आशिकी में एक प्रेमिका क्यों बनीं कातिल

मुकेश ने खेत में देखा तो हैरान रह गया. वहां भारी मात्रा में खून फैला हुआ था. यह देखते ही वह वहां से तुरंत उल्टे पैर भागा और सीधे  गांव के मास्टर हरिराम के घर पहुंचा.

मास्टर हरिराम ने जब यह बात सुनी तो वह भी हैरान रह गए. उन्होंने फोन कर के गांव के पूर्व सरपंच लाखन सिंह ठाकुर को भी बुला लिया. तीनों उसी जगह पर पहुंचे तो जहां खून पड़ा था, वहां घसीटने के भी निशान थे. उसी घसीटती हुई फसल का पीछा करते करते वह 100-200 मीटर भी नहीं पहुंचे थे कि तीनों के कदम ठहर गए. क्योंकि उन के सामने औंधे मुंह एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी.

वह जिस व्यक्ति की लाश थी, उसे पूर्व सरपंच लाखन सिंह ठाकुर जानते थे. लाश गांव की ही मौजूदा सरपंच फूलबाई कुशवाह के बेटे विशाल कुशवाहा की थी. पूर्व सरपंच ने देरी न करते हुए बैरसिया थाने के एसएचओ नरेंद्र कुलस्ते को फोन कर के सूचना दे दी.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के देहात क्षेत्र में स्थित बैरसिया थाना है. इस में गांव दामखेड़ा पड़ता है. यह गांव थाने से करीब 15-16 किलोमीटर दूर है. इसी गांव में मास्टर हरिनारायण सक्सेना भी रहते हैं. उन्हें पूरा गांव मास्साब के नाम से ही जानता है. उन के ही खेत में एक टपरा है, जिस में उन का बेलदार मुकेश रहता था.

वह 10 मार्च की सुबह जल्दी उठा. क्योंकि उस दिन अमावस्या थी, इसलिए उसे गांव में स्थित हनुमान मंदिर में जल चढ़ाने जाना था. वह उठा और मंदिर में सुबह लगभग 7 बजे चला गया. मंदिर में जल चढ़ा कर वह आ रहा था, तब उसे दूर से मास्साब के खेत में लगी फसल का कुछ हिस्सा बिखरा नजर आया.

मुकेश को लगा कि कोई फसल काट ले गया है. इसलिए वह तुरंत तेज कदमों से वहां पहुंचा था.

एएसपी डा. नीरज चौरसिया

लाश मिलने की सूचना पाते ही एसएचओ तुरंत घटनास्थल के लिए निकल पड़े. रास्ते में ही एसएचओ ने एसपी प्रमोद कुमार सिन्हा, एएसपी डा. नीरज चौरसिया और प्रभारी एसडीओपी मंजू चौहान को यह जानकारी साझा कर दी.

एसडीओपी मंजू चौहान

एसएचओ नरेंद्र कुलस्ते मौके पर जा रहे थे, तभी उन के पास बैरसिया के एसडीओपी आनंद कलादगी की भी काल आ गई. वह भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं और इस वक्त बैरसिया (देहात) में एसडीओपी का चार्ज देख रहे थे. हालांकि जब यह घटना हुई तो वह अवकाश पर पुश्तैनी गांव कर्नाटक गए हुए थे. एसएचओ ने उन्हें सारी जानकारी दे दी. शव पड़े होने की जानकारी देते हुए एसएचओ ने बताया कि वह मौके पर पहुंच रहे हैं.

इस के बाद घटनास्थल पर फिंगरप्रिंट के अधिकारियों और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया था. इस के अलावा उन्होंने लललिया चौकी के प्रभारी एसआई शंभू सिंह सेंगर और थाने में तैनात एसआई रिंकू जाटव को भी मौके पर बुला लिया.

ये 2 बातें मौके पर हो चुकी थीं तय

थानाप्रभारी नरेंद्र कुलस्ते हरिनारायण सक्सेना के खेत पर पहुंचते, उस से पहले ही उन्हें गोलू साहू के खेत पर भारी भीड़ नजर आई. उन्होंने वहां मौजूद भीड़ को नगर रक्षा समिति के सदस्य इजरायल की मदद से हटाया.

उस के बाद शव और जहां खून फैला था, उस जगह को सुरक्षित कराया. वहां धीरेधीरे कर के सारे अफसर आना शुरू हो गए. खबर मीडिया तक पहुंच गई थी तो पत्रकारों का भी वहां जुटना शुरू हो गया.

उसी समय वहां सरपंच फूलबाई कुशवाहा के पति रमेश कुशवाहा भी कुछ लोगों के साथ पहुंच गए. अपने 25 वर्षीय बेटे विशाल कुशवाहा की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगे. उस की कुछ महीने पहले ही शादी भी हुई थी. वह नौजवान और हैंडसम युवक था. इस के अलावा सरपंच का बेटा होने के कारण उस का गांव में जलवा था.

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मृतक विशाल कुशवाहा

वह गांव में उगने वाली फसल को अपने लोडिंग वाहन में लोड कर के विदिशा जिले में लगने वाली मंडी में बेचने जाया करता था. जिस ग्रामीण को फसल उसे देनी होती थी, वह उसे पहले बता दिया करता था. इस कारण गांव के कई घरों में विशाल कुशवाहा का सीधा संपर्क था.

सबूत जुटाने में जुटे एसएचओ समेत तीनों अफसर नरेंद्र कुलस्ते, रिंकू जाटव और शंभू सिंह सेंगर मौके पर ही रणनीतियां बना रहे थे. इस दौरान हर स्तर का अफसर मौके पर आ कर एक नया टास्क टीम को दे कर जा रहा था.

एसएचओ मृतक विशाल कुशवाहा के शरीर में आए घावों को देख चुके थे. उस के बाएं कान के ऊपर भारी वस्तु से किए गए प्रहार के कारण सिर के भीतर दबा हिस्सा दिख रहा था. इस के अलावा सिर के पीछे और माथे पर धारदार हथियार के वार थे.

यह सभी अलगअलग तरह के थे. इसलिए यह तो साफ हो गया था कि उस की कई लोगों ने मिल कर हत्या की है. गरदन रेती गई थी, वह भी पेशेवर तरीके से. यानी यह भी साफ हो गया था कि वारदात करने वाला पेशेवर अपराधी है. गले को जिस जगह धारदार हथियार से रेता गया था, उस नाजुक जगह की जानकारी हर कोई नहीं रखता.

गांव से भागी महिला और उस के पति पर गया शक

घटनास्थल की बारबार तफ्तीश करने और विशाल कुशवाहा के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद एसएचओ को सरकारी अस्पताल के 4 कंडोम मिले, इसलिए यह भी यकीन हो गया कि मामला अवैध संबंध से जुड़ा हो सकता है.

तभी एसएचओ का दिमाग ठनका और उन्होंने वहां मौजूद विशाल कुशवाहा के छोटे भाई मिथुन कुशवाहा से बातचीत शुरू की. क्योंकि वह उस वक्त होश में था.

उस ने बताया कि वह 2 भाई और 3 बहनें हैं, जिस में एक बहन की शादी हो गई है. मिथुन कुशवाहा से बातचीत में पता चला कि उन के गांव में चाची चली गई थी. वह गांव के दबंग अर्जुन कुशवाहा के साथ गई थी. उस से जरूर कुछ महीनों पहले विवाद की स्थिति बनी थी. लेकिन चाची और अर्जुन कुशवाहा घर छोड़ कर दूसरे गांव में रहने चले गए थे.

पुलिस ने उस की लोकेशन खंगाली तो वह संदेह के दायरे से बाहर हो गया. फिर आखिरी वक्त में कौन उस के साथ था, वह पता लगाया गया. तब मालूम हुआ कि गांव में रहने वाला बबलू कुशवाहा मृतक के पास आखिरी वक्त में था.

वह विशाल कुशवाहा की फसल और अपनी गाजर बेचने विदिशा गया हुआ था. उसे पुलिस ने काल करने की बजाय ग्रामीणों से काल लगा कर मौके पर बुलाया. उस को सीधे थाने ले जाया गया, जहां उस से पूछताछ अलग से की गई.

पड़ताल में मालूम हुआ कि बबलू कुशवाहा और विशाल कुशवाहा साथ में थे. जिस दिन लाश मिली, उस से एक दिन पहले रात 11 बजे लोडिंग वाहन उस के हवाले कर के वह चला गया था. लोडिंग वाहन में ही बबलू कुशवाहा को नींद की झपकी लग गई. बबलू कुशवाहा की नींद रात लगभग एक बजे खुली तो उस ने कई बार विशाल को फोन किया.

जब विशाल ने फोन नहीं उठाया तो बबलू ने उस के पापा रमेश कुशवाहा को फोन लगा कर बताया. उस ने बताया कि विशाल कुशवाहा ने सब्जी लोडिंग आटो में लोड कर ली थी. वह सुबह तक मंडी नहीं पहुंचाई तो खराब हो जाएगी. इस कारण रमेश कुशवाहा ने बबलू कुशवाहा के साथ दूसरे को भेज दिया.

यह बात पता चलने के बाद पुलिस ने बबलू कुशवाहा के अलावा विशाल कुशवाहा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकालने का काम शुरू कर दिया.

प्रेमिका के कांफिडेंस को देख कर थानाप्रभारी का हौसला हुआ पस्त

एसएचओ ने मिथुन कुशवाहा से पूछा, ”तुम्हारे भाई के किसी महिला से संबंध थे?’’

यह सुन कर वह बोला, ”हां, कुछ साल पहले तक उस के नीतू शाक्य के साथ रिश्ते थे. दोनों शादी भी करना चाहते थे. लेकिन पिता दूसरी जाति होने के कारण इस रिश्ते को अपनाने के लिए तैयार नहीं थे.’’

यह पता चलने के बाद उन्होंने विशाल कुशवाहा का रिश्ता विदिशा जिले के गंजबासौदा में स्थित गांव सलोई में रहने वाली हरीबाई से तय कर दिया गया. यह पता चलने के बाद नीतू शाक्य ने विशाल को फोन भी किया था. उस ने कहा था कि वह शादी करेगा तो अच्छा नहीं होगा.

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आरोपी नीतू शाक्य

इस धमकी को घर वालों ने नजरअंदाज कर के शादी कर दी थीं. यह सुनने के बाद एसएचओ ने देर नहीं की और वह महिला कांस्टेबल शीला दांगी के साथ नीतू शाक्य के घर पहुंच गए और पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए.

सरपंच के बेटे का दोस्त थाने पहुंच कर क्यों गिड़गिड़ाया

अब एसएचओ के सामने इस अंधे कत्ल को सुलझाने के लिए कई रास्ते थे. वह किन रास्तों पर जाएं, तय नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि उन के सामने दामखेड़ा गांव के दबंग अर्जुन कुशवाहा की कहानी थी तो वहीं बबलू कुशवाहा भी था, जो घटना से कुछ देर पहले तक मृतक के साथ था. तीसरी नीतू शाक्य जो कुछ महीने पहले तक मृतक विशाल कुशवाहा की प्रेमिका थी.

इन सभी बातों के बीच एसएचओ ने मौके पर मिले कंडोमों के आधार पर तय किया कि वह नीतू शाक्य को फोकस करेंगे. इसी बीच उन्हें विशाल कुशवाहा के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. जांच में पता चला कि मृतक की आखिरी बातचीत अजय नामदेव के साथ हुई थी. वह विदिशा जिले का रहने वाला था.

पुलिस ने उसे भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उस ने बताया कि यह सिम उस ने खरीद कर विशाल कुशवाहा को दी जरूर थी, लेकिन इस का इस्तेमाल वह नहीं करता था.

इस के बाद पुलिस ने अजय नामदेव के ही मोबाइल में हो रहे एक अन्य नंबर से बातचीत वाले को तलब किया. क्योंकि उस ने अजय नामदेव को उसी दिन कई बार फोन लगाया था.

उस का नाम आमीन मंसूरी था, जो दामखेड़ा गांव के नजदीक दूसरे गांव बबचिया का रहने वाला था. उस से पूछताछ का जिम्मा ललरिया चौकी में बैठे एसआई शंभु सिंह सेंगर को दिया गया. इधर, नीतू शाक्य पुलिस को कोई सहयोग नहीं कर रही थी. कई बार पुलिस पूछताछ की नाव गोते खा कर पलट रही थी.

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थाने में एकमात्र महिला कांस्टेबल नीतू शाक्य से पूछताछ करने में कमजोर साबित हो रही थी. उधर, आमीन मंसूरी ने भी कम परेशान नहीं किया. उस के रिश्तेदार भी हत्याकांड में उसे घेरे जाने का पता चलने पर एकएक कर के थाने के बाहर जमा होने लगे. इस के बावजूद एसआई शंभु सिंह सेंगर की टीम ने सख्ती बरती तो वह टूट गया.

उस ने हत्याकांड को करना कुबूल लिया, जिस में नीतू शाक्य की सीधी भूमिका थी. उस ने यह भी बताया कि वह हत्या करने के लिए राजी नहीं था. लेकिन नीतू शाक्य ने उस को प्यार का हवाला दे कर हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया था.

शारीरिक संबंध बनाने से पहले नीतू ने रखी थी कौन सी शर्त

आमीन मंसूरी (18 वर्ष) द्वारा गुनाह कुबूल कर लेने के बाद नीतू ने भी रट्टू तोते की तरह सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि वह विशाल कुशवाहा की बेवफाई से काफी आहत हो गई थी. इसलिए उस ने तय कर लिया था कि वह उस की हत्या करेगी.

आरोपी आमीन मंसूरी

इस के लिए उस ने गांव के ही कई युवकों के साथ दोस्ती भी की थी. उन के साथ रिश्ते बनाने से पहले यह शर्त थी कि उन्हें विशाल कुशवाहा को निपटाना होगा.

नीतू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी युवकों को थाने बुलाया. पता चला कि आमीन मंसूरी मटनचिकन की दुकान में काम भी करता था. उस के साथ 3 महीने पहले ही नीतू शाक्य ने दोस्ती की थी. एसएचओ इस बात को ले कर परेशान थे कि उस के पास विशाल कुशवाहा के दोस्त अजय नामदेव की मोबाइल सिम कैसे मिली. तब उस ने बताया कि वह मोबाइल और सिम उस को विशाल कुशवाहा ने ही खरीद कर बातचीत करने के लिए दी थी. शादी से पहले उसी मोबाइल के जरिए बातचीत होती थी.

हत्याकांड को अंजाम देने के लिए नीतू शाक्य ने विशाल कुशवाहा को फोन लगा कर हनुमान मंदिर के पास बुलाया था. लेकिन उस दिन घर में उस की मौसी आ गई थी. इस कारण वह रात 11 बजे उस के पास पहुंची थी. हालांकि इस से पहले 9 बजे मुलाकात होनी थी.

मर्डर करने के बाद लाश क्यों जलाना चाहती थी नीतू

उधर, आमीन मंसूरी ने बताया कि हत्याकांड में उस का दोस्त मनोज वंशकार भी शामिल था. 20 वर्षीय मनोज बबचिया गांव का रहने वाला था. लेकिन भोपाल के कोलार रोड स्थित ललिता नगर में रहने वाले भाई बलराम वंशकार और भाभी सुनीता वंशकार के साथ वह रहता था.

आरोपी मनोज वंशकार

आमीन मंसूरी ने बताया कि उस ने हत्या तो नहीं की थी, लेकिन उस की बाइक से वह मौके पर पहुंचा था. वह यह जानता था कि मैं अपनी प्रेमिका नीतू शाक्य के दुश्मन को मारने वाला हूं.

आमीन मंसूरी की कहानी और नीतू शाक्य की पटकथा मेल खाने लगी. यह देख कर पुलिस ने नीतू शाक्य को संदेही मान कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इधर, बैरसिया स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हुए विशाल कुशवाहा के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ चुकी थी.

रिपोर्ट में आईं इन चोटों को ले कर नीतू शाक्य ने राज उजागर किया. उस ने बताया कि उसे पता था कि मृतक के साथ बबलू कुशवाहा है, इसलिए उसे अकेले नीतू ने बुलाया था.

विशाल को लगा कि आज वह एक बार फिर पुरानी यादों को नीतू के साथ शारीरिक संबंध बना कर ताजा करेगा. इस कारण वह अपने साथ 4 कंडोम ले कर पहुंचा था. वह नीतू को देख कर अपने अरमानों को रोक नहीं पा रहा था. विशाल यह नहीं जानता था कि नीतू आज प्रेमिका नहीं, बल्कि बदला लेने वाली दुश्मन है.

वह योजना के तहत पीछे की तरफ जा रही थी. जबकि विशाल उसे आलिंगन करने के लिए बढ़ रहा था. तभी नीतू ने विरोध करते हुए बोला कि वह उस का फोन क्यों नहीं उठाता. विशाल बोला कि अब वह शादीशुदा है. पत्नी को पता चलता है तो घर में बवाल होता है.

यह बोलते हुए वह नीतू को दबोचने के लिए आगे बढ़ा. लेकिन नीतू पीछे हुई, तभी उस के पैर से पत्थर टकराया जो उस ने कब उठाया, यह विशाल समझ ही नहीं पाया. विशाल ने जैसे ही कमर के पीछे से दोनों हाथ डाल कर दबोचना चाहा. तभी उस ने विशाल के कान के बाएं तरफ जोरदार पत्थर का वार किया.

लाश को छिपाने में दोस्त ने क्यों नहीं की मदद

विशाल कुशवाहा को जैसे ही बाएं कान की तरफ पत्थर लगा तो वह चीख पड़ा. उसी वक्त पीछे से आ कर आमीन मंसूरी ने छुरी से विशाल के सिर पर वार किया और उसे दबोच लिया. यह देख कर वह समझ गया कि उस के साथ क्या होने वाला है. उस ने तुरंत ही मास्टर हरिनारायण सक्सेना के खेत में रहने वाले बेलदार को नाम ले कर बचाने के लिए पुकारा.

उस की आवाज सुन कर नीतू बोली, ”आमीन, इस का मुंह बंद करो नहीं तो पूरे गांव वाले जाग जाएंगे.’’

यह बोलने के साथ ही उस ने अपना दुपट्टा भी उसे दिया. दुपट्टे से आमीन मंसूरी ने उस का मुंह बंद किया और चाकू से विशाल कुशवाहा का गला रेत दिया. इस काम में आमीन मंसूरी काफी एक्सपर्ट था. क्योंकि वह मीट की दुकान में काम करता था.

गला रेतने के बाद खून का फव्वारा छूट पड़ा था. इसलिए खेत में चारों तरफ खून ही खून फैल गया. फिर तय किया गया कि उसे दूसरी जगह ले जा कर जला देते हैं, ताकि उस का शव पहचान में नहीं आ सके.

सिरहाने की तरफ से आमीन मंसूरी ने पकड़ा. वहीं पैर की तरफ से नीतू शाक्य पकड़ कर खींचने लगी, लेकिन मरने के बाद विशाल का शरीर भारी हो गया था.

बदले की आग जब शांत हुई तो नीतू खून से सने विशाल को देख कर घबरा गई. लाश खींचने के दौरान मृतक की पैंट नीतू के हाथों में खिंच आई और वह गिर गई.

यह देख कर आमीन ने अपने दोस्त मनोज वंशकार को बुलाया. आमीन ने उस से कहा कि वह लाश को घसीटने में मदद करे, ताकि उसे जला कर उस की पहचान मिटा सकें. लेकिन ऐसा करने के लिए मनोज वंशकार राजी नहीं हुआ.

नतीजतन दोनों गोलू कुशवाहा के खेत तक ही लाश को ले जा सके. उसे वहीं पटक कर तीनों मौके से भाग गए.

सारी रात कैसे मिटाए सबूत

नीतू शाक्य की योजना यह थी कि विशाल कुशवाहा की हत्या में उस का दोस्त अजय नामदेव फंसे. इसलिए उस के नाम पर खरीदे गए मोबाइल और सिम का इस्तेमाल नीतू ने किया था. लेकिन सब कुछ उलटा हो गया तो रणनीतियां बदली जाने लगीं.

हत्याकांड के बाद आरोपी आमीन मंसूरी मृतक का मोबाइल और पर्स ले कर भाग गया. ताकि लाश देखने के बाद पुलिस को यह लगे कि उस की लूट के इरादे से हत्या की गई है. आमीन मंसूरी ने बबचिया गांव के नाले में उस का मोबाइल फेंक दिया.

खून से सना दुपट्टा और कपड़े उतार कर नीतू शाक्य ने घर की छत पर एक कोने में छिपा दिए. उन्हें अगले दिन जलाने की योजना थी. लेकिन उस से पहले ही पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई थी.

पुलिस ने पहले आमीन मंसूरी और उस की प्रेमिका नीतू शाक्य को गिरफ्तार किया. उस के अगले दिन मनोज वंशकार को भी हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने हत्याकांड में इस्तेमाल की गई मनोज वंशकार की बाइक भी जब्त कर ली. नीतू शाक्य ने मोबाइल की सिम तोड़ दी थी. लेकिन अजय नामदेव के नाम पर खरीदा गया मोबाइल उस के घर से बरामद किया गया.

पुलिस ने हत्या करने और सबूत मिटाने का मामला दर्ज करने के बाद आम्र्स एक्ट, लूट, साजिश रचने समेत कई अन्य धाराएं भी बढ़ा दीं. आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

-फोटो घटना से जुड़ी नहीं है यह एक काल्पनिक फोटो है

पैसो के लिए भाई बना दरिंदा, ढाई करोड़ रुपए के लिए की हत्या

सरदार अमरजीत की करोड़ों की दौलत हथियाने के लिए रोहित चोपड़ा और स्वर्ण सिंह ने ऐसा षडयंत्र रचा था कि अगर वे अपनी योजना में सफल हो जाते तो आज उन की जगह अमरजीत (मृतक) के बेटे सलाखों के पीछे होते.  

सुबह के नाश्ते पर आने की कोई बात ही नहीं थी. लेकिन दोपहर का खाना खाने से पहले ज्ञान कौर काफी देर तक अपने पति अमरजीत सिंह की राह देखती रहीं. धीरेधीरे 3 बज गया और अमरजीत सिंह घर नहीं आए तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. यह स्वभाविक भी था. वह सोचने लगीं, सरदारजी ने रात में आने की बात की थी, सुबह भी नहीं आए तो कोई बात नहीं थी. अब वह खाना खाने भी नहीं आए, जबकि वह खाना समय पर ही खाते थे. आज वह बिना बताए कहां चले गए? कहीं कोई जमीन तो देखने नहीं चले गए या फिर किसी जमीन के कागज बनवाने तो नहीं चले गए? काम में फंसे होने की वजह से बता नहीं पाए होंगे.

ज्ञान कौर ने 3-4 बार अमरजीत सिंह के मोबाइल पर फोन किया था, लेकिन संपर्क नहीं हो सका था. तरहतरह की बातें सोचते हुए ज्ञान कौर ने खाना खाया और आराम करने के लिए लेट गईं. सरदारजी के बारे में ही सोचते हुए वह सो गईं तो शाम को उठीं. उस समय भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे थे. शाम को ही नहीं, रात बीत गई और सरदारजी लौट कर नहीं आएकई बार ज्ञान कौर के मन में आया कि सरदारजी के घर आने की बात वह अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह को बता दें. लेकिन उन के मन में आता कि बच्चे बेवजह ही परेशान होंगे. सरदारजी कोई बच्चे तो हैं नहीं कि गायब हो जाएंगे. 70 साल के स्वस्थ और समझदार आदमी हैं. वह ऐसे हैं कि खुद ही दूसरों को गायब कर दें, उन्हें कौन गायब करेगा?

इसी उहापोह और असमंजस की स्थिति में ज्ञान कौर का वह दिन भी बीत गया. जब दूसरी रात भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे तो ज्ञान कौर ने परेशान हो कर अगली सुबह यानी 27 अगस्त, 2013 को गांव में रह रहे अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह के पास खबर भेजने के साथ बाघा बार्डर पर ड्यूटी कर रहे छोटे बेटे गुरदीप सिंह को भी फोन द्वारा सरदार अमरजीत सिंह के 2 दिनों से घर आने की सूचना दे दीगुरदीप सिंह भारतीय सेना की 69 आर्म्स बटालियन में सिपाही था. इन दिनों वह बाघा बार्डर पर तैनात था. मां से पिता के 2 दिनों से घर आने की जानकारी मिलते ही गुरदीप सिंह छुट्टी ले कर गांव आया और सब से पहले भाई को साथ ले कर थाना सदर जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद दोनों भाई पिता की तलाश में जुट गए.

सरदार अमरजीत सिंह लुधियाना के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव झांदे में रहते थे. काफी और उपजाऊ जमीन होने की वजह से गांव में उन की गिनती बड़े जमीनदारों में होती थी. गांव के बीचोबीच उन की महलनुमा शानदार कोठी थी, जिस में वह पत्नी ज्ञान कौर और 2 बेटों गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह के साथ रहते थे. दोनों बेटे पढ़ाई के साथसाथ खेती में भी बाप का हाथ बंटाते थे. बड़ा बेटा गुरचरण सिंह पढ़ाई पूरी कर के जमीनों की देखभाल करने लगा तो छोटा गुरदीप सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गया. गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह कामधाम से लग गए तो सरदार अमरजीत सिंह ने उन की शादियां कर दीं. उन की भी अपनी संतानें हो गई थीं. इस तरह उन का भरापूरा खुशहाल परिवार हो गया था.

वैसे भी धनदौलत की उन के पास कोई कमी नहीं थी, लेकिन जब देहातों का शहरीकरण होने लगा तो उन्होंने अपनी काफी जमीनें करोड़ो रुपए में बेच कर इस के बदले बरनाला में उन्होंने दोगुनी जमीन खरीद कर बटाई पर दे दी. बाकी पैसों से उन्होंने प्रौपर्टी डीलर का काम शुरू कर दिया. अमरजीत की जमीनों, मंडियों और आढ़त आदि का सारा काम बड़ा बेटा गुरचरण सिंह देखता था. जबकि अमरजीत सिंह अपने प्रौपर्टी डीलर वाले काम में व्यस्त रहते थे. इस के लिए उन्होंने गांव के बाहर लगभग 5 सौ वर्गगज में एक आलीशान औफिस और कोठी बनवा रखी थी. वह अपनी पत्नी ज्ञान कौर के साथ उसी में रहते थे, जबकि परिवार के अन्य लोग गांव वाली कोठी में रहते थे.

अमरजीत सिंह का इधर ढाई, 3 सालों से बगल के गांव थरीके के रहने वाले स्वर्ण सिंह के साथ कुछ ज्यादा ही उठनाबैठना था. वैसे तो स्वर्ण सिंह मोगा का रहने वाला था, लेकिन उस ने और उस के भाई गुरचरन सिंह ने मोगा की सारी जमीन बेच कर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर में काफी जमीन खरीद ली थी. जिस की देखभाल गुरचरन सिंह भाई स्वर्ण सिंह के साले कुलविंदर सिंह के साथ करता था. जबकि स्वर्ण सिंह थरीके में रहते हुए प्रौपर्टी का काम करता था. ऐसे में जब उसे पता चला कि झांदे गांव के रहने वाले अमरजीत सिंह का प्रौपर्टी का बड़ा काम है तो वह उन के पास भी आनेजाने लगा. उस ने उन से 3-4 प्लाटों के सौदे भी करवाए, जिन से उन्हें अच्छाखासा लाभ मिला.

उन्होंने स्वर्ण सिंह का पूरा कमीशन तो दिया ही, लेकिन इस के बाद से उन्हें उस पर पूरा भरोसा हो गया था. साथसाथ खानापीना होने लगा तो दोनों में मित्रता भी हो गई. इस के बाद अमरजीत सिंह का कोर्टकचहरी जा कर कागजात बनवाने और प्लाट वगैरह दिखाने का ज्यादातर काम स्वर्ण सिंह ही करने लगा. उसी बीच स्वर्ण सिंह ने अमरजीत सिंह की मुलाकात अमित कुमार से करवाई. अमित ने उन्हें बताया था कि वह गोल्ड मैडलिस्ट वकील है. लेकिन वह वकालत कर के प्रौपर्टी का बड़ा काम करता था. वह छोटेमोटे नहीं, बड़े सौदे करता और करवाता था.अमित कुमार ने अमरजीत सिंह से इस तरह बातें की थीं कि वह उस से काफी प्रभावित हुए थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह को 2-3 प्लाट भी खरीदवाए थे, जिन्हें बेच कर अमरजीत सिंह ने अच्छाखासा लाभ कमाया था.

स्वर्ण सिंह की ही तरह अमरजीत सिंह अमित कुमार पर भी विश्वास करने लगे थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह के साथ मिल कर करीब ढाई करोड़ रुपए का एक सौदा किया, जिस के लिए उन्होंने 50-50 लाख रुपए का 2 बार में भुगतान किया था. इस सौदे में स्वर्ण सिंह गवाह था. लेकिन इतने बड़े सौदे की अमरजीत सिंह के घर के किसी भी सदस्य को कोई जानकारी नहीं थी. बहरहाल, अमरजीत सिंह के गायब होने के बाद उन के दोनों बेटे, गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह हर संभावित जगह पर उन की तलाश करते रहे. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. ऐसे में ही किसी दिन उन की मुलाकात गांव के ही कृपाल सिंह से हुई तो उस ने उन्हें बताया कि जिस दिन से सरदार जी गायब हैं, उस दिन सुबह वह खेतों पर जा रहा था तो उस ने उन्हें स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर के साथ देखा था.

उस समय वह काफी नशे में लग रहे थे. उस के पूछने पर सुखमीत कौर ने बताया था कि वे सरदारजी को अपने भाई की जमीन दिखाने यूपी ले जा रहे हैं. उस समय वे लोग ब्रह्मकुमारी सदन के मोड़ पर खड़े थे. कुछ देर बाद एक इंडिका कार आई तो सभी उस में सवार हो कर चले गए थे. कृपाल सिंह से मिली जानकारी चौंकाने वाली थी, क्योंकि पिता के स्वर्ण सिंह के साथ जाने की बात उन्हें बिलकुल पता नहीं थी. स्वर्ण सिंह ने भी यह बात नहीं बताई थी. इस के अलावा अमरजीत सिंह के औफिस से ढाई करोड़ रुपए की जमीन के सौदे के कागजात भी मिल गए थे, जिन्हें देख कर दोनों भाइयों ने अंदाजा लगाया कि कहीं इसी ढाई करोड़ रुपए की जमीन के लिए तो उन के पिता का अपहरण नहीं किया गया.

 इस के बाद गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह को लगा कि अब समय बेकार करना ठीक नहीं है. दोनों भाई थाना सदर के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ से मिले और उन्हें पूरी बात बताई. चूंकि अमरजीत सिंह ग्रेवाल बड़े और जानेमाने आदमी थे, सो अमनदीप सिंह बराड़ ने गुरदीप सिंह के बयान के आधार पर ही अमरजीत सिंह के मामले को अपराध संख्या 124/2013 पर भादंवि की धारा 364-120बी के तहत दर्ज कर मामले की सूचना उच्चाधिकारियों को दे कर खुद ही इस की जांच शुरू कर दी. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने स्वर्ण सिंह और उस की तलाश के लिए एक टीम बनाई, जिस में एएसआई रामपाल सिंह, दविंदर सिंह, मुख्तियार सिंह, हेडकांस्टेबल कुलवंत सिंह, हरपाल सिंह, सुखविंदर सिंह और तलविंदर सिंह को शामिल किया.

अगले ही दिन इस पुलिस टीम ने मुखबिरों की सूचना पर लुधियाना के बाहरी क्षेत्र से स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर को कार सहित गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर इन से पूछताछ की जाने लगी तो इन्होेंने अमरजीत सिंह के साथ यूपी जाने की बात से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि उन्होंने अमरजीत सिंह को जगराओं के निकट एक जमीन दिखा कर उन के घर छोड़ दिया था. पुलिस टीम ने लाख कोशिश की, लेकिन वे अपने बयान पर अड़े रहे. इधर थाना पुलिस पूछताछ में लगी थी तो दूसरी ओर गुरदीप सिंह जीटी रोड स्थित शंभू बार्डर के टोल टैक्स नाका से सीसीटीवी की फुटेज ले आया. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने वह फुटेज देखी तो उस में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि 25 अगस्त की सुबह 9 बजे के आसपास इंडिका कार, जिस का नंबर पीबी19-2277 था.

उस की अगली सीट पर नशे की हालत में अमरजीत सिंह बैठे थे. ड्राइवर की सीट पर स्वर्ण सिंह बैठा था और पीछे की सीट पर सुखमीत कौर बैठी थी. अगले दिन यानी 26 अगस्त की शाम को वही गाड़ी लौटी थी, लेकिन उस में अमरजीत सिंह नहीं थे.फुटेज देख कर स्वर्ण सिंह कुछ कहने लायक नहीं रह गया था. फिर भी उस ने बात को घुमाने की कोशिश की. उस ने कहा कि कुछ जमीन अंबाला के पास थी. सरदारजी ने कहा था कि जब यहां तक आए हैं तो लगे हाथ उसे भी देख लेते हैं. उसे देखने के लिए वे अंबाला चले गए थे. लेकिन स्वर्ण सिंह का यह बहाना भी नहीं चला और अंत में उसे अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा

स्वर्ण सिंह ने बताया था कि अमरजीत की हत्या कर के उन की लाश को उन लोगों ने नहर में फेंक दी थी. स्वर्ण सिंह के बताए अनुसार, इस हत्याकांड में 5 लोग शामिल थे, एक तो वह स्वयं था, दूसरा उस का भाई गुरचरन सिंह, तीसरा साला कुलविंदर सिंह, चौथा पत्नी सुखमीत कौर और पांचवां था अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार.स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर पुलिस गिरफ्त में थे. उन के बयान के बाद पुलिस ने इस मुकदमे में धारा 364-120बी के साथ 302-201बी, 25-54-59 आर्म्स एक्ट जोड़ कर स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर को ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान ही उन की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर से उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर के साथ गुरचरन सिंह एवं कुलविंदर सिंह को अदालत में पेश कर के लाश एवं सुबूत जुटाने के लिए 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान ही अभियुक्तों की निशानदेही पर पंजाब पुलिस ने यूपी पुलिस की मदद से उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के निकट रामगंगा नदी में जाल डाल कर मृतक अमरजीत सिंह की लाश की तलाश के लिए मीरजापुर से जलालाबाद तक जाल डाला. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी लाश बरामद नहीं हो सकी. पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अमित कुमार उर्फ विजय उर्फ रोहित चोपड़ा की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. इस बीच पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार, डंडा, 32 और 315 बोर के 2 रिवाल्वर के साथ 10 लाख रुपए नकद बरामद कर लिए थे.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने चारों अभियुक्तों स्वर्ण सिंह, उस की पत्नी सुखमीत कौर, उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जिला जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार चारों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में अमरजीत सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह ठगी, बेईमानी, ईर्ष्या और उच्च महत्त्वाकांक्षा की पृष्ठभूमि पर तैयार की गई थी. सही बात तो यह थी कि इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि काफी पहले ही तैयार कर ली गई थी. अगर हत्यारे अपनी योजनानुसार अपने इरादों में सफल हो जाते तो उन की जगह मृतक के दोनों बेटे पिता की हत्या के आरोप में जेल की हवा खा रहे होते और अभियुक्त उन की प्रौपर्टी पर ऐश कर रहे होते.

अभियुक्त स्वर्ण सिंह और उस का साला कुलविंदर सिंह शुरू से जमीनजायदाद के फर्जी काम करते आ रहे थे. पर ज्यादा पढ़ेलिखे न होने की वजह से वे छोटीमोटी ठगी तक ही सीमित थे. लेकिन रोहित कुमार यानी अमित कुमार से मिलने के बाद उन के पर निकल आए थे. उसी के कहने पर वे किसी बड़े काम की तलाश में लग गए थे. इसी तलाश में अमरजीत सिंह पर उन की नजर जम गई थी. इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड अमित कुमार उर्फ विजय कुमार उर्फ रोहित कुमार था, जिस का असली नाम रोहित चोपड़ा था. वह लुधियाना के घुमार मंडी के सिविल लाइन के रहने वाले दर्शन चोपड़ा के तीन बेटों में सब से छोटा था. लगभग 7 साल पहले उस की शादी इंदू से हुई थी, जिस से उसे 5 साल की एक बेटी थी.

रोहित बचपन से ही अति महत्त्वाकांक्षी, शातिर दिमाग था. एलएलबी करने के बाद तो उस का दिमाग शैतानी करामातों का घर बन गया था. वह रातदिन अपराध करने और उस से बचने के उपाय सोचता रहता था. स्वर्ण सिंह से मिलने के बाद जब उसे अमरजीत सिंह की दौलत, जमीनजायदाद और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पता चला तो वह स्वर्ण सिंह के साथ मिल कर उन की प्रौपर्टी और रुपए हथियाने के मंसूबे बनाने लगा. एक तरह से स्वर्ण सिंह रोहित चोपड़ा के लिए मुखबिर का काम करता था. रोहित को जब स्वर्ण से पता चला कि अमरजीत सिंह बेटों से ज्यादा वास्ता नहीं रखता तो उसे अपना काम आसान होता नजर आया. स्वर्ण सिंह ने उसे बताया था कि एक बेटा भारतीय सेना में है तो दूसरा जमीनों की देखभाल करता है.

इस के बाद रोहित कुमार ने अमरजीत सिंह का माल हथियाने की जो योजना बनाई, उस के अनुसार सब से पहले उन की ओर से डिप्टी कलेक्टर को एक पत्र लिखवाया गया. जिस में उस ने लिखवाया था किमेरे दोनों बेटे गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह मेरे कहने में नहीं हैं. वे मेरी जमीनजायदाद हड़पने के चक्कर में मेरी हत्या करना चाहते हैं.’ अमरजीत सिंह शराब पीने के आदी थे और अभियुक्तों पर पूरा विश्वास करते थे. यही वजह थी कि शराब पीने के बाद वह उन के कहने पर किसी भी कागज पर हस्ताक्षर कर देते थे. डिप्टी कलेक्टर के नाम पत्र लिखवाने के बाद उन्होंने अमरजीत सिंह की हत्या की योजना बना डाली थी. लेकिन समस्या यह थी कि अमरजीत सिंह के पास अपना लाइसेंसी हथियार था. जरा भी संदेह या चूक होने पर उन लोगों की जान जा सकती थी. इसलिए वे मौके की तलाश में रहने लगे.

मई के अंतिम सप्ताह में उन्हें मौका मिला. अमरजीत सिंह अपने किसी मिलने वाले की जमीन के झगड़े का फैसला कराने सिंधवा वेट, जगराओं गए हुए थे. घर में भी उन्होंने यही बताया था. रोहित कुमार ने सोचा कि अगर बाहर से ही अमरजीत सिंह को कहीं ले जा कर हत्या कर दी जाए तो किसी को उस पर संदेह नहीं होगा. उस ने स्वर्ण सिंह से सलाह कर के अमरजीत सिंह को फोन किया, ‘‘जमीन का एक बढि़या टुकड़ा बिक रहा है. अगर आप देखना चाहें तो मैं आप के पास आऊं.’’  लेकिन अमरजीत सिंह ने जाने से मना कर दिया. इस तरह रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह की यह योजना फेल हो गई. वे एक बार फिर मौका ढूंढने लगे. इसी बीच उन्होंने अमरजीत को ढाई करोड़ रुपए में एक जमीन खरीदवा दी. इस की फर्जी रजिस्ट्री भी उन्होंने करा दी. इस में भी गवाह स्वर्ण सिंह था. पार्टी को पैसे देने के नाम पर उन्होंने उन से 50-50 लाख कर के 1 करोड़ रुपए भी ले लिए.

 किसी भी जमीन की रजिस्ट्री करवाने के बाद उस का दाखिलखारिज कराना जरूरी होता है. उसी के बाद खरीदार निश्चिंत हो जाता है कि उस जमीन पर किसी तरह का विवाद नहीं है. अमरजीत सिंह द्वारा खरीदी गई जमीन के दाखिलखारिज का समय आया तो स्वर्ण सिंह और रोहित कुमार को चिंता हुई, क्योंकि उस जमीन के सारे कागजात फर्जी थे. जब जमीन ही नहीं थी तो कैसी रजिस्ट्री और कैसा दाखिलखारिज. पोल खुलने के डर से रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह परेशान थे. ऐसे में अमरजीत सिंह की हत्या करना और जरूरी हो गया था. क्योंकि सच्चाई का पता चलने पर अमरजीत सिंह उन्हें छोड़ने वाला नहीं था.

दाखिलखारिज के लिए 10-12 दिन बाकी रह गए तो वे अमरजीत सिंह को सस्ते में जमीन दिलाने की बात कह कर खरीदने के लिए उकसाने लगे. स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर ने अमरजीत सिंह को बताया कि उस के भाई कुलविंदर सिंह की पृथ्वीपुर में काफी जमीन है, जिसे वह बेचना चाहता है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वह कुछ सस्ते में दे देगा. उसी जमीन के बारे में बातचीत करने के लिए 24 अगस्त की रात स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह के औफिस में ही रुक गया. देर रात तक वे शराब पीते रहे. स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह को अधिक शराब पिला कर पृथ्वीपुर चल कर जमीन देखने के लिए राजी करता रहा. जब अमरजीत सिंह चलने के लिए तैयार हो गए तो सुबह के लगभग साढ़े 5 बजे अपने घर थरीके जा कर वह अपनी सफेद रंग की इंडिका कार ले आया, जिस का नंबर पीबी 19 -2277 था. उस के साथ उस की पत्नी सुखमीत कौर भी थी.

स्वर्ण सिंह ने कार ब्रह्मकुमारी शांति सदन के मोड़ पर खड़ी कर दी और अमरजीत सिंह के औफिस जा कर बोला, ‘‘भाईजी चलो, गाड़ी गई है.’’ नशे में धुत अमरजीत सिंह सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थे. वह उठे और जा कर कार में बैठ गए. उसी समय गांव के कृपाल सिंह ने उन्हें इंडिका कार में स्वर्ण सिंह के साथ जाते देख लिया था. अंबालादिल्ली होते हुए वे पृथ्वीपुर पहुंचे. वहां स्वर्ण सिंह के भाई गुरचरण सिंह और साले कुलविंदर सिंह ने अमरजीत सिंह का स्वागत बोतल खोल कर किया. शराब पीतेपीते ही शाम हो गई. अब तक अमरजीत सिंह खूब नशे में हो चुके थे. उन से उठा तक नहीं जा रहा था. उसी स्थिति में उन्होंने उन्हें वहीं कमरे में गिरा दिया और सब मिल कर पीटने लगे. वहीं लकड़ी का एक मोटा डंडा पड़ा था. स्वर्ण सिंह उसे उठा कर अमरजीत सिंह की गरदन और सिर पर वार करने लगा. उसी की मार से अमरजीत की गरदन टूट कर एक ओर लुढ़क गई और उन के प्राणपखेरू उड़ गए. 

जब उन लोगों ने देखा कि अमरजीत का खेल खत्म हो गया है तो उन्होंने लाश को कार में डाला और उसे ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. रामगंगा नदी के पुल पर जा कर उन्होंने अमरजीत सिंह की लाश को नदी में फेंक दिया. इस के बाद गुरचरन और कुलविंदर पृथ्वीपुर लौट गए तो स्वर्ण सिंह पत्नी सुखमीत कौर के साथ लुधियाना गया.

  पुलिस ने स्वर्ण सिंह, सुखमीत कौर, गुरचरन सिंह और कुलविंदर सिंह को तो जेल भेज दिया, लेकिन अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. 15 दिसंबर, 2013 को इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई थी. कथा लिखे जाने तक अमरजीत सिंह की लाश बरामद नहीं हो सकी थी.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

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