माधुरी और संजय दत्त दिखे साथसाथ, क्या ‘खलनायक 2’ की चल रही है तैयारी

हिंदी फिल्मों की खूबसूरत हीरोइन माधुरी दीक्षित का हर कोई दीवाना है. उन के डांस और ऐक्टिंग का जवाब नहीं है, हर कोई उन की अदाओं पर फिदा है.

इन दिनों माधुरी दीक्षित की एक तसवीर खूब वायरल हो रही है, जिस में वे फिल्म हीरो संजय दत्त के साथ नजर आ रही हैं. फैंस इस तसवीर को देख खूब खुश हो रहे हैं और सोशल मीडिया पर पूछ रहे हैं कि कब फिल्म ‘खलनायक 2’ आ रही है.

 

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आप को बता दें कि साल 1993 में आई माधुरी दीक्षित, संजय दत्त, जैकी श्रौफ की फिल्म ‘खलनायक’ आई थी. इस फिल्म को लोगों ने खूब पसंद किया था और साथ ही लोगों ने माधुरी दीक्षित और संजय दत्त की जोड़ी को भी काफी सराहा था. अब एक बार फिर एक फंक्शन के दौरान इन सभी कलाकारों को एकसाथ देखा गया.

दरअसल, फिल्म डायरैक्टर और प्रोड्यूसर सुभाष घई और उन की पत्नी मुक्ता घई ने अपनी शादी की सालगिरह मनाने के लिए मुंबई में एक डिनर पार्टी की आयोजन किया था. इसी फंक्शन में इन सब को साथ देखा गया, जिस की तसवीरें सोशल मीडिया में काफी वायरल हो रही हैं और फैंस इस फोटो को देख ‘खलनायक 2’ की मांग कर रहे हैं.

 

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बता दें कि वायरल तसवीरों में सुभाष घई, माधुरी दीक्षित, संजय दत्त, जैकी श्रौफ और अनुपम खेर एकसाथ नजर आ रहे हैं. अब फैंस फिर से संजय दत्त और माधुरी दीक्षित को साथ में देखने की डिमांड कर रहे हैं. एक यूजर ने कमैंट में लिखा, ‘एक बार फिर वापस आए संजू और माधुरी.’ वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, ‘गंगा, राम और बल्लू एकसाथ.’ कुछ लोगों ने तो फिल्म ‘खलनायक 2’ बनाने की मांग भी की. अब देखते हैं कि लोगों की यह डिमांड पूरी होती है या नहीं.

अनुपम खेर ने ‘द कश्मीर फाइल’ को लेकर किया अजीब पोस्ट, लोगों ने बरसाएं कमेंट

इन दिनों फिल्मफेयर आवार्ड सुर्खियों में है जहां कई फिल्मों को आवार्ड मिले और मिलने थे, लेकिन इसमें से अनुपम खेर की फिल्म द कश्मीर फाइल को बड़ा झटका लगा, पहले 7 फिल्मों में इस फिल्म को नॉमिनेट किया गया लेकिन फिल्म कोई भी आवार्ड पाने में सफल नहीं हो पाई.जिसपर एक्टर अनुपम खेर ने सोशल मीडिया पर अजीब पोस्ट किया जिसे लेकर वह सुर्खियों में बने हुए है.

आपको बता दे, कि 68वें फिल्मफेयर अवार्ड्स का आयोजन 27 अप्रैल की शाम को हुआ था. इसमें आलिया भट्ट और डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगुबाई’ और राजकुमार राव स्टारर फिल्म ‘बधाई दो’ को बड़ी जीत हासिल हुई. इस अवॉर्ड शो में अनुपम खेर की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को 7 कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया था. इसके डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री को बेस्ट डायरेक्टर की कैटेगरी में नॉमिनेशन मिला था. लेकिन ये फिल्म कोई भी अवॉर्ड अपने नाम करने में नाकाम साबित हुई. अब एक्टर अनुपम खेर ने एक अजीब पोस्ट शेयर किया है.

फिल्मफेयर के नॉमिनेशन्स की लिस्ट सामने आने के बाद डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने ऐलान किया था कि वो एक भी अवॉर्ड नहीं लेंगे. उन्हें इस अनैतिक और भ्रष्ट अवॉर्ड से अपना नाता नहीं जोड़ना है. अब जब फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को एक भी अवॉर्ड नहीं मिला तो अनुपम खेर ने बड़ी बात कह दी है उन्होंने ट्विटर पर एक अजीब पोस्ट शेयर किया है. अनुपम ने लिखा, ‘इज्जत एक महंगा तोहफा है. इसकी उम्मीद सस्ते लोगों से ना रखें.’

अनुपम खेर का इशारा फिल्मफेयर अवॉर्ड की तरफ है. उनके ट्वीट पर कई यूजर्स ने अपने रिएक्शन दिए हैं. कई का कहना है कि उनकी बात एकदम सही है. तो बहुत से ऐसे भी हैं, जो उनकी फिल्म को खराब बता रहे हैं. तो बहुत से ऐसे भी हैं, जो उनकी फिल्म को खराब बता रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘आप अवॉर्ड्स से ऊपर हैं. द कश्मीर फाइल्स में आपकी एक्टिंग को ऑस्कर मिलना चाहिए था. फिल्मफेयर ‘जुबां केसरी’ वाले लोगों के लिए है.’ दूसरे ने लिखा, ‘फिल्मफेयर एक कीमती अवॉर्ड है फिल्मफेयर ‘जुबां केसरी’ वाले लोगों के लिए है.’

बता दें, कि फिल्म द कश्मीर फाइल मार्च 2022 में रीलिज हुई थी.इन 250 करोड़ रुपए कलेक्शन किया गया. विवेक ने अपनी इस फिल्म को ऑस्कर 2023 की रेस में भी भेजा था. लेकिन ये नॉमिनेशन पाने में नाकाम रही थी. अनुपम खेर के साथ मिथुन चक्रवर्ती, मृणाल सेन, पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार ने काम किया था.

हौलीवुड स्टार ‘लुसी लियू’ ने किया अनुपम खेर के शो का निर्देशन

अभिनेता अनुपम खेर अपने शो ‘न्यू एम्सटर्डम’ में डा. विजय कपूर का किरदार निभा कर वेस्ट में जाना माना नाम बन चुके है. अक्सर उन्हें हौलीवुड में अपने दोस्तों के साथ समय बिताते हुए देखा जाता है. वे बेहद ही उत्साहित नजर आए जब हाल ही में हौलीवुड स्टार लुसी लियू ने अनुपम खेर के मेडिकल ड्रामा शो के एक एपिसोड का निर्देशन किया.

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‘चार्लीज एंजेल्स’ और ‘किल बिल टू’ जैसी ब्लौकबस्टर फिल्मों में किया है काम…

बता दें की लुसी लियू ने ‘चार्लीज एंजेल्स’ और ‘किल बिल टू’ जैसी ब्लौकबस्टर फिल्में की हैं. इसके बारे में बात करते हुए, दिग्दज अभिनेता अनुपम खेर ने कहा, “जब हम पहली बार मिले तो उन्होंने सबसे पहले ये बात कही कि हमें एक एक्टर के तौर पर काम करना होगा, मैंने कहा किसी न किसी दिन जरूर. उन्होंने मेरा काम देखा है यही अपने आप में एक तारीफ है. इस बात से मैं बहुत खुश हुआ.”

लुसी लियू के बारे में अनुपम खेर ने कहा…

एक एक्टर द्वारा दूसरे एक्टर को डायरेक्ट करने के बारे में बात करते हुए अनुपम खेर कहते हैं, “एक अभिनेता को डायरेक्ट करते हुए देखना बहुत ही दिलचस्प है, खासकर जब वो एक युवा और ऊर्जावान अभिनेता हो. यह सभी के लिए एक सरप्राइज था. साथी एक्टर को डायरेक्ट करते हुए देखना खुशी की बात है. अन्य लोग जिन्होंने निर्देशन किया है, वे निर्देशक हैं, लेकिन एक अभिनेता अपने निर्देशन में निश्चित रूप से कुछ नया एलिमेंट लेकर आता है. मैंने उनके साथ दो दिन का काम किया है. वो माइंड ब्लोइंग हैं. उनका दृष्टिकोण बहुत अलग है. ”

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द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर : अक्षय खन्ना का शानदार अभिनय

रेटिंग : डेढ़ स्टार

हम बार बार इस बात को दोहराते आए हैं कि सरकारें बदलने के साथ ही भारतीय सिनेमा भी बदलता रहता है. (दो दिन पहले की फिल्म ‘उरी : सर्जिकल स्ट्राइक’ की समीक्षा पढ़ लें.) और इन दिनों पूरा बौलीवुड मोदीमय नजर आ रहा है. एक दिन पहले ही एक तस्वीर सामने आयी है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फिल्मकार करण जोहर के पूरे कैंप के साथ बैठे नजर आ रहे हैं. फिल्मकार भी इंसान हैं, मगर उसका दायित्व अपने कर्तव्य का सही ढंग से निर्वाह करना होता है. इस कसौटी पर फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ के निर्देशक विजय रत्नाकर गुटे खरे नहीं उतरते. उन्होंने इस फिल्म को एक बालक की तरह बनाया है. इस फिल्म से उनकी अयोग्यता ही उभरकर आती है. ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ एक घटिया प्रचार फिल्म के अलावा कुछ नहीं है. इस फिल्म के लेखक व निर्देशक अपने कर्तव्य के निर्वाह में पूर्णरूपेण विफल रहे हैं.

2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे डा. मनमोहन सिंह के करीबी व कुछ वर्षों तक उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ‘‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ पर आधारित फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ में भी तमाम कमियां हैं. फिल्म में डा. मनमोहन सिंह का किरदार निभाने वाले अभिनेता अनुपम खेर फिल्म के प्रदर्शन से पहले दावा कर रहे थे कि यह फिल्म पीएमओ के अंदर की कार्यशैली से लोगों को परिचित कराएगी. पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं है. पूरी फिल्म देखकर इस बात का अहसास होता है कि पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह अपने पहले कार्यकाल में संजय बारू और दूसरे कार्यकाल में सोनिया गांधी के के हाथ की कठपुतली बने हुए थे. पूरी फिल्म में उन्हे बिना रीढ़ की हड्डी वाला इंसान ही चित्रित किया गया है.

‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को शुरुआत में ‘सिंह इज किंग’ कहा गया. पर धीरे धीरे उन्हे अति कमजोर, बिना रीढ़ की हड्डी वाला इंसान, एक परिवार को बचाने में जुटे महाभारत के भीष्म पितामह तक बना दिया गया, जिसने गांधी परिवार की भलाई के लिए देश के सवालों के जवाब देने की बजाय चुप्पी साधे रखी. फिल्म में डा. मनमोहन सिंह की इमेज को धूमिल करने वाली बातें ही ज्यादा हैं.

फिल्म की कहानी पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार व करीबी रहे संजय बारू (अक्षय खन्ना) के नजरिए से है. कहानी 2004 के लोकसभा चुनावों में यूपीए की जीत के साथ शुरू होती है. कुछ दलों द्वारा उनके इटली की होने का मुद्दा उठाए जाने के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (सुजेन बर्नेट) स्वयं प्रधानमंत्री/पीएम बनने का लोभ त्यागकर डा. मनमोहन सिंह (अनुपम खेर) को पीएम पद के लिए चुनती हैं. उसके बाद कहानी में प्रियंका गांधी (अहाना कुमार), राहुल गांधी (अर्जुन माथुर), अजय सिंह (अब्दुल कादिर अमीन), अहमद पटेल (विपिन शर्मा), लालू प्रसाद यादव (विमल वर्मा), लाल कृष्ण अडवाणी (अवतार सैनी), शिवराज पाटिल (अनिल रस्तोगी), पी वी नरसिम्हा राव (अजित सतभाई), पी वी नरसिम्हा राव के बड़े बेटे पी वी रंगा राव (चित्रगुप्त सिन्हा), नटवर सिंह सहित कई किरदार आते हैं.

संजय बारू, जो पीएम के मीडिया सलाहकार हैं, लगातार पीएम की इमेज को मजबूत बनाते जाते हैं. वैसे भी संजय बारू ने मीडिया सलाहकार का पद स्वीकार करते समय ही शर्त रख दी थी कि वह हाई कमान सोनिया गांधी को नहीं, बल्कि सिर्फ पीएम को ही रिपोर्ट करेंगें. इसी के चलते पीएमओ में संजय बारू की ही चलती है, इससे अहमद पटेल सहित कुछ लोग उनके खिलाफ हैं. यानी कि उनके विरोधियों की कमी नहीं है. पर संजय बारू पीएम में काफी बदलाव लाते हैं. वह उनके भाषण लिखते हैं.

उसके बाद पीएम का मीडिया के सामने आत्म विश्वास से लबरेज होकर आना, अमेरिकी राष्ट्रति बुश के साथ न्यूक्लियर डील पर बातचीत, इस सौदे पर लेफ्ट का सरकार से अलग होना, समाजवादी पार्टी का समर्थन देना, पीएम को कटघरे में खड़े किए जाना, पीएम के फैसलों पर हाई कमान का लगातार प्रभाव, पीएम और हाई कमान का टकराव, विरोधियों का सामना जैसे कई दृश्यों के बाद कहानी उस मोड़ तक पहुंचती है, जहां न्यूक्लियर मुद्दे पर पीएम डा. मनमोहन सिंह स्वयं इस्तीफा देने पर आमादा हो जाते हैं. पर राजनीतिक परिस्थितियों के चलते सोनिया उनको इस्तीफा देने से रोक लेती हैं. उसके बाद हालात ऐसे बदलते हैं कि संजय बारू अपना त्यागपत्र देकर सिंगापुर चले जाते हैं, मगर डा. मनमोहन सिंह से उनके संपर्क में बने रहते हैं.

उसके बाद की कहानी बड़ी तेजी से घटित होती है, जिसमें डा. मन मोहन सिंह पूरी तरह से हाई कमान सोनिया व गांधी परिवार के सामने समर्पण भाव में ही नजर आते हैं. अहमद पटेल भी उन पर हावी रहते हैं. फिर आगे की कहानी में उनकी जीत के अन्य पांच साल दिखाए गए हैं, जो एक तरह से यूपीए सरकार के पतन की कहानी के साथ कोयला, 2 जी जैसे घोटाले दिखाए गए हैं. फिल्म में इस बात का चित्रण है कि प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह स्वयं इमानदार रहे, मगर उन्होंने हर तरह के घोटालों को परिवार विशेष के लिए अनदेखा किया. फिल्म उन्हे परिवार को बचाने वाले भीष्म की संज्ञा देती है. पर फिल्म की समाप्ति में 2014 के चुनाव के वक्त की राहुल गांधी व वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाएं दिखायी गयी हैं.

फिल्म के लेखक व निर्देशक दोनों ने बहुत घटिया काम किया है. फिल्म सिनेमाई कला व शिल्प का घोर अभाव है. पटकथा अति कमजोर है. इसे फीचर फिल्म की बजाय ‘डाक्यू ड्रामा’ कहा जाना चाहिए. क्योंकि फिल्म में बीच बीच में कई दृश्य टीवी चैनलों के फुटेज हैं. एडीटिंग के स्तर भी तमाम कमियां है. फिल्म में पूरा जोर गांधी परिवार की सत्ता की लालसा, सोनिया गांधी की अपने बेटे राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की बेसब्री, डा मनमोहन सिंह के कमजोर व्यक्तित्व व संजय बारू के ही इर्द गिर्द है.

डा. मनमोहन सिंह को लेकर अब तक मीडिया में जिस तरह की खबरें आती रही हैं, वही सब कुछ फिल्म का हिस्सा है, जबकि संजय बारू उनके करीबी रहे हैं, तो उम्मीद थी कि डा मनमोहन सिंह की जिंदगी के बारे में कुछ रोचक बातें सामने आएंगी, पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं है. फिल्म में इस बात को भी ठीक से नहीं चित्रित किया गया कि अहमद पटेल किस तरह से खुरपैच किया करते थे. कोयला घोटाला, 2 जी घोटाला आदि को बहुत सतही स्तर पर ही उठाया गया है. फिल्म में सभी घोटालों पर कपिल सिब्बल की सफाई देने वाली प्रेस कांफ्रेंस भी मजाक के अलावा कुछ नजर नहीं आती.

कमजोर पटकथा व कमजोर चरित्र चित्रण के चलते एक भी चरित्र उभर नहीं पाया. कई चरित्र तो महज कैरीकेचर बनकर रह गए हैं. फिल्म के अंत में बेवजह ठूंसे गए राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी की चुनाव प्रचार की सभाओं के टीवी फुटेज की मौजूदगी लेखकों, निर्देशक व फिल्म निर्माताओं की नीयत पर सवाल उठाते हैं. पूरी फिल्म एक ही कमरे में फिल्मायी गयी नजर आती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो संजय बारू के किरदार में अक्षय खन्ना ने काफी शानदार अभिनय किया है. मगर पटकथा व चरित्र चित्रण की कमजोरी के चलते अनुपम खेर अपने अभिनय में खरे नहीं उतरते, बल्कि कई जगह उनका डा. मनमोहन सिंह का किरदार महज कैरीकेचर बनकर रह गया है. किसी भी किरदार में कोई भी कलाकार खरा नहीं उतरता. फिल्म का पार्श्वसंगीत भी सही नहीं है.

एक घंटे 50 मिनट की अवधि की फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ का निर्माण सुनील बोहरा व धवल गाड़ा ने किया है. संजय बारू के उपन्यास पर आधारित फिल्म के निर्देशक विजय रत्नाकर गुटे, लेखक विजय रत्नाकर गुटे, मयंक तिवारी, कर्ल दुने व आदित्य सिन्हा, संगीतकार सुदीप रौय व साधु तिवारी, कैमरामैन सचिन कृष्णन तथा कलाकार हैं – अनुपम खेर, अक्षय खन्ना, सुजेन बर्नेट, अहाना कुमार, अर्जुन माथुर, अब्दुल कादिर अमीन, अवतार सैनी, विमल वर्मा, अनिल रस्तोगी, दिव्या सेठ, विपिन शर्मा, अजीत सतभाई, चित्रगुप्त सिन्हा व अन्य.

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