दूसरी लहर में कोरोना कंट्रोल से बाहर होता दिखा. शहर के अस्पतालों में बिस्तर और औक्सीजन की कमी थी. मरीज दरदर भटक रहे थे. गांवों में तो इलाज की सुविधा ही नहीं दिखी. कहींकहीं पर तो पेड़ के नीचे कोरोना मरीजों का इलाज किया गया. नीमहकीम ग्लूकोज चढ़ा कर मरीजों का इलाज कर रहे थे.
राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर से सटे जिलों में नए मरीजों में रिकौर्ड बढ़ोतरी हुई.

डाक्टरी महकमे के मुताबिक, तकरीबन 45 फीसदी तक नए मरीज गांवदेहात के इलाकों से आए. बाड़मेर, चूरू, धौलपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़ जैसे जिलों में भी रोज के औसतन 600 केस आए, जबकि यहां पर दूरदराज के इलाकों में तो सैंपलिंग ही नहीं हो रही थी.

लोग भी कोरोना के नाम पर इतने डरे हुए दिखे कि खुद जांच ही नहीं कराई. वजह, यहां आईसीयू, बिस्तर और रेमडेसिविर दवा तो दूर मरीजों के इलाज के लिए कोविड सैंटर भी नहीं थे. इलाज के लिए लोगों को 100 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालयों तक जाना पड़ा.

जिला मुख्यालय के अस्पतालों में भी जगह नहीं बची थी. तहसील और उपखंड मुख्यालय के अस्पतालों में भी बिस्तर खाली नहीं दिखे. ऐसे में नीमहकीम पनप आए, जो घरों के बाहर नीम के पेड़ों के नीचे बिस्तर बिछा कर लोगों का इलाज कर रहे थे.

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पाली जिले के जैतारण इलाके में इसी तरह का मामला देखने को मिला, जहां पर कोरोना के संदिग्ध मरीजों का ग्लूकोज चढ़ा कर इलाज हो रहा था. बांगड़ अस्पताल में 280 बिस्तर बनाए गए. उन्हीं मरीजों को भरती किया जा रहा था, जिन का औक्सीजन सैचुरेशन 85 से नीचे था.

भरतपुर के बयाना इलाके में मरीजों को भरती करने की कोई सुविधा नहीं थी. सीटी स्कैन भी 10 गुना दाम पर हो रहा था. लोग जांच कराने के बजाय लक्षणों के आधार पर दवा ले रहे थे. वैर सीएचसी से 2 किलोमीटर दूर सटे 5,000 आबादी वाले नगला गोठरा इलाके में 70 फीसदी लोगों को खांसीजुकाम और बुखार था. मैडिकल टीम आई, पर किसी ने जांच नहीं कराई.

भोपुर, सहजनपुर, गाजीपुर समेत कई गांव थे, जहां हर घर में बुखार से पीडि़त लोग थे. सहजनपुर के शेर सिंह ने बताया कि एसडीएम ने मैडिकल टीम भेजी थी, पर लोग टैस्ट कराने को तैयार नहीं हुए. वे खुद ही दवा ले रहे थे.

जयपुर के मनोहरपुर में संक्रमितों के इलाज का माकूल इंतजाम नहीं दिखा.  50 किलोमीटर दूर जयपुर और  60 किलोमीटर दूर कोटपुतली में कोविड सैंटर बने थे. किशनगढ़रेनवाल में खारड़ा इलाके के 35 साला नौजवान को पहले सर्दीजुकाम हुआ, बाद में उस की मौत  हो गई.

बाड़मेर के चौहटन विधानसभा क्षेत्र में चौहटन, सेवा, धनाऊ व बाखासर में सीएचसी और पूरे इलाके में 14 से ज्यादा पीएचसी हैं. इन में सैंपलिंग तो हो रही थी, लेकिन कोविड सैंटर ही नहीं बने थे. मरीजों को बाड़मेर रैफर किया जा रहा था. गुड़ामालानी में कोविड सैंटर नहीं था. मरीजों को 100 किलोमीटर दूर बाड़मेर जाना पड़ रहा था.

औनलाइन महामृत्युंजय जाप

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर के 5 गांवों भावी, बिजासनी, जेतिवास, पिचीयाक और जेलवा में कोरोना की दूसरी लहर में महज 8 दिन में 36 मौतें हो चुकी थीं, वहीं पाली सांसद पीपी चौधरी के पैतृक गांव भावी में दिनभर हवनपूजन हो रहा था. औनलाइन महामृत्युंजय जाप का सीधा प्रसारण घरों में दिखाया जा रहा था.

कोरोना की दूसरी लहर में घरघर में मातम दिखा. श्मशान में एक चिता ठंडी नहीं होती, उस से पहले ही दूसरी अर्थी आ जाती थी.

यह दर्दनाक मंजर अकेले भावी गांव का नहीं, बल्कि जोधपुर जिले के  झाक, पीपाड़, बिलाड़ा, रणसीगांव, खेजड़ला, चिरडाणी, औसियां, भोपालगढ़ और दूसरे कई गांवों का भी था.

वैक्सीन पर नहीं भरोसा

पाली और बांसवाड़ा जिले के आदिवासी गांवों में वैक्सीन को ले कर अफवाहें फैल रही थीं. अफवाहों के चलते ही कम उम्र के लोग वैक्सीन लगवाने से बच रहे थे या उन्हें घर वाले ही वैक्सीन नहीं लगवाने दे रहे थे.

गोडवाड़ क्षेत्र के आदिवासी इलाके की 13 ग्राम पंचायतों में महज 15 लोगों ने ही वैक्सीन लगवाई थी. वागड़ के आदिवासी क्षेत्र में महज 54 फीसदी वैक्सीनेशन हुआ था. बाली के आदिवासियों ने टीके लगवाने से किनारा कर लिया था.

इस इलाके में यह अफवाह घरघर फैली थी कि वैक्सीन लगवाने से बच्चे पैदा करने की ताकत खत्म हो जाएगी. एक महीने में मौत भी हो सकती है. यही वजह थी कि डाक्टरी महकमे की ओर से बारबार वैक्सीनेशन कैंप लगाने के बाद भी टीका लगवाने कोई नहीं आ रहा था.

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सब से बड़ी बात यह दिखी कि यह अफवाह स्वयंभू आदिवासी नेताओं ने अलगअलग जगह पर बड़ी सभाओं के जरीए सरेआम फैलाई थी. एक मामले में तो पुलिस ने सभासदों के खिलाफ भीड़ जुटाने का मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन अफवाह फैलाने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं की.

चौंकाने वाला सच तो यह रहा कि आदिवासी क्षेत्र की 13 ग्राम पंचायतों  में टीकाकरण कराने वाले लोगों की संख्या एक दहाई तक ही रही, जिन में सरकारी कार्मिक या फ्रंटलाइन वर्कर्स ही  शामिल थे.

बाली पंचायत समिति की प्रधान पानरी बाई 58 साल की हैं. वे सिर्फ साक्षर हैं. अपने घर में जब उन्होंने कोरोना से तड़पते हुए दोहिते को देखा, तो सब से पहले डाक्टर ने उन के घर पहुंच कर औक्सीमीटर से औक्सीजन लैवल नापा. लैवल 70 तक आने के बाद दोहिते की सांसें उखड़ गईं.

इस के बाद पानरी बाई ने अपने पति और पूर्व प्रधान सामताराम गरासिया के साथ मिल कर यह तय किया कि गांव में अब ऐसी मौतों को रोकने की कोशिश की जाएगी. उन्होंने कोरोना से निबटने के लिए औक्सीमीटर मंगवाया.

टैलीविजन पर प्रोनिंग यानी औक्सीजन बढ़ाने का तरीका सीखा और दिन में 3 बार अपने घर में ही बने बगीचे में परिवार समेत गांव के लोगों को प्रोनिंग सिखाई.

नामर्दगी की वैक्सीन

बांसवाड़ा के कुशलगढ़ ब्लौक में एक और नया संकट खड़ा होता दिखा, जहां से वागड़ में कोरोना की ऐंट्री हुई थी. यहां पहले कोरोना का कहर था और बाद में वैक्सीनेशन को ले कर चल रही तमाम अफवाहों से डाक्टरी महकमा परेशान होता दिखा.

एक औरत ने बताया कि यहां ऐसी बात उड़ रही है कि पैंटशर्ट वालों का टीका अलग और गांवों में टीका अलग लग रहा है. यह टीका अगर जवान को लगा, तो बच्चे पैदा नहीं होंगे और बुजुर्गों को लगा, तो वे जल्दी मर जाएंगे.

कुशलगढ़ कसबे में हालात ज्यादा खतरनाक दिखे. वहां 2,776 लोग संक्रमित हो चुके थे, जबकि 36 लोगों की मौत हो चुकी थी. पहली लहर में 395 संक्रमण के मामले सामने आए थे, अब अफवाहों ने हालात को और बिगाड़ दिया था. कुशलगढ़ ब्लौक में महज  54 फीसदी ही वैक्सीनेशन हुआ.

सबलपुरा में वैक्सीनेशन के लिए गई टीम को गांव वालों ने भगा दिया. कुशलगढ़ के बीसीएमओ डाक्टर राजेंद्र उज्जैनिया ने माना कि यहां अंधविश्वास बहुत है, इसलिए टीकाकरण कम है.

पुरखों की पूजा

भंवरदा पंचायत के एक गांव में कई लोग एकसाथ पूजापाठ करते हुए देखे गए. जब इन से बातचीत की गई, तो बुजुर्ग सरदार सरपोटा ने बताया कि गांवगांव में कोरोना का डर है. दूसरे इलाकों की तरह हमारे गांव में यह आपदा नहीं आए, इसलिए पुरखों की पूजाअर्चना कर परिवार की हिफाजत की कामना कर रहे हैं.

गांव के हेमला सरपोटा बताते हैं कि कोरोना में सावधानी तो रख रहे हैं, लेकिन अब ऊपर वाला ही बचा सकता है.

राजस्थान के गांवदेहात के इलाकों में कोरोना को ले कर जागरूकता सही तरीके से नहीं पहुंच पा रही थी. यही वजह थी कि यहां के लोगों को पता ही नहीं था कि कोरोना कितना खतरनाक है. लक्षण दिखने पर लोग इलाज कराने भोपों के पास चले गए. खुद जयपुर जिले के गांवों में मैडिकल सेवाएं वैंटिलेटर पर थीं. सिस्टम खुद बीमार नजर आ रहा था.

क्वारंटीन सैंटर या जेल

कोरोना की दूसरी लहर में प्रतापगढ़ जिले के धरियावद उपखंड में ग्राम पंचायत और गांवों के साथ ढाणियों के भी हाल बुरे दिखे. यहां पर तकरीबन हर घर में खांसीबुखार के मरीज मौजूद थे, लेकिन इस से भी बुरा यह था कि गांव वालों को यह नहीं पता था कि कोरोना क्या है और यह कितना खतरनाक है.

यहां के सीधेसादे लोग तो बीमार होने पर यह कहते हैं कि उन्हें काली चढ़ी है या फिर माता का प्रकोप आया है और देवरे पामणे (देवीदेवता नाराज हो कर शरीर में मेहमान) हो गए हैं. इलाज के लिए डाक्टरों के पास नहीं, बल्कि भोपा और  झाड़फूंक वालों के पास चले  जाते हैं.

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देवरे (मंदिर) पर भोपे कोरोना के इलाज का दावा करते दिखे. यहां की राख और भभूति कोरोना की दवा बन गई. वहीं डाक्टर और हैल्थ वर्कर्स के नाम से तो यहां के लोगों को डर लगता है. कहते हैं कि अगर डाक्टर के पास गए, तो वे जेल यानी क्वारंटीन सैंटर भेज देंगे.

इतना ही नहीं, इलाके में कुछ कारोबारियों की अस्पताल में कोरोना से इलाज के दौरान मौत हो गई, तो यहां के लोगों को लगने लगा कि अगर जांच में कोरोना निकला और अस्पताल में भरती हुए, तो उन की मौत तय है.

वैसे, ज्यादातर गांव वाले अपनेअपने घरों को छोड़ कर खेतों में परिवारों से अलग रहने लगे. हालांकि, एक अच्छी बात यह हो रही थी कि लक्षण दिखने पर यहां लोग 7 से 8 दिन तक खुद को क्वारंटीन रखते थे. ऐसे में संक्रमण आगे नहीं फैल रहा था. तकरीबन हर गांव  में इस तरह सैल्फ क्वारंटीन होने का चलन दिखा.

धरियावद में तकरीबन 30 से ज्यादा ऐसे गांव थे, जहां कोरोना जैसे लक्षण लोगों में देखे जा सकते थे. हैरत की बात यह थी कि यहां पर पारेल, नलवा, वलीसीमा के कुछ गांव को छोड़ कर हैल्थ डिपार्टमैंट की ओर से कोरोना के सैंपल ही नहीं लिए गए.

वलीसीमा के सरपंच विष्णु मीणा और पूर्व सरपंच पूरणलाल मीणा बताते हैं कि तकरीबन 3 महीने पहले आखिरी बार 35 लोगों के सैंपल लिए गए थे, जबकि एक महीने में 10 लोगों की मौत हो चुकी थी.

भरम से बड़ा कोरोना

सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम सिंह  झाला ने बताया कि गांव के लोगों की यह सोच है कि बीमार होने पर अगर डाक्टर के पास गए तो सीधे क्वारंटीन सैंटर या फिर अस्पताल भेज दिए जाएंगे. वहां पर सिर्फ मौत मिलती है, क्योंकि जो भी अस्पताल गया, वह जिंदा नहीं लौटा.

टीचर गौतमलाल मीणा बताते हैं कि कुछ गांव वालों को यह गलतफहमी है कि कोरोना का टीका लगाने के बाद भी कोरोना होता है. गांव के कुछ फ्रंटलाइन वर्कर को जो टीके लगाए, वे अच्छे वाले थे. हमें बुरे वाले लगाएंगे.

हर 15 से 20 घरों के बीच एक देवरा है, लेकिन 10,000 की आबादी के बीच बमुश्किल एक अस्पताल, एक या  दो डाक्टर मिल पाते हैं. खांसीबुखार होने पर डाक्टर कोरोना जांच की सलाह  देते हैं. यहीं से गांव वाले डर जाते हैं  और मजबूरी में भोपा और  झाड़फूंक वालों के पास चले जाते हैं. इस चक्कर में कई लोगों की जानें भी चली गईं.

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कोरोना का भूत

दूसरी लहर में उदयपुर जिले में वल्लभनगर उपखंड के गांवों में कोरोना पूरी तरह पैर पसार चुका था. हर गांव में तीनचौथाई आबादी में खांसीबुखार के मरीज दिखे. अगर कोरोना के 100 सैंपल करवाए जाते, तो इन में से 80 पौजिटिव मिल जाते, लेकिन हैल्थ डिपार्टमैंट और प्रशासन के रिकौर्ड में सच से बिलकुल उलट तसवीर दिखी, क्योंकि सैंपल लेने का काम केवल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक ही सिमट कर रह गया था.

यहां के हर गांव में देवरे और देवीदेवताओं के स्थान पर लोग कोरोना को भूत सम झ कर  झाड़फूंक के लिए पहुंच गए थे. इन देवरों पर अकसर शनिवार और रविवार को छोटेबड़े मेले लग ही जाते थे.

यहां दिनभर में हर देवरे पर तकरीबन 100 से 250 के बीच लोग आते दिखे. गांवदेहात में लोग कोरोना को भूत मानते हैं और भूत उतरवाने के लिए ये लोग डाक्टर के पास जाने के बजाय भोपा और  झाड़फूंक वालों के पास पहुंच जाते हैं.
अगर कोई मास्क में यहां आता है, तो भोपे  झाड़फूंक करने के बाद यह कह कर मास्क उतरवा देते हैं कि तुम्हारे ऊपर से कोरोना का भूत हम ने भगा दिया है. घर जाओ और आराम करो.

गांव में जा कर सैंपल लेने की बात सिर्फ कागजों में दौड़ती दिखी. महकमे के मुताबिक, ग्राम पंचायत खरसाण में  6, नवणिया में 8, मैनार में 6 लोगों की कोरोना से मौत हुई थी, जबकि सचाई यह थी कि पिछले 30 दिन यानी  21 अप्रैल से 21 मई तक इन ग्रामीण इलाकों में 45 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी.

मौत के आंकड़ों पर पहरा

जयपुर की दूदू, फागी, चाकसू, बगरू, सांभर, शाहपुरा, कोटपुतली तहसील के गांवों में जमीनी हकीकत देखी तो रूह कंपाने वाली सचाई सामने आई. गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं वैंटिलेटर पर और मरीज लाचार नजर आए.

कोरोना की दूसरी लहर में यहां मौतों की तादाद में इजाफा हो गया. हैरत की बात यह थी कि मौतों के लिए सरकार महामारी को जिम्मेदार नहीं बताती दिखी. जब स्वास्थ्य महकमे के अफसरों से जानकारी चाही, तो उन्होंने फोन काट दिया.

अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौतों के आंकड़ों पर सरकारी पहरा किस कदर लगा था. 20 दिन में ही फागी में 30, कोटपुतली में 75 और बस्सी में
50 लोग दम तोड़ चुके थे.

गांवों के लोगों से बातचीत की, तो हरसूली के रामकिशन ने बताया कि गांव में तकरीबन हर घर में लोग बीमार हैं. पिछले 7 दिनों में ही 10 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. उपजिला अस्पताल दूदू से महज 3 किलोमीटर दूर खुडियाला के सरपंच गणेश डाबला ने बताया कि इलाके में 13 मौतें हो चुकी हैं.

इसी तरह फागी इलाके में पिछले कुछ दिनों के अंतराल में 30 मौतें हो चुकी हैं. कोटपुतली के मनीष ने बताया कि इलाके में 75 मौतें हो चुकी हैं. बस्सी इलाके में भी एक महीने के भीतर 50 से ज्यादा मौतें प्रशासनिक दावों की पोल खोल रही हैं.

दूदू उपजिला अस्पताल के डाक्टर सुरेश मीणा ने बताया कि अस्पताल में वैंटिलेटर नहीं हैं. हालांकि 4 औक्सीजन सलैंडर हैं. पड़ताल में सामने आया कि इन की सुविधा मरीजों को नहीं मिल रही, बल्कि उन्हें 70 किलोमीटर दूर जयपुर के लिए रैफर कर दिया जाता है. बदइंतजामी का आलम यह है कि 3 घंटे तक मरीज सुनीता हाथ में एक्सरे को ले कर दर्द से कराहती रही, लेकिन संभालने वाला कोई नहीं था.

यही हालत कोटपुतली अस्पताल की थी. आसपास के 35 से ज्यादा गांवों के मरीजों को वहां वैंटिलेटर की सुविधा नहीं मिल रही थी और जरूरत पड़ने पर मरीजों को जयपुर या दिल्ली का रुख करना पड़ रहा था.

लटकाए जूतेचप्पल

हर साल अकाल  झेलने वाले आसींद और बदनौर इलाके के हालात डरावने हो गए थे. आसींद के दांतड़ा बांध गांव में 30 दिन में कोरोना से 62 मौतें हो गई थीं. लोग दहशत में हैं. गांव में कोरोना से मौतें होने से लोगों में गुस्सा दिखा, क्योंकि कोई पुख्ता इंतजाम नहीं थे.

खौफजदा गांव वालों ने घरों के बाहर जूतेचप्पल लटका दिए. इस गांव में तकरीबन 400 घर हैं. सभी घरों में यही हालात दिखे. इस बारे में गांव वालों का कहना था कि इस से हमारे परिवार और गांव को किसी की नजर नहीं लगेगी. कोरोना से भी बचे रहेंगे. यहां घरों के बाहर काली मटकी और टायर बांधते हुए तो देखा गया था, लेकिन कोरोना के खौफ के चलते जूते और चप्पलें पहली बार लटकी दिख रही थीं.

गांव में कोरोना का खौफ इतना ज्यादा था कि जिस घर में संदिग्ध मरीज था, वहां लोगों ने दरवाजे से बल्लियों का क्रौस का निशान बना रखा था, ताकि गांव वालों को पता चल जाए कि यहां से दूरी बना कर रखनी है.

लोगों ने बताया कि हमारे यहां इतनी मौतें हुईं, लेकिन प्रशासन ने बिलकुल ध्यान नहीं दिया. शुरुआत में टीम आई और 80 लोगों के सैंपल लिए. इस में से 8 पौजिटिव निकल गए. इस के बाद दोबारा टीम गांव में नहीं आई. अस्पताल भी बंद है.

समाजसेवी नरेंद्र गुर्जर कहते हैं कि दांतड़ा बांध गांव में 1,700 वोटर और 300 घर हैं. यहां इलाज के कोई साधन नहीं हैं. नजदीक में कोई बड़ा अस्पताल भी नहीं है. शुरुआत में दवा किट भी  पूरी नहीं दी गई. अब कोई टीम भी  नहीं आ रही है. लोग बहुत डरे हुए हैं, इसलिए जूतेचप्पलें लटका रहे हैं.

 झोलाछाप डाक्टरों का राज

कोरोना की दूसरी लहर में  झोलाछाप डाक्टर गांवों में दुकानें खोल कर बैठ गए थे. वे छोटे बच्चों से ले कर गंभीर बुजुर्ग मरीजों को इलाज की जगह मौत बांट रहे थे. फागलवा गांव में एक  झोलाछाप डाक्टर क्लिनिक खोल कर बैठा था. वह कोविड मरीजों को बिना जांच के ही दवा दे कर ड्रिप लगाता दिखा.

खांसीजुकाम के मरीजों से ये लोग कोविड जांच करवाने के बजाय यह कह रहे थे कि कोई कोविडफोविड नहीं है. हम से दवा ले जाओ. 2 दिन में सही हो जाओगे.
सेवदा गांव में एक क्लिनिक के बाहर मरीजों की भारी भीड़ जुटी हुई थी. वहीं, इस के पास नर्सिंग होम में भी महिला मरीजों की भीड़ जुटी हुई थी.

सब से बड़ी बात यह थी कि ये  झोलाछाप डाक्टर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के ठीक सामने अपने क्लिनिक और नर्सिंग होम खोल कर बैठे दिखे. ये मरीजों की जान के साथ बेखौफ हो कर खिलवाड़ कर रहे थे. कोरोना के दौर में इन लोगों ने कई सामान्य मरीजों को क्रिटिकल हालात में पहुंचा दिया था.

चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के पडि़हारा गांव में एक  झोलाछाप डाक्टर कई कोविड मरीजों को इलाज के नाम पर कई दिनों से दवाएं देने के साथ ही ड्रिप चढ़ा रहा था. इस से कई मरीज गंभीर हालात में पहुंच गए. कुछ मरीज तो आईसीयू और वैंटिलेटर पर चले गए.

गांव की सीएचसी में डाक्टर तो हैं. पर गांव वालों ने  झोलाछाप डाक्टरों की कलक्टर सांवरमल वर्मा और सीएमएचओ डाक्टर मनोज शर्मा से शिकायत की, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई.

कटेवा गांव में 5  झोलाछाप डाक्टर मैडिकल स्टोर की आड़ में मरीजों को देख रहे थे. घिरणियां बड़ा के रहने वाले बाबूलाल बैरवा अपने 13 साल के बेटे नीतीश कुमार को कटेवा के लाइफ केयर मैडिकल ऐंड नर्सिंग होम में इलाज के लिए ले कर आए थे. उन के बेटे को किडनी में संक्रमण था.  झोलाछाप डाक्टर ने नीतीश को दुकान के बाहर ही ड्रिप लगा दी और उस के मातापिता को उस के पास बैठा दिया.

अब कह रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी. अगर तब तक सरकार ने तैयारी पूरी नहीं की, तो देशभर में क्या हाल होगा, इस का आसानी  से अंदाजा लगाया जा सकता है.

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