प्यार का ऐसा नशा कि कर दी मां की हत्या

बलराम ने जल्दीजल्दी इंटरव्यू लैटर, नोट बुक, पैन आदि बैग में रख कर सोनिया को आवाज दी, ‘‘दीदी, जल्दी से मेरा नाश्ता लगा दीजिए, मुझे देर हो रही है.’’

‘‘आ कर नाश्ता कर लो, मैं ने तुम्हारा नाश्ता तैयार कर दिया है.’’ सोनिया ने रसोईघर से ही कहा.

बलराम ने जल्दीजल्दी नाश्ता किया और अपना बैग ले कर मां के पास पहुंचा. शकुंतला देवी चारपाई पर लेटी थीं. बेटे को देख कर उन्होंने कहा, ‘‘जाओ बेटा, सफल हो कर लौटो. लेकिन तुम ने यह तो बताया ही नहीं कि इंटरव्यू देने कहां जा रहे हो?’’

‘‘मां चंडीगढ़ जा रहा हूं, एक बहुत बड़ी कंपनी में. अगर यह नौकरी मिल गई तो जिंदगी सुधर जाएगी.’’

‘‘जैसी प्रभु की इच्छा.’’ शकुंतला देवी ने कहा.

मां के पैर छू कर बलराम घर से निकल गया. यह 5 जून, 2015 की बात है. इंटरव्यू देने के बाद वह शाम के 7, साढ़े 7 बजे घर लौटा तो सोनिया रात का खाना बना रही थी. बैग रख कर बलराम मां के कमरे में पहुंचा तो वहां मां नहीं थी. बाहर आ कर उस ने बहन से मां के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘शाम को कीर्तन करने की बात कह कर गई थीं, पर अभी तक लौटी नहीं हैं.’’

बलराम को पता था कि मां अकसर कीर्तन पर जाती थीं तो देर रात को लौटती थीं. पिताजी के घर छोड़ कर जाने के बाद मां ने खुद को भजनकीर्तन में लगा लिया था. मां की चिंता छोड़ कर उस ने हाथमुंह धोया तो बहन ने उस के लिए खाना परोस दिया.

खाना खा कर बलराम अपने कमरे में आराम करने चला गया. दिन भर का थका होने के कारण लेटते ही उसे नींद आ गई. रात के लगभग 1 बजे उस की आंख खुली तो उठ कर वह मां के कमरे में गया. मां वहां नहीं थी. समय देखा, रात के सवा बज रहे थे. वह बड़बड़ाया, ‘मां अभी तक नहीं आई?’

बलराम को चिंता हुई. उस के मन में बुरे विचार आने लगे. उस की चिंता यह थी कि पिताजी की तरह कहीं मां भी तो उसे छोड़ कर नहीं चली गईं?

पंजाब के जिला खन्ना के थाना जुलकां का एक गांव है मलकपुर कंबोआ. इसी गांव में लाल सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे और एक बेटी थी.

बड़ा बेटा सोहनलाल खेती करने के अलावा दूसरे राज्यों में जा कर कंबाइन मशीन से फसल काटने का काम करता था. उस से छोटी सोनिया थी, जो दसवीं तक पढ़ाई कर के अब घर में रहती थी. सब से छोटा बलराम बारहवीं पास कर के नौकरी की तलाश में था.

लाल सिंह के पास जो जमीन थी, उसी में मेहनत कर के जैसेतैसे तीनों बच्चों को पालापोसा और पढ़ायालिखाया था. बड़ा बेटा सोहन काम करने लगा तो उन्हें थोड़ी राहत मिली. अचानक न जाने ऐसा क्या हुआ कि लाल सिंह के ऊपर काफी कर्ज हो गया, जिस की वजह से उन्हें अपनी कुछ जमीन बेचनी पड़ी.

जमीन बेचने के बाद लाल सिंह गुमसुम रहने लगे. वह ना किसी से बात करते थे और ना किसी मामले में दखलंदाजी करते थे. ऐसे में ही एक दिन वह बिना किसी को कुछ बताए घर से निकले तो लौट कर नहीं आए. यह 5 साल पहले की बात है.

शकुंतला पति के इंतजार में दरवाजे की ओर टकटकी बांधे देखती रहती थी. उस दिन मां के कीर्तन से न लौटने पर बलराम चिंतित हो उठा. उस ने बहन को जगा कर कहा, ‘‘दीदी उठो, अभी तक मां लौट कर नहीं आई है.’’

‘‘क्या कहा, मां अभी तक लौट कर नहीं आई है?’’

‘‘हां दीदी, रात के 2 बज रहे हैं. इस समय कौन सा मंदिर खुला होगा, जो मां कीर्तन कर रही हैं?’’ रुआंसा हो कर बलराम बोला.

सोनिया घबरा कर उठी. उस ने चिंतित हो कर कहा, ‘‘बल्लू, इस समय हम मां को ढूंढने कहां चलेंगे?’’

बात सही भी थी. उस समय रात के 2 बज रहे थे. उतनी रात को वे कहां जाते. लेकिन मां के बारे में पता तो करना ही था. भाईबहन हिम्मत कर के घर से बाहर निकले. पूरे गांव में सन्नाटा पसरा था, सिर्फ कुत्ते भौंक रहे थे. दोनों मंदिर तक गए. वहां घुप्प अंधेरा था. गांव की हर गली में चक्कर लगाया कि शायद किसी के घर कथाकीर्तन हो रही हो, लेकिन गांव में ऐसा कुछ भी आयोजन नहीं था.

सवेरा होने पर बलराम ने मंदिर जा कर पूछा तो पता चला कि शकुंतला तो कल मंदिर आई ही नहीं थी. थोड़ी ही देर में शकुंतला के गायब होने की बात पूरे गांव में फैल गई. हर कोई अफसोस जता रहा था कि 5 साल पहले बच्चों का बाप गायब हो गया और अब मां गायब हो गई. गांव के कुछ लोग भी शकुंतला की तलाश में लग गए.

बलराम ने बड़े भाई सोहन को भी फोन कर के मां के गायब होने की बात बता दी. उस समय वह मध्य प्रदेश में कंबाइन मशीन ले कर फसल की कटाई कर रहा था. छोटे भाई को सांत्वना दे कर उस ने कहा कि वह तुरंत आ रहा है. अगले दिन दोपहर बाद सोहन घर पहुंचा तो कुछ रिश्तेदार एवं गांव वालों के साथ थाना जुलकां जा कर मां की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

शकुंतला का फोटो ले कर पुलिस ने इश्तेहार शोरेगोगा छपवा कर सभी थानों, बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों तथा प्रमुख स्थानों पर लगवा दिए, साथ ही वायरलैस द्वारा उस का हुलिया भी प्रसारित करवा दिया.

दिन, सप्ताह, महीने बीतने लगे, शकुंतला का कुछ पता नहीं चला. धीरेधीरे साल बीत गया. उस की गुमशुदगी के रहस्य से परदा नहीं उठ सका. सोनिया और सोहन ने तो संतोष कर लिया, पर बलराम, जो मां का चहेता भी था, वह मां के गायब होने के रहस्य को जानना चाहता था. इसलिए मार्च, 2016 में उस ने मां की गुमशुदगी की एक चिट्ठी लिखी और खन्ना जा कर एसपी (डी) जसकरण सिंह तेजा से मिला. उन से उस ने हाथ जोड़ कहा, ‘‘सर, मेरी मां को ढुंढवा दीजिए.’’

जसकरण सिंह तेजा ने बलराम के निवेदन को गंभीरता से लिया और डीएसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क और डीएसपी (सिटी) हरवंत कौर को बलराम द्वारा दी गई चिट्टी दे कर सख्त आदेश दिया कि जल्द से जल्द वे इस मामले का खुलासा करें.

हरविंदर सिंह और हरवंत कौर ने शकुंतला का पता लगाने के लिए थाना जुलकां के थानाप्रभारी इंसपेक्टर रणवीर सिंह को नियुक्त किया. उन की मदद के लिए इंसपेक्टर जगजीत सिंह को लगा दिया गया.

शकुंतला की गुमशुदगी की फाइल को निकाल कर फिर से जांच शुरू हुई. पुलिस अधिकारियों ने अपने मुखबिरों को भी शकुंतला की गुमशुदगी का रहस्य पता करने को लगा दिया.

शकुंतला के दोनों बेटों, बेटी तथा रिश्तेदारों से भी पूछताछ की गई. सोहन उन दिनों मध्य प्रदेश में था. उस से छोटा बलराम इंटरव्यू देने चंडीगढ़ गया था. सिर्फ बेटी सोनिया ही घर में थी. पूछताछ में पुलिस ने देखा कि सोनिया बारबार बयान बदल रही है.

रणवीर सिंह ने यह बात डीएसपी हरवंत कौर को बताई तो उन्होंने कहा कि वह अपने मुखबिर सोनिया पर नजर रखने के लिए लगा दें, साथ ही उस के बारे में पता करें.

मुखबिरों से पुलिस को पता चला कि सोनिया के गांव के ही कुलविंदर से प्रेमसंबंध थे. जब से पुलिस दोबारा इस मामले की जांच कर रही है, तब से वह काफी बेचैन और परेशान रहती है. अकसर वह गांव से बाहर खेतों में कुलविंदर से सलाहमशविरा करती दिखाई देती है.

रणवीर सिंह और जगजीत सिंह ने समय न गंवाते हुए एएसआई सुरजीत सिंह से कहा कि वह शकुंतला के घर जा कर उस के बेटों सोहन, बलराम और बेटी सोनिया तथा नजदीकी रिश्तेदारों को थाने ले आएं. अगर वे थाने आने की वजह पूछें तो उन्हें बता देना कि शकुंतला का पता चल गया है. सुरजीत सभी को थाने ले आए. जैसा रणवीर सिंह ने सोचा था वैसा ही था.

सोनिया के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. उस के पैर कांप रहे थे. उन्होंने बड़े नाटकीय ढंग से कहा, ‘‘सोहन सिंह, तुम्हारी मां का पता चल गया है. यह मेरे अलावा तुम्हारी बहन सोनिया को भी पता है कि तुम्हारी मां कहां है? इसलिए तुम उस से पूछ लो कि वह कहां हैं, वरना मैं तो तुम्हारी मां से तुम्हें मिलवा ही दूंगा.’’

रणवीर की इस बात पर सोहन सिंह ने हैरानी से बहन की ओर देखा. वह खुद हैरानी से रणवीर सिंह को देख रही थी. उस का चेहरा एकदम सफेद पड़ा हुआ था. टांगें पहले से ज्यादा कांप रही थीं. सोहन सिंह ने जब उस से पूछा कि क्या वह जानती है कि मां कहां हैं तो वह कांपती आवाज में बोली, ‘‘नहीं भैया, मुझे नहीं पता कि मां कहां है.’’

‘‘बताओ न तुम्हारी मां कहां है?’’ रणवीर सिंह ने डांट कर कहा तो सोनिया ने सिर झुका लिया. उस के दोनों भाई और साथ आए रिश्तेदार उसे हैरानी से देख रहे थे.

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि जब सोनिया को मां के बारे में पता था तो उस ने अब तक बताया क्यों नहीं. रणवीर सिंह ने जब दोबारा डांट कर पूछा तो उस ने रोते हुए अपनी मां की लगभग 11 महीने की गुमशुदगी के रहस्य से परदा उठाते हुए कहा कि उस ने अपने प्रेमी कुलविंदर के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी है.

इस के बाद उस ने शकुंतला की गुमशुदगी के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

सोनिया और कुलविंदर कभी साथसाथ पढ़ा करते थे. दसवीं पास कर के सोनिया ने पढ़ाई छोड़ दी तो दोनों अलग हो गए. सालों बाद युवा होने पर जब उन की मुलाकात हुई तो बचपन की यादें ताजा हो उठीं. युवा होने पर उन के शरीरों में जो बदलाव आया था, वह काफी आकर्षक था.

दोनों ही खूबसूरत तो थे ही, कुलविंदर का कसरती बदन काफी लुभावना था, जिस से दोनों ही एकदूसरे के आकर्षण में बंधते गए. परिणामस्वरूप दोनों गांव के बाहर खेतों में मिलने लगे. जब इस बात की जानकारी शकुंतला को हुई तो वह परेशान हो उठी.

उस ने कुलविंदर को देखा था. वैसे तो उस में कोई कमी नहीं थी, लेकिन वह नशा करता था. इस के अलावा वह दूसरी जाति का भी था, यही वजहें थीं कि शकुंतला ने बेटी को मर्यादा में रहने को कहा.

जबकि सोनिया पर तो कुलविंदर के प्यार का ऐसा नशा चढ़ा था कि उस ने मां की एक नहीं सुनी, बल्कि वह खुश थी कि मां को उस के और कुलविंदर के प्यार के बारे में पता चल गया था.

इस के बाद वह कुलविंदर को घर बुलाने लगी. अगर शकुंतला कुछ कहती तो वह कुलविंदर को ले कर अपने कमरे में चली जाती. गायब होने से 2 दिन पहले 3 जून, 2015 को शकुंतला गांव में किसी के यहां गई थी. मां के जाते ही सोनिया ने कुलविंदर को बुला लिया था.

अचानक शकुंतला आ गई और उस ने सोनिया और कुलविंदर को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया. कुलविंदर तो डर के मारे भाग गया, बेटी को शकुंतला ने खूब खरीखोटी सुनाई. चुप रहने के बजाय सोनिया विद्रोह कर बैठी. उस ने मां को धमकाते हुए कहा, ‘‘सुन मां, अगर मेरे और कुलविंदर के बीच कोई आया तो मैं उसे छोड़ूंगी नहीं.’’

फिर उसी दिन शाम को सोनिया ने कुलविंदर के साथ मिल कर मां को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उस ने यह योजना कुलविंदर को समझा दी. 5 जून को सोनिया ने दोपहर को खाना बनाया और मां के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. खाना खाने के कुछ देर बाद ही शकुंतला गहरी नींद में सो गई थी. सोनिया ने मां को हिलाडुला कर देखा. जब देखा कि मां होश खो बैठी है तो उस ने फोन कर के कुलविंदर को बुला लिया. कुलविंदर के आने पर सोनिया ने उसे फावड़ा दे कर आंगन में गड्ढा खोदवाया और शकुंतला की गला दबा कर हत्या कर दी.

इस के बाद लाश को उसी गड्ढे में डाल कर मिट्टी भर दी. ऊपर से गोबर का लेप लगा दिया, ताकि किसी को संदेह न हो. सारे काम निपटा कर दोनों ने शकुंतला के कमरे में उसी के बिस्तर पर इच्छा पूरी की. इस के बाद क्या हुआ आप पढ़ ही चुके हैं. सोनिया के अपराध स्वीकार करने के बाद शकुंतला की गुमशुदगी को हत्या में तब्दील कर सोनिया और कुलविंदर को दोषी बनाया गया.

सोनिया की निशानदेही पर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट बहादुर सिंह, एसपी (डी) जसकरण सिंह तेजा, डीएसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क, डीएसपी (सिटी) हरवंत कौर, थाना जुलकां के प्रभारी रणवीर सिंह एवं जगजीत सिंह, सोहन, बलराम और गांव के सरपंच की मौजूदगी में आंगन में गड्ढा खोद कर शकुंतला की लाश बरामद की गई, जो कंकाल बन चुकी थी.

लाश का पंचनामा तैयार कर फौरैंसिक लैब भेजा गया. इस के बाद सोनिया को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. चूंकि कुलविंदर फरार हो चुका था, इसलिए रिमांड खत्म होने पर सोनिया को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस कुलविंदर की तलाश कर रही है.

अय्याशी में डूबा रंगीन मिजाज का कारोबारी

देश भर में क्रिकेट व अन्य खेलों का सामान बनाने के लिए प्रसिद्ध शहर जालंधर (पंजाब) के उपनगर लाजपतनगर की कोठी नंबर 141 में प्रसिद्ध करोड़पति बिजनैसमैन जगजीत सिंह लूंबा का परिवार रहता था. उन के सीमित परिवार में 60 वर्षीय पत्नी दलजीत कौर, 42 वर्षीय बेटा अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू, बहू परमजीत कौर उर्फ पम्मी, 20 वर्षीय पोता शानजीत सिंह, मनजीत सिंह और पोती आशीषजीत कौर थीं. जगजीत लूंबा बड़े सज्जन एवं दयालु प्रवृत्ति के इंसान हैं. धनवान होने के बावजूद भी उन्हें किसी चीज का घमंड नहीं था. शहर में उन की जगजीत ऐंड कंपनी नाम से बहुत बड़ी फर्म है, जिस के अंतर्गत 2 पैट्रोल पंप, सर्विस स्टेशन और एक बहुत बड़ी मैटल ढलाई की फैक्ट्री है, जिस में कई फर्नेस लगे हैं. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू अपने पिता के साथ कारोबार संभालने में उन की मदद करता था. दलजीत कौर भी कभीकभार पति और बेटे की मदद के लिए पैट्रोल पंपों पर चली जाती थीं. तीनों बच्चे अभी पढ़ रहे थे. बड़ा पोता शानजीत सिंह एपीजे कालेज जालंधर का छात्र था. कुल मिला कर लूंबा परिवार सुखचैन से अपना जीवन निर्वाह कर रहा था.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे की बात है. दलजीत कौर अपने ड्राइंगरूम में परमजीत कौर उर्फ पम्मी और खुशवंत कौर उर्फ नीतू के साथ बैठी चाय पी रही थीं. खुशवंत कौर परमजीत कौर के पति के दोस्त बलजिंदर सिंह की पत्नी थी. दोनों के आपस में पारिवारिक संबंध थे. बलजिंदर की भी जालंधर के लक्ष्मी सिनेमा के पास मैटल ढलाई की फैक्ट्री थी.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू की शादी के बाद से परमजीत कौर और खुशवंत कौर के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. इसी कारण वह हर रोज शाम के समय उस से मिलने उस के घर आ जाया करती थी. पिछले कई दिनों से दलजीत कौर की कमर में दर्द हो रहा था. शायद उम्र का तकाजा था. वह रोज शाम के ठीक 4 बजे फिजियोथैरेपी करवाने के लिए डाक्टर के यहां जाती थीं.

पर उस दिन खुशवंत कौर के आ जाने पर उन्होंने डाक्टर के यहां जाना कैंसिल कर दिया था. तीनों बच्चे शाम 4 से 6 बजे तक ट्यूशन पढ़ने चले जाते थे. मतलब आम दिनों में 4 से 6 बजे तक यानी 2 घंटे पम्मी घर में अकेली होती थी. उस दिन पम्मी की बेटी ट्यूशन चली गई थी.

बेटा शान जब ट्यूशन पढ़ने जाने के लिए निकलने लगा तो पम्मी ने कहा, ‘‘बेटा शान, तुम्हारे पापा का फोन आया था. उन्होंने कहा है कि तुम अपने छोटे भाई के साथ जा कर अवतारनगर रोड पर स्थित कार की दुकान पर एजेंट से मिलो. वह आज तुम्हारे पसंद की जीप खरीदवाएंगे.’’

‘‘ठीक है मम्मी.’’ शान ने मां की बात सुन कर कहा और छोटे भाई मनजीत को ले कर कार से अवतारनगर की तरफ चला गया.  दरअसल शान कई दिनों से अपने लिए जीप खरीदवाने की जिद कर रहा था.

तीनों महिलाएं चाय की चुस्कियां लेते हुए आपस में बतिया रही थीं कि तभी डोरबेल बजी. घंटी बजते ही पम्मी ने चाय का प्याला टेबल पर रखा और दरवाजे पर जा कर दरवाजा खोला तो सामने 2 आदमी खड़े थे. बिना कुछ कहे ही उन्होंने पम्मी को भीतर की ओर धक्का दे कर दरवाजा बंद कर दिया.

इस से पहले कि पम्मी कुछ समझ पाती, उन दोनों में से एक ने अपनी कमर से पिस्तौल निकाली और पम्मी को निशाना बना कर एक के बाद एक 3 गोलियां चला दीं. पम्मी को तो चीखने का अवसर भी नहीं मिला और वह फर्श पर गिर गई. गोलियों की आवाज सुन कर दलजीत कौर ड्राइंगरूम से बाहर आईं. बहू की हालत देख कर वह चिल्लाईं, ‘‘ओए मार दित्ता जालमा.’’

उन के साथ ही खुशवंत कौर भी कमरे से बाहर आ गई थी. माजरा समझ दोनों हमलावरों पर झपट पड़ीं. उन की इस हरकत से हमलावर घबरा गए. खुशवंत कौर दोनों में से एक से गुत्थमगुत्था हो गई. दलजीत कौर दूसरे आदमी से भिड़ गईं, जिस के हाथ में पिस्तौल था.

पिस्तौल वाले हमलावर ने दलजीत कौर से खुद को छुड़ाने के लिए उन पर गोली चला दी. इस के बाद दूसरे आदमी ने खुशवंत कौर को काबू करने के लिए अपने हाथ में थामा पेचकस उस की गरदन में पूरी ताकत से घुसेड़ दिया. उसी समय पिस्तौल वाले ने उस पर भी गोली चला कर मामला खत्म कर दिया.

तीनों औरतों की हत्या कर दोनों हमलावरों ने चैन की सांस ली और ड्राइंगरूम से निकल कर लौबी में आ गए. लौबी में रखे फ्रिज के पीछे टंगी चाबियों में से उन्होंने एक चाबी उठाई और घर के पिछवाड़े आ कर कोठी के बैक साइड वाला दरवाजा खोल कर निकल गए. मात्र 6-7 मिनट में वे 3 हत्याएं कर के आराम से चले गए थे.

दूसरी ओर जीप देखने के बाद शाम सवा 5 बजे शंटू जब अपने दोनों बेटों के साथ कोठी पर आया तो मुख्य दरवाजा भीतर से बंद मिला. काफी खटखटाने के बाद भी जब अंदर से कोई आहट नहीं सुनाई दी तो किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो कर बापबेटों ने धक्के मार कर दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद सामने का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. शंटू चीखने लगे, ‘‘मार गए…मार गए… बीजी को मार गए.’’

बच्चे भी मदद के लिए उन के साथ चीखने लगे थे. चीखपुकार सुन कर पड़ोसी जमा हो गए. उन में खुशवंत कौर का बेटा अर्शदीप भी था. मां की लाश देख कर वह भी जोरजोर से रोने लगा. पड़ोसियों की मदद से तीनों को नजदीक के प्राइवेट अस्पताल ले गया. पौश कालोनी में दिनदहाड़े हुई 3 हत्याओं की खबर जंगल में लगी आग की तरह शहर भर में फैल गई. लोगों में दहशत भर गया. कोई इसे आंतकवादी घटना बता रहा था तो कोई आपसी रंजिश. किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था. डा. अमनप्रीत सिंह ने मुआयना करने के बाद दलजीत कौर और खुशवंत कौर को मृत घोषित कर दिया. पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल से भी पुलिस को सूचना दे दी गई.

परमजीत कौर की हालत नाजुक थी. उस के दिल की धड़कनें काफी धीमी थीं. उस की जान बचाने के लिए डाक्टरों ने उसे वेंटीलेटर पर रख दिया.

खबर मिलते ही थाना डिवीजन नंबर-4 के थानाप्रभारी प्रेम सिंह और थाना डिवीजन नंबर-6 के थानाप्रभारी गुरवचन सिंह दलबल सहित घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाजपतनगर इलाका पहले थाना डिवीजन नंबर-6 में था, पर बाद में उसे थाना डिवीजन नंबर-4 में शामिल कर दिया गया. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद पुलिस को पता चला कि सब लोग अस्पताल गए हैं तो थानाप्रभारी ने कोठी पर 2 सिपाही तैनात कर इंसपेक्टर प्रेम सिंह के साथ अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर परमजीत को बचाने की कोशिश कर रहे थे पर उस की हालत में सुधार नहीं हो रहा था. फिर रात 9 बजे के करीब उस ने दम तोड़ दिया.

अस्पताल में पता चला कि जिन तीनों महिलाओं को गोली मारी गई थी, उन की मौत हो चुकी है. उन की लाशें कब्जे में ले कर पुलिस ने शंटू के बयान दर्ज किए और उन्हीं की ओर से भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 और 25, 27 आर्म्स एक्ट के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

मामला करोड़पति बिजनैसमैन के परिवार में हुई 3 हत्याओं का था, इसलिए खबर मिलते ही पुलिस कमिश्नर (जालंधर) अर्पित शुक्ला सहित पुलिस के तमाम अधिकारी अपनेअपने लावलश्कर के साथ लाजपतनगर की कोठी नंबर-141 पर पहुंच गए. कोठी के ड्राइंगरूम में खून फैला था. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ मौके से सबूत ढूंढने का प्रयास कर रहे थे.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हत्याएं लूटपाट के इरादे से नहीं की गईं, क्योंकि कोठी का सारा कीमती सामान अपनी जगह पर यथावत था. एक जगह कुरसियां और चाय के बरतन जमीन पर गिरे पडे़ थे, जिस से अनुमान लगाया गया कि वहां संघर्ष हुआ होगा.

हत्यारे जिस तरह कोठी के पीछे का दरवाजा खोल कर निकले थे, उस से यही अनुमान लगाया गया कि वह लूंबा परिवार के परिचित रहे होंगे, जिन का कोठी में आनाजाना रहा होगा. क्योंकि वह दरवाजा अकसर बंद रहता था और उस की चाबी फ्रिज के पीछे टंगी रहती थी. उन का मकसद केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी और उस की सास दलजीत कौर की हत्या करना था.

चश्मदीद गवाह न रहे, इसलिए उन्होंने कोठी में मौजूद खुशवंत कौर को भी मार दिया था. शंटू ने पुलिस को बताया था कि उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पुलिस मामले की जांच में जुट गई. पुलिस को पता चला कि उस कोठी में 4 नौकरानियां काम करती थीं.

सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक 3 नौकरानियां बरतन झाड़ूपोंछा, कपड़े धोने आदि का काम कर के अपने घर चली जाती थीं. एक नौकरानी रीतू लगभग 3, साढ़े 3 बजे की चाय बनाने के बाद घर जाती थी. पुलिस ने चारों नौकरानियों और उन के पतियों से गहन पूछताछ करने के साथ उन की पारिवारिक कुंडली को भी खंगाला.

क्योंकि अकसर बड़े घरों में होने वाली ऐसी वारदातों के पीछे किसी न किसी नौकर का हाथ होता है. पर ये सब बेकसूर पाए गए. पुलिस को घटनास्थल से 2 खाली कारतूस मिले थे, जबकि तीनों मृतक महिलाओं पर 7 गोलियां चलाई गई थीं, इस का मतलब यह था कि शेष 5 गोलियां मृतकों के शरीर में रह गई थीं.

अगले दिन डा. चंद्रमोहन, डा. प्रिया और डा. राजकुमार के पैनल ने तीनों लाशों का पोस्टमार्टम किया. एक्सरे और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार, दलजीत कौर को कुल 3 गोलियां मारी गई थीं, जिस में से एक गोली उन के दिल के पास और एक सिर में फंसी थी. परमजीत कौर को भी 3 गोलियां लगी थीं, जिन में एक गोली उस के माथे के ठीक बीचोबीच लगी थी और एक खोपड़ी और एक बाजू में फंसी हुई थी. इस के अलावा उस के शरीर पर चोटों के 6 निशान पाए गए थे.

खुशवंत कौर के सिर में एक गोली उस की कनपटी से हो कर खोपड़ी में फंस गई थी. उस की गरदन में 16 सेंटीमीटर लंबा एक पेचकस भी फंसा हुआ था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने तीनों लाशें परिजनों को सौंप दीं. उन के अंतिम संस्कार में शहर के अनेक व्यापारी, गणमान्य व्यक्तियों के अलावा हजारों लोग शामिल हुए थे.

पुलिस को अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू से पूछताछ करनी थी, इसलिए अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उसे थाने बुला लिया. उस समय वहां वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर चैक किया तो पता चला कि उस की सारी काल डिटेल्स डिलीट की हुई थी. उस का फोन नंबर सर्विलांस पर लगाने के बाद संबंधित फोन कंपनी से उस के नंबर की काल डिटेल्स हासिल की गई.

काल डिटेल्स की जांच में पुलिस को कई फोन नंबर संदिग्ध मिले. उन नंबरों के बारे में शंटू से पूछताछ की गई तो इस तिहरे हत्याकांड का खुलासा हो गया.

मामले का 24 घंटे में खुलासा होने पर पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली. हत्याकांड की साजिश में शामिल तेजिंदर कौर उर्फ रूबी नाम की महिला की गिरफ्तारी के लिए एक टीम फगवाड़ा भेज दी.

उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने उसी शाम प्रैसवार्ता कर पत्रकारों को बताया कि लाजपतनगर के तिहरे हत्याकांड के साजिशकर्ता और कोई नहीं, बल्कि अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की प्रेमिका तेजिंदर कौर उर्फ रूबी है. इन दोनों अभियुक्तों ने पत्रकारों के सामने हत्या की कहानी बयान कर दी. इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

जगजीत सिंह लूंबा की सारी कंपनियां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही थीं. वह बड़े बिजनैसमैन थे, इसलिए उन का समाज में एक अलग ही रुतबा था. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की पत्नी परमजीत कौर में बड़ा गहरा प्यार था. शंटू और जगजीत सिंह सुबह एक साथ घर से निकलते थे. जगजीत सिंह का अधिकांश समय पैट्रोल पंपों पर गुजरता था, जबकि शंटू स्वतंत्र रूप से फैक्ट्री को देखता था. दोनों ने अपनेअपने काम बांट रखे थे, पर सारे कारोबार का लेखाजोखा जगजीत ऐंड कंपनी में होता था.

लूंबा परिवार की बरबादी के दिन की शुरुआत उस समय हो गई थी, जब सन 2013 में उन की कंपनी में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी ने बतौर हैड एकाउंटैंट का कार्यभार संभाला. इस के पहले जगजीत ऐंड कंपनी में उस का पति सुखजीत बतौर कैशियर काम करता था. सुखजीत सिंह रूबी का नाम का ही पति था. क्योंकि उस पर सुखजीत सिंह का कोई नियंत्रण नहीं था.

अपना जीवन कैसे जीना है, इस बात के फैसले रूबी खुद लेती थी और उस में वह किसी का भी दखल बरदाश्त नहीं करती थी. कुल मिला कर वह एक आजाद खयाल महिला थी. कालेज के दिनों में ही रूबी ने तय कर लिया था कि वह भारत छोड़ कर विदेश जाएगी, जहां खूब दौलत कमा कर अपनी जिंदगी का लुत्फ उठाएगी.

इस के लिए उस ने कोई भी कीमत चुकाने का फैसला कर लिया था, पर विदेश जाने के लिए उस के पास पर्याप्त धन नहीं था. आखिर उस ने स्कौलरशिप ले कर आस्ट्रेलिया जाने का फैसला लिया. बारहवीं करने के बाद रूबी ने कंप्यूटर एजूकेशन में डिप्लोमा किया. इस के बाद उस ने सन 2009 में आईईएलटीएस की परीक्षा दी.

इस परीक्षा के तहत विदेश में नौकरी करने के लिए इच्छुक लोगों का अंगरेजी भाषा का टेस्ट लिया जाता है. फिर इस में मिले स्कोर बैंड के आधार पर उसे वीजा देने का फैसला लिया जाता है. इस परीक्षा में रूबी का स्कोर बैंड 5.5 आया. यह स्कोर बैंड अंगरेजी भाषा के मामूली उपयोगकर्ता का होता है, इसलिए कम स्कोर बैंड आने पर रूबी को आस्ट्रेलिया का वीजा नहीं मिला.

रूबी ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने एक बार फिर आईईएलटीएस की परीक्षा दी. इस बार उसे 6.5 स्कोर बैंड प्राप्त हुए. यह स्कोर बैंड सक्षम उपयोगकर्ता का माना जाता है. पर उसे कम से कम 7 बैंड की जरूरत थी. इस बार भी वीजा न मिलने पर उस की विदेश जाने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. उसी दौरान उस की शादी सुखजीत सिंह से हो गई.

सुखजीत सिंह एक शरीफ युवक था. रूबी उसे ज्यादा महत्त्व नहीं देती थी. बातबात पर वह उस से क्लेश करती थी. क्लेश से बचने के लिए वह शांत रहता था. रूबी पति के साथ जालंधर के सोढल चौक पर किराए के मकान में रहती थी. पर अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते उस ने विदेश जाने का इरादा नहीं छोड़ा था.

वह किसी ऐसे आदमी की तलाश में थी, जो उस पर ढेर सारी दौलत लुटाए और उस के सपने पूरे करे. इस बीच उस की नौकरी अच्छे वेतन और अन्य सुविधाओं के साथ जगजीत ऐंड कंपनी में लग गई थी. इस नौकरी को उस ने अपने सपने पूरे करने का जरिया बना डाला था.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू पहली ही मुलाकात में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी का दीवाना हो गया था. रूबी भी अपने बौस की नजरों को ताड़ गई थी. यही तो वह चाहती थी. जिस आदमी की उसे तलाश थी, वह तलाश उस की पूरी हो गई थी.

शंटू किसी भी तरह रूबी को हासिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने रूबी को तमाम सुविधाएं देने के साथ अपनी निजी सचिव बना लिया. अब वह हर समय शंटू के साथ रहती थी. दोनों एकदूसरे का शिकार करने पर तुले थे, पर तीर चलाने में पहल कोई नहीं कर रहा था.

रूबी को सरप्राइज देने के लिए शंटू ने जालंधर के रामामंडी क्षेत्र में एक कोठी खरीदी और उस की चाबी रूबी को देते हुए कहा, ‘‘आज से तुम इस कोठी में रहोगी. यह तुम्हारे लिए है.’’

रूबी की खुशी का ठिकाना न रहा. क्योंकि उस ने सोचा भी नहीं था कि शंटू इतनी जल्दी उस की झोली में आ गिरेगा. उसी शाम उस नई कोठी में रूबी के सामने जब शंटू ने प्यार का इजहार किया तो रूबी को जैसे मनचाही मुराद मिल गई. इसी दिन का तो उसे इंतजार था. दोनों ने ही उस दिन अपनी इच्छा पूरी की. इस के बाद रूबी पति को छोड़ कर शंटू द्वारा दी गई कोठी में रहने लगी.

शंटू का भी अधिकांश समय रूबी के साथ उसी नई कोठी में गुजरने लगा. घर पर काम का बहाना बना कर वह रूबी की बांहों में पड़ा रहता. 3 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला और न ही उन के संबंधों की बात किसी को कानोकान पता चली. पर अवैध संबंध कभी न कभी खुल ही जाते हैं.

दिसंबर, 2016 में परमजीत कौर को अपने पति और रूबी के नाजायज संबंधों की भनक लग गई. इस बारे में जब उस ने शंटू से पूछा तो वह साफ मुकर गया. पर परमजीत के पास पुख्ता सबूत थे. उस ने यह बात अपनी सास दलजीत कौर को बताई. फिर एक दिन वह अपनी ननद और सास को ले कर रामामंडी वाली कोठी पर पहुंची.

रूबी कोठी में ही थी. तीनों ने मिल कर रूबी की खूब बेइज्जती की और उसे धक्के मार कर कोठी से बाहर कर अपना ताला लगा दिया. शंटू को जब इस बात का पता चला तो उसे अपने घर वालों पर बड़ा गुस्सा आया. घर आ कर उस ने खूब झगड़ा किया और पिता जगजीत सिंह से साफ कह दिया, ‘‘मैं पम्मी से तलाक ले कर रूबी से शादी कर के उसे इस घर की बहू बनाना चाहता हूं.’’

‘‘तेरी मति मारी गई है क्या, जो इस उम्र में पागलों जैसी बातें कर रहा है. शांति से अपने बीवीबच्चों के साथ रह.’’ जगजीत सिंह ने डांटा.

जगजीत सिंह और दलजीत कौर ने बेटे को बहुत समझाया, पर शंटू तो रूबी के मोहजाल में इस कदर जकड़ा था कि वह किसी भी सूरत में उस से दूर होने को तैयार नहीं था. शंटू की ससुराल वालों और अन्य रिश्तेदारों ने यह बात सुनी तो सभी उन की कोठी पर आ गए.

सभी ने शंटू को फटकार लगाते हुए समझाया, तब कहीं जा कर यह मामला शांत हुआ. उस समय सभी बड़ेबूढ़ों के दबाव में आ कर शंटू शांत हो गया, पर दिनरात वह पम्मी से पीछा छुड़ा कर रूबी से ब्याह रचाने के बारे में सोचता रहता था. वह इस बात को अच्छी तरह समझ गया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं यानी पम्मी के रहते हुए वह रूबी को कभी इस घर की बहू नहीं बना सकता.

शंटू के पैट्रोल पंप पर कुछ समय पहले तक गांव ढिलवां निवासी विपिन नौकरी करता था. विपिन अपराधी प्रवृत्ति का था. उस पर कई मुकदमे चल रहे थे. एक दिन अचानक रास्ते में शंटू की मुलाकात विपिन से हो गई. गाड़ी रोक कर उस ने विपिन को अपने साथ बिठा लिया. शंटू ने उसे अपने और रूबी के रिश्ते के बारे में बता कर कहा, ‘‘पम्मी के रहते रूबी को अपना बनाना असंभव है. तू बता पम्मी का इलाज कैसे किया जाए?’’

‘‘जी, मैं क्या बताऊं?’’ विपिन ने असमंजस में कहा, ‘‘आप किसी वकील से सलाह ले लो.’’

‘‘नहीं, पम्मी का बड़ा सीधा इलाज है.’’ शंटू ने कहा.

‘‘वह क्या जी?’’ विपिन ने हैरानी से पूछा.

‘‘पम्मी का काम तमाम कर दे. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’ शंटू ने सुझाव दिया.

‘‘ठीक है जी, हटा देते हैं रस्ते से.’’ विपिन अब पूरी बात समझ गया था. मुद्दे पर आते हुए उस ने कहा, ‘‘पर यह काम मैं अकेला नहीं कर सकूंगा. दूसरे बदले में कितने रुपए मिलेंगे?’’

‘‘पहले तू आदमी का इंतजाम कर ले, रुपयों की बात तभी कर लेंगे.’’ शंटू ने कहा.

अगले ही दिन विपिन ने गांव सरहाल कलां चब्बेवाल निवासी अमृतपाल को शंटू से मिलवाया. उस का बड़ा भाई विदेश में नौकरी करता था. वह भी मलेशिया में नौकरी करता था. 3 साल नौकरी कर के वह 6 महीने पहले ही घर लौटा था. यहां आ कर उस ने पैट्रोल पंप के शेड बनाने का काम शुरू कर दिया था.

उसी दौरान उस की मुलाकात विपिन से हुई थी. अमृतपाल साफसुथरी छवि वाला आदमी था, पर पैसों की वजह से उसे लालच आ गया. उस ने इस काम के लिए 15 लाख रुपए मांगे. सौदेबाजी के बाद मामला 8 लाख रुपए में तय हो गया. शंटू ने उसी समय विपिन को 1 लाख 40 हजार रुपए एडवांस दे दिए. इन रुपयों से विपिन और अमृतपाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद गए और वहां से किसी से एक पिस्तौल और गोलियां खरीद लाए.

शंटू ने अपनी पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या की सुपारी अपनी प्रेमिका रूबी के कहने पर दी थी. हत्या की योजना बन जाने के बाद शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपनी कोठी का पूरा नक्शा समझाते हुए एकएक बात बारीकी से समझा दी कि कैसे उन्हें कोठी में दाखिल होना है और कैसे हत्या करनी है. उस के बाद फ्रिज के पीछे टंगी पिछले दरवाजे की चाबी से ताला खोल कर बाहर निकल जाना है.

शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपने घर के सभी सदस्यों की भी पूरी जानकारी दे दी थी कि कौन किस वक्त कहां होता है. हत्या करवाने के लिए शंटू ने शाम 4 से 5 बजे का टाइम तय किया था. क्योंकि वह जानता था कि उस समय परमजीत कौर कोठी में अकेली होती है.

21 फरवरी, 2017 को शंटू की योजनानुसार विपिन और अमृतपाल उस की कोठी नंबर 141 पर पहुंचे. उन्होंने यह कह कर घर में लगे सीसीटीवी कैमरों के कनेक्शन काट दिए कि शंटू भाई ने कहा है कि इन पुराने कैमरों की जगह अब नए मौडर्न कैमरे लगाए जाएंगे. इसी बहाने वे कोठी के अंदरूनी भाग को पूरी तरह देखसमझ आए. अगले दिन 22 फरवरी, 2017 को दोनों फिर से कोठी पर गए और वहां रखा डिजिटल वीडियो रिकौर्डर और मौनीटर भी उठा लाए.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे दोनों फिर कोठी पर पहुंचे और अपनी योजनानुसार इस हत्याकांड को अंजाम दे कर चुपचाप निकल गए. बात केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या करने की हुई थी. इसलिए विपिन और अमृतपाल दलजीत कौर और खुशवंत कौर की हत्या नहीं करना चाहते थे, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि उन्हें उन की भी हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

शंटू को इस बात की आशंका बिलकुल नहीं थी कि उस की मां की भी मौत हो सकती है. वह अपनी मां से बेहद प्यार करता था. इस का उसे बहुत पश्चाताप है. रिमांड के दौरान पूछताछ करते समय वह अपनी मां को बारबार याद कर के रोने लगता था. उसे इस बात का अफसोस है कि उस की अय्याशियों और बेवजह की हठधर्मी से उस के परिवार का विनाश हो गया.

विपिन और अमृतपाल फरार हो गए थे. उन की तलाश में पुलिस की एक टीम दिल्ली और गाजियाबाद भी गई, पर वे पुलिस के हाथ नहीं लग सके. पुलिस ने अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और तेजिंदर कौर उर्फ रूबी को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक विपिन और अमृतपाल गिरफ्तार नहीं हो सके थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नन्हा हत्यारा, जिसने पूरा पंजाब हिला दिया

संगीता 16 जनवरी, 2017 की शाम को नौकरी से घर पहुंची तो उस के दोनों बच्चे चारपाई पर बैठे रो रहे थे. डेढ़ साल की बेटी काजल जोरजोर से रो रही थी, जबकि 4 साल का राहुल सिसकते हुए उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था. संगीता ने काजल को उठा कर सीने से लगाया और दूसरे हाथ से राहुल की आंखें पोंछते हुए 8 साल के बेटे दीपू को आवाज दी. दीपू नहीं बोला तो संगीता काजल को गोद में लिए बड़बड़ाते हुए घर के बाहर आ गई. उस ने गली में खेल रहे बच्चों से दीपू के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि आज वह उन्हें दिखाई नहीं दिया. खीझ कर वह लौट आई और बड़बड़ाते हुए घर के कामों में लग गई. साढ़े 7 बजे तक घर के काम निपटा कर संगीता खाली हुई तो एक बार फिर दीपू की तलाश में निकल पड़ी.

काफी तलाश के बाद भी जब उस का कुछ पता नहीं चला तो उसे चिंता हुई. अब तक अंधेरा भी घिर आया था. ऐसे में दीपू का न मिलना उसे बेचैन करने लगा था. संगीता घर के बाहर खड़ी सोच रही थी कि अब वह दीपू को कहां ढूंढे, तभी सामने से पति दिलीप कुमार को आते देख कर उसे थोड़ी राहत महसूस हुई. पत्नी के चेहरे पर परेशानी के बादल मंडराते देख दिलीप ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, यहां क्यों खड़ी हो?’’

‘‘दीपू पता नहीं कहां चला गया है. मैं ने उसे सब जगह तलाश लिया है, उस का कुछ पता नहीं चल रहा है.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है,’’ दिलीप ने पत्नी को सांत्वना दी, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं देखता हूं वह कहां है.’’

कह कर दिलीप ने दीपू की तलाश शुरू कर दी. दीपू के गायब होने की जानकारी पड़ोसियों को हुई तो वे भी उस के साथ दीपू की तलाश में जुट गए. आधी रात तक तलाश करने पर भी जब दीपू का कुछ पता जब नहीं चला तो थकहार कर सभी अपनेअपने घर चले गए. दिलीप और संगीता ने वह रात आंखों में काटी.

अगले दिन सवेरा होते ही दिलीप और संगीता नौकरी पर जाने के बजाए दीपू की तलाश में जुट गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दीपू कहां चला गया? दीपू एक समझदार बच्चा था. भले ही परिस्थितियों ने उसे स्कूल का मुंह नहीं देखने दिया था, पर वह अपनी जिम्मेदारियां भलीभांति निभा रहा था.

मातापिता और 15 साल के बड़े भाई दीपक कुमार के नौकरी पर चले जाने के बाद अपने 4 साल के छोटे भाई राहुल और डेढ़ साल की बहन काजल की देखभाल वही करता था. आज तक उस ने शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था. लेकिन उस दिन वह पता नहीं कहां चला गया था. जब दीपू का कुछ पता नहीं चला तो दिलीप और संगीता ने उस के लापता होने की सूचना थाना पुलिस को दे दी थी.

इस तरह के मामलों में जैसा होता है, उसी तरह पुलिस ने उन्हें 24 घंटे बाद आने को कहा था. उसी दिन 4 बजे शाम को एक मजदूर ने एक खाली प्लौट में कुछ कुत्तों को आपस में लड़ते देखा. कुत्ते किसी चीज को ले कर छीनाझपटी कर रहे थे. मजदूर ने नजदीक जा कर देखा तो कुत्ते प्लास्टिक के कट्टे को ले कर छीनाझपटी कर रहे थे. वहां 2 कट्टे पड़े थे. कुत्तों को भगा कर उस ने जिज्ञासावश एक कट्टे का मुंह खोला तो उस में जो देखा, डर के मारे पीछे हट गया. कट्टे में मानव अंग थे.

उस ने यह बात मोहल्ले वालों को बताई तो किसी ने इस की सूचना स्थानीय थाना दुगड़ी पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही ड्यूटी अफसर जतिंदर सिंह, हैडकांस्टेबल प्रीतपाल सिंह और कांस्टेबल प्रभजोत सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस वालों ने प्लास्टिक के कट्टों को खोल कर देखा तो उन में किसी बच्चे की लाश के टुकड़े भरे थे. किसी ने बेरहमी से बच्चे के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर के दोनों कट्टों में भर कर वहां फेंक दिए थे.

बच्चे की लाश मिलने की खबर मोहल्ले में फैली तो लाश देखने दिलीप और संगीता भी वहां पहुंच गए. लाश देखते ही संगीता और दिलीप दहाड़े मार कर रोने लगे. क्योंकि लाश उन के बेटे दीपू की थी. पतिपत्नी दीपू की लाश के टुकड़ों से लिपट कर रो रहे थे. एसआई जतिंदर सिंह ने समझाबुझा कर दोनों को वहां से अलग किया और घटना की सूचना अधिकारियों तथा क्राइम टीम को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना दुगड़ी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर प्रेम सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह ग्रेवाल घटनास्थल पर आ गए थे. दीपू की लाश के टुकड़े मिलने से मोहल्ले वालों में बड़ा रोष था. लोगों की नाराजगी को देखते हुए प्रेम सिंह ने सारी काररवाई पूरी कर के पोस्टमार्टम के लिए लाश के टुकड़ों को सिविल अस्पताल भिजवा दिया था.

इस के बाद मृतक के पिता दिलीप की ओर से थाना दुगड़ी में दीपू की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया था.

लुधियाना के सिविल अस्पताल में 17 जनवरी को दीपू की लाश के टुकड़ों का पोस्टमार्टम किया गया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि बच्चे का दिल गायब है. इस खबर से लोग तरहतरह की अटकलें लगाने लगे. लेकिन पुलिस लोगों की बातों पर ध्यान न दे कर अपने हिसाब से काम में जुटी रही.

पूछताछ में दिलीप ने बताया था कि वह उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना बिहार के गांव छेदा का रहने वाला था. रोजीरोजगार की तलाश में वह कई सालों पहले लुधियाना  आ गया था. लुधियाना में वह थाना दुगड़ी की शेख कालोनी के सूआ रोड पर किराए के मकान में परिवार के साथ रहता था.

उस ने 5 साल पहले संगीता से विवाह किया था. संगीता तलाकशुदा थी. पहले पति ननकूराम से उसे 2 बेटे थे, जो दिलीप से शादी के समय 9 साल और 3 साल के थे. दिलीप से भी उसे 2 बच्चे राहुल और बेटी काजल हुई थी. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते थे. संगीता का बड़ा बेटा दीपक, जो अब 15 साल का था, वह भी नौकरी करता था. सब के नौकरी पर चले जाने के बाद 8 साल का दीपू अपने छोटे भाई और बहन की देखभाल करता था.

दिलीप के बयान के आधार पर प्रेम सिंह ने एएसआई राम सिंह और एसआई रामपाल के नेतृत्व में एक टीम उत्तर प्रदेश के उन्नाव संगीता के पूर्वपति ननकूराम से पूछताछ के लिए भेजी. लेकिन पूछताछ में ननकूराम निर्दोष पाया गया. इस के बाद पुलिस ने अपना ध्यान इलाके में ही लगा दिया.

पुलिस हत्यारे के बारे में सोच रही थी कि मातानगर के होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल ने फोन द्वारा इंसपेक्टर प्रेम सिंह को सूचना दी कि उन के स्कूल के ग्राउंड में एक जगह मानव दिल पड़ा है. सूचना मिलते ही प्रेम सिंह और हरपाल सिंह होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल पहुंच गए और दिल बरामद कर उसे सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

सिविल अस्पताल के सीनियर डाक्टरों ने दिल की जांच कर बताया कि बरामद दिल मृतक बच्चे दीपू का था. इस तरह दीपू के सभी अंग पूरे हो गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दीपू की गला दबा कर हत्या की गई थी. उस के बाद किसी ऐसे हथियार से उस के शरीर के टुकड़े किए गए थे, जिस की धार बहुत तेज नहीं थी.

पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने का कोई सूत्र नहीं मिला तो उस ने अपने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया. इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ था. तभी किसी मुखबिर ने प्रेम सिंह को बताया कि 16 जनवरी की दोपहर करीब डेढ़ बजे दीपू मोहल्ले के ही रमेश (बदला हुआ नाम) के साथ दिखाई दिया था.

शक के आधार पर प्रेम सिंह रमेश को थाने ले आए. उस से पूछताछ की जाने लगी तो वह पुलिस को बहकाने लगा. लेकिन उस की बातों से पुलिस को यकीन हो गया कि भले ही यह बच्चा है, लेकिन है यह घुटा हुआ. मजबूर हो कर प्रेम सिंह और हरपाल सिंह ने जब थोड़ी सख्ती की तो रमेश ने अपना अपराध स्वीकार कर के सच्चाई उगल दी कि उसी ने दीपू की हत्या कर उस की लाश के टुकड़े कर खाली प्लौट में फेंक आया था.

रमेश द्वारा अपराध स्वीकार करने पर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए. खतरनाक से खतरनाक हादसे और वारदातें देखने वाले पुलिस अफसर भी सिहर उठे. क्योंकि हत्यारा मात्र 13 साल का था. एडीसीपी क्राइम बलकार सिंह और एसीपी योगीराज के सामने प्रेम सिंह ने जब रमेश से विस्तारपूर्वक पूछताछ की तो किसी हौरर फिल्म की कहानी की तरह रमेश ने जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी—

रमेश मृतक दीपू के घर से 3 घर छोड़ कर अपने मांबाप के साथ किराए के मकान में रहता था. वह मातानगर के होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल में 8वीं में पढ़ता था. लेकिन कुछ दिनों पहले उसे स्कूल से निकाल दिया गया था. दरअसल रमेश बचपन से ही अपराधी प्रवृत्ति का जिद्दी लड़का था.

गरीब मातापिता गुजरबसर के लिए सुबह ही काम पर चले जाते थे. उस के बाद रमेश घर में अकेला ही रह जाता था. मांबाप मुश्किल से गुजरबसर कर रहे थे, इस के बावजूद बेटे का भविष्य संवारने के लिए उसे अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे थे लेकिन रमेश स्कूल न जा कर इधरउधर आवारागर्दी किया करता था.

कमजोर और छोटे बच्चों पर धौंस जमाना, दादागिरी करना और उन से पैसे तथा खानेपीने की चीजें छीनना उस की आदत बन गई थी. यही नहीं, वह पढ़ने वाले बच्चों से मारपीट करता था और उन की किताबें चोरी कर के कबाड़ी को बेच कर मौज करता था. इसी वजह से क्लास टीचर ने सब के सामने पिटाई कर के उसे स्कूल से निकाल दिया था. स्कूल और क्लास टीचर से बदला लेने के लिए ही उस ने दिल  दहला देने वाला यह कांड कर डाला था.

दरअसल, स्कूल से निकाले जाने के बाद वह क्लास टीचर को सबक सिखाना चाहता था. रमेश टीवी पर आने वाले आपराधिक सीरियल खूब देखता था. इन्हीं धारावाहिकों से आइडिया ले कर वह कम उम्र के बच्चे की तलाश में जुट गया. किसी दिन उस की नजर गली में खेल रहे दीपू पर पड़ी तो उसे लगा कि इस बच्चे से उस के 2 काम हो सकते हैं.

योजना बना कर रमेश बाजार से पतंग ले आया और मोहल्ले वालों की नजर बचा कर दीपू के घर पहुंच गया. उसे पता ही था कि दीपू का भाई और मांबाप काम पर चले जाते हैं, उस के बाद वह घर पर अकेला ही रहता है. दीपू के घर जा कर उसे पतंग दिखाते हुए उस ने कहा, ‘‘देख मेरे पास ढेर सारी पतंगें हैं. चल मेरे घर की छत पर चल कर पतंग उड़ाते हैं.’’

दीपू छोटे भाई और बहन को छोड़ कर जाना तो नहीं चाहता था, पर पतंग उड़ाने के लालच में वह रमेश के साथ चला गया. अपने घर आ कर रमेश ने कहा, ‘‘चल, पहले कुछ खा लेते हैं, उस के बाद छत पर चल कर पतंग उड़ाएंगे.’’

इस तरह रमेश दीपू को अपने कमरे में ले जा कर अंदर से कुंडी बंद कर ली. इस के बाद उसे उठा कर पलंग पर पटक दिया. अचानक हुए इस हमले से दीपू घबरा गया और खुद को रमेश के चंगुल से छुड़ाने के लिए हाथपैर चलाने लगा. दीपू छोटा और उस से कमजोर था, इसलिए उस का मुकाबला नहीं कर सका. उस ने रमेश को 2-3 जगह दांतों से काटा भी. लेकिन रमेश उस की छाती पर सवार हो गया और उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

दीपू की हत्या करने के बाद रमेश ने लाश को पलंग से नीचे उतारा और घसीट कर बाथरूम में ले गया. इस के बाद घर में रखी खुरपी से उस के शरीर के टुकड़े कर प्लास्टिक के कट्टे में भर दिए. दिल निकाल कर उस ने अलग पौलीथिन में रख लिया. जब गली में कोई नहीं दिखाई दिया तो लाश के टुकड़ों वाले कट्टे ले जा कर खाली प्लौट में फेंक आया.

इस के बाद बाथरूम को साफ कर दिया. अब बची दिल वाली पौलीथिन, जिसे ले कर जा कर वह स्कूल के ग्राउंड में फेंक आया. जिस समय रमेश अपने घर पहुंचा, सभी दीपू की तलाश कर रहे थे. वह भी सब के साथ दीपू की तलाश करने लगा.

20 जनवरी, 2017 को प्रेम सिंह ने रमेश को हत्या के अपराध में बच्चों की अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान पूछताछ में बताया कि उस ने दिल स्कूल में इसलिए फेंका था कि अगर वहां दिल मिलेगा तो लोगों को लगेगा कि स्कूल में बच्चों के अंग निकाल कर बेचा जाता है. बाद में वह क्लासटीचर के बारे में अफवाह फैला देता कि वह इस तरह के काम करता है. इस तरह स्कूल भी बदनाम हो जाता और क्लासटीचर भी.

इस के अलावा रमेश दीपू के अपहरण की बात कह कर दिलीप से फिरौती वसूलना चाहता था. लेकिन पुलिस का दबाव बढ़ने की वजह से वह फिरौती के लिए दिलीप को फोन नहीं कर सका था. पुलिस ने रमेश की निशानदेही पर घर से खुरपी बरामद कर ली थी. रिमांड खत्म होने पर पुलिस ने उसे फिर से बच्चों की अदालत में पेश किया था, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया था.

क्लास में छेड़ते थे लड़के-लड़कियां, तो ट्रेन के आगे कूदी

12वीं की एक छात्रा अपने ही दो सहपाठियों की छेड़छाड़ से इतनी आहत हो गई कि उसने जान दे दी. मामला जवाहर कौलोनी का है. जीआरपी को बुधवार शाम 7:00 बजे जानकारी मिली कि एक लड़की ने न्यू टाउन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली है. इसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और उसके परिवारजनों को बुलाया. लड़की के पिता की शिकायत पर पुलिस ने 4 छात्रों के खिलाफ आत्महत्या के लिए विवश करने का मामला दर्ज कर लिया है. इनमें दो लड़कियां भी शामिल हैं.

जीआरपी में दर्ज मामले के अनुसार, जवाहर कालोनी की रहने वाली 18 साल की एक लड़की यहीं के एक पब्लिक स्कूल में 12वीं कक्षा की छात्रा थी. उसी की क्लास में पढ़ने वाले दो लड़के उसका पीछा कर अश्लील शब्द बोलते थे.

आरोप है कि इसमें उनका सहयोग 12वीं कक्षा की ही दो लड़कियां भी करती थीं. पीड़ित छात्रा ने कई बार चारों को समझाया पर वे नहीं माने. आखिर में पीड़िता ने अपने परिवार के लोगों को आपबीती बताई. यह बात पता चलने के बाद परिवारजनों ने चारों छात्रों को समझाया, लेकिन इसका उनपर कोई असर नहीं हुआ. पिता का कहना है कि इससे उनकी बेटी परेशान रहने लगी थी.

वारदात वाले दिन वह बुधवार सुबह स्कूल गई थी. वहां पांचों के बीच स्कूल में कुछ कहासुनी हुई. इसके बाद दोपहर 2:00 बजे स्कूल की छुट्टी होने के बाद वह अपनी घर पहुंची. शाम 4:30 बजे वह स्कूटी चलाकर जवाहर कालोनी में ही ट्यूशन पढ़ने के लिए निकल गई, लेकिन देर शाम तक घर नहीं पहुंची.

उधर, जीआरपी एसएचओ ओमप्रकाश को बुधवार शाम 7:00 बजे जानकारी मिली कि एक लड़की ने न्यू टाउन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली है. जानकारी मिलने पर एसएचओ ओमप्रकाश व एएसआई कृपाल सिंह मौके पर पहुंचे. शव की पहचान न होने से उसे बीके अस्पताल के रखवा दिया. उधर, छात्रा के रात 8:00 बजे तक घर न पहुंचने पर परिवारीजन जीआरपी थाने पहुंचे. पुलिस ने मौके से टूटी घड़ी और कंगन बरामद किए हैं.

पड़ोस में खड़ी कर दी थी स्कूटी

छात्रा ट्यूशन पढ़ने के लिए स्कूटी लेकर जाती थी. बुधवार शाम उसने स्कूटी जवाहर कालोनी में ही खड़ी कर दी. वह न्यू टाउन रेलवे स्टेशन कैसे पहुंची, यह अभी तक पता नहीं चल पाया है. एक अन्य थ्योरी यह भी सामने आई है कि छुट्टी होने के बाद रास्ते में लड़की समेत पांचों छात्रों ने किसी केक की दुकान से सामान भी खरीदा. इसी दौरान पांचों की आपस में कहासुनी हो गई. इससे नाराज छात्रा मौके पर ही स्कूटी छोड़कर न्यूटाउन स्टेशन पहुंच गई. स्कूल के प्रिंसिपल आकाश शर्मा ने बताया कि पीड़ित परिवारजनों ने स्कूल आकर बताया था कि 28 अक्टूबर को मृतक छात्रा के नाना की मौत हो गई है, इसलिए उनकी बेटी कुछ दिनों तक स्कूल नहीं आ पाएगी.

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