जूनियर महमूद की यह है अंतिम इच्छा, भर आएंगी आप की आंखें

हिंदी फिल्मों में बहुत से बाल कलाकारों ने नाम कमाया है, पर जूनियर महमूद का एक अलग ही मुकाम बना था. आज भले ही वे कैंसर जैसी भयंकर बीमारी से जूझ रहे हैं, पर एक समय ऐसा था, जब लोग उन की हंसी से गुलजार अदाकारी देखने के लिए सिनेमाघरों का रुख करते थे और अपने गम भूल जाते थे.

हिंदी फिल्मों के दिग्गज कलाकार महमूद ने जूनियर महूमद को यह नाम दिया था, जबकि उन का असली नाम नईम सैय्यद है और उन का जन्म 15 नवंबर, 1956 को मुंबई में हुआ था.

नईम सैय्यद यानी जूनियर महमूद ने 7 भाषाओं में 265 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया है. साथ ही, उन्होंने कई मराठी फिल्में भी निर्देशित की हैं. ‘ब्रह्मचारी’, ‘दो रास्ते’, ‘आन मिलो सजना’, ‘हाथी मेरे साथी’, ‘कटी पतंग’, ‘हरे राम हरे कृष्णा’, ‘जौहर महमूद इन हांगकांग’, ‘बॉम्बे टू गोवा’, ‘गुरु और चेला’ जैसी कुछ हिंदी फिल्मों में उन्होंने अपनी उम्दा अदाकारी से लोगों का दिल जीत लिया था.

साल 1969 में आई फिल्म ‘सुहागरात’ में पहली दफा नईम सैय्यद को महमूद के साथ काम करने का मौका मिला था. महमूद उन के काम से खुश हुए थे और इस के बाद उन्होंने ही नईम को जूनियर महमूद का खिताब दिया था.

आज 67 साल की उम्र में यही कलाकार कैंसर से जूझ रहा है और अपने पुराने साथियों को याद कर रहा है. फिल्म इंडस्ट्री के बहुत से कलाकार जैसे जौनी लीवर, मास्टर राजू, सचिन पिलगांवकर, जितेंद्र अपने चहेते सहकलाकार से मिलने उन के घर जा पहुंचे हैं. जूनियर महमूद ने खुद जितेंद्र और सचिन से मिलने की इच्छा जताई थी, जिसे उन दोनों ने पूरा किया है.

जानकारी के मुताबिक, जूनियर महमूद के लंग्स और लिवर में कैंसर है. साथ ही आंत में ट्यूमर भी है. डाक्टरों ने बताया है कि उन का कैंसर चौथी स्टेज पर है और इस कारण उन का वजन भी लगातार कम हो रहा है. जूनियर महमूद की अंतिम इच्छा है कि ‘मैं मरूं तो दुनिया बोले कि बंदा अच्छा था बस’.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें