अजीत छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, मुंबई से कोलकाता मेल ट्रेन से पत्नी के साथ धनबाद जा रहा था. अभी 2 साल पहले ही उन की शादी हुई थी. अजीत बर्थ के नीचे सूटकेस रख कर उन्हें चेन से बांध रहा था.

अंतरा बोली, ‘‘मैं ऊपर सो जाती  हूं. तुम तो सुबह 5 बजतेबजते उठ जाते हो. मैं आराम से सोऊंगी 7-8 बजे तक.’’

थोड़ी देर में वह कौफी ले कर आया. कौफी पीतेपीते ट्रेन भी खुल चुकी थी. कौफी पी कर अंतरा ऊपर की बर्थ पर सोने चली गई. अजीत बैडलाइट औन कर फिर मैगजीन पढ़ने लगा और इसी बीच उस को नींद  भी आ गई थी. जब उस की नींद  खुली, सवेरा हो चुका था. ट्रेन मुगलसराय प्लेटफौर्म पर खड़ी थी. बाहर चाय, समोसे, पूरी, अंडे व फल वाले वैंडर्स का शोर था. सामने वाली बर्थ के सज्जन उतर गए थे. वह बर्थ खाली थी.

अजीत ने घड़ी में समय देखा, 6 बज रहे थे. उस ने अंदाजा लगाया कि ट्रेन लगभग 4 घंटे लेट चल रही थी. उस ने कंडक्टर से पूछा तो वह बोला, ‘‘उत्तर प्रदेश में आतेजाते ट्रेन लेट हो चली है क्योंकि दिसंबर में कोहरे के चलते दिल्ली से आने वाली सभी ट्रेनें लेट चल रही हैं.’’

तभी उस ने देखा कि एक लड़की दौड़ीदौड़ी आई और उसी कोच में घुसी. ठंड के चलते उस ने शौल से बदन और चेहरा ढक रखा था. सिर्फ आंखें भर खुली थीं. वह लड़की सामने वाली बर्थ पर जा बैठी. तब तक पैंट्री वाला कोच में चाय ले कर आया. अजीत ने उस से एक कप चाय मांगी और सामने वाली लड़की से भी पूछा, ‘‘मैडम, चाय लेंगी?’’

उस लड़की ने अजीत की ओर बहुत गौर से देखा और चाय वाले से कहा, ‘‘हां, एक कप चाय मु झे भी देना.’’

चाय पीने के लिए उस ने अपने चेहरे से शौल हटाई, तो अजीत उसे देर तक देखता रह गया. वह लड़की भी अजीत को देखे जा रही थी. फिर सहमती हुए बोली, ‘‘आप, अजीत सर हैं न. वाय थान, खा (हैलो सर).?’’

‘‘और तुम बुनसृ? वाय खाप (हैलो)’’

उसे अपनी थाईलैंड यात्रा की यादें तसवीर के रूप में आंखों के सामने दिखने लगीं. वह लगभग 5 साल पहले अपने एक दोस्त के साथ थाईलैंड घूमने गया था.

अजीत का थाईलैंड में एक सप्ताह का प्रोग्राम था. 4 दिनों तक दोनों दोस्त बैंकौक और पटाया में साथसाथ घूमे. दोनों ने खूब मौजमस्ती की थी. इस के बाद उस के दोस्त को कोई लड़की मिल गई और वह उस के साथ हो लिया. उस ने अजीत से कहा, ‘हम लोग इंडिया लौटने वाले दिन उसी होटल में मिलते हैं जहां पहले रुके थे.’

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थाईलैंड में प्रौस्टिट्यूशन अवैध तो है पर प्रौस्टिट्यूट वहां खुलेआम उपलब्ध हैं. वहां की अर्थव्यवस्था में टूरिज्म का खासा योगदान है. यहां तक कि लड़कियों की फोटो, जिन में अकसर लड़कियां टौपलैस होती हैं, स्क्रीन पर देख कर मनपसंद लड़की चुनी जा सकती है. इसी के चलते अनौपचारिक रूप से वहां यह धंधा फलफूल रहा है.

अजीत के पीछे भी एक लड़की पड़ गई थी. उस ने अजीत से कहा, ‘वाय खा, थान (हाय सर, नमस्कार).’ फिर इंग्लिश में कहा, ‘आप को थाईलैंड की खूबसूरत रातों की सैर कराऊंगी मैं. ज्यादा पैसे नहीं लूंगी, आप को जो ठीक लगे, दे देना.’

‘नहीं, मु झे कुछ नहीं चाहिए तुम से.’

‘सर, बहुत जरूरत है पैसों की. वरना आप से इतना रिक्वैस्ट न करती.’

अजीत ने इस बार एक नजर उसे ऊपर से नीचे तक देखा. लड़की वाकई बहुत खूबसूरत थी. औसतन थाई लड़कियों से लंबी, चेहरा भी थाई लड़की जैसा नहीं लग रहा था. कुछ अमेरिकी या पश्चिमी देश की लड़की जैसी लग रही थी. अजीत को वह लड़की भा गई बल्कि उस पर दया

आ गई. उस ने पूछा, ‘तुम्हारा क्या  नाम है?’

‘मेरा नाम बुनसृ है सर. वैसे, नाम में क्या रखा है?’

‘बुनसृ का अर्थ इंग्लिश में क्या हुआ?’

‘ब्यूटीफुल,’ उस ने कुछ शरमा कर, कुछ मुसकरा कर कहा.

‘देखा नाम में क्या रखा है. जितनी सुंदर हो वैसा ही सुंदर नाम है. अच्छा, तुम क्या दिखाओगी मु झे? यहां तो लड़कियों की लाइन लगी है.’

‘आप जैसा चाहें, रात साथ गुजारना या सैरसपाटा या फिर फुल मसाज.’

‘मु झे यहां के कैसीनो ले चलोगी?’

‘यहां जुआ गैरकानूनी है पर चोरीछिपे सब चलता है. चलिए, मैं आप को ले चलती हूं.’

अजीत बुनसृ के साथ कैसीनो गया. इत्तफाक से वह जीतने लगा और बुनसृ उसे और खेलने को कहती रही. उस ने करीब 10 हजार भाट जीते. रात के 2 बज चुके थे. वह बोला, ‘बहुत हुआ, अब चलें?’

‘हां, अब बाकी रात भी आप की सेवा में हाजिर हूं. कहां चलें, होटल?’

‘हां होटल जाऊंगा पर सिर्फ मैं. तुम अपने पैसे ले कर जा सकती हो,’ और अजीत ने उसे 200 भाट देते हुए पूछा, ‘इतना ठीक है न?’

बुनसृ ने हां बोल कर फोन पर किसी से बात की, फिर कहा, ‘आधे घंटे में मेरा आदमी आ जाएगा, तब तक आप के साथ रहूंगी.’

‘वह आदमी कौन था, तुम्हारा दलाल?’

‘छी, सर, प्लीज. ऐसा न कहें. वह मेरा हसबैंड है. मु झे शाम को छोड़ जाता है और जब फोन करती हूं, आ कर ले जाता है. हम यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव में रहते हैं. मेरे पति को बिजनैस में बहुत घाटा हुआ था. उस का एक पैर भी खराब है. मेरी मां भी बीमार रहती है. हमारे चावल के खेत हैं पर सिर्फ उस से गुजारा नहीं हो पाता है. मजबूरी में उन लोगों की मरजी से यह सब करती हूं.’

थोड़ी देर में बुनसृ का आदमी आ गया. उस ने बुनसृ से कुछ कहा और बुनसृ ने अजीत से कहा, ‘आप का शुक्रिया अदा कर रहा है. बोलता है, इतनी जल्दी छुट्टी दे दिया सर ने.’ चलतेचलते बुनसृ ने कहा, ‘आज आप का लकी डे था. कल कहें तो आप की सेवा में आ जाऊं. कुछ और आजमा सकते हैं टोटे में.’

‘वह क्या है?’

‘हौर्स रेस में बैटिंग.’

‘ओके, आ जाना, देखें तुम्हारा साथ कितना लकी होता है.’’

दूसरे दिन बुनसृ अजीत को रेस कोर्स ले गई. जिस घोड़े पर अजीत ने बाजी लगाई वह जीत गया. उसे जैकपौट मिला था. उसे 8 हजार भाट मिले.

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बुनसृ बोली, ‘यू आर वैरी लकी सर.’

‘पता नहीं मेरा समय अच्छा था या तुम्हारे साथ का असर है यह.’

‘अब कहां चलें, सर?’

‘मेरे होटल चलोगी?’

‘मेरा तो काम ही है यह.’

‘नहीं, थोड़ी देर साथ बैठेंगे. डिनर के बाद तुम जा सकती हो.’

‘क्यों सर, मैं अच्छी नहीं लगी  आप को, कल भी आप ने यों ही जाने दिया था?’

‘अरे नहीं, तुम तो बहुत अच्छी हो. अच्छा बताओ, तुम थाई से ज्यादा अमेरिकी क्यों लगती हो?’

‘यह भी एक कहानी है. विएतनाम वार के समय 1975 तक अमेरिकी फौजें यहां थीं. हमारी जैसी मजबूर औरतों को पैसा कमाने के लिए उन फौजियों का मन बहलाना पड़ता था. उस के बाद भी हर साल यहां खोरात एयरबेस पर अमेरिकी, थाई, सिंगापुर और जापान से आए मैरीन का सा झा अभ्यास होता है. उस में भी थाई औरतें कुछ कमा ही लेती हैं. मेरी मां भी उन में से एक रही होगी. उस का जीवन भी गरीबी में बीता है. इसीलिए देखने में मैं आम थाई लड़कियों से अलग हूं,’ बुनसृ बेबाक बोली.

रास्ते में लौटते समय अजीत ने बुनसृ के लिए कुछ अच्छे ड्रैस खरीद कर उसे गिफ्ट किए. फिर वे होटल पहुंचे.

कुछ देर दोनों ऐसे ही बातें करते रहे थे. फिर अजीत ने डिनर रूम में ही लाने का और्डर दिया. इसी बीच उस के दोस्त का फोन आया. उस ने बताया कि देररात वह आ रहा है.

‘अब तुम जाने के लिए फ्री हो,’ डिनर के बाद अजीत ने बुनसृ से कहा.

‘सच, इतनी जल्दी तो कोई ग्राहक मु झे छुट्टी नहीं देता है.’

‘पिछले 2 दिनों से मैं तुम्हारे साथ हूं. कभी मैं ने ग्राहक जैसा बरताव किया है?’

‘सौरी, सर.’

‘अच्छा, आज निसंकोच बोलो, तुम्हें कितने पैसे दूं.’

‘आप जो चाहें दे दें, मु झे सहर्ष स्वीकार होगा. वैसे, मेरा हक तो कुछ भी नहीं बनता है.’

अजीत ने बुनसृ को पूरे 18,000 भाट दिए. बुनसृ आश्चर्य से उसे देखे जा रही थी.

‘ऐसे क्या देखे जा रही हो. ये पैसे मैं इंडिया से नहीं लाया हूं. ये तुम ने मु झे जितवाए हैं. इन्हें तुम ही रख लो. ना मत कहना वरना मैं नाराज हो जाऊंगा.’

बुनसृ अचानक अजीत से लिपट पड़ी और रोने लगी. अजीत ने उसे अलग कर कहा, ‘रोना बंद करो. यहां से हंसते हुए जाओ. और हो सके तो यह पेशा छोड़ देना.’

‘सर, आप ने मु झे फर्श से अर्श पर बिठा दिया है. इन पैसों से अपना बिजनैस  शुरू करूंगी.’

अगले दिन एयरपोर्ट पर बुनसृ अपने पति के साथ अजीत को विदा करने आई थी. उस समय दोनों में से किसी ने एकदूसरे का फोन नंबर लेने की जरूरत न महसूस की होगी शायद.

आज कई सालों बाद वह दिखी तो भी भारत में.

चाय टेबल पर रख वह उठ खड़ी हुई और अजीत से लिपट पड़ी थी. कोच में हलचल और अपने पास की आहट सुन कर ऊपर की बर्थ पर अजीत की पत्नी अंतरा की नींद खुल गई थी. दोनों को आलिंगनबद्ध देख कर वह आश्चर्यचकित थी. अंतरा भी नीचे उतर आई. बुनसृ ने अपने को अलग किया. अजीत ने परिचय कराया, ‘‘यह मेरी पत्नी अंतरा है.’’

फिर अंतरा से बोला, ‘‘यह वही थाई लड़की है. मैं ने तुम से कहा था न कि इस के साथ जितने पैसे मैं ने जुए में जीते थे, सब इसी को दे दिए थे.’’

‘‘वाय, स्वासदी का हम्म (हैलो, गुड मौर्निंग मैडम),’’ बुनसृ ने अंतरा  को कहा.

बुनसृ ने पैंट्रीबौय से अंतरा को भी चाय देने को कहा. फिर काफी देर तक तीनों में बातें होती रहीं. अजीत ने बुनसृ से पूछा, ‘‘यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘मैं पहले बैंकौक से सीधे वाराणसी आई. सारनाथ गई. अब मु झे बोधगया जाना है. मेरे जीवन की यह बड़ी इच्छा थी, आज साकार होने जा रही है.’’

‘‘और तुम्हारा पति क्यों नहीं आया?’’

‘‘आप के चलते,’’ और वह हंस पड़ी थी.

अजीत और अंतरा दोनों चकित हो उसे देखने लगे थे.

‘‘हां सर, आप से मिलने के बाद मेरे समय ने गजब का पलटा खाया है. आप के पैसों से हम ने छोटा सा टूरिस्ट सेवा केंद्र खोला था. उस समय बस एक पुरानी कार थी हमारे पास. अब बढ़तेबढ़ते आधा दर्जन कारें हैं हमारे पास. टूरिस्ट सीजन में मैं औरों से भी रैंट पर कार ले लेती हूं. हम दोनों एकसाथ थाईलैंड से बाहर नहीं निकलते हैं ताकि हमारे ग्राहकों को परेशानी न हो. सर, आप के स्नेह से हमारे दिन बदल गए. हम लोगों के पास आप का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं हैं.’’

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वे बातें करते रहे. तब तक ट्रेन गया पहुंचने वाली थी. अजीत ने कहा, ‘‘बोधगया के बाद क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘कल शाम कोलकाता से मेरी बैंकौक की फ्लाइट है.’’

‘‘मेरे यहां धनबाद एक दिन रुक नहीं सकती हो?’’ अंतरा ने पूछा.

‘‘मु झे खुशी होगी आप लोगों के साथ कुछ समय रह कर. अगली बार कोशिश करूंगी. पर आप लोग एक बार बैंकौक जरूर जाएं और सर. इस बार आप को थाईलैंड-कंबोडिया बौर्डर ले कर चलूंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वहां अच्छे कैसिनोज हैं. विदेशियों के लिए गैंबलिंग लीगल है. शायद इस बार फिर लक साथ दे और आप ढेर सारा पैसा जीतें.’’

‘‘पर इस बार उस में मेरा भी हिस्सा होगा,’’ अंतरा बोली.

सभी एकसाथ हंस पड़े थे. ट्रेन गया प्लेटफौर्म पर थी. बुनसृ अपना सामान ले कर उतर पड़ी. अजीत और अंतरा दोनों कोच के दरवाजे पर खड़े थे. अंतरा बोली, ‘‘सुनो, गया में किसी पर आंख मूंद कर भरोसा न करना. प्लेटफौर्म पर ही टूरिज्म डिपार्टमैंट का बूथ है. वे लोग तुम्हारी मदद कर सकते हैं.’’

‘‘ओके, थैंक्स. मैं आप की बात का खयाल रखूंगी. आप लोग थाईलैंड जरूर आना. बायबाय.’’

5 मिनट में ट्रेन खुल पड़ी. बुनसृ गीली आंखों से हाथ हिला कर अजीत और अंतरा को विदा कर रही थी. जब तक आखिरी डब्बा आंखों से ओ झल नहीं हुआ, वह हाथ हिलाती रही. फिर अपनी शौल से ही गीली आंखों को पोंछती हुई गेट की ओर चल पड़ी थी.

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