पति बना पत्नी का काल, फरसे से काट दिया गला

दिल्ली में शराबी पति ने पत्नी से मांगे शराब के लिए 500 रुपए, इनकार करने पर घोंप दिया पेट में चाकू. पत्नी की मौत.

बरेली में शराब के लिए रुपए न देने पर पत्नी को पत्थर से सिर कुचल कर मौत के घाट उतारा.

बरेली में नाजायज संबंधों के शक के चलते पति ने खाना बना रही पत्नी की फरसा से गला काट कर हत्या कर दी.

इटावा में रहने वाले आभूषण कारोबारी ने अपनी प्रेमिका के लिए अपनी बीवी, बेटे और बेटी का किया कत्ल.

ये वरदातें किसी फिल्म का सीन नहीं हैं, बल्कि हकीकत हैं हमारे समाज की  जहां औरतों पर शादी के बंधन में बंध कर जोरजुल्म तो हो ही रहा है, साथ में ऐसे पति उन का कब काल बन जाएं, इस बात का भरोसा भी नहीं है.

आज औरतों को जागरूक होने की जरूरत है, क्योंकि सहन करने से न सिर्फ उन की जिंदगी बरबाद हो रही है, बल्कि उन के बच्चों की भी जिंदगी अधर में लटक जाती है. ऐसे में समझना होगा कि जब संबंध में जहर घुलने लगे, तो उस रिश्ते से निकलने में ही भलाई है. आप की भी व आप के परिवार की भी.

ज्यादातर औरतों के चरित्र में शुमार होता है बरदाश्त करना, लेकिन एक सीमा से ज्यादा सहन करना सबकुछ बरबाद कर सकता है, तो जरूरी है कि आप को मालूम हो कि आप का रिश्ता बरबादी की राह पर है :

-अगर आप के पति का दूसरी औरतों के साथ नाजायज संबंध है, तो इस बात की समय रहते छानबीन करें व परिवार के सदस्यों से भी बातचीत करें. पति आप की बात को समझे, तो खुल कर अपने हक के साथ अलग होने की बात रखें. जरूरत पड़े तो पुलिस की मदद जरूर लें, क्योंकि ऐसे पति कब आप की जान के दुश्मन बन जाएं समझ पाना मुश्किल होता है.

-किसी के पति में अगर कोई बुरी लत है, जैसे वह नशीली चीजों का सेवन करता है, शराब पीता है या जुआ खेलने का आदी है, तो ऐसे पतियों से सावधान रहना बहुत जरूरी है, क्योंकि जब उन के खिलाफ कदम उठाने की कोशिश की जाती है, तो उन की लत उन पर इस कदर  हावी होती है कि वे आप को नुकसान ही नहीं, बल्कि कत्ल करने से भी पीछे नहीं हटेंगे, इसलिए समय रहते कड़े कदम लेना आप के और आप के बच्चों के लिए बहुत जरूरी है.

-जब किसी मर्द के अहम को चोट पहुंचती है या उसे ऐसा लगता है कि उस की पत्नी उस से ज्यादा कामयाब है और हर तरह से उस से ज्यादा काबिल है तब भी वह उस से बदले की भावना रखने लगता है और हर वक्त उस के लिए अपने मन में नफरत और जलील करने का भाव रखता है. कब वह कत्ल जैसा अपराध कर रिश्तों को तार तार कर दे, समझना मुश्किल है. ऐसे रिश्तों में सतर्क रहना बहुत जरूरी है.

जब करियर के बीच आया लवर तो क्या हुआ अंजाम

महाराष्ट्र की शीतकालीन राजधानी नागपुर के ग्रामीण इलाके के सावली गांव की पुलिस पाटिल (चौकीदार) ज्योति कोसरकर अपने घर पर बैठी थी, तभी उस के पास गांव का एक आदमी आया और उस ने घबराई आवाज में उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चौंक उठी.

वह बिना देर किए उस आदमी को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर स्तब्ध रह गई. पाटुर्णा-नागपुर एक्सप्रैस हाइवे से करीब 25 फीट की दूरी पर गड्ढे में एक युवती का शव पड़ा हुआ था, जिस की उम्र करीब 19-20 साल के आसपास थी. युवती के ब्रांडेड कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी अच्छे घर की रही होगी.

उस की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस का चेहरा एसिड से जला कर विकृत कर दिया गया था. उस का एक हाथ गायब था, जिसे देख कर लग रहा था कि संभवत: उस का हाथ रात में किसी जंगली जानवर ने खा लिया होगा. घटनास्थल को देख कर यह बात साफ हो गई थी कि उस युवती की हत्या कहीं और की गई थी.

पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर लाश को देख ही रही थी कि वहां आसपास के गांवों के काफी लोग एकत्र हो गए.

ज्योति कोसरकर ने वहां मौजूद लोगों से उस युवती के बारे में पूछा तो कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. आखिर ज्योति कोसरकर ने लाश मिलने की खबर स्थानीय ग्रामीण पुलिस थाने को दे दी.

सूचना मिलने पर ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मद्दामी, एएसआई अनिल दरेकर, कांस्टेबल राजू खेतकर, रवींद्र चपट आदि को साथ ले कर तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर से लाश की जानकारी ली और शव के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

वह युवती कौन और कहां की रहने वाली थी, यह बात वहां मौजूद लोगों से पता नहीं लग सकी. टीआई सुरेश मद्दामी मौकामुआयना कर ही रहे थे कि एसपी (देहात) राकेश ओला, डीसीपी मोनिका राऊत, एसीपी संजय जोगंदड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए.

फोरैंसिक टीम भी आ गई थी. कुछ देर बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी वहां पहुंच गई. जांच टीमों ने मौके से सबूत जुटाए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद टीआई सुरेश मद्दामी और क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे ने अपनी और उस युवती की शिनाख्त छिपाने की पूरीपूरी कोशिश की है.

जिस तरह उस युवती की हत्या हुई थी, उस में प्यार का ऐंगल नजर आ रहा था. हत्यारा युवती से काफी नाराज था. शव देख कर यह बात साफ हो गई थी कि युवती शहर की रहने वाली थी.

मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. इस के साथ ही थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच इस केस की जांच में जुट गईं.

पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह अपनी जांच कहां से शुरू करे. क्योंकि जांच के नाम पर उस के पास कुछ नहीं था. केवल युवती के बाएं हाथ पर लव बर्ड (प्यार के पंछी) और सीने पर क्वीन (दिल की रानी) के टैटू के अलावा कोई पहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने हार नहीं मानी.

पुलिस ने मृतक युवती की शिनाख्त के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो बहुत जल्द सफलता मिल गई. इस से न सिर्फ मृतका की शिनाख्त हुई बल्कि 10 घंटों के अंदर ही क्राइम ब्रांच ने अपने अथक प्रयासों के बाद मामले को सुलझा भी लिया.

पुलिस ने जब मृतका की फोटो सोशल मीडिया पर डाली तो जल्द ही वायरल हो गई. एक से 2, 2 से 3 ग्रुपों से होते हुए मृत युवती का फोटो जब फुटला तालाब परिसर में स्थित एक पान की दुकान पर पहुंचा तो दुकानदार ने फोटो पहचान लिया.

फोटो उभरती हुई मौडल खुशी का था. पान वाले ने खुशी को कई बार एक स्मार्ट युवक के साथ घूमते और धरेरा होटल में आतेजाते देखा था.

यह जानकारी जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार को मिली तो वह और ज्यादा सक्रिय हो गए. उन्होंने उस युवती की सारी जानकारी कुछ ही समय में इकट्ठा कर ली. उन्होंने खुशी के इंस्टाग्राम को खंगाला तो ठीक वैसा ही टैटू खुशी के हाथ और सीने पर मिल गया, जैसा कि मृत युवती के शरीर पर था. इस से यह साबित हो गया कि वह शव खुशी का ही था.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों को खुशी के इंस्टाग्राम प्रोफाइल में उस का पूरा नाम और उस के बारे में जानकारी मिल गई. उस का पूरा नाम खुशी परिहार था. वह अपनी मौसी के साथ रहती थी और राय इंगलिश स्कूल और जूनियर कालेज में बी.कौम. अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह पार्टटाइम मुंबई और नागपुर में मौडलिंग करती थी.

खुशी की शिनाख्त से पुलिस और क्राइम ब्रांच का सिरदर्द तो खत्म हो गया था. अब जांच अधिकारियों के आगे खुशी परिहार के हत्यारों तक पहुंचना था. पुलिस ने जब खुशी की मौसी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि खुशी कई महीनों से उन के साथ नहीं है. वह अपने दोस्त अशरफ शेख के साथ लिवइन रिलेशन में वेलकम हाउसिंग सोसायटी, हजारीबाग पहाड़गंज गिट्टी खदान के पास रही थी.

पुलिस ने जब मौसी को खुशी की हत्या की खबर दी तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं और उन्होंने अपना संदेह अशरफ शेख पर जाहिर किया. उन का कहना था कि घटना की रात अशरफ शेख ने उन्हें फोन कर बताया था कि खुशी और उस के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. वह उस से नाराज हो कर अपने गांव चली गई है.

क्राइम ब्रांच टीम को खुशी की मौसी की बातों से यह पता चल गया कि मामले में किसी न किसी रूप में अशरफ शेख की भूमिका जरूर है. अत: क्राइम ब्रांच ने अशरफ शेख का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

इस के अलावा शहर के सभी पुलिस थानों को अशरफ शेख के बारे में जानकारी दे दी गई. इस का नतीजा यह हुआ कि अशरफ शेख को गिट्टी खदान पुलिस की सहायता से कुछ घंटों में दबोच लिया गया.

अशरफ शेख को जब क्राइम ब्रांच औफिस में ला कर उस से पूछताछ की गई तो वह जांच अधिकारियों को भी गुमराह करने की कोशिश करने लगा. लेकिन क्राइम ब्रांच ने जब सख्ती की तो वह फूटफूट कर रोने लगा और अपना गुनाह स्वीकार कर के मौडल खुशी परिहार की हत्या करने की बात मान ली. उस ने मर्डर मिस्ट्री की जो कहानी बताई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी.

21 वर्षीय अशरफ शेख नागपुर के आईबीएम रोड गिट्टी खदान इलाके का रहने वाला था. उस का पिता अफसर शेख ड्रग तस्कर था. अभी हाल ही में उसे नागपुर पुलिस ने करीब 400 किलोग्राम गांजे के साथ गिरफ्तार किया था. अशरफ शेख उस का सब से छोटा बेटा था.

बेटा नशे के धंधे में न पड़े, इसलिए अफसर ने उसे गिट्टी खदान में एक बड़ा सा हेयर कटिंग सैलून खुलवा दिया था. लेकिन उस हेयर कटिंग सैलून में अशरफ शेख का मन नहीं लगता था. वह शानोशौकत के साथ आवारागर्दी करता था. खूबसूरत लड़कियां उस की कमजोरी थीं.

अपने सभी भाइयों में सुंदर अशरफ रंगीनमिजाज युवक था. यही कारण था कि अपने दोस्तों की मार्फत वह शहर की महंगी पार्टियों और फैशन शो वगैरह में जाने लगा था.

इसी के चलते उस की कई मौडल लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. एक फैशन शो में उस ने जब खुशी को देखा तो वह उस का दीवाना हो गया. खुशी से और ज्यादा नजदीकियां बनाने के लिए वह उस की हर पार्टी और फैशन शो में जाने लगा था.

19 वर्षीय खुशी परिहार मध्य प्रदेश के जिला सतना के एक गांव की रहने वाली थी. उस के पिता जगदीश परिहार सर्विस करते थे. वह खुशी को एक अच्छी शिक्षिका बनाना चाहते थे लेकिन खुशी तो कुछ और ही बनना चाहती थी.

खुशी जितनी खूबसूरत और चंचल थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह बचपन से ही टीवी सीरियल्स, फिल्म और मौडलिंग की दीवानी थी. वह जब भी किसी मैगजीन और टीवी पर किसी मौडल, अभिनेत्री को देखती तो उस की आंखों में भी वैसे ही सतरंगी सपने नाचने लगते थे.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण परिवार खुशी को प्यार तो करता था, लेकिन उस के अरमानों को देखसुन कर घर वाले डर जाते थे. क्योंकि उन में बेटी को वहां तक पहुंचाने की ताकत नहीं थी.

यह बड़े शहर में रह कर ही संभव हो सकता था. गांव के स्कूल से खुशी ने कई बार ब्यूटी क्वीन का अवार्ड अपने नाम किए थे लेकिन उस की चमक गांव तक ही सीमित थी.

खुशी बचपन से ही अपनी मौसी के काफी करीब थी. उस की मौसी नागपुर में रहती थीं. वह भी खुशी के शौक से अनजान नहीं थीं. उन्होंने खुशी को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और 10वीं पास करने के बाद उसे अपने पास नागपुर बुला लिया.

नागपुर आ कर जब उस ने अपना पोर्टफोलियो विज्ञापन एजेंसियों को भेजा तो उसे इवन फैशन शो कंपनी में जौब मिल गई. जौब मिलने के बाद खुशी ने अपनी आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी. उस ने नागपुर के जानेमाने स्कूल में एडमिशन ले लिया. अब खुशी अपनी पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम विज्ञापन कंपनियों और फैशन शो के लिए काम करने लगी.

धीरेधीरे खुशी की पहचान बननी शुरू हुई तो उस के परिचय का दायरा भी बढ़ने लगा. फैशन और मौडलिंग जगत में उस के चर्चे होने लगे. धीरेधीरे सोशल मीडिया पर उस के हजारों फैंस बन गए थे. खुशी भी उन का दिल रखने के लिए उन का मैसेज पढ़ती थी और अपने हिसाब से जवाब भी देती थी. वह अपने नएनए पोजों के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी.

इस तरह नागपुर आए उसे 3 साल गुजर गए. अब उस का बी.कौम. का अंतिम वर्ष था. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पूरी तरह मौडलिंग और टीवी की दुनिया में उतरती, इस के पहले ही उस की जिंदगी में मनचले अशरफ शेख की एंट्री हो गई.

अपने प्रति अशरफ शेख की दीवानगी देख कर खुशी भी धीरेधीरे उस के करीब आ गई. कुछ ही दिनों में दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. अशरफ शेख दिल खोल कर खुशी पर पैसा बहा रहा था. वह उस की हर जरूरत पूरी करता था.

अशरफ शेख और खुशी की दोस्ती की खबर जब खुशी के परिवार वालों और मौसी तक पहुंची तो उन्होंने उसे आड़े हाथों लिया. उन्होंने उसे समझाया भी. चूंकि अशरफ दूसरे धर्म का था, इसलिए उसे समाज और रिश्तों के विषय में भी बताया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. खुशी अशरफ शेख के प्यार में गले तक डूब चुकी थी.

मौसी और परिवार वालों की बातों पर ध्यान न दे कर वह अशरफ शेख के लिए मौसी का घर छोड़ कर उस के साथ गिट्टी खदान में किराए का मकान ले कर लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

अब खुशी पूरी तरह से आजाद थी. कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. अशरफ शेख उस का बराबर ध्यान रखता था. उसे उस के कालेज और फैशन शो में ले कर जाता था.

बाद में खुशी ने तो अपना नाम भी बदल कर जास शेख रख लिया था. प्यार का एहसास दिलाने के लिए उस ने हाथ और दिल पर टैटू भी बनवा लिए थे.

खुशी अशरफ शेख के साथ खुश थी. वह मौडलिंग के क्षेत्र में अपना दायरा बढ़ाने में लगी  थी. उस का सपना था कि वह सुपरमौडल बने, जिस से देश भर में उस का नाम हो. लेकिन अशरफ शेख ने जब से खुशी के साथ निकाह करने का फैसला किया था, दोनों के बीच तकरार बढ़ गई थी.

इस की वजह यह थी कि अशरफ नहीं चाहता था कि खुशी बाहरी लोगों से मिले और देर रात तक घर से बाहर रहे. वह अब खुशी के हर फैसले में अपनी टांग अड़ाने लगा था. वह चाहता था कि खुशी अब मौडलिंग वगैरह का चक्कर छोड़े और सारा दिन उस के साथ रहे और मौजमस्ती करे.

लेकिन खुशी को यह सब मंजूर नहीं था. उस का कहना था कि उस ने जो सपना बचपन से देखा है, उसे हर हाल में पूरा करना है. मौडलिंग की दुनिया में वह अपने आप को आकाश में देखना चाहती थी, जो अशरफ को गवारा नहीं था. इसी सब को ले कर अब खुशी और अशरफ के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. दोनों में अकसर तकरार और छोटेमोटे झगड़े भी होने लगे थे.

अशरफ को यकीन हो गया था कि खुशी अपने इरादों से पीछे हटने वाली नहीं है. अब तक वह खुशी पर बहुत रुपए खर्च कर चुका था और खुशी उस का अहसान मानने को तैयार नहीं थी. खुशी का मानना था कि प्यार में पैसों का कोई मूल्य नहीं होता.

यह बात अशरफ को चुभ गई थी. उस ने अपने 5 महीनों के प्यार और दोस्ती को ताख पर रख दिया और घटना के 2 दिन पहले 12 जुलाई, 2019 को अपनी कार नंबर एमएच03ए एम4769 से खुशी को ले कर एक लंबी ड्राइव पर निकल गया.

दोनों नागपुर शहर से काफी दूर ग्रामीण इलाके में आ गए थे. कुछ समय वह पाटुर्णानागपुर रोड पर यूं ही कार को दौड़ाता रहा फिर दोनों ने सावली गांव के करीब स्थित कलमेश्वर इलाके के शर्मा ढाबे पर  खाना खाया और जम कर शराब पी.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इलाका सुनसान हो गया था. कार में बैठने के बाद अशरफ शेख ने अपना वही पुराना राग छेड़ दिया, जिस से खुशी नाराज हो गई. खुशी पर भी नशा चढ़ गया था. उस का कहना था कि वह आजाद थी और आजाद रहेगी. वह जिस पेशे में है, उस में उसे हजारों लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है. उन का कहना मानना पड़ता है. अगर तुम्हें मुझ से कोई तकलीफ है तो तुम मुझ से बे्रकअप कर सकते हो.

‘‘मुझे लगता है कि अब तुम्हारा मन मुझ से भर गया है और तुम किसी और की तलाश में हो.’’ अशरफ बोला.

‘‘यह तुम्हारा सिरदर्द है मेरा नहीं. मैं जैसी पहले थी अब भी वैसी ही रहूंगी.’’ खुशी ने कहा तो दोनों की कहासुनी मारपीट तक पहुंच गई. उसी समय अशरफ अपना आपा खो बैठा और कार के अंदर ही खुशी के सिर पर मार कर उसे बेहोश कर दिया.

खुशी के बेहोश होने के बाद अशरफ इतना डर गया कि वह अपनी कार सावली गांव के इलाके में एक सुनसान जगह पर ले गया और उस ने खुशी को हाइवे किनारे जला दिया.

इस के बाद अपनी और खुशी की पहचान छिपाने के लिए उस ने कार के अंदर से टायर बदलने का जैक निकाल कर उस का चेहरा विकृत किया और उस के ऊपर बैटरी का एसिड डाल दिया.

खुशी का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने खुशी का मोबाइल अपने पास रख लिया, जिसे क्राइम टीम ने बरामद कर लिया था. इस के बाद वह आराम से अपने घर चला गया और खुशी की मौसी को फोन पर बताया कि उस का और खुशी का झगड़ा हो गया है. वह अपने गांव चली गई है.

उस का मानना था कि 2-4 दिनों में खुशी के शव को जानवर खा जाएंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. लेकिन यह उस की भूल थी. वह क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार के हत्थे चढ़ गया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने अशरफ से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे केलवद ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मट्टामी को सौंप दिया. आगे की जांच टीआई सुरेश मट्टामी कर रहे थे. 

बाहुबली नेता Pappu Yadav को बिश्‍नोई गैंग की धमकी, ‘24 दिसंबर से पहले ऊपर पहुंचा देंगे’

Pappu Yadav को एक बार फिर धमकी मिली है. यह धमकी उन्‍हें 18 नवंबर को मिली है. उनको यह धमकी फोन पर दी गई, जो पाकिस्‍तान से किया गया था. इस धमकी में उन्‍हें 24 दिसंबर से पहले ऊपर पहुंचाने की बात की गई है. दरअसल 24 दिसंबर को पप्‍पू यादव का जन्‍म दिन है इसलिए उनको धमकाया गया कि उनको जन्‍मदिन के दिन ही मार दिया जाएगा. धमकी में यह कहा गया कि ऊपर जाकर ही अपना जन्‍मदिन मनाना. उस फोन में पप्‍पू यादव को धमकाते हुए कहा गया कि हमारे साथी ने तुम्‍हें नेपाल से फोन किया था कि तुम भाई से माफी मांग लो लेकिन तुम सुधरने का नाम नहीं ले रहे हो.

Pappu Yadav and Lawrence Bishnoi का मामला

मुंबई में बाबा सिद्दकी की हत्‍या हुई. इसके एक दिन बाद पप्‍पू यादव ने एक ऐसा ट्वीट लिखा जिसने तहलका ही मचा दिया. यह ट्वीट गैंगस्‍टर लौरेंस बिश्‍नोई के खिलाफ किया गया था. लौरेंस के खिलाफ इस तरह का ट्वीट और ऐसी बात करते सलमान खान को भी नहीं देखा गया. पप्‍पू यादव बिहार के पूर्णिया से सांसद हैं. उनकी पहचान एक दबंग बाहुबली नेता की रही है. इस ट्वीट में पप्‍पू ने लिखा था,

“यह देश है या हिजड़ों की फौज एक अपराधी जेल में बैठ चुनौती दे लोगों को मार रहा है,सब मुकदर्शक बने हैं, कभी मूसेवाला, कभी करणी सेना के मुखिया अब एक उद्योगपति राजनेता को मरवा डाला, कानून अनुमति दे तो 24घंटे में इस लारेंस बिश्नोई जैसे दो टके के अपराधी के पूरे नेटवर्क को खत्म कर दूंगा.”

पप्‍पू यादव के डर की शुरुआत

इसमें कोई शक नहीं कि इस ट्वीट के बाद हंगामा तो होना ही था. हालांकि सोशल मीडिया पर इन वाक्‍यों को शेयर करने के बाद लौरेंस की जम कर वाहवाही हुई, इनके चाहने वालों को ऐसा लग रहा था कि वाकई पप्‍पू यादव एक बाहुबली नेता है. पर इस घटना का एक सप्‍ताह भी नहीं हुआ था कि पप्‍पू यादव का एक वीडियो वायरल हो गया. इस वीडियो में वे एक पत्रकार को जोर से डांटते नजर आ रहे थे. दरअसल, एक प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने सांसद पप्‍पू यादव से लौरेंस को लेकर सवाल पूछ लिया था. इस पर पप्‍पू यादव गुस्‍से में लाल पीला होते हुए कहने लगे,”हमने पहले ही कह दिया था कि ये सवाल मत पूछिए. आप ज्यादा तेज मत बनिए. ये सवाल नहीं होगा.” इसके बाद यह खबर तेज हो गई कि पप्‍पू यादव को लौरेंस के गैंग से उनके ट्वीट को लेकर धमका दिया गया है. एक धमकी भरा औडियो भी वायरल हुआ जिसके बारे में कहा गया कि धमकी लौरेंस गैंग की ओर से ही दी गई थी, हालांकि इसकी अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है.

धमकी भरे औडियो का अंश , “तुझे बड़ा भाई बनाया, जेल से जैमर बंदकर कांफ्रेंस पर फोन किया. ऊपर से तूने भाई का फोन नहीं उठाया. मजाक समझ रखा है क्या… भाई को ये सिला दिया. शर्मिंदा करवा दिया. बड़े भाई का फर्ज तो निभा देता. तेरे से कुछ मांगा नहीं, फिर ऐसा क्यों किया. भाई से बात करवाऊंगा, मसला सुलझा ले अपना. तेरे सभी ठिकानों की जानकारी भाई के पास है.कच्चा चबा जाऊंगा.” मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसी औडियो में ठिकानों का भी जिक्र किया गया.

हाेम म‍िनिस्‍टर से मांगी मदद

अब सोशल मीडिया पर भी इस बाहुबली नेता को एक धमकी दी गई है. इस धमकी में कहा गया है कि औकात में रहकर चुपचाप राजनीति करो, ज्यादा इधर उधर तीन-पांच करके टीआरपी कमाने के चक्कर में मत पड़ो. वरना रेस्ट इन पीस (rest in peace) कर दिए जाओगे. यह धमकी किस दिन मिली यह अभी स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन पप्‍पू यादव ने होममिनिस्‍टर अमित शाह को पत्र लिखकर अपनी सुरक्षा की मांग की है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पप्‍पू यादव ने अपने लिए ‘वाई श्रेणी’ की सुरक्षा बढ़ाकर ‘जेड श्रेणी’ करने की मांग की है. उन्‍होंने अपने पत्र में इस बात का जिक्र किया है कि वे अपने जीवन में एक बार बिहार विधान सभा सदस्‍य और 6 बार एमपी रह चुके हैं. इस पत्र में उन्‍होंने यह भी लिखा है कि उन्‍होंने बिहार के सीएम, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को भी इसकी जानकारी दी लेकिन इस पर किसी तरह की सुध नहीं ली गई . एक राजनैतिक व्‍यक्ति होने के कारण मैंने बिश्‍नोई गैंग का विरोध किया, तो मुझे उसकी तरह से धमकी मिलने लगी. उन्‍होंने पत्र में लिखा कि उनके लिए अतिरिक्‍त सुरक्षा की व्‍यवस्‍था की जाए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनकी हत्‍या हो सकती है जिसकी जिम्‍मेदारी केंद्र और बिहार सरकार की होगी. पप्‍पू यादव ने कहा कि उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा को बढ़ा कर जेड श्रेणी का कर दिया जाए.

गैंगस्‍टर हो रहे हैं बेकाबू

बौलीवुड के बाद अब गैंगस्‍टर पौलिटिशियन को खुलेआम धमका रहे हैं, जो चिंताजनक है. सलमान खान, शाहरुख खान, भोजपुरी एक्‍ट्रैस अक्षरा सिंह के बाद अब पौलिटिशियन पप्‍पू यादव को धमकाने की खबरें तेज हो गई है. एक समय था जब दाउद इब्राहीम, छोटा राजन, अबू सलेम की ही तूती बोलती थी, वो भी बौलीवुड तक ही सीमित थी. लेकिन अब लौरेंस बिश्‍नोई ने इस साम्राज्‍य पर कब्‍जा जमा लिया है और देश में ही नहीं विदेशी धरती पर भी अपने डर का सिक्‍का जमाना चाहता है, जो कनाडा में निज्‍जर के मामले में देखने को मिला. इस बार भी जो धमकी पप्‍पू यादव को दी गई है, वह कौल पाकिस्‍तान से आया हुआ बताया जा रहा है. बाबा सिद्दकी, सिद्धू मूसे वाला की हत्‍या कर लौरेंस ने भारत में अपनी दबंगई दिखा दी हैमुंबई में बाबा सिद्दकी की हत्‍या हुई . इसके एक दिन बाद पप्‍पू यादव ने एक ऐसा ट्वीट लिखा जिसने तहलका ही मचा दिया. यह ट्वीट गैंगस्‍टर लौरेंस बिश्‍नोई के खिलाफ किया गया था. लौरेंस के खिलाफ इस तरह का ट्वीट और ऐसी बात करते सलमान खान को भी नहीं देखा गया . पप्‍पू यादव बिहार के पूर्णिया से सांसद हैं. उनकी पहचान एक दबंग बाहुबली नेता की रही है. इस ट्वीट में पप्‍पू ने लिखा था,

“यह देश है या हिजड़ों की फौज एक अपराधी जेल में बैठ चुनौती दे लोगों को मार रहा है,सब मुकदर्शक बने हैं, कभी मूसेवाला, कभी करणी सेना के मुखिया अब एक उद्योगपति राजनेता को मरवा डाला, कानून अनुमति दे तो 24घंटे में इस लारेंस बिश्नोई जैसे दो टके के अपराधी के पूरे नेटवर्क को खत्म कर दूंगा.”

पप्‍पू यादव के डर की शुरुआत

इसमें कोई शक नहीं कि इस ट्वीट के बाद हंगामा तो होना ही था. हालांकि सोशल मीडिया पर इन वाक्‍यों को शेयर करने के बाद लौरेंस की जम कर वाहवाही हुई, इनके चाहने वालों को ऐसा लग रहा था कि वाकई पप्‍पू यादव एक बाहुबली नेता है. पर इस घटना का एक सप्‍ताह भी नहीं हुआ था कि पप्‍पू यादव का एक वीडियो वायरल हो गया. इस वीडियो में वे एक पत्रकार को जोर से डांटते नजर आ रहे थे. दरअसल, एक प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने सांसद पप्‍पू यादव से लौरेंस को लेकर सवाल पूछ लिया था. इस पर पप्‍पू यादव गुस्‍से में लाल पीला होते हुए कहने लगे,”हमने पहले ही कह दिया था कि ये सवाल मत पूछिए. आप ज्यादा तेज मत बनिए. ये सवाल नहीं होगा.” इसके बाद यह खबर तेज हो गई कि पप्‍पू यादव को लौरेंस के गैंग से उनके ट्वीट को लेकर धमका दिया गया है. एक धमकी भरा औडियो भी वायरल हुआ जिसके बारे में कहा गया कि धमकी लौरेंस गैंग की ओर से ही दी गई थी, हालांकि इसकी अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है.

धमकी भरे औडियो का अंश , “तुझे बड़ा भाई बनाया, जेल से जैमर बंदकर कांफ्रेंस पर फोन किया. ऊपर से तूने भाई का फोन नहीं उठाया. मजाक समझ रखा है क्या… भाई को ये सिला दिया. शर्मिंदा करवा दिया. बड़े भाई का फर्ज तो निभा देता. तेरे से कुछ मांगा नहीं, फिर ऐसा क्यों किया. भाई से बात करवाऊंगा, मसला सुलझा ले अपना. तेरे सभी ठिकानों की जानकारी भाई के पास है.कच्चा चबा जाऊंगा.” मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसी औडियो में ठिकानों का भी जिक्र किया गया.

हाेम म‍िनिस्‍टर से मांगी मदद

अब सोशल मीडिया पर भी इस बाहुबली नेता को एक धमकी दी गई है. इस धमकी में कहा गया है कि औकात में रहकर चुपचाप राजनीति करो, ज्यादा इधर उधर तीन-पांच करके टीआरपी कमाने के चक्कर में मत पड़ो. वरना रेस्ट इन पीस (rest in peace) कर दिए जाओगे. यह धमकी किस दिन मिली यह अभी स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन पप्‍पू यादव ने होममिनिस्‍टर अमित शाह को पत्र लिखकर अपनी सुरक्षा की मांग की है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पप्‍पू यादव ने अपने लिए ‘वाई श्रेणी’ की सुरक्षा बढ़ाकर ‘जेड श्रेणी’ करने की मांग की है. उन्‍होंने अपने पत्र में इस बात का जिक्र किया है कि वे अपने जीवन में एक बार बिहार विधान सभा सदस्‍य और 6 बार एमपी रह चुके हैं. इस पत्र में उन्‍होंने यह भी लिखा है कि उन्‍होंने बिहार के सीएम, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को भी इसकी जानकारी दी लेकिन इस पर किसी तरह की सुध नहीं ली गई . एक राजनैतिक व्‍यक्ति होने के कारण मैंने बिश्‍नोई गैंग का विरोध किया, तो मुझे उसकी तरह से धमकी मिलने लगी. उन्‍होंने पत्र में लिखा कि उनके लिए अतिरिक्‍त सुरक्षा की व्‍यवस्‍था की जाए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनकी हत्‍या हो सकती है जिसकी जिम्‍मेदारी केंद्र और बिहार सरकार की होगी. पप्‍पू यादव ने कहा कि उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा को बढ़ा कर जेड श्रेणी का कर दिया जाए.

गैंगस्‍टर हो रहे हैं बेकाबू

बौलीवुड के बाद अब गैंगस्‍टर पौलिटिशियन को खुलेआम धमका रहे हैं, जो चिंताजनक है. सलमान खान, शाहरुख खान, भोजपुरी एक्‍ट्रैस अक्षरा सिंह के बाद अब पौलिटिशियन पप्‍पू यादव को धमकाने की खबरें तेज हो गई है. एक समय था जब दाउद इब्राहीम, छोटा राजन, अबू सलेम की ही तूती बोलती थी, वो भी बौलीवुड तक ही सीमित थी. लेकिन अब लौरेंस बिश्‍नोई ने इस साम्राज्‍य पर कब्‍जा जमा लिया है और देश में ही नहीं विदेशी धरती पर भी अपने डर का सिक्‍का जमाना चाहता है, जो कनाडा में निज्‍जर के मामले में देखने को मिला. इस बार भी जो धमकी पप्‍पू यादव को दी गई है, वह कौल पाकिस्‍तान से आया हुआ बताया जा रहा है. बाबा सिद्दकी, सिद्धू मूसे वाला की हत्‍या कर लौरेंस ने भारत में अपनी दबंगई दिखा दी है

हत्या और नशे का कारोबार, फंसते बेरोजगार

मुंबई में नेता बाबा सिद्दीकी की हाईप्रोफाइल हत्या के बाद गैंगस्टर लौरैंस बिश्नोई का नाम फिर चर्चा में है. देशविदेश में पहले भी हो चुकी कई हत्याओं में लौरैंस बिश्नोई का नाम आया है. अब कहा जा रहा है कि बाबा सिद्दीकी की हत्या भी उसी के गैंग ने की है.

लंबे समय से लौरैंस बिश्नोई फिल्म स्टार सलमान खान को मारने की फिराक में है, ऐसा पुलिस का कहना है और लौरैंस बिश्नोई के कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया पर हैं, जिन में वह ऐसा कहते सुना जा रहा है. पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या में पुलिस उस का हाथ होना मानती है, तो सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या का जिम्मेदार भी लौरैंस बिश्नोई को ही माना जाता है.

यही नहीं, कनाडा सरकार ने आरोप लगाया है कि भारत के गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भी लौरैंस बिश्नोई गैंग ने की है.

कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडाई नागरिकों की टार्गेट किलिंग का आरोप भारत पर मढ़ा है, जिस के चलते दोनों देशों के बीच इस कदर खटास आ गई है कि दोनों देशों ने अपनेअपने राजदूतों को देश वापस बुला लिया है.

आखिर कौन है लौरैंस बिश्नोई? पंजाब के फिरोजपुर जिले के धत्तरांवाली गांव का रहने वाला और पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिगरी हासिल करने वाला सतविंदर सिंह उर्फ लौरैंस बिश्नोई की उम्र अभी महज

31 साल है और दिलचस्प बात यह है कि वह पिछले 12 साल से जेल में है यानी सिर्फ 19 साल की उम्र में वह जेल चला गया था. फिर उस ने ग्रेजुएशन और एलएलबी कब और कैसे की? वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में भी रहा. राजस्थान की जोधपुर जेल में भी रहा.

आजकल लौरैंस बिश्नोई गुजरात की जेल में बंद है. पुलिस कहती है कि वह जेल में रह कर अपना गैंग चला रहा है. उस के गैंग में 700 से ज्यादा क्रिमिनल्स हैं, जो उस के इशारे पर कभी भी कहीं भी किसी का भी ‘गेम’ बजा देते हैं.

क्या जेल प्रशासन व हमारी खुफिया एजेंसियां छुट्टी पर हैं? अगर नहीं तो फिर कैसे जेल की ऊंची और मजबूत दीवारों में कैद रहते हुए लौरैंस बिश्नोई ने इतना विशाल गैंग खड़ा कर लिया?

गोल्डी बरार नाम के अपराधी के संपर्क में वह कब और कैसे आया, जिस को उस के गैंग का लैफ्टिनैंट कमांडर कहा जाता है और जो कई साल से

विदेश में है. क्या जेल में रहते हुए किसी से संपर्क करना, किसी की सुपारी लेना, गैंग के सदस्यों से बात करना इतना आसान है?

आखिर लौरैंस बिश्नोई जेल में बैठ कर कैसे यह सब कर रहा है? गुजरात की जेल में रहने के बावजूद लौरैंस बिश्नोई इतना ताकतवर कैसे है? मोदी सरकार लौरैंस बिश्नोई को दूसरे मामलों में जांच के लिए गुजरात से बाहर दूसरी जेलों में ले जाने की हर कोशिश का विरोध क्यों कर रही है?

लौरैंस बिश्नोई जेल में रहते हुए कथिततौर पर भारत और विदेश में हत्याएं और जबरन वसूली कैसे कर सकता है? लौरेंस बिश्नोई को कौन बचा रहा है और किस के आदेश पर वह काम कर रहा है?

क्या लौरैंस बिश्नोई जेल में बंद अपराधी है या मोदी सरकार उसे सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रही है? क्या एक गैंगस्टर को जानबू?ा कर खुली छूट दी जा रही है? ऐसे सैकड़ों सवाल हैं, जिन के जवाब अभी तक नहीं मिले हैं.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), जिस के सर्वेसर्वा अजीत डोभाल हैं, के मुताबिक, लौरैंस गैंग न सिर्फ 700 शूटरों के साथ काम करता है, बल्कि गैंग समय के साथ बड़ा होता जा रहा है. इस के औपरेशन जिस तरह 11 राज्यों में फैले हुए हैं, उस से लगता है कि ये गिरोह भी डी कंपनी यानी दाऊद इब्राहिम की राह पर चल रहा है.

गौरतलब है कि 90 के दशक में दाऊद इब्राहिम को भी बड़ा डौन अजीत डोभाल ने ही साबित किया था और दाऊद के खिलाफ उन के पास भारत से ले कर पाकिस्तान तक तमाम सुबूत भी मौजूद थे, बावजूद इस के दाऊद इब्राहिम कभी उन के शिकंजे में नहीं आया.

अब दाऊद इब्राहिम की तरह लौरैंस बिश्नोई का नाम खूब चर्चा में है. लेकिन यह पुलिस और खुफिया एजेंसियों के लिए डूब मरने की बात है कि एक क्रिमिनल 12 साल से आप की निगरानी में जेल में बंद है, फिर भी वह इतनी आसानी से बड़ीबड़ी वारदातों को अंजाम दे रहा है.

कभी सलमान खान को धमकी, तो कभी उस पर गोली चलवाना, कभी सिद्धू मूसेवाला की हत्या, कभी कनाडा में औपरेशन तो कभी इंगलैंड में क्राइम. हर बार ऐसे कांडों के बाद लौरैंस बिश्नोई का नाम लिया जाता है, तो हैरानी ही होती है कि वह जेल में बैठ कर कैसे यह सब कर रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के कंधे पर बंदूक रख कर कोई और इन तमाम सनसनीखेज कांडों को अंजाम दे रहा है?

दाऊद इब्राहिम के बारे में भारतीय जांच एजेंसियां कहती हैं कि उस ने ड्रग तस्करी, हत्याएं, जबरन वसूली के रैकेट के जरीए अपने नैटवर्क को बढ़ाया था. बाद में पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ मिल कर उस ने डी कंपनी बनाई, ठीक उसी तरह लौरैंस बिश्नोई ने भी अपना गिरोह बनाया और छोटेमोटे अपराधों से शुरुआत कर वह जल्दी ही उत्तर भारत के अपराध जगत पर छा गया.

एएनआई के मुताबिक, लौरैंस बिश्नोई गिरोह पहले पंजाब तक ही सीमित था, लेकिन अपने करीबी सहयोगी गोल्डी बरार की मदद से लौरैंस बिश्नोई ने हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के गिरोहों के साथ गठजोड़ कर एक बड़ा नैटवर्क तैयार कर लिया. यह गिरोह पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान, ?ारखंड समेत पूरे उत्तर भारत में फैल चुका है.

मुंबई में सरेआम बाबा सिद्दीकी को गोली मारने के आरोप में पकड़े गए 2 शूटर उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के एक गांव के हैं, जो अपनी रोजीरोटी कमाने के लिए पुणे गए थे. ऐसे लाखों बेरोजगार नौजवान देश में हैं, जिन्हें चंद पैसे का लालच दे कर अपराध की काली दुनिया में घसीट लिया जाता है.

बात करते हैं बाबा सिद्दीकी की, जिन की 12 अक्तूबर, 2024 की देर रात मुंबई के बांद्रा इलाके में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी और पुलिस के मुताबिक इस हत्या की जिम्मेदारी लौरैंस बिश्नोई गैंग ने ली है.

बाबा जियाउद्दीन सिद्दीकी भारत के महाराष्ट्र में बांद्रा (वैस्ट) विधानसभा सीट के विधायक थे. बाबा ने बहुत पहले कांग्रेस जौइन की थी. मुंबई कांग्रेस के एक प्रमुख अल्पसंख्यक चेहरे बाबा सिद्दीकी ने कांग्रेसराकांपा गठबंधन के सत्ता में रहने के दौरान मंत्री के रूप में भी काम किया था.

वे साल 1999, साल 2004 और साल 2009 में लगातार 3 बार विधायक रहे थे और उन्होंने साल 2004 से साल 2008 के बीच मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के अधीन खाद्य और नागरिक आपूर्ति एवं श्रम राज्य मंत्री के रूप में भी काम किया था.

बाबा सिद्दीकी ने साल 1992 से साल 1997 के बीच लगातार

2 कार्यकालों के लिए नगरनिगम पार्षद के रूप में भी काम किया था. अपनी मौत से पहले उन्होंने मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष और महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस समिति के संसदीय बोर्ड के रूप में काम किया था.

8 फरवरी, 2024 को उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और 12 फरवरी, 2024 को वे अजीत पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे.

बाबा सिद्दीकी का संबंध अंडरवर्ल्ड गैंग से माना जाता है. कहते हैं कि वे दाऊद इब्राहिम के करीबी थे. इसी के साथ वे कई फिल्म कलाकारों के भी करीबी दोस्त थे, जिन में सुनील दत्त का नाम भी शामिल था.

साल 2005 में सुनील दत्त की मौत के बाद भी बाबा सिद्दीकी उन के घर पर आते रहे थे. राजनीति में वे प्रिया दत्त के गुरु थे, लेकिन बाद में उन्होंने संजय दत्त को छोड़ कर बाकी दत्त परिवार से खुद को अलग कर लिया था.

फिल्म कलाकार सलमान खान और बाबा सिद्दीकी 2 दशकों से भी ज्यादा समय से करीबी दोस्त थे. सलमान खान हमेशा बाबा सिद्दीकी की सालाना इफ्तार पार्टियों में शामिल होते थे. वे हर मुश्किल समय में एकदूसरे के साथ खड़े रहते थे. वैसे, अनेक फिल्म हस्तियों के घर पर बाबा सिद्दीकी का उठनाबैठना था.

राजनीति में रहते और अंडरवर्ल्ड से नजदीकियों के चलते बाबा सिद्दीकी ने अथाह दौलत बना ली थी. इंफोर्समैंट डायरैक्टर (ईडी) ने साल 2018 में बाबा सिद्दीकी की 462 करोड़ रुपए की संपत्ति को अटैच किया था. यह संपत्ति बांद्रा (वैस्ट) में थी और इसे धन शोधन निरोधक अधिनियम के तहत जब्त किया गया था.

एजेंसी यह जांच कर रही थी कि क्या बाबा सिद्दीकी ने साल 2000 से साल 2004 तक महाराष्ट्र हाउसिंग और एरिया डवलपमैंट अथौरिटी के चेयरमैन के रूप में अपने पद का गलत इस्तेमाल कर पिरामिड डवलपर्स को बांद्रा में विकसित हो रहे स्लम रिहैबिलिटेशन अथौरिटी प्रोजैक्ट में मदद की थी. इस कथित घोटाले की रकम 2,000 करोड़ रुपए बताई गई थी.

कयास लगाए जा रहे हैं कि स्लम रिहैबिलिटेशन अथौरिटी रीडवलपमैंट का मामला भी बाबा सिद्दीकी की हत्या की वजह हो सकती है, क्योंकि कुछ रोज पहले से इस मामले में बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी, जो खुद एक नेता हैं, इस का विरोध कर रहे थे. ईडी इस मामले में बाबा सिद्दीकी की गिरफ्तारी की तैयारी में भी थी कि तभी उन की हत्या हो गई.

अगर बाबा सिद्दीकी को ईडी अरैस्ट करती तो जाहिर है स्लम घोटाले से ही नहीं, बल्कि बौलीवुड और अंडरवर्ल्ड के बीच कई रिश्तों से भी परदा उठता. कई राज बाहर आते.

रौ के एक अफसर रह चुके एनके सूद का कहना है कि बाबा सिद्दीकी अंडरवर्ल्ड और बौलीवुड के बीच मीडिएटर थे. दाऊद की डी कंपनी से उन के आज भी काफी नजदीकी संबंध थे.

उधर लौरैंस बिश्नोई और डी कंपनी के बीच दुश्मनी की कहानी भी बांची जा रही है और कहा जा रहा है कि बिश्नोई गैंग डी कंपनी को खत्म कर उस की जगह लेने की फिराक में है और बाबा सिद्दीकी की हत्या कर उस ने डी कंपनी को चुनौती दी है. ऐसे में लौरैंस बिश्नोई, दाऊद इब्राहिम या 462  करोड़ की प्रौपर्टी… बाबा सिद्दीकी की हत्या के पीछे बड़ा राज छिपा है.

इसी बीच देश में कई जगहों पर बहुत बड़ी मात्रा में ड्रग्स पकड़ी गई हैं. इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स का देश के भीतर आना और खपाया जाना बहुत बड़ी चिंता को जन्म देता है.

ड्रग्स का इस्तेमाल नौजवान तबका ज्यादा करता है. स्कूल, कालेज, औफिस से ले कर गांवदेहातों तक नौजवानों के बीच ड्रग्स की खपत बढ़ रही है. जाहिर है कि एक बहुत बड़ी साजिश के तहत देश के नौजवानों को कमजोर किया जा रहा है.

जिस दिन बाबा सिद्दीकी की हत्या हुई, उसी दिन यानी 12 अक्तूबर, 2024 को दिल्ली पुलिस की स्पैशल ब्रांच और गुजरात पुलिस ने एक सा?ा अभियान में गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर से 518 किलो हेरोइन जब्त की. इंटरनैशनल मार्केट में इस की कीमत 5,000 करोड़ रुपए आंकी गई है.

इस से पहले 10 अक्तूबर, 2024 को दिल्ली पुलिस ने पश्चिमी दिल्ली के रमेश नगर में एक दुकान से नमकीन के पैकेट में रखी 208 किलो कोकीन बरामद की थी.

इस कोकीन की कीमत इंटरनैशनल मार्केट में तकरीबन 2,000 करोड़ रुपए आंकी गई है. यह ड्रग्स रमेश नगर की एक पतली गली में बनी एक दुकान में 20 पैकेटों में रखी थी और इस की आगे डिलीवरी की जानी थी.

वहीं, 1 अक्तूबर, 2024 को दिल्ली पुलिस ने महिपालपुर इलाके में एक वेयरहाउस से 562 किलो हेरोइन और 40 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा बरामद किया था. जो ड्रग्स महिपालपुर से पकड़ी गई है, वह भारत के बाहर से लाई गई थी. 562 किलो कोकीन के अलावा जो 40 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा पकड़ा गया था, जो थाईलैंड से आया था.

स्पैशल सैल के एक अफसर के मुताबिक, 1 अक्तूबर और 10 अक्तूबर को दिल्ली के 2 अलगअलग इलाकों से जो ड्रग्स बरामद की गई, वह एक ही ड्रग्स रैकेट से संबंधित है. गुजरात के भरूच से बरामद ड्रग्स भी इसी रैकेट से जुड़ी है.

5 अक्तूबर, 2024 को गुजरात पुलिस ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ मिल कर भोपाल की एक फैक्टरी से 907 किलो मेफेड्रोन (एमडी) ड्रग्स बरामद की, जिस की कीमत इंटरनैशनल मार्केट में 1,814 करोड़ रुपए आंकी गई.

तकरीबन 5,000 किलो कच्चा माल भी इस छापेमारी के दौरान बरामद किया गया. यह ड्रग्स भोपाल के बागोड़ा इंडस्ट्रियल ऐस्टेट में चल रही एक फैक्टरी से बरामद की गई थी.

देश में जिस तरह से बड़े पैमाने पर ड्रग्स पकड़ी जा रही है, यह हैरान करने वाली बात है. इस तरह के बड़ेबड़े ड्रग नैटवर्क भारत में कैसे काम कर रहे हैं? सीमापार से इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स की खेप अंदर कैसे आ रही है? बौर्डर सिक्योरिटी फोर्स और खुफिया एजेंसियां क्या कर रही हैं? ड्रग नैटवर्क भारत की सीमा में कैसे ड्रग्स पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं? इस संबंध में अभी तक कोई बड़ा किंगपिन गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ? ये सवाल बड़े अहम हैं.

बड़ी तादाद में ड्रग्स का पकड़ा जाना यह भी बताता है कि भारतीय बाजार में ड्रग्स की मांग बढ़ रही है और इसलिए ही इस की सप्लाई बढ़ी है. अगर डिमांड नहीं बढ़ती तो इतनी बड़ी मात्रा में सप्लाई नहीं होती. इस कारोबार में पैसा भी बहुत है, इसलिए अपराधी इस की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं.

पुलिस के ऐक्शन से पता चलता है कि ड्रग्स तस्करी के नैटवर्क और संगठित हुए हैं. हाल के सालों में ड्रग्स से जुड़े अपराध बहुत तेजी से बढ़े हैं.

गौरतलब है कि लौरैंस बिश्नोई को भी अगस्त, 2023 में सीमा पार से ड्रग्स की तस्करी के एक मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल से साबरमती सैंट्रल जेल में भेजा गया था.

साफ है कि जो गिरोह आतंक और हत्या का धंधा चला रहे हैं, वही ड्रग्स और जिस्मफरोशी का कारोबार भी कर रहे हैं. और यह सब उन के राजनीतिक आकाओं के संरक्षण में फलफूल रहा है.

भारत नौजवानों का देश है. यहां 18 से 30 साल की उम्र वाले लोगों की तादाद सब से ज्यादा है. यह ऊर्जा का काफी बड़ा और बहुत शक्तिशाली पुंज है. लेकिन मोदी सरकार इस शक्ति को देश के विकास में इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. सरकार इन नौजवानों को रोजगार नहीं दे पा रही है.

लाखोंकरोड़ों नौजवान आज भी बेरोजगार हैं, जिन्हें थोड़े से पैसे का लालच दे कर बहुत ही आसानी से बरगलाया जा सकता है. चंद रुपयों के लालच में ये किसी की भी जान ले सकते हैं. हत्या, अपहरण, देह व्यापार और नशे के कारोबार को बढ़ाने में यही नौजवान तबका बहुत बड़ा रोल निभा रहा है.

लौरैंस बिश्नोई या दाऊद इब्राहिम की तथाकथित डी कंपनी ऐसे ही बेरोजगार नौजवानों का इस्तेमाल कर रही है. वे इन्हें पैसे और हथियार मुहैया करा रहे हैं.

बाबा सिद्दीकी की हत्या में जितने नौजवान पुलिस की गिरफ्त में आते जा रहे हैं, वे सभी गरीब घरों के बेरोजगार हैं, जो मजदूरी के इरादे से महानगरों की तरफ गए और बड़ी आसानी से अपराधी गिरोहों के जाल में फंस गए. इन के पास से विदेशी असलहे भी बरामद हुए हैं.

एमडी का अपहरण, क्या प्यार थी वजह

हैदराबाद निवासी के. श्रीकांत रेड्डी नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे. हैदराबाद की यह कंपनी भारत के विभिन्न राज्यों में सरकारी कामों का ठेका ले कर काम करती है. इस कंपनी को राजस्थान के जिला बाड़मेर के अंतर्गत आने वाले उत्तरलाई गांव के पास सोलर प्लांट के निर्माण कार्य का ठेका मिला था.

बड़ी कंपनियां प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए छोटीछोटी कंपनियों को अलगअलग काम का ठेका दे देती हैं. नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी ने भी इस सोलर प्लांट प्रोजेक्ट का टेंडर सबलेट कर दिया था.

बंगलुरू की इस सबलेट कंपनी ने बाड़मेर और स्थानीय ठेकेदारों को प्लांट का कार्य दे दिया. ठेकेदार काम करने में जुट गए.

तेज गति से काम चल रहा था कि इसी बीच नैचुरल पावर एवं सबलेट कंपनी के बीच पैसों को ले कर विवाद हो गया. ऐसे में सबलेट कंपनी रातोंरात काम अधूरा छोड़ कर स्थानीय ठेकेदारों का लाखों रुपयों का भुगतान किए बिना भाग खड़ी हुई.

स्थानीय ठेकेदारों को जब पता चला कि सबलेट कंपनी उन का पैसा दिए बगैर भाग गई है तो उन के होश उड़ गए क्योंकि सबलेट कंपनी ने इन ठेकेदारों से करोड़ों का काम करवाया था, मगर रुपए आधे भी नहीं दिए थे. स्थानीय ठेकेदार नाराज हो गए. उन्होंने एमइएस के अधिकारियों से मिल कर अपनी पीड़ा बताई. एमइएस को इस सब से कोई मतलब नहीं था.

मगर जब काम बीच में ही रुक गया तो एमईएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. से कहा कि वह रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करे. तब कंपनी ने अपने एमडी के. श्रीकांत रेड्डी को हैदराबाद से उत्तरलाई (बाड़मेर) काम देखने व पूरा करने के लिए भेजा. के. श्रीकांत रेड्डी अपने मित्र सुरेश रेड्डी के साथ उत्तरलाई (बाड़मेर) पहुंच गए. यह बात 21 अक्तूबर, 2019 की है.

वे दोनों राजस्थान के उत्तरलाई में पहुंच चुके थे. जब ठेकेदारों को यह जानकारी मिली तो उन्होंने अपना पैसा वसूलने के लिए दोनों का अपहरण कर के फिरौती के रूप में एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बनाई.

ठेकेदारों ने अपने 3 साथियों को लाखों रुपए का लालच दे कर इस काम के लिए तैयार कर लिया. यह 3 व्यक्ति थे. शैतान चौधरी, विक्रम उर्फ भीखाराम और मोहनराम. ये तीनों एक योजना के अनुसार 22 अक्तूबर को के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी से उन की मदद करने के लिए मिले.

श्रीकांत रेड्डी एवं सुरेश रेड्डी मददगारों के झांसे में आ गए. तीनों उन के साथ घूमने लगे और उसी शाम उन्होंने के. श्रीकांत और सुरेश रेड्डी का अपहरण कर लिया. अपहर्त्ताओं ने सुनसान रेत के धोरों में दोनों के साथ मारपीट की, साथ ही एक करोड़ रुपए की फिरौती भी मांगी.

अपहर्त्ताओं ने उन्हें धमकाया कि अगर रुपए नहीं दिए तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. अनजान जगह पर रेड्डी दोस्त बुरे फंस गए थे. ऐसे में क्या करें, यह बात उन की समझ में नहीं आ रही थी. दोनों दोस्त तेलुगु भाषा में एकदूसरे को तसल्ली दे रहे थे.

चूंकि अपहर्त्ता केवल हिंदी और राजस्थान की लोकल भाषा ही जानते थे, इसलिए रेड्डी बंधुओं की भाषा नहीं समझ पा रहे थे. यह बात रेड्डी बंधुओं के लिए ठीक थी. इसलिए वे अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूटने की योजना बनाने लगे.

अपहर्त्ता मारपीट कर के दिन भर उन्हें इधरउधर रेत के धोरों में घुमाते रहे. इस के बाद एक अपहर्त्ता ने के. श्रीकांत रेड्डी से कहा, ‘‘एमडी साहब अगर आप एमडी हो तो अपने घर वालों के लिए हो, हमारे लिए तो सोने का अंडा देने वाली मुरगी हो. इसलिए अपने घर पर फोन कर के एक करोड़ रुपए हमारे बैंक खाते में डलवा दो, वरना आप की जान खतरे में पड़ सकती है.’’ कह कर उस ने फोन के श्रीकांत रेड्डी को दे दिया.

श्रीकांत रेड्डी बहुत होशियार और समझदार व्यक्ति थे. वह फर्श से अर्श तक पहुंचे थे. उन्होंने गरीबी देखी थी. गरीबी से उठ कर वह इस मुकाम तक पहुंचे थे.

श्रीकांत करोड़पति व्यक्ति थे. वह चाहते तो करोड़ रुपए अपहर्त्ताओं को फिरौती दे कर खुद को और अपने दोस्त सुरेश रेड्डी को मुक्त करा सकते थे, मगर वह डरपोक नहीं थे. वह किसी भी कीमत पर फिरौती न दे कर अपने दोस्त और खुद की जान बचाना चाहते थे.

अपहत्ताओं ने अपने मोबाइल से के. श्रीकांत रेड्डी के पिता से उन की बात कराई. श्रीकांत रेड्डी ने तेलुगु भाषा में अपने पिताजी से बात कर कहा, ‘‘डैडी, मेरा और सुरेश का उत्तरलाई (बाड़मेर) के 3 लोगों ने अपहरण कर लिया है और एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे हैं. आप इन के खाते में किसी भी कीमत पर रुपए मत डालना.

‘‘जिस बैंक में मेरा खाता है, वहां के बैंक मैनेजर से मेरी बात कराना. आप चिंता मत करना, ये लोग हमारा बाल भी बांका नहीं करेंगे. हमें मारने की सिर्फ धमकियां दे सकते हैं ताकि रुपए ऐंठ सकें. आप बैंक जा कर मैनेजर से मेरी बात कराना. बाकी मैं देख लूंगा.’’

इस स्थिति में भी उन्होंने धैर्य और साहस से काम लिया. उन्होंने नैचुरल पावर कंपनी के अन्य अधिकारियों को भी यह बात बता दी. इस के बाद वह कंपनी के अधिकारियों के साथ हैदराबाद की उस बैंक में पहुंचे, जहां श्रीकांत रेड्डी का खाता था.

श्रीकांत रेड्डी ने बैंक मैनेजर को मोबाइल पर सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैनेजर साहब, मैं अपने दोस्त के साथ बाड़मेर में कंपनी का काम देखने आया था, लेकिन मददगार बन कर आए 3 लोगों ने हमारा अपहरण कर लिया और एक करोड़ की फिरौती मांग रहे हैं. आप से मेरा निवेदन है कि आप 25 लाख रुपए का आरटीजीएस करवा दो.

‘‘लेकिन ध्यान रखना कि यह धनराशि जारी करते ही तुरंत रद्द हो जाए. ताकि अपहर्त्ताओं को धनराशि खाते में आने का मैसेज उन के फोन पर मिल जाए लेकिन बदमाशों को रुपए नहीं मिले.’’ उन्होंने यह बात तेलुगु और अंग्रेजी में बात की थी, जिसे अपहर्त्ता नहीं समझ सके.

बैंक मैनेजर ने ऐसा ही किया. बदमाशों से एमडी के पिता और कंपनी के अधिकारी लगातार बात करते रहे और झांसा देते रहे कि जैसे ही 75 लाख रुपए का जुगाड़ होता है, उन के खाते में डाल दिए जाएंगे. चूंकि एक अपहर्त्ता के फोन पर खाते में 25 लाख रुपए जमा होने का मैसेज आ गया था इसलिए वह मान कर चल रहे थे कि उन्हें 25 लाख रुपए तो मिल चुके हैं और बाकी के 75 लाख भी जल्द ही मिल जाएंगे.

अपहर्त्ताओं ने के. श्रीकांत रेड्डी से स्टांप पेपर पर भी लिखवा लिया था कि वह ये पैसा ठेके के लिए दे रहे हैं. अपहर्त्ता अपनी योजना से चल रहे थे, वहीं एमडी, उन के पिता और कंपनी मैनेजर अपनी योजना से चल रहे थे.

उधर नैचुरल पावर कंपनी के अधिकारी ने 24 अक्तूबर, 2019 को हैदराबाद से बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम को कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी के अपहरण और अपहत्ताओं द्वारा एक करोड़ रुपए फिरौती मांगे जाने की जानकारी दे दी. कंपनी अधिकारी ने वह मोबाइल नंबर भी पुलिस को दे दिया, जिस से अपहर्त्ता उन से बात कर रहे थे.

बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम ने यह जानकारी बाड़मेर के एसपी शरद चौधरी को दी. एसपी शरद चौधरी ने उसी समय बाड़मेर एएसपी खींव सिंह भाटी, डीएसपी विजय सिंह, बाड़मेर थाना प्रभारी राम प्रताप सिंह, थानाप्रभारी (सदर) मूलाराम चौधरी, साइबर सेल प्रभारी पन्नाराम प्रजापति, हैड कांस्टेबल महीपाल सिंह, दीपसिंह चौहान आदि की टीम को अपने कार्यालय बुलाया.

एसपी शरद चौधरी ने पुलिस टीम को नैचुरल पावर कंपनी के एमडी और उन के दोस्त का एक करोड़ रुपए के लिए अपहरण होने की जानकारी दी उन्होंने अतिशीघ्र उन दोनों को सकुशल छुड़ाने की काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने टीम के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी एएसपी खींव सिंह भाटी को.

इस टीम ने तत्काल अपना काम शुरू कर दिया. साइबर सेल और पुलिस ने कंपनी के मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबरों की काल ट्रेस की तो पता चला कि उन नंबरों से जब काल की गई थी, तब उन की लोकेशन सियाणी गांव के पास थी.

बस, फिर क्या था. बाड़मेर पुलिस की कई टीमों ने अलगअलग दिशा से सियाणी गांव की उस जगह को घेर लिया जहां से अपहत्ताओं ने काल की थी. पुलिस सावधानीपूर्वक आरोपियों को दबोचना चाहती थी, ताकि एमडी और उन के साथी सुरेश को सकुशल छुड़ाया जा सके.

पुलिस के पास यह जानकारी नहीं थी कि अपहर्त्ताओं के पास कोई हथियार वगैरह है या नहीं? पुलिस टीमें सियाणी पहुंची तो अपहर्ता सियाणी से उत्तरलाई होते हुए बाड़मेर पहुंच गए. आगेआगे अपहर्त्ता एमडी रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को गाड़ी में ले कर चल रहे थे. उन के पीछेपीछे पुलिस की टीमें थीं.

एसपी शरद चौधरी के निर्देश पर बाड़मेर शहर और आसपास की थाना पुलिस ने रात से ही नाकाबंदी कर रखी थी. अपहर्त्ता बाड़मेर शहर पहुंचे और उन्होंने बाड़मेर शहर में जगहजगह पुलिस की नाकेबंदी देखी तो उन्हें शक हो गया. वे डर गए.

वे लोग के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी को ले कर सीधे बाड़मेर रेलवे स्टेशन पहुंचे. बदमाशों ने दोनों अपहर्त्ताओं को बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर वाहन से उतारा. तभी पुलिस ने घेर कर 3 अपहर्त्ताओं शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम एवं मोहनराम को गिरफ्तार कर लिया.

शैतान चौधरी और भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी दोनों सगे भाई थे. पुलिस तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अपहरण किए गए हैदराबाद निवासी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को भी थाने लाया गया.

पुलिस ने आरोपी अपहरण कार्ताओं के खिलाफ अपहरण, मारपीट एवं फिरौती का मुकदमा कायम कर पूछताछ की.

श्रीकांत रेड्डी ने बताया कि उत्तरलाई के पास सोलर प्लांट निर्माण का ठेका उन की नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हैदराबाद को मिला था.

उन की कंपनी ने यह काम सबलेट कंपनी बंगलुरु को दे दिया. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को पावर प्लांट का कार्य ठेके पर दिया. कार्य पूरा होने से पूर्व सबलेट कंपनी और नैचुरल पावर एशिया कंपनी में पैसों के लेनदेन पर विवाद हो गया.

सबलेट कंपनी ने जितने में ठेका नैचुरल कंपनी से लिया था, उतना पेमेंट नैचुरल कंपनी ने सबलेट कंपनी को कर दिया. मगर काम ज्यादा था और पैसे कम थे. इस कारण सबलेट कंपनी ने और रुपए मांगे.

नैचुरल पावर कंपनी ने कहा कि जितने रुपए का ठेका सबलेट को दिया था, उस का पेमेंट हो चुका है. अब और रुपए नैचुरल कंपनी नहीं देगी.

तब सबलेट कंपनी सोलर प्लांट का कार्य अधूरा छोड़ कर भाग गई. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को जो ठेके दिए थे, उस का पेमेंट भी सबलेट ने आधा दिया और आधा डकार गई. तब एमइएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. के एमडी को बुलाया. मददगार बन कर शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी और मोहनराम उन से मिले.

उन के लिए यह इलाका नया था. इसलिए उन्हें लगा कि वे अच्छे लोग होंगे, जो मददगार के रूप में उन्हें साइट वगैरह दिखाएंगे. मगर ये तीनों ठेकेदारों के आदमी थे, जो दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के थे.

इन्होंने ही उन का अपहरण कर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. एमडी रेड्डी ने इस अचानक आई आफत से निपटने के लिए अपनी तेलुगु और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर के न सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने दोस्त को भी बचा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने थाने में तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ की. पूछताछ में आरोपियों ने अपने अन्य साथियों के नाम बताए, जो इस मामले में शामिल थे और जिन के कहने पर ही इन तीनों ने एमडी और उन के दोस्त का अपहरण कर एक करोड़ की फिरौती मांगी थी.

तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ के बाद पुलिस ने 25 अक्तूबर, 2019 को अर्जुनराम निवासी बलदेव नगर, बाड़मेर, कैलाश एवं कानाराम निवासी जायड़ु को भी गिरफ्तार कर लिया. इस अपहरण में कुल 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए थे. आरोपियों को थाना पुलिस ने 26 अक्तूबर 2019 को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के उन्हें रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन लोगों का ठेकेदारी का काम है. कुछ ठेकेदार थे और कुछ ठेकेदारों के मुनीम व कमीशन पर काम ले कर करवाने वाले. अर्जुनराम, कैलाश एवं कानाराम छोटे ठेकेदार थे, जो ठेकेदार से लाखों रुपए का काम ले कर मजदूर और कारीगरों से काम कराते थे.

सबलेट कंपनी ने जिन बड़े ठेकेदारों को ठेके दिए थे. बड़े ठेकेदारों से इन्होंने भी लाखों रुपए का काम लिया था. मगर सबलेट कंपनी बीच में काम छोड़ कर बिना पैसे का भुगतान किए भाग गई तो इन का पैसा भी अटक गया.

मजदूर और कारीगर इन ठेकेदारों से रुपए मांगने लगे, क्योंकि उन्होंने मजदूरी की थी. जब ठेकेदारों ने पैसा नहीं दिया तो ये लोग परेशान हो गए.

ऐसे में इन लोगों ने जब नैचुरल पावर कंपनी के एमडी के आने की बात सुनी तो इन्होंने उस का अपहरण कर के फिरौती के एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बना ली.

इन लोगों ने सोचा था कि एक करोड़ रुपए वसूल लेंगे तो मजदूरों एवं कारीगरों का पैसा दे कर लाखों रुपए बच जाएंगे.

सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

Love Crime : प्रेमिका के पापा ने कहा मर कर दिखाओ तो होगी शादी

अतुल लोखंडे और प्रीति 13 सालों से एकदूसरे को जानते थे. नजदीकियों ने उन्हें प्यार की सौगात दी, लेकिन एक की कामयाबी और दूसरे की नाकामी ने प्यार में बैरन का काम किया. फलस्वरूप जो हुआ, वह बहुत धमाकेदार और हैरतंगेज था…  

हांमैं अत्तू को 7 साल से जानती थी और उस के साथ रिलेशनशिप में थीलेकिन 7 साल में वह कुछ नहीं कर पाया. वह अपने कैरियर के प्रति लापरवाह था. मैं ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह स्टेबल नहीं हो पाया. इस वजह से एक साल से मैं ने उस से दूरियां बनानी शुरू कर दी थीं. मैं एक ऐसे आदमी से शादी नहीं करना चाहती थी, जो मेरी या परिवार की जिम्मेदारी निभा पाए.’

बीती 4 जुलाई को प्रीति जब मीडिया से रूबरू हुई, तब उस का चेहरा हालांकि उतरा और निचुड़ा हुआ था, लेकिन इस के बावजूद वह यह जताने की कोशिश करती नजर आई कि अतुल लोखंडे उर्फ अत्तू की आत्महत्या में उस का या उस के पिता का कोई हाथ नहीं हैमतलब उसे खुदकुशी के लिए उकसाया नहीं गया था. यह खुद अतुल का फैसला था, लेकिन जबरन उस के पिता का नाम बीच में घसीटा जा रहा है कि उन के कहने पर उस ने प्यार का सबूत देने के लिए आत्महत्या करने की कोशिश की. प्यार की यह दुखद कहानी भोपाल के शिवाजी नगर इलाके की है, जिसे शहर की सब से शांत और खूबसूरत जगहों में शुमार किया जाता है

हबीबगंज रेलवे स्टेशन और व्यवसायिक इलाके एम.पी. नगर से महज डेढ़ किलोमीटर की दूर स्थित शिवाजी नगर में सरकारी आवासों की भरमार है. यह जगह शहर के वीआईपी इलाके चार इमली से भी सटी हुई है, जहां प्रदेश भर की दिग्गज हस्तियां रहती हैं. शिवाजी नगर में रहने वाले नाम से कम अपने क्वार्टरों के टाइप और नंबरों से ज्यादा जाने जाते हैं. अगर आप अतुल लोखंडे के घर जाना चाहते हैं तो आप को 121 की लाइन ढूंढनी पड़ेगी. लेकिन अतुल लोखंडे को लोग नाम से भी जानते थे, क्योंकि वह भाजपा अरेरा मंडल के युवा मोर्चे का उपाध्यक्ष था

नेतागिरी में सक्रिय युवाओं को बरबस ही लोग जानने लगते हैं. ऐसे आवासों में अकसर पार्टी कार्यकर्ताओं की आवाजाही लगी रहती है. कभीकभार कोई बड़ा नेता या मंत्री भी उन के घर जाता है. ऐसे में बैठेबिठाए मुफ्त का प्रचार मिल जाता है. 30 वर्षीय अतुल हंसमुख और जिंदादिल नवयुवक था, लेकिन बीती 3 जुलाई को उस ने निहायत ही नाटकीय अंदाज में खुदकुशी कर ली. ऐसे में भोपाल में सनाका खिंचना स्वाभाविक सी बात थी. प्रेम में जिंदगी हारा आशिक जब अतुल अपने घर से महज 2 सौ मीटर दूर रहने वाली प्रीति के घर पहुंचा, तब रात के लगभग साढ़े 9 बजे का वक्त था. प्रीति की इसी साल बैंक में नौकरी लगी थी और वह विदिशा से रोजाना हबीबगंज स्टेशन से अपडाउन करती थी. रोजाना की ही तरह उस के पिता उस दिन भी अपनी आई10 कार से उसे लेने स्टेशन पहुंचे थे.

दोनों अभी घर लौटे ही थे कि अतुल भी वहां पहुंच गया. प्रीति के पिता जल संसाधन विभाग में अधिकारी हैं. पहुंचते ही बगैर किसी भूमिका के, जिस की जरूरत भी नहीं थी, अतुल ने कहा कि वह प्रीति से शादी करना चाहता है. जवाब उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला तो अतुल ने बिना किसी हिचकिचाहट या घबराहट के अपनी कमर में खोंसा हुआ देसी कट्टा निकाला और माथे पर लगा कर उस का ट्रिगर दबा दिया. गोली उस के भेजे में जा कर धंस गई. धांय की आवाज के साथ ही अतुल कटे पेड़ की तरह धड़ाम से जमीन पर गिर गया तो प्रीति और उस के पिता को माजरा समझ में आया. स्थिति देख कर वे घबरा गए. शोरशराबा शुरू हुआ तो आसपास के लोग दौड़े चले आए. भीड़ ने अतुल को उठा कर नजदीक के पारूल अस्पताल में भरती करा दिया. थोड़ी देर में उस के घर वाले भी अस्पताल पहुंच गए.

खबर तेजी से फैली कि भाजपा युवा मोर्चे के एक पदाधिकारी अतुल लोखंडे ने प्रेम प्रसंग के चलते खुद को गोली मार ली. अस्पताल के सामने भाजपा युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं की भीड़ लगनी शुरू हो गई. वारदात की खबर मिलते ही पुलिस टीम भी अस्पताल पहुंच गई. सुरक्षा के लिहाज से अस्पताल के सामने पुलिस बल तैनात कर दिया गया. एकत्र भीड़ में मौजूद अधिकांश लोगों को नहीं मालूम था कि आखिर माजरा क्या है, लेकिन एक घंटे की बातचीत और चर्चा के बाद अतुल और प्रीति की लव स्टोरी सामने आई तो कोहरा छंटता नजर आया. अब हर कोई यह दुआ मांगने लगा था कि अतुल बच जाए. पुलिस अपनी काररवाई में लग गई थी और डाक्टर अतुल के इलाज में जुट गए थे. अतुल के कुछ नजदीकी दोस्त गुट सा बना कर चर्चा कर रहे थे कि अतुल तो यह कहा करता था कि कुछ भी हो जाए, कभी खुदकुशी जैसा बुजदिली भरा कदम नहीं उठाएगा और आज वही

ब्लू व्हेल सा चैलेंज इसी चर्चा से सामने आई अतुल और प्रीति की प्रेमकथा, जिसे कई लोग पहले से ही जानते थे. अतुल और प्रीति करीब 13 साल से एकदूसरे को जानते थे और जल्द ही शादी करने वाले थे. कुछ लोग तो यह तक मानते थे कि दोनों शादी कर चुके थे, बस उन्हें पारिवारिक स्वीकृति और सामाजिक मान्यता का इंतजार था. फिर ऐसा क्या हो गया कि अतुल को यह आत्मघाती कदम उठाना पड़ा. इस सवाल का जवाब मिला अतुल की फेसबुक वाल से, जिसे उस ने प्रीति के घर आने के पहले ही अपडेट करते हुए किसी ज्योतिषी की तरह अपनी मौत की सटीक भविष्यवाणी कर दी थी.

अतुल ने प्रीति के घर रवाना होने से चंद मिनटों पहले फेसबुक पर लिखा था

उस के पापा ने कहा कि आज शाम घर आओ, अपनी प्रेमिका के लिए मर के दिखाओअगर उस से प्यार करते हो तो. बच गए तो तुम दोनों की शादी पक्की, मर गए तो सात जन्म हैं हीफिर पैदा हो कर कर लेना शादी

मैं प्रीति के घर पर ही हूं, मुझे यहां से ले जाना. जिंदा रहा तो खुद जाऊंगा, उस से भी वादा किया था. एक वादा तो पूरा नहीं कर पाया दूसरा वादा, मैं तेरे बिना नहीं जी सकता, इसलिए मर रहा हूं

सब यही कहेंगे कि लड़की के चक्कर में चला गया, घर वालों के बारे में नहीं सोचा. सब के बारे में सोचसमझ कर ही यह कदम उठाया है. इस के अलावा कहीं कुछ नहीं दिख रहा, बहुत कोशिश कर ली पर भूल ही नहीं पा रहा. वैसे भी भुलाया तो पराए को जाता है अपने को नहीं.’

सहजता से समझा जा सकता है कि यह सब लिखते वक्त प्यार में असफल होने वाले एक आशिक की मनोदशा क्या रही होगी. एक आशिक दुनिया से लड़ सकता है लेकिन अपनी माशूका से नहीं लड़ पाता. उसे घर वालों की चिंता भी थी पर प्रीति के पिता की यह चुनौती उसे मजबूर कर रही थी कि वह अपने प्यार की सच्चाई साबित करे, भले ही इस के लिए उसे जान ही क्यों देनी पड़े. अस्पताल में भरती अतुल 4 जुलाई को जब जिंदगी से भी हार रहा था, तब प्रीति मीडियाकर्मियों के सामने यह साबित करने की कोशिश कर रही थी कि उस के पिता ने ऐसा कोई चैलेंज उसे नहीं दिया था, बल्कि यह एक नाकाम आशिक के खुराफाती दिमाग की उपज है.

अपनी बात में दम लाने के लिए प्रीति ने बताया कि हादसे के दिन वह अपनी ड्यूटी पूरी कर के रात लगभग 9.25 बजे घर पहुंची थी. उस के पिता भी साथ थे. घर के बाहर आल्टो कार में अत्तू बैठा था. हमें देखते ही वह भी घर के गेट तक गया. उस ने कहा कि एक मिनट पापा से बात करनी है. इस पर प्रीति ने कहा कि कोई बात नहीं होगी, तुम जाओ. उस ने जिद की तो पापा मान गए. तब तक गेट पर प्रीति की मां और बड़ी बहन भी गई थीं. गेट पर ही अतुल ने प्रीति से पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हें परेशान करता हूं?’’

जवाब में प्रीति ने कहा, ‘‘अब इन बातों का कोई मतलब नहीं, मैं शादी नहीं करूंगी.’’

उस का जवाब सुनते ही अतुल ने जेब से देशी कट्टा निकाला और कनपटी पर लगा कर गोली चला दी. बकौल प्रीति, फेसबुक पर अतुल ने जो लिखा है वह गलत है. हमारी कोई शादी नहीं हुई है और ही मेरे पिता ने उसे घर पर बात करने के लिए बुलाया था. प्रीति ने यह भी बताया कि अतुल ने कुछ दिन पहले उस के साथ सरेराह मारपीट भी की थी. उस की स्कूटी का मिरर, मोबाइल और हेलमेट तोड़ दिए थेप्रीति उस से दूर रहना चाहती थी पर एक महीने से अतुल के सिर पर पागलपन सवार था. उस के बडे़ भाई मुकुल ने भी उस के पिता को भलाबुरा कहा था. इसी दौरान अतुल ने उस के औफिस जा कर भी बात करने की कोशिश की थी. इस पर प्रीति ने उसे समझाया था कि अब हमारा कुछ नहीं हो सकता, तुम अपना कैरियर बनाओ.

मीडिया से रूबरू होते समय प्रीति के पिता का कहना था कि उन्होंने कुछ दिनों पहले ही अतुल के घर वालों से उस की शिकायत की थी, लेकिन उन्होंने कहा कि उन का बेटा मरता है तो मर जाए, आप यहां से चले जाएं. चूंकि अतुल उन के घर के चक्कर लगाता रहता था, इसलिए वे प्रीति को लेने स्टेशन जाने लगे थे, जिस से किसी तरह का फसाद खड़ा हो. अतुल ने खुदकुशी कर के जो फसाद खड़ा किया, वह शायद ही लोग आसानी से भूल पाएं. इस मामले में फसाद की जड़ माशूका की बेरुखी थी, जो साफ दिखती है. जबकि यह बात अतुल की समझ में नहीं रही थी कि ऐसा क्या हो गया जो नौकरी लगते ही प्रीति का दिमाग फिर गया और वह उस से रूठीरूठी रहने लगी. मुमकिन है इस दौरान उसे अपने निकम्मे होने का खयाल भी आया हो, जिस का अहसास खुद प्रीति भी उसे करा चुकी थी.

4 जुलाई को जब अतुल जिंदगी की जंग में हार रहा था, तब केवल प्रीति और उस के घर वाले अतुल पर आरोप लगा रहे थे, बल्कि अतुल के घर वाले भी खामोश नहीं बैठे थे. सच के इर्दगिर्द अतुल की मां सुनंदा का कहना था कि प्रीति का 12-13 सालों से उन के घर आनाजाना था. वह उन के घर के हर कार्यक्रम में हिस्सा लेती थी और हर मामले में घर के सदस्य जैसा ही अधिकार जमाती थी. उन्होंने स्वीकारा कि अतुल और प्रीति दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. लेकिन बैंक में नौकरी लगने के बाद प्रीति के तेवर बदल गए थे. उस की ख्वाहिशें बढ़ गई थीं. उसे रहने के लिए बंगला और घूमने के लिए गाडि़यां चाहिए थीं. 15 दिन में मेरा बेटा यह सब कहां से अरेंज करता, प्रीति शर्तों पर जीना चाहती थी, लेकिन प्यार में शर्तें कहां होती हैं?

अतुल की मां भी सरकारी कर्मचारी हैं और उस के पिता मधुकर लोखंडे जेल विभाग में कार्यरत हैं जो कुछ नामालूम वजहों के चलते घर से अलग रहते हैं. इन बातों का प्रीति और अतुल के प्यार की गहराई से कोई संबंध नहीं लगता, जो किशोरावस्था में ही पनप चुका था और इतना परिपक्व हो चुका था कि पूरा शिवाजी नगर इस प्रेम प्रसंग को जानता था. दूसरे प्रेमियों की तरह उन्हें चोरीछिपे नहीं मिलना पड़ता थालाख टके और मुद्दे की बात अतुल का खुदकुशी का फैसला है, जिस की वजह यही समझ आती है कि वाकई नौकरी लगने के बाद प्रीति बदल गई थी. यह बात दूसरे शब्दों में वह खुद भी स्वीकार कर रही है और अतुल की मां का भी यही कहना है.

हंसमुख अतुल मौत के 15 मिनट पहले तक दोस्तों को हंसा रहा था, पर तब कोई नहीं समझ पाया था कि इस नाकाम आशिक के दिलोदिमाग में कौन सा तूफान उमड़ रहा हैप्रीति की यह नसीहत अपनी जगह ठीक थी कि अतुल को कैरियर पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन उस की बेरुखी अतुल बरदाश्त नहीं कर पाया तो खुद की चलाई गोली उस के भेजे में उतरी और 5 जुलाई को उस ने अपने घर के ठीक सामने बने पारूल अस्पताल में दम तोड़ दिया. लगता है कि अतुल नफरत और प्यार के द्वंद में फंस गया था. फेसबुक पर उस ने यह लिखा भी था कि प्रीति को कोई कुछ कहे, सारी गलती खुद उसी की है. सब कुछ मेरी वजह से ही बिगड़ा. प्रीति के लिए उस ने लिखा कि मैं 13 साल उस के साथ रहा, लेकिन उस के सपने पूरे नहीं कर पाया.

तू भी हमारे 13 साल के रिश्ते को कैसे भूल गई. अपने पापा के सामने डर क्यों गई? एक बार हिम्मत दिखाती तो आज जिंदगी कुछ और होती. अपनी मां को संबोधित करते हुए उस ने बड़े भावुक अंदाज में इच्छा जताई थी कि अगर यह सच है कि 7 जन्म होते हैं तो हर जन्म में वह अपनी मां का बेटा बनना चाहेगा, उस की मां जैसी कोई मां दुनिया में नहीं है.

पहले की पत्नी की हत्या, फिर लगाया आम का पेड़

घरवालों के लाख मना करने के बाद भी दीपा ने गांव के ही दूसरी जाति के युवक समरजीत से शादी कर ली. इस के बाद दीपा ने ऐसा क्या किया कि प्रेमी से पति बने समरजीत ने उस की हत्या कर लाश जमीन में दफना कर उस पर आम का पेड़ लगा दिया. समरजीत करीब एक साल बाद दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ गांव धनजई लौटा तो मोहल्ले वालों ने उस में कई बदलाव देखे. उस के पहनावे और बातचीत में काफी अंतर चुका था. उस का बातचीत का तरीका गांव वालों से एकदम अलग था. इस से गांव वाले समझ गए कि दिल्ली में उस का काम ठीकठाक चल रहा है. धनजई गांव उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में पड़ता है.

देखने से ही लग रहा था कि समरजीत की हालत अब पहले से अच्छी हो गई है, लेकिन गांव वाले एक बात नहीं समझ पा रहे थे कि जब वह गांव से गया था तो गांव के ही रहने वाले रामसनेही की बेटी दीपा को भगा कर ले गया था. लेकिन उस के साथ दीपा दिखाई नहीं दे रही थी. दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच काफी दिनों से प्रेमसंबंध चल रहा था. जिस के चलते वह और दीपा करीब एक साल पहले गांव से भाग गए थे. बाद में रामसनेही को पता लगा कि समरजीत दीपा के साथ दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहा है. गांव के ही लड़के के साथ बेटी के भाग जाने की बदनामी रामसनेही झेल रहा था. उसे जब पता लगा कि समरजीत के साथ दीपा नहीं आई है तो यह बात उसे कुछ अजीब सी लगी. बेटी को भगा कर ले जाने वाला समरजीत उस के लिए एक दुश्मन था.

इस के बावजूद भी बेटी की ममता उस के दिल में जाग उठी. उस ने समरजीत से बेटी के बारे में पूछ ही लिया. तब समरजीत ने बताया, ‘‘वह तो करीब एक महीने पहले नाराज हो कर दिल्ली से गांव चली आई थी. अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है?’’ यह सुन कर रामसनेही चौंका. उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? वो यहां आई ही नहीं है.’’

‘‘अब मुझे क्या पता वह कहां गई? आप अपनी रिश्तेदारियों वगैरह में देख लीजिए. क्या पता वहीं चली गई हो.’’

समरजीत की बात रामसनेही के गले नहीं उतरी. वह समझ नहीं पा रहा था कि समरजीत जो दीपा को कहीं देखने की बात कह रहा है, वह कहीं दूसरी जगह क्यों जाएगी? फिर भी उस का मन नहीं माना. उस ने अपने रिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपा के बारे में पता किया, लेकिन पता चला कि वह कहीं नहीं है. बात एक महीना पुरानी थी. ऐसे में वह बेटी को कहां ढूंढ़े. बेटी के बारे में सोचसोच कर उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात दिसंबर, 2013 के आखिरी हफ्ते की थी. समरजीत के साथ उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव आए थे. रामसनेही ने दोनों भाइयों से भी बेटी के बारे में पूछा. लेकिन उन से भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला. 10-11 दिन गांव में रहने के बाद समरजीत दिल्ली लौट गया.

बेटी की कोई खैरखबर मिलने से रामसनेही और उस की पत्नी बहुत परेशान थे. वह जानते थे कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर में रहता है. वहीं पर उन के गांव का एक आदमी और रहता था. उस आदमी के साथ जनवरी, 2014 के पहले हफ्ते में रामसनेही भी पुल प्रहलादपुर गयाथोड़ी कोशिश के बाद उसे समरजीत का कमरा मिल गया. उस ने वहां आसपास रहने वालों से बेटी दीपा का फोटो दिखाते हुए पूछा. लोगों ने बताया कि जिस दीपा नाम की लड़की की बात कर रहा है, वह 22 दिसंबर, 2013 तक तो समरजीत के साथ देखी गई थी, इस के बाद वह दिखाई नहीं दी है. समरजीत ने रामसनेही को बताया था दीपा एक महीने पहले यानी नवंबर, 2013 में नाराज हो कर दिल्ली से चली गई थी, जबकि पुल प्रहलादपुर गांव के लोगों से पता चला था कि वह 22 दिसंबर, 2013 तक समरजीत के साथ थी. इस से रामसनेही को शक हुआ कि समरजीत ने उस से जरूर झूठ बोला है. वह दीपा के बारे में जानता है कि वह इस समय कहां है?

रामसनेही के मन में बेटी को ले कर कई तरह के खयाल पैदा होने लगे. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं इन लोगों ने बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं कर दी. यही सब सोचते हुए वह 6 जनवरी, 2014 को दोपहर के समय थाना पुल प्रहलादपुर पहुंचा और वहां मौजूद थानाप्रभारी धर्मदेव को बेटी के गायब होने की बात बताई. रामसनेही ने थानाप्रभारी को बेटी का हुलिया बताते हुए आरोप लगाया कि समरजीत और उस के भाइयों, अरविंद धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ बेटी को अगवा कर उस के साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया है. थानाप्रभारी धर्मदेव ने उसी समय रामसनेही की तहरीर पर भादंवि की धारा 365, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराकर सूचना एसीपी जसवीर सिंह मलिक को दे दी.

मामला जवान लड़की के अपहरण का था, इसलिए एसीपी जसवीर सिंह मलिक ने थानाप्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर आर.एस. नरुका, सबइंसपेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेडकांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, राकेश, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, धर्म सिंह आदि को शामिल किया गया. उधर दिल्ली में रह रहे समरजीत और उस के भाइयों को जब पता चला कि दीपा का बाप रामसनेही पुल प्रहलादपुर आया हुआ है तो तीनों भाई दिल्ली से फरार हो गए. पुलिस टीम जब उन के कमरे पर गई तो वहां उन तीनों में से कोई नहीं मिला. चूंकि तीनों आरोपी रामसनेही के गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए पुलिस टीम रामसनेही को ले कर यूपी स्थित उस के गांव धनजई पहुंची. लेकिन घर पर समरजीत और उस के घर वालों में से कोई नहीं मिला.

अब पुलिस को अंदेशा हो गया कि जरूर कोई कोई गड़बड़ है, जिस की वजह से ये लोग फरार हैं. गांव के लोगों से बात कर के पुलिस ने यह पता लगाया कि इन के रिश्तेदार वगैरह कहांकहां रहते हैं, ताकि वहां जा कर आरोपियों को तलाशा जा सके. इस से पुलिस को पता चला कि सुलतानपुर और फैजाबाद के कई गांवों में समरजीत के रिश्तेदार रहते हैं. उन रिश्तेदारों के यहां जा कर दिल्ली पुलिस ने दबिशें दीं, लेकिन वे सब वहां भी नहीं मिले. दिल्ली पुलिस ने समरजीत के सभी रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि आरोपियों को जल्द से जल्द पुलिस के हवाले करें. उधर बेटी की चिंता में रामसनेही का बुरा हाल था. वह पुलिस से बारबार बेटी को जल्द तलाशने की मांग कर रहा था.

समरजीत या उस के भाइयों से पूछताछ करने के बाद ही दीपा के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी. इसलिए दिल्ली पुलिस की टीम अपने स्तर से ही आरोपियों को तलाशती रही9 जनवरी, 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत सुलतानपुर के ही गांव नगईपुर, सामरी बाजार में रहने वाले अपने मामा के यहां आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस नगईपुर गांव पहुंच गई. सूचना एकदम सही निकली. वहां पर समरजीत, उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र के अलावा उस का मामा नरेंद्र भी मिल गयाचूंकि दीपा समरजीत के साथ ही रह रही थी, इसलिए पुलिस ने सब से पहले उसी से दीपा के बारे में पूछा. इस पर समरजीत ने बताया, ‘‘सर, नवंबर, 2013 में दीपा उस से लड़झगड़ कर दिल्ली से अपने गांव जाने को कह कर चली आई थी. इस के बाद वह कहां गई, इस की उसे जानकारी नहीं है.’’

‘‘लेकिन पुल प्रहलादपुर में जहां तुम लोग रहते थे, वहां जा कर हम ने जांच की तो जानकारी मिली कि दीपा 23 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में ही तुम्हारे साथ थी.’’ थानाप्रभारी धर्मदेव ने कहा तो समरजीत के चेहरे का रंग उड़ गयाथानाप्रभारी उस का हावभाव देख कर समझ गए कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने रौबदार आवाज में उस से कहा, ‘‘देखो, तुम हम से झूठ बोलने की कोशिश मत करो. दीपा के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी किया है, हमें सब पता चल चुका है. वैसे एक बात बताऊं, सच्चाई उगलवाने के हमारे पास कई तरीके हैं, जिन के बारे में तुम जानते भी होगे. अब गनीमत इसी में है कि तुम सारी बात हमें खुद बता दो, वरना…’’

इतना सुनते ही वह डर गया. वह समझ गया कि अगर सच नहीं बताया कि पुलिस बेरहमी से उस की पिटाई करेगी. इसलिए वह सहम कर बोला, ‘‘सर, हम ने दीपा को मार दिया है.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, उस की लाश बाग में दफन कर दी है.’’ समरजीत ने कहा तो पुलिस चारों आरोपियों के साथ उस बाग में पहुंची, जहां उन्होंने दीपा की लाश दफन करने की बात कही थी. समरजीत के मामा नरेंद्र ने पुलिस को आम के बाग में वह जगह बता दी. लेकिन उस जगह तो आम का पेड़ लगा हुआ था. नरेंद्र ने कहा कि लाश इसी पेड़ के नीचे है. उन लोगों की निशानदेही पर पुलिस ने वहां खुदाई कराई तो वास्तव में एक शाल में गठरी के रूप में बंधी एक महिला की लाश निकली. उस समय रामसनेही भी पुलिस के साथ था. लाश देखते ही वह रोते हुए बोला, ‘‘साहब यही मेरी दीपा है. देखो इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया. मुझे पहले ही इन लोगों पर शक हो रहा था. इन के खिलाफ आप सख्त से सख्त काररवाई कीजिए, ताकि ये बच सकें.’’

वहां खड़े गांव वालों ने तसल्ली दे कर किसी तरह रामसनेही को चुप कराया. गांव वाले इस बात से हैरान थे कि समरजीत दीपा को बहुत प्यार करता था, जिस के कारण दोनों गांव से भाग गए थे. फिर समरजीत ने उस के साथ ऐसा क्यों किया?

पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर कुछ निशान पाए गए. इस से अनुमान लगाया कि दीपा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के पोस्टमार्टम हाऊस भेज दिया और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के दिल्ली ले आई. थाना पुल प्रहलादपुर में समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और इन के मामा नरेंद्र से जब पूछताछ की गई तो दीपा और समरजीत के प्रेमप्रसंग से ले कर मौत का तानाबाना बुनने तक की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली. उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में आता है एक गांव धनजई, इसी गांव में सूर्यभान सिंह परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, अरविंद और समरजीत थे. अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे. दोनों भाई दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे. समरजीत गांव में ही खेतीकिसानी करता था. वह खेतीकिसानी करता जरूर था, लेकिन उसे अच्छे कपड़े पहनने का शौक था.

वह जवान तो था ही. इसलिए उस का मन ऐसा साथी पाने के लिए बेचैन था, जिस से अपने मन की बात कह सके. इसी दौरान उस की नजरें दीपा से दोचार हुईं. दीपा रामसनेही की 20 वर्षीया बेटी थी. दीपा तीखे नयननक्श और गोल चेहरे वाली युवती थी. दीपा उस की बिरादरी की नहीं थी, फिर भी उस का झुकाव उस की तरफ हो गया. फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि वे दोनों एकदूसरे के करीब आते गएदोनों ही चढ़ती जवानी पर थे, इसलिए जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. एकदूसरे को शरीर सौंपने के बाद उन की सोच में इस कदर बदलाव आया कि उन्हें अपने प्यार के अलावा सब कुछ फीका लगने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उन की मंजिल यहीं तक हो. मौका मिलने पर दोनों खेतों में एकदूसरे से मिलते रहे. उन के प्यार को देख कर ऐसा लगता था, जैसे भले ही उन के शरीर अलगअलग हों, लेकिन जान एक हो.

उन्होंने शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाने तक की प्लानिंग कर ली. घर वाले उन की शादी करने के लिए तैयार हो सकेंगे, इस का विश्वास दोनों को नहीं था. इस की वजह साफ थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी और दूसरे दोनों एक ही गांव के थे. घर वाले तैयार हों या हों, उन्हें इस बात की फिक्र थी. वे जानते थे कि प्यार के रास्ते में तमाम तरह की बाधाएं आती हैं. सच्चे प्रेमी उन बाधाओं की कभी फिक्र नहीं करते. वे परिवार और समाज के व्यंग्यबाणों और उन के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर अपने मुकाम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. समरजीत और दीपा भले ही सोच रहे थे कि उन का प्यार जमाने से छिपा हुआ है, लेकिन यह केवल उन का भ्रम था. हकीकत यह थी कि इस तरह के काम कोई चाहे कितना भी चोरीछिपे क्यों करे, लोगों को पता चल ही जाता है. समरजीत और दीपा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मोहल्ले के कुछ लोगों को उन के प्यार की खबर लग गई.

फिर क्या था. मोहल्ले के लोगों से बात उड़तेउड़ते इन दोनों के घरवालों के कानों में भी पहुंच गई. समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने बेटे को डांटा तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के पिता रामसनेही ने भी दीपा पर पाबंदियां लगा दीं. उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उस की शादी करने में परेशानी होगी. कहते हैं कि प्यार पर जितनी बंदिशें लगाई जाती हैं, वह और ज्यादा बढ़ता है यानी बंदिशों से प्यार की डोर टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हो जाती है. बेटी पर बंदिशें लगाने के पीछे रामसनेही की मंशा यही थी कि वह समरजीत को भूल जाएगी. लेकिन उस ने इस बात की तरफ गौर नहीं किया कि घर वालों के सो जाने के बाद दीपा अभी भी समरजीत से फोन पर बात करती है. यानी भले ही उस की अपने प्रेमी से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, वह फोन पर दिल की बात उस से कर लेती थी.

एक बार रामसनेही ने उसे रात को फोन पर बात करते देखा तो उस ने उस से पूछा कि किस से बात कर रही है. तब दीपा ने साफ बता दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है. इतना सुनते ही रामसनेही को गुस्सा गया और उस ने उस की पिटाई कर दी. रामसनेही ने सोचा कि पिटाई से दीपा के मन में खौफ बैठ जाएगा. लेकिन इस का असर उलटा हुआ. सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई. समरजीत प्रेमिका को ले कर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया. तब रामसनेही ने थाना कूंडे़भार में बेटी के गायब हेने की सूचना दर्ज करा दीचूंकि गांव से समरजीत भी गायब था. इसलिए लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि दीपा समरजीत के संग ही भागी है. तब रामसनेही ने गांव में पंचायत बुला कर पंचों की मार्फत समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का दबाव बनाया.

आज भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में पंचों की बातों का पालन किया जाता है. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मामलों में पंचायतों के फैसले सही भी होते हैं. अपनी मानमर्यादा और सामाजिक दबाव को देखते हुए लोग पंचों की बात का पालन भी करते हैं. पंचायती फैसले के बाद सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को तलाशना शुरू किया. बाद में उसे पता लगा कि समरजीत और दीपा हरिद्वार में हैं तो वह उन दोनों को हरिद्वार से गांव ले आया. दोनों के घर वालों ने उन्हें फिर से समझाया. समरजीत और दीपा कुछ दिनों तक तो ठीक रहे, इस के बाद उन्होंने फिर से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों अंबाला भाग गए. वहां पर समरजीत की बड़ी बहन रहती थी. समरजीत दीपा को ले कर बहन के यहां ही गया था. उस ने भी उन दोनों को समझाया. उस ने पिता को इस की सूचना दे दी. सूर्यभान सिंह इस बार भी उन दोनों को गांव ले आए.

बेटी के बारबार भागने पर रामसनेही और उस के परिवार की खासी बदनामी हो रही थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि उस की शादी कर दी जाए. लिहाजा उस ने उस की फटाफट शादी करने का प्लान बनाया. वह उस के लिए लड़का देखने लगादीपा को जब पता चला कि घर वाले उस की जल्द से जल्द शादी करने की फिराक में हैं तो उस ने आखिर अपनी मां से कह ही दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी. उस की इस जिद पर मां ने उस की पिटाई कर दी. इस के बाद 27 फरवरी, 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए. इस बार समरजीत उसे दिल्ली ले गया. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे. वह उन्हीं के पास चला गया. बाद में समरजीत और दीपा ने मंदिर में शादी कर ली. फिर उसी इलाके में कमरा ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

पुल प्रहलादपुर में रामसनेही के कुछ परिचित भी रहते थे. उन्हीं के द्वारा उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है. खबर मिलने के बावजूद भी रामसनेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा. वह जानता था कि दीपा घर से 2 बार भागी और दोनों बार उसे घर लाया गया था. जब वह घर रुकना ही नहीं चाहती तो उसे फिर से घर लाने से क्या फायदा. समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे. जबकि समरजीत को फिलहाल कोई काम नहीं मिल रहा था. उस की गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थेसमरजीत भाइयों पर ज्यादा दिनों तक बोझ नहीं बनना चाहता था, इसलिए कुछ दिनों बाद ही एक जानकार की मार्फत ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर ली. उस की चिंता थोड़ी कम हो गई.

दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. चूंकि समरजीत सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था, इसलिए कभी उस की ड्यूटी नाइट की लगती थी तो कभी दिन की. वह मन लगा कर नौकरी कर रहा था. जिस वजह से वह पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि पास में ही रहने वाले एक युवक से दीपा के नाजायज संबंध बन गए. समरजीत दीपा को जीजान से चाहता था, इसलिए उसे पत्नी पर विश्वास था. लेकिन उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के विश्वास को धता बता कर वह क्या गुल खिला रही है. कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता. एक एक दिन किसी तरीके से वह लोगों के सामने ही जाता है.

दीपा की आशिकमिजाजी भी एक दिन समरजीत के सामने गई. हुआ यह था कि एक बार समरजीत की रात की ड्यूटी लगी थी. वह शाम 7 बजे ही घर से चला गया था. दीपा को पता था कि पति की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की है. जब भी पति की रात की ड्यूटी होती थी, दीपा प्रेमी को रात 10 बजे के करीब अपने कमरे पर बुला लेती थी. मौजमस्ती करने के बाद वह रात में ही चला जाता था. उस दिन भी उस ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया.  रात 11 बजे के करीब समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई. ड्यूटी पर रहते वह आराम नहीं कर सकता था. वह चाहता था कि घर जा कर आराम करे. लेकिन उस समय घर जाने के लिए उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी. इसलिए उस ने अपने एक दोस्त से घर छोड़ने को कहा. तब दोस्त अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के कमरे के बाहर छोड़ आया.

समरजीत ने जब अपने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही दीपा दरवाजे की दस्तक सुन कर घबरा गई. उस के मन में विचार आया कि पता नहीं इतनी रात को कौन गया. प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कह कर उस ने अपने कपड़े संभाले और बेमन से दरवाजे की तरफ बढ़ी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर वह चौंक कर बोली, ‘‘तुम, आज इतनी जल्दी कैसे गए?’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ड्यूटी बीच में ही छोड़ कर गया.’’ समरजीत कमरे में घुसते हुए बोला. कमरे में बेड के नीचे दीपा का प्रेमी छिपा हुआ था. दीपा इस बात से डर रही थी कि कहीं आज उस की पोल खुल जाए. समरजीत की तो तबीयत खराब थी. वह जैसे ही बेड पर लेटा, उसी समय बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी निकल कर भाग खड़ा हुआ. अपने कमरे से किसी आदमी को निकलते देख समरजीत चौंका. वह उस की सूरत नहीं देख पाया था. समरजीत उस भागने वाले आदमी को भले ही नहीं जानता था, लेकिन उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस की गैरमौजूदगी में यह आदमी कमरे में क्या कर रहा होगावह गुस्से में भर गया. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह कौन था और यहां क्यों आया था?’’

‘‘पता नहीं कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चोर हो. कोई सामान चुरा कर तो नहीं ले गया.’’ दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा और संदूक का ताला खोल कर अपना कीमती सामान तलाशने लगीतभी समरजीत ने कहा, ‘‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो क्या? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था. उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुम ने उसे खुद ही सौंप दी. अब बेहतर यह है कि जो हुआ उसे भूल जाओ. आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए. और ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिलनी चाहिए.’’

पति की नसीहत से दीपा ने राहत की सांस ली. समरजीत तबीयत खराब होने पर घर आराम करने आया था, लेकिन आराम करना भूल कर वह रात भर इसी बात को सोचता रहा कि जिस दीपा के लिए उस ने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने उस के साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों किया. वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जब कोई भी महिला एक बार देहरी लांघ जाती है तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है. अगले दिन जब वह ड्यूटी पर गया तो वहां भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. घर लौटने के बाद उस ने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा के बारे में बात की. यह बात उस ने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई

उन सभी ने फैसला किया कि ऐसी कुलच्छनी महिला की चौकीदारी कोई हर समय तो कर नहीं सकता. इसलिए उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है. दीपा को खत्म करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अपना यह काम उसे कहां और कब करना है, इस की उन्होंने योजना बनाई. काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने तय किया कि दीपा को दिल्ली में मारना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी वह दिल्ली पुलिस से बच नहीं पाएंगे. अपने जिला क्षेत्र में ले जा कर ठिकाने लगाना उन्हें उचित लगा. समरजीत को पता था कि दीपा सुलतानपुर जाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी. उसे झांसे में लेने के लिए उस ने एक दिन कहा, ‘‘दीपा, सुलतानपुर के ही नगईपुर में मेरे मामा रहते हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है और उन के पास जमीनजायदाद भी काफी है. उन्होंने हम दोनों को अपने यहां रहने के लिए बुलाया है. तुम्हें तो पता ही है कि दिल्ली में हम लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ दिन मामा के घर पर रहें.’’

पति की बात सुन कर दीपा ने भी सोचा कि जब उन की कोई औलाद नहीं है तो उन के बाद सारी जायदाद पति की ही हो जाएगी. इसलिए उस ने मामा के यहां रहने की हामी भर दी. 23 दिसंबर, 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुलतानपुर ले गया. उस के साथ दोनों भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी थे. जब वे सुलतानपुर स्टेशन पहुंचे, अंधेरा घिर चुका था. नगईपुर सुलतानपुर स्टेशन से दूर था. नगईपुर गांव से पहले ही समरजीत के मामा नरेंद्र का आम का बाग था. प्लान के मुताबिक नरेंद्र उन का उसी बाग में पहले से ही इंतजार कर रहा था. बाग के किनारे पहुंच कर तीनों भाइयों ने दीपा की गला घोंट कर हत्या कर दी और बाग में ही गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया.

जिस गड्ढे में उन्होंने लाश दफन की थी, जल्दबाजी में वह ज्यादा गहरा नहीं खोदा गया था. नरेंद्र को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि जंगली जानवर मिट्टी खोद कर लाश खाने लगें. ऐसा होने पर भेद खुलना लाजिमी था इसलिए इस के 2 दिनों बाद नरेंद्र रात में ही अकेला उस बाग में गया और वहां से 20-25 कदम दूर दूसरा गहरा गड्ढा खोदा. फिर पहले गड्ढे से दीपा की लाश निकालने के बाद उस ने उसे उसी की शाल में गठरी की तरह बांध दियाउस गठरी को उस ने दूसरे गहरे गड्ढे में दफना कर उस के ऊपर आम का एक पेड़ लगा दिया ताकि किसी को कोई शक हो. दीपा को ठिकाने लगाने के बाद वे इस बात से निश्चिंत थे कि उन के अपराध की किसी को भनक लगेगी. यह जघन्य अपराध करने के बाद अरविंद और धर्मेंद्र पहले की ही तरह बनठन कर घूम रहे थे. उन को देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में कोई बड़ा अपराध किया है.

गांव के ज्यादातर लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही है. जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेला देखा तो उन्होंने उस से दीपा के बारे में पूछाजब दीपा के पिता रामसनेही को भी जानकारी मिली कि समरजीत के साथ दीपा गांव नहीं आई है तो उस ने उस से बेटी के बारे में पूछा. तब समरजीत ने उसे झूठी बात बताई कि दीपा एक महीने पहले उस से झगड़ा कर के दिल्ली से गांव जाने की बात कह कर गई थी. समरजीत की यह बात सुन कर रामसनेही घबरा गया था. फिर वह बेटी की छानबीन करने दिल्ली पहुंचा और बाद में दिल्ली के पुल प्रहलादपुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस के बाद ही पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची. पुलिस ने समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को अपहरण कर हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर 9 जनवरी, 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

मिलने के बहाने बुलाकर रूबी ने करवाया मर्डर

रूबी चंचल स्वभाव की थी, जिस की वजह से कोई भी उस की ओर आकर्षित हो जाता था. पहले आनंदपाल और बाद में इंद्रपाल उस के अल्हड़पन से ही उस के करीब आए थे. बाद में दोनों में ऐसी ठनी कि इंद्रपाल को दुनिया से जाना पड़ा और आनंद को जेल… 

20 साल की रूबी लखनऊ के आशियाना इलाके में नौकरी करती थी. देखने में वह बहुत सुंदर भले ही नहीं थी, पर उस में चुलबुलापन जरूर था. यानी सांवले रंग में भी तीखापन, जो सहज ही किसी को भी अपनी ओर खींच लेता था. दिल खोल कर बात करने की उस की अदा से सब को लगता था कि रूबी उसे ही दिल दे बैठी है. रूबी अपने गांव से शहर आई थी. उसे अपने हुनर से ही गुजरबसर करने लायक जमीन तैयार करनी थी. वह बहुत सारे लोगों से मिलतीजुलती थी, जिन में से एक आनंद भी था. उम्र में वह रूबी से करीब 10 साल बड़ा था. इस के बाद भी रूबी और आनंद की आपस में गहरी दोस्ती हो गई

रूबी काम पर जाती तो उसे लाने ले जाने का काम आनंद ही करता था. रूबी को भी इस से सहूलियत होती थी. उसे वक्तबेवक्त आनेजाने में कोई डर नहीं रहता था. एक तरह से रूबी को ड्राइवर और गार्ड दोनों मिल गए थे. दोस्ती से शुरू हुई यह मुलाकात धीरेधीरे रंग लाने लगी. वक्त के साथ दोनों के संबंध गहराने लगे. आनंद चाहता था कि रूबी केवल उस के साथ ही रहे पर रूबी हर किसी से बातें करती थी. उस के खुलेपन से बातें करने से हर किसी को लगता था कि रूबी उस की खास हो गई है. आनंद और रूबी का चक्कर चल ही रहा था कि वह इंद्रपाल के संपर्क में गई. इंद्रपाल उस के साथ काम करता था. अब रूबी कभीकभी आनंद के बजाय इंद्रपाल के साथ आनेजाने लगी. आनंद और इंद्रपाल में अंतर यह था कि इंद्रपाल रूबी की उम्र का ही था.

सीतापुर जिले का रहने वाला इंद्रपाल नौकरी करने के लिए लखनऊ आया था. आनंद को रूबी और इंद्रपाल का आपस में घुलनामिलना पसंद नहीं रहा था. वह सोच रहा था कि किसी दिन रूबी को समझाएगा. एक दिन रूबी और इंद्रपाल शाम को आशियाना के किला चौराहे पर चाट के ठेले पर खड़े पानीपूरी खा रहे थे. रूबी को पानीपूरी बहुत पसंद थी. इत्तफाक से आनंद ने दोनों को देख लिया तो उसे गुस्सा गयाजब रूबी आनंद से मिली तो उस ने कहा, ‘‘तुम आजकल अपने नए दोस्त से कुछ ज्यादा ही घुलमिल रही हो. यह मुझे पसंद नहीं है. अगर मुझ में कोई कमी हो तो बताओ, लेकिन तुम्हारा इस तरह से किसी और के साथ समय गुजारना मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘तुम भी क्याक्या सोचते रहते हो, हम दोनों केवल साथी हैं. कभीकभी उस के साथ घूमने चली जाती हूं, इस से तुम्हारेमेरे संबंधों में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तुम परेशान मत हो.’’

‘‘देखो, तुम्हें फर्क भले पड़ता हो पर मुझे पड़ता है. मैं इसे सहन नहीं कर सकता. मेरे जानने वाले कहते हैं कि देखो तुम्हारे साथ रहने वाली रूबी अब किसी और के साथ घूम रही है.’’

‘‘लोगों का क्या है, वे तो केवल बातें बनाना जानते हैं. तुम उन की बातों पर ध्यान ही मत दो. तुम मुझ पर यकीन नहीं कर रहे, इसलिए लोगों की बातें सुन रहे हो.’’

‘‘रूबी, मैं ये सब नहीं जानता. बस मुझे तुम्हारा उस लड़के के साथ रहना पसंद नहीं है. जिस तरह से तुम उस के साथ घूमने जाती हो, उस से साफ लगता है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो.’’

रूबी ने आनंद से बहस करना उचित नहीं समझा. वह चुपचाप वहां से चली गई. उसे आनंद का इस तरह से बात करना पसंद नहीं आया. वह मन ही मन सोचने लगी कि आनंद से कैसे पीछा छुड़ाया जाएयही बात आनंद भी सोच रहा था. आनंद रूबी के चाचा से मिला और उसे रूबी और इंद्रपाल के बारे में बताया. यह बात उस ने कुछ इस तरह से बताई कि रूबी के चाचा उस पर बहुत नाराज हुएजब रूबी ने उन की एक नहीं सुनी तो वह बोले, ‘‘रूबी, अगर तुम्हें मेरी बात नहीं माननी तो नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाओ. इस तरह से बदनामी कराने से कोई फायदा नहीं है.’’

रूबी समझ गई थी कि उस के चाचा भी आनंद की बातों में गए हैं. कुछ कहनेसुनने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, इसलिए वह चुप रही. अगले दिन रूबी ने यह बात इंद्रपाल को बताई. इंद्रपाल ने कहा कि रूबी हम यह दोस्ती नहीं तोड़ सकते. मुझे कोई डर नहीं है, जब तक तुम नहीं चाहोगी, हमें कोई अलग नहीं कर सकता. रूबी को पता था कि आनंद अपनी बात का पक्का है. वह अपनी जिद को पूरा करने के लिए कोई भी काम कर सकता है. उसे चिंता इस बात की थी कि इंद्रपाल और आनंद के बीच कोई झगड़ा हो जाए. वह दोनों के बीच कोई गलतफहमी पैदा नहीं करना चाहती थीरूबी ने इंद्रपाल से दूरी बनानी शुरू कर दी. यह बात इंद्रपाल को हजम नहीं हो रही थी. एक दिन उस ने रूबी से मिलने का सबब पूछा तो रूबी ने ठीक से कोई जवाब नहीं दिया

इस के बाद इंद्रपाल अकसर रूबी से बात करने की कोशिश में जुटा रहा. कई बार उस ने बात करने के लिए जोरजबरदस्ती भी करनी चाही. इस पर रूबी ने कहा, ‘‘मैं यह नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो. बेहतर है, तुम मुझ से दूर ही रहो.’’

रूबी पर निगाह रख रहे आनंद को लगा कि इंद्रपाल उस की राह का कांटा बन गया है. यह बात उस ने रूबी को भी नहीं बताई. आखिर आनंद के मन में इंद्रपाल को रास्ते से हटाने की एक खतरनाक योजना बन गईइस योजना के लिए उसे रूबी की मदद की जरूरत थी ताकि वह इंद्रपाल को एकांत में बुला सके. लेकिन रूबी इस के लिए तैयार नहीं थी. इस पर आनंद ने उसे समझाया कि इंद्रपाल को केवल समझाना चाहता है. इस पर रूबी इंद्रपाल को बुलाने के लिए तैयार हो गई. 15 जून, 2018 की बात है. रूबी ने फोन कर के इंद्रपाल को किला चौराहे पर मिलने के लिए बुलाया. इंद्रपाल के लिए रूबी का बुलाना बहुत बड़ी खुशी की बात थी. वह बिना कुछ सोचेसमझे किला चौराहे पर पहुंच गया. इस के बाद रूबी बातचीत करने के बहाने उसे बिजली पासी किला के जंगल में ले गई, वहां पहले से ही आनंद, आलोक, अविनाश, गौरव, विकास और सुधीर घात लगाए बैठे थे.

इंद्रपाल को अकेला देख कर सब के सब उस पर टूट पड़े. जब मारपीट में इंद्रपाल बेसुध हो गया तो उसे गला दबा कर मार डाला. बाद में शव की पहचान छिपाने के लिए पैट्रोल डाल कर उसे जला भी दिया गया. अगले दिन उस की लाश थाना आशियाना पुलिस को मिली. पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की छानबीन शुरू की. लाश की शिनाख्त होने के बाद इंद्रपाल के घर सीतापुर जानकारी दी गई. उस के पिता राजाराम यादव लखनऊ आए और अपने बेटे का दाहसंस्कार करने के बाद वह पुलिस के साथ अपराधियों की खोज में लग गए. थानाप्रभारी आशियाना जितेंद्र प्रताप सिंह ने मामले की छानबीन शुरू की. सीओ (कैंट) तनु उपाध्याय और एसपी (नौर्थ लखनऊ) अनुराग वत्स इस मामले की छानबीन में मदद कर रहे थे.

पुलिस ने इंद्रपाल के मोबाइल फोन की छानबीन की तो फोन में रूबी का नंबर मिला. नंबर की डिटेल्स से पता चला कि दोनों के बीच बहुत ज्यादा बातचीत होती थी. घटना के दिन भी रूबी के फोन से इंद्रपाल के फोन पर बात की गई थी. इस से पुलिस को मामले का सुराग मिलता दिखा. पुलिस को अपनी छानबीन में यह भी पता चला कि रूबी के चाचा ने उसे इंद्रपाल से मिलने के लिए मना किया था और नौकरी छुड़वा दी थी. एसपी नौर्थ अनुराग वत्स ने बताया कि इंद्रपाल को धोखे से बुलाया गया था. पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे को जलाने की कोशिश की गई थीसीओ (कैंट) तनु उपाध्याय ने बताया कि जब पुलिस ने पूरी छानबीन कर ली तो रूबी से घटना के बारे में पूछा गया. रूबी ने शुरुआत में तो बहानेबाजी की पर पुलिस ने जब उसे सबूत दिखाए तो उस ने अपना अपराध कबूल कर लिया.

24 जून, 2018 को कथा लिखे जाने तक आनंद पकड़ से बाहर था. बाकी सभी आरोपी जेल भेजे जा चुके थे. रूबी का अल्हड़पन दोनों पर भारी पड़ा. एक की जान गई और दूसरा फरार है. थानाप्रभारी आशियाना जितेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि उसे जल्द ही पकड़ लिया जाएगा. लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार ने इस ब्लाइंड मर्डर स्टोरी का परदाफाश करने के लिए सभी पुलिस कर्मचारियों को बधाई दी. पुलिस ने रूबी के साथ आनंद के साथियों आलोक, अविनाश, गौरव, विकास और सुधीर को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक माशूका का खौफनाक बदला

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले सीधी का एक गांव है नौगवां दर्शन सिंह, जिस में ज्यादातर आदिवासी या फिर पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं.

शहरों की चकाचौंध से दूर बसे इस शांत गांव में एक वारदात ऐसी भी हुई, जिस ने सुनने वालों को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि राजो (बदला नाम) ने जो किया, वैसा न पहले कभी सुना था और न ही किसी ने सोचा था.

इस गांव का एक 20 साला नौजवान संजय केवट अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था. भरेपूरे घर में पैदा हुए संजय को किसी बात की चिंता नहीं थी. पिता की भी अच्छीखासी कमाई थी और खेतीबारी से इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती थी.

बचपन की मासूमियत

संजय और राजो दोनों बचपन के दोस्त थे. अगलबगल में होने के चलते दोनों पर एकदूसरे के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी. 8-10  साल की उम्र तक दोनों साथसाफ बेफिक्र हो कर बचपन के खेल खेलते थे. चूंकि चौबीसों घंटे का साथ था, इसलिए दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं और उम्र बढ़ने लगी, तो दोनों में जवान होने के लक्षण भी दिखने लगे.

संजय और राजो एकदूसरे में आ रहे इन बदलावों को हैरानी से देख रहे थे. अब उन्हें बजाय सारे दोस्तों के साथ खेलने के अकेले में खेलने में मजा आने लगा था.

जवानी केवल मन में ही नहीं, बल्कि उन के तन में भी पसर रही थी. संजय राजो को छूता था, तो वह सिहर उठती थी. वह कोई एतराज नहीं जताती थी और न ही घर में किसी से इस की बात करती थी.

धीरेधीरे दोनों को इस नए खेल में एक अलग किस्म का मजा आने लगा था, जिसे खेलने के लिए वे तनहाई ढूंढ़ ही लेते थे. किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता था कि बड़े होते ये बच्चे कौन सा खेल खेल रहे हैं.

जवानी की आग

यों ही बड़े होतेहोते संजय और राजो एकदूसरे से इतना खुल गए कि इस अनूठे मजेदार खेल को खेलतेखेलते सारी हदें पार कर गए. यह खेल अब सैक्स का हो गया था, जिसे सीखने के लिए किसी लड़के या लड़की को किसी स्कूल या कोचिंग में नहीं जाना पड़ता.

बात अकेले सैक्स की भी नहीं थी. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहने भी लगे थे और हर रोज एकदूसरे पर इश्क का इजहार भी करते रहते थे. चूंकि अब घर वालों की तरफ से थोड़ी टोकाटाकी शुरू हो गई थी, इसलिए ये दोनों सावधानी बरतने लगे थे.

18-20 साल की उम्र में गलत नहीं कहा जाता कि जिस्म की प्यास बुझती नहीं है, बल्कि जितना बुझाने की कोशिश करो उतनी ही ज्यादा भड़कती है. संजय और राजो को तो तमाम सहूलियतें मिली हुई थीं, इसलिए दोनों अब बेफिक्र हो कर सैक्स के नएनए प्रयोग करने लगे थे.

इसी दौरान दोनों शादी करने का भी वादा कर चुके थे. एकदूसरे के प्यार में डूबे कब दोनों 20 साल की उम्र के आसपास आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. अब तक जिस्म और सैक्स इन के लिए कोई नई बात नहीं रह गई थी.

दोनों एकदूसरे के दिल के साथसाथ जिस्मों के भी जर्रेजर्रे से वाकिफ हो चुके थे. अब देर बस शादी की थी, जिस के बाबत संजय ने राजो को भरोसा दिलाया था कि वह जल्द ही मौका देख कर घर वालों से बात करेगा.

उन्होंने सैक्स का एक नया ही गेम ईजाद किया था, जिस में दोनों बिना कपड़ों के आंखों पर पट्टी बांध लेते थे और एकदूसरे के जिस्म को सहलातेटटोलते हमबिस्तरी की मंजिल तक पहुंचते थे. खासतौर से संजय को तो यह खेल काफी भाता था, जिस में उसे राजो के नाजुक अंगों को मनमाने ढंग से छूने का मौका मिलता था. राजो भी इस खेल को पसंद करती थी, क्योंकि वह जो करती थी, उस दौरान संजय की आंखें पट्टी से बंधी रहती थीं.

शुरू हुई बेवफाई

जैसा कि गांवदेहातों में होता है, 16-18 साल का होते ही शादीब्याह की बात शुरू हो जाती है. राजो अभी छोटी थी, इसलिए उस की शादी की बात नहीं चली थी, पर संजय के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे.

यह भनक जब राजो को लगी, तो वह चौकन्नी हो गई, क्योंकि वह तो मन ही मन संजय को अपना पति मान चुकी थी और उस के साथ आने वाली जिंदगी के ख्वाब यहां तक बुन चुकी थी कि उन के कितने बच्चे होंगे और वे बड़े हो कर क्याक्या बनेंगे.

शादी की बाबत उस ने संजय से सवाल किया, तो वह यह कहते हुए टाल गया, ‘तुम बेवजह चिंता करते हुए अपना खून जला रही हो. मैं तो तुम्हारा हूं और हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’

संजय के मुंह से यह बात सुन कर राजो को तसल्ली तो मिली, पर वह बेफिक्र न हुई.

एक दिन राजो ने संजय की मां से पड़ोसनों से बतियाते समय यह सुना कि  संजय की शादी के लिए बात तय कर दी है और जल्दी ही शादी हो जाएगी.

इतना सुनना था कि राजो आगबबूला हो गई और उस ने अपने लैवल पर छानबीन की तो पता चला कि वाकई संजय की शादी कहीं दूसरी जगह तय हो गई थी. होली के बाद उस की शादी कभी भी हो सकती थी.

संजय उस से मिला, तो उस ने फिर पूछा. इस पर हमेशा की तरह संजय उसे टाल गया कि ऐसा कुछ नहीं है.

संजय के घर में रोजरोज हो रही शादी की तैयारियां देख कर राजो का कलेजा मुंह को आ रहा था. उसे अपनी दुनिया उजड़ती सी लग रही थी. उस की आंखों के सामने उस के बचपन का दोस्त और आशिक किसी और का होने जा रहा था. इस पर भी आग में घी डालने वाली बात उस के लिए यह थी कि संजय अपने मुंह से इस हकीकत को नहीं मान रहा था.

इस से राजो को लगा कि जल्द ही एक दिन इसी तरह संजय अपनी दुलहन ले आएगा और वह घर के दरवाजे या खिड़की से देखते हुए उस की बेवफाई पर आंसू बहाती रहेगी और बाद में संजय नाकाम या चालाक आशिकों की तरह घडि़याली आंसू बहाता घर वालों के दबाव में मजबूरी का रोना रोता रहेगा.

बेवफाई की दी सजा

राजो का अंदाजा गलत नहीं था. एक दिन इशारों में ही संजय ने मान लिया कि उस की शादी तय हो चुकी है. दूसरे दिन राजो ने तय कर लिया कि बचपन से ही उस के जिस्म और जज्बातों से खिलवाड़ कर रहे इस बेवफा आशिक को क्या सजा देनी है.

वह कड़कड़ाती जाड़े की रात थी. 23 जनवरी को उस ने हमेशा की तरह आंख पर पट्टी बांध कर सैक्स का गेम खेलने के लिए संजय को बुलाया. इन दिनों तो संजय के मन में लड्डू फूट रहे थे और उसे लग रहा था कि शादी के बाद भी उस के दोनों हाथों में लड्डू होंगे.

रात को हमेशा की तरह चोरीछिपे वह दीवार फांद कर राजो के कमरे में पहुंचा, तो वह उस से बेल की तरह लिपट गई. जल्द ही दोनों ने एकदूसरे की आंखों पर पट्टी बांध दी. संजय को बिस्तर पर लिटा कर राजो उस के अंगों से छेड़छाड़ करने लगी, तो वह आपा खोने लगा.

मौका ताड़ कर राजो ने इस गेम में पहली और आखिरी बार बेईमानी करते हुए अपनी आंखों पर बंधी पट्टी उतारी और बिस्तर के नीचे छिपाया चाकू निकाल कर उसे संजय के अंग पर बेरहमी से दे मारा. एक चीख और खून के छींटों के साथ उस का अंग कट कर दूर जा गिरा.

दर्द से कराहता, तड़पता संजय भाग कर अपने घर पहुंचा और घर वालों को सारी बात बताई, तो वे तुरंत उसे सीधी के जिला अस्पताल ले गए.

संजय का इलाज हुआ, तो वह बच गया, पर पुलिस और डाक्टरों के सामने झूठ यह बोलता रहा कि अंग उस ने ही काटा है.

पर पुलिस को शक था, इसलिए वह सख्ती से पूछताछ करने लगी. इस पर संजय के पिता ने बयान दे दिया कि संजय को पड़ोस में रहने वाली लड़की राजो ने हमबिस्तरी के लिए बुलाया था और उसी दौरान उस का अंग काट डाला, जबकि कुछ दिनों बाद उस की शादी होने वाली है.

पुलिस वाले राजो के घर पहुंचे, तो उस के कमरे की दीवारों पर खून के निशान थे, जबकि फर्श पर बिखरे खून पर उस ने पोंछा लगा दिया था.

तलाशी लेने पर कमरे में कटा हुआ अंग नहीं मिला, तो पुलिस वालों ने राजो से भी सख्ती की.

पुलिस द्वारा बारबार पूछने पर जल्द ही राजो ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बता दिया कि हां, उस ने बेवफा संजय का अंग काट कर उसे सजा दी है और वह अंग बाहर झाडि़यों में फेंक दिया है, ताकि उसे कुत्ते खा जाएं.

दरअसल, राजो बचपन के दोस्त और आशिक संजय पर खार खाए बैठी थी और बदले की आग ने उसे यह जुर्म करने के लिए मजबूर कर दिया था.

राजो चाहती थी कि संजय किसी और लड़की से जिस्मानी ताल्लुकात बना ही न पाए. यह मुहब्बत की इंतिहा थी या नफरत थी, यह तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि बेवफाई तो संजय ने की थी, जिस की सजा भी वह भुगत रहा है.

राजो की हिम्मत धोखेबाज और बेवफा आशिकों के लिए यह सबक है कि वह दौर गया, जब माशूका के जिस्म और जज्बातों से खेल कर उसे खिलौने की तरह फेंक दिया जाता था. अगर अपनी पर आ जाए, तो अब माशूका भी इतने खौफनाक तरीके से बदला ले सकती है.

फूफा क्यों बनाना चाहता था भतीजी से अवैध संबंध

किसी से बात करना, उस के साथ घूमना रजनी का अधिकार था. उस के फूफा गंगासागर ने उसे और उस के प्रेमी को साथ देखा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. इस का नतीजा यह निकला कि गंगासागर तो जान से गया ही रजनी और उस का प्रेमी कमल भी…  

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करतीमिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था. ‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोलाइस के बाद रजनी अपने घर गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी. ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग 38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी. उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’ रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात कहेंयह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की. ‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है. रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था. बह होते ही उस का फोन गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी. अपने आप बुलाई मौत 18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है. गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित बच सकेपुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी. उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी. गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया. दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं.

पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.                        

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

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