चीनी सामान का बौयकाट : भक्तो को उकसाने का जरीया

चीनी सामान के बौयकाट के लिये आवाज देना एक साजिश का हिस्सा है. इसके जरीये समय समय पर भक्तों को दुश्मन से लडने के लिये उकसाया जाता है. जिससे भारत की परेशानियों पर बातचीत ना हो सके. कुछ दिन पहले तक चीनी कंपनियों को दावतें दी जा रही थी. एक साल भी नहीं बीता कि अब चीनी कंपनियों के बौयकाट की बात की जा रही है. ऐसा केवल चीन को लेकर ही हो यह सही बात नहीं है. नेपाल के साथ भी यही व्यवहार होता रहता है. दो बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति को भारत बुलाया. उनको भारत यहां घुमाया और यह दिखाने का प्रयास किया कि चीन और भारत के संबंध मजबूत होने से देश को लाभ होगा. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर खाना खाने भी प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी गये. उसके बाद पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध खराब हो गये.

केवल देश के बाहर ही नहीं देश के अंदर भी प्रधानमंत्री मोदी की सोच का यही हाल है. कश्मीर में महबूबा मुफ्रती के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई बाद में कश्मीर में धारा 370 खत्म करने से लेकर उसके विभाजन तक का फैसला ले लिया. व्यवहारिक तौर पर देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फैसले ऐसे ही होते है. देश की आर्थिक नीतियों को लेकर जीएसटी और नोटबंदी जैसी कामों में भी यही देखा गया कि उनका काम बेहद हडबडी वाला होता है. एक बार जो फैसला हो जाता है उसको ही आगे बढाया जा सकता है. नोटबंदी के समय यह कहा गया कि इससे भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर रोक लगेगी. नोटबंदी की तमाम मुसीबत के बाद भी भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर रोक नहीं लग सकी.

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चीन के राष्ट्रपति का अदभुत स्वागत

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग अक्टूबर 2019 मे दो दिन के दौरे पर भारत आये थे. उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मादी ने उनका भव्य स्वागत किया था. दोनो नेताओ की मुलाकात के लिये महाबलीपुरम को चुना गया. तमिलनाडु का महाबलिपुरम समुद्र के किनारे बसा एक खूबसूरत शहर है. महाबलिपुरम का महत्व पल्लव और चोलों के काल में भी बहुत था. यह शहर चीन और दक्षिण एशिया से व्यापार के लिए बड़ा केंद्र था. महाबलीपुरम समुद्र के रास्ते चीन से जुड़ा था. महाबलिपुरम के बंदरगाह से चीनी बंदरगाहों के लिए सामान जाता था. दक्षिण भारतीय समुद्रतटीय महाबलीपुरम शहर में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और भारत के प्रधानमंत्री की बैठक को इस तरह से दिखाया गया कि इस मुलाकात के बाद दक्षिण पूर्व एशिया और चीन से भारत के व्यापार संबंधों को और मजबूती मिलेगी.

महाबलीपुरम का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है. इस शहर को दिखाने के बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी महाभारत काल का वर्णन भी पूरी दुनिया को दिखाना चाहते थे. मीडिया के जरीये दोनो नेताओं की मुलाकात पूरी दुनिया के लोग देख सके इसका पूरा उपाय भी किया गया था. महाबलिपुरम में मुलाकात कम समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का स्वागत तमिल लिबास में किया. इस दौरान वह वेष्टि यानि सफेद धोती और आधे बाजू वाले सफेद शर्ट पहनी थी और कंधे पर अंगवस्त्रम लिया हुआ था. चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग कैजुएल पोशाक सफेद शर्ट और काले रंग का ट्राउजर पहने थे. दोनों नेताओं ने महाबलीपुरम के मनोरम दृश्यों को देखा इसके अलावा इन दोनो ने महाबलीपुरम में महाभारत कालीन अर्जुन की तपस्या स्थली देखा.

अर्जुन महाभारत काल के एक ऐसे पात्र हैं जिनको सत्ता के अन्याय के खिलाफ भारतीय आध्यात्मिक दर्शन का सबसे दृढ़ लेकिन मानवीय चेहरा माना जाता है. इसी जगह पर अर्जुन ने तपस्या की थी. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी एक टूरिस्ट गाइड की तरह चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग को सभी चीजों के बार में विस्तार से बता रहे थे. कौन सी आकृति अर्जुन की है कौन सी कृष्ण की और कौन सी युधिष्ठिर और भीम की. ऐसा लग रहा था मानो एक-एक पत्थर की आकृति से प्रधानमंत्री मोदी खुद परिचित हो. महाबलीपुरम में मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अर्जुन तपस्या स्थल के अलावा पंच रथ और शोर मंदिर घुमाया. पंच रथ को ठोस चट्टानों को काटकर बनाया गया है. ये सभी अंखड मंदिर के रूप में मुक्त तौर पर खड़े किए गए हैं. पंच रथ के बीच में एक विशाल हाथी और शेर की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ‘कृष्ण का माखन लड्डू’ दिखाया. ‘कृष्ण का माखन लड्डू’ एक विशाल पत्थर है, जिसकी ऊंचाई 6 मीटर और चैड़ाई करीब 5 मीटर है. इसका वजन 250 टन है. इसी अनोखे गोल पत्थर को कृष्ण के माखन के गोले के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर दोनो नेताओं ने तस्वीर भी खिंचाई. मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को लेकर शोर मंदिर भी गये. यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल है. माना जाता है कि शोर मंदिर सात मंदिरों या सात पैगोडा का हिस्सा है और उनमें से छह समुद्र के नीचे डूबे हुए थे.

पर्यटन स्थलों को घुमाने के बाद मोदी और शी जिनपिंग लोकनृत्य और डिनर का आनंद लिया और एक अच्छे मेजबान की तरह से मेहमान को उपहार भी दिया. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को उपहार में तंजावुर की पेंटिंग और नचियारकोइल-ब्रांच अन्नम लैंप दिया. तंजावुर की पेंटिंग में सरस्वती की तस्वीर खींची गई है. इस पेंटिंग को बी लोगनाथन ने तैयार किया है. इसको तैयार करने में 45 दिन का समय लगा. वहीं, नचियारकोइल-ब्रांच अन्नम लैंप को 8 मशहूर कलाकारों ने मिलकर बनाया है. इसको बनाने में 12 दिन का समय लगा. यह विशेष रूप से चीनी राष्ट्रपति के लिये तैयार किये गये थे.

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प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने शी जिनपिंग के सम्मान में तो डिनर रखा था. उसमें साउथ इंडियन थाली परोसी गई. मोदी ने इस नॉनवेज थाली के लिए विशेष निर्देश दिए थे. डिनर मीनू में राजमा, मालाबार लॉबस्टर, कोरी केम्पू, मटन युलरथियाडु, कुरुवेपिल्लई मीन वरुवल, तंजावुर कोझी करी, बीटरूट जिंजर चॉप, पच सुंडकाई, अरिका कोक्सहंबू, अर्चाविता सांभर, बिरयानी, इंडियन ब्रेड, अड प्रधामन, हलवा, आइसक्रीम, चाय और मसाला चाट जैसे लजीज व्यंजन शामिल रहे.

दोस्ती के बहाने कारोबार की बात

प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और शी जिनपिंग की मुलकात को एक बडा अवसर बताया गया. इस मुलाकात के बहाने अमेरिका को दायरे में रखने का बात कही गई. यह भी बताया गया कि चीन की दोस्ती से पडोसी पाकिस्तान को कमजोर किया जा सकता है. चीन के साथ सीमा विवाद हो हल करने का प्रयास भी बताया गया. यह कहा गया कि चीन भारतीय बाजार को खोना नहीं चाहता है. महाबलिपुरम में दोनों नेताओं के बीच व्यापार असंतुलन और सीमा विवाद पर बातचीत के साथ क्षेत्र मुक्त व्यापार समझौता है, जिसे जल्द से जल्द चीन लागू करवाना चाह रहा है.

इसमें भारत की सहमति होगी तो मंदी के मार झेल रहे चीनी उत्पाद भारतीय बाजार में डंप हो जाएंगे. मोदी सरकार ने देश की जनता को यह बताया था कि भारत का प्रभाव ज्यादा है. इस दोस्ती में भारत का पलडा भारी है. इस दोस्ती के बाद चीन अंतराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की बात नहीं करेगा. एक तरफ मोदी और उनकी टीम चीन के साथ नेहरू की दोस्ती पर सवाल उठाती है तो दूसरी तरफ खुद चीन के साथ दोस्ती की जरूरत के मायने बताती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘हमने मतभेदों को विवेकपूर्ण ढंग से सुलझाने, एक दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशीन रहने और उन्हें विवाद का रूप नहीं लेने देने का निर्णय किया है. भारत और चीन पिछले 2,000 साल में ज्यादातर समय वैश्विक आर्थिक शक्तियां रहें हैं और धीरे-धीरे उस चरण की तरफ लौट रहे हैं. हमने मतभेदों को विवेकपूर्ण ढंग से सुलझाने और उन्हें विवाद का रूप नहीं लेने देने का निर्णय किया है. हमने तय किया है कि हम एक-दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशील रहेंगे. मोदी ने पिछले साल चीनी शहर वुहान में शी के साथ अपनी पहली अनौपचारिक शिखर वार्ता के परिणामों का जिक्र करते हुए कहा, ‘वुहान की भावना ने हमारे संबंधों को नयी गति एवं विश्वास प्रदान किया. ‘चेन्नई संपर्क’ के जरिए आज से सहयोग का नया युग शुरू होगा. वुहान में पहली अनौपचारिक वार्ता के बाद से दोनों देश के बीच रणनीतिक संचार बढ़ा है.

नवाज शरीफ और मोदी की मुलाकात

2014 से पहले विपक्ष के नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत पाकिस्तान संबंधों को लेकर कांग्रेस सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगाते थे. 2014 का लोकसभा चुनाव जीत कर जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान की सरकार के प्रति उनके रूख मंे नरमी आ गई. नवाज शरीफ के साथ उनकी दोस्ती के चर्चे तो पूरी दुनिया में होने लगे थे. ऐसा होता भी क्यों नहीं आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काम ही ऐसा किया था. नवाज शरीफ के जन्मदिन पर 25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रूस और अफगानिस्तान की यात्रा से वापस आ रहे थे. अचानक भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विमान लाहौर के आलमा इकबाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरा. वहां से वह हेलीकाप्टर के जरीये नवाज शरीफ के रावलपिंडी स्थित घर गए थे. जहां पर नवाज शरीफ के जन्मदिन का सैलीब्रेशन हुआ. मादी ने नवाज शरीफ की मां के पैर छुये और उनसे आर्शिवाद भी लिया. उनको उपहार में कश्मीर की मशहूर पाशमीना शौल तक देकर आये थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस तरह अचानक नवाज शरीफ के घर जाने की घटना को विश्व भर में अलग अलग भाव से देखा गया था.

उस समय भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि इस मुलाकात के पीछे कहानी बडी लंबी है. नवाज शरीफ की मां चाहती थी कि भारत का कोई मजबूत नेता बने जो दोनो देशो क परेशानियांे को दूर कर सके. इस संबध में नवाज शरीफ की मां और सुषमा स्वराज इस घटना के पहले एक पार्टी में मिले थे. नवाज शरीफ की मंा और सुषमा स्वराज के बीच लबी बातचीत हुई थी. मोदी और नवाज शरीफ जिस मुलाकात को इतना अहम बताया जा गया था वह जल्द ही हवा हांे गई. कुछ दिनों में नवाज शरीफ और मोदी के संबंध खराब हो गये. नवाज शरीफ की बेटी मरियम ने मोदी की आलोचना करते कहा कि वह अपने समकक्ष लोगो का सम्मान नही ंदेते है.

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प्रधानमंत्री इमरान खान का फोन नहीं उठातें. एक तरफ आप बिना किसी तय कार्यक्रम के जन्मदिन की बधाई देने उनके घर पहुच जाये अगले ही दिन दूसरे प्रधानमंत्री का फोन नहीं उठाये.

मोदी शरीफ मुलाकात को बडी रणनीति के रूप में देखा गया था. मोदी ने नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में भी बुलाया था. नवाज शरीफ के साथ भी मोदी के संबंध अधिक दिनों तक अच्छे नहीं रहे. सार्क देशो की मीटिंग में जब नरेन्द्र मोदी और नवाज शरीफ की मुलकात हुई तो मोदी ने उनको नजर अंदाज किया. नवाज शरीफ जब सामने से गुजरे तो मोदी जी किताबे पढने लगे. प्रधानमंत्री मोदी के साथ सबसे बडी बात यह होती है कि उनके संबंध कब बनते और कब बिगडते है का आकलन कोई नहीं कर सकता है.

महबूबा से रिश्ता पहले बना फिर टूटा

पीडीपी यानि पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट की नेता महबूबा मुफ्रती और भारतीय जनता पार्टी के बीच कभी मधुर संबंध नहीं रहे. वैचारिक स्तर पर कश्मीर की राजनीति को लेकर दोनो दलों में बहुत मतभेद रहे है. 2016 में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. जिसकी वजह से कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना सकी. विधानसभा चुनाव में पीडीपी को सबसे अधिक 28 सीटें मिली. दूसरे दलो में भाजपा को 25 सीटे, नेशनल कांफ्रंेस 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली. सरकार बनाने के लिये कई दलो का आपस में मिलना जरूरी था. किसी को भी इस बात का पता नहीं था कि भाजपा-पीडीपी आपस में मिलकर सरकार बना सकते है. दूसरे दल यही सोचते रहे और तमाम राजनीतिक आकलन को छोडते हुये भाजपा-पीडीपी आपस में मिलकर सरकार बना ली. भाजपा के समर्थन से महबूबा मुफ्रती मुख्यमंत्री बन गई. 2016 में जब यह सरकार बनी और 2018 में जब दोनो दलो का गठबंधन टूटा दोनो हालातों में बहुत फर्क था. सरकार बनाने के समय की मिठास और सरकार टूटने के समय की खटास देखने वाली थी.

जो महबूबा भाजपा को सबसे प्रिय हो गई थी वह अचानक खराब लगने लगी. धारा 370 के मसले पर किसी दल से कोई राय नहीं ली गई. जिस महबूबा के साथ भाजपा सरकार चला रही थी उनको ही कैद करना पड गया. ऐसे में यह बात बारबार साफ होती है कि भाजपा हर फैसला अपने हित में करती है. सहयोगी दलों के हित और संबंधो से उसका कोई मतलब नहीं होता है. भाजपा केवल अपने कार्यकर्ताओं को उकसाने के लिये ऐसे कदम उठाती रहती है. जिससे वह देश के आंतरिक हालातों के बारें में सोंच ना सके. धर्म, पाकिस्तान और चीन जैसे मुददों पर सोचते रहे.

आसान नहीं है चीनी सामानों का बहिष्कार

सोशल मीडिया के प्रचार के जरीये चीनी सामान का बहिष्कार नहीं किया जा सकता है.भारत और चीनी के बीच के कारोबारी रिश्ते विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के अनुसार है. ऐसे में बिना किसी कारण के भारत चीन से आयात करना मना नहीं कर सकता है. भारत से चीन का सालाना व्यापार करीब 55 अरब डॉलर का है. हर भारतीय औसतन बहुत सारी चीजों को अपने इस्तेमाल में लाता है. जो चीन से आयात होती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में अभी भी कई सामान ऐसे हैं. जिनका भारत में उत्पादन और बिक्री चीनी कंपनियों द्वारा की जाती है.

अगर भारत में चीनी उत्पादों को बेचने पर रोक लगा दी जाए तो एक आम भारतीय के जीवन में काफी मुश्किलें आ सकती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि दिन भर में एक आम भारतीय जो भी सामान अपने लिए प्रयोग में लाता है. उसमें से 80 फीसदी सामान चीन से आयात होता है या फिर भारतीय कंपनियां इनको बेचती हैं. यही नहीं भारत पाकिस्तान की तरह चीन से आयात होने वाले सामान पर 200 फीसदी की ड्यूटी भी नहीं लगा सकता है.

विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के अनुसार कोई भी देश बिना किसी कारण के दूसरे देश से अपने यहां आयात या फिर निर्यात होने वाले उत्पादों पर पूरी तरह से रोक नहीं लगा सकते हैं. इसके साथ ही भारत से चीन को निर्यात होने वाले सामान की मात्रा काफी कम है. अगर सरकार चीनी उत्पादों पर ड्यूटी को बढ़ाने का फैसला भी लेती है. तो इसका असर सबसे ज्यादा आम भारतीयों पर ही पड़ेगा.

व्यापक असर है चीन के कारोबार

2011 में भारत में विदेशी निवेश करने वाले देशों में चीन का स्थान 35 वां था. 2014 में 28 वां हो गया. 2016 मे चीन भारत में निवेश करने वाला 17 वां बड़ा देश बन गया. भारत में विदेश निवेश करने वाले बडे देशों में चीन 10 देशों में शामिल हो गया. भारत के लिए राशि बड़ी है मगर चीन अपने विदेश निवेश का मात्र 0.5 प्रतिशत ही भारत में निवेश करता है. 2011 में चीन ने कुल निवेश 102 मिलियन डॉलर का किया था. 2016 में एक बिलियन का निवेश किया. कई चीनी कंपिनयों के रीजनल अॉफिस अहमदाबाद में है. 2017 में के अनुसार चीन की सात बड़ी फोन निर्माता कंपनियां भारत में फैक्ट्री लगाई. चीन की एक कंपनी है चाइना रेलवे रोलिंग स्टॉक उसको नागपुर मेट्रो के लिए 851 करोड़ का ठेका मिला है. चाइना रोलिंग स्टॉक कंपनी को गांधीनगर-अहमदाबाद लिंक मेट्रो में 10,733 करोड़ का ठेका मिला.

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2016 में गुजरात सरकार ने चीनी कंपनियों से निवेश के लिए 5 बिलियन डॉलर का करार किया. 2015 में कर्नाटक सरकार चीनी कंपनियों के लिए 100 एकड़ जमीन देने के लिए सहमत हो गई. महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने चीन की दो मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी को 75 एकड़ जमीन देने का फैसला किया है. ये कंपनियां 450 करोड़ का निवेश लेकर आएंगी. हरियाणा सरकार ने चीनी कंपनियों के साथ 8 सहमति पत्र पर समझौता किया. यह कंपनियां 10 बिलियन का इंडस्ट्रियल पार्क बनाएंगी स्मार्ट सिटी बनाएंगी. ऐसे हाल में चीन के बहिष्कार की बात पूरी तरह बेमानी है. इससे केवल लोगों को ध्यान ही भटकाया जा सकता है.

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