बिहार के जिला सीवान के थाना नगर के मोहल्ला सीतारामनगर बैलहट्टा के वार्ड नंबर 32 में कपड़ा और सोनेचांदी के गहनों के व्यवसाई राजकुमार गुप्ता परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी स्मिता और 11 साल का एकलौता बेटा विष्णुराज उर्फ राहुल था. एकलौता होने की वजह से राजकुमार बेटे को बड़े जतन से पाल रहे थे. उन के पास किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए उन्होंने बेटे का दाखिला शहर के सब से महंगे और प्रसिद्ध स्कूल डौन बोस्को में करा दिया था. वह इस समय 6वीं में पढ़ रहा था.
बेटा पढ़ने में कमजोर न रहे, इस के लिए राजकुमार ने मोहल्ले के संदीप कुमार को ट्यूशन पढ़ाने के लिए लगा रखा था. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, इसलिए राजकुमार हर तरह से खुश थे. लेकिन किस की खुशी को कब ग्रहण लग जाए, कौन जानता है. ऐसा ही कुछ 9 अगस्त, 2017 की शाम राजकुमार गुप्ता के साथ हुआ.
राजकुमार गुप्ता की पत्नी स्मिता रक्षाबंधन पर 7 अगस्त को मायके चली गई थीं. मां के न रहने पर राहुल की देखरेख उस की चाची लक्ष्मी के जिम्मे थी. क्योंकि वह भी उसी मकान में पहली मंजिल पर पति रमाकांत गुप्ता के साथ रहती थीं. दोनों भाई रहते भले अलगअलग थे, लेकिन संबंध सगे भाइयों में जिस तरह के होने चाहिए, वैसे ही थे, इसलिए पत्नी के मायके चले जाने पर भी राजकुमार बेटे की तरफ से निश्चिंत थे.
9 अगस्त की शाम 7 बजे ट्यूशन पढ़ कर राहुल चाची से दुकान पर जाने की बात कह कर घर से निकल गया. वह घर से निकला ही था कि राजकुमार ने फोन कर के लक्ष्मी से पूछा, ‘‘लक्ष्मी, जरा नीचे देख कर बताओ कि राहुल ट्यूशन पढ़ रहा है या पढ़ चुका?’’
‘‘ठीक है भाई साहब, देख कर बताती हूं.’’ जवाब में लक्ष्मी ने कहा.
राजकुमार ने फोन काट दिया कि लक्ष्मी देख कर बताएगी. लेकिन उस समय लक्ष्मी की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह आलस्यवश नीचे नहीं गई. शायद इसी वजह से घर से जाते समय राहुल ने उसे दुकान पर जाने के बारे में जो बताया था, उस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया था.
थोड़ी देर बाद लक्ष्मी को थोड़ा आराम महसूस हुआ तो वह नीचे आई. राहुल को घर में न पा कर उस ने सोचा कि राहुल दुकान पर चला गया होगा. दूसरी ओर लक्ष्मी से बात होने के बाद राजकुमार दुकानदारी में व्यस्त हो गए थे. करीब 9 बजे दुकान बंद कर के वह घर पहुंचे तो राहुल उन्हें घर में कहीं दिखाई नहीं दिया. उन्होंने लक्ष्मी से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘भाईसाहब, वह तो 7 बजे से ही घर में नहीं है. वह तो दुकान पर चला गया था.’’
‘‘राहुल 7 बजे से घर में नहीं है?’’ हैरानी से राजकुमार ने कहा, ‘‘पर वह तो दुकान पर भी नहीं आया.’’
राजकुमार को लगा, राहुल दुकान पर जाने के बजाय किसी दोस्त के घर खेलने चला गया होगा. घर से बाहर आ कर वह आसपड़ोस में राहुल के बारे में पूछने लगे. लेकिन राहुल किसी के यहां नहीं गया था. राजकुमार परेशान हो उठे कि इस तरह राहुल बिना बताए कहां चला गया? उस की इस हरकत पर उन्हें गुस्सा भी आ रहा था और चिंता भी हो रही थी, क्योंकि एकलौते बेटे की बात थी.
जब राहुल आसपास कहीं नहीं मिला तो राजकुमार ट्यूशन पढ़ाने वाले संदीप कुमार के यहां गए. उन्होंने उस से राहुल के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘शाम 7 बजे तक मैं राहुल को पढ़ाता रहा. उस के बाद मैं अपने घर आ गया. उस समय तक तो राहुल घर पर ही था. उस के बाद ही कहीं गया होगा.’’
हारे हुए जुआरी की तरह राजकुमार घर वापस आ गए. अब तक उन का भाई रमाकांत भी घर आ गया था. उन्होंने भाई से राहुल के गायब होने की बात बताई तो वह भी हैरान रह गया, क्योंकि अब तक रात के साढ़े 10 बज चुके थे. ऐसे में वे राहुल को ढूंढने कहां जाते? राजकुमार की समझ में कुछ नहीं आया तो उन्होंने पत्नी को फोन कर के बेटे के गायब होने के बारे में बता दिया. बेटे के गायब होने का पता चलते ही स्मिता रोने लगी.
कुछ व्यवसाई मित्रों को राजकुमार ने बेटे के गायब होने की बात बताई तो सब ने उन्हें हिम्मत बंधाते हुए राहुल की गुमशुदगी दर्ज कराने की सलाह दी. सवेरा होते ही कुछ व्यवसाइयों के साथ राजकुमार थाना नगर पहुंचे और थानाप्रभारी सुबोध कुमार को पूरी बात बताई तो उन्होंने तुरंत गुमशुदगी दर्ज कर के आश्वासन दिया कि वह अभी काररवाई करते हैं.
अब तक स्मिता भी घर आ गई थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. सब उसे समझा रहे थे. राजकुमार ने भी पत्नी को चुप कराने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में वह खुद ही रोने लगे. राहुल के गायब होने की जानकारी पा कर तमाम रिश्तेदार और जानपहचान वाले राजकुमार के घर आ गए थे.
किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि राहुल अचानक कहां चला गया? सब इसी बात पर विचार कर रहे थे कि 10 बजे के करीब राजकुमार गुप्ता के मोबाइल पर एक फोन आया. चूंकि वह नया नंबर था, इसलिए राजकुमार ने फोन रिसीव कर के पूछा, ‘‘कौन?’’
‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो.’’ दूसरी ओर से रौबदार आवाज में लगभग धमकाने वाले अंदाज में कहा गया, ‘‘तुम्हारा बेटा राहुल मेरे कब्जे में है. उस की जान की सलामती चाहते हो तो 30 लाख रुपयों का इंतजाम कर लो. रुपए कब और कहां पहुंचाने हैं, यह तुम्हें बाद में बता दिया जाएगा. और हां, एक बात कान खोल कर सुन लो, अगर तुम इस मामले में पुलिस को बीच में ले आए तो बेटे की लाश ही मिलेगी.’’
‘‘अरे आप कौन और कहां से बोल रहे हैं?’’ राजकुमार ने पूछा. लेकिन उन के इन सवालों का जवाब देने के बजाय फोन करने वाले ने फोन काट दिया.
राजकुमार ने पलट कर फोन किया तो फोन बंद हो चुका था. उन्होंने यह बात पत्नी और भाई को बताई तो बेटे के अपहरण की बात सुन कर पत्नी और जोरजोर से रोने लगी. सलाहमशविरा के बाद तय हुआ कि इस बात की सूचना पुलिस को दे दी जाए, क्योंकि अपहर्त्ताओं का क्या भरोसा, वे रुपए ले कर भी बच्चे को सकुशल वापस न करें.
राजकुमार तुरंत भाई और कुछ व्यवसाई मित्रों के साथ थाना नगर पहुंच गए और थानाप्रभारी सुबोध कुमार को अपहर्त्ताओं द्वारा किए गए फोन के बारे में बताया तो उन्होंने अपहर्त्ताओं के उस नंबर को उसी समय सर्विलांस पर लगवा दिया. इसी के साथ उन्होंने राहुल की गुमशुदगी को अपहरण की धारा 364 के तहत दर्ज करा कर इस घटना की सूचना जिले के सभी थानों और पुलिस अधिकारियों को दे दी.
इस के बाद पुलिस राहुल की खोज में जुट गई. घटना की सूचना एसपी सौरभ कुमार शाह को भी मिल गई थी. वह खुद इस पर नजर रखने लगे. राहुल को सहीसलामत मुक्त कराने के लिए उन्होंने एएसपी कार्तिकेय शर्मा को इस मामले में लगा दिया. इस के बाद पुलिस की 2 टीमें गठित की गईं. एक टीम का नेतृत्व एसआईटी प्रभारी मनोज कुमार कर रहे थे तो दूसरी टीम थानाप्रभारी सुबोध कुमार के नेतृत्व में काम कर रही थी. उन की मदद के लिए जिले के कई थानों के थानाप्रभारी भी लगाए गए थे.
उसी दिन शाम को एक बार फिर अपहर्त्ताओं ने राजकुमार को फोन कर के फिरौती की रकम मांगी, पर राजकुमार ने फिरौती देने से मना कर दिया. पुलिस ने उस फोन की लोकेशन पता की, जिस से फिरौती मांगी गई थी. पता चला कि वह गोपालगंज के मीरगंज के मटिहानी से किया गया था. पुलिस वहां पहुंची, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा.
दरअसल, पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही अपहर्त्ता निकल गए थे. इस से पुलिस को लगा कि राहुल के अपहरण में कोई करीबी शामिल है, जो अपहर्त्ताओं को पुलिसिया काररवाई की जानकारी दे रहा है.
अगले दिन यानी 11 अगस्त को सुबहसुबह थाना मुफस्सिल पुलिस ने अमलौरी-सरसर के बीच बसस्टौप के नजदीक सड़क के किनारे सीमेंट की बोरी में बंधी एक बच्चे की लाश बरामद की. शक्लसूरत और पहनावे से बच्चा बड़े घर का लग रहा था. कहीं से इस बात की भनक राजकुमार को लगी तो वह भाई के साथ वहां पहुंच गए.
लाश देखते ही दोनों भाई बिलखबिलख कर रोने लगे. लाश राजकुमार के एकलौते बेटे राहुल की थी. राहुल की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया. जब इस बात की जानकारी व्यापारियों को हुई तो सारे व्यापारी इकट्ठा हो कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.
लोगों के आक्रोश को देखते हुए एसपी सौरभ कुमार शाह ने तुरंत पुलिस फोर्स की व्यवस्था की और शहर की नाकेबंदी करा दी. इस के बावजूद गुस्साई भीड़ ने पुलिस के वज्र वाहन को आग लगा दी. सभी राहुल की लाश को रख कर हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे.
एएसपी कार्तिकेय शर्मा और एसडीएम श्यामबिहारी मीणा ने गुस्साए लोगों को आश्वासन दिया कि हत्यारों को 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार किया जाएगा, तब लोग थोड़ा शांत हुए. इस के बाद लाश का अंतिम संस्कार करा दिया गया. उसी दिन शाम को लोगों ने कैंडिल मार्च भी निकाला.
सुबह राहुल के अपहरण की खबर फोटो के साथ अखबारों में छपी तो एक आदमी ने वह खबर पढ़ी और फोटो देखा तो हैरान रह गया. क्योंकि उस ने अस्पताल रोड पर राहुल को एक बोलेरो में 3 लोगों को बैठाते देखा था. राहुल को बैठा कर वे पश्चिम की ओर गए थे. उस आदमी से रहा नहीं गया और वह थाना मुफस्सिल पहुंच गया.
थानाप्रभारी विनय प्रताप सिंह से उस ने एसपी के सामने अपनी बात कहने को कहा तो वह उसे एसपी सौरभ कुमार शाह के पास ले गए. उस ने जो देखा था, सौरभ कुमार शाह को बता दिया. अपहर्त्ताओं ने फिरौती के लिए जो फोन किए थे, वे गोपालगंज के मीरगंज के मटिहानी से किए गए थे.
पुलिस ने योजना बना कर दोबारा मटिहानी में सर्च अभियान चलाया तो 2 लोग मनोज और दिनेश पकड़ में आ गए. ये दोनों सगे भाई थे. सीवान ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे राहुल के अपहरण में शामिल थे और उन्हीं के साथी मिट्ठू ने फिरौती के लिए फोन किए थे.
फोन के लिए जिस नंबर से फोन किए गए थे, उन्होंने उस नंबर का सिम थाना हथुआ के मनी छापर गांव के रहने वाले विकास कुमार प्रसाद से खरीदा था. इस पूरे मामले का मास्टरमाइंड सीवान का भरत था. पुलिस ने उसी दिन सिम बेचने वाले विकास कुमार और मास्टरमाइंड भरत को गिरफ्तार कर लिया.
भरत ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि इस पूरे मामले का असली खिलाड़ी बच्चे को ट्यूशन पढ़ाने वाला संदीप कुमार था. उसी के कहने पर बच्चे का अपहरण किया गया था. इस के बाद उसी दिन पुलिस ने संदीप कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
पूछताछ में संदीप ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस तरह 48 घंटे में 1 महिला सहित सारे 11 अभियुक्त गिरफ्तार कर लिए गए थे, जबकि 3 लोग फरार हो गए थे. गिरफ्तार अभियक्तों से पूछताछ में राहुल के अपहरण से ले कर हत्या तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—
22 साल का संदीप कुमार जिला सीवान के थाना नगर के नया बाजार के रहने वाले विमलेश कुमार का बेटा था. 5 भाईबहनों में वह चौथे नंबर पर था. विमलेश की कौस्मेटिक की दुकान थी. उसी की कमाई से घर चलता था.
संदीप से बड़े 4 भाई थोड़ीबहुत कमाई करने लगे थे. संदीप बीए फाइनल ईयर में पढ़ रहा था, साथ ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना खर्च निकाल रहा था. लेकिन उस की इच्छाएं काफी प्रबल थीं. वह जिस स्थिति में था, उस स्थिति में नहीं, बल्कि शान की जिंदगी जीना चाहता था. वह राजकुमार गुप्ता के बेटे राहुल को भी ट्यूशन पढ़ाता था.
संदीप राहुल को उस के घर पढ़ाने जाता था. उस के घर की शानोशौकत देख कर ही वह समझ गया था कि ये पैसे वाले लोग हैं. यही सोच कर धीरेधीरे उस के मन में लालच आने लगा. उसे लगा कि राहुल बड़े मालदार बाप का एकलौता बेटा है. अगर इस का अपहरण कर लिया जाए तो बेटे को छुड़ाने के लिए वह 25-50 लाख रुपए आसानी से दे देंगे.
इस के बाद संदीप राहुल के अपहरण की योजना बनाने लगा. यह काम वह अकेला तो कर नहीं सकता था. सहयोग के लिए उस ने श्रद्धानंद बाजार स्थित अस्पताल रोड चौराहे पर लिट्टी और चाय की दुकान चलाने वाले अपने एक परिचित भरत से बात की. बात लाखों की थी, इसलिए वह भी उस की योजना में शामिल हो गया.
भरत ने मीरगंज के रहने वाले अपने एक साथी आजाद अली को लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया. इस तरह अब 3 लोग हो गए थे. इस के बाद तीनों मौके की तलाश में जुट गए.
7 अगस्त को भरत की दुकान पर संदीप और आजाद अली राहुल के अपहरण की योजना को अंतिम रूप देने पहुंचे. तीनों ने 9 अगस्त की शाम को राहुल के अपहरण की योजना बना डाली. इस की वजह यह थी कि 7 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार था. राहुल की मां स्मिता मायके चली गई थीं. यह संदीप को पता था.
पूरी योजना बना कर आजाद अली ने गोपालगंज के थाना मीरगंज के गांव मटिहानी के रहने वाले दिलीप सिंह को फोन कर के उन की बोलेरो जीप 9 अगस्त के लिए बुक कर ली. आजाद अली दिलीप सिंह की जानपहचान वाला था, इसलिए उस ने गाड़ी भेजने के लिए कह दिया था.
9 अगस्त की शाम 6 बजे संदीप राहुल को ट्यूशन पढ़ाने उस के घर गया. घर में राहुल के अलावा कोई नहीं था. संदीप राहुल से इधरउधर की बातें करने लगा, क्योंकि उस के मन में तो उथलपुथल मची थी. पढ़ाने में उस का मन नहीं लग रहा था. शाम 7 बजे संदीप के जाने का समय हुआ तो उस ने कहा, ‘‘राहुल, तुम्हें अपनी दुकान पर चलना हो तो चलो, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, क्योंकि मैं उधर ही जा रहा हूं.’’
राहुल को दुकान पर जाना ही था, वह कौपीकिताब रख कर संदीप के साथ चल पड़ा. घर से निकलते ही संदीप ने आजाद अली और भरत को तैयार रहने के लिए कह दिया. उसी बीच राजकुमार ने अपने भाई की पत्नी लक्ष्मी को फोन कर के राहुल के बारे में पूछा तो उस समय तो नहीं, लेकिन थोड़ी देर बाद घर में राहुल को न देख कर उसे लगा कि वह दुकान पर चला गया होगा.
अस्पताल रोड चौराहे पर दिलीप सिंह और आजाद अली बोलेरो जीप लिए संदीप का इंतजार कर रहे थे. भरत भी रास्ते में मिल गया था. संदीप ने राहुल को तो बोलेरो पर बैठा दिया, लेकिन खुद नहीं बैठा. वह उन के साथ गया भी नहीं. राहुल को जब ये लोग बोलेरो में बैठा रहे थे, तभी उस आदमी ने देख लिया था.
भरत और आजाद अली राहुल को ले कर गोपालगंज के जिगना के रहने वाले राजकिशोर सिंह के घर पहुंचे. दोनों ने उन से राहुल को अपने यहां रखने को कहा तो उन्होंने 5 लाख रुपए मांगे. दोनों 5 लाख रुपए देने को राजी हो गए तो राहुल को उन के यहां रख दिया गया. तब तक राहुल सो गया था. लेकिन सवेरा होते ही वह रोने लगा तो राजकिशोर सिंह ने उसे ले जाने को कहा.
इस के बाद दोनों राहुल को बसंतपुर के लालबाबू के यहां ले गए. पैसों के लालच में लालबाबू का दोस्त मिट्ठू भी अपहर्त्ताओं के साथ मिल गया.
10 अगस्त की सुबह संदीप ने फिरौती के लिए राजकुमार को फोन करने के लिए भरत को फोन किया. संदीप के कहने पर भरत ने मिट्ठू से राजकुमार को फोन करवा कर 30 लाख रुपए की फिरौती मांगी. लेकिन राजकुमार ने फिरौती देने से साफ मना कर दिया. संदीप और उस के साथियों ने जो सोच कर राहुल का अपहरण किया था, वह बेकार गया. उन की मंशा पर पानी फिर गया.
संदीप बुरी तरह डर गया था. क्योंकि राहुल ने उसे ही नहीं, भरत और आजाद अली को भी पहचान लिया था. ऐसे में उसे जिंदा छोड़ दिया जाता तो सब पकड़े जाते. पकड़े जाने के डर से संदीप की रूह कांप उठी. बस उस ने तय कर लिया कि अब राहुल को जिंदा नहीं छोड़ना है.
उस ने आजाद अली को फोन कर के राहुल को खत्म करने के लिए कह दिया. भरत राहुल को लालबाबू के हवाले कर के सीवान लौट आया था. इसलिए अब जो करना था, आजाद अली, लालबाबू और इन के एक साथी दीपू को करना था. रात में आजाद अली ने दिलीप सिंह से एक मारुति वैन मंगवाई.
लालबाबू और दीपू ने रस्सी और सीमेंट की बोरी का इंतजाम किया. इस के बाद राहुल के गले में रस्सी लपेट कर कस दिया गया, जिस से तड़प कर वह मर गया. हत्या करने के बाद तीनों राहुल की लाश को सीमेंट की बोरी में भर कर मारुति वैन से ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. अब तक सवेरा हो चुका था.
लाश को ला कर उन्होंने सीवान के थाना मुफस्सिल के अंतर्गत अमलोरी-सरसर के बीच स्थित बसस्टौप के पास सड़क किनारे चलती वैन से फेंक दिया. उन लोगों को बोरी फेंकते कुछ लोगों ने देखा तो शोर भी मचाया, लेकिन वे भाग गए. इस के बाद उन्हीं लोगों ने इस की सूचना थाना मुफस्सिल पुलिस को दी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने इस मामले में धारा 365, 302, 201 और 34 शामिल कर दी थीं.
कथा लिखे जाने तक कुल 14 लोग पकड़े जा चुके थे. आजाद अली और वैन चालक अभी तक पकड़े नहीं गए थे. लालबाबू ने सीवान की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. पुलिस उसे रिमांड पर लेने की तैयारी कर रही थी. पकड़े गए सारे अभियुक्त जेल भेजे जा चुके थे.
-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित