लेखक- डा. अशोक बंसल
मैं ने बहुत कोशिश की उस के नाम को याद कर सकूं. असफल रहा. इंग्लिश वर्णमाला के सभी अक्षरों को बिखेर कर उस के नाम को मानो बनाया गया था. यह उस का कुसूर न था. चेकोस्लोवाकिया में हर नाम ऐसा ही होता है. वह भी चैक नागरिक था. वेरिवी के शानदार शौपिंग कौंप्लैक्स की एक बैंच पर बैठा था. 70-80 वर्ष के मध्य का रहा होगा.
यह बात ज्यादा पुरानी नहीं. आस्ट्रेलिया आए मुझे एक माह ही तो हुआ था. म्यूजियम और घूमनेफिरने की कई जगहों की घुमक्कड़ी हो गई, तो परदेश के अनजान चेहरों को निहारने में ही मजा आने लगा. आभा बिखेरते शहर मेलबर्न के उपनगर वेरिवी के इस वातानुकूलित भव्य मौल में जब मैं चहलकदमी करतेकरते थक गया, तो बरामदे में पड़ी एक बैंच पर जा बैठा. पास में एक छहफुटा गोरा पहले से बैठा था. गोरे की आंखों की चमक गायब थी, खोईखाई आंखें मानो किसी को तलाश रही थीं.
आस्ट्रेलिया की धरती ने डेढ़ सौ साल पहले सोना उगलना शुरू किया था. धरती की गरमी को आज भी विराम नहीं लगा है. इस धरती में समाए सोने की चमक ने परदेशियों को लुभाने का सिलसिला सदियों से बनाए रखा है. शानदार और संपन्न महाद्वीप में लोग सात समंदर पार कर चारों दिशाओं से आ रहे हैं. नतीजा यह है कि सौ से ज्यादा देशों के लोग अपनीअपनी संस्कृतियों को कलेजे से लगाए यहां जीवन जी रहे हैं.
बैंच पर बैठा मैं इधर से उधर तेज कदमों से गुजरती गोरी मेमों को कनखियों से निहारतेनिहारते सोचने लगता था कि वे किस देश की होंगी. भारत, पाकिस्तान, लंका और चीन के लोगों की पहचान करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी. पर सैकड़ों देशों के लोगों की पहचान करना सरल काम न था. एकजैसी लगने वाली गोरी मेमों को देख कर जब आंखों में बेरुखी पैदा हुई तो बैंच पर बैठे पड़ोसी के देश की पहचान करने की पहेली में मन उलझ गया. स्पेन का हो नहीं सकता, इटली का है नहीं, तो फिर कहां का. तभी एक गोरे ने मेरे पड़ोसी बूढ़े के पास आ कर ऐसी विचित्र भाषा में बतियाना शुरू किया कि मेरे पल्ले एक शब्द न पड़ा. गोरा चला गया, तो मैं अपनेआप को न रोक पाया.