बेवफा : भाग 1

भाग 1
‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है रितु, मैं घर जा रही हूं. जाते समय चाबी पहुंचा देना…’’

यह आवाज तो जैसे जानीपहचानी है. एक बार तो मेरे मन में आया कि आंखों से गीली रुई हटा कर उसे देखूं. मगर तब तक दूर जाती सैंडलों की आहट से मैं समझ गईर् कि बोलने वाली जा चुकी है. उस की आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही थी, इसलिए मैं अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाई.

‘‘यही तो हैं इस ब्यूटीपार्लर की मालकिन सरिता राजवंश… ऊपर ही अपने पति के साथ रहती हैं. रुपएपैसों की कोई कमी नहीं है. बस खालीपन से बचने के लिए यह पार्लर चलाती हैं,’’ जितना पूछा उस से कहीं ज्यादा बता दिया रितु ने.

नाम सुनते ही मेरा रोमरोम जैसे झनझना उठा. चेहरे पर फेस पैक लगा था वरना अब तक न जाने कितने रंग आते और जाते. पिछले ही हफ्ते मेरे पति का तबादला यहां हुआ था. मैं घर में सामान अरेंज करतेकरते काफी थक गई थी. चेहरे की थकान मिटाने के लिए यहां फेशियल कराने आई थी. आश्चर्य कि यह पार्लर मेरी सब से प्यारी सहेली सरिता का था. विश्वास नहीं होता… मैडिकल की तैयारी करने वाली सरिता एक मामूली सा पार्लर चला रही है. लेकिन उस ने मुझे पहचाना क्यों नहीं या पहचान गई इसलिए यहां से चली गई? और भी न जाने कितने सवाल जिन के जवाब मैं पिछले 20 सालों से खोज रही हूं.

1-1 कर के वे सब जेहन में गूंजने लगे और साथ ही गूंजने लगा एक मधुर संगीत जो हरदम सरिता के होंठों पर रहता था, ‘क्या करूं हाय… कुछकुछ होता है…’

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वे स्कूलकालेज के दिन… मैं, दीपक भैया और सरिता सब एकसाथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम पड़ोसी थे. दीपक भैया मुझ से 2 साल बड़े थे, लेकिन पता नहीं क्यों मां ने हम दोनों का नामांकन एक ही क्लास में करवाया था. दोनों परिवारों की एकजैसी हैसियत के कारण ही शायद हमारी दोस्ती बहुत निभती थी. सरिता के पिताजी एक दफ्तर में क्लर्क थे और मेरी मां एक स्कूल में अध्यापिका. मैं छोटी थी तभी पापा चल बसे थे. दीपक भैया और सरिता की बचपन की दोस्ती धीरेधीरे प्यार का रूप लेने लगी थी. दोनों के जवां दिलों में प्यार का अंकुर फूटने लगा था. मुझे आज भी याद है, रविवार की वह शाम जब दोनों परिवारों के सभी सदस्य मिल कर ‘कुछकुछ होता है’ फिल्म देखने गए थे. दीपक भैया ने गुजारिश की और मैं ने अपनी सीट उन से बदल ली ताकि वे सरिता की हथेलियों को अपने हाथों में ले कर इस संगीतमय और रोमांटिक वातावरण में अपने प्यार का इजहार कर सकें.

फिल्म खत्म होने के बाद सरिता की आंखों की चमक देख कर ही मैं समझ गई थी कि मेरी प्यारी सखी अब हमेशा के लिए मेरे घर में आने वाली है. पापा की मौत के बाद मैं ने अपने जिस भाई को एक पिता की तरह गंभीरतापूर्वक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देखा था आज उस के मन में अपनी जिंदगी के प्रति उत्साह एवं आत्मविश्वास देख कर मेरा मन सरिता के प्रति अंदर से झुक जाता था. शायद सरिता के निश्छल प्यार की ही ताकत थी कि पहली बार में ही भैया ने एमबीबीएस की परीक्षा पास कर ली. उस दिन सरिता इतनी खुश थी कि उसे अपने फेल होने का भी कोई गम नहीं था.

सबकुछ इतना अच्छा चल रहा था फिर अचानक एक दिन जब हम दोनों भाईबहन मौसी के घर गए हुए थे और 1 हफ्ते बाद लौटे तो पता चला कि सरिता ने दिल्ली के किसी अमीर आदमी से शादी कर ली है. उस के मम्मीपापा ने भी साफसाफ कुछ बताने से इनकार कर दिया.

फिर तो जैसे दीपक भैया के सारे सपने रेत के घरौंदे की तरह सागर में एकसार हो गए. जिन लहरों से कभी उन्होंने बेपनाह मुहब्बत की थी उन्हीं लहरों ने आज उन्हें गम के सागर में डुबो दिया. उस समय कितनी मुश्किल से मैं ने खुद और भैया को संभाला था यह मैं ही जानती हूं.

‘‘सैवन हंड्रेड हुए मैम,’’ रितु की आवाज सुन कर मैं अतीत से वर्तमान में आ गई. 1 घंटे का फेशियल कब पूरा हो गया पता ही नहीं चला. मैं ने पर्स से रुपए निकाल कर उसे दिए और फिर बाहर आ गई. मैं ने देखा कि बगल में ही ऊपर जाने वाली सीढि़यां थीं.

‘तो सरिता यहीं रहती है,’ सोच मेरे कदम स्वत: ही ऊपर की ओर बढ़ने लगे.

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सीढि़यों के खत्म होते ही दाहिनी ओर एक दरवाजा था. मैं ने कौलबैल बजाई. मेरे लिए 1-1 पल असहनीय हो रहा था. मैं अपने सारे सवालों के जवाब जानने के लिए उतावली हो रही थी. 20 वर्ष तो बीत गए, मगर ये

20 सैकंड नहीं कट रहे थे. अब तक मैं 4 बार बैल बजा चुकी थी. पुन: बैल बजाने के लिए हाथ उठाया ही था कि दरवाजा खुल गया. मेरे सामने एक अपाहिज, किंतु शानदार व्यक्तित्व का स्वामी व्हील चेयर पर बैठा था.

उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक साफ झलक रही थी. मुझे देख कर एक क्षण के लिए वह अवाक रह गया. मगर अगले ही पल उस ने मुस्कुराते हुए मुझे अंदर आने को कहा. ऐसा लगा जैसे किसी पुराने मित्र ने मुझे पहचान लिया हो. मगर मेरी आंखें तो कुछ और ही खोज रही थीं.

‘‘सरिता तो अभी घर पर नहीं है. आप रागिनीजी हैं न?’’

अगले भाग में पढ़िए- क्या सचमुच सरिता ने दीपक को धोखा दिया था?

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