हरप्रीत कौर तेजाब कांड: बदला लेने की ये थी अजीब सनक

Crime News in Hindi: हरप्रीत कौर तेजाब कांड (Harpreet Kaur Acid Attack Case) के नाम से मशहूर मामले का फैसला सुनाया जाना था, इसलिए लुधियाना (Ludhiana) के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (Additional District And Session Judge) श्री संदीप कुमार सिंगला की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी. इस की वजह यह थी कि अपने समय का यह काफी चर्चित मामला था. इस की वजह यह थी कि यह तेजाब कांड उस समय घटित हुआ था, जिस दिन हरप्रीत कौर की शादी होने वाली थी. दुख की बात यह थी कि इस मामले में दोष किसी और का था, दुश्मनी किसी और से थी और सजा भुगतनी पड़ी थी निर्दोष हरप्रीत कौर को. तमाम पीड़ा सहने के बाद उस की असमय मौत भी हो गई थी. इस मामले में क्या सजा सुनाई गई, उस से पहले आइए इस पूरे मामले के बारे में जान लें. पंजाब (Punjab) के जिला बरनाला (Barnala) के ढनोला रोड पर स्थित है बस्ती फत्तहनगर. जसवंत सिंह यहीं के रहने वाले थे. उन्होंने अपने घर के एक हिस्से में सैलून खोल रखा था. उसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में पत्नी दविंदर कौर के अलावा 2 बेटे और एक बेटी हरप्रीत कौर थी.

बेटी पढ़लिख कर शादी लायक हुई तो जसवंत सिंह ने उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. लुधियाना में उन की बहन रहती थी भोली. उसी के माध्यम से हरप्रीत कौर की शादी की बात कोलकाता के रहने वाले रंजीत  सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह उर्फ हनी से चली.

रंजीत सिंह मूलरूप से दोराहा लुधियाना के रहने वाले थे. लेकिन अपनी जवानी में वह कोलकाता जा कर बस गए थे. वहां उन का होटल एंड रेस्टोरैंट का बहुत बड़ा कारोबार था. उन के पास किसी चीज की कमी नहीं थी.

वह बहू के रूप में गरीब और शरीफ परिवार की प्रतिभाशाली लड़की चाहते थे. इसीलिए उन्होंने ही नहीं, उन के बेटे हरप्रीत सिंह ने भी हरप्रीत कौर को देख कर पसंद कर लिया था. यह मार्च, 2013 की बात थी. बातचीत के बाद शादी की तारीख 7 दिसंबर, 2013 रख दी गई थी.

जसवंत सिंह और रंजीत सिंह की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था. शादी तय होने के कुछ दिनों बाद ही जसवंत सिंह को फोन कर के धमकी दी जाने लगी कि वह यह रिश्ता तोड़ दें अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहें. जसवंत सिंह ने यह बात रंजीत सिंह को बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोगों से हमारी रंजिश हैं, शायद वही फोन कर के आप को धमका रहे हैं. लेकिन आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है. हमारी तरफ से कोई बात नहीं है. आप शादी की तैयारी करें.’’

इस के बाद भी जसवंत सिंह के पास धमकी भरे फोन आते रहे. कुछ अंजान युवकों ने बरनाला स्थित उन के घर आ कर भी शादी तोड़ने को कहा, लेकिन जसवंत सिंह परवाह किए बिना बेटी की शादी की तैयारी करते रहे.

शादी की तारीख नजदीक आ गई तो जसवंत सिंह परिवार सहित लुधियाना के जनता  नगर की गली नंबर 16 में रहने वाले अपने रिश्तेदार रजिंदर सिंह बगा के घर आ गए. दूसरी ओर रंजीत सिंह का परिवार भी बेटे की शादी के लिए कोलकाता से लुधियाना आ गया था. विवाह के लिए उन्होंने परवोवाल रोड स्थित शहर का सब से महंगा स्टर्लिंग रिजौर्ट बुक करा रखा था.

7 दिसंबर, 2013 को शादी वाले दिन हरप्रीत कौर अपनी मां, पिता और 2 सहेलियों के साथ सजने के लिए सुबह 7 बजे कार से सराभानगर स्थित लैक्मे ब्यूटी सैलून॒ पहुंची. मातापिता बाहर कार में ही बैठे रहे, जबकि हरप्रीत कौर सहेलियों के साथ सैलून में चली गई. चूंकि सैलून पहले से ही बुक कराया गया था, इसलिए उस के पहुंचते ही उस का मेकअप करना शुरू कर दिया गया.

ठीक साढ़े 7 बजे एक युवक हाथ में प्लास्टिक का डिब्बा लिए सैलून में दाखिल हुआ. उस ने अपना चेहरा ढक रखा था. सैलून में दाखिल होते ही उस ने हरप्रीत कौर को इस तरह पुकारा, जैसे वह उस का परिचित हो. हरप्रीत कौर के बोलते ही वह वहां गया, जहां हरप्रीत कौर का मेकअप हो रहा था. सैलून में काम करने वाले कर्मचारियों ने उसे अंदर आते देखा जरूर था, पर किसी ने उसे रोका नहीं. क्योंकि युवक जिस आत्मविश्वास के साथ अंदर आया था, सब ने यही समझा कि वह दुलहन का मेकअप करा रही हरप्रीत कौर का कोई रिश्तेदार है.

हरप्रीत कौर के पास पहुंच कर युवक ने थोड़ा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुझ से ही नहीं, तेरे घर वालों से भी कितनी बार कहा था न कि मैं यह शादी नहीं होने दूंगा.’’

इस के बाद उस ने प्लास्टिक का डिब्बा खोला, जिस में वह तेजाब ले कर आया था. उस ने डिब्बे का सारा तेजाब हरप्रीत कौर के ऊपर उडे़ल दिया. इसी के साथ वह एक कागज फेंक कर जिस तरह तेजी से आया था उस से भी ज्यादा तेजी से बाहर निकल गया. तेजाब ऊपर पड़ते ही हरप्रीत चीखनेचिल्लाने लगी. उस के चीखनेचिल्लाने से वहां काम करने वाले कर्मचारियों को जब घटना का भान हुआ तो सभी डर के मारे चीखनेचिल्लाने लगे. शोरशराबा सुन कर सैलून के मैनेजर संजीव गोयल तुरंत आ गए. वह उस युवक के पीछे दौड़े भी, पर उन के बाहर आने तक वह बाहर खड़ी कार में सवार हो भाग गया था.

कार में शायद कुछ और लोग भी बैठे थे. हरप्रीत कौर के अलावा उस के बगल वाली सीट पर मेकअप करवा रही अमृतपाल कौर तथा 2 ब्यूटीशियनों पर भी तेजाब पड़ गया था. हरप्रीत कौर की हालत सब से ज्यादा खराब थी. मैनेजर संजीव गोयल ने थाना सराभानगर पुलिस को घटना की सूचना देने के साथ हरप्रीत कौर सहित सभी घायलों को डीएमसी अस्पताल पहुंचाया.

प्राथमिक उपचार के बाद अन्य सभी घायलों को तो छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन हरप्रीत कौर का पूरा चेहरा एवं छाती बुरी तरह जल गई थी, इसलिए उसे अस्पताल में भरती करा दिया गया था.

मैनेजर संजीव गोयल, मेकअप करवाने वाली अमृतपाल कौर, 2 ब्यूटीशियनों के अलावा हरप्रीत कौर के मातापिता इस घटना के चश्मदीद थे. हरप्रीत कौर के पिता जसवंत सिंह की ओर से थाना सराभानगर में इस तेजाब कांड का मुकदमा दर्ज हुआ. घटनास्थल के निरीक्षण में इंसपेक्टर हरपाल सिंह ग्रेवाल को सैलून से युवक द्वारा फेंका गया कागज मिला तो पता चला कि वह प्रेमपत्र था.

उन्होंने सैलून के अंदर और बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज कब्जे में ले ली थी. बाद में जांच में पता चला कि युवक ने सैलून में जो प्रेमपत्र फेंका था, वह पुलिस की जांच को गुमराह करने के लिए फेंका था. हरप्रीत कौर का किसी से कोई प्रेमसंबंध नहीं था.

जब स्पष्ट हो गया कि मामला प्रेमसंबंधों का या एकतरफा प्रेम का नहीं था तो पुलिस सोच में पड़ गई कि आखिर दुलहन पर तेजाब क्यों फेंका गया, वह भी फेरों से मात्र एक घंटे पहले? यह बात मामले की जांच कर रहे हरपाल सिंह ग्रेवाल की समझ में नहीं आ रही थी. हरप्रीत कौर बयान देने की स्थिति में नहीं थी. तेजाब पड़ने के बाद वह बेहोश हुई तो फिर होश में नहीं आई. उस की हालत दिनोंदिन नाजुक ही होती जा रही थी.

जब डीएमसी अस्पताल के डाक्टरों ने हरप्रीत कौर के इलाज से हाथ खड़े कर दिए तो लुधियाना के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निर्मल सिंह ढिल्लो और इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने खुद और कुछ पुलिस फंड से मदद कर के इलाज के लिए दिसंबर, 2013 को विशेष विमान द्वारा उसे मुंबई भिजवाया.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने रंजीत सिंह और उन के बेटे हरप्रीत सिंह, जिस से हरप्रीत कौर की शादी हो रही थी, दोनों लोगों से विस्तार से पूछताछ करते हुए उन की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में गहराई से छानबीन की तो आखिर पूरा मामला उन की समझ में आ गया.

इस के बाद अपने अधिकारियों से रायमशविरा कर के उन्होंने सबइंसपेक्टर मनजीत सिंह को साथ ले कर एक पुलिस टीम बनाई और पटियाला के रंजीतनगर स्थित एक कोठी पर छापा मारा. उन के छापा मारने पर भागने के लिए एक युवक कोठी की छत से कूदा, जिस से उस की एक टांग टूट गई और वह पकड़ा गया. उस का नाम पलविंदर सिंह उर्फ पवन था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के अलावा 30-32 साल की एक महिला को गिरफ्तार किया गया, जिस का नाम अमृतपाल कौर था.

दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ला कर पूछताछ की गई तो पता चला कि इस तेजाब कांड की मुख्य अभियुक्ता अमृतपाल कौर थी, जो हरप्रीत सिंह की भाभी थी.

उस का हरप्रीत सिंह के भाई से तलाक हो चुका था. उसी ने अपने ससुर रंजीत सिंह और उन के घर वालों से बदला लेने के लिए हरप्रीत कौर पर तेजाब डलवाया था. अमृतपाल कौर से पूछताछ में इस तेजाब कांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह बेहद चौंकाने वाली थी.

अमृतपाल कौर उर्फ डिंपी उर्फ हनी उर्फ परी, लुधियाना के दुगड़ी के रहने वाले सोहन सिंह की बेटी थी. आधुनिक विचारों वाली अमृतपाल कौर अपनी मरजी से जिंदगी जीने में विश्वास करती थी, जिस से उस की तमाम लड़कों से दोस्ती हो गई थी. जिद्दी और झगड़ालू स्वभाव की होने की वजह से मांबाप भी उसे नहीं रोक पाए.

सन 2003 में रंजीत सिंह के बड़े बेटे तरनजीत सिंह से अमृतपाल कौर का विवाह हो गया तो वह कोलकाता आ गई थी. ससुराल आ कर जब उसे पता चला कि तरनजीत सिंह नपुंसक है तो वह सन्न रह गई. पति का साथ न मिलने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई.

इस के बाद घर में क्लेश शुरू हो गया. बातबात पर अमृतपाल कौर ससुर और पति को ताने देने लगी. धीरेधीरे वह परिवार पर हावी होती गई. शारीरिक कमजोरी और समाज में बदनामी के डर से तरनजीत सिंह ही नहीं, घर का कोई भी सदस्य उस के सामने कुछ नहीं कह पाता था.

इस क्लेश से बचने के लिए तरनजीत सिंह अमृतपाल कौर को ले कर विदेश चला गया, जहां उस ने जुड़वा बेटों अनंत और मिरर को जन्म दिया. बच्चों के जन्म के बाद दोनों कोलकाता आ गए. विदेश से लौटने के बाद घर में क्लेश कम होने के बजाए इतना बढ़ गया कि अमृतपाल कौर ने दोनों बेटों को पति को सौंप कर उस से तलाक ले लिया. इस तलाक में अमृतपाल कौर ने 70 लाख रुपए नकद और लुधियाना के दोहरा में एक प्लौट लिया था.

तलाक के बाद अमृतपाल कौर  पूरी तरह से आजाद हो गई. पैसों की उस के पास कमी नहीं थी. वह अपनी मरजी की मालिक थी. सन 2013 में उस ने एक एनआरआई अमेंदर सिंह के शादी कर ली. वह वेस्ट लंदन में रहता था. शादी के कुछ दिनों बाद वह लंदन चला गया तो अमृतपाल कौर मायके में रहने लगी. पति के विदेश जाने के बाद उस की मुलाकात पलविंदर सिंह उर्फ पवन से हुई. वह आपराधिक प्रवृति का था, जिस की वजह से उस के पिता अजीत सिंह ने उसे घर से बेदखल कर दिया था.

अमृतपाल कौर को सहारे की जरूरत थी, इसलिए उस ने उस से नजदीकियां बढ़ाईं. पलविंदर से उस के संबंध बन गए तो वह उस के इशारे पर नाचने लगा. अमृतपाल कौर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रही थी. लेकिन तलाक के बाद उस की ससुराल वालों ने चैन की सांस ली थी.

अमृतपाल कौर को पता चला कि उस के पति तरनजीत सिंह के छोटे भाई हरप्रीत सिंह की शादी बरनाला की एक खूबसूरत लड़की हरप्रीत कौर से हो रही है तो उसे जैसे सनक सी चढ़ गई कि कुछ भी हो, वह उस परिवार के किसी भी लड़के की शादी नहीं होने देगी. उस ने तुरंत अपने ससुर रंजीत सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘रंजीत सिंह, तुम कान खोल कर सुन लो, मैं तुम्हारे घर में अब कभी शहनाई नहीं बजने दूंगी.’’

रंजीत सिंह ने उस की इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया और वह बेटे की शादी की तैयारी करते रहे. अमृतपाल कौर के पास ना तो शैतानी दिमाग की कभी थी और ना ही दौलत की. उस ने अपने मन की बात पलविंदर को बता कर उस के साथ योजना बनाई गई कि कोलकाता जा कर रंजीत सिंह के परिवार का कुछ ऐसा अनिष्ट किया जाए कि शादी करने की हिम्मत न कर सके.

पर उन के लिए यह काम इतना आसान नहीं था. इसलिए अमृतपाल कौर ने विचार किया कि जिस लड़की के साथ हरप्रीत सिंह की शादी होने वाली है, अगर उस लड़की की सुंदरता खराब कर दी जाए तो शादी अपने आप रुक जाएगी. पलविंदर को भी उस का यह विचार उचित लगा. उस ने कहा कि अगर हरप्रीत कौर के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जाए तो शादी अपने आप रुक जाएगी.

इस योजना पर सहमति बन गई तो अमृतपाल कौर ने यह काम करने के लिए पलविंदर को 10 लाख रुपए दिए. पलविंदर ने अपनी इस योजना में अपने चचेरे भाई सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी को भी शामिल कर लिया. यह काम सिर्फ 2 लोगों से नहीं हो सकता था, इसलिए सन्नी ने अपने दोस्तों, राकेश कुमार प्रेमी, जसप्रीत सिंह और गुरसेवक को शामिल कर लिया. पलविंदर और सन्नी हरप्रीत कौर पर तेजाब डालने के लिए 3 बार बरनाला स्थित उस के घर गए, पर वहां मौका नहीं मिला.

इस के बाद अमृतपाल कौर ने पलविंदर को लुधियाना बुला लिया. क्योंकि उसे पता चल गया था कि 5 दिसंबर को हरप्रीत कौर का परिवार लुधियाना आ गया है. 6 दिसंबर, 2013 को पलविंदर भी अपने साथियों के साथ लुधियाना आ गया था. उस ने अपने फूफा की मारुति जेन कार यह कह कर मांग ली थी कि उसे अपने दोस्त की शादी में जाना है. इसी कार में पलविंदर ने फरजी नंबर पीबी11जेड-9090 की प्लेट लगा कर घटना को अंजाम दिया था.

पलविंदर सिंह ने तेजाब पटियाला के एक मोटर मैकेनिक अश्विनी कुमार से लिया था. अमृतपाल कौर ने अपने सूत्रों से पता कर लिया था कि हरप्रीत कौर सजने के लिए लैक्मे ब्यूटी सैलून जाएगी. इसलिए पलविंदर ने एक दिन पहले रेकी कर के हरप्रीत कौर पर तेजाब फेंक कर भागने का रास्ता देख लिया था.

अमृतपाल कौर से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने तेजाब कांड से जुड़े अन्य अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के 9 दिसंबर, 2013 को ड्यूटी मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर के सबूत जुटाने के लिए 3 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में सारे सबूत जुटा कर सभी अभियुक्तों को पुन: अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया. मुंबई के नैशनल बर्न अस्पताल में भरती हरप्रीत कौर ने 27 दिसंबर की सुबह 5 बजे दम तोड़ दिया था. तमाम पुलिस काररवाई पूरी कर के हरपाल सिंह उस की लाश विमान द्वारा मुंबई से दिल्ली और वहां से सड़क मार्ग से बरनाला ले आए थे.

पुलिस ने इस मामले में अमृतपाल कौर उर्फ परी, परविंदर सिंह उर्फ पवन, सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, राकेश कुमार प्रेमी, गुरुसेवक सिंह, अश्विनी कुमार और जसप्रीत सिंह को अभियुक्त बनाया था. इस मामले में लैक्मे ब्यूटी सैलून की ब्यूटीशियनों एवं मैनेजर संजीव गोयल सहित 38 गवाह थे. घटनास्थल से बरामद सीसीटीवी फुटेज भी अदालत में पेश की गई थी.

अभियोजन पक्ष की ओर से सीनियर पब्लिक प्रौसीक्यूटर एस.एम. हैदर ने जबरदस्त तरीके से दलीलें देते हुए माननीय जज से सभी दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की गुजारिश की थी. जबकि बचाव पक्ष के वकील ने सजा में नरमी बरतने का आग्रह किया था. लंबी सुनवाई और बहस के बाद अदालत ने 6 अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए 20 दिसंबर, 2016 को सजा की तारीख तय कर दी थी.

तय तारीख पर अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश संदीप कुमार सिंगला ने अपना फैसला सुनाया. माननीय न्यायाधीश ने अमृतपाल कौर और पलविंदर सिंह उर्फ पवन के इस कृत्य को अमानवीय मानते हुए दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

लेकिन उन्होंने इस सजा में एक शर्त यह रख दी थी कि दोनों दोषी पूरे 25 साल तक जेल में रहेंगे. इस के अलावा उन पर 9 लाख 60 हजार रुपए का जुरमाना भी लगाया था.

जुरमाने की इस राशि से 6 लाख रुपए मृतका हरप्रीत कौर के घर वालों को दिए जाएंगे. 1 लाख रुपया ब्यूटीपार्लर में घायल अमृतपाल कौर को तथा 50-50 हजार रुपए ब्यूटीपार्लर की घायल दोनों ब्यूटीशियनों को दिए जाएंगे.

इस तेजाब कांड में शामिल अन्य अभियुक्तों सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, राकेश कुमार, गुरुसेवक सिंह और जसप्रीत सिंह को भी दोषी करार देते हुए अदालत ने इन्हें उम्रकैद की सजा के साथ सवासवा लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी. अभियुक्त अश्विनी कुमार को सबूतों के अभाव में दोष मुक्त कर दिया गया था.

इन अभियुक्तों की वजह से एक बेकसूर को उस समय मौत के मुंह में जाना पड़ा, जब वह अपने जीवन के हसीन पल जीने जा रही थी. इसलिए इन्हें जो सजा मिली, शायद वह कम ही कही जाएगी.

बीच रास्ते में दुल्हन का अपहरण

40साल पहले सन 1979 में बौलीवुड की एक हौरर थ्रिलर फिल्म आई थी ‘जानी दुश्मन’. निर्देशक राजकुमार कोहली की इस फिल्म में उस जमाने के फिल्मी सितारों की पूरी फौज थी. ‘जानी दुश्मन’ में संजीव कुमार, सुनील दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र, विनोद मेहरा, अमरीश पुरी और प्रेमनाथ के अलावा 4 हीरोइनें थीं रीना राय, रेखा, नीतू सिंह और योगिता बाली.

इस सुपरहिट फिल्म में सस्पेंस भी था और भयावह दृश्य भी. कहानी के अनुसार फिल्म में ज्वाला प्रसाद का करेक्टर प्ले करने वाले रजा मुराद ने अपने सपनों की शहजादी से शादी की थी. लेकिन उस दुलहन ने सुहागरात को ही ज्वाला प्रसाद को जहर मिला दूध पिला कर उस की जान ले ली.

मृत्यु के बाद ज्वाला प्रसाद ने दैत्य का रूप धारण कर लिया. उसे लाल जोड़े में सजी दुलहनों से नफरत हो गई. वह दूसरों के शरीर में समा कर लाल जोड़े में सजी दुलहनों को डोली से उठा ले जाता था. इस फिल्म का गीत ‘चलो रे डोली उठाओ कहार पिया मिलन की ऋतु आई…’ आज भी शादियों में दुलहन की विदाई के समय बजाया जाता है.

जानी दुश्मन नाम से बाद में भी कई फिल्में बनीं. राजकुमार कोहली ने ही 2002 में ‘जानी दुश्मन: एक अनोखी कहानी’ नाम से फिल्म बनाई. इस में राज बब्बर, सनी देओल, रजत बेदी, शरद कपूर, मनीषा कोइराला, आदित्य पंचोली, अमरीश पुरी आदि कलाकार थे. लेकिन यह फिल्म 1979 वाली फिल्म जैसी कामयाबी हासिल नहीं कर सकी.

फिल्म ‘जानी दुश्मन’ का जिक्र हम ने इसलिए किया क्योंकि इस कहानी का घटनाक्रम भी काफी कुछ ऐसा ही है. दुलहन को डोली से उठा ले जाने की यह कहानी राजस्थान के सीकर जिले की है.

बीते 16-17 अप्रैल की आधी रात के बाद सात फेरे लेने के बाद ढाई पौने 3 बजे नागवा गांव में गिरधारी सिंह के घर से 2 बेटियों की बारातें विदा हुईं. ये बारातें मोरडूंगा गांव से आई थीं. मोरडूंगा निवासी भंवर सिंह की शादी गिरधारी सिंह की बड़ी बेटी सोनू कंवर से हुई थी और राजेंद्र सिंह की शादी छोटी बेटी हंसा कंवर से.

दोनों दुलहनें और उन के दूल्हे एक सजीधजी इनोवा कार में सवार थे. कार में दूल्हों के रिश्तेदार कृष्ण सिंह, शानू और दुलहन का भाई करण सिंह भी थे. ये लोग धोद हो कर मोरडूंगा जा रहे थे. बारात में आए अन्य रिश्तेदार और गांव के लोग पहले ही दूसरे वाहनों से जा चुके थे. केवल दूल्हादुलहन और उन के 3 रिश्तेदार ही वैवाहिक रस्में पूरी कराने के लिए रुके रहे थे.

दूल्हादुलहन विदा हो कर नागवा गांव से करीब 4 किलोमीटर दूर ही आए थे, तभी रामबक्सपुरा स्टैंड के पास एक बोलेरो और पिकअप में आए बदमाशों ने अपनी गाडि़यां दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार के आगेपीछे लगा दीं. इनोवा में सवार दोनों दूल्हे और उन के रिश्तेदार कुछ समझ पाते, इस से पहले ही बोलेरो और पिकअप से 7-8 लोग लाठीसरिए ले कर उतरे. इन्होंने इनोवा कार को घेर कर तोड़फोड़ शुरू कर दी.

कार से दुलहन का अपहरण

मायके से विदा होने पर जैसा कि होता है दोनों बहनें घूंघट में सुबक रही थीं. उन्होंने तोड़फोड़ की आवाज सुन कर अपने चेहरे से घूंघट उठाया, लेकिन अंधेरा होने की वजह से उन्हें कुछ समझ में नहीं आया. इनोवा कार के अंदर जल रही मद्धिम रोशनी में बाहर कुछ नजर नहीं आ रहा था. तोड़फोड़ होती देख दोनों दुलहन बहनें सहम कर अपनेअपने दूल्हों के हाथ पकड़ कर बैठ गईं.

इनोवा के शीशे तोड़ने के बाद हमलावरों में से एक बदमाश ने पिस्तौल निकाल कर हवा में लहराते हुए कहा, ‘‘कोई भी हरकत की तो गोली मार देंगे.’’ इस के बाद वे कार में बैठे पुरुषों से मारपीट करने लगे. दोनों दूल्हों भंवर सिंह और राजेंद्र सिंह ने बदमाशों से मुकाबला करने की कोशिश की, लेकिन हथियारबंद बदमाशों के आगे उन के हौसले पस्त हो गए.

इस बीच एक बदमाश ने इनोवा का दरवाजा खोल कर दुलहन हंसा कंवर को बाहर खींच लिया. हंसा चीखनेचिल्लाने लगी. यह देख हंसा की बहन सोनू ने बदमाशों से उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन वह उन से मुकाबला नहीं कर सकी. बदमाशों ने नईनवेली दुलहन सोनू कंवर से भी मारपीट की.

दूल्हों के रिश्तेदार मौसेरे भाई करण सिंह ने मोबाइल निकाल कर फोन करने की कोशिश की तो बदमाशों ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. बदमाशों ने हंसा कंवर को अपनी गाड़ी में बैठाया और दूल्हों व दुलहन सोनू कंवर के साथ उन के रिश्तेदारों को पिस्तौल दिखा कर धमकी दी. बदमाशों ने इनोवा कार की चाबी भी निकाल ली थी. इस के बाद बदमाश अपनी दोनों गाडि़यां दौड़ाते हुए वहां से चले गए.

यह सब मुश्किल से 10 मिनट के अंदर हो गया. बदमाशों के जाने के बाद दूल्हों ने मोबाइल फोन से नागवा गांव में अपनी ससुराल वालों को सूचना दी. कुछ ही देर में नागवा के कई लोग मोटरसाइकिलों पर वहां पहुंच गए. पुलिस को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर बाद धोद थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने आसपास के इलाके में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का कोई पता नहीं चला.

दुलहन को डोली से उठा ले जाने की खबर कुछ ही घंटों में आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जिस ने भी इस वारदात के बारे में सुना, सहम गया. ससुराल पहुंचने से पहले ही दुलहन को डोली से उठा ले जाने की ऐसी वारदात किसी ने न तो देखी थी और न सुनी थी. अलबत्ता लोगों ने फिल्मों में ऐसी घटनाएं जरूर देखी थीं.

इस घटना को ले कर 17 अप्रैल को सुबह से ही राजपूत समाज के लोगों में आक्रोश छा गया. नागवा गांव के कृष्ण सिंह ने धोद पुलिस थाने में अपने ही गांव के अंकित सेवदा और भड़कासली गांव के रहने वाले मुकेश रेवाड़ को नामजद करते हुए 5-6 अन्य लोगों के खिलाफ हंसा कंवर के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में कहा गया कि हंसा कंवर ने करीब 5 लाख रुपए के गहने पहन रखे थे, साथ ही उस के पास कन्यादान के 20 हजार रुपए नकद भी थे. आरोपी हंसा कंवर के साथ उस के गहने और नकदी भी ले गए. डोली से दुलहन को उठा ले जाने का मामला गंभीर था. पुलिस ने नामजद आरोपियों के परिजनों से पूछताछ की. उन से कुछ जानकारियां मिलने पर पुलिस ने 2 टीमें बना कर जयपुर और गाजियाबाद के लिए रवाना कर दीं.

पूरा राजपूत समाज एक साथ खड़ा हो गया

पुलिस की टीमें अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गईं. मुख्य आरोपी चूंकि नागवा गांव का था, इसलिए गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया गया ताकि कोई अनहोनी न हो. इस बीच यह मामला सीकर से ले कर जयपुर तक गरमा गया. दुलहन के अपहरण की सूचना मिलने पर उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा सीकर के राजपूत छात्रावास आ गए. वहां राजपूत समाज के प्रमुख लोगों की बैठक हुई.

इस के बाद लोगों ने सीकर कलेक्टर सी.आर. मीणा को ज्ञापन दे कर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुलहन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी का अल्टीमेटम दे कर कहा कि अगर काररवाई नहीं हुई तो पूरा राजपूत समाज कलेक्ट्रैट के सामने धरने पर बैठ जाएगा. साथ ही लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा.

बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने सीकर में कलेक्टर और एसपी के बंगले के सामने प्रदर्शन किया. लोगों ने कहा कि 18 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस आरोपियों का पता नहीं लगा सकी है.

प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर जाम लगा कर नारेबाजी की. इस दौरान उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने पैट्रोल छिड़क कर आत्मदाह करने का प्रयास किया. लेकिन समाज के लोगों ने विधायक को बचा लिया.

सूचना मिलने पर डीएसपी सौरभ तिवाड़ी, कोतवाल श्रीचंद सिंह और उद्योग नगर थानाप्रभारी वीरेंद्र शर्मा मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने विधायक को समझाया. राजपूत समाज के लोगों ने सीकर कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन की शर्त पुलिस को भी बता दी कि अगर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुलहन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई तो कलेक्ट्रैट के बाहर धरनाप्रदर्शन किया जाएगा. पुलिस अधिकारियों के समझाने के बाद लोगों ने जाम हटाया और प्रदर्शन समाप्त कर दिया.

दुलहन के अपहरण का मामला तूल पकड़ता जा रहा था. लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के दौरान हुई इस वारदात ने पुलिस के सामने चुनौती खड़ी कर दी थी. पुलिस के लिए चिंता की बात यह थी कि पूरा राजपूत समाज इस घटना को ले कर लामबंद होने लगा था.

पुलिस के सामने एक समस्या यह भी थी कि दुलहन के अपरहण का कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहा था. इस तरह की वारदात किसी पुरानी रंजिश, लूट, दुष्कर्म या प्रेम प्रसंग के लिए की जाती हैं.

लेकिन इस मामले में स्पष्ट रूप से ऐसा कारण उभर कर सामने नहीं आ रहा था. पुलिस को जांचपड़ताल में इतना जरूर पता चला कि आरोपी अंकित सेवदा और दुलहन हंसा कंवर के परिवार के खेत आसपास हैं. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग जैसा कोई सबूत सामने नहीं आया.

वारदात का तरीका भयावह था. पुलिस ने कई जगह दबिश दे कर 2-4 लोगों को हिरासत में लिया. दरजनों लोगों से पूछताछ की गई. इस के अलावा आरोपी अंकित सेवदा के मोबाइल नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया गया.

18 अप्रैल को सीकर में सुबह से ही भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. अपहृत दुलहन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने से नाराज राजपूत समाज के लोगों ने सुबह 10 बजे सड़क पर जाम लगा दिया और नारेबाजी करते हुए कलेक्टर के बंगले के बाहर एकत्र हो गए.

सुबह से शाम तक करीब 7 घंटे प्रदर्शन जारी रहा. प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे राजपूत समाज के नेता पहले बैरीकेड्स पर चढ़ कर अपनी मांग करते रहे. बाद में वे जेसीबी मशीन पर चढ़ कर लोगों को संबोधित करने लगे. एकत्र लोग सड़क पर बैठ गए. एडीएम जयप्रकाश और एडीशनल एसपी देवेंद्र शास्त्री व तेजपाल सिंह ने उन्हें समझायाबुझाया.

इस दौरान जिला प्रशासन और पुलिस ने राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बात कर के आरोपियों को पकड़ने और दुलहन को बरामद करने के लिए 3 दिन का समय मांगा.

प्रदर्शन में उदयपुरवाटी के विधायक

राजेंद्र गुढ़ा, राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत समाज के अनेक गणमान्य लोग शामिल रहे.

हालात पर नजर रखने के लिए जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर पहुंच गए थे. वे रानोली थाने में बैठ कर प्रदर्शनकारियों की गतिविधियों पर नजर रखते रहे. बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने राजपूत छात्रावास के पास टेंट लगा कर धरना देना शुरू कर दिया.

पुलिस पूरी कोशिश में जुटी थी

राजपूत समाज के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने दुलहन की बरामदगी के प्रयास तेज कर दिए. पुलिस की 5 टीमें 3 राज्यों में भेजी गईं. इस बीच पुलिस ने दुलहन का अपहरण करने के मामले में एक नामजद आरोपी भड़कासली निवासी मुकेश जाट के अलावा नेतड़वास के महेंद्र सिंह जाट, दुगोली निवासी राजेश बगडि़या उर्फ धौलिया और भड़कासली निवासी अशोक रेवाड़ को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में पता चला कि दुलहन का अपहरण करने के बाद वे लोग अंकित और उस के साथियों से अलग हो गए थे. ये चारों धोद में छिपे थे. पुलिस ने इन से मुख्य आरोपी अंकित सेवदा के छिपने के संभावित ठिकानों के बारे में पूछताछ की. इसी के आधार पर पुलिस की टीमें विभिन्न स्थानों पर भेजी गईं.
19 अप्रैल को भी पुलिस अपहृत दुलहन की बरामदगी और आरोपियों को पकड़ने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर राजपूत समाज के आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए. सीकर शहर के सभी प्रवेश मार्गों पर सशस्त्र पुलिस तैनात की गई.

पुलिस को जांचपड़ताल में यह बात साफ हो गई थी कि दुलहन हंसा कंवर के अपहरण की साजिश उसी के गांव नागवा के अंकित ने रची थी. उस ने हंसा और उस की बड़ी बहन की शादी के दिन 16 अप्रैल की शाम अपने दोस्तों मुकेश रेवाड़, विकास भामू, महेंद्र फौजी, राजेश व अशोक आदि को तलाई पर बुलाया था. वहां उस ने सभी दोस्तों को शराब पिलाई.

योजनानुसार अंकित ने अपने एक साथी को गिरधारी सिंह के घर के बाहर बैठा दिया था. वह मोबाइल पर अंकित को शादी के हर कार्यक्रम की जानकारी दे रहा था. फेरे लेने के बाद रात ढाई पौने 3 बजे जैसे ही सोनू कंवर और हंसा कंवर अपने दूल्हों के साथ घर से विदा हुईं तो अंकित के साथी ने मोबाइल पर उसे यह खबर दे दी.

इस के बाद तलाई पर बैठे अंकित और उस के दोस्तों ने बोलेरो और पिकअप से दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार का पीछा किया. रामबक्स स्टैंड पर इन लोगों ने उन की इनोवा को आगेपीछा गाड़ी लगा कर घेर लिया गया. अंकित ने हंसा को बाहर निकाला और वे सभी साथी बोलेरो में उस का अपहरण कर ले गए.

जांच में पुलिस को पता चला कि हंसा का अपहरण करने के बाद अंकित के दोस्त रास्ते में उतरते गए. अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू हंसा को साथ ले कर नागौर जिले के जायल गांव गए. वहां से वे छोटी खाटू पहुंचे. फिर उन्होंने एक व्यक्ति से हिमाचल प्रदेश जाने के लिए इनोवा गाड़ी किराए पर मांगी.
लेकिन उस दिन ज्यादा शादियां होने के कारण इनोवा नहीं मिली. इस के बाद हंसा कंवर को साथ ले कर अंकित और विकास भामू छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर चले गए. महेंद्र फौजी बोलेरो ले कर नागवा आ गया था.

पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार चारों आरोपियों मुकेश रेवाड़, महेंद्र सिंह, राजेश बगडि़या और अशोक रेवाड़ को अदालत में पेश कर 5 दिन के रिमांड पर लिया.

बिना लड़े आमनेसामने थे राजपूत समाज के नेता और पुलिस

दुलहन के अपहरण की घटना को ले कर राजपूत समाज तीसरे दिन भी आंदोलित रहा. कलेक्टर के बंगले के सामने लगातार दूसरे दिन भी राजपूत समाज के लोग धरना देते रहे. समाज के नेताओं ने कहा कि धरना आरपार की लड़ाई तक जारी रहेगा.

विधायक राजेंद्र गुढ़ा के अलावा राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत महासभा व करणी सेना के तमाम नेता धरने पर बैठे रहे. उधर दुलहन के अपहरण को ले कर नागवा गांव और उस की ससुराल मोरडूंगा में दोनों परिवारों में घटना के बाद से ही सन्नाटा पसरा रहा. दोनों परिवारों की शादियों की खुशियां काफूर हो गई थीं. नागवा में दुलहन के घर 4 दिनों से चूल्हा नहीं जला था. दुलहन की मां बारबार बेहोश हो जाती थी.

पूरे परिवार का रोरो कर बुरा हाल हो गया. दुलहन के पिता गिरधारी सिंह ने संदेह जताया कि आरोपी उस की बेटी की हत्या कर सकते हैं. अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारियों ने नागवा में पीडि़त परिवार से मुलाकात कर उन्हें ढांढस बंधाया और दोषियों को सख्त सजा दिलाने का भरोसा दिया.

इस बीच एक हिस्ट्रीशीटर कुलदीप झाझड़ ने दुलहन के अपहरण के मामले में एक वीडियो जारी कर प्रशासन को धमकी दे डाली. कई आपराधिक मामलों में फरार कुलदीप ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में लापरवाही बरती है. अगर पुलिस आरोपियों को नहीं पकड़ सकती तो वह खुद उन्हें तलाश कर गोली मार देगा. उस के कई साथी आरोपियों की तलाश कर रहे हैं.

राजपूत समाज के आक्रोश को देखते हुए कानूनव्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन ने 20 अप्रैल को सीकर में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं. हालांकि इस की सूचना मीडिया के माध्यम से पुलिस व प्रशासन ने एक दिन पहले ही दे दी थी. शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन के अधिकारी राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बराबर संपर्क में रहे.

इंटरनेट बंद होने से दिन भर बवाल मचता रहा. पुलिस ने राजपूत छात्रावास की बिजली बंद करा दी. इस से माइक बंद हो गया तो राजपूत युवा भड़क गए. इस के बाद विधायक गुढ़ा ने कलेक्टर आवास में घुस कर वहां कब्जा करने की चेतावनी दे दी. इस से पुलिस के हाथपैर फूल गए.

पुलिस ने वहां घेराबंदी कर बड़ी तादाद में सशस्त्र बल तैनात कर दिया. इस बीच विधायक गुढ़ा युवाओं के साथ मौन जुलूस निकालने लगे तो पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सख्ती से रोक दिया. दिन भर आंदोलनकारी और पुलिस आमनेसामने होते रहे.

आईजी एस. सेंगाथिर ने मोर्चा संभाल कर प्रदर्शनकारियों को बताया कि जयपुर से एटीएस और एसओजी सहित 11 टीमें जांच में जुटी हुई हैं. पुलिस अपराधियों के निकट पहुंच चुकी है और जल्द से जल्द हंसा कंवर को बरामद कर लिया जाएगा.

चौथे दिन 20 अप्रैल की शाम तक यह सूचना सीकर पहुंच गई कि पुलिस ने देहरादून से दुलहन हंसा कंवर को बरामद कर लिया है और 2 आरोपी पकड़े गए हैं. इस के बाद राजपूत समाज ने आंदोलन समाप्त करने की घोषणा कर दी.

दुलहन हंसा को देहरादून से बरामद करने की कहानी बड़ी रोचक है. हंसा का अपहरण कर अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू जायल हो कर छोटी खाटू पहुंचे. वहां वे आरिफ से मिले. आरिफ किराए पर गाडि़यां चलाता है.

अंकित ने आरिफ से देहरादून जाने के लिए किराए की गाड़ी मांगी, लेकिन उस समय उस की सभी गाडि़यां शादियों की बुकिंग में गई हुई थीं. आरिफ ने अंकित को शादी के रजिस्ट्रेशन के बारे में बताया था. पुलिस को आरिफ से ही यह सुराग मिला कि अंकित दुलहन हंसा को ले कर देहरादून जा सकता है.

अंकित अपने दोस्त विकास भामू और दुलहन हंसा के साथ छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर पहुंचा और जयपुर से सीधे देहरादून चला गया. देहरादून में ये लोग एक गेस्टहाउस में रुके. ये लोग गेस्टहाउस पर बाहर से ताला लगवा देते थे.

जानकारी मिलने पर सीकर से सबइंसपेक्टर सवाई सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम देहरादून पहुंच गई. पुलिस दोनों आरोपियों और दुलहन हंसा की फोटो ले कर होटल और गेस्टहाउसों में तलाश कर रही थी. 19 अप्रैल को पुलिस उस गेस्टहाउस पर भी पहुंची, जहां अंकित और विकास ने हंसा को ठहरा रखा था, लेकिन वहां बाहर ताला लगा देख कर पुलिस लौट गई.

कैसे पता लगा हंसा कंवर का

इस बीच पुलिस टीम ने हाथों में मेहंदी लगी लड़की के दिखाई देने पर सूचना देने की बात कह कर काफी लोगों को अपने मोबाइल नंबर दिए. 20 अप्रैल को एक वकील ने पुलिस टीम को फोन कर बताया कि एक युवती के हाथों में मेहंदी लगी हुई है और उस के साथ 2 युवक हैं.

पुलिस टीम ने वाट्सऐप पर वकील को दुलहन और आरोपियों की फोटो भेजी, तो कंफर्म हो गया कि हंसा उन्हीं युवकों के साथ है. वकील ने बताया कि ये लोग कोर्ट के पास हैं और एक वकील उन की शादी के कागजात बनवाने गया है.

सीकर से गई पुलिस टीम ने एक मिनट की देरी करना भी उचित नहीं समझा. वे गाड़ी ले कर पूछते हुए कोर्ट की तरफ भाग लिए. लेकिन रास्ते में निकलती एक शोभायात्रा की वजह से सीकर पुलिस की गाड़ी जाम में फंस गई. इस पर पुलिसकर्मी मोटरसाइकिलों पर लिफ्ट ले कर कोर्ट के पास पहुंचे.

वहां सादे कपड़ों में गए पुलिसकर्मियों ने अंकित और उस के साथी विकास भामू को फोटो से पहचान कर दबोच लिया. दुलहन हंसा कंवर भी वहीं मिल गई. इस पर देहरादून के वकील एकत्र हो कर सीकर पुलिस से बहस करने लगे. हाथ में आई बाजी पलटती देख सबइंसपेक्टर सवाई सिंह ने जयपुर आईजी सेंगाथिर को फोन पर सारी बात बताई. जयपुर आईजी ने राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) बी.एल. सोनी से बात की. सोनी ने देहरादून के पुलिस अधिकारियों से फोन कर बात कर पूरी घटना बता दी.

इस के करीब डेढ़ घंटे बाद देहरादून पुलिस वहां पहुंची. देहरादून पुलिस ने वकीलों को दुलहन हंसा के अपहरण की घटना के बारे में बताया. इस के बाद सीकर पुलिस हंसा और दोनों आरोपियों को कोर्ट से बाहर ले आई.

देहरादून से 20 अप्रैल की रात को पुलिस दल तीनों को ले कर सीकर के लिए रवाना हुआ. पुलिस को आरोपियों पर हमले या दुलहन के दोबारा अपहरण की आशंका थी इसलिए कई रास्ते बदल कर और कई जगह एस्कार्ट ले कर पुलिस टीम 21 अप्रैल को उन्हें ले कर सीकर पहुंची.

सीकर में पुलिस ने दुलहन हंसा कंवर से पूछताछ के आधार पर अंकित सेवदा और उस के दोस्त विकास भामू को गिरफ्तार कर लिया. दुलहन हंसा कंवर ने पुलिस और मजिस्ट्रैट को दिए बयान में मां के साथ बुआ के घर जाने की इच्छा जताई.

इस के बाद हंसा को उस के घर वालों को सौंप दिया. हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथी उस का अपहरण कर ले गए थे. अंकित देहरादून में उस से जबरन शादी करना चाहता था. इसीलिए वह कोर्ट पहुंचा था और वकील के माध्यम से कागजात तैयार करवा रहा था. पुलिस ने 22 अप्रैल को आरोपी अंकित और विकास का मैडिकल कराया. इस के बाद दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

सच्चाई नहीं आई सामने

बरामद दुलहन हंसा ने प्रारंभिक बयानों में अंकित और उस के साथियों पर जबरन अपहरण कर ले जाने का आरोप लगाया है. गिरफ्तार हुए मुख्य आरोपी अंकित सेवदा ने भी पुलिस को हंसा के अपहरण का स्पष्ट कारण नहीं बताया.

पुलिस की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि हंसा और अंकित एक ही गांव के हैं और उन के खेत भी आसपास हैं. गांव के नाते अंकित पहले से ही हंसा को जानता था. अंकित मन ही मन हंसा से प्यार करता था. यह उस का एकतरफा प्यार था. न तो उस ने कभी हंसा से यह बात कही और न ही हंसा ने कभी इस बारे में सोचा. अंकित जबरन उस से शादी करना चाहता था.

एक कारण और सामने आया. इस में अंकित के विदेश में रहने वाले दोस्त गंगाधर से बातचीत के दो औडियो वायरल हो रहे हैं. इस में कहा गया है कि अंकित का हंसा के परिवार से कुछ समय पहले झगड़ा हुआ था. इसलिए अंकित बदला लेना चाहता था. बदला लेने के लिए उस ने हंसा का अपहरण करने की योजना बनाई.

अंकित का मकसद लूट का भी हो सकता है, क्योंकि हंसा या अंकित के पास से पुलिस को कोई भी जेवर या नकदी नहीं मिले हैं. पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक हंसा ने शादी में विदाई के समय 5 लाख रुपए के जेवर पहन रखे थे. उस के पास 20 हजार रुपए नकद भी थे.

हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथियों ने उस के जेवर व रुपए ले लिए थे. पुलिस के सामने भी यह बात आई है कि अपहरण में शामिल अंकित के दोस्तों ने हंसा के जेवर बेच दिए.

पुलिस इन गहनों को खरीदने वालों की तलाश कर उन्हें बरामद करने का प्रयास कर रही है. कथा लिखे जाने तक पुलिस सभी कडि़यों को जोड़ कर हंसा के अपहरण के असली मकसद का पता लगाने में जुटी थी.

चाहे पुलिस हो, चाहे हंसा के परिवार वाले या फिर अंकित सेवदा, इस मामले का सच अभी तक सामने नहीं आया है. आएगा ऐसा भी नहीं लगता. अगर आम आदमी की तरह सोचें तो एक इज्जतदार परिवार और उस परिवार की लड़की के लिए ऐसे किसी भी सच का सामने आना ठीक नहीं है, जो उन्हें प्रभावित करे.
हां, यह जरूर कह सकते हैं कि अंकित ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर जो किया, वह बड़ा अपराध तो है ही.

इसी बीच जाट समुदाय के लोगों ने गिरफ्तार किए गए लड़कों को छोड़ने और अपहरण की सच्चाई को सामने लाने के लिए 25 अप्रैल को कलक्टे्रट पर धारना दिया.

‘स्पेशल 26’ की तर्ज पर बने फर्जी आयकर अफसर

Crime News in Hindi: मध्य प्रदेश के इंदौर (Indore) की एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र से एक युवक मिलने पहुंचा. उस ने अपना नाम शुभम साहू और पता राजनगर एक्सटेंशन (Rajnagar Extension) का बताया. युवक ने झिझकते हुए एसएसपी से कहा, ‘‘मैडम, मैं परेशान हूं. आप को एक महत्त्वपूर्ण सूचना देना चाहता हूं.’’ एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र ने युवक को सामने रखी कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘शुभम, तुम क्या बताना चाहते हो, खुल कर बताओ. हम से जो मदद हो सकेगी, करेंगे.’ ‘‘मैडम, बात दरअसल यह है कि कुछ लोग फरजी आयकर अफसर (Income Tax Officer) बन कर लोगों को नौकरी दिलाने के नाम पर बेवकूफ बना रहे हैं. इस के एवज में वे मोटी रकम लेते हैं.’’ शुभम ने डरतेडरते बताया. ‘‘तुम्हें यह बात कैसे पता चली कि वे फरजी तरीके से आयकर विभाग में नौकरी लगवा रहे हैं.’’ एसएसपी ने सवाल किया.

एसएसपी के सवाल पर शुभम चुप हो गया. इस पर एसएसपी ने उसे भरोसा दिलाते हुए पूछा, ‘‘वे कौन लोग हैं और कहां रहते हैं.’’

‘‘मैडम, मैं जौब की तलाश में था. इस बीच मेरे दोस्त पवन सोलंकी ने एक दिन मेरी मुलाकात देवेंद्र डाबर से करवाई.’’ शुभम ने धीरेधीरे कहा, ‘‘देवेंद्र डाबर ने खुद को इनकम टैक्स का चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर बताया था.’’

आयकर विभाग के चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर की बात सुन कर इस मामले में एसएसपी की भी दिलचस्पी बढ़ गई. उन्होंने अर्दली से कह कर शुभम के लिए पानी मंगवाया. शुभम ने पानी पी लिया तो एसएसपी ने उस से कहा, ‘‘देवेंद्र डाबर से मुलाकात में आप की क्या बात हुई?’’

एसएसपी के प्यार भरे व्यवहार से शुभम की झिझक कम हो गई थी. उस ने कहा, ‘‘मैडम, देवेंद्र का शानदार औफिस है. उस के पास खाकी वरदीधारी चपरासी, ड्राइवर, सरकारी गाड़ी और कई लोगों का स्टाफ है.’’

‘‘अरे वाह, इतना सारा स्टाफ, सरकारी गाड़ी वगैरह सब कुछ है.’’ एससपी ने शुभम की बातों पर शंका जताते हुए कहा, ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसे तुम फरजी आयकर अफसर बता रहे हो, वह वास्तव में ही सरकारी अफसर हो?’’

‘‘नहीं मैडम, देवेंद्र डाबर पूरी तरह फरजी है.’’ शुभम ने अपनी बात मजबूती से रखते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस से जौब के बारे में कहा, तो उस ने मेरी 10वीं और 12वीं की मार्कशीट तथा 4 पासपोर्ट साइज की फोटो ले लीं. देवेंद्र ने मुझे फील्ड अफसर की नौकरी देने की बात कही थी.

‘‘मैं नौकरी करने लगा. कई महीने नौकरी करने के बाद भी मुझे वेतन नहीं मिला. मैं ने देवेंद्र से इस बारे में कई बार कहा तो उस ने भारत सरकार से बजट नहीं आने की बात कही.’’ शुभम ने बताया, ‘‘वेतन नहीं मिलने से मैं परेशान हो गया. फिर मैं ने अपने स्तर पर जानकारी जुटाई, तो पता चला कि देवेंद्र ने इसी तरह आयकर विभाग में नौकरी देने के नाम पर कई लोगों से लाखों रुपए ले रखे हैं.’’

शुभम की सारी बातें सुनने के बाद एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र कुछ देर सोचती रहीं. फिर उन्होंने शुभम से लिखित में एक शिकायत देने को कहा. इसी के साथ उन्होंने देवेंद्र के औफिस और कामकाज के बारे में सवाल कर शुभम से कई जानकारियां लीं.

एसएसपी ने ये जानकारियां अपनी डायरी में नोट कर लीं. फिर शुभम को आश्वस्त किया कि हम इस मामले की जांच कराएंगे. अगर देवेंद्र डाबर फरजी आयकर अफसर बन कर लोगों से इस तरह की धोखाधड़ी कर रहा है तो उस पर काररवाई जरूर की जाएगी. एसएसपी को लिखित शिकायत दे कर शुभम वहां से चला आया.

शुभम के जाने के बाद एसएसपी ने पूरे मामले पर गंभीरता से विचार किया. फिर एएसपी अमरेंद्र सिंह को देवेंद्र डाबर के बारे में बता कर सूचनाएं जुटाने को कहा.

एएसपी अमरेंद्र सिंह ने थाना राजेंद्र नगर के टीआई सुनील शर्मा को इस मामले की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी. टीआई ने अपने सहयोगियों के साथ कई दिनों तक जांचपड़ताल कर देवेंद्र डाबर के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटा लीं.

देवेंद्र के संबंध में जुटाई जानकारियां जब एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र तक पहुंचीं तो वे भी चौंकी. उन्होंने एएसपी अमरेंद्र सिंह को देवेंद्र डाबर के कार्यालय पर तुरंत छापा मारने को कहा.

पुलिस टीम ने 23 अप्रैल को इंदौर शहर के सिलिकौन सिटी में एक मकान पर छापा मारा. इस मकान को आयकर विभाग का कार्यालय बनाया हुआ था. मकान के बाहर सफेद रंग की एक सफारी गाड़ी खड़ी थी. गाड़ी पर भारत सरकार के लोगो सहित आयकर विभाग की प्लेट लगी हुई थी.

पुलिस अधिकारियों ने वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की. लोगों ने पुलिस अधिकारियों को अपने अधिकारी देवेंद्र डाबर से मिलवा दिया. देवेंद्र डाबर अपने शानदार औफिस में बैठा था. बाहर चपरासी खड़ा था. उस के कमरे के बाहर चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर की नेमप्लेट लगी हुई थी.

अधिकारियों ने पूछताछ की तो देवेंद्र ने खुद को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड यानी सीबीडीटी के इंटेलिजेंस ऐंड क्रिमिनल इनवैस्टीगेशन डिपार्टमेंट का चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर बताया. उस ने पुलिस टीम को अपना पहचानपत्र भी दिखाया. पुलिस ने उस से सवालजवाब किए तो उस का फरजीवाड़ा सामने आ गया. न तो वह ठीक ढंग से अंगरेजी में बात कर सका और न ही सीबीडीटी या आयकर विभाग के बारे में गहराई की बातें बता सका.

देवेंद्र डाबर से पूछताछ में उस का फरजीवाड़ा सामने आ गया. फिर भी पुलिस अधिकारियों ने सावधानी के तौर पर आयकर विभाग के कार्यालय में फोन कर यह जानना चाहा कि देवेंद्र डाबर नाम का कोई अधिकारी विभाग में कार्यरत है या नहीं. पता चला कि विभाग में न तो इस नाम का कोई अधिकारी है और न ही विभाग में इस तरह की कोई पोस्ट है.

पुलिस ने देवेंद्र डाबर के अलावा वहां काम कर रहे 4 अन्य कर्मचारियों सुनील मंडलोई, रवि सोलंकी, दुर्गेश गहलोत और सतीश गावड़े को गिरफ्तार कर लिया.

कई घंटे की जांचपड़ताल और तलाशी के बाद वहां से लैपटाप, प्रिंटर, सफारी गाड़ी, एयरगन, भारत सरकार लिखी आईडी, आयकर विभाग की फरजी सील, सिक्के, नियुक्ति पत्र, आदेश पत्र, बड़ी संख्या में गोपनीय लिखे रजिस्टर, दस्तावेज, खाकी वर्दियां, भारत सरकार लिखी नेम प्लेट आदि जब्त की गईं.

पुलिस ने गिरफ्तार पांचों आरोपियों से अलगअलग पूछताछ की. इस में पता चला कि केवल 12वीं पास देवेंद्र डाबर चर्चित फिल्म ‘स्पैशल-26’ की तर्ज पर 5 साल से आयकर विभाग का फरजी कार्यालय चला रहा था. देवेंद्र ही इस गिरोह का सरगना था. सुनील मंडलोई उस का दोस्त है. वह बीई की तैयारी कर रहा था. देवेंद्र ने सुनील को सीनियर फील्ड औफिसर बना रखा था.

लोगों को आयकर विभाग में नौकरी दिलाने के नाम पर देवेंद्र के कहने पर वह भी पैसे लेता था. रवि सोलंकी देवेंद्र का रिश्तेदार निकला. उसे देवेंद्र ने सीनियर इनवैस्टीगेशन औफिसर बना रखा था. वह कार्यालय के अन्य कर्मचारियों की ओर से व्यापारियों और आयकर चोरों से संबंधित तैयार रिपोर्ट को सत्यापित कर उन की फाइलों पर हस्ताक्षर करता था.

दुर्गेश गहलोत देवेंद्र का पीए था. उस के पास कार्यालय का अधिकांश रिकौर्ड रहता था. कर्मचारियों के हाजिरी रजिस्टर भी वही रखता था.

सतीश गावड़े देवेंद्र का वाहन चालक और पर्सनल गनमैन था. वह एयरगन रखता था और देवेंद्र डाबर को आयकर विभाग का चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर बताता था.

देवेंद्र और अन्य गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में फिल्म ‘स्पैशल-26’ की तर्ज पर आयकर विभाग की फरजी टीम बनाने की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

लरूप से कुक्षी धार और फिलहाल इंदौर में भील कालोनी मूसाखेड़ी के रहने वाले देवेंद्र डाबर के पिता माधव लाल सरकारी नौकरी से रिटायर्ड क्लर्क हैं. देवेंद्र ने 12वीं पास करने के बाद नौकरी के लिए भागदौड़ शुरू की. लेकिन अधिकांश जगह उसे निराशा मिली. इस का कारण यह था कि वह केवल 12वीं पास था. उसे कंप्यूटर का अच्छा ज्ञान जरूर था, लेकिन केवल कंप्यूटर के ज्ञान के आधार पर उसे अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी नहीं मिल सकती थी.

देवेंद्र भले ही ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन उस के सपने बड़े थे. वह अफसरों की तरह रुतबे और शानोशौकत से रहना चाहता था. यह उस के लिए किसी भी तरह से संभव नहीं था. इसी दौरान एक बार उस ने अखबारों में आयकर विभाग का एक विज्ञापन पढ़ा. इस विज्ञापन में बताया गया था कि बेनामी संपत्ति की जानकारी देने पर आयकर विभाग 10 प्रतिशत कमीशन देता है.

यह सूचना पढ़ने के बाद देवेंद्र के दिमाग में आयकर विभाग के जरिए पैसा कमाने का विचार आया. यह संयोग रहा कि उसी दौरान एक दिन देवेंद्र ने अक्षय कुमार और अनुपम खेर अभिनीत फिल्म ‘स्पैशल-26’ देखी. यह फिल्म देख कर उस ने आयकर विभाग के समानांतर अपनी टीम खड़ी करने का फैसला कर लिया.

देवेंद्र ने सब से पहले इंटरनेट के माध्यम से आयकर विभाग के सेटअप और पूरी कार्यप्रणाली को समझा. इस के बाद आयकर विभाग के अधिकारियों के पदनाम, विभाग की अलगअलग विंग और उन के काम करने के तरीकों की जानकारी जुटाई.

उस ने आयकर विभाग के पत्राचार के तरीके भी समझ लिए. अखबारों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया पर आयकर विभाग के छापे और सर्वे से संबंधित रोजाना आने वाली खबरों को वह ध्यान से देखने लगा.
आयकर विभाग में किसकिस तरह के टैक्स वसूले जाते हैं और किन लोगों से वसूले जाते हैं, ये बातें जानने और समझाने के लिए उस ने बाजार से आयकर संबंधी किताबें खरीद कर पढ़ीं. आयकर रिटर्न के बारे में भी देवेंद्र ने जानकारी हासिल की.

इस के बाद देवेंद्र ने सब से पहले आयकर विभाग का परिचयपत्र बनाया, जिस में उस ने खुद को चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर दर्शाया. उस ने भारत सरकार के वाटर मार्क वाले लोगो के लेटरपैड भी तैयार करवा लिए.

सन 2014 में उस ने इंदौर के मूसाखेड़ी में आयकर विभाग का अपना कार्यालय बनाया. इसी के साथ उस ने अपने कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच खुद को आयकर विभाग का अफसर बता कर उन्हें नौकरी दे दी. देवेंद्र ने इन लोगों को अलगअलग पदनाम दे कर जिम्मेदारियां सौंप दीं. फिर इन्हीं रिश्तेदारों और दोस्तों के माध्यम से वह बेरोजगार युवाओं को आयकर विभाग में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगने लगा.

देवेंद्र बेरोजगार युवाओं से 50 हजार से एक लाख रुपए तक ले कर आयकर विभाग में अलगअलग पदनाम से नौकरी देने लगा. इन युवाओं को वह बाकायदा भारत सरकार का लोगो लगा नियुक्तिपत्र देता था. यह पत्र देते समय वह कहता था कि हमारा काम बेहद गोपनीय है, इसलिए अपने काम के बारे में किसी को मत बताना.

इसी के साथ वह नौकरी जौइन करने वाले को गोपनीयता की शपथ भी दिलवाता था. वह अपने कर्मचारियों से शपथपत्र भी भरवाता था. इस में यह शर्त लिखी होती थी कि अगर विभाग की गोपनीयता भंग की तो आयकर कानून के तहत 50 हजार रुपए जुरमाना और एक साल की सजा हो सकती है.
जुरमाने और सजा के डर से देवेंद्र के कर्मचारी किसी से अपनी असलियत नहीं बताते थे. किसी को यह भी नहीं बताते थे कि वे आयकर विभाग में काम करते हैं या उन का औफिस कहां है.

अपने कर्मचारियों के माध्यम से देवेंद्र आयकर चोरी के नाम पर धन्ना सेठों और काले धंधे करने वाले कारोबारियों की सूचनाएं जुटाता था. ऐसे लोगों की सूचनाएं जुटा कर वह फाइलों में उन का पूरा ब्यौरा दर्ज करवाता था. ऐसी ही सूचनाओं के आधार पर 4 साल पहले देवेंद्र ने अपने कर्मचारियों के साथ बुरहानपुर में एक व्यक्ति के घर पर आयकर विभाग की फरजी रेड मारी थी. इस रेड में देवेंद्र को क्या मिला, इस का पूरी तरह खुलासा नहीं हो सका.

देवेंद्र का आयकर विभाग के फरजीवाड़े का काम अच्छे तरीके से चल रहा था. इस बीच देवेंद्र ने बड़ा हाथ मारने के मकसद से करीब एक साल पहले इंदौर की सिलिकौन सिटी में 14 हजार रुपए महीने का एक मकान किराए पर ले लिया. इस मकान में उस ने शानदार औफिस बनाया.

इस औफिस में देवेंद्र ने अपने कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ा ली. कई युवाओं को पैसे ले कर फील्ड औफिसर की नौकरी दे दी. कई चपरासी भी रख लिए. पूरे व्यवस्थित तरीके से उस ने कार्यालय बना लिया. इस औफिस में वह खुद सब से बड़ा अफसर था. दुर्गेश गहलोत उस का पीए था.

देवेंद्र भारत सरकार लिखी सफारी गाड़ी में आताजाता था. साथ में वह गनमैन रखता था. सतीश गावड़े उस का गनमैन भी था और वाहन चालक भी. सतीश ही एयरगन रखता था. देवेंद्र फरजी नौकरी देने के बाद आयकर विभाग का कामकाज समझाने के लिए होटलों में नवनियुक्त कर्मचारियों को ट्रेनिंग भी देता था. सुनील मंडलोई और रवि सोलंकी इन कर्मचारियों को ट्रेनिंग देते थे.

अपने कर्मचारियों को आयकर विभाग की नौकरी का विश्वास दिलाने के लिए कई प्रपंच रचता था. देवेंद्र अपने एकदो कर्मचारियों को आयकर विभाग के कार्यालय ले जाता. वहां वह अपने कर्मचारियों को गनमैन सतीश गावड़े की निगरानी में बाहर ही छोड़ देता. फिर चीफ कमिश्नर साहब के पास जाने की बात कह कर बड़े अधिकारी की तरह डायरी हाथ में ले कर तेज कदमों से चलते हुए आयकर विभाग की बिल्डिंग में चला जाता. थोड़ी देर बाद बाहर आ कर वह अपने कर्मचारियों के साथ अपने दफ्तर चला जाता.

नवंबर 2018 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान देवेंद्र डाबर ने फरजी आदेश जारी कर अपने कर्मचारियों की विधानसभा चुनाव में ड्यूटी लगा दी.

यह ड्यूटी इसलिए लगाई ताकि कर्मचारियों को यह भरोसा रहे कि सरकारी कर्मचारी ही हैं, क्योंकि चुनावों में आमतौर पर सभी सरकारी विभागों के कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है. देवेंद्र ने अपने कर्मचारियों की ड्यूटी पीथमपुर में वाहनों की जांच के लिए लगाई ताकि चुनाव में अवैध और कालेधन की आवाजाही न हो सके.

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर देवेंद्र अपने कार्यालय में तिरंगा झंडा भी फहराता था. इस मौके पर वह कर्मचारियों को भी बुलाता था. उस के औफिस में स्टाफ खाकी वरदी में रहता था. ये कर्मचारी देवेंद्र को सैल्यूट करते थे. देवेंद्र इन कर्मियों के साथ सेल्फी भी लेता था.

देवेंद्र ने फील्ड अफसर और खबरी के पद पर लगाए युवाओं को रईस लोगों की चलअचल संपत्तियों की जानकारी हासिल करने की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. ये कर्मचारी बड़े व्यापारियों, बिल्डरों, प्रौपर्टी कारोबारियों, ब्याज पर पैसा देने वालों और काला धंधा करने वाले लोगों की संपत्तियों, उन की गाडि़यों और कारोबार के बारे में आसपास के लोगों से जानकारी जुटाते थे.

ये कर्मचारी अपने अधिकारी सीनियर फील्ड औफिसर सुनील मंडलोई और सीनियर इनवैस्टीगेशन औफिसर रवि सोलंकी को रिपोर्ट करते. यह रिपोर्ट रजिस्टर में दर्ज कर के अलग से फाइल बनाई जाती और उस पर लिखा जाता कि अगर इस व्यक्ति के यहां इनकम टैक्स की रेड डाली जाए तो बड़ी मात्रा में आयकर चोरी का खुलासा हो सकता है.

मास्टरमाइंड देवेंद्र ने खरगोन, कुक्षी, खंडवा, मनावर, देवास, झाबुआ, आलीराजपुर, उदय नगर, बेटम, देपालपुर, पीथमपुर, धार व बड़वानी सहित कई शहरों में रहने वाले रईसों की इस तरह की फाइलें बना रखी थीं.

उस ने कुछ नेताओं की भी इस तरह की फाइलें बना रखी थीं. सभी फाइलों और रजिस्टरों के प्रत्येक पेज पर सरकारी विभागों की तरह मोहर व दस्तखत होते थे. देवेंद्र के कर्मचारियों ने अपनी रिपोर्ट में किसी को 50 और किसी को 30 करोड़ की आसामी बता रखा था.

देवेंद्र के कार्यालय से मिले रजिस्टर और फाइलों में जिन लोगों के यहां इनकम टैक्स रेड की सिफारिश की गई थी, पुलिस उन के बयान लेने के बारे में विचार कर रही है ताकि पता चल सके कि देवेंद्र की टीम ने कहीं फरजी रेड तो नहीं डाली थी.

जांच में यह बात भी सामने आई कि आरोपी देवेंद्र का मकसद ऐसे लोगों की जानकारी जुटा कर आयकर विभाग को देना था ताकि आयकर विभाग रेड मारे और उसे 10 प्रतिशत कमीशन मिल जाए. इस के विपरीत यह भी सच है कि देवेंद्र ने आयकर विभाग को ऐसी एक भी जानकारी नहीं दी.

यह तय है कि देवेंद्र डाबर की टीम का खुलासा हो गया अन्यथा शातिर दिमाग देवेंद्र अपनी टीम के साथ धन्ना सेठों के यहां इनकम टैक्स की फरजी रेड डाल सकता था.

आयकर विभाग भी समानांतर आयकर विभाग चलाने वाले इस गिरोह का खुलासा होने पर चौंक गया. इंदौर की एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आयकर विभाग के प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर ए.के. चौहान से मुलाकात कर इस पूरे मामले की जानकारी दी. पुलिस इस गिरोह के बारे में पूरी जांचपड़ताल में जुटी हुई है.

गिरोह का खुलासा होने के बाद कई युवाओं ने पुलिस को शिकायत की है कि देवेंद्र डाबर ने नौकरी के नाम पर उन से 60-60 हजार रुपए लिए. जांच में सामने आया है कि देवेंद्र ने आयकर विभाग के नाम पर करीब 80 लोगों की टीम बना रखी थी.

मोटे तौर पर माना जा रहा है कि देवेंद्र ने युवाओं को नौकरी देने के नाम पर ही 60 से 80 लाख रुपए की ठगी की थी. ठगी के पैसों से ही कभीकभी वह कर्मचारियों को वेतन दे देता था. कभी कोई वेतन की बारबार मांग करता तो कहता कि भारत सरकार से अभी बजट नहीं आया है.

वह गोपनीयता के नाम पर लोगों में सजा और जुरमाने का भय बनाए रखता था, इसलिए पीडि़त युवा अपनी समस्या किसी को बता भी नहीं पाते थे. वे सरकारी नौकरी होने का भ्रम पाल कर कभी न कभी पूरी तनख्वाह मिलने का ख्वाब संजोए थे.

पुलिस को देवेंद्र के बैंक खातों की जानकारी भी मिली है. इन खातों में हुए लेनदेन की डिटेल बैंक से मांगी गई है. देवेंद्र भले ही खुद को आयकर विभाग का चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर बताता था, लेकिन उस की पत्नी एक साधारण सी आशा कार्यकर्ता है. उस से देवेंद्र ने प्रेम विवाह किया था.

यह विडंबना है कि 12वीं पास युवक 5 साल तक फिल्म ‘स्पैशल 26’ की तर्ज पर ‘स्पैशल 80’ टीम बना कर फरजी तरीके से आयकर विभाग के समानांतर काम करता रहा. वह पैसे ले कर युवाओं को आयकर विभाग में फरजी नौकरी देता रहा, बड़े व्यापारियों और रईसों की चलअचल संपत्तियों की जानकारी जुटाता रहा. इनकम टैक्स की फरजी रेड भी मारता रहा, लेकिन किसी भी सरकारी एजेंसी को इस फरजीवाड़े का पता नहीं चल सका.

अंधविश्वास में मासूम की बलि : तांंत्रिक का खूनी खेल

Crime News in Hindi: ज्योंज्यों अंधेरा घिरता जा रहा था, त्योंत्यों मुकेश की परेशानी बढ़ती जा रही थी. वह कभी दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देखता तो कभी टिकटिक करती घड़ी की सुइयों को निहारने लगता. दरअसल, बात ही कुछ ऐसी थी जिस से मुकेश परेशान था. उस की 2 साल की बेटी कंचन अचानक गायब हो गई थी. शाम को वह घर के बाहर खेल रही थी. पर वह वहां से अचानक कहां गुम हो गई, किसी को पता न चला. यह बात 21 मार्च, 2019 की है. उस दिन होली(Holi) का त्यौहार था. नंदापुर गांव के लोग रंगों से सराबोर थे. फाग गाने वालों की टोली अपना जलवा अलग से बिखेर रही थी. कई लोग ऐसे भी थे, जो नशे में झूम रहे थे. कंचन का पिता मुकेश भी फाग गाता था. फाग गा कर मुकेश जब घर लौटा, तब उसे मासूम कंचन के गुम होने की जानकारी हुई थी. उस के बाद वह कंचन को ढूंढने निकल गया.

लेकिन उस का कुछ भी पता न चल पा रहा था. धीरेधीरे गांव में जब कंचन के गुम होने की खबर फैली तो लोग स्तब्ध रह गए. आज भी अनेक गांवों में ऐसी परंपरा है कि किसी के दुखतकलीफ में लोग एकदूसरे की मदद करते हैं. फाग गाने वाली टोलियों को जब मुकेश की बेटी के गायब होने की जानकारी मिली तो टोलियों ने फाग गाना बंद कर दिया. इस के बाद वे मुकेश के घर पहुंच गए.

घर पर मुकेश की पत्नी संध्या का रोरो कर बुरा हाल था. परिवार की महिलाएं उसे सांत्वना दे रही थीं. लेकिन संध्या का हाल बेहाल था. उस के मन में तमाम तरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

उधर कंचन की खोज के लिए पूरा गांव एकजुट हो गया था. मुकेश के चाचा रामखेलावन ने 10-10 लोगों की टीमें बनाईं. चारों टीमों ने टौर्च व लालटेन की रोशनी में अलगअलग दिशाओं में कंचन की खोज शुरू कर दी. गांव के हर खेत, बागबगीचे, नदीनाले व झुरमुटों के बीच टीमों ने कंचन की खोज की लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला.

एक आशंका यह भी थी कि कहीं कंचन भटक कर गांव के बाहर न पहुंच गई हो और कोई जंगली जानवर उसे उठा ले गया हो. अत: इस दिशा में भी गांव के आसपास के जंगल व ऊंचीनीची जमीन के बीच कंचन की खोज की गई, लेकिन ऐसा कोई सबूत नही मिला. रात भर कंचन की खोज हुई. परंतु कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

जब मासूम कंचन का कुछ भी पता नहीं चला तो मुकेश अपने चाचा रामखेलावन के साथ थाना बिंदकी पहुंच गया. थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को उस ने अपनी 2 वर्षीय बेटी कंचन के लापता होने की जानकारी दे दी.

थानाप्रभारी ने कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर जरूरी काररवाई करनी शुरू कर दी. उन्होंने फतेहपुर के समस्त थानों को वायरलैस से 2 साल की कंचन के गुम होने की खबर भेजवा दी. थानाप्रभारी को लगा कि जब कंचन तलाश करने के बाद भी कहीं नहीं मिली है तो जरूर उस का किसी ने अपहरण कर लिया होगा और अपहरण फिरौती के लिए नहीं बल्कि किसी रंजिश या दूसरे किसी इरादे से किया होगा.

इस की 2 वजह थीं. पहली यह कि मुकेश कुशवाहा की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि कोई फिरौती के लिए उस की बेटी का अपहरण करे. दूसरी वजह यह थी कि 2 दिन बीत जाने के बाद भी मुकेश के पास किसी का फिरौती के लिए फोन नहीं आया था. रंजिश का पता लगाने के लिए थानाप्रभारी चंदेल, मुकेश के गांव नंदापुर पहुंचे.

वहां उन्होंने मुकेश से कुछ देर तक रंजिश के संबंध में पूछताछ की. मुकेश ने बताया कि गांव में उस की किसी से कोई रंजिश नहीं है. रुपयों के लेनदेन तथा जमीन से जुड़ा कोई विवाद भी नहीं है.

इस के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को शक हुआ कि कहीं मासूम का अपहरण किसी सिरफिरे या नशेबाज ने दुष्कर्म के इरादे से तो नहीं कर लिया. फिर दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी हो और शव को किसी नदीनाले या झाडि़यों में छिपा दिया हो. इस प्रकार का शक उन्हें इसलिए हुआ, क्योंकि होली का त्यौहार था. नशेबाजी जम कर हो रही थी. हो सकता है कि किसी नशेबाज की नजर बच्ची पर पड़ी हो और वह उसे गलत इरादे से उठा कर ले गया हो. शक के आधार पर उन्होंने पुलिस टीम के साथ नदीनालों, जंगल, झाडि़यों आदि में कंचन की खोज की. लेकिन कंचन का सुराग नहीं मिला.

इधर कंचन के लापता होने से कुशवाहा परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि कंचन पता नहीं कहां और किस हाल में होगी. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों मुकेश व उस की पत्नी संध्या की चिंता बढ़ती जा रही थी.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक कंचन का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. तब मुकेश अपने सहयोगियों के साथ फतेहपुर के एसपी कैलाश सिंह से मिलने गया. लेकिन एसपी से उस की मुलाकात नहीं हो सकी. तब मुकेश ने एसपी कपिलदेव मिश्रा से मुलाकात की और अपनी व्यथा व्यक्त की.

एएसपी ने उसी समय थाना बिंदकी के थानाप्रभारी से बात की और कंचन को हर हाल में खोजने का आदेश दिया. इस के बाद थानाप्रभारी जीजान से कंचन को ढूंढने में जुट गए. उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. पुलिस टीम ने क्षेत्र के आपराधिक प्रवृत्ति के कुछ लोगों को उन के घरों से उठा लिया और थाने  ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन उन से कंचन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्हें छोड़ना पड़ा.

नाले में मिला कंचन का शव 25 मार्च, 2019 की शाम 4 बजे चरवाहे सैमसी नाले के पास बकरियां चरा रहे थे. तभी उन की निगाह नाले में उतराते हुए एक सफेद रंग के कपड़े पर पड़ी. लग रहा था उस में किसी बच्चे की लाश हो.

चरवाहे नंदापुर व सैमसी गांव के थे, अत: उन्होंने भाग कर गांव वालों को यह बात बता दी. यह खबर मिलते ही सैमसी व नंदापुर गांव के लोग नाले की ओर दौड़ पड़े. मुकेश भी बदहवास हालत में वहां पहुंचा. उसी दौरान किसी ने फोन कर के यह सूचना बिंदकी थाने में दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल पुलिस टीम के साथ नाले की ओर रवाना हो गए. थाना बिंदकी से सैसमी गांव करीब 5 किलोमीटर दूर है. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने नाले में तैरते हुए उस सफेद कपड़े को बाहर निकलवाया, जिस में कुछ बंधा था. पुलिस ने जैसे ही वह कपड़ा हटाया तो उस में वास्तव में एक बच्ची की लाश निकली. उस लाश को देखते ही वहां खड़ा मुकेश कुशवाहा दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह लाश उस की मासूम बच्ची कंचन की ही थी.

2 वर्षीय मासूम कंचन की लाश जिस ने भी देखी, उसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. क्योंकि कंचन की हत्या किसी रंजिश के चलते नहीं की गई थी. बल्कि उस की बलि दी गई थी. उस बच्ची का शृंगार किया गया था. पैरों में महावर (लाल रंग) तथा माथे पर टीका लगा था. उस का एक हाथ व एक पैर काटा गया था. उस का पेट भी फटा हुआ था.

बच्ची की बलि चढ़ाई जाने की खबर जंगल की आग की तरह पासपड़ोस के गांवों में फैली तो घटनास्थल पर भीड़ और बढ़ गई. बलि चढ़ाए जाने के विरोध में भीड़ उत्तेजित हो गई और शव रख कर हंगामा करने लगी. भीड़ तब और उग्र हो गई जब थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह ने भीड़ को यह कह कर समझाने का प्रयास किया कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है.

लोगों को उत्तेजित देख कर थानाप्रभारी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने उपद्रव की आशंका को देखते हुए कंचन का शव ग्रामीणों से छीन लिया और थाने में ले आए. पुलिस की इस काररवाई से लोग और भड़क गए. तब लोग ट्रैक्टर ट्रौलियों में भर कर बिंदकी थाने पहुंचने लगे.

कुछ ही समय बाद सैकड़ों लोग थाने में जमा हो गए. ग्रामीणों ने थाने का घेराव कर दिया. उन्होंने ट्रैक्टर ट्रौलियों को सड़क पर आड़ेतिरछे खड़ा कर मुगल रोड जाम कर दिया. इस से कई किलोमीटर तक जाम लग गया. घटना के विरोध में लोग हंगामा कर पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे.

थाना प्रभारी की वजह से भड़क गए लोग

थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को यकीन था कि वह हलका बल प्रयोग कर ग्रामीणों को शांत करा देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. बल प्रयोग के बावजूद उत्तेजित भीड़ ने पुलिस के कब्जे से कंचन का शव छीन लिया और उसे सड़क पर रख कर हंगामा करने लगे. मजबूरन थानाप्रभारी को हंगामा व सड़क जाम की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देनी पड़ी. उन्होंने अधिकारियों से अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का भी आग्रह किया.

कुछ ही समय बाद एसपी कैलाश सिंह, डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी भारी पुलिस बल के साथ बिंदकी थाने पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जिस ने भी मासूम की बलि दी है, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने यदि कोताही बरती है तो संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने कहा कि आप लोग सिर्फ 2 दिन का समय दें. इस बच्ची का कातिल आप लोगों के सामने होगा.

पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर उत्तेजित ग्रामीणों ने कंचन का शव पुलिस को सौंप दिया और जाम हटा दिया. फिर पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में कंचन के शव को पोस्टमार्टम हाउस फतेहपुर भिजवा दिया. साथ ही बवाल की आशंका को देखते हुए नंदापुर गांव में पुलिस तैनात कर दी.

थाना बिंदकी पुलिस को आशंका थी कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की आशंका को खारिज कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार कंचन की हत्या की गई थी. उस के एक हाथ व एक पैर को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. पेट को किसी नुकीली चीज से फाड़ा गया था. अधिक खून बहने से ही उस की मौत होने की बात कही गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल ने मुकेश के चाचा रामखेलावन की तरफ से भादंवि की धारा 364, 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और मासूम कंचन के हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

तांत्रिक ने स्वीकारी बलि देने की बात

चूंकि कंचन की बलि देने की बात कही जा रही थी और बलि किसी न किसी तांत्रिक ने ही दी होगी. अत: थानाप्रभारी ने तंत्रमंत्र करने वालों की खोज शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. मुखबिरों ने नंदापुर व उस के आसपास के गांवों में अपना जाल फैला दिया. जल्द ही उस का परिणाम भी सामने आ गया.

27 मार्च, 2019 की शाम 7 बजे मुखबिर ने थानाप्रभारी को बताया कि सैमसी गांव का हेमराज तंत्रमंत्र करता है. उस के यहां लोगों का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कंचन के गुम होने के बाद उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान बंद कर दी है. गांव के लोगों को शक है कि हेमराज ने ही मासूम की बलि चढ़ाई होगी.

मुखबिर की सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ रात 10 बजे सैमसी गांव में हेमराज के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया तो वह उसे हिरासत में ले कर थाने आ गए.

हेमराज से कंचन की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तंत्रमंत्र करता है और होली, दिवाली जैसे बडे़ त्यौहारों पर बलि देता है. लेकिन इंसान की बलि नहीं देता. वह तो साधना के बाद मुर्गा या बकरा की बलि देता है. फिर मांस को प्रसाद के तौर पर अपने खास मित्रों में बांट देता है. कंचन की बलि देने का उस पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है.

तांत्रिक हेमराज ने जिस तरह से अपने बचाव में दलील दी थी, उस से श्री चंदेल को एक बार ऐसा लगा कि हेमराज सच बोल रहा है. लेकिन दूसरे ही क्षण वह सोचने लगे कि अपराधी अपने बचाव में ऐसी दलीलें अकसर ही पेश करता है. अत: उन्होंने उस की बात को नकारते हुए उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ शुरू की. लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद रात करीब 12 बजे तांत्रिक हेमराज टूट गया और उस ने कंचन की बलि देने की बात कबूल कर ली.

तांत्रिक हेमराज ने बताया कि उस ने तंत्रमंत्र सिद्ध करने तथा जमीन में गड़ा धन प्राप्त करने के लिए ही कंचन की बलि दी थी. तंत्रसाधना के इस अनुष्ठान में सेलावन गांव का रहने वाला उस का चेला शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास भी शामिल था.

लालच में चढ़ाई थी बलि

उसी की मोटरसाइकिल पर कंचन के शव को रख कर गांव के बाहर नाले में फेंक दिया था. तांत्रिक हेमराज के चेले शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास को पकड़ने के लिए रात के अंतिम पहर में पुलिस ने उस के घर दबिश दी. वह भी घर पर मिल गया और उसे बंदी बना लिया गया. उसे भी थाने ले आए.

थाने में जब उस की मुलाकात हेमराज से हुई तो वह सब समझ गया. अत: उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. हेमराज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गंडासा बरामद कर लिया, जिसे उस ने अपने घर में छिपा दिया था.

पुलिस ने हेमराज के कमरे से पूजन सामग्री, फूल माला, भभूत, सिंदूर, तंत्रमंत्र की किताबें आदि बरामद कीं. पुलिस ने शिवप्रकाश की वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जो उस ने शव ठिकाने लगाने में प्रयोग की थी.

कंचन के हत्यारों को पकड़ने तथा आलाकत्ल बरामद करने की जानकारी थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी थाने में पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास से घटना के संबंध में विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर कंचन की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: थानाप्रभारी ने दोनों को अपहरण और हत्या के आरोप में विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच और अभियुक्तों के बयानों के आधार पर अंधविश्वास और लालच में मासूम बच्ची कंचन की हत्या की सनसनीखेज कहानी इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के थाना बिंदकी के अंतर्गत एक गांव है नंदापुर. इसी गांव में मुकेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी संध्या के अलावा एक बेटी रमन थी. मुकेश के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. इसी की उपज से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

संध्या चाहती थी बेटा

बेटी के जन्म के बाद संध्या एक बेटा भी चाहती थी. लेकिन बेटी रमन 8 साल की हो गई थी, उसे दूसरा बच्चा नहीं हो रहा था. जिस की वजह से संध्या चिंतित रहने लगी थी. अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए वह वह विभिन्न मंदिरों में जाने लगी थी. वह हर सोमवार घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर जाती. एक तरह से वह धार्मिक विचारों वाली हो गई थी.

इसी बीच वह सितंबर 2016 में गर्भवती हो गई और मई 2017 में संध्या ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया. इस बच्ची का नाम उस ने कंचन रखा. संध्या को हालांकि बेटे की चाह थी लेकिन दूसरी बच्ची के जन्म से उसे इस बात की खुशी हुई कि उस की कोख तो खुल गई. मुकेश भी कंचन के जन्म से बेहद खुश था. खुशी में उस ने अपने समाज के लोगों को भोज भी कराया.

नंदापुर गांव के पास ही एक किलोमीटर की दूरी पर सैमसी गांव बसा हुआ है. दोनों गांवों के बीच एक नाला बहता है, जो सैमसी नाले के नाम से जाना जाता है. सैमसी गांव में हेमराज रहता था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. उस की अपने भाइयों से पटती नहीं थी. अत: वह उन से अलग रहता था.

जमीन का बंटवारा भी तीनों भाइयों के बीच हो गया था. हेमराज झगड़ालू प्रवृत्ति का था अत: गांव के लोग उस से दूरी बनाए रखते थे. उस के अन्य भाइयों की शादी हो गई थी, जबकि हेमराज की नहीं हुई थी.

हेमराज का मन न तो खेतीकिसानी में लगता था और न ही किसी कामधंधे में. उस ने अपनी जमीन भी बंटाई पर दे रखी थी. वह तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा रहता था. कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर शहर के कई तांत्रिकों के पास उस का आनाजाना रहता था.

इन तांत्रिकों से वह तंत्रमंत्र करना सीखता था. तंत्रमंत्र की किताबें भी पढ़ने का उसे शौक था. किताबों में लिखे मंत्रों को सिद्ध करने के लिए वह अकसर देर रात को पूजापाठ भी करता रहता था.

तांत्रिकों की संगत में रह कर हेमराज ने अंधविश्वासी लोगों को ठगने के सारे हथकंडे सीख लिए थे. उस के बाद वह अपने गांव सैमसी में तंत्रमंत्र की दुकान चलाने लगा. प्रचारप्रसार के लिए उस ने कुछ युवकयुवतियों को लगा दिया, जो गांवगांव जा कर उस का प्रचार करते थे. इस के एवज में वह उन्हें खानेपीने की चीजों के अलवा कुछ रुपए भी दे देता था.

अंधविश्वासी आने लगे हेमराज के पास

शुरूशुरू में तो उस की तंत्रमंत्र की दुकान ज्यादा नहीं चली लेकिन ज्योंज्यों उस का प्रचार होता गया, उस का धंधा भी चल निकला. फरियादी उस के दरबार में आने लगे और चढ़ावा भी चढ़ने लगा. हेमराज के तंत्रमंत्र के दरबार में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आनाजाना अधिक होता था. क्योंकि महिलाएं अंधविश्वास पर जल्दी भरोसा कर लेती हैं.

उस के दरबार में ऐसी महिलाएं आतीं, जिन के संतान नहीं होती. तांत्रिक हेमराज उन्हें संतान देने के नाम पर बुलाता और उन से पैसे ऐंठता. कोई कमजोर कड़ी वाली औरत मिल जाती तो उस का शारीरिक शोषण करने से भी नहीं चूकता था. लोकलाज के डर से वह महिला अपनी जुबान नहीं खोलती थी. सौतिया डाह, बीमारी, भूतप्रेत जैसी समस्याओं से ग्रस्त महिलाएं भी उस के पास आती रहती थीं. अंधविश्वासी पुरुषों का भी उस के पास आनाजाना लगा रहता था.

वह आसपास के शहरों में प्रसिद्ध हो गया तो उस के कई चेले भी बन गए. लेकिन सेलावन गांव का शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास उस का सब से विश्वासपात्र चेला था. शिवप्रकाश हृष्टपुष्ट व स्मार्ट था. वह दूध का धंधा करता था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर उसे शहर जा कर बेचता था.

शिवप्रकाश एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. बताया जाता है कि तब तांत्रिक हेमराज ने उसे तंत्रमंत्र की शक्ति से ठीक किया था. तब से वह तांत्रिक हेमराज का खास चेला बन गया था. फुरसत के क्षणों में शिवप्रकाश हेमराज के दरबार में पहुंच जाता था.

20 मार्च को होली थी. होली के 8 दिन पहले एक रात हेमराज को सपना आया कि उस के खेत में काफी सारा धन गड़ा है. इस धन को पाने के लिए उसे तंत्रसाधना करनी होगी और मां काली के सामने बच्चे की बलि देनी होगी. सपने की बात को सच मान कर हेमराज के मन में लालच आ गया और उस ने खेत में गड़ा धन पाने के लिए किसी बच्चे की बलि देने क ा निश्चय कर लिया.

हर होलीदिवाली पर चढ़ाता था बलि

तांत्रिक हेमराज वैसे तो हर होली दिवाली की रात मुर्गे या बकरे की बलि देता था, लेकिन इस बार उस ने धन पाने के लालच में किसी मासूम की बलि देने की ठान ली. इस बाबत हेमराज ने अपने खास चेले शिवप्रकाश से बात की तो वह भी उस का साथ देने को तैयार हो गया. फिर गुरुचेला किसी मासूम की तलाश में जुट गए.

शिवप्रकाश उर्फ ननकू का नंदापुर गांव में आनाजाना था. वहां वह दूध व खोया की खरीद के लिए जाता था. होली के 2 दिन पहले ननकू, नंदापुर गांव गया तो उस की निगाह मुकेश कुशवाहा की 2 वर्षीय बेटी कंचन पर पड़ी. वह दरवाजे के पास खड़ी थी और मंदमंद मुसकरा रही थी. शिवप्रकाश ने इस मासूम के बारे में अपने गुरु हेमराज को खबर दी तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर दोनों कंचन की रैकी करने लगे.

21 मार्च को होली का रंग खेला जा रहा था तथा फाग गाया जा रहा था. शाम 5 बजे के लगभग शिवप्रकाश अपने गुरु हेमराज को साथ ले कर अपनी मोटरसाइकिल से नंदापुर गांव पहुंचा फिर फाग की टोली में शामिल हो गया.

शाम 7 बजे के लगभग दोनों मुकेश कुशवाहा के दरवाजे पर पहुंचे. उस समय कंचन घर के बाहर खेल रही थी. तांत्रिक हेमराज ने दाएंबाएं देखा फिर लपक कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया. इस के बाद बाइक पर बैठ कर दोनों निकल गए.

रात के अंधेरे में हेमराज कंचन को अपने घर लाया और नशीला दूध पिला कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उस ने बेहोशी की हालत में कंचन का शृंगार किया. शरीर पर भभूत और सिंदूर लगाया. पांव में महावर लगाई, माथे पर टीका तथा गले में फूलों की माला पहनाई. फिर तंत्रमंत्र वाले कमरे में ला कर उसे मां काली की मूर्ति के सामने लिटा दिया. कमरे में हेमराज के अलावा उस का चेला शिवप्रकाश भी था.

हेमराज ने कंचन की पूजाअर्चना की तथा कुछ मंत्र बुदबुदाता रहा. इस के बाद वह गंडासा लाया और मां काली के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मां, मैं बच्चे की बलि आप को भेंट कर रहा हूं. इस बलि को स्वीकार कर के आप मेरी इच्छा पूरी करना.’’

कहते हुए हेमराज ने गंडासे से कंचन का एक हाथ व एक पैर काट दिया. इस के बाद उस ने उस बच्ची का पेट भी चीर दिया. ऐसा होते ही खून कमरे में फैलने लगा. वह कुछ क्षण छटपटाई, फिर दम तोड़ दिया.

दूसरी रात उस ने कंचन के शव को सफेद कपड़े में लपेटा और शिवप्रकाश के साथ गांव के बाहर नाले में फेंक आया. इधर मुकेश फाग गा कर घर आया तो उसे कंचन नहीं दिखी, तो उस ने उस की खोज शुरू कर दी. दूसरे दिन उस के चाचा ने थाना बिंदकी में गुमशुदगी दर्ज कराई.

पुलिस ने तथाकथित तांत्रिक हेमराज और उस के चेले शिवप्रकाश से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें 28 मार्च, 2019 को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक दोनों की जमानत नहीं हुई थी.

गोलियों की तड़तड़ाहट : भारी पड़ी सिरफिरे से आशिकी

Crime News in Hindi: दिल्ली (Delhi) से सटे गाजियाबाद (Gaziabad) में हिंडन नदी (Hindon River) किनारे स्थित साईं उपवन बड़ा ही रमणीक स्थल है. यहां पर साईंबाबा का प्रसिद्ध मंदिर है. 25 मार्च, 2019 सोमवार को सुबह का वक्त था. श्रद्धालुजन साईं मंदिर (Sai Temple) में आते जा रहे थे. उसी समय लाल रंग की स्कूटी से गोरे रंग की खूबसूरत युवती और एक स्मार्ट या दिखने वाला युवक वहां पहुंचे. स्कूटी को उपवन परिसर के बाहर एक ओर खड़ी कर वे दोनों मंदिर में प्रवेश कर गए. कोई 10 मिनट के बाद जब वे दोनों साईंबाबा के दर्शन कर के बाहर निकले तो उन के चेहरे खिले हुए थे. यह हसीन जोड़ा आसपास से गुजरने वाले लोगों की नजरों का आकर्षण बना हुआ था. लेकिन उन दोनों को लोगों की नजरों की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी. वे अपनी ही दुनिया में मशगूल थे.

जैसे ही दोनों बाहर निकले वह रमणीक इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. तभी वहां मौजूद लोगों को एक आदमी युवकयुवती की लाशें बिछा कर तेजी से लिंक रोड की तरफ भागता हुआ दिखाई दिया. लोगों ने देखा कि लाशें उसी नौजवान खूबसूरत जोड़े की थीं, जो अभीअभी वहां से हंसतेमुसकराते हुए मंदिर से बाहर निकला था. इसी दौरान किसी ने इस सनसनीखेज घटना की सूचना 100 नंबर पर गाजियाबाद पुलिस को दे दी.

थोड़ी ही देर में सिंहानी गेट के थानाप्रभारी जयकरण सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मंदिर परिसर के अंदर लाल सूट पहने एक युवती और एक युवक की रक्तरंजित लाशें औंधे मुंह पड़ी थीं. जयकरण सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया.

युवकयुवती के कपड़े खून से सने थे. वहां पर काफी लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. जयकरण सिंह ने उन की नब्ज टटोली, लेकिन उन की सांसें उन का साथ छोड़ चुकी थीं. उन्होंने जल्दी से क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को बुला कर घटनास्थल की फोटोग्राफी करवाई और वहां उपस्थित चश्मदीदों से इस घटना के बारे में पूछताछ करनी शुरू की.

कुछ लोगों ने बताया कि मृतक युवती और युवक कुछ ही देर पहले लाल स्कूटी से एक साथ मंदिर आए थे, जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के बाद बाहर निकल रहे थे, तभी पहले से घात लगाए हत्यारे ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

पुलिस ने जब दोनों लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की तो भीड़ ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. यह देख इंसपेक्टर जयकरण सिंह ने आरटीओ औफिस से उस लाल रंग की स्कूटी का विवरण मालूम किया, जिस से वे आए थे. आरटीओ औफिस से मृतका की शिनाख्त प्रीति उर्फ गोलू, निवासी विजय विहार (गाजियाबाद) के रूप में हुई.

तय हो गई थी शादी

पुलिस द्वारा सूचना मिलने पर थोड़ी देर में युवती के घर वाले भी रोतेबिलखते हुए घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवती की शिनाख्त के साथसाथ युवक की भी शिनाख्त कर दी. मृतक सुरेंद्र चौहान उर्फ अन्नू था. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि उन की बेटी प्रीति और सुरेंद्र चौहान बहुत जल्द परिणय सूत्र में बंधने वाले थे. सुरेंद्र के मातापिता भी इस रिश्ते के लिए राजी थे.

घटनास्थल की जांच के दौरान वहां पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के कुछ खोखे और मृतका प्रीति की लाल रंग की स्कूटी बरामद हुई, जिसे पुलिस टीम ने अपने कब्जे में ले लिया. मृतका के पिता प्रमोद कुमार से युवक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह के बारे में जानकारी मिल गई. पुलिस ने उन्हें भी इस दुखद घटना के बारे में बता दिया. इस के बाद खुशहाल सिंह भी अपने परिजनों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो चुकी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

25 मार्च को ही मृतका प्रीति के पिता प्रमोद कुमार की शिकायत पर इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा कोतवाली सिंहानी गेट में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

इस केस की आगे की तफ्तीश थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने खुद संभाली. उन्होंने इस घटना के बारे में एसपी श्लोक कुमार और सीओ सिटी धर्मेंद्र चौहान को भी अवगत करा दिया.

एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसपी श्लोक कुमार के निर्देशन और सीओ धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी जयकरण सिंह के साथ इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राजेश कुमार, एसआई श्रीनिवास गौतम, हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह, माइकल बंसल, कांस्टेबल अशोक कुमार, संजीव गुप्ता, सेगेंद्र कुमार, संदीप कुमार और गौरव कुमार को शामिल किया गया.

जांच टीम ने एक बार फिर साईं उपवन पहुंच कर वहां के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ शुरू की तो पता चला कुछ लोगों ने एक लंबी कदकाठी के आदमी को वहां से भागते हुए देखा था. वह अधेड़ उम्र का आदमी था जो कुछ दूरी तक भागने के बाद वहां खड़ी एक कार में सवार हो कर फरार हो गया था.
हालांकि मंदिर परिसर में 8 सीसीटीवी कैमरे लगे थे लेकिन दुर्भाग्यवश सभी खराब थे. मृतका के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रीति सुबह 7 बजे ड्यूटी पर जाने के लिए निकली थी. वह वसुंधरा के वनस्थली स्कूल के यूनिफार्म स्टौल पर नौकरी करती थी.

उस के काम पर चले जाने के बाद वह बुलंदशहर जाने वाली बस में सवार हो गए थे. अभी उन की बस लाल कुआं तक ही पहुंची थी कि उन्हें मोबाइल फोन पर प्रीति को गोली मारे जाने का दुखद समाचार मिला. जिसे सुनते ही वह फौरन घटनास्थल पर आ गए थे.

पिता ने बताई उधार की कहानी

प्रमोद कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह को भी कोतवाली बुला कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन के बेटे की हत्या में कल्पना नाम की औरत का हाथ हो सकता है. दरअसल, सुरेंद्र का गाजियाबाद के ही प्रताप विहार में शीशे के सामान का कारोबार था, इसी कारोबार के लिए सुरेंद्र ने कुछ समय पहले कल्पना से कुछ रुपए उधार लिए थे. कल्पना रुपए वापस करने के लिए लगातार तकादा कर रही थी.

चूंकि सुरेंद्र के पास उसे देने लायक पैसे इकट्ठे नहीं हुए थे. इसलिए वह कल्पना को कुछ दिन तक और रुकने को कह रहा था. 2 दिन पहले शनिवार के दिन भी कल्पना उन के घर पर अपने रुपए लेने आई थी, इस दौरान कल्पना ने गुस्से में आ कर सुरेंद्र को बहुत बुराभला कहा था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम इस हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाने के लिए उन तमाम पहलुओं पर विचारविमर्श करने लगी, जिस पर आगे बढ़ कर हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. इस में पहला तथ्य घटनास्थल पर मिले पौइंट 9 एमएम पिस्टल से फायर की गई गोलियों के खोखे थे. इस प्रकार के पिस्टल का इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस अधिकारी करते हैं. यह सुराग इस तथ्य की ओर इशारा कर रहा था कि हत्यारे का कोई न कोई संबंध पुलिस डिपार्टमेंट से है.

दूसरा तथ्य मृतक सुरेंद्र उर्फ अन्नू के पिता खुशहाल सिंह के अनुसार उन के बेटे को कर्ज देने वाली औरत कल्पना से जुड़ा था. तीसरा सिरा मृतका प्रीति और उस के मंगेतर सुरेंद्र की बेमेल उम्र से ताल्लुक रखता था.

दरअसल प्रेमी सुरेंद्र की उम्र अभी केवल 26 साल थी जबकि उस की प्रेमिका प्रीति की उम्र 32 साल थी. इसलिए यहां इस बात की संभावना थी कि उन के बीच उम्र का यह फासला उन के परिवार के लोगों में से किसी सदस्य को पसंद नहीं आ रहा हो और आवेश में आ कर उस ने इस घटना को अंजाम दे दिया हो.
इस के अलावा एक और भी महत्त्वपूर्ण बिंदु था, जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. प्रीति उर्फ गोलू की उम्र अधिक थी. यह भी संभव था कि उस के प्रेम संबंध पहले से किसी और युवक के साथ रहे हों. पहले प्रेमी को पता चल गया हो कि प्रीति की शादी सुरेंद्र चौहान से हो रही है. संभव था कि उस ने प्रीति को सबक सिखाने के लिए सुरेंद्र का काम तमाम कर दिया.

चूंकि वारदात के समय उस के साथ उस का मंगेतर सुरेंद्र चौहान भी था, इसलिए गुस्से से बिफरे पहले प्रेमी ने उस को भी मार डाला हो. बहरहाल इन तमाम बिंदुओं पर विचार विमर्श कर के पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के प्रयास में जुटी थी.

पुलिस टीम ने 27 मार्च को एक बार फिर दोनों के परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों तथा वारदात के वक्त साईं उपवन में मौजूद चश्मदीदों को बुला कर पूछताछ की. साथ ही प्रीति और सुरेंद्र के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की गहन जांच की.

इस जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. प्रीति के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि उन का एक रिश्तेदार दिनेश कुमार दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में एएसआई के पद पर तैनात है. उस का चौहान परिवार के घर पर काफी आनाजाना था. लेकिन जिस दिन यह दोहरा हत्याकांड हुआ उस दिन के बाद वह बुलाए जाने के बावजूद वारदात वाली जगह पर नहीं आया था. और तो और प्रीति के अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ था.

यह बात प्रमोद कुमार और उन के परिवार के सदस्यों को बहुत अटपटी लगी थी. जब पुलिस ने उन से डिटेल्स में बात की तो प्रमोद कुमार ने अपने मन की सब बातें विस्तार से बता दीं. जिन्हें सुनते ही पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस में ट्रैफिक विभाग में तैनात एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करने का मन बना लिया. चूंकि घटनास्थल पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के खाली खोखे मिले थे, जिस की वजह से भी वारदात में किसी पुलिस वाले के शामिल होने का शक था, इसलिए अब एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करना बेहद जरूरी हो गया था.

पुलिस वाला आया शक के घेरे में

थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने एएसआई दिनेश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए. आखिरकार 30 मार्च की सुबह एक मुखबिर की सूचना पर उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया. जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ शुरू की गई तो उस ने जो कुछ बताया उस से रिश्तों में उलझी एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई.

प्रमोद कुमार अपने परिवार के साथ गाजियाबाद के विजय विहार में रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. वह बड़ी बेटी के हाथ पीले कर चुके थे. दूसरी बेटी प्रीति उर्फ गोलू और उस से छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही थी. 22 वर्षीय प्रीति मिलनसार स्वभाव की थी. वह जिंदगी के हर एक पल का पूरा लुत्फ उठाने में विश्वास रखती थी.

बड़ी बेटी की शादी के एक साल बाद प्रमोद कुमार ने प्रीति के भी हाथ पीले कर देने की सोची. उन्होंने उस के लिए कई जगह रिश्ते की बात चलाई, मगर आखिर अपनी हैसियत के अनुसार मौके पर प्रीति किसी न किसी बहाने से शादी करने से इनकार कर देती थी.

प्रीति का अपनी बड़ी बहन के घर काफी आनाजाना था. अपने हंसमुख स्वभाव की वजह से वह बहन की ससुराल में भी काफी घुलमिल गई थी. उस के जीजा का जीजा दिनेश कुमार दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. दिनेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पिलखुआ का रहने वाला था. उस की पत्नी और बच्चे पिलखुआ में ही रहते थे. दिनेश जब भी रमेश के घर आता वह प्रीति से खूब बातेें करता था. बला की हसीन और दिलकश प्रीति की चुलबुली मीठी बातें सुन कर वह भावविभोर हो जाता था.

प्रीति को भी दिनेश से बातें करने में खुशी मिलती थी. वह उस समय उम्र के उस पड़ाव पर भी पहुंच गई थी, जहां एक मामूली सी चूक भविष्य के लिए नासूर बन जाती है. लेकिन इस समय प्रीति या उस की बहन सीमा ने इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

धीरेधीरे प्रीति की जिंदगी में दिनेश का दखल बढ़ने लगा. अब वह प्रीति से उस के गाजियाबाद स्थित घर पर भी मिलने आने लगा था. इतना ही नहीं जब कभी प्रीति या उस के परिवार में अधिक रुपयों की जरूरत होती वह अपनी ओर से आगे बढ़ कर उन की मदद करता था.

प्रीति के पिता प्रमोद कुमार भी दिनेश कुमार के बढ़ते अहसानों के बोझ तले इतने दब चुके थे कि दिनेश के रुपए वापस करना उन के वश के बाहर हो गया. दिनेश कुमार ये रुपए प्रीति के घर वालों को यूं ही उधार नहीं दे रहा था.

रिश्तों में सेंध

दरअसल दिनेश कुमार अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की प्रीति के ऊपर न केवल पूरी तरह से फिदा था बल्कि उस के साथ उस के शारीरिक संबंध भी स्थापित हो चुके थे. वह प्रीति को किसी न किसी बहाने से अपने साथ घुमाने ले जाता था, जहां दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

समय का पहिया अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, दिनेश कुमार सन 1994 में कांस्टेबल के पद पर दिल्ली पुलिस में भरती हुआ था. सन 2008 में उस का प्रमोशन हेड कांस्टेबल के पद पर हो गया. इस के 8 साल बाद एक बार फिर उस का प्रमोशन हुआ और वह एएसआई बन गया. इन दिनों वह ट्रैफिक विभाग में सीमापुरी सर्कल में तैनात था.

प्रीति के साथ जिस सुरेंद्र कुमार नाम के युवक की जान गई थी, वह मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. उस के पिता खुशहाल सिंह सेना में रह चुके थे. रिटायरमेंट के बाद वह अपने गांव में सेटल हो गए. 2 बेटों के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा सुधीर हरिद्वार में रहता था. वह अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुके थे और इन दिनों एक पोल्ट्री फार्म चला रहे थे.

करीब 2 साल पहले उन का छोटा बेटा सुरेंद्र कुमार उर्फ अन्नू उत्तराखंड से गाजियाबाद आ गया था और प्रताप विहार में शीशे का बिजनैस करने लगा था. 2 साल तक अथक मेहनत करने के बाद आखिर उस का काम चल निकला. इस के बाद उस ने अपने मातापिता को भी अपने पास बुला लिया था. कुछ ही महीने पहले उस की मुलाकात प्रीति उर्फ गोलू से हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

सुरेंद्र से मुलाकात होने के बाद प्रीति फोन से सुरेंद्र से अकसर बात करती रहती थी. दिन गुजरने लगे उन के प्यार का रंग गहरा होता चला गया. कुछ दिनों के बाद सुरेंद्र और प्रीति का प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी हो गए थे. शादी की बात तय हो जाने पर दोनों प्रेमी खुश हुए. हालांकि प्रीति की उम्र सुरेंद्र से करीब 6 साल ज्यादा थी मगर दोनों में से किसी को इस पर जरा भी एतराज नहीं था.

प्रीति सुरेंद्र के साथ शादी के लिए तो दिलोजान से रजामंद थी किंतु उस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि दिनेश के साथ उस के विगत कई सालों से जो प्रेमिल संबंध थे उन से निकलना आसान नहीं था.

वजह यह कि दिनेश कुमार किसी भी हालत में उस की शादी किसी और से नहीं होने देना चाहता था.
प्रीति को अपने काबू में रखने के लिए उस ने उस की हर जायजनाजायज मांगें पूरी की थीं. हाल ही में उस ने प्रीति के पिता को 3 लाख रुपए उधार भी दिए थे. एएसआई दिनेश कुमार के बयान कितने सच और कितना झूठ है यह तो पुलिस की जांच के बाद पता चलेगा. परंतु इतना तय है कि प्रीति के घर में उस का इतना दखल था कि वह बेधड़क जब चाहे तब उस के घर आ जा सकता था.

प्रीति और सुरेंद्र के बीच जब से प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था तब से प्रीति ने एएसआई दिनेश से मिलनाजुलना कम कर दिया था. पहले तो दिनेश कुमार प्रीति और सुरेंद्र के प्यार से अनजान था, लेकिन 4-5 दिन पहले जब प्रीति ने उस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया तो वह सोच में पड़ गया.

दिल्ली पुलिस में 25 सालों से नौकरी कर रहे एएसआई दिनेश कुमार को यह समझने में देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. फिर भी उस ने किसी तरह प्रीति को फोन कर के उस से बातें करने की कोशिश जारी रखी. लेकिन 2 दिन पहले प्रीति ने दिनेश कुमार के लगातार आने वाले फोन से परेशान हो कर अपने मोबाइल फोन का सिम बदल लिया.

मामला बिगड़ता देख एएसआई दिनेश कुमार समझ गया कि प्रीति किसी कारण उस से संबंध तोड़ने पर आमादा है. जिस के फलस्वरूप उस ने प्रीति को सबक सिखाने की ठान ली. 24 मार्च, 2019 को दिनेश की रात की ड्यूटी थी.

25 मार्च की सुबह अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद वह शाहदरा निवासी अपने दोस्त पिंटू शर्मा के पास गया. उस की मारुति स्विफ्ट कार पर सवार हो कर वह प्रीति के घर जा पहुंचा. कार पिंटू शर्मा चला रहा था. प्रीति के घर पहुंच कर जब उसे पता चला कि प्रीति साईं उपवन मंदिर गई है तो वह उस का पीछा करता हुआ वहां भी पहुंच गया.

अचानक की गईं दोनों की हत्याएं

उधर साईं मंदिर में दर्शन करने के बाद जैसे ही प्रीति और सुरेंद्र अपने जूतों की ओर बढ़े, तभी एएसआई दिनेश कुमार प्रीति से बातें करने के लिए आगे बढ़ा. उस ने प्रीति को अपनी ओर बुलाया मगर प्रीति ने उस की ओर देख कर अपनी नजरें फेर लीं.

यह देख दिनेश कुमार की त्यौरियां चढ़ गईं. वह आगे बढ़ा और प्रीति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगा, मगर प्रीति ने उस का हाथ झटक दिया. प्रीति की यह बात एएसआई दिनेश कुमार को बहुत बुरी लगी. तभी उस ने अपना सर्विस पिस्टल निकाला और प्रीति के ऊपर फायर कर दिए.

प्रीति को खतरे में देख कर सुरेंद्र उसे बचाने के लिए दौड़ा तो दिनेश ने उस के भी सीने में 3 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह बाहर स्विफ्ट कार में इंतजार कर रहे पिंटू शर्मा के साथ वहां से फरार हो गया.
गाजियाबाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए 5 दिनों तक दिनेश कुमार अपने रिश्तेदारों के घर छिपा रहा. दिनेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने शाहदरा से इस हत्याकांड में शामिल रहे उस के दोस्त पिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात में प्रयोग की गई एएसआई दिनेश कुमार की सर्विस पिस्टल, 3 जीवित कारतूस तथा स्विफ्ट कार भी गाजियाबाद पुलिस ने बरामद कर ली. 2 अप्रैल, 2019 को दिल्ली पुलिस ने भी एएसआई दिनेश कुमार को उस के पद से बर्खास्त कर दिया.

साइबर युग की एक दिन की जिंदगी

देर रात तक काम कर के सोया प्रदीप सुबह देर तक सोना चाहता था, क्योंकि उसे अगले दिन भी देर रात तक काम करना था. सोने के पहले दिमाग को हलका करने के लिए उस ने 2 लार्ज पैग शराब भी पी ली थी. लेकिन देर तक सोने की उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. क्योंकि सुबह तड़के ही दीवार में लगा अलार्म बजने लगा, जिस से प्रदीप की नींद टूट गई.

आंखें मलते हुए उस ने दीवार की ओर देखा. दीवार में लगी स्क्रीन चमकी और उस में एक चेहरा उभरा. वह चेहरा उस का जानापहचाना था. वह कोई और नहीं, सैवी था. पर वह कोई जीताजागता आदमी नहीं, एक सौफ्टवेयर प्रोग्राम था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘प्रदीप, उठो तुम्हें आज समय से पहले औफिस पहुंचना है. वहां तुम्हारी सख्त जरूरत है.’’

स्क्रीन से सैवी गायब होता, उस के पहले ही प्रदीप ने कहा, ‘‘एक मिनट सैवी, कहीं तुम मजाक तो नहीं कर रहे. तुम्हें तो पता है मैं ने देर रात तक काम किया है. रात में जो पी थी, अभी उस का नशा भी नहीं उतरा है. ऐसा कौन सा जरूरी काम आ गया कि मुझे समय से पहले औफिस पहुंचना है.’’

सैवी क्या कहता, सिर्फ मुसकरा कर रह गया. जमहाई लेते हुए प्रदीप उठा. वह बाथरूम में घुसा. वाश बेसिन पर लगे शीशे में मुंह देखते हुए उस ने मुंह पर पानी के छींटे मारे. इसी के साथ शीशे, टौयलेट और बेसिन में छिपे तमाम डीएनए और प्रोटीन सेंसर हरकत में आ गए. प्रदीप जो सांस छोड़ रहा था, उस की जांच करने के साथ उस के शरीर की भी जांच शुरू हो गई, जिस से उस के शरीर की किसी भी बीमारी के अणुओं के स्तर का पता चल सके.

बाथरूम से निकल कर प्रदीप ने सिर पर एक कैप रख ली, जिस के माध्यम से अब टेलीपैथी द्वारा घर को नियंत्रित किया जा सकता था. कमरे में उसे थोड़ी गरमी महसूस हुई तो पहला निर्देश कमरा थोड़ा ठंडा करने का दिया गया. प्रदीप को हलकाहलका नशा अब भी था, दूसरे ठीक से वह सो भी नहीं सका था, इसलिए उसे सुस्ती महसूस हो रही थी.

शरीर को उत्तेजित करने वाला संगीत सुनने का मन हुआ. इस के बाद नंबर आया चायनाश्ते का. अगला निर्देश रोबोटिक रसोइए के लिए था कि वह उस के लिए चाय और नाश्ता तैयार कर दे. क्योंकि तब तक रोबोट इस तरह के तैयार हो जाएंगे कि वे घर में नौकर की तरह काम करने लगेंगे.

सारा काम रोबोट करेंगे

उपरोक्त दृश्य आने वाली सदी का है, जब सारे काम इंसान नहीं नई तकनीक करेगी, कंप्यूटर के माध्यम से. यह वह जमाना होगा जब रोबोट केवल इतना ही नही करेंगे, बल्कि साथ घूमनेफिरने भी नहीं जाएंगे, बल्कि साथ में रह कर शौपिंग भी कराएंगे. मालिक की हर बात उन की समझ में आने लगेगी. यह सब वे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए कराएंगे. चारों तरफ रोबोट ही रोबोट दिखाई देंगे. एयरपोर्ट से ले कर औफिसों तक. ये पुलिस की भी भूमिका संभालेंगे और ड्राइवर की भी. दुकानों के काउंटर पर भी यही बैठे होंगे. ये इंसान की भावनाओं को भी समझेंगे. इस तरह वे एक बेहतरीन काम करने वाले ही नहीं, बेहतरीन साथी भी बन सकेंगे.

आइए, फिर प्रदीप के पास चलते हैं. चायनाश्ते का निर्देश देने के साथ ही प्रदीप ने मैग्नेटिक कार को गैराज से बाहर आ कर खड़ी होने का निर्देश दे दिया था. वह डीजल, पैट्रोल, सीएनजी या इलैक्ट्रिक से चलने वाली कार नहीं थी. चुंबकीय ऊर्जा के दौर में हजारों मील की यात्रा बिना किसी ईंधन के होगी. उस दौर में ट्रेनें, कार, लोग चुंबकीय तरंगों पर तैरेंगे. सुपर कंडक्टर टेक्नोलौजी नई सदी की प्रमुख ऊर्जा तकनीक होगी, जिस में ऊर्जा क्षय नहीं होगी.

आने वाली सदी की छोडि़ए. जर्मनी, जापान और चीन इस तकनीक में आज भी आगे हैं. मैग्लेव ट्रेनें चुंबकीय तरंगों पर तैरते हुए तेज रफ्तार से आगे दौड़ती हैं. उन की ये चुंबकीय तरंगें सुपर कंडक्टर्स के जरिए पैदा की जाती हैं. ये रफ्तार के मामले में विश्व रिकौर्ड तोड़ रही हैं. इनकी अधिकतम रफ्तार 361 मील प्रतिघंटा है. इन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है.

बहरहाल, कार को बाहर आने का निर्देश दे कर प्रदीप किचन में पहुंचा तो रोबो उस का पसंदीदा चायनाश्ता बना चुका था. प्रदीप ने झट से आंखों पर कौंटेक्ट लेंस चढ़ाया. कौंटेक्ट लेंस पहनते ही वह इंटरनेट से जुड़ गया. इंटरनेट उस की रेटीना पर क्लिक करने लगा. गरमागरमा चायनाश्ते के साथसाथ लेंस पर हेडलाइंस फ्लैश होने लगीं.

मंगल ग्रह पर बन रही कालोनी के प्रोजैक्ट को अगर जल्दी पूरा करना है तो वहां काम करने वालों को बर्फीली ठंड से बचाने के लिए धरती से और संसाधनों की व्यवस्था करनी होगी. पहली स्टारशिप जाने को तैयार है, इस के लिए चंद्रमा की सतह पर लाखों नैनोबोट्स जूपिटर छोड़ने होंगे, ताकि वे स्टारशिप की जरूरी यात्रा के लिए चुंबकीय फील्ड तैयार कर सकें.

कई सालों की मेहनत के बाद अंतरिक्ष में पर्यटकों के लिए एक बड़ा पर्यटनस्थल तैयार कर लिया गया है. अब पर्यटक मौजमस्ती के लिए वहां जा सकते हैं. अभी जो नई बीमारी फैल रही है, वैज्ञानिक उस के वायरस का पता कर रहे हैं, क्योंकि अभी इस का कोई इलाज नहीं है. वैज्ञानिक उस के जींस के कमजोर पहलुओं के बारे में पता लगा रहे हैं.

कौंटेक्ट लेंस पर इन सारी हेडलाइंस को देखने के बाद एक खबर ने प्रदीप का ध्यान आकर्षित किया.

हैडलाइन थी— दिल्ली और उस के आसपास के शहरों को बिजली सप्लाई करने वाले पावर स्टेशन में प्रौब्लम की वजह से बिजली की सप्लाई बाधित हो रही है. अगर जल्दी इस की मरम्मत नहीं की गई तो दिल्ली और उस के आसपास का इलाका अंधेरे में डूब जाएगा.

दरअसल, जिस युग की हम बात कर रहे हैं, तब तक धरती पर मौजूद वे सारे संसाधन खत्म हो चुके होंगे, जिन से अभी ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है, इसलिए तब लोग सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष से मिलने वाली ऊर्जा पर निर्भर होंगे. अंतरिक्ष में घूमते कृत्रिम उपग्रह बिजलीघर का भी काम करेंगे. बड़ी संख्या में सेटेलाइट सूर्य के विकिरण को सोख कर बिजली उत्पन्न करेंगे. हर सेटेलाइट 5 से 10 गीगावाट बिजली पैदा करने में सक्षम होगा. यह बिजली धरती पर उत्पन्न होने वाली बिजली से सस्ती होगी.

जापान अभी से स्पेस में पावर स्टेशन की संभावना देखने लगा है. मित्सुबिशी इलैक्ट्रिक और कुछ दूसरी कंपनियां इस दिशा में काम भी कर रही हैं. अंतरिक्ष में तैनात होने वाला जापान का बिजलीघर डेढ़ मील में फैला होगा. यह बिलियन वाट बिजली पैदा करेगा.

पावर स्टेशन में होने वाली गड़बड़ी की हेडलाइंस नजर आते ही प्रदीप समझ गया कि औफिस में इतनी सुबहसुबह क्यों बुलाया गया है. वह नाश्ता कर के घर से बाहर आया तो गैराज से बाहर आ कर तैरती हुई कार उस का इंतजार कर रही थी. जल्दी औफिस पहुंचने का निर्देश मिलते ही मैग्नेटिक कार, इंटरनेट, जीपीएस और सड़क में छिपे लाखों चिप्स से जुड़ गई, ताकि मौनिटर पर ट्रैफिक के बारे में जानकारी मिलती रहे.

कार चुंबकीय पट्टी वाली सड़क पर तैरने लगी. इन चुंबकीय तरंगों को सुपर कंडक्टिंग से तैयार किया गया था. कार अभी चली ही थी कि स्क्रीन पर एक बार फिर सैवी का चेहरा उभरा. उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, आप के लिए नया संदेश यह है कि आप कौन्फ्रैंस रूम में पहुंच कर सब से मिलें. इस के अलावा आप की बहन का भी एक वीडियो मैसेज है.’’

कार खुद ही आगे बढ़ती जा रही थी. अभी औफिस पहुंचने में समय था, इसलिए प्रदीप ने सोचा कि तब तक बहन का वीडियो मैसेज ही देख ले. उस ने कलाई में बंधी घड़ी का बटन दबाया. घड़ी के बटन पर बहन की तसवीर उभरी. बहन ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम्हें तो पता ही है, शनिवार को सात्विक का बर्थडे है. इस बार तुम उस के लिए नए मौडल का रोबोटिक डौगी ले आना.’’

इलेक्ट्रिसिटी का जमाना खत्म हो चुका था. चुंबकीय ऊर्जा का युग था. प्रदीप की कार के आसपास से अलगअलग बैंडविड्थ में ट्रेनें, ट्रक और कारें ऊपरनीचे और अगलबगल से गुजर रही थीं. ये ऐसी ऊर्जा थी, जिस में कार के लिए कभी ऊर्जा की जरूरत नहीं पड़ने वाली थी, जिस से धन की भी बचत हो रही थी.

प्रदीप औफिस पहुंच गया. वह एक पावर जेनरेटिंग और सप्लाई करने वाली एक बड़ी कंपनी का औफिस था. बहुत बड़ी और काफी ऊंची बिल्डिंग थी. गेट पर पहुंचते ही लेजर ने चुपचाप आंखों की पुतलियों और चेहरे से पहचान कर गेट खोल दिया.

कौन्फ्रैंस रूम आधे से ज्यादा खाली पड़ा था. कुछ सहयोगी आ कर अपनीअपनी सीट पर बैठ चुके थे. प्रदीप के कौंटेक्ट लेंस में उन लोगों की थ्री डी इमेज उभरी, जो कौन्फ्रैंस रूम में टेबल के इर्दगिर्द बैठे थे. ये लोग भले ही औफिस नहीं आ पाए थे, लेकिन होलोग्राफिक तौर पर औफिस में साथ मौजूद थे. कौंटेक्ट लेंस इन लोगों को पहचान रहा था, साथ ही उन की प्रोफाइल और बैकग्राउंड भी दिखा रहा था.

अचानक डायरेक्टर की कुरसी की जगह पर उन की तसवीर उभरी. उन्होंने कहा, ‘‘जेंटलमेन, जैसा कि आप लोगों को पता ही है कि अंतरिक्ष में स्थित अपने पावर हाउस में कुछ गड़बड़ी हो गई है. यह गंभीर मामला है. अच्छी बात यह है कि समय से इस की जानकारी मिल गई, जिस से खतरा टल गया.

दुर्भाग्य से जिस रोबो को मरम्मत की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वह नाकाम रहा. रोबोट ने हमें जो थ्री डी इमेज भेजी है, उस में गड़बड़ी साफ दिख रही है. इस से हमें गड़बड़ी का पता चल गया है. इस काम के लिए वह रोबो पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उस में इस गड़बड़ी को ठीक करने का प्रोग्राम नहीं है, इसलिए हमें वहां अनुभवी रोबोट्स भेजने होंगे.’’

काफी चर्चा के बाद मानव नियंत्रण वाले रिपेयर क्रू को वहां भेजने का निर्णय लिया गया. डायरेक्टर ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम जल्दी से जल्दी ऐसे रोबोट्स तैयार करो, जिन में ऐसे प्रोग्राम हों जो टेलीपैथिक संकेतों पर काम कर के पावर स्टेशन में हुई गड़बड़ी को ठीक कर सकें.’’

इस तरह के रोबोट प्रदीप ने पहले ही तैयार कर रखे थे, इसलिए उस ने तत्काल उन रोबोट्स  को काम पर लगा दिया. ये ऐसे रोबोट्स थे, जिन्हें रोबोटिक मानव कहा जा सकता था. उन के सिर में इलेक्ट्रोड, शरीर में अलगअलग तरह की नैनो मशीनें और चिप लगी थीं, जिस से उन की क्षमता में असीमित वृद्धि हो गई थी.

मीटिंग में कुछ परेशानी वाली बातें भी हुईं. प्रदीप को जो रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार पावर स्टेशन में जो गड़बड़ी हुई थी, वह किसी दुश्मन देश द्वारा रोबोट में वायरस भेज कर खराबी की गई थी. इसलिए काम करने वाले रोबोट ने ही गड़बड़ी कर दी थी. प्रदीप के इस खुलासे से कौन्फ्रैंस रूम में सन्नाटा पसर गया.

लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वायरस की वजह से अपने ही रोबोट ने ऐसा किया है. क्योंकि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था. फिर रोबोट एंटी वायरस से सुसज्जित था. बहरहाल, इस बात को गोपनीय रखने की हिदायत के साथ मीटिंग खत्म हुई.

थके होने के बावजूद उस दिन प्रदीप को काफी व्यस्त रहना पड़ा. पावर स्टेशन की मरम्मत के लिए रोबोट क्रू को नए सिरे से तैयार करना पड़ा. क्वांटम कंप्यूटर के जरिए बनाए सभी प्रायोगिक रोबोट्स निष्क्रिय कर दिए गए. इस के साथ ही रोबोट्स की गड़बड़ी भी ठीक कर दी गई थी. सारा काम हो गया तो प्रदीप घर लौटने की तैयारी करने लगा.

वह कार में बैठा और घर आ गया. 2 दिन से लगातार काम की वजह से प्रदीप बेहद थक गया था. घर पहुंच कर वह सोफे में धंस गया, तभी सैवी एक बार फिर दीवार की स्क्रीन पर उभरा. प्रदीप ने उस की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, डाक्टर सेन ने एक खास संदेश भेजा है.’’

डा. सेन यानी रोबो डाक्टर. सैवी के संदेश देने के बाद डा. सेन स्क्रीन पर आए. वह इतने वास्तविक लग रहे थे कि लगता ही नहीं था कि वह केवल सौफ्टवेयर प्रोग्राम है. डा. सेन ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम्हें परेशान करने के लिए मुझे खेद है. लेकिन कुछ ऐसा है जो तुम्हें बताना जरूरी था. पिछले साल तुम्हारी जो दुर्घटना हुई थी, वह तो तुम्हें याद ही होगी. उस दुर्घटना में तुम लगभग मर ही चुके थे. तुम्हें शायद याद नहीं कि शिमला में तुम पहाडि़यों से हजारों फुट नीचे गिर गए थे. तुम्हें बाहरी ही नहीं, काफी अंदरूनी चोटें भी आई थीं. तब तुम्हारे कपड़ों ने तुम्हें बचा लिया था.

‘‘तुम्हारे कपड़ों ने ही एंबुलैंस को फोन किया. उसी के आधार पर तुम्हारी मैडिकल हिस्ट्री अपलोड की गई थी. तब एक रोबोट अस्पताल में माइक्रो सर्जरी द्वारा तुम्हारे शरीर के बहते खून को रोका गया था. तुम्हारे पेट, लीवर और आंतें इस तरह क्षतिग्रस्त हो गई थीं कि उन्हें रिपेयर करना मुश्किल था. सौभाग्य से आर्गेनिक तौर पर तुम्हारे इन  अंगों को फिर से तैयार किया गया था. ये सारे अंग एक टिश्यू फैक्ट्री में तैयार किए गए थे. मेरे रिकौर्ड के अनुसार, तुम्हारे एक हाथ को भी बदला गया था.

‘‘आज मैं तुम्हारे इन नए अंगों को एक बार फिर चैक करना चाहता हूं. अपने एमआरआई स्कैनर को हाथ से पकड़ो और इसे पेट की ओर ले जाओ. तुम बाथरूम में जा कर सेलफोन के आकार के इस स्कैनर को अंगों के आसपास घुमाओगे तो इन अंगों की थ्री डी इमेज स्क्रीन पर दिखने लगेगी. इन अंगों की थ्री डी इमेज देख कर हम पता लगाएंगे कि तुम्हारे शरीर में कितना सुधार हुआ है. आज सुबह तुम बाथरूम गए थे तो तुम्हारे पैनक्रियाज में बढ़ते कैंसर का पता चला है.’’

कैंसर का नाम सुन कर प्रदीप तनाव से भर उठा. लेकिन यह सोच कर राहत महसूस की कि कैंसर तो अब मामूली बीमारी रह गई है.

इस वक्त हम जिस युग में हैं, उस युग में ऐसे रोबोट्स विकसित हो जाएंगे, जो जांच से ले कर सारे औपरेशन तक करेंगे. डाक्टरों को कोई बड़ा औपरेशन करना होता है तो एक ही औपरेशन में थक जाते हैं. रोबोट्स इस समस्या का निदान करेंगे. हार्ट सर्जरी के लिए बाईपास औपरेशन में सीने के बीच एक फुट लंबी जगह खोलनी पड़ती है, जिस के लिए जनरल एनेस्थीसिया की जरूरत होती है, साथ ही संक्रमण का भी डर रहता है.

औपरेशन के बाद होश में आने से ले कर स्वास्थ्य में सुधार होने तक असहनीय दर्द और तमाम मुश्किलों का सामना करना होता है. द विंची रोबोटिक सिस्टम से ये पूरी प्रक्रिया काफी छोटी और बेहतर हो जाएगी.

सन 2100 तक हर तरह के औपरेशन रोबोट संभाल लेंगे. वे हर औपरेशन के लिए प्रोग्राम किए जाएंगे. भविष्य में उन्नत कंप्यूटर आएंगे, जिस से माइक्रो औपरेशन होंगे. माइक्रो का मतलब यह है कि वे दिमाग में घुस कर नर्व सिस्टम को भी ठीक कर सकेंगे और औपरेशन भी ऐसा, जिस में चीरफाड़ की गुंजाइश एकदम खत्म हो जाएगी. यकीनन तब तक सर्जिकल औपरेशन की तसवीर पूरी तरह बदल जाएगी.

छोटे से छेद से रोबोट शरीर के अंदर प्रवेश करेगा और काम को अंजाम दे देगा. दर्द भी कम और स्वस्थ भी जल्दी. अभी नर्व फाइबर और बारीक कोशिकाओं का औपरेशन नहीं हो सकता, लेकिन तब संभव होगा. शरीर में कैमरे के तौर पर अंदर डाले जाने वाले इंडोस्कोप शायद पतले धागे से भी ज्यादा पतले होंगे. यानी औपरेशन का काम माइक्रो मशीन कहे जाने वाले रोबोट्स के हाथों में होगा.

रात में प्रदीप को अचानक भांजे का बर्थडे याद आ गया. बर्थडे पार्टी में वह होलोग्राफी इमेज के रूप में मौजूद रहेगा, लेकिन अभी वह एकदम खाली था. समय कैसे कटे, इस के लिए उस ने सैवी को याद किया. सैवी तुरंत स्क्रीन पर हाजिर हुआ. प्रदीप ने कहा, ‘‘सैवी, इस सप्ताह मैं खाली हूं. क्या तुम मेरे लिए किसी साथी की व्यवस्था कर सकते हो?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, आप की प्राथमिकताएं मेरी मेमरी में प्रोग्राम्ड हैं. मैं अभी स्क्रीन पर इंटरनेट के जरिए कुछ ऐसी ही प्रोफाइल दिखाता हूं.’’

अगले ही पल स्क्रीन पर कुछ लड़कियों की तसवीरें उभरने लगीं, जो खुद किसी साथी का साथ चाहती थीं. उन में से शिल्पी नाम की लड़की की प्रोफाइल और फोटो प्रदीप को पसंद आई. शिल्पी प्रदीप को पसंद आ गई थी. सैवी ने प्रदीप की प्रोफाइल और वीडियो भेज कर शिल्पी से पूछा कि क्या वह उस के बौस के लिए उपलब्ध है?

शाम को प्रदीप का दोस्त आ गया तो उस ने उस के साथ डिनर और क्रिकेट के मैच का मजा लिया. मैच लिविंग रूम में होलोग्राफिक इमेज के तौर पर उपलब्ध था. लगता था कि मैदान से 50 मीटर दूर स्टेडियम में बैठ कर मैच देख रहे हैं. रात में दोस्त चला गया तो सैवी की तसवीर उभरी, उस ने बताया कि शिल्पी ने उस का आमंत्रण स्वीकार कर लिया है.

सप्ताह का अंत

सप्ताह के अंत में यानी शनिवार को प्रदीप के भांजे का बर्थडे था, जिस में उसे भांजे को एक रोबोटिक डौगी गिफ्ट देना था. प्रदीप घर की स्क्रीन पर ही माल के वर्चुअल टूर पर निकला. वह कई टौय स्टोर में गया. आखिर उसे एक रोबो पसंद आ गया. उस ने टेलीपैथी के जरिए और्डर दिया. यह खरीदारी नेट के जरिए की जा रही थी, लेकिन उसे लगा कि इस से अच्छा होगा वह दुकान पर जा कर देखे और खरीदे.

दुकान पर हर तरह के रोबोट थे. हकीकत यही होगी कि उस समय रोबोट ही सब से बड़ा बिजनैस होंगे. प्रदीप स्टोर पर पहुंचा तो रोबोट क्लर्क ने उस की आगवानी की, ‘‘सर, मैं आप की क्या मदद करूं?’’

प्रदीप को लेटेस्ट रोबोट डौग का मौडल पसंद आया. इतनी ही देर में उस ने कौंटेक्ट लेंस पर लगे नेट से उस के प्राइस की तुलना दूसरे स्टोर के दामों से कर ली. उसे लगा कि मौल में पसंद किया गया रोबोट सही दामों में मिल रहा है, इसलिए डील पक्की हो गई. क्रैडिट कार्ड से कीमत अदा कर के डिलीवरी के लिए वह बहन के घर का पता दे आया.

शिल्पी से मुलाकात

अब प्रदीप खाली था. शाम को उसे शिल्पी से मिलना था. रोमांच भी था और अनजानी खुशी भी. शिल्पी के साथ किस रेस्टोरेंट में जाना है, कहां बैठना है, क्या खाना है, सब कुछ नेट की मदद से तय हो चुका था. अचानक उसे लगा कि शिल्पी को आना है तो घर में कुछ बदलाव होना चाहिए.

चूंकि घर की हर चीज प्रोग्राम्ड थी, इसलिए बदलाव के लिए सैवी से बात कर के पता लगाना था. सैवी ने तत्काल ढेर सारे डिजाइन पेश कर दिए, जिस के अनुसार घर को नया लुक दिया जा सकता था. इस के बाद सैवी ने बताया कि कौन सी कंपनी इस काम के लिए कितना समय और पैसा लेगी. एक इंजीनियरिंग कंपनी ने दावा कि महज 2 घंटे में घर को नया लुक दे देगी. कंपनी के रोबोट सारे घर को इच्छानुसार बदल देंगे.

इस नए लुक की खासियत यह थी कि इस में आप जिस दिन जिस रंग में चाहेंगे, पूरे घर के अंदर का इंटीरियर उसी रंग में दिखेगा. लुक में हलकेफुलके बदलाव भी संभव होंगे. खैर, रोबोट्स ने आ कर घंटर भर में वह सब कर दिया, जो प्रदीप चाहता था.

शिल्पी पेशे से आर्टिस्ट थी. उस की वेब डिजाइनिंग की कंपनी थी. उस के यहां थ्री डी वेब डिजाइनिंग का काम होता था. शिल्पी ने हवा में अंगुलियां चला कर एक छोटे से यंत्र को औन किया, जिस से एनिमेशन हवा की पतली सतह पर तैरने लगे.

देखने में शिल्पी 26 साल की और प्रदीप 28 साल का लग रहा था, जबकि हकीकत में दोनों की असली उम्र 58 और 62 साल थी. दवाओं और जींस ने उन की उम्र को थाम सा लिया था. दरअसल उस युग में ऐसे जींस की खोज हो चुकी होगी, जो उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को एकदम धीमी कर देंगे.

इस के बाद शिल्पी और प्रदीप ने साथ रहने का फैसला कर के शादी कर ली, जबकि उस युग में जल्दी शादी करने का फैसला कोई नहीं करेगा. शिल्पी गर्भवती हुई तो दोनों ने तय किया कि उन का बच्चा किन खासियत और खूबियों वाला होना चाहिए.

दरअसल, इस के लिए सरकार ने कुछ नियम बना रखे थे. बच्चों की पैदाइश के लिए सरकार ने स्वीकृत जींस की एक सूची बना रखी थी. उसी के तहत पैदा होने वाले बच्चों की जींस में फेरबदल कराया जा सकता था. बच्चों के पैदा होने की दर कम होती जा रही थी, क्योंकि हर कोई एकाकी जीवन जीना चाहता था.

दो बीवियों का खूनी

राजस्थान के जिला जालौर के थाना चितलवाना का एक गांव है सेसावा. इसी गांव में दीपाराम प्रजापति अपनी 2 पत्नियों के साथ रहता था. उस की पहली शादी 10 साल पहले मालूदेवी से हुई थी. माली भोलीभाली मंदबुद्धि लड़की थी. इसलिए दीनदुनिया से बेखबर वह खुद में ही मस्त रहती थी. लेकिन वह घरगृहस्थी के सभी काम कर लेती थी. भले ही वह काम धीरेधीरे करती थी.

जिस समय दीपाराम की शादी माली देवी से हुई थी, वह काफी गरीब था. वह राजमिस्त्री था. किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के गुजरबसर कर रहा था. लेकिन माली से शादी के बाद उस के दिन फिर गए. वह मकान बनाने के ठेके लेने लगा. वहां वह खुद राजमिस्त्री था. अब उस के यहां कईकई राजमिस्त्री काम करने लगे.

कुछ ही दिनों में दीपाराम लाखों में खेलने लगा. पैसे आए तो उस के शौक भी बढ़ गए. उस ने अपना बढि़या मकान बनवा लिया. कार भी खरीद ली. इस बीच माली से उसे एक बेटा पैदा हुआ, जो इस समय 7 साल का है.

मंदबुद्धि माली जो कभी दीपाराम को सुघड़ और बहुत सुंदर लगती थी, पैसा आने के बाद वह बेकार लगने लगी. इस की एक वजह यह थी कि वह सिर्फ औरत थी. वह न सजती थी न संवरती थी.

दिन भर काम में लगी रहती और रात में कहने पर उस के पास सो जाती. इस तरह धीरेधीरे माली से उस का मन उचटने लगा. वह ऐसी पत्नी चाहता था, जो उसे प्यार करे. सजसंवर कर नखरे दिखाए, उस के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए वह दूसरी शादी के बारे में सोचने लगा. उसे लगा कि दूसरी शादी के बाद ही उस की जिंदगी की नीरसता दूर हो सकती है.

दूसरी शादी का विचार आते ही वह लड़की की खोज में लग गया, जो उस के लायक हो. इस के लिए उस ने अपनी जानपहचान वालों को भी सहेज दिया. उस के किसी जानपहचान वाले ने एक ऐसी औरत के बारे में बताया जिस की 3 शादियां हो चुकी थीं. इस के बावजूद वह मांबाप के घर रह रही थी.

उस औरत का नाम था दरिया देवी उर्फ दौली. वह राजस्थान के जिला बाड़मेर के गांव सिवाना के रहने वाले पीराराम प्रजापति की बेटी थी. दौली के बारे में दीपाराम को पता चला तो वह पीराराम से उस के एक परिचित के माध्यम से मिला. उस ने वहां बताया कि उस की शादी हुई थी, लेकिन पत्नी की मोैत हो गई है. इसलिए अब वह उस की बेटी दौली से नाताप्रथा के तहत विवाह करना चाहता है. इस के लिए उस ने पीराराम को मोटी रकम का लालच दिया.

पीराराम को मोटी रकम तो मिल ही रही थी, इस के अलावा जवान बेटी से मुक्ति भी. उस ने 5 लाख रुपए ले कर दौली का नाताप्रथा के तहत दीपाराम से विवाह कर दिया. इस तरह दीपाराम से चौथा विवाह कर के उस की पत्नी बन गई. लेकिन जब वह ससुराल पहुंची तो उस की पहली पत्नी माली और उस के बेटे को देख कर उस ने सिर पर आसमान उठा लिया. क्योंकि दीपाराम ने यह झूठ बोल कर उस से शादी की थी. उस की पहली पत्नी  मर चुकी है और उस का कोई बच्चा भी नहीं है.

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इस के बाद तो यह रोज का सिलसिला बन गया. दौली दीपाराम को झूठा कहती और उस की किसी बात पर यकीन नहीं करती. दीपाराम उसे समझाता कि माली मंदबुद्धि है. नौकरानी की तरह रहती है. उसे तो मौज से रहना चाहिए. लेकिन इस पर दौली राजी नहीं थी. उस का कहना था कि वह पति का बंटवारा नहीं चाहती. उस ने यह बात अपने घर वालों से बताई तो उन्होंने पंचायत बुला ली.

पंचों की खातिरदारी में दीपाराम को लाखों रुपए खर्च करने पड़े. इस के अलावा उसे दौली के नाम से उसे 10 लाख रुपए की एफडी करानी पड़ी. इस तरह दूसरी पत्नी के चक्कर में एक बार फिर उसे लाखों रुपए खर्च करने पड़े.

पंचायत में समझौता तो करा दिया लेकिन दौली शांत नहीं हुई. वह लगभग रोज ही उस से लड़ाईझगड़ा करती. दिनभर का थकामांदा दीपाराम घर लौटता तो चायपानी पिलाने के बजाए वह उसे जलीकटी सुनाती. दीपाराम पत्नी के इस व्यवहार से काफी दुखी था. वह दौली को बहुत समझाता, लेकिन वह तो लड़ने का कोई न कोई बहाना ढूंढती रहती थी.

बहाने की कोई कमी नहीं होती थी. बहाना मिलते ही वह आसमान सिर पर उठा लेती थी. 2 बच्चों, ढाई साल के कैलाश और 8 महीने की सरिता की मां बनने के बाद भी दौली के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.

इधर दीपाराम को गुजरात के पालनपुर में मकान बनाने का ठेका मिला था. वहां वह ससुराल में रहता था. दौली उस के साथ ही थी. वह वहां भी क्लेश करती थी. दौली के इस व्यवहार से तंग आ कर उस का मन काम से उचटने लगा और पहली पत्नी माली की ओर उस का झुकाव होने लगा. इस की वजह यह थी कि माली भोलीभाली थी. उस के लिए तो सभी एक जैसे थे. पति प्यार करे तो ठीक, न करे तो भी ठीक. वह अपनी मस्ती में मस्त रहती थी. बेटे और सास की सेवा में लगी रहती थी.

नवंबर, 2017 में दौली दीपाराम के साथ सेसावा आई तो सास से खूब झगड़ा किया. दीपाराम को दौली की यह हरकत इतनी बुरी लगी कि अब वह उसे पत्नी नहीं, मुसीबत लगने लगी. यही सोच कर अब वह इस मुसीबत रूपी पत्नी से पीछा छुड़ाने के बारे में सोचने लगा, क्योंकि उस ने उस का ही नहीं, पूरे परिवार का जीना मुहाल कर दिया था.

दीपाराम अब इस बात पर विचार करने लगा कि वह दौली से कैसे पीछा छुड़ाए. वह उसे इस तरह मारना चाहता था कि लोगों को लगे कि उस की हत्या नहीं की गई, बल्कि दुर्घटना में मरी है. ऐसा होने पर पुलिस भी उस का कुछ नहीं कर पाएगी. पालनपुर में वह ऐसा करना नहीं चाहता था, इसलिए गहने बनवाने की बात कह कर वह उसे गांव ले आया.

18 दिसंबर, 2017 को वह सेसावा आ गया. चलते समय उस ने बोतल में 2 लीटर पैट्रोल भरवा लिया था. बोतल में पैट्रोल देख कर दौली को संदेह हुआ तो उस ने यह बात मायके वालों को बता दी. लेकिन घर वालों ने उस का वहम बता कर बात खारिज कर दी. क्योंकि दीपाराम ने अपने ससुर को पहले ही फोन कर के बता दिया था कि वह दौली के लिए गहने बनवाने गांव जा रहा है.

19 दिसंबर, 2017 की सुबह दीपाराम ने मां से कहा कि वह दौली के लिए थोड़े गहने बनवाने जा रहा है. हम दोनों के आने तक वह बच्चों का खयाल रखना. यह बात मंदबुद्धि माली ने सुनी तो गहने के लालच में वह भी भाग कर आई और कार का पिछला दरवाजा खोल कर बैठते हुए बोली, ‘‘मुझे भी गहने चाहिए. मैं भी साथ चलूंगी.’’

दीपाराम उसे उतार भी नहीं सकता था, दूसरे इसलिए उस ने कार आगे बढ़ा दी. दौली दीपाराम की बगल वाली सीट पर आगे बैठी थी. उस ने कार बढ़ा दी, लेकिन वह इस सोच में डूब गया कि वह अपनी योजना को कैसे अंजाम दे? वह एक बार फिर योजना बनाने लगा.

इस बार उस के दिमाग में जो योजना आई, उस के अनुसार उस ने जिस तरफ दौली बैठ गई थी, उसी ओर गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर सड़क किनारे पड़े पत्थरों से कार भिड़ा दी.

संयोग से दौली को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. उस के मन में शंका तो थी, वह कार से उतर भागी. वह समझ गई कि दीपाराम उसे मारने के लिए लाया है. वह थोड़ी दूर गई थी कि रास्ते खड़ी औरतों ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, तुम इस तरह भाग क्यों रही हो.’’

‘‘मेरा पति मुझे मारना चाहता है. इसीलिए उस ने कार पत्थरों से टकरा दी है.’’

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दीपाराम ने भाग रही दौली को पकड़ा और गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘गलती से कार टकरा गई थी. लगता है समय ठीक नहीं है. चलो, घर लौट चलते हैं.’’

दौली दीपाराम के साथ जाने को तैयार नहीं थी लेकिन, औरतों ने कहा कि औरतें 2 हैं और पति अकेला, वह कुछ नहीं कर पाएगा.  फिर यह उस का वहम है, भला उसे क्यों मारेगा. वह पति के साथ घर जाए.

इस के बाद दौली और माली पीछे वाली सीट पर बैठ गईं तो दीपाराम गांव की ओर लौट पड़ा. दीपाराम सिर्फ दौली को मारना चाहता था, लेकिन अब वह दौली के साथ माली को भी ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. उस का सोचना था कि उस के पास पैसे हैं ही, वह तीसरी शादी कर लेगा.

गांव एक किलोमीटर के लगभग रह गया तो दीपाराम ने कार रोक दी. वह फुरती से नीचे उतरा और कार को लौक कर दिया, जिस से माली और दौली उतर न सकें. पैट्रोल की बोतल उस ने अपनी सीट के पास ही रखी थी. उतरते समय उस ने बोतल हाथ में ले ली थी. बाहर आ कर उस ने बोतल का पैट्रोल कार पर उड़ेल कर आग लगा दी. कार धूधू कर जलने लगी. कार के दरवाजे लौक थे, इसलिए दौली और माली बाहर नहीं आ सकीं.

उन की चीखें तक बाहर नहीं आ सकीं और दोनों उसी में घुटघुट कर मर गईं. थोड़ी देर बाद उधर से एक मोटरसाइकिल सवार निकला तो उसे देख कर दीपाराम चीखनेचिल्लाने लगा. उस ने गांव में खबर की तो गांव वाले वहां पहुंचे. तब तक कार जल चुकी थी.

गांव वालों ने किसी तरह पानी डाल कर आग बुझाई तो पता चला कि कार के साथ दीपाराम की दोनों पत्नियां जल कर मर चुकी थीं. उस का कहना था कि गाड़ी बंद होने पर वह नीचे उतरा तो दरवाजे खुद लौक हो गए और उस के बाद आग लगने से दोनों जल कर मर गईं.

गांव वालों ने घटना की सूचना थाना चितलवाना को दी तो थानाप्रभारी तेजू सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. 2 महिलाओं की जली हुई लाशें कार में पड़ी थीं. पति सिर पीटपीट कर रो रहा था. पुलिस ने उसे सांत्वना दी. थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना एसपी विकास शर्मा एवं एसएसपी बींजाराम मीणा एवं डीएसपी फाऊलाल को दी.

थोड़ी देर में पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर आ गए. निरीक्षण में पुलिस को यह घटना संदिग्ध लगी तो दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर उन के मायके वालों को सूचना दे कर थाने बुला लिया. दौली के मायके वालों का कहना था कि यह दुर्घटना नहीं, इस में दीपाराम की कोई साजिश है तो पुलिस ने दीपाराम से सख्ती से पूछताछ की.

आखिर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि दौली के लड़नेझगड़ने से ऊब कर उस ने ऐसा किया. वह पहली पत्नी को नहीं मारना चाहता था, मगर वह भी गहनों के चक्कर में साथ आ गई और मारी गई.

दीपाराम ने अपराध स्वीकार कर लिया तो 20 दिसंबर को मालूदेवी और दौली की हत्या का मुकदमा मृतका दौली के पिता पीराराम की ओर थाना चितलवाना में दीपाराम प्रजापत के खिलाफ दर्ज करा दिया गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अब उस के तीनों बच्चों की देखभाल उस की बूढ़ी मां कर रही है.

एसिड अटैक : महादलित औरतों पर सरेआम फेंका तेजाब

Acid Attack Crime News in Hindi: 27 जनवरी, 2016 की सुबह. बिहार (Bihar) के अररिया (Araria) जिले के नरपतगंज थाने की फतेहपुर पंचायत में सड़क बनने को ले कर दबंगों और महादलितों (Maha Dalit) के बीच झगड़ा शुरू हुआ, जो देखतेदेखते तीखी बहस, गालीगलौज और फिर मारपीट में बदल गया. महादलितों का कहना था कि वे पिछले कई सालों से बस्ती में रह रहे हैं, इसलिए उन के टोले तक पक्की सड़क बननी चाहिए. वहीं दबंग अपनी जमीन से हो कर पक्की सड़क नहीं बनने देना चाहते थे. महादलितों की जिद पर अड़ने से दबंगों का गुस्सा इस कदर बढ़ा कि उन्होंने महादलित औरतों के ऊपर तेजाब फेंक डाला. इस एसिड अटैक से कई औरतों समेत बहुत से लोग बुरी तरह जख्मी हो गए. गीता देवी, दुलारी देवी, बुदनी देवी, मीरा देवी समेत दर्जनभर लोगों के जिस्म तेजाब से जल गए और उन्हें आननफानन अस्पताल में भरती कराना पड़ा.

पुलिस ने इस मामले के आरोपी सुरेंद्र ठाकुर, अमित ठाकुर, अमरजीत ठाकुर और सुमित को गिरफ्तार कर कानूनी खानापूरी तो कर ली, लेकिन तेजाब से जख्मी हुई औरतों के जिस्म के साथ जो उन के सपने भी जल गए, उन की भरपाई कैसे होगी और कौन करेगा

बिहार के मनेर ब्लौक के छितनावां गांव की 2 बहनों चंचल और सोनम की हालत और उन के चेहरे को देख कर अच्छेअच्छों का कलेजा कांप सकता है. 21 अक्तूबर, 2012 की काली रात ने चंचल और उस की बहन सोनम की जिंदगी में घुप अंधेरा भर दिया था. समूचा इलाका दशहरे के मेले से जगमगा रहा था. दोनों बहनें भी मेला घूम कर छत पर आराम से सो रही थीं.

आधी रात को जब गांव में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ था, तो चंचल को छत पर कुछ आवाजें सुनाई दीं. उस की नींद खुल गई. उस ने देखा कि 3 लड़के उस की छत पर खडे़ थे.

अंधेरे में जब तक चंचल उन्हें पहचानने की कोशिश करती, तब तक लड़के उस के करीब आ चुके थे. सभी के हाथ में तेजाब से भरी बोतल थी. जब तक चंचल कुछ समझ पाती, बदमाशों ने उस के ऊपर तेजाब डाल दिया.

दर्द से बिलबिलाती चंचल की आवाज सुन कर सोनम की नींद भी खुल गई. बदमाशों ने उस के ऊपर भी तेजाब उलट दिया.

इस के बाद वे तीनों बदमाश छत से कूद कर भाग गए. जातेजाते वे धमकी दे गए कि अगर पुलिस को कुछ बताया, तो समूचे घर में आग लगा दी जाएगी.

इन दोनों बहनों का कुसूर इतना ही था कि इन्होंने छेड़खानी करने वाले लफंगों को जम कर लताड़ लगाई थी.

चंचल कहती है कि जब भी वह कंप्यूटर की कोचिंग के लिए घर से निकलती थी, तो रास्ते में अनिल राय, राजकुमार और घनश्याम नाम के 3 लड़के उस के साथ छेड़खानी करते थे.

शुरूशुरू में तो वह चुपचाप सब सहती रही, पर इस से उन बदमाशों का हौसला बढ़ गया. वे उस का दुपट्टा तक खींचने लगे और गंदे इशारे करने लगे.

एक दिन चंचल ने गुस्से में आ कर बदमाशों को फटकार लगा दी.  इस के बाद बौखलाए बदमाश 21 अक्तूबर, 2012 की रात को उस के घर की छत पर चढ़ आए और चंचल और उस की बहन सोनम के जिस्म पर तेजाब डाल दिया.

चंचल के पिता शैलेश पासवान राजमिस्त्री का काम कर के भी अपनी दोनों बेटियों को बड़ा अफसर बनाने का सपना देखा करते थे और उन की दोनों बेटियां भी पिता के सपनों को हकीकत में बदलने के लिए दिनरात  मेहनत के साथ पढ़ाई किया करती थीं.

चंचल कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहती थी और इंजीनियरिंग कालेज में दाखिले की तैयारी के लिए कोचिंग कर रही थी. वह अपने गांव से 20 किलोमीटर दूर दानापुर में कोचिंग क्लास करने जाया करती थी. चंचल की मां सुनैना कहती हैं कि गांव के लफंगों और दबंगों ने उन की बेटियों की जिंदगी तबाह कर दी है.

आरोपी के साथी और परिवार वाले आज भी चंचल के परिवार को तंग करने से बाज नहीं आ रहे हैं. मुख्य आरोपी अनिल कुमार जेल में है और बाकी दोनों आरोपी जमानत पर छूटे हुए हैं. चंचल के घर पर अकसर पत्थर फेंके जाते हैं. लोग उस के घर के पास मजमा लगा कर गालीगलौज करते हैं, धमकी देते हैं और केस वापस लेने का दबाव भी बनाया जाता है.

पुलिस, प्रशासन और सरकार दलित जाति की तरक्की और हिफाजत की बात तो खूब करती है, लेकिन मनेर के छितनावां गांव के एसिड अटैक से पीड़ित शैलेश पासवान और उन की बेटियों के दर्द को कम करने वाला कोई नजर नहीं आता है.

चंचल और उस की बहन सोनम के इलाज पर अब तक 8 लाख रुपए  की रकम खर्च हो गई है. ऐक्टर जौन अब्राहम समेत कई एनजीओ की मदद से इलाज की रकम जुटाई गई है, लेकिन सरकार की ओर से कभी कोई पहल नहीं की जा सकी है.

अरबपति भाइयों ने खेला खूनी खेल

27 अप्रैल, 2018 को उत्तरपश्चिम दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में घटी एक घटना ने 6 साल पहले हुए बड़े बिजनैसमैन पोंटी चड्ढा और उन के भाई हरदीप हत्याकांड की याद ताजा कर दी. मौडल टाउन वाली घटना में जिन 2 सिख भाइयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वे भी अरबों रुपए की संपत्ति वाले बिजनैसमैन थे.

शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा भले ही अरबों रुपए की संपत्ति के मालिक थे, लेकिन प्रौपर्टी विवाद को ले कर दोनों भाइयों के बीच रंजिश की जड़ें भी बहुत गहरी हो चली थीं. जिस के चलते सन 2012 में दिल्ली के छतरपुर इलाके में उन के ही फार्महाउस में गोली मार कर दोनों भाइयों की हत्या कर दी गई थी, जिस का केस अदालत में विचाराधीन है.

हरनाम सिंह ‘तूफान’ मूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे, जो देश के विभाजन के बाद दिल्ली के मौडल टाउन पार्ट-2 में आ कर बस गए थे. उन्होंने धीरेधीरे यहीं पर अपना व्यवसाय जमाया. उन के 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. उन का खुशहाल परिवार था.

हरनाम सिंह ‘तूफान’ एक दबंग छवि वाले इंसान थे. वह लोगों के छोटेमोटे आपसी विवादों को निपटाते थे. जिस से उन के पास विवादों का फैसला कराने के लिए दूरदूर से लोग आते थे. अपनी मेहनत के बूते हरनाम सिंह ने अरबों रुपए की संपत्ति बनाई. अपने पीछे वह तीनों बेटों के लिए अरबों रुपए की संपत्ति छोड़ गए थे.

पिता की मौत के बाद भाइयों में प्रौपर्टी का बंटवारा हो गया था. बड़ा भाई सतनाम मौडल टाउन के एफ ब्लौक में रहते थे तो दोनों छोटे भाई जसपाल अनेजा और गुरजीत सिंह मौडल टाउन पार्ट-2 में ही डी-13/19 में अपने परिवारों के साथ रहते थे.

जसपाल अनेजा इस कोठी के ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और छोटे भाई गुरजीत सिंह पहली मंजिल पर. गुरजीत सिंह का मौडल टाउन के केडीएफ चौक पर ग्रेट वाल रेस्ट्रोबार नाम का एक नामी रेस्तरां था और जसपाल अनेजा का फाइनैंस का कारोबार. दोनों भाइयों की आमदनी भी अच्छी थी लेकिन उन के बीच आपस में कड़वाहट भी कम नहीं थी.

दोनों ही एकदूसरे को नीचा दिखाने और खुद को रसूखदार और दमदार दिखाने की होड़ में लगे रहते थे. जसपाल अनेजा के पास औडी के अलावा 2 अन्य लग्जरी कारें थीं, जबकि छोटे भाई गुरजीत सिंह के पास फोर्ड एंडेवर, फौर्च्युनर आदि कारें थीं. गुरजीत सिंह अपने साथ 2 शस्त्रधारी अंगरक्षक भी रखता था.

कोठी के सामने दोनों के लिए पार्किंग की जगह निर्धारित थी. इस के बावजूद उन के बीच आए दिन कार पार्किंग को ले कर झगड़ा होता रहता था. इस के अलावा प्रौपर्टी को ले कर भी उन के बीच झगड़ा चल रहा था, जिस की वजह से आए दिन दोनों भाइयों के थाना मौडल टाउन में चक्कर लगते रहते थे.

दोनों भाई थाने में एकदूसरे के खिलाफ आधा दरजन से ज्यादा केस दर्ज करा चुके थे. इस के अलावा मारपीट, जान से मारने की कोशिश करने, छेड़छाड़ आदि के भी उन्होंने 9 केस दर्ज कराए थे. दोनों ओर की महिलाओं ने भी अपने जेठ और देवर के खिलाफ छेड़छाड़ के मामले दर्ज कराए थे.

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मामला बड़े कारोबारियों के बीच का था, इसलिए पुलिस भी दोनों को समझाबुझा कर मामले को शांत करा देती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि दोनों ही छोटीछोटी बातों पर लड़ने के लिए तैयार रहते थे. हाल ही में जसपाल के बेटे कुंवर अनेजा पर गुरजीत ने कार से कुचल कर मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था.

आए दिन दोनों की शिकायत से पुलिस भी परेशान हो चुकी थी. पुलिस ने उन्हें अपनी कोठी के बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे लगवाने का सुझाव दिया था, जिस से आरोपों की सच्चाई का पता लग सके. तब दोनों भाइयों ने कोठी के हर कौर्नर को कवर करने के लिए 12 सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए थे. कोठी के एक गेट पर 7 कैमरे लगे थे तो दूसरे पर 5. इस के बावजूद भी उन का झगड़ा बंद नहीं हुआ.

27 अप्रैल, 2018 को आधी रात के करीब उन के बीच शुरू हुआ झगड़ा इस मुकाम पर जा कर खत्म हुआ, जब 3 लोगों की मौत हो गई.

दरअसल, हुआ यूं कि 27 अप्रैल की रात करीब साढ़े 12 बजे जसपाल अनेजा (52) की औडी कार कोठी के दरवाजे पर खड़ी थी. वह अपने दोस्त राजीव को छोड़ने जा रहा था. उसी वक्त गुरजीत (45) अपनी फोर्ड एंडेवर गाड़ी ले कर गेट पर पहुंचा. गुरजीत ने सख्त लहजे में जसपाल से गाड़ी हटाने को कहा.

इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. उस समय गुरजीत के दोनों अंगरक्षक विक्की और पवन भी उस के साथ थे. शोर सुन कर जसपाल की पत्नी प्रभजोत कौर और गुरजीत का बेटा गुरनूर भी कोठी से बाहर निकल आए. दोनों के बीच मारपीट शुरू हो गई.

लाठीडंडों के अलावा दोनों ओर से बोतलें भी चलीं. इसी दौरान जसपाल ने कृपाण से गुरजीत के गले पर वार कर दिया, जिस से वह वहीं लहूलुहान हो कर गिर गया. इतना ही नहीं, उस ने गुरजीत के बेटे गुरनूर के सीने व गले के पास भी कृपाण से वार किए.

उसी दौरान गुरजीत के अंगरक्षक विक्की ने पिस्टल निकाल कर जसपाल व उस की पत्नी प्रभजोत पर फायरिंग की. प्रभजोत की आंख के पास से होती हुई गोली सिर में जा घुसी, जिस से वह वहीं ढेर हो गई. गोली लगने के बाद भी जसपाल जान बचाने के लिए पड़ोसी के मकान में घुस गया और झूले पर जा कर बैठ गया. इस के बाद गुरजीत के दोनों अंगरक्षक वहां से भाग गए.

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करीब 17 मिनट तक चले इस खूनी खेल का नजारा सीसीटीवी कैमरों में भी कैद हो गया. सूचना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने सभी घायलों को अस्पताल पहुंचाया, जहां पर दोनों भाइयों जसपाल अनेजा और गुरजीत सिंह के अलावा जसपाल की पत्नी प्रभजोत कौर को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. डीसीपी असलम खान ने भी मौके का दौरा कर थाना पुलिस को आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.

पुलिस ने गुरजीत के दोनों अंगरक्षकों विक्की और पवन को गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर बुराड़ी में स्थित उन के कमरे से उन की लाइसेंसी पिस्टल भी बरामद कर ली है. उन से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें भी जेल भेज दिया.

कामुक स्त्री का बेबस पति

Crime News in Hindi: सन 2011 में निर्मला जब 30 वर्षीय संजय रजक की पत्नी बन कर घर आई थी तो वह खुशी से फूला नहीं समाया था. क्योंकि उस की पत्नी बला की खूबसूरत थी. पेशे से मजदूर संजय के सपने बड़े नहीं थे. वह तो बस एक सुकूनभरी जिंदगी जीना चाहता था, जिस में पत्नी हो, बच्चे हों और छोटे से घर में हमेशा खुशियां बनी रहें. संजय भले ही कम पढ़ालिखा था लेकिन था मेहनती. ज्यादा पैसे कमाने के लिए उस ने एक औफिस और एक स्कूल में माली का काम भी ले लिया था. आम नौजवानों की तरह सुहागरात को ले कर संजय के मन में भी रोमांच और बहुत उत्सुकताओं के साथ थोड़ी सी घबराहट भी थी. पहली रात को यादगार बनाने की अपनी हसरत को पूरा करने के लिए उस ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पहले कमरा सजाया फिर इत्र से महकाया और पत्नी निर्मला के लिए अपनी हैसियत के मुताबिक तोहफा भी लिया.

दोस्तों के मुंह से उस ने सुन रखा था कि सुहागरात के दिन जिस पति ने पत्नी को जीत लिया, वह जिंदगी भर उस की मुरीद रहती है. इस जीत लिया का मतलब संजय खूब समझता था कि सिर्फ शारीरिक तौर पर ही पत्नी को हासिल या संतुष्ट कर देना नहीं होता, बल्कि आने वाली जिंदगी को ले कर बहुत से सपने भी साथ बुनने पड़ते हैं और पत्नी की इच्छाएं भी समझनी पड़ती हैं. उस ने अब तक फिल्मों में सुहागरात देखी थी और कुछ शादीशुदा दोस्तों से उन के तजुरबे जाने थे.

इस रात को हसीन बनाने के मकसद से जब वह कमरे में पलंग पर बैठी निर्मला के पास पहुंचा तो उस की खूबसूरती देख कर दंग रह गया. लाल सुर्ख जोड़े में निर्मला वाकई गजब ढा रही थी. अपनी किस्मत पर उसे गर्व हो रहा था.

निर्मला के नजदीक बैठ कर उस ने बातचीत शुरू की और जैसे ही उसे छुआ तो निर्मला को मानो करंट सा लग गया. उस ने पहल करते हुए पति को अपनी बांहों में ले कर उसे ताबड़तोड़ तरीके से प्यार करना शुरू कर दिया.

निर्मला पति से बहुत जल्दी खुल गई थी. लड़कियां पहली रात खूब शरमाती हैं, तरहतरह के नखरे करती हैं, जैसी तमाम धारणाएं संजय के दिलोदिमाग से हट गईं और वह भी पत्नी की तपस भरी पहल में पिघल कर उस के शरीर में डूब गया.

थोड़ी देर बाद जब तूफान थमा तो संजय के चेहरे पर संतुष्टि थी लेकिन निर्मला का दिल नहीं भरा था. चूंकि निर्मला की झिझक दूर हो चुकी थी, लिहाजा उस ने दोबारा संजय को उकसाया तो वह भी अपने आप को रोक नहीं पाया. पहली ही रात एकदो बार नहीं बल्कि कई बार दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनेऔर तब तक बनते रहे जब तक संजय निढाल हो कर बिस्तर पर लुढ़क नहीं गया.

फिर तो हर रात यही होने लगा. संजय जैसे ही काम से लौट कर खापी कर बिस्तर पर पहुंचता तो निर्मला उसे अपनी तरफ घसीट कर तरहतरह से प्यार करती थी. ऐसा प्यार कि संजय निहाल हो उठता था. पत्नी खूबसूरत होने के साथसाथ सैक्सी भी हो तो जिंदगी वाकई खुशगवार हो उठती है. इस मामले में संजय खुद को लकी समझने लगा था.

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कुछ दिनों बाद ही जब निर्मला दिन में भी और सुबहसुबह भी सैक्स चाहने लगी तो संजय को अजीब लगा. अजीब इसलिए कि वह चाहे कितना भी सैक्स कर लेता, लेकिन निर्मला का जी नहीं भरता था. शादी के बाद आमतौर पर पति नईनवेली पत्नी के आगेपीछे मंडराते हैं और मनचाहे सैक्स के बाबत पत्नियों के नाजनखरे उठाते हैं. लेकिन यहां तसवीर उलट थी. संजय को पत्नी से कुछ कहना ही नहीं पड़ता था बल्कि जो लगातार करना पड़ रहा था, उस से उसे खीझ होने लगी थी.

खीझती तो निर्मला भी थी पर उस वक्त जब संजय उस की इच्छा या मांग पूरी करने में आनाकानी करता था या फिर बहाना बनाने की कोशिश करता था. ऐसी स्थिति में वह कभीकभार पति को ताने भी मारने लगी थी.

संजय को सैक्स से कोई परहेज नहीं था लेकिन वक्तबेवक्त पत्नी की सैक्स इच्छा उस की समझ के बाहर थी. फिर भी जितना उस से बन पड़ता था, वह पत्नी को खुश रखने की कोशिश करता था. उस का सोचना था कि वक्त रहते सब ठीक हो जाएगा.

पर उस का यह खयाल गलत साबित हुआ. शादी के बाद जब निर्मला गर्भवती हुई तो संजय को दोहरी खुशी हुई. पहली खुशी उस ने दोस्तों और रिश्तेदारों से साझा भी की कि वह भी बाप बनने वाला है लेकिन दूसरी उस ने अपने मन में ही रखी कि अब एकाध साल निर्मला मनमानी नहीं कर पाएगी. क्योंकि लेडी डाक्टर ने चैकअप के वक्त सैक्स को ले कर कुछ हिदायतें दी थीं, जिन में यह बात भी शामिल थी कि कोई बंदिश तो नहीं पर इस दौरान सैक्स से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए.

डाक्टर के समझाने का निर्मला पर कोई असर नहीं पड़ा था. मन मार कर और ऐहतियात बरतते हुए संजय को निर्मला की इच्छा पूरी करनी पड़ती थी. अब वह यह उम्मीद लगाने लगा था कि शायद बच्चा हो जाने के बाद निर्मला में कुछ सुधार आ जाए.

वक्त रहते निर्मला ने सुंदर बेटे को जन्म दिया तो अपनी इस नई जिम्मेदारी के प्रति संजय गंभीर हो चला था कि अब खर्चे बढ़ेंगे, कल को बेटा स्कूल भी जाएगा इसलिए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने और बचाने की कोशिश की जाए. उस ने बेटे का नाम समीर रखा.

मां बनने के बाद भी निर्मला में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि उस की फरमाइश पहले से और ज्यादा बढ़ गई थी. इधर संजय में पहले सी ताकत और जोश नहीं रहा था, इसलिए वह कभीकभार साफ मना कर देता था. इस पर निर्मला उसे मारनेनोचने लगती थी और पागलों जैसी हरकतें करने लगती थी.

संजय को इतना तो समझ आ रहा था कि निर्मला को इतनी तीव्र इच्छा कोई स्वाभाविक बात नहीं बल्कि एक असामान्यता या कोई बीमारी है पर महमंद जैसे छोटे से गांव में जहां कोई फिजिशियन भी नहीं था, वहां किसी मनोचिकित्सक के होने की कोई संभावना तक नहीं थी, जिस से संजय पत्नी की इस अजीब सी बीमारी का इलाज करा पाता.

पति काफी कुछ बरदाश्त कर लेता है पर पत्नी शादी के 4 साल बाद उस की मर्दानगी को ले कर ताने मारे तो उस का सब्र जवाब दे जाता है. यही संजय के साथ हो रहा था जो बेटे समीर का मुंह देख कर बेइज्जती के कड़वे घूंट पी जाता था. अब उस की हर मुमकिन कोशिश निर्मला से दूर रहने की होती थी, पर यह नामुमकिन काम था.

एक दिन निर्मला ने फिर से जिद की तो उस ने मन मार कर साफ कह दिया कि उस में अब इतनी ताकत नहीं है कि दिनरात यही सब करता रहे. इस बार निर्मला ने उस से नोचने या कोई पागलपन जाहिर करने के बजाय उसे सैक्स पावर बढ़ाने की दवाएं लेने की सलाह दी तो वह चौंक उठा.

निर्मला की सलाह पर वह कोई प्रतिक्रिया दे पाता, इस के पहले ही उस ने पागलों जैसी जिद पकड़ ली कि मर्दानगी और ताकत बढ़ाने वाली दवा खाओ, इस में हर्ज क्या है. हर बार की तरह इस बार भी संजय को पत्नी की जिद के आगे हथियार डालने पड़े और वह झेंपता, सकुचाता शहर से सैक्स पावर बढ़ाने वाली दवा ला कर खाने लगा.

इस उपाय से कुछ दिन ही ठीकठाक गुजरे यानी निर्मला संतुष्ट रही, लेकिन कुछ दिन बाद फिर ढीले पड़ते संजय के साथ वह पहले की तरह व्यवहार करने लगी. जिस से संजय को घर नर्क और जिंदगी बेकार लगने लगी थी. अपनी अजीबोगरीब परेशानी वह किसी से साझा भी नहीं कर सकता था. क्योंकि बात शर्म वाली होने के साथसाथ इज्जत का कचरा कराने वाली भी थी.

सैक्स के साथसाथ अब जिंदगी की गाड़ी भी हिचकोले खाते चलने लगी थी. निर्मला अपनी बीमारी के हाथों मजबूर थी, इसलिए उस ने मोहल्ले के कम उम्र के लड़कों से दोस्ती गांठनी शुरू कर दी थी. वह उन से शारीरिक संबंध बनाने लगी थी. यह भनक जब संजय को लगी तो वह तिलमिला उठा, लेकिन खामोश रहा. क्योंकि बिना सबूत पत्नी पर इलजाम लगाना कोई तुक वाली बात नहीं थी.

एक दिन निर्मला ने बड़े प्यार से संजय से कहा कि वह उस की भी नौकरी कहीं लगवा दे, जिस से घर की आमदनी बढ़े. इस पेशकश को संजय ने यह सोचते हुए मान लिया कि निर्मला काम करेगी तो व्यस्त रहेगी. इस से संभव है उस की आदतों में सुधर आए. यह सोचते हुए उस ने निर्मला की नौकरी उसी स्कूल में लगवा दी, जहां वह माली का काम करता था.

स्कूल में काम करने की निर्मला की असली मंशा भी जल्द उजागर हो गई. उस ने वहां के नौजवान चपरासियों से ले कर बस कंडक्टर और ड्राइवरों तक से शारीरिक संबंध बना लिए. ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं. इस से संजय की ही बदनामी हो रही थी, पर वह बेबस था.

एक दिन तो उस वक्त हद हो गई जब उस ने अपने ही घर में निर्मला को एक लड़के के साथ रंगरेलियां मनाते हुए देख लिया. इस पर दोनों में खूब झगड़ा हुआ और निर्मला ने उलटे थाने में जा कर पति के खिलाफ मारपीट करने की शिकायत लिख कर दे दी. इस पर पुलिस वालों ने दोनों को समझाबुझा कर वापस भेज दिया. गुस्साई निर्मला मायके चली गई.

डेढ़ साल मायके में रह कर वह वापस आई तो बिलकुल नहीं बदली थी. संजय शायद उसे वापस नहीं लाता, पर बेटे के मोह ने उसे जकड़ रखा था. वापस आ कर निर्मला फिर से किसी न किसी को घर बुला कर सैक्स की भूख शांत करने लगी.

टोकने पर अब वह पूरी बेशरमी से संजय से कहने लगी थी कि जब तुम मेरी भूख नहीं मिटा सकते तो मेरे लिए लड़कों का इंतजाम करो और नहीं कर सकते तो आंखकान बंद किए रहो.

16 फरवरी, 2018 की शाम जब संजय सब्जी ले कर घर वापस आया तो यह देख शर्म से पानीपानी हो उठा कि निर्मला एक कम उम्र बच्चे के साथ सैक्स कर रही थी. गुस्साए संजय ने उसे डांटा तो वह पूरी बेशरमी से बोली कि जब तुम से कुछ नहीं होता तो चुप रहो, मेरा जब जहां जिस से मन करेगा, करूंगी.

इस जवाब पर संजय की हालत सहज समझी जा सकती थी, जो रोजरोज पत्नी की बेजा हरकतों के चलते तिलतिल कर मर रहा था और अब तो बदनामी भी होने लगी थी. किसी भी पति के लिए यह डूब मरने वाली बात थी.

इसी रात संजय जब सोने के लिए बिस्तर पर गया तो निर्मला उस के पास आ कर उसे सैक्स के लिए उकसाने लगी. मना करने का नतीजा और निर्मला के जहर बुझे जवाब संजय को मालूम थे, इसलिए उस ने यह सोचते हुए पूरी तरह आपा खो दिया कि इस मर्दखोर औरत की वासना तो कभी शांत होने वाली नहीं है. लिहाजा क्यों न इसे ही हमेशा के लिए शांत कर दिया जाए.

संजय ने कमरे में पड़ा लोहे का डंबल उठा कर निर्मला के सिर पर दे मारा. 2-3 प्रहार में ही उस की मौत हो गई. पत्नी की लाश के पास बैठ कर उस ने न जाने क्याक्या सोचा और फिर घबरा गया. फांसी का फंदा संजय को अपनी गरदन पर लटकता हुआ दिख रहा था.

कुछ देर और सोचने के बाद उस ने भाग जाने का फैसला ले लिया और रसोई में जा कर निर्मला की कब्र खोदनी शुरू कर दी. एक घंटे में 2 फीट गहरा गड्ढा खुद गया तो उस ने लाश उस में डाल कर ऊपर से ईंटें बिछा दीं.

घर के बाहर सूरज की रोशनी देख संजय को तब एक झटका और लगा जब उस ने गहरी नींद में सोए बेटे को देखा. अब उस का क्या होगा, इस खयाल से ही उस का दिल दहल गया कि इस मासूम का क्या कुसूर जो वह मांबाप के किए की सजा भुगते.

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यह सोचते ही उस ने थाने जा कर आत्मसमर्पण करने का फैसला ले लिया और वह बेटे को गोद में उठा कर नजदीकी तोरबा थाने की तरफ चल पड़ा. अब तक निर्मला की हत्या की खबर गांव वालों को भी लग चुकी थी, इसलिए कई लोग उस के पीछेपीछे थाने की तरफ चल दिए.

हालांकि उस के किए की खबर पहले से ही थाने पहुंच चुकी थी. हुआ यूं था कि स्कूल के एक शिक्षक आकाश उपाध्याय ने संजय को फोन कर के निर्मला को काम पर जल्द भेजने के लिए कहा था.

संजय ने बेहद सर्द आवाज में आकाश उपाध्याय को बता दिया था कि उस ने निर्मला की हत्या कर दी है और वह आत्मसमर्पण करने थाने जा रहा है. इस पर आकश ने थानाप्रभारी परिवेश तिवारी को यह खबर दे दी थी. पुलिस टीम अभी संजय को गिरफ्तार करने जा ही रही थी कि संजय थाने जा पहुंचा. बेटा समीर उस की गोद में था.

पुलिस पूछताछ में संजय की कहानी सामने आई तो उसे बहुत ज्यादा गलत न मानने वालों की भी कमी नहीं थी, पर गुनाह तो उस ने किया था, जिस की सजा मिलना भी तय था.

पुलिस टीम के साथ घर आ कर उस ने निर्मला की लाश और हत्या में प्रयुक्त डंबल बरामद करवा दिया और फिर खामोशी से हवालात में समीर को अपने सीने से चिपका कर बैठ गया. जिस ने भी सुना, वह अवाक  रह गया कि ऐसा भी होता है.

जब निर्मला के मांबाप समीर को ले जाने के लिए आए तो उस ने साफ इनकार कर दिया. उस का कहना था कि निर्मला के मांबाप को सब कुछ मालूम था, इस के बाद भी वे बेटी की तरफदारी करते थे. लिहाजा अदालत के आदेश पर पुलिस ने समीर को बालगृह भेज दिया.

संजय और क्या करता इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं था. वह पत्नी को छोड़ता तो भी बदनामी होती और निर्मला अपनी बीमारी छिपाए रखने के लिए झूठी रिपोर्ट पुलिस में लिखाती रहती.

तलाक के लिए अदालत जाता तो भी परेशान रहता, क्योंकि इस बीमारी को अदालत में साबित कर पाना आसान काम नहीं था. वजह जिन के साथ निर्मला ने संबंध बनाए थे, वे तो गवाही देने अदालत आते नहीं. दूसरे हर हालत में उसे पत्नी को गुजारा भत्ता तो देना ही पड़ता. वह जहां भी रहती, वहीं किसी न किसी मर्द से संबंध बनाने से नहीं चूकती.

ऐसे परेशान पतियों की मदद कोई नहीं करता. हालांकि खुद संजय ने भी इस मुसीबत से छुटकारा पाने की कोई खास कोशिश नहीं की और इसी बेबसी ने उसे मजबूर कर दिया कि वह अपनी कामुक पत्नी की हत्या कर दे.

थाने में पुलिस वालों की बातचीत से उसे पता चला कि निर्मला वाकई एक ऐसी सैक्सी बीमारी निंफोमेनिया की मरीज थी, जिस में औरत को सैक्स संतुष्टि नहीं मिलती. यह बीमारी एक लाख महिलाओं में से किसी एक को होती है, जिस का इलाज मुमकिन है बशर्ते कोई विशेषज्ञ डाक्टर की देखरेख में हो.

जाहिर है, यह संजय के वश की बात नहीं थी और जो थी उसे उस ने अंजाम दे डाला. इस बाबत कोई शर्मिंदगी या पछतावा भी उसे नहीं था. उस की एकलौती चिंता समीर और उस का भविष्य है.

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