच अधिकारी ने अपनी विवेचना में सातों आरोपियों, जिन पर ईनाम घोषित किया गया था, को विवेचना में क्लीनचिट दे दी और कहा कि नामजद सातों आरोपियों का घटना से कोई लेनादेना नहीं है. इस के बाद पुलिस ने केस फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी.
इस सनसनीखेज वारदात के करीब डेढ़ साल बाद आनंद कुलकर्णी ने इलाहाबाद के एसएसपी का पद संभाला. पद संभालने के बाद उन्होंने सभी थानों के अनसुलझे केसों की समीक्षा की तो सनसनीखेज मरियाडीह दोहरे हत्याकांड की फाइल भी उन के सामने आई.
उन्होंने फाइल गौर से देखी तो पाया कि न तो घटना का सही तरीके से खुलासा हुआ था और न ही आरोपी पकड़ गए थे. एसएसपी कुलकर्णी ने इस केस की समीक्षा की और सीओ (सिविल लाइंस) श्रीशचंद्र को इस केस की जांच सौंपी. सीओ श्रीशचंद्र इंसपेक्टर (धूमनगंज) अरुण त्यागी के साथ इस दोहरे हत्याकांड की जांच में जुट गए.
एसएसपी आनंद कुलकर्णी की जांच से सामने आई सच्चाई
उन्होंने वारदात के बाद पहली बार मरियाडीह गांव जा कर लोगों के बयान दर्ज किए. पुलिस को कई ऐसे प्रत्यक्षदर्शी मिले, जिन्होंने सरेआम गोली मारने वाले शूटरों को देखा था. उन के बयान और काल डिटेल्स की मदद से पुलिस ने मरियाडीह दोहरे हत्याकांड का खुलासा कर दिया. उन्होंने इस केस में बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद के साथ 15 लोगों को आरोपी बनाया. इस में पूर्व विधायक अशरफ, मोहम्मद आबिद प्रधान, फरहान, आबिद के भाई अकबर, जावेद, माजिद, अबूबकर, शेरू, फैजल, ऐजाज, आसिफ, जुल्फिकार उर्फ तोता, पप्पू उर्फ इम्तियाज और मुन्ना को आरोपी बनाया.
मरियाडीह दोहरे हत्याकांड में अतीक अहमद के कहने पर मुख्य भूमिका मोहम्मद आबिद प्रधान और उस के छोटे भाई मोहम्मद अकबर ने निभाई थी.
पुलिस के शक की सुई जब दोनों भाइयों पर जा कर टिकी तो वे फरार हो गए. पुलिस ने उन्हें वांछित बनाया. एसएसपी ने मोहम्मद आबिद प्रधान पर 20 हजार और उस के भाई अकबर पर 5 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था. 27 अगस्त, 2017 को पुलिस ने मरियाडीह से फरार दोनों भाइयों मोहम्मद आबिद प्रधान और मोहम्मद अकबर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
जांच में इस कहानी के सूत्रधार पूर्व सांसद अतीक अहमद, उन के छोटे भाई अशरफ और मोहम्मद आबिद प्रधान का नाम सामने आया. दरअसल, कम्मू और जाबिर विधानसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. बाहुबली अतीक और उस के गैंग के जुल्मों से जनता त्रस्त हो चुकी थी.
जनता पश्चिमी इलाहाबाद से एक साफसुथरी छवि वाले ऐसे इंसान को विधायक चुनना चाहती थी, जो उस के सुखदुख में साथ खड़ा हो सके. जरूरत पड़ने पर उस के लिए 2 कदम साथ चल सके. इस के लिए बेली के कम्मू और जाबिर लोगों को बेहतर लगे. दोनों भाई आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए थे. कम्मू और जाबिर बाहुबली को टक्कर के लिए पर्याप्त थे.
कम्मू और जाबिर की क्षेत्र में लोकप्रियता बढ़ रही थी. उन की लोकप्रियता को अतीक गैंग स्वीकार नहीं कर पा रहा था. पूर्व सांसद अतीक अहमद और अशरफ ने उन्हें समझाया कि चुनाव में मत उतरो, जितने पैसे चाहो ले लो. लेकिन बात नहीं बनी. पूर्व सांसद अतीक अहमद कम्मू और जाबिर की चुनावी तैयारी को ले कर खफा थे.
फरमान का पालन न करने से अतीक अहमद का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा था. मोहम्मद आबिद प्रधान, बाहुबली अतीक का खासमखास था. आबिद प्रधान चचेरी बहन अल्कमा के प्रेम संबंध को ले कर नाखुश था, क्योंकि बिरादरी में बदनामी हो रही थी. अपने आका अतीक के रास्ते का रोड़ा बने कम्मू और जाबिर को आबिद इस तरह रास्ते से हटाना चाहता था, जिस से उस के आका पर किसी को शक भी न हो और दोनों भाई रास्ते से भी हट जाएं.
अपनी ताकत और रुतबे से फंसवा दिया भाइयों को
फिर क्या था. बाहुबली अतीक अहमद पूर्व विधायक अशरफ और मोहम्मद आबिद प्रधान ने मिल कर एक खतरनाक साजिश रच डाली. साजिश कम्मू और जाबिर को शिकार बनाने की नहीं थी, बल्कि बहन अल्कमा को शिकार बनाने की थी. अल्कमा को टारगेट इसलिए बनाया गया कि उस के प्रेम संबंधों को ले कर गांव में बदनामी हो रही थी.
कम्मू और जाबिर बहन की करतूत से परेशान थे, यह भी आबिद जानता था. आबिद इसी बात का फायदा उठाना चाहता था ताकि लोगों को यही लगे कि बदनामी से बचने के लिए कम्मू और जाबिर ने मिल कर अल्मका को मौत के घाट उतार दिया है. पुलिस का सारा शक कम्मू और जाबिर पर चला जाएगा. बहन के कत्ल में दोनों भाई जेल चले जाएंगे और उन के विधायक बनने का सपना धरा का धरा रह जाएगा.
योजना बन गई थी, बस उसे अंजाम देना शेष था. बकरीद के दिन अल्कमा की हत्या की तारीख तय की गई. 25 सितंबर, 2015 को अल्कमा एक रिश्तेदार की पार्टी से कार से अपने घर लौट रही थी. अतीक अहमद के करीब 6-7 बंदूकधारी गुर्गे मरियाडीह गांव में डेरा डाले उस के आने का इंतजार कर रहे थे. जैसे ही अल्कमा की कार मरियाडीह गांव के करीब पहुंची, पहले से घात लगाए बैठे बंदूकधारियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिस से अल्कमा के साथ ड्राइवर सुरजीत को भी मार दिया गया ताकि वह कोर्ट में गवाही न दे सके.
त्यौहार के दिन इस सनसनीखेज घटना से इलाहाबाद थर्रा उठा था. अतीक ने जो सोचा, उसे पूरा कर दिया था. पुलिस को गुमराह करते हुए अल्कमा के चचेरे भाई मोहम्मद आबिद प्रधान ने कम्मू और जाबिर सहित 7 को आरोपी बना कर थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया था.
किसी हद तक बाहुबली अतीक और उस के साथी अपने मंसूबों में कामयाब हो गए थे. लेकिन ईमानदार एसएसपी आनंद कुलकर्णी ने बाहुबली के मंसूबों पर पारी फेर दिया. उन की सूझबूझ से दोहरे हत्याकांड के सभी सही आरोपी गिरफ्त में आ गए. पूर्व विधायक अशरफ को छोड़ कर सभी आरोपी जेल में बंद हैं.
दोहरे हत्याकांड में पुलिस ने पूर्व सांसद अतीक अहमद समेत 15 आरोपियों पूर्व विधायक अशरफ, मोहम्मद आबिद प्रधान, फरहान, मोहम्मद अकबर, जावेद, माजिद, अबूबकर, शेरू, फैसल, एजाज, आसिफ, जुल्फिकार उर्फ तोता, पप्पू उर्फ इत्मियाज और मुन्ना के खिलाफ न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल कर दिया.
अशरफ अभी फरार है. एसएसपी आनंद कुलकर्णी ने फरार अशरफ पर ढाई लाख रुपए का ईनाम घोषित करने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा था, लेकिन इस प्रस्ताव को अभी तक स्वीकृति नहीं मिली.
मोहित जायसवाल को जेल ले जाने की हकीकत
बहरहाल, कृष्णानगर थाने के इंसपेक्टर यशकांत सिंह मोहित जायसवाल कांड की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद टीम के साथ काररवाई में जुट गए.
पुलिस टीम ने गोमतीनगर के सिल्वरलाइन अपार्टमेंट से सुलतानपुर निवासी गुलाम इमामुद्दीन और प्रतापगढ़ निवासी इरफान को गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से मोहित जायसवाल से लूटी गई एसयूवी गाड़ी भी बरामद हो गई. दूसरी ओर पुलिस टीमें बना कर अतीक के बेटे उमर अहमद, गुलफाम और फारुख की तलाश में जुट गई. उन की तलाश में एक टीम ने इलाहाबाद में डेरा डाल लिया.
पुलिस ने रियल एस्टेट कारोबारी मोहित जायसवाल और बाहुबली अतीक के बीच के संबंधों की पड़ताल की तो पता चला कि मोहित जायसवाल और अतीक अहमद पूर्व परिचित थे. दोनों के बीच कारोबारी रिश्ते थे. उन के बीच पैसों को ले कर विवाद चल रहा था.
इसी विवाद की कड़ी ने अपराध को जन्म दिया. बाहुबली अतीक अहमद के इशारे पर उन के गुर्गे मोहित जायसवाल को अगवा कर के देवरिया जेल में बंद अतीक अहमद के पास ले आए. जेल के भीतर अतीक अहमद, उस के बेटे उमर और चारों गुर्गों ने मोहित को बुरी तरह मारापीटा और 45 करोड़ की संपत्ति के स्टांप पेपरों पर उस से जबरन दस्तखत करवा लिए थे.
इधर देवरिया जेल प्रशासन ने भी मोहित के जेल में दाखिल होने की पुष्टि की. पुलिस सूत्रों के अनुसार, मोहित जायसवाल करीब 3 घंटे तक जिला जेल में रहे.
जेल नियमों के अनुसार कोई भी मुलाकाती अधिकतम आधे घंटे तक ही बंदी या कैदी से मिल सकता है. विशेष परिस्थिति में उसे कुछ अतिरिक्त समय के लिए छूट दी जा सकती है, पर अतीक के मामले में सारे नियम ताक पर रख दिए गए थे.
अव्वल तो कई मुलाकातियों की जेल के रजिस्टर में एंट्री तक नहीं की जाती थी और अगर एंट्री हुई भी तो उन के बाहर निकलने की कोई तय सीमा नहीं होती थी. भेंट पूरी होने और पूर्व सांसद की सहमति के बाद ही वह जेल से बाहर आता था.
इस बारे में जेल अधीक्षक दिलीप कुमार पांडेय का कहना था कि निर्धारित समय के बाद मुलाकातियों को बाहर कर दिया जाता है. विशेष परिस्थिति में ही उसे अतिरिक्त समय दिया जाता है. हालांकि वह यह नहीं बता सके कि मोहित जायसवाल के मामले में ऐसी कौन सी परिस्थिति थी, जो उसे 3 घंटे तक अतीक से मिलने की अनुमति दे दी गई थी.
डीएम अमित किशोर के नेतृत्व में गई टीम ने देवरिया जिला कारागार के 26 दिसंबर, 2018 के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इस में कई फुटेज गायब मिले. मुलाकाती रजिस्टर में मोहित जायसवाल और सिद्दीकी का नाम दर्ज मिला, लेकिन फुटेज में अतीक की बैरक की ओर आनेजाने वालों की संख्या अधिक दिख रही थी. मुलाकाती रजिस्टर में मुलाकातियों के जाने और निकलने का टाइम दर्ज नहीं किया गया था.
जेल के कैदी भी रहते थे डरे हुए
सजायाफ्ता कैदियों से भी टीम के सदस्यों ने पूछताछ की, लेकिन किसी ने मुंह नहीं खोला. एडीएम (प्रशासन) राकेश कुमार पटेल ने अपनी रिपोर्ट में सीसीटीवी फुटेज में छेड़छाड़ की बात बताई, जिस पर डीएम अमित किशोर ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज की जांच किसी एक्सपर्ट से कराई जाएगी. वारदात की वजह जेल प्रशासन की उदासीनता है, जिस की रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है.
जांचपड़ताल में यह भी पता चला कि जेल में अतीक अहमद के बंद होने के बाद शहर में अतीक के गुर्गों की आवाजाही बढ़ गई थी. शहर के एक खास मोहल्ले में अतीक का ड्राइवर और करीबी निवास करते थे और फौर्च्युनर गाड़ी से जेल आतेजाते थे.
पुलिस सूत्रों की मानें तो जेल में बंद लोगों की मदद भी अतीक करता था, जिस से उन का समर्थन उसे मिल जाता था. मोहित जायसवाल कांड ने अतीक अहमद की मुसीबत बढ़ा दी थी. इसी के चलते उसे बरेली जेल भेज दिया गया. बताया जा रहा है कि अतीक की वजह से बरेली जेल प्रशासन भी परेशान है. उसे वहां से कहीं और भेजने की तैयारी की जा रही थी.
–कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित