बिहार में का बा : लाचारी, बीमारी, बेरोजगारी बा

जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के नाम अपने संदेश में लोगों को कोरोना से बचने के लिए आगाह कर रहे थे, उसी समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बिहार विधानसभा चुनाव के सिलसिले में एक रैली को संबोधित कर रहे थे. उस भीड़ में न मास्क था और न ही आपस में 2 गज की दूरी. इसी साल के मार्च महीने में जब कोरोना की देश में आमद हो रही थी, तब 2,000 लोगों के जमातीय सम्मेलन को कोरोना के फैलने की वजह बता कर बदनाम किया गया था, पर अब बिहार चुनाव में लाखों की भीड़ से भी कोई गुरेज नहीं है.

बिहार चुनाव इस बार बहुत अलग है. नीतीश कुमार अपने 15 साल के सुशासन की जगह पर लालू प्रसाद यादव के 15 साल के कुशासन पर वोट मांग रहे हैं. इस के उलट बिहार के 2 युवा नेताओं चिराग पासवान और तेजस्वी यादव ने बड़ेबड़े दलों के समीकरण बिगाड़ दिए हैं.

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बिहार चुनाव में युवाओं की भूमिका अहम है. बिहार में बेरोजगारी सब से बड़ा मुद्दा बन गई है. एक अनजान सी गायिका नेहा सिंह राठौर ने ‘बिहार में का बा’ की ऐसी धुन जगाई है कि भाजपा जैसे बड़े दल को बताना पड़ रहा है कि ‘बिहार में ई बा’ और नीतीश कुमार अपने काम की जगह लालू के राज के नाम पर वोट मांग रहे हैं.

बिहार की चुनावी लड़ाई अगड़ों की सत्ता को मजबूत करने के लिए है. एससी तबके की अगुआई करने वाली लोक जनशक्ति पार्टी को राजग से बाहर कर के सीधे मुकाबले को त्रिकोणात्मक किया गया है, जिस से सत्ता विरोधी मतों को राजदकांग्रेस गठबंधन में जाने से रोका जा सके.

जिस तरह से नीतीश कुमार का इस्तेमाल कर के पिछड़ों की एकता को तोड़ा गया, अब चिराग पासवान को निशाने पर लिया गया है, जिस से कमजोर पड़े नीतीश कुमार और चिराग पासवान पर मनमाने फैसले थोपे जा सकें.

बिहार चुनाव में अगर भाजपा को पहले से ज्यादा समर्थन मिला, तो वह तालाबंदी जैसे फैसले को भी सही साबित करने की कोशिश करेगी. बिहार को हिंदुत्व का नया गढ़ बनाने का काम भी होगा.

बिहार के चुनाव में जातीय समीकरण सब से ज्यादा हावी होते हैं. यह कोई नई बात नहीं है. आजादी के पहले से ही यहां जातीयता और राजनीति में चोलीदामन का साथ रहा है. 90 के दशक से पहले यहां की राजनीति पर अगड़ों का कब्जा रहा है.

लालू प्रसाद यादव ने मंडल कमीशन लागू होने के बाद बिहार की राजनीति की दिशा को बदल दिया था. अगड़ी जातियों ने इस के खिलाफ साजिश कर के कानून व्यवस्था का मामला उठा कर लालू प्रसाद यादव के राज को ‘जंगलराज’ बताया था. उन के सामाजिक न्याय को दरकिनार किया गया था.

पिछड़ी जातियों में फूट डाल कर नीतीश कुमार को समाजवादी सोच से बाहर कर के अगड़ी जातियों के राज को स्थापित करने में इस्तेमाल किया गया था. बिहार की राजनीति के ‘हीरो’ लालू प्रसाद यादव को ‘विलेन’ बना कर पेश किया गया था.

भारतीय जनता पार्टी को लालू प्रसाद यादव से सब से बड़ी दुश्मनी इस वजह से भी है कि उन्होंने भाजपा के अयोध्या विजय को निकले रथ को रोकने का काम किया था. साल 1990 में जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ ले कर भाजपा नेता लाल कृष्ण अडवाणी निकले, तो उन को बिहार में रोक लिया गया.

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भाजपा को लालू प्रसाद यादव का यह कदम अखर गया था. केंद्र में जब भाजपा की सरकार आई, तो लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में उल झाया गया और इस के सहारे उन की राजनीति को खत्म करने का काम किया गया.

लालू प्रसाद यादव के बाद भी बिहार की हालत में कोई सुधार नहीं आया. बिहार में पिछले 15 साल से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इस के बाद भी बिहार बेहाल है.

साल 2020 के विधानसभा चुनावों में लालू प्रसाद यादव का ‘सामाजिक न्याय’ भी बड़ा मुद्दा है. लालू प्रसाद यादव भले ही चुनाव मैदान में नहीं हैं, पर उन का मुद्दा चुनाव में मौजूद है.

नई पीढ़ी का दर्द

तालाबंदी के बाद मजदूरों का पलायन एक दुखभरी दास्तान है. नई पीढ़ी के लोगों को यह दर्द परेशान कर रहा है. नौजवान सवाल कर रहे हैं कि 15 साल तक एक ही नेता के मुख्यमंत्री रहने के बाद भी बिहार की ऐसी हालत क्यों है? अब उसी नेता को दोबारा मुख्यमंत्री पद के लिए वोट क्यों दिया जाए?

मुंबई आ कर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग अपनी रोजीरोटी के लिए तिलतिल मरते हैं. अगर उन के प्रदेशों में कामधंधा होता, रोजीरोटी का जुगाड़ होता, तो ये लोग अपने प्रदेश से पलायन क्यों करते?

फिल्म कलाकार मनोज बाजपेयी ने अपने रैप सांग ‘मुंबई में का बा…’ में मजदूरों की हालत को बयां किया है.  5 मिनट का यह गाना इतना मशहूर  हुआ कि अब बिहार चुनाव में वहां की जनता सरकार से पूछ रही है कि ‘बिहार में का बा’.

दरअसल, बिहार में साल 2005 से ले कर साल 2020 तक पूरे 15 साल नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहे हैं. केवल एक साल के आसपास जीतनराम मां झी मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ पाए थे, वह भी नीतीश कुमार की इच्छा के मुताबिक.

किसी भी प्रदेश के विकास के लिए 15 साल का समय कम नहीं होता. इस के बाद भी बिहार की जनता नीतीश कुमार से पूछ रही है कि ‘बिहार में का बा’ यानी बिहार में क्या है?

तालाबंदी के दौरान सब से ज्यादा मजदूर मुंबई से पलायन कर के बिहार आए. 40 लाख मजदूर बिहार आए. इन में से सभी मुंबई से नहीं आए, बल्कि कुछ गुजरात, पंजाब और दिल्ली से भी आए.

ये मजदूर यह सोच कर बिहार वापस आए थे कि अब उन के प्रदेश में रोजगार और सम्मान दोनों मिलेंगे. यहां आ कर मजदूरों को लगा कि यहां की हालत खराब है. रोजगार के लिए वापस दूर प्रदेश ही जाना होगा. बिहार में न तो रोजगार की हालत सुधरी और न ही समाज में मजदूरों को मानसम्मान मिला.

बीते 15 सालों में बिहार की  12 करोड़, 40 लाख आबादी वाली जनता भले ही बदहाल हो, पर नेता अमीर होते गए हैं. बिहार में 40 सांसद और 243 विधायक हैं. इन की आमदनी बढ़ती रही है. पिछले 15 सालों में  85 सांसद करोड़पति हो गए और 468 विधायक करोड़पति हो गए.

मनरेगा के तहत बिहार में औसतन एक मजदूर को 35 दिन का काम मिलता है. अगर इस का औसत निकालें तो हर दिन की आमदनी 17 रुपए रोज की बनती है. राज्य में गरीब परिवारों की तादाद बढ़ती जा रही है.

गरीबी रेखा से नीचे यानी बीपीएल परिवारों की तादाद तकरीबन 2 करोड़, 85 लाख है. नीतीश कुमार के 15 सालों में गरीबों की तादाद बढ़ी है और नेताओं की आमदनी बढ़ती जा रही है.

जंगलराज या सामाजिक न्याय

मंडल कमीशन लागू होने के बाद बिहार की राजनीतिक और सामाजिक हालत में आमूलचूल बदलाव हुआ. लालू प्रसाद यादव सामाजिक न्याय के पुरोधा बन कर उभरे. उन के योगदान को दबाने का काम किया गया.

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साल 1990 से साल 2020 के  30 सालों में बिहार पर दलितपिछड़ा और मुसलिम गठजोड़ राजनीति पर हावी रहा है. अगड़ी जातियों का मकसद है कि  30 सालों में जो उन की अनदेखी हुई, अब वे मुख्यधारा का हिस्सा बन जाएं.

भारतीय जनता पार्टी की अगुआई में अगड़ी जातियां काफीकुछ अपने मकसद में कामयाब भी हो गई हैं. बिहार में भाजपा का युवा शक्ति के 2 नेताओं तेजस्वी यादव और चिराग पासवान से सीधा मुकाबला है.

भाजपा के पास बिहार में कोई चेहरा नहीं है, जिस के बल पर वह सीधा चुनाव में जा सके. सुशील कुमार मोदी भाजपा का पुराना चेहरा हो चुके हैं.

विरोधी मानते हैं कि बिहार में लालू प्रसाद यादव के समय जंगलराज था. जंगलराज का नाम ले कर लोगों को डराया जाता है कि लालू के आने से बिहार में जंगलराज की वापसी हो जाएगी.

राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव कहते हैं, ‘मंडल कमीशन के बाद वंचितों को न्याय और उन को बराबरी की जगह दे कर सामाजिक न्याय दिलाने का काम किया गया था. अब आर्थिक न्याय देने की बारी है.

‘जो लोग जंगलराज का नाम ले कर बिहार की छवि खराब कर रहे हैं, वे बिहार के दुश्मन हैं. इन के द्वारा बिहार की छवि खराब करने से यहां पर निवेश नहीं हो रहा. लोग डर रहे हैं. अब हम आर्थिक न्याय दे कर नए बिहार की स्थापना के लिए काम करेंगे.’

वंचितों के नेता

लालू प्रसाद यादव की राजनीति को हमेशा से जातिवादी और भेदभावपूर्ण बता कर खारिज करने की कोशिश की गई. लालू प्रसाद यादव अकेले नेता नहीं हैं, जिन को वंचितों के हक की आवाज उठाने पर सताया गया हो. नेल्सन मंडेला, भीमराव अंबेडकर, मार्टिन लूथर किंग जैसे अनगिनत उदाहरण पूरी दुनिया में भरे पड़े हैं.

लालू प्रसाद यादव सामंतियों के दुष्चक्र के शिकार हुए, जिन की वजह से उन का राजनीतिक कैरियर खत्म करने की कोशिश की गई. इस के बाद भी लालू प्रसाद यादव के योगदान से कोई इनकार नहीं किया जा सकता है.

लालू प्रसाद यादव साल 1990 से साल 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. साल 2004 से साल 2009 तक उन्होंने केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार यानी संप्रग सरकार में रेल मंत्री के रूप में काम किया.

बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो अदालत ने 5 साल के कारावास की सजा सुनाई. चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उन्हें लोकसभा से अयोग्य ठहराया गया.

लालू प्रसाद यादव मंडल विरोधियों के निशाने पर थे. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि साल 1990 में लालू प्रसाद यादव ने राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया.

मंडल विरोधी भले ही लालू प्रसाद यादव के राज को जंगलराज बताते थे, पर सामाजिक मुद्दे के साथसाथ आर्थिक मोरचे पर भी लालू सरकार की तारीफ होती रही है.

90 के दशक में आर्थिक मोरचे पर विश्व बैंक ने लालू प्रसाद यादव के काम की सराहना की. लालू ने शिक्षा नीति में सुधार के लिए साल 1993 में अंगरेजी भाषा की नीति अपनाई और स्कूल के पाठ्यक्रम में एक भाषा के रूप में अंगरेजी को बढ़ावा दिया.

राजनीतिक रूप से लालू प्रसाद यादव के जनाधार में एमवाई यानी मुसलिम और यादव फैक्टर का बड़ा योगदान है. लालू ने इस से कभी इनकार भी नहीं किया है.

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने. उन के कार्यकाल में ही दशकों से घाटे में चल रही रेल सेवा फिर से फायदे में आई.

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भारत के सभी प्रमुख प्रबंधन संस्थानों के साथसाथ दुनियाभर के बिजनैस स्कूलों में लालू प्रसाद यादव के कुशल प्रबंधन से हुआ भारतीय रेलवे का कायाकल्प एक शोध का विषय बन गया.

अगड़ी जातियों की वापसी

राजनीतिक समीक्षक अरविंद जयतिलक कहते हैं, ‘जनता यह मानती है कि राज्य की कानून व्यवस्था अच्छी रहे. यही वजह है कि लालू प्रसाद यादव के विरोधियों ने उन की पहचान को जंगलराज से जोड़ कर प्रचारित किया. उन के प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार के राज को सुशासन कहा गया.

‘इसी मुद्दे पर ही नीतीश कुमार हर बार चुनाव जीतते रहे और 15 साल तक मुख्यमंत्री बने रहे. लालू प्रसाद यादव ने जो सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी और जो आर्थिक सुधारों के लिए काम किया, उस की चर्चा कम हुई.

‘लालू प्रसाद यादव की आलोचना में विरोधी कामयाब रहे. बहुत सारे काम करने के बाद भी लालू यादव को जो स्थान मिलना चाहिए था, नहीं मिला.’

बिहार में तकरीबन 20 फीसदी अगड़ी जातियां हैं. पिछड़ी जातियों में 200 के ऊपर अलगअलग बिरादरी हैं. इन में से बहुत कोशिशों के बाद कुछ जातियां ही मुख्यधारा में शामिल हो पाई हैं. बाकी की हालत जस की तस है. इन में से 10 से 15 फीसदी जातियों को ही राजनीतिक हिस्सेदारी मिली है.

1990 के पहले बिहार की राजनीति में कायस्थ, ब्राह्मण, क्षत्रिय और भूमिहार प्रभावी रहे हैं. दलितों की हालत भी बुरी है. बिहार की आबादी का 16 फीसदी दलित हैं. अगड़ी जातियों ने दलितों में खेमेबंदी को बढ़ावा देने का काम किया है.

साल 2005 में भाजपा और जद (यू) ने अगड़ी जातियों को सत्ता में वापस लाने का काम किया. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अब नीतीश कुमार को भी दरकिनार करने की कोशिश कर रही है.

बिहार चुनाव : नेताओं की उछलकूद जारी

आम लोगों के बीच किस पार्टी से किस को टिकट मिलेगा, इस पर अभी चर्चा ज्यादा हो रही है. अपनेअपने दलों से टिकट लेने वाले लोग आलाकमान तक पहुंच बनाने में रातदिन एक किए हुए हैं. कई दलों के संभावित उम्मीदवार अपनेअपने इलाके में प्रचार के काम में भी लग गए हैं.

सियासी गलियारे में पक्षविपक्ष के बीच आरोपप्रत्यारोप का दौर जारी है. एक दल से दूसरे दल में नेताओं की उछलकूद जारी हो गई है. गठजोड़ और मोरचे बनने लगे हैं. राजनीतिक पैतरेबाजियां शुरू हो चुकी हैं.

बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर अक्तूबरनवंबर में चुनाव होना है. वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म होने वाला है. वर्तमान सरकार से भी बहुतेरे लोग खफा हैं. युवा राजद के राष्ट्रीय महासचिव ऋषि कुमार ने बताया कि राजद छोड़ कर भाजपा के साथ मिल कर सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार की इमेज लगातार गिरती गई. एससी और ओबीसी तबके के लोगों को जितना विश्वास इन के ऊपर था, वह लगातार घटता गया. नीतीश कुमार भाजपा के इशारे पर ही चलने लगे. ऊंचे तबके के लोगों को नीतीश कुमार प्रश्रय देने लगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर बात में सुर में सुर मिलाने लगे. विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करने वाले और डीएनए की जांच के लिए नाखूनबाल केंद्र सरकार को भेजने वाले नीतीश कुमार ने भाजपा के सामने घुटने टेक दिए. बौद्ध धर्म से प्रभावित नीतीश कुमार ने कुरसी के चक्कर में भाजपा का थाम लिया. इस के चलते लोग इन्हें सोशल मीडिया पर ‘पलटू चाचा’ और ‘कुरसी कुमार’ के नाम से भी लोग ट्रोल करने लगे हैं.

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सामाजिक सरोकारों से जुड़े अवध किशोर कुमार का कहना है कि जब कोई भी शख्स सत्ता में लंबे अरसे तक रह जाता है तो वह मगरूर हो जाता है, इसलिए सत्ता में बदलाव भी जरूरी है.

महागठबंधन की ओर से अब तक तय नहीं हो पाया है कि किस पार्टी का उम्मीदवार किस क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा. इस की वजह से गठबंधन वाले सहयोगी दलों के बीच बेचैनी बढ़ने लगी है. सभी दल अपनाअपना गठबंधन मजबूत करने में लगे हुए हैं. महागठबंधन में लोग असमंजस की स्थिति में है. अब तक महागठबंधन के कई नेता अपनी अपनी पार्टी छोड़ कर जद (यू) में शामिल हो गए हैं. महागठबंधन में सीटों को ले कर दिक्कत आ रही है. कांग्रेस ने जिला स्तरीय वर्चुअल रैली के साथ अपना चुनावी अभियान तेज कर दिया है, लेकिन अभी तक सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है. राजद के नेतृत्व वाला महागठबंधन अब तक तय नहीं कर पाया है कि किस पार्टी का उम्मीदवार किस क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा, मुकेश साहनी का वीआईपी, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के उम्मीदवार और पार्टी प्रमुख अभी असमंजस की स्थिति में हैं. महागठबंधन से इस बात का खयाल रखा जा रहा है कि सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा किसी भी कीमत पर नहीं हो सके.

नीतीश कुमार से नाराज चल रहे चिराग पासवान के बोल बदल गए हैं. उन्होंने कहा कि मुझे राजग के चेहरे के रूप में नीतीश कुमार से कोई समस्या नहीं है. चिराग पासवान भाजपा से तत्काल रिश्ते नहीं खराब नहीं करना चाहते हैं. रामविलास पासवान ने कहा है कि वे चिराग के सभी फैसलों पर दृढ़ता से खड़े हैं. हाल के दिनों तक नीतीश कुमार चिराग पासवान के बोल से परेशान रहे हैं.

जद (यू) के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि उन का गठबंधन भाजपा के साथ है और लोक जनशक्ति पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन में है. फिलहाल नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच विवाद पर विराम लग गया है. दोनों नेताओं के शीर्ष पर भाजपा है, इसलिए दोनों नेताओं को भाजपा की बात माननी ही पड़ेगी.

इस बार का चुनाव प्रचार वर्चुअल संवाद के जरीए जारी है. आमसभा के दौरान किसी सभा में कितने लोग जुटे इस का आकलन तो सही तरीके से नहीं हो पाता था, लेकिन वर्चुअल संवाद में इसे कितने लोगों ने देखा है, इस का आंकड़ा पता चल जाता है.

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नीतीश कुमार के वर्चुअल संवाद में 31.2 लाख यूजर का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन बिहार में यह आंकड़ा 12 लाख को भी पार नहीं कर सका.

जब सत्ता पक्ष के पास सारे संसधान रहते वर्चुअल संवाद की स्थिति यह है तो विपक्ष इस में कितनी कामयाबी हासिल कर पाएगा, यह शायद आने वाला समय ही बताएगा. इस बार का चुनाव पहले के चुनाव से हट कर होगा. नेता और आम नागरिक को भी एक नए तजरबे के साथ जुड़ना होगा.

भूपेश बघेल: धान खरीदी का दर्द!

छत्तीसगढ़ में  किसान के लिए धान बेचना एक दर्द, यातना बन गया है, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए धान खरीदी सरदर्द बन चुकी है. सरकार का एक ऐसा कदम, जिसके लिए कहा जा सकता है कि “ना उगलते बने न निगलते बने”. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, यहां  धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर, सरकार बोनस के साथ किया करती थी.

एक उत्सव के रूप में, गांव गांव में किसान खुशहाल दिखाई देते थे.धान मंडियों में किसानों का मेला लगा रहता था. रमन सिंह के समयकाल में  2100 रुपए कुंटल में सरकार धान खरीदी किया करती थी. मगर किसानों को खुश करने के लिए भूपेश बघेल ने एक बड़ा दांव चला कि कांग्रेस सरकार आती है तो 2500 रुपये  क्विंटल धान का दिया जाएगा. और 2018 के विधानसभा चुनाव में इसी मुद्दे पर भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया. अब स्थितियां बदल रही है भूपेश सरकार के पास किसानों के लिए  25 सौ रुपये  तो है नहीं, हां! आश्वासन का एक बड़ा पिटारा जरूर है.

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इस रिपोर्ट में हम धान खरीदी को लेकर के ग्राउंड की सच्चाई को आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे. हमारे संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के 4 जिलों रायपुर, बेमेतरा,  जांजगीर, कोरबा  के किसानों से बातचीत की जिस का सारांश प्रस्तुत है-

भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने 

धान खरीदी मामले को लेकर भाजपा कांग्रेस  आमने-सामने है. भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के बयान को लेकर बीजेपी ने बड़ा आरोप लगाया है. प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा कि मंत्री अमरजीत भगत का ये कहना कि खरीदी की तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी!कांग्रेस सरकार की किसान विरोधी मानसिकता को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि “पंचायत चुनाव” निपटते कांग्रेस का नकाब उतर गया है. कांग्रेस ने अब अपना असल चेहरा दिखा दिया है. कांग्रेस का यही चरित्र है. बीजेपी लगातार कांग्रेस की मंशा को लेकर सवाल उठाती रही है.

उसेंडी ने कहा कि किसानों को धान ख़रीदी के नाम पर “ख़ून के आँसू” रुलाने वाली सरकार ने धान ख़रीदी की मियाद नहीं बढ़ाने का एलान करके अपने अकर्मण्यता का  परिचय दिया है. भूपेश सरकार द्वारा पहले धान ख़रीदी एक माह विलंब से शुरू की गई और किसानों का पूरा धान 25सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर पर ख़रीदने से बचने के लिए नित-नए नियमों के तुगलकी फ़रमानों का छल-प्रपंच रचा गया, धान की लिमिट तय करके किसानों को चिंता में डाला, धान का रक़बा घटाने तक का  कृत्य तक किया, ख़रीदी केंद्रों से धान का समय पर उठाव नहीं करके धान ख़रीदी में दिक़्क़तें पैदा कीं और इस तरह पिछले वर्ष के मुक़ाबले इस साल लाखों मीटरिक टन धान कम ख़रीदा गया.

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भाजपा के एक बड़े नेता शिवरतन शर्मा ने ने कहा कि खाद्य मंत्री का यह एलान किसानों के साथ दग़ाबाज़ी का प्रदेश सरकार द्वारा लिखा गया काला अध्याय है और कांग्रेस को इस दग़ाबाज़ी की समय पर भारी क़ीमत  चुकानी  पड़ेगी.

भाजपा के समय काल में संसदीय सचिव रहे लखन देवांगन कहते हैं  पंचायत चुनावों के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धान ख़रीदी की समय-सीमा बढ़ाने की बात कही थी, तो अब मुख्यमंत्री को यह सफाई देनी ही होगी कि उनके वादे के बावजूद उनकी सरकार के मंत्री किस आधार पर समय-सीमा नहीं बढ़ाने की बात कह रहे हैं?

छत्तीसगढ़ में भाजपा के बड़े नेता चाहे वे डॉ रमन सिंह हों अथवा विक्रम उसेंडी सभी एक सुर में भूपेश बघेल सरकार को धान खरीदी के मसले पर घेर चुके हैं. मगर कहते हैं ना सत्ता कठोर होती है वह हाथी की मदमस्त चाल से अपनी ही धुन में चलती है वही सत्य छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है.

किसानों के चेहरे मुरझाए क्यों हैं?

छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के दरमियान किसान और आम आदमी जहां प्रसन्न दिखाई देता था वहीं आजकल किसान और गांव के आम आदमी दुखी, पीड़ित दिखाई देते हैं. किसान को पटवारी के यहां, राजस्व निरीक्षक के यहां, तहसीलदार के यहां कई कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. खाद्य अधिकारियों की नकेल कसी हुई है. एसडीएम और कलेक्टर की निगाह एक एक किसान पर लगी हुई है. कहीं कोई किसान पीछे दरवाजे से सरकार को इधर उधर का धान न थमा दे.

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किसानों की ऐसी निगरानी की जा रही है, मानो किसान कोई अपराधी हो. एक किसान ने बताया कि स्थिति इतनी बदतर है कि हमारे बच्चों के लिए चॉकलेट खरीदने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं! एक अन्य  किसान के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में धान बिक नहीं पाया तो चुनाव में हम कुछ भी खर्च  नहीं कर पाए. इन्हीं विसंगतियों के बीच धान खरीदी का उपक्रम जारी है. जो मात्र अब 10 दिन बच गया है. मगर बीते दो महीने किसानों के लिए एक त्रासदी, पीड़ा और दर्द छोड़ कर गया है जो शायद किसान कभी नहीं भूल पाएगा.

इस दरमियान छत्तीसगढ़ सरकार की धान खरीदी नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ की अनेक जिलों में किसानों ने चक्का जाम किया आंदोलन किया मगर सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी .  शायद भूपेश बघेल सरकार यह कहना चाहती है कि हे किसान! अगर पच्चीस सौ रुपये कुंटल में धान बचोगे तो सरकार के नियम कायदे रूपी प्रताड़ना से तो गुज़रना ही होगा. अंतिम  मे यह कि भूपेश बघेल स्वयं को किसान कहते हैं उनसे यही गुजारिश है कि एक  दिन भेष बदलकर किसी अनजान गांव, अनजान किसानों के बीच पहुंच जाएं और उनसे बात कर ले तो सारा सच उनके सामने खुली किताब की तरह होगा.

पौलिटिकल राउंडअप : दिल्ली में चुनावी फूहड़ता

दिल्ली. फरवरी की 8 तारीख को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होंगे. लिहाजा, दिल्ली चुनावी रंग में रंगने लगी है. इसी सिलसिले में यहां की बड़ी सियासी पार्टियों ने सोशल मीडिया का नए अंदाज में इस्तेमाल किया. किसी ने कार्टून बनाया तो कोई मीम बनाने लगा. बात तीखे, मजेदार और फनी वीडियो तक जा पहुंची.

13 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी हिंदी फिल्म ‘नायक’ का ऐडिट किया गया ऐसा वीडियो सामने ले कर आई जिस में अरविंद केजरीवाल को अमरीश पुरी के रूप में दिखाया गया. इस के जवाब में आम आदमी पार्टी ने फिल्म ‘नायक’ का अपना वीडियो पेश किया, जिस में अरविंद केजरीवाल को ठेकेदारों को फटकार लगाते देखा गया.

वेंकैया का हिंदूवादी बयान

चेन्नई. नागरिकता संशोधन कानून और नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजंस पर पूरे देश के विरोध के साथसाथ सियासी तकरार लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसी बीच 12 जनवरी को देश के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने श्री रामकृष्ण मठ द्वारा छपने वाली तमिल मासिक ‘श्री रामकृष्ण विजयम’ के शताब्दी समारोह और स्वामी विवेकानंद जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कहा कि भारत में कुछ लोगों को हिंदू शब्द से एलर्जी है. हाल?ांकि यह ठीक नहीं है, फिर भी उन्हें इस तरह का नजरिया रखने का हक है.

एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब दूसरे धर्मों की बेइज्जती नहीं है.

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गरजीं मायूस मायावती

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तलाश रही बसपा सुप्रीमो मायावती का कभी पूरे प्रदेश में राजकीय उत्सव सा जन्मदिन मनाया जाता था. इस 15 जनवरी को वैसा माहौल तो नहीं दिखा, पर 64 किलो के केक ने सब का ध्यान जरूर खींचा कि हाथी अभी उतना भी कमजोर नहीं हुआ है.

उस दिन मायावती ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वे नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करती हैं. साथ ही यह भी कहा, ‘‘आज देश की तकरीबन 130 करोड़ जनता के सामने जो तकलीफें और तनाव खड़े हैं, उन के चलते देश में हर जगह गरीबी और बेरोजगारी फैली हुई है. देश में माली मंदी बीमार हालत में पहुंच गई है. यह भी कड़वा सच है कि देश की जनता ने ऐसी खराब हालत पहले कांग्रेस की सरकार में देखी है.’’

पर सच यह है कि मायावती अब न जाने क्यों सरकार को हाथी पर सवारी देने की तैयारी में लगती हैं.

किताब पर मचा बवाल

मुंबई. भाजपा का एक पैतरा उसी पर तब भारी पड़ गया, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना वाली किताब ‘आज के शिवाजी: नरेंद्र मोदी’ पर पार्टी ने यह कहते हुए दूरी बना ली कि पार्टी का इस पब्लिकेशन से कुछ भी लेनादेना नहीं है और इस किताब में लेखक के अपने ‘निजी विचार’ हैं.

14 जनवरी को भाजपा में मीडिया विभाग के सहइंचार्ज संजय मयूख ने कहा कि किताब के लेखक जय भगवान गोयल, जो भाजपा के एक सदस्य हैं, ने अपनी किताब वापस मंगाने की भी बात कही है.

याद रहे कि जय भगवान गोयल ने भाजपा से जुड़ने से पहले लंबे वक्त तक दिल्ली में शिव सेना के लिए काम किया था और वे कहते हैं कि किताब में जिस हिस्से को ले कर विपक्ष के नेताओं को दिक्कत है, उसे सुधार दिया जाएगा.

ममता बनर्जी का घेराव

कोलकाता. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोहा लेने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने ही राज्य में वामपंथियों से घिर गईं.

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दरअसल, संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ 11 जनवरी को कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की रैली में वामपंथी छात्र कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेरा था, जिस के बाद 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. इन में नुकसान पहुंचाने, आपराधिक धमकी देने के साथसाथ गैरजमानती धाराएं भी शामिल थीं और साथ ही, एक जनसेवक को उस की ड्यूटी करने से रोकने का मामला भी शामिल था.

इस के उलट माकपा से जुड़े छात्र संगठन एसएफआई ने आरोप लगाया कि उस ने ममता बनर्जी के खिलाफ इसलिए प्रदर्शन किया, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक कर सीएए के खिलाफ लड़ाई कमजोर कर दी थी.

दिग्विजय सिंह की सफाई

भोपाल. भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कांग्रेस पार्टी और दिग्विजय सिंह पर आरोप लगाया था कि कांग्रेस बड़े पैमाने पर इसलामिक उपदेशक जाकिर नाइक की फाउंडेशन से डोनेशन लेती है और उन के बीच हमेशा से ही अच्छे संबंध रहे हैं.

इस पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सफाई दी कि भाजपा की तरफ से लगाया गया यह आरोप एकदम गलत है. कांग्रेस ने कभी भी आधिकारिक रूप से डाक्टर जाकिर नाइक का समर्थन नहीं किया.

वैसे, दिग्विजय सिंह ने माना कि उन्होंने मुंबई में जाकिर नाइक के मंच से एक सांप्रदायिक सद्भाव सम्मेलन को संबोधित किया था.

लालू की खरीखरी

पटना. जेल में बंद लालू प्रसाद यादव बिहार की प्रदेश सरकार के साथसाथ केंद्र सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं. उन्होंने मंगलवार,

14 जनवरी को फिर से बिहार और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि देश में प्यार लगातार घट रहा है, जबकि नफरत बढ़ रही है.

उन्होंने आगे कहा कि आजादी घटी है, जबकि तानाशाही बढ़ी है. विकास घटा विनाश बढ़ा, ईमान घटा बेईमानी बढ़ी काम घटा बेरोजगारी बढ़ी.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इस से पहले नीतीश कुमार और भाजपा पर तंज कसते हुए लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट किया था, ‘एक गिरगिटिया दूसरा खिटपिटिया…कुल जोड़ मिला के शासन घटिया.’

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पुलिस पदक लिया वापस

श्रीनगर. अर्श से फर्श पर. 15 जनवरी को जम्मूकश्मीर प्रशासन ने आतंकवादियों को जम्मूकश्मीर से बाहर निकलने में पैसे ले कर मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए पुलिस उपाधीक्षक देविंदर सिंह को बहादुरी के लिए दिया गया पुलिस पदक  ‘शेर ए कश्मीर’ वापस ले लिया.

याद रहे कि वहां की पुलिस ने शनिवार, 11 जनवरी को देविंदर सिंह को दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले के मीर बाजार में हिजबुल मुजाहिदीन के 2 आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किया था.

इसी बीच देविंदर सिंह ने आरोप लगाया था कि पुलिस बल में तैनात एक और बड़ा अफसर आतंकवादियों के लिए काम कर रहा है.

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