प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के व्यक्तित्व को करीब से जानने समझने वाले यह जानते हैं कि वह एक ऐसे राजनेता हैं जो पीछे मुड़कर नहीं देखते. या फिर यह कहें की आप यह भ्रम पैदा करते हैं की उन्होंने जो कदम उठाए हैं वह अंतिम सत्य हैं. और अगर कोई आलोचना करता है या उसमें मीन मेख निकालता है तो वह स्वयं गलत है. और फिर आगे चलकर के उनके समर्थक विरोध करने वालों पर ऐसे ऐसे आरोप लगाते हैं कि मानो नरेंद्र दामोदरदास मोदी का विरोध देश का विरोध है.

यही सब कुछ बहुत ही शिद्दत के साथ 1 साल तक तीन कृषि कानून के संदर्भ में यह प्रहसन भी देश और दुनिया ने देखा है.

पहले पहल तो इन तीन कृषि कानूनों को आनन-फानन में संसद में पास करवा दिया गया. और जब इसका विरोध हुआ तो कहा गया कि नहीं जो भी हुआ है वह सब तो कानून सम्मत है. क्योंकि नरेंद्र दामोदरदास मोदी तो देश के संविधान और कानून से हटकर के कुछ करते ही नहीं है. और फिर जब इन तीन कानूनों का विरोध होने लगा तो यह कहा गया कि जो लोग जो कानून को अपने हाथ में ले  रहे हैं वह लोग तो भोले भाले हैं और विपक्ष के नेताओं का मोहरा बने हुए हैं.

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एक साल के इस लंबे विरोध और रस्साकशी के दृश्य ब दृश्य यह कहा जा सकता है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने प्रधानमंत्री की हैसियत से अपने संपूर्ण कबीना और उनकी भारतीय जनता पार्टी ने हर कदम कदम पर यह सिद्ध करने की कोशिश की कि किसानों के लिए लाया गया यह कानून हर दृष्टि से किसानों के हित में है. क्योंकि यह सरकार किसानों के हित के अलावा कुछ देख ही नहीं रही है. और जो कुछ चुनिंदा लोग विरोध कर रहे हैं वह तो आतंकवादी हैं! वह तो भटके हुए लोग हैं !! बहुसंख्यक किसान तो उनके  साथ हैं ही नहीं. क्योंकि यह कुछ चुनिंदा लोग ही आंदोलन कर रहे हैं इस तरह की भ्रामक बातें हैं. शायद देश के राजनीतिक परिदृश्य में किसानों के संदर्भ में पहली बार सभी ने देखा और नरेंद्र मोदी और भाजपा के कट्टर समर्थक रात दिन यही गीत गाते रहेगी जो लोग सिंघु बॉर्डर पर और अन्य जगहों पर मोर्चा संभाले हुए हैं वे लोग तो देशद्रोही हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की यही गलती बहुत बड़ी गलतियां बन गई है. अब उन्हें न तो खाते बन रहा है ना निगलते. उन्होंने जिस तरीके से आनन-फानन में कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की है वह भी उनके गले की फांस बन चुकी है. और अब आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठेगा यह भारत की जनता तय करने वाली है.

गलती दर गलती

3 कृषि कानूनों के संदर्भ में अगर हम विवेचना करें तो देखते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने  ऐतिहासिक गलतियां ही गलतियां की हैं. पहली गलती तो किसानों को विश्वास में लिए बगैर कानून बना देना है.

दूसरी गलती विपक्ष को अपने विश्वास में लिए बगैर तीन कृषि कानूनों को संसद में पास करवाना उनका एक ऐसा कारनामा है जो एक बहुत बड़ी गलती है.

और तीसरा- जिस तरीके से उन्होंने अचानक कृषि कानूनों को वापस ले लिया है यह भी एक बहुत बड़ी गलती है. राजनीतिक और सामाजिक प्रेक्षकों का कहना है कि 19 नवंबर गुरु नानक जयंती के पावन अवसर पर जिस तरीके से अचानक सुबह-सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र  दामोदरदास मोदी ने कृषि कानूनों को टीवी पर आ कर के वापस लेने की घोषणा की. उससे अच्छा यह होता कि वह अचानक किसानों के बीच चले जाते और उनसे संवाद करते हुए सौहार्दपूर्ण माहौल में इन कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर देते.

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अथवा दूसरा पक्ष यह हो सकता था कि किसान नेताओं की एक बैठक आयोजित की जाती और उसमें प्रधानमंत्री जी उन सब की बात को सुनते हुए इन कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर सकते थे. तीसरा देश की विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ बैठक करके भी वे अपनी बात को देश की जनता के सामने रख सकते थे. जिसका निसंदेह सकारात्मक प्रभाव जाता. मगर जिस तरीके से उन्होंने अचानक टीवी पर अवतरण लेकर  घोषणा की है उससे फजीहत ही हो रही है . लोगों को मौका मिल गया है उन्हें चारों तरफ से घेर कर के मानो अभिमन्यु बना चुके हैं. अब देखना यह है कि आज के भारत के महाभारत में आधुनिक अभिमन्यु का  क्या हश्र होने वाला है. नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी गलती यह है कि वह सबको साथ लेकर के चलने में बहुत पीछे रह जाते हैं परिणाम स्वरूप उन्हें जिस तरीके से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है वह उनकी छवि, उनके कार्यकाल और भारत की जनता के लिए भी दुर्भाग्य जनक है.

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