सुनील शर्मा
किसी भी जगह पर भगदड़ मचने की सब से बड़ी वजह तो बेकाबू भीड़ ही मानी जाती है, पर अगर गौर से देखा जाए तो ज्यादातर जगहों पर भीड़ पर काबू पाने का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं होता है.
अगर धार्मिक जगहों की बात करें, तो वहां कुछ खास दिनों और मौकों पर जरूरत से ज्यादा लोग जमा हो कर खुद को ही परेशानी में डाल देते हैं. कोई बड़ा हादसा न भी हो, पर छोटीछोटी मुसीबतें सब को परेशान जरूर कर देती हैं. ऊपर से वहां आपदा प्रबंधन प्राधिकरण या पुलिस प्रशासन के बताए गए नियमों का पालन भी नहीं किया जाता है.
आमतौर पर भगदड़ मचने की 4 वजहें खास होती हैं, जैसे भीड़ की प्रतिबंधित इलाके में घुसने की कोशिश, दम घुटना या फिर धक्कामुक्की, किसी आपदा के चलते डर के हालात बन जाना और अफवाह की वजह से लोगों का डर के मारे भागना.
साल 2022 की शुरुआत कुछ लोगों का अंत साबित हुई. जम्मू के वैष्णो देवी मंदिर में नए साल के जश्न में शामिल लोगों की भारी भीड़ उन्हीं में से 12 लोगों के लिए जानलेवा बन गई.
इस हादसे के चश्मदीदों का कहना है कि नए साल के मौके पर वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए बड़ी तादाद में लोग पहुंचे थे. भवन के पास लोगों का इतना ज्यादा जमावड़ा था कि किसी तरह की अनहोनी पर वहां से निकलने तक का कोई रास्ता नहीं था. अचानक किसी तरह की हड़बड़ी में लोग इधरउधर भागने लगे, जिस की वजह से भगदड़ मच गई और यह कांड हो गया.
इस अफरातफरी से 12 लोगों की जान चली गई और कई घायल भी हुए. इस कांड में सब से ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि मरने वालों में ज्यादातर की उम्र 21 से 38 साल के बीच थी. मतलब वे सब नौजवान थे. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी कहा था कि पहले लोग त्योहारों के दौरान मंदिर जाते थे, पर आजकल युवा न्यू ईयर के दिन मंदिर जाना चाहते हैं.
वैष्णो देवी मंदिर पर उमड़ी भीड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां लोग नए साल पर माता के दर्शन करने के लिए एक दिन पहले ही जा पहुंचे थे.
चश्मदीदों की मानें, तो गर्भगृह के बाहर गेट नंबर 3 पर नौजवानों के 2 गुटों में आपसी कहासुनी के बाद झगड़ा हुआ और फिर झगड़े के बाद लोगों में भगदड़ मच गई. नतीजतन, जो लोग थक कर वहीं जमीन पर सोए हुए थे, उन्हें भीड़ ने कुचल दिया.
अब यह हादसा हो चुका है. मृतकों और घायलों को मुआवजा देने का ऐलान भी कर दिया गया है. बड़े लोगों ने पीडि़त परिवारों के लिए हमदर्दी जता दी है, वैष्णो देवी की यात्रा दोबारा शुरू हो चुकी है, पर लाख टके का सवाल यह कि वैष्णो देवी मंदिर में किस ने लोगों की जान ली?
इस सवाल का एक ही जवाब है कि लोग यह मान लेते हैं कि जो भी दुनिया में हो रहा है, वह उन के पसंदीदा देवीदेवता की मरजी से हो रहा है. जब किसी का सोचा हुआ पूरा हो जाता है, तो वह यह मान लेता है कि ईश्वर ने उस की सुन ली है. लिहाजा, अब ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करना तो बनता है.
इस बात को हम इस हादसे में मारे गए 24 साल के सोनू पांडे के पिता के कथन से समझ सकते हैं. उन्होंने बताया कि 2 महीने पहले सोनू की उंगली में चोट लग गई थी. तब उस ने मन्नत मांगी थी कि उंगली ठीक होने पर वह माता वैष्णो देवी के दर्शन करने जाएगा.
यहां सवाल यह उठता है कि क्या सोनू पांडे की उंगली अपनेआप किसी चमत्कार से ठीक हो गई थी? चूंकि उंगली में ज्यादा ही चोट लगी होगी, तभी तो सोनू ने ऐसी मन्नत मांगी थी. पर वह चोट किसी डाक्टर के इलाज से सही हुई होगी, क्या सोनू के मन में कभी यह खयाल आया कि डाक्टर को जा कर उस का शुक्रिया अदा कर देना चाहिए?
दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो पड़ोस में रहने वाले डाक्टर को ठीक होने पर उस का क्रेडिट देने जाते हैं, जबकि इस में उन का कुछ भी खर्च नहीं होता है. पर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करने के लिए वे ही लोग अपना समय और अपना पैसा खर्च कर के हजारों किलोमीटर दूर जाने में कतई नहीं हिचकिचाते हैं.
सब से ज्यादा दुख की बात तो यह है कि यह जो ‘मन्नत’ शब्द है, बड़ा ही खौफनाक होता है. समाज ऐसी मन्नतों पर बड़ी टेढ़ी नजर रखता है. मान लो, अगर सोनू पांडे अपनी मन्नत पर ध्यान नहीं देता और उंगली ठीक होने के बाद वैष्णो देवी मंदिर नहीं जाता तो उस के आसपास के लोग ही उसे जीने नहीं देते और ईश्वर के प्रकोप का डर उस के मन में बिठा देते कि तू ने अपनी कही बात पूरी नहीं की, इसलिए माता रानी तुझ पर कोई विपदा ले आएंगी.
सोनू ही क्या भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो एक मन्नत की खातिर सालोंसाल खास दिन पर धार्मिक जगहों पर जाते ही रहते हैं, फिर चाहे दुनिया इधर की उधर ही क्यों न हो जाए. उन के मन में यह डर बैठ चुका होता है कि अगर यह चेन टूट गई तो 7 अरब की इस दुनिया की सारी मुसीबतें उसी पर कहर बन कर टूट जाएंगी. यही चेन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती रहती है.
पिछले 7-8 साल में भारत में धर्म के उन्माद का जिस तरह से प्रचारप्रसार हुआ है, उस की गिरफ्त में नौजवान पीढ़ी ही सब से ज्यादा आई है. सब के दिमाग में यह बात घुसा दी गई है कि सनातन धर्म ही तरक्की का एकमात्र रास्ता है. धार्मिक जगहों को सरकारी खर्च पर पर्यटन स्थलों में बदला जा रहा है. संसद हो या सड़क, हर जगह धार्मिक नारों का चलन बढ़ गया है. सत्ता पक्ष ही क्या विपक्ष भी खुद को धर्म का असली ठेकेदार बनाने और कहलाने पर तुला है.
जब ऐसी धार्मिक चाल में नौजवान पीढ़ी फंसती है, तो देश का भविष्य ही अंधकार की तरफ जाता दिखता है. इसी नौजवान पीढ़ी से एक और सवाल है कि वह किसी धार्मिक जगह पर जा कर आपा ही क्यों खोती है? वैष्णो देवी मंदिर में माता के दर्शन करने से कुछ देर पहले ही 2 गुटों में लड़ाई ही क्यों हुई? क्या माता ने उन्हें इतनी भी सहनशक्ति नहीं दी कि सब्र करो, सब का नंबर बारीबारी से आ जाएगा?
अगर उन 2 गुटों में कहासुनी नहीं होती, तो यह कांड ही नहीं होता. पर हमारे यहां तो हर जगह शौर्टकट मारने का मानो चलन सा बन गया है. मंदिर में भी बैकडोर ऐंट्री मिल जाए, तो क्या हर्ज है. यही वजह है कि देश के हर बड़े मंदिर में परची कटा कर या किसी दूसरे जुगाड़ से जल्दी दर्शन करने की सहूलियत दी गई है.
जनता की इस तरह की चालबाजियों से धर्म के ठेकेदारों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, बल्कि उन्हें तो मंदिर में आई भीड़ से मतलब होता है, तभी तो इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी वैष्णो देवी मंदिर पर लोगों के हुजूम का आना जारी रहा और आगे भी जारी रहेगा.
धार्मिक जगहों पर मची भगदड़ का इतिहास : चंद उदाहरण
14 जुलाई, 2015 को आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर मची भगदड़ में कम से कम 29 लोगों की मौत हो गई थी. वे लोग वहां पवित्र स्नान करने गए थे.
* 25 अगस्त, 2014 को मध्य प्रदेश के सतना जिले में चित्रकूट के कामतनाथ मंदिर में भगदड़ मच गई थी. इस में 11 लोगों की मौत हो गई थी और तकरीबन 60 लोग घायल हुए थे. वहां किसी ने करंट फैलने की अफवाह उड़ा दी थी.
* 25 सितंबर, 2012 को झारखंड के देवघर में ठाकुर अनुकूल चंद की 125वीं जयंती पर एक आश्रम में हजारों की भीड़ जमा हो जाने और सभागार में भारी भीड़ के चलते दम घुटने से 12 लोगों की मौत हो गई थी.
* 8 नवंबर, 2011 को उत्तर प्रदेश के हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हजारों लोगों के जमा हो जाने के दौरान मची भगदड़ में 16 लोगों की जान चली गई थी.
* 14 जनवरी, 2011 को केरल के इदुक्की में शबरीमाला के नजदीक पुलमेदु में मची भगदड़ में 102 लोग मारे गए थे.
* 4 मार्च, 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालुजी महाराज आश्रम में प्रसाद बांटने के दौरान मची भगदड़ में 63 लोग मारे गए थे.
* 30 सितंबर, 2008 को राजस्थान के जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में बम धमाके की अफवाह से मची भगदड़ में 250 लोगों की मौत हो गई थी.
* 3 अगस्त, 2008 को हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के चलते नैना देवी मंदिर की एक दीवार ढह गई थी. इस हादसे में 160 लोगों की मौत हो गई थी.
* 26 जून, 2005 को महाराष्ट्र के मंधार देवी मंदिर में मची भगदड़ में 350 लोगों की मौत हो गई थी.