कई दिनों के बाद गुड्डो को बाजार में देख कर बेबी ने उसे आवाज लगाई. इस के बाद गुड्डो ने बेबी को जो बताया, उस से बेबी के होश उड़ गए.
बाजार आज भी सुनसान था. 2 दुकानों को छोड़ कर... पहली लालाजी की किराने वाली और दूसरी तरुण कैमिस्ट वाले की. कोरोना काल में इन दोनों की ही चांदी थी.
कोरोना के चलते बिका हुआ माल वापस नहीं होगा, यह हर ग्राहक जानता था, फिर भी हर कोई माल ज्यादा लेने की फिराक में दिख रहा था, भले ही दवाएं ही सही.
लालाजी और तरुण को सांस लेने की भी फुरसत नहीं थी. तरुण के यहां औक्सीमीटर और लालाजी का दलिया आते ही खत्म हो जाता था. बाकी सामान का भी तकरीबन यही हाल था.
तरुण ने अपनी कैमिस्ट शौप के आगे परदे टांगने का एक प्लास्टिक का पाइप अड़ा रखा था. उस के आगे आने की हर किसी को मनाही थी. लोग कुछ दूर खड़े हो कर अपनी बारी का इंतजार करते थे.
सब के चेहरे पर मास्क चढ़ा होता था. किसीकिसी ने तो 2-2 मास्क लगा रखे होते थे. उन सभी के घर में कोई न कोई कोरोना का शिकार मरीज था.
एक दिन की बात है. तरुण की शौप पर भीड़ जमा थी. लोगों से कुछ दूरी पर कई गरीब बच्चे भी खड़े थे. भिखारी नहीं थे, पर लोगों से घर के लिए दूध, राशन, बिसकुट कुछ भी मिल जाए, मांग रहे थे.
उन्हें कोई 10 तो कोई 5 रुपए थमा देता. कोईकोई फटकार भी लगा देता, ‘‘घर पर तो हम से मरीज संभलते नहीं, इन की और सेवा करो.’’
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